Age of Hazrat Ayesha Shadi ke Waqt Hazrat Ayesha ki umar kitni thi in hindi
इस्लाम के दुश्मन खास तौर पर पश्चिमी दुनिया के लोग इस बात को लेकर हज़रत मुहम्मद ﷺ की शान में गुस्ताख़ी करते नज़र आते हैं। और आप ﷺ के पाकिज़ा किरदार को नज़रअंदाज़ करने की कोशिश करते हैं। इनकी देखा-देखी, आजकल हिंदुस्तान के कुछ तंग-ज़हन, इस्लाम मुखालिफ लोग भी इसे मुद्दा बनाकर मुसलमानों के जज़्बात को आहत करने की कोशिश कर रहे हैं।
जिसे सुनकर मुसलमान बहुत ज़्यादा परेशान हो जाते हैं और आप ﷺ की शान में होने वाली गुस्ताख़ी को बर्दाश्त नहीं कर पाते। मगर इसके बावजूद इस आपत्ति पर अपने आप को जवाब देने में नाकाम महसूस करते नज़र आते हैं। और कुछ मुसलमान खुद हैरान होकर इस पर सवाल करते हैं कि आप ﷺ ने हज़रत आयशा से इतनी कम उम्र में निकाह क्यों किया था?
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بِسْمِ اللهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيِم
क्या हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह हज़रत मुहम्मद ﷺ के साथ कमसिनी में हुआ था?
आपकी उम्र के सिलसिले में बहुत मतभेद (contraindications) है तो ये हो सकता है की आपकी उम्र कुछ और भी रही हो तो पहले हम उस मतभेद (contraindications) को यहां रख देते हैं ताकि आपके दिमाग से ये निकल जाए की आपकी उम्र शादी के वक्त 6 साल ही थी
हम ये चहते हैं उम्र के ताल्लुक़ से सबसे पहले आप ये पढ़ें
Age of Hazrat Ayesha में मतभेद (contraindications)
इब्न-ए-हजर असक़लानी ने अपनी किताब “अल-इसाबा फी तमीज़ अस-सहाबा” में वाक़िदी के हवाले से रिवायत दर्ज की है जो हज़रत अब्बास रज़ि० से मंसूब है कि:
قال العبّاس: ولدت فاطمة والكعبة تبنى، والنّبيّ صلّى اللَّه عليه وآله وسلّم ابن خمس وثلاثين سنة، وبهذا جزم المدائنيّ
यानी हज़रत फातिमा रज़ि० काबा की तामीर-ए-नौ के दिनों में पैदा हुईं जब हुज़ूर ﷺ की उम्र 35 साल थी।
इसी रिवायत में आगे दर्ज है कि
وهي أسنّ من عائشة بنحو خمس سنين
यानी हज़रत फातिमा रज़ि० की पैदाइश हज़रत आइशा रज़ि० से पाँच साल पहले हुई।
इस रिवायत के हवाले से हज़रत आइशा रज़ि० की पैदाइश तब हुई जब हुज़ूर ﷺ 40 साल के थे, यानी ऐन सन्-ए-नबूवत में। अब अगर रुखसती का वक़्त 2 हिजरी को माना जाए, तो इस अंदाज़े के मुताबिक हज़रत आइशा की उम्र तब 15 साल बनती है।
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तारीख़ तबरी में हज़रत अबू बक्र रज़ि० की अज़वाज के ज़िक्र में लिखा है कि आपने रज़ि० ने ज़माना-ए-जाहिलियत में दो शादियाँ कीं, एक क़तीला नामी औरत से जिनसे हज़रत अब्दुल्लाह रज़ि० और हज़रत अस्मा रज़ि० पैदा हुए। दूसरी उम्म-ए-रुमान रज़ि० से जिनसे हज़रत आइशा रज़ि० और हज़रत अब्दुर्रहमान रज़ि० की विलादत हुई। फिर लिखते हैं:
فكل هؤلاء الأربعة من أولاده، ولدوا من زوجتيه اللتين سميناهما في الجاهلية
यानी ये चारों बच्चे इन दो बीवियों से हुए जो ज़माना-ए-जाहिलियत में आपके रज़ि० अक़्द में आई थीं। यूँ हज़रत आइशा की पैदाइश सन्-ए-नबूवत से कुछ पहले की भी हो सकती है। और इस के मुताबिक़ रुख़सती के वक़्त हज़रत आइशा की उम्र 16 या 17 बरस भी हो सकती है। (📚तारीख़ तबरी, जिल्द 3)
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अल्लामा नववी ने “तहज़ीब अल-अस्मा वल-लुग़ात” में हज़रत आइशा के ईमान लाने का वाक़िआ इब्न-ए-इसहाक से मंसूब करके यूँ बयान किया है:
عن ابن إسحاق، أن عائشة أسلمت صغيرة بعد ثمانية عشر إنسانا ممن أسلم
