Qur’an is about the universe, the earth and the sky, the depths of the sea, the Big Bang, the victory of the Romans and the lowest point on earth in Hindi
Table of Contents
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ब्रह्मांड के उत्पत्ति पर क़ुरआन
आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान, अवलोकन और सैद्धांतिक, स्पष्ट रूप से बताता है कि एक समय पूरा ब्रह्मांड ‘धुएं’ के बादल के अलावा कुछ भी नहीं था (यानी एक अपारदर्शी, अत्यधिक घनी और गर्म गैसीय संरचना)।[1] यह आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान के निर्विवाद सिद्धांतों में से एक है। वैज्ञानिक अब उस ‘धुएं’ के अवशेषों से बनने वाले नए तारों को देख सकते हैं
हम रात मे जो जगमगाते तारे देखते हैं वे पूरे ब्रह्मांड की तरह ही उस ‘धुएँ’ जैसे थे। ईश्वर क़ुरआन में कहता है:
"फिर आसमान की तरफ देखा और वह धुआं था..." (क़ुरआन 41:11)
क्योंकि जमीन और ऊपर आसमान (सूरज, चांद, तारे, ग्रह, आकाशगंगा, आदि) इसी ‘धुएं’ से बने हैं, हमारा निष्कर्ष है कि जमीन और आसमान आपमे जुड़े हुए थे। फिर इसी ‘धुएँ’ से ये बने और एक दूसरे से अलग हो गए। ईश्वर क़ुरआन में कहता है:
“क्या उन लोगों ने जिन्होंने इनकार किया, देखा नहीं कि ये आकाश और धरती बन्द थे। फिर हमने उन्हें खोल दिया...” (क़ुरआन 21:30)
डॉ. अल्फ्रेड क्रोनर विश्व के प्रसिद्ध भूवैज्ञानिकों में से एक हैं। यें भूविज्ञान के प्रोफेसर हैं और भूविज्ञान संस्थान, जोहान्स गुटेनबर्ग विश्वविद्यालय, मैन्ज़, जर्मनी में भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष हैं। इन्होंने कहा: “मुहम्मद जिस जगह से हैं . . .
मुझे लगता है कि यह लगभग असंभव है कि वह ब्रह्मांड के बनने जैसी चीजों के बारे मे जान सके, क्योंकि वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ वर्षो मे बहुत ही जटिल और उन्नत तकनीकी तरीकों से इसके बारे में पता लगाया है।”
उन्होंने यह भी कहा: “कोई व्यक्ति जो चौदह सौ साल पहले परमाणु भौतिकी के बारे में कुछ नहीं जानता था, मुझे नही लगता कि वह अपने दिमाग से यह पता लगा सके कि जमीन और आसमान का स्त्रोत एक ही है।”
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पृथ्वी का वातावरण
“बारिश वाले आसमान की कसम.” (क़ुरआन 86:11)
“वह जिसने जमीन को तुम्हारा फर्श और आसमान को छत बनाया…” (क़ुरआन 2:22)
पहली आयत में ईश्वर आसमान और उससे ‘लौटने’ वाले चीज की कसम खाता है, यह बताये बिना कि वह क्या लौटाता है। इस्लामी सिद्धांत में, एक दैवीय कसम ईश्वर कि एक विशेष संबंध को दर्शाती है, और उसकी शान और सर्वोच्च सच को एक खास तरीके से दिखाती है।
दूसरा आयत ईश्वरीय कार्य को बताता है जिसने आसमान को दुनिया के लोगो के लिए ‘छत’ बना दिया।
आइए देखते हैं कि आधुनिक वातावरण विज्ञान आसमान की भूमिका और कार्य के बारे में क्या कहता है।
वायुमंडल एक ऐसा शब्द है जो पृथ्वी के चारों ओर, जमीन से लेकर उस किनारे तक, जहां से अंतरिक्ष शुरू होता है, सभी हवा को दर्शाता है। वायुमंडल कई परतों से बना है, प्रत्येक परत को उसके अंदर होने वाली विभिन्न घटनाओं के आधार पर परिभाषित किया गया है।
बारिश एक चीज़ है जो आसमान से बादलों द्वारा पृथ्वी पर “लौटती” है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका जल विज्ञान चक्र के बारे मे बताते हुए लिखता है:
