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Romans control over Quds (Palestine)

तारीख़ ए फिलिस्तीन (क़िस्त 3)

ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश

अल्लाह ताला के मोज़िज़ा से ईसा अलैहिस्सलाम का जन्म बिना पिता के मारियम अलैहास्सलाम से हुआ, लेकिन यहूदी लोग इसे संदेह के साथ देखते थे और मारियम अलैहस्सलाम पर ज़िना का आरोप लगाते थे। जब ईसा अलाहिस्सलाम बचपन में ही अपना मां की गोद में बोलकर इस बात को झुठलाया और खुद को और अपनी मां को हक पर साबित किया तब जा कर इनके मुंह बंद हुए क्योंकि ईसा अलैहिस्सलाम का ये मोज़िज़ा था के बचपन में बच्चे नहीं बोलते लेकीन आप ने बोल कर ही बात बयान की।

अल्लाह ताआला ने ईसा अलैहिस्सलाम को यहुदियों का नबी बनाया ईसा अलैहिस्सलाम बड़े होने पर उन्होंने यहूदियों को अल्लाह की तरफ बुलाया, ईसा अलैहिस्सलाम ने अपने हाथों से मोज़िज़ात दिखाए, लेकिन यहूदियों में से किसी ने उनकी बात नहीं मानी, मोज़िज़ात के बारे में कहा के ये जादू टोना है। युहूदियों न सिर्फ़ इनकार किया बल्कि उन्होंने लड़ाईयां तक शुरु किं।

अल्लाह ताला ने ईसा अलैहिस्सलाम को यहूदियों की तरफ नबी बना कर भेजा, उन से पहले ज़करिया अलैहिस्सलाम यह्या अलैहिस्सलाम भी नबी थे। बनी इस्राईल की तरफ उसी तरह कई-कई अमबिया भेजे जाते थे, ये तीनों अमबिया यानी ज़करिया अलैहिस्सलाम, यह्या अलैहिस्सलाम और ईसा अलैहिस्सलाम, यहूदियों को दीन ए हक की तरफ बुलाते रहे, और उनकी नसीहत की कोशिश की कि वे अपनी मक्कारियों बेदीनी से बाज़ आएँ, लेकिन इसके बावजूद वे अपनी सरकशी पर अड़े रहे।

रोमियों का क़ुद्स पर कंट्रोल

6वीं सदी में यहूदी बादशाह हेरोडस के पुत्र से सत्ता रोमन की तरफ़ मुन्तक़िल हुई जो सीधे सत्ता में थे, उन्होंने यहूदियों की खुद मुख्कितारी को खत्म किया इसी लिए ईसा अलैहिस्सलाम के समय में कुद्स पर रोमियों का सीधा नियंत्रण था, यानी इस समय केवल न्यायालय और धर्म यहूदियों के हाथ में था।

फ़िलिस्तीन पर बतलिमूस रूमी की सरकार

26वीं सदी में बतलिमूस रोमी ने जो यहूदी नहीं था फ़िलिस्तीन की सरकार संभाली, उसके दोर ए सल्तनत में बहुत खौफनाक घटनाएँ हुईं। बतलिमूस बादशाह ने तीन अमबिया ज़करिया, यह्या और ईसा अलैहिस्सलाम के दौर में हुकूमत की, लेकिन यहूदी, ईसा अलैहिस्सलाम को नबी नहीं मानते थे और ज़करिया और यह्या को बड़े पादरी समझते थे।

बतलिमूस चाहता था कि वह अपनी भतीजी से शादी करे क्योंकि वह बहुत खूबसूरत थी, लेकिन उनके धर्म में चचे से शादी हराम थी, इसलिए उन्होंने इस निकाह के इजाज़त के लिए ज़करिया और यह्या की इजाज़त लेने चाही, यह्या ने कहा कि मैं इसका जवाब लोगों की मौजूदगी में दूंगा, चूंकि बतलिमूस ने उनके लिए लोगों को इबादतगाह में जमा किया, जब लोग जमा हो गए तो यह्या ने बजाए उसके कि वह बतलिमूस की शादी के इजाज़त का इलान करते, उन्होंने कहा कि यह निकाह पूरी तरह से हराम है, जो ऐसा करेगा वह काफ़िर हो जाएगा, जिसका क़त्ल करना जाइज़ होगा।

याहया अलैहिस्सलाम का कत्ल

बतलिमूस इस ऐलान से हैरान हो गया ख़ास कर इस वजह से के वो युहूदी मज़हब को अच्छा समझता था और युहूदियों की बहुत मदद करता था और और उनकी मुकद्दस चीज़ों का एहतिराम करता था और वो युहूदी मज़हब की पैरवी भी करता था। उसने जब ये ऐलान सुना तो वो मायूस हो गया।बतलिमूस की भतीजी ने अपने चाचा को भड़काया उसके सामने रक्स किया उसे शराब पिलाई जिस से वो नशे में हो गया फिर उसे याहया अलैहिस्सलाम के कत्ल पर उभारा

