Huzur ka Hazrat Khadeeja se Nikah
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Seerat e Mustafa Qist 10
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नस्तूरा से मुलाक़ात
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस अहद यानी हल्फ़ुल फुज़ूल को बहुत पसंद फ़रमाया। आप फ़रमाते थे
“मैं इस अहदनामे में शरीक था। यह अहदनामा बनू जु’दान के मकान में हुआ था। अगर कोई मुझसे कहे कि इस अहदनामे से दस्तबरदार हो जाओ और इसके बदले में सौ ऊंट ले लो तो मैं नहीं लूंगा। इस अहदनामे के नाम पर अगर आज भी कोई मुझे आवाज़ दे तो मैं कहूंगा, मैं हाज़िर हूं।”
आपके इस इरशाद का मतलब यह था कि अगर आज भी कोई मज़लूम यह कहकर आवाज़ दे, “ऐ हल्फ़ुल फुज़ूल वालों!” तो मैं उसकी फ़रियाद को ज़रूर पहुँचूंगा। क्योंकि इस्लाम तो आया ही इसीलिए है कि सच्चाई का नाम बुलंद करे और मज़लूम की मदद और हिमायत करे।
यह हल्फ़ुल फुज़ूल बाद में भी जारी रहा।
मक्का में आपकी अमानतदारी और दयानतदारी की वजह से आपको अमीन कहकर पुकारा जाने लगा था। आपका यह लक़ब बहुत मशहूर हो गया था। लोग आपको अमीन के अलावा और किसी नाम से नहीं पुकारते थे।
आपका तिजारत के लिए जाना
इन्हीं दिनों हज़रत अबू तालिब ने आपसे कहा:
“ऐ भतीजे! मैं एक बहुत ग़रीब आदमी हूं और क़हतसाली की वजह से और ज़्यादा सख़्त हालात का सामना कर रहा हूं। काफ़ी अर्से से सूखा पड़ा हुआ है। ऐसा कोई ज़रिया नहीं है कि अपना काम चला सकें और न ही हमारी कोई तिजारत है। एक तिजारती क़ाफ़िला शाम जाने वाला है।
इसमें क़ुरैश के लोग शामिल हैं। क़ुरैश की एक ख़ातून ख़दीजा बिन्ते ख़ुवैलिद शाम की तरफ़ अपना तिजारती सामान भेजा करती हैं। जो शख़्स उनका माल लेकर जाता है वह अपनी उजरत उनसे तय कर लेता है। अब अगर तुम उनके पास जाओ और उनका माल ले जाने की पेशकश करो तो वह ज़रूर अपना माल तुम्हें दे देंगी, क्योंकि तुम्हारी अमानतदारी की शोहरत उन तक पहुंच चुकी है।
हालांकि मुझे यह बात पसंद नहीं कि तुम शाम के सफ़र पर जाओ। यहूदी तुम्हारे दुश्मन हैं, लेकिन हालात की वजह से मैं मजबूर हूं। इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं।”
यहां तक कहकर अबू तालिब ख़ामोश हो गए। तब आपने फ़रमाया
“मुमकिन है, वह ख़ातून ख़ुद मेरे पास किसी को भेजें।”
यह बात आपने इसलिए कही थी कि सैयदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को एक भरोसेमंद आदमी की ज़रूरत थी और उस वक़्त मक्का में आपसे ज़्यादा शरीफ़, पाकबाज़, अमानतदार, समझदार और काबिल-ए-एतबार आदमी कोई नहीं था।
अबू तालिब उस वक़्त बहुत परेशान थे। आपकी यह बात सुनकर उन्होंने कहा