यानी आप रज़ि० छोटी उम्र में इस्लाम लाईं जबकि अठारह लोग आपसे क़ब्ल ईमान ला चुके थे।
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इब्न-ए-हिशाम ने सीरत में बाब बांधा है:
ذِكْرُ مَنْ أَسْلَمَ مِنْ الصَّحَابَةِ بِدَعْوَةِ أَبِي بَكْرٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ
यानी वो लोग जो हज़रत अबू बक्र रज़ि० की दावत से इस्लाम लाए। इन नामों में हज़रत अबू उबैदा, अर्क़म, उबैदा बिन अल-हारिसा, अब्दुल्लाह बिन अल-जिराह और हज़रत अस्मा के साथ हज़रत आइशा का नाम भी दर्ज है:
وَعَائِشَةُ بِنْتُ أَبِي بَكْرٍ، وَهِيَ يَوْمئِذٍ صَغِيرَةٌ
يَوْمئِذٍ صَغِيرَةٌ से हज़रत आइशा की कम सिनी को भी बयान कर दिया। अब अगर 6 साल की उम्र में निकाह और 9 साल की उम्र में रुख़सती वाली रिवायत को दुरुस्त तस्लीम कर लिया जाए तो हज़रत आइशा तो उस ज़माना में पैदा ही न हुई थीं जिसमें उनका ईमान लाने का वाक़िआ सीरत इब्न-ए-हिशाम में दर्ज है।
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……….. अल्लामा नववी ने “तहज़ीब अल-अस्मा वल-लुग़ात” में हज़रत आइशा की हमशेरा हज़रत अस्मा के ज़िक्र में लिखा है कि हज़रत अस्मा हिजरत-ए-नबवी से 27 साल पहले पैदा हुईं, और वो हज़रत आइशा से 10 बरस बड़ी थीं।
यूँ हज़रत आइशा की उम्र हिजरत-ए-नबवी के वक़्त 17 बरस के क़रीब बनती है, और शादी के वक़्त क़रीब 19 बरस।
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हज़रत अस्मा की उम्र के हवाले से हज़रत आइशा की उम्र के इस अंदाज़े की तस्दीक़ अल्लामा इब्न कसीर ने भी की है। “अल-बिदायह वान-निहायह” में हज़रत अस्मा के विसाल के वक़्त उनकी उम्र बयान करते हुए इब्न कसीर का बयान है कि:
وهي أَكْبَرُ مِنْ أُخْتِهَا عائشة بعشر سنين
यानी वो हज़रत आइशा से उम्र में दस बरस बड़ी थीं। (📚अल-बिदायह वान-निहायह, जिल्द 8, ज़ेर सन 73 हिजरी, दार अल-कुतुब अल-इल्मियाह, लेबनान, 1985)
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………. ग़ज़वा-ए-उहुद सन 3 हिजरी में लड़ी गई। मैदाने जंग का हाल बयान करते हुए हज़रत अनस रज़ि० से मर्वी है कि:
وَلَقَدْ رَأَيْتُ عَائِشَةَ بِنْتَ أَبِي بَكْرٍ، وَأُمَّ سُلَيْمٍ وَإِنَّهُمَا لَمُشَمِّرَتَانِ، أَرَى خَدَمَ سُوقِهِمَا تَنْقُزَانِ القِرَبَ، وَقَالَ غَيْرُهُ: تَنْقُلاَنِ القِرَبَ عَلَى مُتُونِهِمَا، ثُمَّ تُفْرِغَانِهِ فِي أَفْوَاهِ القَوْمِ، ثُمَّ تَرْجِعَانِ فَتَمْلَآَنِهَا، ثُمَّ تَجِيئَانِ فَتُفْرِغَانِهَا فِي أَفْوَاهِ القَوْمِ
यानी मैंने हज़रत आइशा बिन्त अबू बक्र रज़ि० और हज़रत उम्म सुलैम रज़ि० को देखा, इन दोनों ने अपने कपड़े समेटे हुए थे, उनकी पिंडलियों की पाज़ेब नज़र आती थी, वो अपनी कमर पर मश्कीजे लेकर आतीं, ज़ख़्मियों के मुँह में उन्हें ख़ाली करती थीं, फिर वापस होकर उन्हें भरती थीं, फिर आतीं और फिर पानी पिलाती थीं।
(📚सहीह बुखारी। किताब अल-जिहाद वास्सैर। बाब ग़ज़वा अन-निसा व क़ितालहुन मा अर-रिजाल)
रुख़सती सन 2 हिजरी में हुई और तब आपकी उम्र 9 साल मानी जाए तो उहुद के वक्त आपकी उम्र 10 साल होगी। अगर तब आपकी उम्र 12 साल मानी जाए, तो आपकी उम्र 13 साल होगी। दोनों अंदाज़ों को भी ले लिया जाए तो हुज़ूर ﷺ कम उम्र बच्चों को मैदान-ए-जंग में जाने से मना फरमाते। कहाँ ये कि एक कमसिन बच्ची को मैदान-ए-जंग में उतारा हो। और ना ही ये हिम्मत और दिलेरी का काम किसी कमसिन बच्ची का मालूम होता है। वल्लाहु अअलम।