“जलीय और स्थलीय दोनों वातावरण में सूरज की गर्मी की वजह से पानी भाप बन जाता है। भाप बनने और बारिश की दर सौर ऊर्जा पर निर्भर करती है, जैसा कि हवा में नमी के संचलन का पैटर्न और समुद्र की धाराओं पर होता है। वाष्पीकरण समुंद्र पर वर्षण बढ़ाती है, और यह पानी का भाप हवा द्वारा जमीन के ऊपर आ जाता है, जहां यह बारिश के जरिये जमीन पर वापस लौटता है।”
वातावरण न केवल जो जमीन पर था उसे वापस जमीन पर लौटाता है बल्कि यह वापस अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाता है जो पृथ्वी के वनस्पतियों और जीवों को नुकसान पहुंचा सकता है, जैसे अत्यधिक गर्मी। 1990 के दशक में नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ई एस ए), और जापान के अंतरिक्ष और अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान (आई एस ए एस) के बीच सहयोग से अंतर्राष्ट्रीय सौर-स्थलीय भौतिकी (आई एस टी पी) विज्ञान की पहल हुई। ध्रुवीय, पवन और जियोटेल (उपग्रह) इस पहल का एक हिस्सा हैं, जो संसाधनों और वैज्ञानिक समुदायों को मिलाकर एक विस्तारित अवधि में सूर्य-पृथ्वी अंतरिक्ष पर्यावरण की एक साथ जांच करते हैं। इनके पास स्पष्टीकरण हैं कि कैसे वातावरण सौर ताप को अंतरिक्ष में लौटाता है।
“लौटने” वाली बारिश, गर्मी और रेडियो तरंगों के अलावा वातावरण घातक ब्रह्मांडीय किरणों, सूर्य के शक्तिशाली अल्ट्रावायलेट (यूवी) रेडिएशन और यहां तक कि पृथ्वी के साथ टकराने से बने उल्कापिंडों को फ़िल्टर करके हमारे सिर के ऊपर एक छत की तरह हमारी रक्षा करता है।
पेंसिल्वेनिया स्टेट पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग हमें बताता है:
“जिस सूर्य की रोशनी को हम देख सकते हैं वह तरंगदैर्घ्य, दृश्य प्रकाश के एक समूह का प्रतिनिधित्व करती है। सूर्य से निकलने वाली अन्य तरंगदैर्घ्य मे एक्स-रे और अल्ट्रावायलेट रेडिएशन शामिल हैं। एक्स-रे और कुछ अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें पृथ्वी के वायुमंडल में उच्च अवशोषित होती हैं। ये वहां गैस की पतली परत को बहुत अधिक तापमान तक गर्म करते हैं। अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें वे किरणें हैं जिस से सूर्यदाह हो सकता है। अधिकांश अल्ट्रावायलेट प्रकाश तरंगें पृथ्वी के करीब गैस की एक मोटी परत द्वारा अवशोषित की जाती हैं जिसे ओजोन परत कहते हैं।
वायुमंडल घातक अल्ट्रावायलेट और एक्स-रे को अवशोषित कर के ग्रह के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बनाता है। एक विशाल थर्मल कंबल की तरह वातावरण की तापमान को बहुत अधिक गर्म या बहुत ठंडा होने से बचाता है। इसके अलावा वातावरण हमें उल्कापिंडों, चट्टान के टुकड़ों और धूल से भी बचाता है जो पूरे सौर मंडल में उच्च गति से चलती हैं। रात में जो हम गिरते हुए तारे देखते हैं असल में ये तारे नहीं हैं; वास्तव में ये हमारे वातावरण में अत्यधिक गर्मी के कारण जल रहे उल्कापिंड होते हैं।”
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका समतापमण्डल की भूमिका बताते हुए हमें खतरनाक अल्ट्रावायलेट रेडिएशन को अवशोषित करने में इसकी सुरक्षात्मक भूमिका के बारे में बताती है:
“ऊपरी समतापमंडलीय क्षेत्रों में सूर्य से अल्ट्रावायलेट प्रकाश का अवशोषण ऑक्सीजन अणुओं को तोड़ता है; O2 अणुओं और ऑक्सीजन परमाणुओं के ओजोन (O3) में पुनर्संयोजन से ओजोन परत बनती है, जो निचले पारिस्थितिक मण्डल को हानिकारक लघु तरंगदैर्ध्य से बचाती है… हालांकि अधिक परेशान करने वाली बात समशीतोष्ण अक्षांशों पर ओजोन की बढ़ती कमी का पता चलता है जहां दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है, क्योंकि ओजोन परत हमें अल्ट्रावायलेट रेडिएशन से बचाने का काम करती है, जिसे त्वचा कैंसर का कारण पाया गया है।”