इसके बार बार ज़िद करने पर उस पर कत्ल का भूत सवार हो गया । फिर ज़करिया अलैहिस्सलाम के कत्ल पर भी उभारा और उसने दोनों को शहीद कर दिया जैसा के मशहूर रिवायत में है। इस तरह इस फजिर बतलिमूस ने 2 अम्बिया को कत्ल किया, और इस पूरे मुआमले में युहूदी बिल्कुल ख़ामोश रहे जैसे इस मुआमले से उनका कोई ताल्लुक़ ही न हो

ईसा अलैहिस्सलाम की दीन की दावत

इस प्रकार केवल ईसा अलैहिस्सलाम बच गए, उन्होंने दीन की तबलीग शुरू की, उन्होंने दीन की दावत के लिए सफर शुरू किए, उनकी रहने की कोई ख़ास जगह मुक़रर नहीं थी, इसलिए उन्हें मसीह कहा जाता है, क्योंकि वह ज़मीन में सयाहत(सफ़र) करते थे, जैसा कि मशहूर रिवायत में है। उन्होंने मुनक़िरीन के साथ जंग शुरू की, जैसे इबादतगाह में जुआ खेलना।एक मशहूर रिवायत में है कि ईसा अलैहिस्सलाम एक बार अचानक इबादतगाह में प्रवेश किया, यहूदी जुए का खेल खेल रहे थे, ईसा अलैहिस्सलाम जुए के मेज़ पर जाकर उनको इस मक़दस जगह की हुरमत पामाल करने पर कोड़े मार रहे थे,

ईसा अलैहिस्सलाम कनीसा के मशहूर ख़ुतबा में से थे, इस प्रकार ईसा अलैहिस्सलाम ने यहूदियों के अंदर मौजूद मुनक़िरीन को ख़त्म करना शुरू किया।यहूदियत एक सख़्त मज़हब था, जिसमें बहुत सी पाबंदियाँ और सज़ाएँ थीं, जो अल्लाह तआला ने यहूदियों पर उनकी नाइंसाफ़ियाँ, ज़िद और कुफ़्र की वजह से आइद की थीं, यहूदी उनकी वजह से तकलीफ़ में थे, जब ईसा अलैहिस्सलाम तशरीफ लाए तो उन्होंने कुछ सख़्तियों और सज़ाओं को खत्म किया,

इसके कारण यहूदी पादरी उन से नाराज़ हुए, और लोगों के दिलों में उनके मक़ाम की वजह से उन से हसद करने लगे, क्योंकि ईसा अलैहिस्सलाम लोगों की तवज़्ज़ो का मरक़ज बन गए थे, जब यहूदी उनकी तरफ़ मुतवज़्जह हुए तो उस से यहूदी पादरियों का ग़ुस्सा भड़क उठा, इसलिए उन्होंने ईसा अलैहिस्सलाम के क़त्ल की साज़िश शुरू की।

ईसा علیہ السلام का आसमान पर उठाया जाना

जब ईसा علیہ السلام की उम्र 33 साल हुई, उस समय तक यहूदी पादरियों का उनके साथ खींचाव उनकी सीमाओं को पार कर चुका था, इसलिए उन्होंने ईसा علیہ السلام को मौत की सजा सुनाने के लिए उन पर मुकदमा चलाने का फैसला किया, रोमन शासक बतलिमोस भी उनके साथ सहमत था,

उन्होंने शासक से कहा कि ईसा علیہ السلام के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी करे, क्योंकि जैसा कि हमने पहले जिक्र किया हुकूमती इख्तियार रोमियों के हाथ में थे, यहूदियों के हाथ में नहीं थे, उनके हाथ में सिर्फ न्यायिक फैसला था। शासक ने अपने रोमन सैनिकों को ईसा علیہ السلام की तलाशी के लिए भेजा, यहूदियों और रोमियों के बीच ईसा علیہ السلام के खिलाफ इत्तेहाद क़ायम हो गया था, इसलिए हरजगह उनकी तलाश की जाने लगी।

ईसा علیہ السلام के बारे में मसीही रोवायतें‌‌

ईसा علیہ السلام के बारे में मसीही रिवायतों का खुलासा यह है कि ईसा علیہ السلام ने अपने हवारीयों में से किसी एक से मांग की कि कोई है जो मेरी जान का नज़राना दे, तो एक छोटी उम्र का जवान आगे आया, अल्लाह ताला ने उस नौजवान की शक्ल ईसा علیہ السلام की शक्ल में बदल दी, यह एक इतना अद्भुत करिश्मा था कि इससे पहले ऐसा करिश्मा नहीं हुआ था, पुलिस ने उस नौजवान को कैद किया,