“अगर तुम न गए तो मुझे डर है, वह किसी और से मामला तय कर लेंगी।”
यह कहकर अबू तालिब उठ गए। उधर आपको यक़ीन सा था कि सैयदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ख़ुद उनकी तरफ़ किसी को भेजेंगी और हुआ भी यही।
सैयदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बुलवा भेजा। फिर आपसे कहा
“मैंने आपकी सच्चाई, अमानतदारी और नेक अख़लाक़ के बारे में सुना है और इसी वजह से मैंने आपको बुलवाया है। जो मुआवज़ा मैं आपकी क़ौम के दूसरे आदमियों को देती हूं, आपको उनसे दोगुना दूंगी।”
आपने उनकी बात मंज़ूर फ़रमा ली। फिर आप अपने चचा अबू तालिब से मिले। उन्हें यह बात बताई। अबू तालिब सुनकर बोले:
“यह रोज़ी तुम्हारे लिए अल्लाह ने पैदा फ़रमाई है।”
इसके बाद आप ﷺ सैयदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का सामान-ए-तिजारत लेकर शाम की तरफ़ रवाना हुए। सैयदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के ग़ुलाम मैसरा आप ﷺ के साथ थे। रवाना होते वक़्त हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मैसरा से कहा
“किसी मामले में इनकी नाफ़रमानी न करना, जो यह कहें वही करना, इनकी राय से इख़्तिलाफ़ न करना।”
आप ﷺ के सब चचाओं ने क़ाफ़िला वालों से आपकी ख़बरगीरी रखने की दरख़्वास्त की। इसकी वजह यह भी थी कि ज़िम्मेदारी के लिहाज़ से यह आपका पहला तिजारती सफ़र था। यानी आप ﷺ इस काम में बिल्कुल नए थे।
उधर आप रवाना हुए उधर आपका मोज़िज़ा शुरू हो गया। एक बदली ने आप ﷺ के ऊपर साया कर लिया। आप ﷺ के साथ-साथ चलने लगी। जब आप ﷺ शाम पहुंचे तो बसरा शहर के बाज़ार में एक दरख़्त के साए में उतरे। यह दरख़्त एक ईसाई रहिब **नस्तूरा** की खानकाह के सामने था। इस रहिब ने मैसरा को देखा तो खानकाह से निकल आया। उस वक़्त उसने आप ﷺ को देखा। आप ﷺ दरख़्त के नीचे ठहरे हुए थे।
उसने मैसरा से पूछा: “यह शख़्स कौन है जो इस दरख़्त के नीचे मौजूद है?”
मैसरा ने कहा: “यह एक क़ुरैशी शख़्स हैं। हरम वालों में से हैं।”
यह सुनकर रहिब ने कहा: “इस दरख़्त के नीचे नबी के सिवा कभी कोई आदमी नहीं बैठा।”
मतलब यह था कि इस दरख़्त के नीचे आज तक कोई शख़्स नहीं बैठा, अल्लाह तआला ने इस दरख़्त को हमेशा इस बात से बचाया है कि इसके नीचे नबी के सिवा कोई दूसरा शख़्स बैठे।
इसके बाद उसने मैसरा से पूछा: “क्या इनकी आंखों में सुरखी है?”
मैसरा ने जवाब दिया: “हां बिल्कुल है और यह सुरखी इनकी आंखों में हमेशा रहती है।”
अब नस्तूरा ने कहा: “यह वही हैं।”
मैसरा ने हैरान होकर उसकी तरफ़ देखा और बोले: “क्या मतलब…यह वही हैं…कौन वही?”