मध्यमण्डल वह परत है जिसमें पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय कई उल्कापिंड जल जाते हैं। 30,000 मील प्रति घंटे की बेसबॉल ज़िपिंग की कल्पना करें। कई उल्कापिंड इतने बड़े और तेज होते हैं। जब ये उल्कापिंड वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो 3000 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक गर्म होते हैं और ये चमकते हैं। ये उल्कापिंड अपने सामने हवा को संकुचित करते हैं। हवा गर्म होती जाती है जिससे ये उल्कापिंड भी गर्म होते जाते हैं।
पृथ्वी एक चुंबकीय बल क्षेत्र से घिरी हुई है – अंतरिक्ष में एक बुलबुला है जिसे “चुम्बकीय गोला” कहा जाता है, ये दसियों हज़ार मील चौड़ा है। चुम्बकीय गोला हमें सौर तूफानों से बचाता है। हालांकि नासा के इमेज अंतरिक्ष यान और संयुक्त नासा/यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी क्लस्टर उपग्रहों की नई टिप्पणियों के अनुसार कभी-कभी पृथ्वी के चुम्बकीय गोले में अपार दरारें बन जाती हैं और घंटों तक खुली रहती हैं। इसकी वजह से सौर हवा आगे बढ़ती है और अंतरिक्ष में तूफानी मौसम बनाती है। सौभाग्य से ये दरारें पृथ्वी की सतह को सौर हवा के संपर्क में नहीं आने देती। हमारा वातावरण हमारी रक्षा करता है भले ही हमारा चुंबकीय क्षेत्र न हो।
सातवीं शताब्दी के एक रेगिस्तानी निवासी के लिए आकाश का इतना सटीक वर्णन करना कैसे संभव होगा जिसकी पुष्टि हाल की वैज्ञानिक खोजों ने की हो? इसकी एक ही वजह हो सकती है की आसमान के बनाने वाले ने इसके बारे मे बताया हो।
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गहरे समुद्र और आंतरिक लहरों पर क़ुरआन
अल्लाह क़ुरआन में कहता है
"या फिर उसका उदाहरण ऐसा है जैसे एक गहरे समुद्र के अंधेरे के ऊपर लहरे, उसपर और लहरे और उसके ऊपर बादल। अंधेरे पर अंधेरा छाया हुआ है। यदि आदमी अपना हाथ निकाले तो वह उसे भी न देख पाए..." (क़ुरआन 24:40)
यह आयत गहरे समुद्रों और महासागरों में पाए जाने वाले अंधेरे के बारे में बताता है, जहां आदमी यदि अपना हाथ बहार निकाले तो वह उसे भी नहीं देख सकता। गहरे समुद्रों और महासागरों में अंधेरा लगभग 200 मीटर और उसके नीचे की गहराई के बाद होता है। इस गहराई के बाद लगभग कोई रोशनी नही होती। और 1000 मीटर की गहराई के बाद बिलकुल ही रोशनी नही होती। पनडुब्बियों या विशेष उपकरणों के बिना आदमी चालीस मीटर से अधिक डुबकी नही लगा सकता। 200 मीटर की गहराई पर महासागरों के गहरे अंधेरे हिस्से में आदमी बिना किसी सहायता के जीवित नही रह सकता।
वैज्ञानिकों ने हाल ही में विशेष उपकरणों और पनडुब्बियों की सहयता से इस अंधेरे की खोज की है, जिसने उन्हें महासागरों की गहराई में डुबकी लगाने में सक्षम बनाया है।
हम पिछली आयत के इन वाक्यों “…एक गहरे समुद्र के अंधेरे के ऊपर लहरे हैं, उसपर और लहरे हैं और उसके ऊपर बादल हैं…” से भी समझ सकते हैं कि समुद्रों और महासागरों का गहरा पानी लहरों से ढका हुआ है, और इन लहरों के ऊपर अन्य लहरें हैं। यह स्पष्ट है कि लहरों की दूसरी सतह समुद्र के सतह की वो लहरें हैं जिन्हें हम देखते हैं, क्योंकि छंद मे बताया गया है कि दूसरी लहरों के ऊपर बादल हैं। लेकिन पहली लहरों का क्या? वैज्ञानिकों ने हाल ही में पता लगाया है कि आंतरिक लहरे हैं जो “विभिन्न घनत्वों की परतों के बीच घनत्व इंटरफेस पर होती हैं।”