लेकिन उन्हें अब भी इस बारे में यक़ीन नहीं था, कुछ को शक था कि यह ईसा علیہ السلام है। लेकिन बेहरहाल उन्होंने ईसा علیہ السلام के हवारी के ऊपर काँटों का ताज रखा, और उसे मुकदमा चलाने के लिए ले गए। यहूदियों ने मुकदमा शुरू किया, क्योंकि वह ईसा علیہ السلام के हवारी थे इसलिए सही जवाबात देने में माहिर थे, और उनके फ़रसूदा आपत्तियों के जवाब दे रहे थे, वह उन्हें दलीलों में शिकन(हरा) नहीं दे सके इसके बावजूद उनके क़त्ल और सूली पर चढ़ाने का फैसला जारी किया।

उन्होंने जिस सलीब पर उन्हें बाँधा वह बहुत भारी थी, जिस रास्ते पर उसे ले जा रहे थे वह रास्ता अब तक मशहूर है उसे “सूली का रास्ता”, “राह-ए-ग़म” (Via Dolorosa) कहा जाता है। यहाँ थकावट की वजह से चौदह जगह पर ठहरे थे, ये जगहें अब तक मशहूर हैं, ये जगहें ईसाईयों के नज़दीक अब तक यादगार और मुकदस समझे जाते हैं,

उन्होंने यहाँ मुकदस निशानियाँ बनाई हैं, अप्रैल महीने में ईस्टर, यानी की प्राणोत्सव को यहाँ जमा होकर जश्न मनाते हैं, और किसी एक शख्स को काँटों का ताज पहनाते हैं और उसे सलीब पर लटकाते हैं, और उन चौदह मकामों पर उसे ठहराते हैं और आख़िर उस जगह तक लाते हैं जहाँ ईसा علیہ السلام के हमशक्ल को सूली पर लटकाया गया था।

ईसा علیہ السلام के बारे में क़ुरआन की शहादत

यहूदी यह समझते हैं कि उन्होंने ईसा علیہ السلام को सूली पर चढ़ाया था, लेकिन क़ुरआन मजीद में अल्लाह तआला यहूदियों की तर्दीद में फ़रमाता है:

وَبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلى مَرْيَمَ بُهْتاناً عَظِيماً. وَقَوْلِهِمْ إِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِيحَ عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ رَسُولَ اللَّهِ ، وَما قَتَلُوهُ وَما صَلَبُوهُ ، وَلكِنْ شُبِّهَ لَهُمْ ، وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِيهِ لَفِي شَكٍّ مِنْهُ ، ما لَهُمْ بِهِ مِنْ عِلْمٍ إِلَّا اتِّباعَ الظَّنِّ ، وَما قَتَلُوهُ يَقِيناً. بَلْ رَفَعَهُ اللَّهُ إِلَيْهِ ، وَكانَ اللَّهُ عَزِيزاً حَكِيماً. وَإِنْ مِنْ أَهْلِ الْكِتابِ إِلَّا لَيُؤْمِنَنَّ بِهِ قَبْلَ مَوْتِهِ ، وَيَوْمَ الْقِيامَةِ يَكُونُ عَلَيْهِمْ شَهِيداً [النساء 4/ 156 -  159].

तर्जुमा:: और उनके कुफ़्र और मारियम पर उनके बड़े भारी तोहमत के कारण और उनके कहने के कारण कि हमने मसीह ईसा, मारियम के पुत्र, जो अल्लाह के रसूल हैं को मार डाला है” हालांके उन्होंने ना उन्हें कत्ल किया ना ही उन्हें सूली पर चढ़ाया लेकीन उन्हें इश्तिबा हो गया और जो लोग उनके बारे में इख्तिलाफ़ करते हैं वो गलत खयाल में हैं और उनके पास इस बारे में कोई दलील नहीं

सिवाए ख्याली बातों पर अमल करने के और यकीनी बात ये है के उन्होंने उन्हें क़त्ल नहीं किया, बल्कि उनको अल्लाह तअला ने उन्हें अपनी तरफ़ उठा लिया, और अल्लाह ताला बड़ा ज़बर्दस्त हिकमत वाला है। और कोई शख़्स अहले किताब में से नहीं रहता मगर वह ईसा علیہ السلام की अपने मरने से पहले तसदीक कर लेता है और क़यामत के दिन वह उन पर गवाह होगा” (सूरह निसा 4/ 156 – 159)।

यहूदियों का ईसाइयों पर अत्याचार

यहूदियों ने ईसा علیہ السلام के समर्थक लोगों पर बहुत अधिक अत्याचार ढाये, जिसकी वजह से ईसाई रोपोश हुए और क़ुदुस छोड़ कर चले गए, कुछ ने रोमियों से पनाह ली, ईसाइयत की दावत छुपके छुपके शुरू हुई। उस समय तक इंजील की लिखाई नहीं हुई थी, बल्कि 260 ईसवी के बाद इंजील लिखी गई, जिसमें लोगों ने अच्छी तरह बदलाव और झूठी रिवायात को दाखिल किया,