*”यह आख़िरी पैग़ंबर हैं। काश मैं वह ज़माना पा सकता जब इन्हें ज़ुहूर का हुक्म मिलेगा, यानी जब इन्हें नबूवत मिलेगी।”
इसके बाद वह चुपके से आप ﷺ के पास पहुँचा। पहले तो उसने आप ﷺ के सिर को बोसा दिया, फिर आपके कदमों को बोसा दिया और बोला:
“मैं आप ﷺ पर ईमान लाता हूँ और गवाही देता हूँ कि आप ﷺ वही हैं जिनका ज़िक्र अल्लाह तआला ने तौरात में फ़रमाया है।”
इसके बाद नस्तूरा ने कहा:
“ऐ मुहम्मद ﷺ, मैंने आप में वह तमाम निशानियाँ देख ली हैं जो पुरानी किताबों में आपकी नबूवत की अलामतों के तौर पर दर्ज हैं। केवल एक निशानी बाक़ी है। इसलिए आप ज़रा अपने कंधे से कपड़ा हटाएँ।”
आप ﷺ ने अपने मुबारक कंधे से कपड़ा हटा दिया। तब नस्तूरा ने वहाँ मोहरे-नबूवत को चमकते हुए देखा। वह तुरंत मोहरे-नबूवत को चूमने के लिए झुक गया। फिर बोला:
“मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह तआला के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि आप ﷺ अल्लाह तआला के पैग़ंबर हैं।
आपके बारे में हज़रत ईसा इब्न मरयम अलैहिस्सलाम ने बशारत दी थी और उन्होंने कहा था:
‘मेरे बाद इस दरख़्त के नीचे कोई नहीं बैठेगा, सिवाय उस पैग़ंबर के जो उम्मी (यानी अनपढ़), हाशमी, अरबी और मक्की (यानी मक्का के रहने वाले) होंगे। क़यामत के दिन हौज़-ए-कौसर और शफ़ाअत वाले होंगे।'”
इस वाक़े के बाद आप ﷺ बसरा के बाज़ार में तशरीफ़ ले गए। वहाँ आपने वह सामान बेच दिया जो आप अपने साथ लाए थे और कुछ चीज़ें खरीदीं।
इस ख़रीद-फ़रोख़्त के दौरान एक शख़्स ने आप ﷺ से कुछ झगड़ा किया और कहा:
“लात और उज़्ज़ा की क़सम खाओ।”
आप ﷺ ने फ़रमाया: “मैंने इन बुतों के नाम पर कभी क़सम नहीं खाई।”
आप ﷺ का यह जुमला सुनकर वह शख़्स चौंक उठा।
शायद वह पिछले आसमानी किताब का कोई आलिम था और उसने आपको पहचान लिया था,
चुनांचे बोला: “आप ठीक कहते हैं।”
इसके बाद उसने मैसरा से अलग बातचीत की और कहा:
“मैसरा! यह नबी हैं, कसम है उस ज़ात की जिसके हाथ में मेरी जान है, यह वही हैं जिनका ज़िक्र हमारे राहिब अपनी किताबों में पाते हैं।”
मैसरा ने उसकी इस बात को अपने ज़ेहन में बिठा लिया। रास्ते में एक और वाक़या पेश आया। सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के दो ऊंट बहुत ज्यादा थक गए थे और चलने के काबिल न रहे। उनकी वजह से मैसरा काफ़िले से पीछे रह गया। नबी करीम ﷺ काफ़िले के अगले हिस्से में थे।
मैसरा उन ऊंटों की वजह से परेशान हुआ तो दौड़ता हुआ अगले हिस्से की तरफ़ आया और अपनी परेशानी के बारे में आपसे बताया। आप ﷺ उसके साथ उन दोनों ऊंटों के पास तशरीफ़ लाए, उनकी कमर और पिछले हिस्से पर हाथ फेरा। कुछ पढ़कर दम किया। आपका ऐसा करना था कि ऊंट उसी वक्त ठीक हो गए और इस कदर तेज़ चले कि काफ़िले के अगले हिस्से में पहुंच गए। अब वह मुंह से आवाज़ें निकाल रहे थे और चलने में जोशो-ख़रोश का इज़हार कर रहे थे।
फिर काफ़िले वालों ने अपना सामान बेचा। इस बार उन्हें इतना नफ़ा हुआ कि पहले कभी नहीं हुआ था। चुनांचे मैसरा ने आपसे कहा