आंतरिक लहरें समुद्रों और महासागरों के गहरे पानी को ढक लेती हैं क्योंकि गहरे पानी का उनके ऊपर के पानी की तुलना में अधिक घनत्व होता है। आंतरिक तरंगें सतही तरंगों की तरह कार्य करती हैं। ये सतही लहरों की तरह टूट भी सकते हैं। मानव आंतरिक लहरों को नही देख सकते, लेकिन कहीं भी तापमान या पानी के खारेपन के बदलाव का अध्ययन करके इनका पता लगाया जा सकता है।
- फुटनोट
- [1]ओशनस, एल्डर और पेरनेटा, पृष्ट 27
- [2]ओशियनोग्राफी, ग्रॉस, पृष्ट 205
- [3]ओशियनोग्राफी, ग्रॉस, पृष्ट 205
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ब्रह्मांड के बढ़ने और बिग बैंग सिद्धांत पर क़ुरआन
हबल का नियम
हजारों वर्षों से खगोलविदों (एस्ट्रोनॉमर्स) को ब्रह्मांड से संबंधित बुनियादी सवालों में परेशानी हुई है। 1920 के दशक की शुरुआत तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड हमेशा से ही रहा है, और यह भी कि ब्रह्मांड का आकार एक सामान है और यह बदलता नहीं है। हालांकि, 1912 में अमेरिकी खगोलशास्त्री वेस्टो स्लिफर ने एक ऐसी खोज की जिससे जल्द ही ब्रह्मांड के बारे में खगोलविदों की मान्यतायें बदल जाएगी। स्लिफर ने देखा कि आकाशगंगाएं काफी तेज गति से पृथ्वी से दूर जा रही थीं। इससे बढ़ने वाले ब्रह्मांड के सिद्धांत का पहला सबूत मिला
1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपना सापेक्षता (रिलेटिविटी) का सामान्य सिद्धांत बनाया जिससे पता चला कि या तो ब्रह्मांड बढ़ता हुआ होना चाहिए या सिकुड़ता हुआ। बढ़ते हुए ब्रह्मांड के सिद्धांत की पुष्टि आखिरकार 1929 में प्रसिद्ध अमेरिकी खगोलशास्त्री एडविन हबल ने की।
आकाशगंगाओं से निकलने वाली प्रकाश तरंगदैर्घ्य में रेडशिफ्ट को देखकर हबल ने पाया कि आकाशगंगाएं अपनी जगह पर स्थिर नहीं थीं; बल्कि ये वास्तव में पृथ्वी से उनकी दूरी के समानुपाती गति से दूर जा रहे थे (हबल का नियम)। इस अवलोकन का एकमात्र स्पष्टीकरण यह था कि ब्रह्मांड का विस्तार होना था। हबल की इस खोज को खगोल विज्ञान के इतिहास में की गई बड़ी खोजों में से एक माना जाता है। 1929 में उन्होंने वेग-समय संबंध प्रकाशित किया जो आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान का आधार है। आने वाले समय में, अधिक अवलोकनों के बाद बढ़ते हुए ब्रह्मांड के सिद्धांत को वैज्ञानिकों और खगोलविदों ने समान रूप से स्वीकार किया।
लेकिन आश्चर्य वाली बात यह है कि टेलीस्कोप का आविष्कार होने से पहले और हबल का नियम प्रकाशित होने से पहले, पैगंबर मुहम्मद अपने साथियों को क़ुरआन का एक छंद सुनाते हैं जिसमें कहा गया था कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है।
“आसमान को हमने हाथों से बनाया है और यक़ीनन हम इसको बढ़ाने वाले हैं।“ (क़ुरआन 51:47)
क़ुरआन के आने के समय “अंतरिक्ष” शब्द के बारे में कोई नहीं जानता था, और लोग पृथ्वी के ऊपर की चीज को “स्वर्ग” कहते थे। ऊपर के छंद में “स्वर्ग” शब्द का मतलब अंतरिक्ष और ज्ञात ब्रह्मांड है। यह छंद अंतरिक्ष यानि ब्रह्मांड के विस्तार को बताता है, जैसा कि हब्बल के नियम में बताया गया है।
क़ुरआन ने दूरबीन के आविष्कार से सदियों पहले इस बात को बताया था, उस समय जब विज्ञान की थोड़ी सी जानकारी को भी काफी माना जाता है। और सोचने वाली बात यह है कि उस समय के कई लोगों की तरह पैगंबर मुहम्मद भी अनपढ़ थे और इस तरह की बातों को वो खुद नहीं जान सकते थे। क्या ऐसा हो सकता है कि वास्तव में ब्रह्मांड को पैदा करने वाले और बनाने वाले से उन्हें यह दिव्य ज्ञान मिला हो?