इससे अंदाजा लगाइए कि ख़ुद इंजील में लिखा है कि ईसा علیہ السلام को सूली पर चढ़ाया गया है, उसी तरह कुछ इंजील के नुस्खों में ईसा علیہ السلام के 20 साल के बाद के वाक़ियात भी दर्ज हैं, जिससे यह वाजिब होता है कि इंजील में तहरीर हुई है और उसमें अपनी तरफ़ से बहुत अधिक इज़ाफ़े किए गए हैं।

यहूदियों और ईसाइयों की लड़ाईयाँ

ईसा अलैहिस्सलाम के उठाए जाने के तीन साल बाद 36 ईसवी को बतलिमोस का अंत हुआ, इस मौके पर रोमन साम्राज्य के शाहनशाह ने पिछले यहूदी बादशाह हेरोडस के पुत्रों को अनुमति दी कि वे फिर से व्यक्तिगत शासन स्थापित करें, लेकिन इस शर्त पर कि वे रोमनों को टैक्स दें। इस तरह यहूदी फिर से रोमन सरकार का हिस्सा बन गए। इस दौरान ईसा अलैहिस्सलाम के हवारी छुप-छुप कर ईसाइयत की तबलीग में लगे रहे, कभी वे जुर्रत पाकर खुले द्वारा भी तबलीग शुरू कर देते थे,

वे बैतुल मुकद्दस में बयानात करके रौ पोश हो जाते थे, जिससे उनमें और यहूदियों में सख़्त लड़ाईयाँ चलती रहती थीं, यह स्थिति फिलिस्तीन के अंदर और बाहर दोनों जगह थी, यहूदी जहाँ भी किसी ईसाई को देखते उनको मार देते थे। ईसाई हवारी में से एक पतरस था जो रोम भाग गया था, उसने वहाँ एक ईसाइ संगठन की नींव डाली, उन्होंने फिलिस्तीन हो या फिलिस्तीन से बाहर हो यहूदियों में ईसाइयत की तबलीग पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन उन हवारीयों में से एक पौलुस भी था जो मसीहीत की तबलीग कर रहा था लेकिन उसने अपना ध्यान केवल यहूदियों की ओर नहीं किया बल्कि वह मूर्तिपूजकों को भी दीन ए मसीह की तबलीग करता था,

उस पौलुस नाम के हवारी ने दीन मसीह की तबलीग में धार्मिक शिक्षाओं में बहुत अधिक फलसफाना चर्चा को शामिल किया, जिसके कारण धर्म और फलसफा आपस में मिश्रित हो गए, और कई ईसाई धर्म के शब्दों ने दार्शनिक शब्दों की शक्ल इख्तियार कर ली, इसी से ईसाई में यह विचार प्रवाहित हुआ कि ईसा अलैहिस्सलाम खुद अल्लाह है। फिर उन्होंने यह कहा कि वह अल्लाह का बेटा है। इसके अलावा बहुत सारे खुराफात उनमें पैदा हो गए, जिनमें से एक यह है कि ईसा अलैहिस्सलाम कब्र से निकले और नौजवानों से बातचीत की कि मैं अल्लाह का बेटा हूं।

आज तक किसी भी इंजील में कोई ऐसी किस्सा नहीं है जिसमें ईसा अलैहिस्सलाम ने कहा हो कि मैं अल्लाह का बेटा हूं, उन इंजील किस्सों में सभी मसीही किस्से हैं, जो बाद में इंजील में जोड़े गए हैं। इंजील में जो एक ही किस्सा है वह यह है कि हम अल्लाह के अ’याल हैं, लेकिन उसके कहने में कोई हरज नहीं है, यह जुमला इस्लामी किस्सों में भी है, इसका मतलब हम अल्लाह के मोहताज हैं, हमें अल्लाह रिज़क देता है और हमारी परवरिश करता है, यह मतलब नहीं है कि हम अल्लाह के बच्चे हैं, यह अनुवाद सही नहीं है।

इसी तरह मसीही धर्म में तहरीफात(बदलाव)दाखिल हुई और वे सीधे रास्ते से गुमराह हो गए।जब शहंशाह ए रोम नीरो को ईसाइयों की खुफिया तबलीगी मिशन का पता चला तो उसने पतरस और पौलुस को गिरफ्तार किया, फिर उसे फांसी देने का हुक्म जारी किया, लेकिन जो लोग उन ईसाइ पादरियों की दावत से प्रभावित थे उन्होंने मसीहीत की तबलीग जारी रखी, उन्होंने पत्रस और पौलुस के मूर्तियों के साथ साथ ईसा अलैहिस्सलाम और मरियम अलैहा सलाम के मूर्तियों को भी बनाया, इसी तरह धीरे-धीरे ईसाइयों में मूर्तिपूजा शुरू हुई।