“ऐ मुहम्मद! हम सालों से सैयदा खदीजा के लिए तिजारत कर रहे हैं, मगर इतना ज़बरदस्त नफ़ा हमें कभी नहीं हुआ जितना इस बार हुआ है।”
आख़िर काफ़िला वापस मक्का की तरफ़ रवाना हुआ। मैसरा ने इस दौरान साफ़ तौर पर यह बात देखी कि जब गर्मी का वक्त होता था और नबी करीम ﷺ अपने ऊंट पर होते थे तो दो फ़रिश्ते धूप से बचाने के लिए आप पर साया किए रहते थे। इन तमाम बातों की वजह से मैसरा के दिल में आपकी मोहब्बत घर कर गई और यूं लगने लगा जैसे वह आपका ग़ुलाम हो।
आप ﷺ दोपहर के वक्त मक्का में दाख़िल हुए। आप बाकी काफ़िले से पहले पहुंच गए थे। आप सीधे हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के घर पहुंचे। वह इस वक्त कुछ औरतों के साथ बैठी थीं। उन्होंने दूर से आपको देख लिया। आप ऊंट पर सवार थे और दो फ़रिश्ते आप पर साया किए हुए थे। हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने यह मंज़र दूसरी औरतों को भी दिखाया। वह सब बहुत हैरान हुईं।
अब आप ﷺ ने हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को तिजारत के हालात सुनाए, मुनाफ़े के बारे में बताया। इस मर्तबा पहले की निस्बत दो गुना मुनाफ़ा हुआ था। हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत खुश हुईं।
उन्होंने पूछा: “मैसरा कहां है?”
आपने बताया: “वह अभी पीछे है।”
यह सुनकर सैयदा ने कहा: “आप फौरन उसके पास जाइए और उसे जल्द से जल्द मेरे पास लाइए।”
आप वापस रवाना हुए। हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने दरअस्ल आपको इसलिए भेजा था कि वह फिर से वही मंज़र देखना चाहती थीं। जानना चाहती थीं क्या अब भी फ़रिश्ते उन पर साया करते हैं या नहीं। जैसे ही आप रवाना हुए, वह अपने मकान के ऊपर चढ़ गईं और वहां से आपको देखने लगीं। आपकी शान अब भी वही नज़र आई। अब उन्हें यक़ीन हो गया कि उनकी आंखों ने धोखा नहीं खाया था।
कुछ देर बाद आप ﷺ मैसरा के साथ उनके पास पहुंचे। हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मैसरा से कहा: “मैंने इन पर दो फ़रिश्तों को साया करते हुए देखा है, क्या तुमने भी कोई ऐसा मंज़र देखा है?”
जवाब में मैसरा ने कहा: “मैं तो यह मंज़र उस वक्त से देख रहा हूं जब काफ़िला यहां से शाम जाने के लिए रवाना हुआ था।”
इसके बाद मैसरा ने नस्तूरा से मुलाकात का हाल सुनाया, दूसरे आदमी ने जो कहा था वह भी बताया, जिसने लात और उज्ज़ा की कसम खाने के लिए कहा था। फिर ऊंटों वाला वाक़या बताया। यह तमाम बातें सुनने के बाद सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने आपको तयशुदा उजरत से दोगुना दिया, जबकि तयशुदा उजरत पहले ही दूसरे लोगों की निस्बत दोगुना थी।
इन तमाम बातों से सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा बहुत हैरान हुईं। अब वह अपने चचाज़ाद भाई वर्का बिन नवफ़ल से मिलीं, यह पिछली किताबों के आलिम थे। सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उन्हें जो कुछ खुद देखा और मैसरा की ज़बानी सुना, वह सब कह सुनाया। वर्का बिन नवफ़ल उस वक्त ईसाई मज़हब से ताल्लुक रखते थे, इससे पहले वह यहूदी थे।
सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की तमाम बातें सुनकर वर्का बिन नवफ़ल ने कहा:
“खदीजा! अगर यह बातें सच हैं तो समझ लो, मुहम्मद इस उम्मत के नबी हैं। मैं यह बात जान चुका हूं कि वह इस उम्मत के होने वाले नबी हैं, दुनिया को इन्हीं का इंतजार था। यही इनका ज़माना है।”
निकाह का पैग़ाम
यहां यह बात भी वाजेह हो जाए कि नबी अकरम ﷺ ने सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए तिजारती सफर सिर्फ़ एक बार ही नहीं किया, चंद सफर और भी किए। सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा एक शरीफ़ और पाकबाज़ ख़ातून थीं। नसब के ऐतबार से भी कुरैश में सबसे आला थीं। उन्हें कुरैश की सैयदा कहा जाता था।
नबी अकरम ﷺ तिजारत के सफर से वापस आए तो आपकी खूबियां देखकर और आपकी बातें सुनकर वह आप ﷺ से बहुत ज्यादा मुतास्सिर हो चुकी थीं।
लिहाज़ा उन्होंने एक ख़ातून नफीसाह बिन्त मुनिया को आपकी ख़िदमत में भेजा।
उन्होंने आकर आपसे कहा कि अगर कोई दौलतमंद और पाकबाज़ ख़ातून खुद आपको निकाह की पेशकश करे तो क्या आप मान लेंगे?
उनकी बात सुनकर आपने फ़रमाया: “वह कौन हैं?”
नफीसाह ने फौरन कहा: “खदीजा बिन्त ख़ुवैलिद।”
आपने उन्हें इजाज़त दे दी।
नफीसाह बिन्त मुनिया सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास आईं। उन्हें सारी बात बताई।
सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने चचा अम्र बिन असद को इत्तिला कराई, ताकि वह आकर निकाह कर दें।
सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की इससे पहले दो मर्तबा शादी हो चुकी थी। उनका पहला निकाह अतीक बिन माइद से हुआ था। इससे बेटी हिंदा पैदा हुई थी। अतीक के फ़ौत हो जाने के बाद सैयदा का दूसरा निकाह अबूहालाह नामी शख्स से हुआ। अबूहालाह की वफ़ात के बाद सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा बेवा की ज़िंदगी गुज़ार रही थीं कि उन्होंने आप ﷺ से निकाह का इरादा कर लिया। उस वक्त सैयदा की उम्र 40 साल के लगभग थी।
आपकासैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के चचा अम्र बिन असद वहां पहुंच गए। उधर नबी करीम ﷺ भी अपने चचाओं को लेकर पहुंच गए। निकाह किसने पढ़ाया, इस बारे में रिवायतें मुख्तलिफ़ हैं। एक रिवायत यह है कि यह निकाह चचा अबूतालिब ने पढ़ाया था। महर की रकम के बारे में भी रिवायतें मुख्तलिफ़ हैं। एक रिवायत यह है कि महर की रकम बारह उक़िया के करीब थी, दूसरी रिवायत यह है कि आपने महर में बीस जवान ऊंटनियां दीं।
निकाह की अदाएगी
सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के चचा अम्र बिन असद वहां पहुंच गए। उधर नबी करीम ﷺ भी अपने चचाओं को लेकर पहुंच गए। निकाह किसने पढ़ाया, इस बारे में रिवायतें मुख्तलिफ़ हैं। एक रिवायत यह है कि यह निकाह चचा अबूतालिब ने पढ़ाया था। महर की रकम के बारे में भी रिवायतें मुख्तलिफ़ हैं। एक रिवायत यह है कि महर की रकम बारह उक़िया के करीब थी, दूसरी रिवायत यह है कि आपने महर में बीस जवान ऊंटियां दीं।
निकाह के बाद नबी करीम ﷺ ने वालीमा की दावत खलाई और इस दावत में आपने एक या दो ऊंट ज़िबाह किए।