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बिग बैंग सिद्धांत
अपने सिद्धांत को प्रकाशित करने के तुरंत बाद हबल ने पाया कि आकाशगंगाएं न केवल पृथ्वी से दूर जा रहे थे बल्कि वे एक दूसरे से दूर भी जा रहे थे। इसका मतलब यह था कि जिस तरह एक गुब्बारा हवा भरने पर फैलता है उसी तरह ब्रह्मांड भी हर दिशा में बढ़ रहा था। हबल की इन नयी खोजों ने बिग बैंग सिद्धांत की नींव रखी।
बिग बैंग सिद्धांत में कहा गया है कि लगभग 12 से 15 अरब साल पहले एक बेहद गर्म और घने केंद्र से ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था, और इस केंद्र मे किसी वजह से विस्फोट हुआ जिससे ब्रह्मांड की शुरुआत हुई और तब से ब्रह्मांड इसी एक केंद्र से फैल रहा है।
1965 में रेडियो खगोलविदों (एस्ट्रोनॉमर्स) अर्नो पेनज़ियास और रॉबर्ट विल्सन ने एक ऐसी खोज की जिसने बिग बैंग सिद्धांत की पुष्टि की और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। उनकी खोज से पहले ये माना जाता था कि यदि ब्रह्मांड एक अत्यधिक गर्म केंद्र से अस्तित्व में आया था तो इस गर्मी का अवशेष होना चाहिए। पेनज़ियास और विल्सन ने इसी बची हुई गर्मी की खोज की थी। 1965 में पेनज़ियास और विल्सन ने 2.725 डिग्री केल्विन कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन (सी एम बी) की खोज की जो ब्रह्मांड में फैलता है। इससे यह माना गया कि पाया गया रेडिएशन बिग बैंग के प्रारंभिक चरणों का अवशेष था। इस समय बिग बैंग सिद्धांत को अधिकांश वैज्ञानिक और खगोलविद स्वीकार करते हैं।
क़ुरआन मे इसका जिक्र है
"वह (ईश्वर) आसमानों और ज़मीन को पैदा करने वाला है..." (क़ुरआन 6:101)
"क्या वो जिसने आसमानों और ज़मीन को पैदा किया, इसकी कुदरत नहीं रखता कि इन जैसों को पैदा कर सके? क्यों नही, जबकि वो माहिर बनाने वाला है। वो तो जब किसी चीज़ का इरादा करता है तो उसका काम बस ये है कि उसे हुक्म दे कि हो जा और वह हो जाता है।" (क़ुरआन 36:81-82)
ऊपर की आयत साबित करती है कि ब्रह्मांड की शुरुआत थी, इसको बनाने वाला ईश्वर है, और बनाने के लिए ईश्वर को सिर्फ यह कहना है की हो जा और वह हो जाता है। क्या यह इस बात का स्पष्टीकरण हो सकता है कि जिस विस्फोट से ब्रह्मांड की शुरुआत हुई वो कैसे हुआ?