यहूदियों का विद्रोह

66 ईसवी को आखिरकार यहूदी ने कुद्स में विद्रोह कर दिया, जिस पर रोम के शाहंशाह ने कुद्स का घेराबंद किया, यह घेराबंद चार साल तक जारी रहा, इस दौरान रोमी इसे फ़तेह नहीं कर सके, शाहंशाह रोम ने फिलिस्तीन की फ़तेह के लिए अपना एक बेटा मुकर्रर किया जिसका नाम कास्बियान था, ताकि वह यहूदी के विद्रोह को समाप्त करे, यह 66 ईसवी की बात है।

लेकिन उसने भी फिलिस्तीन पर कब्ज़ा को नहीं छुड़ाया, लेकिन रूमियों और यहूदीयों के बीच घेराबंदी जारी रही जो बहुत लंबे समय तक जारी रही।घेराबंदी के चार साल बाद 70 ईसवी को शाहंशाह रोम के बेटे कास्बियान को कुद्स में प्रवेश का मौका मिला, कास्बियान को तीतुस के नाम सेभी बुलाया जाता था, जिसके कारण रोमनी सरकार को बहुत बड़ा झटका लगा था, और उनकी नैतिकता और शक्ति धूल में मिल गई कि उन्हें फ़तेह करने में इतना लंबा समय लगा,

इसलिए सबसे पहला काम जो तीतुस ने किया वह यह था कि पूरे कुद्स शहर को तबाह व बर्बाद किया, हेकल को भी एक बार फिर पूरी तरह से तबाह किया, हेकल का कोई पत्थर बाकी नहीं रहा, उसने कुद्स यरूशलम पर एक रोमन चौकी मुक़रर की। सभी यहूदियों को गिरफ्तार किया, इसलिए यह दूसरी मर्तबा है कि यहूदियों को गिरफ्तार किया जा रहा था, उन्हें रोम में ग़ुलामों के तौर पर बेचा गया। यह यहूदीयों की यूरोप में पनपने की शुरुआत थी। कुछ यहूदी फिलिस्तीन के अंदर भी थे जो छिपकर ज़िंदगी गुज़ार रहे थे।

रोमन सम्राट हार्दियान के हाथों यहूदियों की तबाही 132 ईसाई को यहूदी एक बार फिर बारखोखिया की नेतृत्व में एकजुट हुए, यह नाम यहूदी इतिहास में प्रसिद्ध है, इस व्यक्ति ने यहूदियों को एकत्र करके रोमन साम्राज्य पर हमला किया, और किसी एक किले पर विजय प्राप्त करके उसमें पनाह हासिल की, लेकिन तीन साल बाद रोमन सम्राट हादरियान ने इस अधिग्रहण को समाप्त कराया, और उन्होंने यहूदियों के सभी आबादी को नष्ट कर दिया, बल्कि सभी यहूदी अबादियों को भी मिटा दिया, और एक नया शहर यहाँ आबाद किया, और एक नए निर्माण को बनाया जिसका नाम एलिया हादरियान था।

उसने मशहूर स्थान पर अपना किला बनाया था जिसे खिरबत ए यहूद का नाम दिया जाता है, क्योंकि उसने यहूदियों की इबादतगाह(पूजा स्थल) और हैकल को बर्बाद करके उसकी जगह यह किला बनाया था जिसे अरब खिरबत ए यहूद कहते हैं। हादरियान ने इसके बाद रोमन इबादतगाहों का निर्माण शुरू किया, और रोमन धर्मों के भगवान जूपिटर के लिए उसी स्थान पर जहाँ यहूदियों का पूजा स्थल था एक महान हेकल निर्माण किया, इसके बाद कुद्दस नए नाम से प्रसिद्ध होने लगा, वह एलिया है,

जबकि इससे पहले वह यरूशलम के नाम से प्रसिद्ध था। मुसलमानों के जमाने में भी उसका नाम एलिया ही प्रसिद्ध था, इसकी वजह वह किस्सा है जिसमें हरकुल ने नबी करीम ﷺ के खत के सिलसिले में अरब लोगों की एक जमात को तहकीक के लिए जमा किया जिसमें हज़रत अबु सफियान भी शामिल थे, उस किस्से में है कि उन्होंने एलिया में ये मुलाकात की थी।