क़ुरआन यह भी कहता है
"क्या वो लोग जो इनकार करते हैं ये नही देखते कि आसमान और जमीन आपस मे जुड़े हुए थे, फिर हमने इन्हें अलग किया, और पानी से हर जिन्दा चीज पैदा की? क्या वो इसे नहीं मानते?" (क़ुरआन 21:30)
मुस्लिम विद्वान जिन्होंने पिछले छंद का मतलब बताया है वो कहते हैं कि आसमान और जमीन एक समय जुड़े हुए थे, और फिर ईश्वर ने उन्हें अलग कर के सात आसमान और जमीन बनाया। फिर भी क़ुरआन के आने के समय (और आने वाली कई शताब्दियों तक) विज्ञान और टेक्नोलॉजी की कमी के कारण कोई भी विद्वान इस बारे में अधिक नहीं बता पाया कि वास्तव में आसमान और जमीन कैसे बने। विद्वान छंद में सिर्फ अरबी के प्रत्येक शब्द का सही मतलब और साथ ही पुरे छंद का मतलब बता सकते थे।
पिछले छंद (आयत) में अरबी के शब्द रत्क़ और फ़तक़ का उपयोग हुआ है। रत्क़ शब्द का अनुवाद “इकाई” “सिलना” “एक साथ जुड़ा हुआ” या “बंद” में किया जा सकता है। इन सभी अनुवादों का मतलब किसी ऐसी चीज़ से है जो मिला हुआ है और जिसका एक अलग और विशेष अस्तित्व है। क्रिया फ़तक़ का अनुवाद “हमने खोल दिया” “हमने उन्हें अलग कर दिया” “हमने अलग कर दिया” या “हमने उन्हें खोल दिया” है। इनका मतलब है कि कोई चीज अलग करने और तोड़ने से अस्तित्व में आती है। मिट्टी से एक बीज का अंकुरित होना क्रिया फ़तक़ का एक अच्छा उदाहरण है।
बिग बैंग सिद्धांत के आने से मुस्लिम विद्वानों के लिए जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि इस सिद्धांत में जो बताया गया है वह क़ुरआन की सूरत 21 के छंद 30 में ब्रह्मांड के निर्माण के बारे में बताये गए विवरण के साथ पूरी तरह मेल खाता है। इस सिद्धांत के अनुसार ब्रह्मांड की सभी चीजे एक अत्यंत गर्म और घने केंद्र से ही बानी है; इसमें विस्फोट हुआ और ब्रह्मांड के बनने की शुरुआत हुई, जो इस छंद से पूरी तरह मेल खाता है जिसमे बताया गया है कि आसमान और जमीन (ब्रह्मांड) एक समय जुड़े हुए थे और फिर अलग हुए। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जब ब्रह्मांड को बनाने वाले और पैदा करने वाले ईश्वर ने पैगंबर मुहम्मद को इसके बारे में बताया हो।
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रोमनों की जीत और पृथ्वी का सबसे निचला बिंदु
7वीं शताब्दी की शुरुआत में उस समय के दो सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बाइज़ेंटाइन और फारसी साम्राज्य थे। साल 613 – 614 सीई में इन दो साम्राज्यों में युद्ध हुआ, जिसमे बाइज़ेंटाइन को फारसियों के हाथों एक बड़ी हार का सामना करना पड़ा। दमिश्क और यरुशलम दोनों फारसी साम्राज्य के अधीन हो गए। पवित्र क़ुरआन के अध्याय अल-रूम में यह कहा गया है कि “बाइज़ेंटाइन बुरी तरह हारे हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें जीत हासिल होगी:”
"रोमन क़रीब की जमीन पर हार गए, लेकिन हारने के तीन से नौ साल के अंदर फिर से जीतेंगे। इन सब पर ईश्वर का ही नियंत्रण है, पहले भी और बाद में भी।" (क़ुरआन 30:2-4)
ऊपर की ये आयतें 620ई. के आसपास आईं, 613 – 614 सी.ई. में मूर्तिपूजक फारसियों के हाथों ईसाई बाइज़ेंटाइन की हार के लगभग 7 साल बाद। फिर भी छंद मे यह बताया गया है कि बाइज़ेंटाइन जल्द ही जीतेंगे। वास्तव में बाइज़ेंटाइन इतनी बुरी तरह हारा था कि इसके साम्राज्य के बचने की उम्मीद भी मुश्किल लग रही थी, इसके फिर से जीतने की बात तो छोड़ ही दें।