यहूदियों पर कुद्दस में प्रवेश की रोकथाम जब रोमनों ने कद्दस को पूरी तरह से नियंत्रित किया तो रोमी शाहंशाह ने बहुत कठोर फैसला किया कि किसी भी यहूदी का कुद्दस में प्रवेश वर्जित है, हालांकि इससे पहले वह उन्हें पूजा की इजाजत देते थे, यहूदियों पर यह प्रतिबंध बहुत लंबे समय तक रहा, अर्थात दो सौ वर्षों तक, फिर जाकर आखिरकार जब रोमी शाह मार्कोश औरेलियस का समय आया तो उसने यहूदियों को कुद्दस में केवल इबादत के लिए प्रवेश करने की इजाजत दी थी।

बनी इस्राइल की नक़ल मकानी इस समय में बनी इस्राइल पूरी धरती पर विभिन्न स्थानों में जा कर बस चुके थे, यहां तक कि फिलस्तीन में उनका नाम-शनाम तक नहीं रहा था, इन दो सौ वर्षों के युद्ध से इस क्षेत्र को पहली बार शांति और सुकून हासिल हुआ था। हालांकि महारानी ज़ीनोबिया की तरफ से फिलस्तीन, शाम और मिस्र पर युद्धी हमले होते थे। इस महारानी को बहुत अधिक प्रसिद्धि मिली थी, उसने अत्यधिक शानदार इमारतें निर्मित की थीं जिनके खंडहर अब भी मौजूद हैं। लेकिन महारानी ज़ीनोबिया का शासनकाल फिलस्तीन पर केवल तीन साल था।

यहूदियों की ईद ए गुफ़रान पाँचवीं सदी से यहूदियों ने एक दिन मनाना शुरू किया है जिसे ईद गुफ़रान, योम ए किपुर कहते हैं, जो हिब्रू कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर के नौवें तारीख को मनाया जाता है, रोज़ा रखते हैं, तोबा और सदका करते हैं और तौरात की तिलावत करते हैं। यह यहूदियों का बड़ा त्योहार का दिन होता है, 1973 में इसी दौरान रमज़ान में जंग हुई थी।

रोमी सम्राट क़ुसतुनतीन का ईसाईयत स्वीकार करना। 324 ईसवी को एक महान घटना पेश आई वह यह कि रोम के सम्राट क़ुसतुनतीन ने ईसाई धर्म को अपनाया इसके बाद क़ुसतुनतीन ने बाज़ंतीनी साम्राज्य पर भी कब्ज़ा करने की कोशिश की, बाज़ंतीनी साम्राज्य का दारुलख़िलाफ़ा क़ुसतुनतीन था जो आजकल इस्तांबुल के नाम से याद किया जाता है, जिससे क़ुसतुनतीन रोमन साम्राज्य की मिल्कियत में आया, इसके अलावा बाइज़ंटाइन सरकार की जगहों को भी उसने फ़तह किया, जिसमें शाम, फिलस्तीन भी था।

क़ुसतुनतीन की मां ने भी ईसाईयत कबूल की थी, वह कुद्दस की यात्रा करने आई थी, लोगों से ईसा अलैहिस्सलाम की तारीख के बारे में पूछ रही थी, लोगों ने उन्हें ईसा अलैहिस्सलाम के अवशेषों और ऐतिहासिक स्थलों के बारे में बताया तो उसने कनीसा अलकियामा (चर्च यारूशलम) का निर्माण का आदेश दिया, इसलिए यह कनीसा ईसा अलैहिस्सलाम के समय में नहीं था, यह 324 साल बाद बना है। जिसे उस महिला ने बनाया है उस जगह में जहाँ ईसा अलैहिस्सलाम के हमशक्ल को फाँसी दी गई थी।

क़ुसतुनतीन शाह ने भी दोबारा उस इरादे को पास किया जिसमें यहूदियों को कुद्दस में प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी, इसलिए इस सम्राट की तरफ से भी यहूदियों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं था, यही हालत चलती रही, यहाँ तक कि सम्राट रोम जूलियन का काल आया।जूलियन ईसाई से मुर्तद हुआ, और उसने यहूदी धर्म को अपनाया, जिसके परिणामस्वरूप उसने फिर से यहूदी पवित्र स्थलों का निर्माण का इरादा किया, जिसमें से हेकल का निर्माण भी था जो कई बार तबाह किया गया, लेकिन क्योंकि उसके युग में संघर्ष बहुत ज्यादा था इसलिए उसे मौका नहीं मिला।

रूमी सल्तनत का बांटवारा और हरकुल का राज्य यहूदियों और ईसाइयों के बीच संघर्ष जारी रहा, जब 395ईसवी को रोमी साम्राज्य को दो बड़े हिस्सों में बांट दिया गया, एक हिस्सा पूर्व की ओर था जिसका दारअलख़िलाफ़ा बाज़न्तयूम था , और इसे बाज़न्टीन साम्राज्य का नाम दिया जाता था, इसका शासक हरकुल था, फिलस्तीन और शाम बाज़न्टीन साम्राज्य में आते थे।