सिर्फ फ़ारसी ही नही बल्कि बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के उत्तर और पश्चिम में स्थित अवार्स, स्लाव और लोम्बार्ड्स भी बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के लिए गंभीर खतरा बन गए थे। अवार्स कॉन्स्टेंटिनोपल की दीवारों तक आ गए थे और लगभग सम्राट को पकड़ ही लिया था। कई गवर्नरों ने सम्राट हेराक्लियस के खिलाफ विद्रोह कर दिया था, और साम्राज्य पतन के कगार पर था। मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र और आर्मेनिया जो पहले बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के थे, उन पर भी फारसियों ने आक्रमण कर दिया था।
संक्षेप में, हर कोई बाइज़ेंटाइन साम्राज्य के खत्म होने की उम्मीद कर रहा था, लेकिन ठीक उसी समय अध्याय अल-रूम का छंद आया जिसमे बताया गया कि बाइज़ेंटाइन कुछ वर्षों में फिर से जीतेगा। ये छंद आने के कुछ समय बाद ही बाइज़ेंटाइन सम्राट ने चर्च के सोने और चांदी को पिघलाने का आदेश दिया ताकि सेना के खर्चे और हारे हुए क्षेत्रों को वापस पाने के लिए अपने अभियान के खर्चे पुरे कर सकें।
अध्याय अल-रूम का छंद (आयत) आने के लगभग 7 साल बाद दिसंबर 627ई में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य और फारसी साम्राज्य के बीच मृत सागर के आसपास के क्षेत्र में एक निर्णायक युद्ध हुआ,[2] और इस बार बाइज़ेंटाइन सेना ने आश्चर्यजनक रूप से फारसियों को हरा दिया। इसके कुछ महीने बाद फारसियों को बाइज़ेंटाइन के साथ एक समझौता करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्हें उन क्षेत्रों को वापस करना पड़ा जो उन्होंने उनसे लिया था। तो ईश्वर ने क़ुरआन में जैसा बताया था आखिर में वही हुआ और रोमनों की चमत्कारिक रूप से जीत हुई।
ऊपर दिए गए छंदो (आयतों) में एक और भौगोलिक तथ्य बताया गया है जिसका उस समय कोई भी पता नहीं लगा सका होगा। अध्याय अल-रूम के तीसरे छंद में यह बताया गया है कि रोम वाले “निचले भूमि बिंदु” (क़ुरआन 30:3) पर हारे थे। ध्यान देने वाली बात है कि दमिश्क और यरुशलम में जिन स्थानों पर मुख्य युद्ध हुए थे वो ग्रेट रिफ्ट वैली नामक निचले इलाके के विशाल क्षेत्र में स्थित हैं। ग्रेट रिफ्ट वैली जमीन पर एक विशाल 5,000 किलोमीटर की भ्रंश रेखा है जो एशिया के मध्य-पूर्व में उत्तरी सीरिया से पूर्वी अफ्रीका में मध्य मोज़ाम्बिक तक जाती है। सबसे उत्तरी विस्तार सीरिया, लेबनान, फिलिस्तीन और जॉर्डन तक है। दरार फिर दक्षिण में अदन की खाड़ी तक फैली हुई है, पूर्वी अफ्रीका से होते हुए अंत में मोज़ाम्बिक में निचली ज़ांबेज़ी नदी घाटी तक है।
एक दिलचस्प तथ्य जो हाल ही में उपग्रह चित्रों की मदद से खोजा गया है वह यह है कि ग्रेट रिफ्ट वैली में स्थित मृत सागर के आसपास का क्षेत्र पृथ्वी पर सबसे कम ऊंचाई वाला है। बल्कि पृथ्वी पर सबसे निचला बिंदु मृत सागर की तटरेखा है, जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 400 मीटर है। इसका मतलब यह है कि ये सबसे निचले बिंदु पर स्थित है और समुद्र से पानी नहीं बह सकता। पृथ्वी पर कोई भी स्थलीय बिंदु मृत सागर की तटरेखा से नीचा नही है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि देश या प्रान्त जो मृत सागर के आसपास के क्षेत्र में रिफ्ट वैली पर रहता है उसे ही क़ुरआन में “सबसे निचली भूमि” बताया गया है। यह क़ुरआन का एक चमत्कार ही है क्योंकि 7वीं शताब्दी में इस तरह के तथ्य को कोई भी व्यक्ति उपग्रह और आधुनिक तकनीक के बिना न तो जान सकता था और न ही इसकी भविष्यवाणी कर सकता था। ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जब ब्रह्मांड को बनाने वाले और पैदा करने वाले ईश्वर ने पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसके बारे में बताया हो।
Note:
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