और एक हिस्सा पश्चिमी रोम से मिलता था जिसे रोमी साम्राज्य कहा जाता था, यूरोप इसमें आता था और इसका दारअलख़िलाफ़ा रोम था। फिलस्तीन इसी तरह बाज़न्टीन साम्राज्य के अधीन था, यह नबी करीम ﷺ के जमाने तक यूहीं चलता रहा, इस दौरान यहूदीयों का कुद्दस में कोई उल्लेखनीय उल्लेख नहीं था, क्योंकि इस दौरान ईसाई ही उन क्षेत्रों में शासन कर रहे थे, हालांकि फिलस्तीन में यहूदी मौजूद थे।

रोमी बादशाह हरकुल का सपना

रोम के हर बादशाह को हरकुल कहा जाता था, रोमियों का शासन यूहीं चलता रहा, फिर यह ऐतिहासिक घटना हुई, हरकुल ने एक सपना देखा जिसका अर्थ उनके विद्वानों ने यह बताया कि उनका शासन वोलोग छिनेंगे जो खतना करते होंगे। हेरकुल सोच में पड़ गया कि खतना कौन करता है? लोगों ने कहा कि खतना सिर्फ यहूदी करते हैं। उस समय यहूदियों की स्थिति इतनी कमजोर थी कि उनका शासन करने की कोई सूरत नहीं थी,

यहूदी छोटे छोटे टुकड़ों में जगह जगह बसे थे, न उनकी राजनीतिक ताकत थी न उनकी सैन्य ताकत। अगरचे रोमी बादशाह जूलियन ने यहूदीत को अपनाया था, लेकिन उसके बाद आने वाले रोमी बादशाह ईसाई थे, इसलिए फिलस्तीन में यहूदियों का कोई ख़ास वुजूद नहीं था, यही स्थिति चलती रही, अंततः इस्लामी साम्राज्य नबी करीम ﷺ के नेतृत्व में उपस्थित हुआ।

नबी करीम ﷺ का जन्म 571 ईसवी में नबी करीम हज़रत मुहम्मद ﷺ का जन्म हुआ, फिलस्तीन उस समय तक रोमियों के कब्जे में था, यही स्थिति थी कि नबी करीम ﷺ के पैदा होने के चालीस साल बाद 10 अगस्त 610ईसवी को नबी के तौर पर मबऊस हुए। उस समय भी यहूदी फिलस्तीन में रोमी बाज़न्टीन साम्राज्य के अधीन जी रहे थे, इस दौरान यहूदीयों की कोई साम्राज्यिक स्थिति नहीं थी और न ही उनका सरकारी प्रभाव था, बल्कि वे कमजोर माइनॉरिटी के रूप में थे।

फारस का फ़िलिस्तीन पर हमला

614 ईसवी में फारस ने किस्रा द्वितीय के नेतृत्व में फिलस्तीन पर हमला किया, उन्होंने फिलस्तीन से रोमी ईसाइयों को निकाल दिया, कुदस पर हमला किया और कलीसा-ए-कियामा (होली चर्च) को ढह दिया, और उसका खज़ाना लूट लिया। इस युद्ध में यहूदी फारस के साथ शाना-बाना लड़ रहे थे, वह ईसाईयों से बदला ले रहे थे जो कुछ उनके साथ पहले हुआ था, यह बहुत खूनरेज़ लड़ाई थी, जिसमें साठ हजार ईसाईयों को मार दिया गया था,

कलीसा-ए-मुकद्दस और इसके अलावा बहुत सारी चर्चों को नष्ट करने में यहूदी भी शामिल थे, क्योंकि यहूदी, ईसाईयों को काफ़िर मानते थे और वह ईसा अलैहिस्सलाम और उनकी मां मरियम अलैहस्सलाम पर इलज़ाम लगाते थे। जिसकी वजह से वह इस कत्ले आम में पीछे नहीं रहे।यहूदी यह समझ रहे थे कि इस तरह फारस उन्हें फिलस्तीन में अलग सरकार बनाने की इजाजत दे देगा या कम से कम कुदस उन्हें दे देगा, लेकिन उनकी उम्मीदों के खिलाफ फारस ने इनकार कर दिया, उन्हें मालूम था कि यहूदियों का इतिहास धोकाबाज़ रहा है और वे लगातार अपने समर्थकों के साथ धोखा करते हैं, बल्कि फारस ने यहूदियों पर बहुत भारी कर टैक्स लगाया।

कुरआन में रूमियों का ज़िक्र

कुरान ने रोमियों की इस हार का जिक्र किया है और बाकाएदा एक सूरत नाज़िल हुई है जिसका नाम सूरत रूम है, इसमें अल्लाह ताला फरमाता है:

الم (1) غُلِبَتِ الرُّومُ (2) فِي أَدْنَى الْأَرْضِ وَهُمْ مِنْ بَعْدِ غَلَبِهِمْ سَيَغْلِبُونَ (3) فِي بِضْعِ سِنِينَ لِلَّهِ الْأَمْرُ مِنْ قَبْلُ وَمِنْ بَعْدُ وَيَوْمَئِذٍ يَفْرَحُ الْمُؤْمِنُونَ (4)بِنَصْرِ اللَّهِ يَنْصُرُ مَنْ يَشاءُ وَهُوَ 
الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ (5)۔

तर्जुमा :: “अलिफ लाम मीम, रूमी लोग पराजित हो गए, क़रीब की ज़मीन में और वे हारने के चंद साल के भीतर विजयी होंगे। पहले भी अल्लाह का शासन था और बाद में भी अल्लाह का शासन है। और उस दिन मुमिन अल्लाह की इस मदद पर खुश होंगे। जिसे वह चाहता है, वह जीतता है और वह शक्तिशाली और दयालु है”।

अल्लाह ताअला इन आयातों में कुरान ने यह पेशनगोई कि, कि रूम एक बार फारस पर कुछ सालों में विजयी होगा, कुछ सालों से मतलब तीन से लेकर नौ साल तक का समय है। जब कुरान ने यह ख़बर दी तो यह बहुत हैरानीजनक था क्योंकि रोमियों को बहुत बड़ी हार हो गई थी और फारस बहुत बड़ी साम्राज्य बन चुकी थी, बल्कि उस समय फारस पूरी दुनिया में सबसे बड़ी साम्राज्य थी, वह कैसे एक हारी हुई रोमी से विजयी होगी!?

कुफ्फारे कुरैश ने इस मौके पर कुरान की इस आयत का मज़ाक उड़ाया था और इसे झूठलाया था, अबू बकर सिद्दीक़ ऱदिअल्लाहु अन्हु ने कुरैश के साथ सौ उंटों की शर्त लगाई थी, कि फारस को नौ साल के भीतर हार होगी। उस समय तक शर्त लगाना शरियत में ममनूअ नहीं हुआ था।

रूमियों का फारस पर हमला

5 हिजरी और 627 ईसाई को हरकुल ने एक बड़ी सेना के साथ फ़िलिस्तीन पर हमला किया, जिसे उसने हार मानी, यह अजीब बात है कि यहूदी भी रोमी ईसाईयों के साथ थे और फ़ारस के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, क्योंकि फ़ारस ने पिछले जंग में फ़तह यापन के बाद यहूदीयों को कोई मर्ज़ी नहीं दी थी, बल्कि उन पर और बोझ डाला था, हालांकि यहूदी चाहते थे कि फ़ारस उन्हें फ़िलिस्तीन और क़ुदस की सरकार देंगे।

ईसाईयों ने यहूदियों के साथ वादा किया था कि अगर हम फ़तह यापन करें तो तुम्हें फ़िलिस्तीन में सरकार देंगे। और जब फ़ारस को हार मानी तो उस वादे को पूरा हो गया जो क़ुरान में हुआ था, और वह भी नौ साल से कम में। हालांकि ईसाईयों ने यहूदियों से वादा किया था कि उनकी पिछली अपराधों को माफ करेंगे और उन्हें उनकी स्थिति देंगे,

लेकिन फ़तह के बाद ईसाई पादरियों ने रोमीयों को वह घटनाएँ याद दिलाई जो फ़ारस की जंग में उन्होंने ईसाईयों के साथ की थी, उन्होंने ईसाईयों का हत्या किया था और ईसाईयों के चर्च और पवित्र स्थलों को नष्ट किया था, इसलिए ईसाईयों ने यहूदियों को माफ नहीं किया, बल्कि हरकूल से मांग की उन्हें माफ करने के बजाय क़त्ल किया जाए। हरकुल ने उन ईसाई पादरियों की बात मान ली और यहूदियों के साथ वह वादा तोड़ दिया और उनकी हत्या का आदेश दिया, इस तरह ईसाईयों ने यहूदियों का बहुत बड़ा क़त्ल ए आम किया, कुछ यहूदी फ़िलिस्तीन से भाग गए, कुछ फ़िलिस्तीन में छिप गए।

इस बीच हमारे हुज़ूर नबी करीम सल्ल्लाहु अलैहि वसल्लम पैदा हो चूके थे और बहुत सारे मुआमलात हो रहे थे जैसे हरकुल को ईमान की दावत और बहुत सारी जंग जो रूमियो, फार्सियों, ईसाइयों यहूदियों से हुईं, लेकीन हम यहां हुज़ूर के दोर काजिक्र नहीं करेंगे वो किसी और सिलसिले में करेंगे। अगली किस्त में हम अब जिक्र करेंगे फिलिस्तीन के इस्लामी दौर का जो हुज़ूर की वफात के बाद की तारीख़ है

किस्त 1

किस्त 2


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