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बुख़ारी में हज़रत आइशा से रिवायत है कि उन्हें सूरह अल-क़मर के नुज़ूल का ज़माना याद है, और उन्होंने आयत
بَلِ ٱلسَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَٱلسَّاعَةُ أَدْهَىٰ وَأَمَرُّ
के हवाले से ये इरशाद बयान फ़रमाया।
इस रिवायत के अल्फ़ाज़ यूँ हैं:
لَقَدْ أُنْزِلَ عَلَى مُحَمَّدٍ صلى الله عليه وسلم بِمَكَّةَ، وَإِنِّي لَجَارِيَةٌ أَلْعَبُ بَلِ السَّاعَةُ مَوْعِدُهُمْ وَالسَّاعَةُ أَدْهَى وَأَمَرُّ
यानी जब ये सूरह नाज़िल हुई तो मैं एक “खेलने की उम्र” की बच्ची थी। (📚सहीह बुख़ारी, किताब-उत-तफ्सीर, 4876)
मुफस्सिरीन का बिल-उमूम इत्तेफ़ाक है कि वाक़ेआ-ए-शक़ अल-क़मर हिजरत से 5 साल क़ब्ल पेश आया था और इसी निस्बत से इस सूरह के ज़माना-ए-नुज़ूल को भी इसी वक़्त के लग्भक ख़्याल किया जाता है। ताहम, बा’ज़ मुफस्सिरीन का ख़्याल है कि ये वाक़ेआ, और इस सूरह का नुज़ूल हिजरत से 7 साल क़ब्ल का है। अल्लामा इब्न हजर असकलानी “फ़त्ह अल-बारी” में इस वाक़ेआ का ज़माना सन 8 हिजरी बताते हैं। यानी हिजरत से 5 साल क़ब्ल। अल्लामा अल्लूसी भी “रूह अल-म’आनी” में इसी ख़्याल का इज़हार करते हैं।
यूँ हज़रत आइशा का उम्र के इस हिस्से में होना जहाँ यह बात याद रह जाए, यह दिखाता है कि उस वक्त आप सन्-ए-शऊर में थीं और आपने खुद को तब एक ’’खेलने की उम्र‘‘ की बच्ची के तौर पर बयान किया। ऐसी बारिक बात को याद रखना, जो आम तौर पर बचपन की दिलचस्पियों से हटकर हो, सन 8 नबवी में आपको 11 या 12 साल की बच्ची दिखाता है। इस उम्र में बचपन के खेल भी जारी रहते हैं और महत्वपूर्ण बातें भी याददाश्त में महफूज़ हो जाती हैं।
इस हिसाब से देखा जाए तो हिजरत से पांच साल क़ब्ल आपकी उम्र 12/11 साल बनती है। और यूँ निकाह के वक्त, जो सन 10 नबवी में हुआ, आपकी उम्र 14/13 साल के क़रीब बनती है (और सन 11 या 12 हिजरी में निकाह माना जाए तो क़रीब 16 साल), और रुख़सती के वक्त, जो सन 2 हिजरी में हुई, आपकी उम्र 19/18 साल बनती है।
यहाँ इस बात की बताना ज़रूरी है कि यह हिसाब उन मुस्तनद रिवायतों की रोशनी में लगाया जा रहा है जो सख़ा मोरख़ीन और मुहक्किकीन इस्लाम ने महफूज़ कीं, न कि दौर-ए-हाज़िर की शादी से संबंधित बनाए गए शर्तों को साबित करने के लिए। इस पूरी बहस में कहीं भी नए मुहक्किकीन की तहकीक से बहस नहीं की गई है
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अरबों में हिसाब-किताब बयान
जहाँ पैगंबर इस्लाम ﷺ को तीस और उनतीस के आअदाद (गिनतियां) को अंगुलियों से बयान करना पड़ा, इस माहौल में आअदाद से संबंधित आम फहम का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं।
यहाँ तक कि सूरह अल-मुददस्सिर की आयत 31 علیھا تسعۃ عشر यानी दोज़ख़ पर 19 पहरेदार फरिश्ते तैनात होंगे जब कफ़्फ़ार ने सुना तो खूब मज़ाक किया। कि 20 क्यों नहीं कह दिया? यानी एक ऐसी गिनती पर अज़्म किया जो उस ज़माने की ज़ेहनी इस्तराद के लिए ज़्यादा क़ाबिल-ए-फहम था।
इस आयत की तशरीह में इमाम राज़ी ने तफसीर कबीर में फरमाया है कि हज़रत अनस ने इसे यूँ पढ़ा कि “10 दफा 9” यानी 90। (📚तफसीर कबीर, इमाम फखरुद्दीन राज़ी, ज़ेर तफसीर सूरह अल-मुददस्सिर, आयत 30)
इससे भी इस दौर के अरब में गिनतऔर हिसाब की फहम की सतह स्पष्ट होती है।
अरबी ज़बान में गिनती का तरीक़ा इस तर्ज़ पर है कि इकाई पहले और दहाई बाद में बयान की जाती है। मसलन अंग्रेज़ी में 29 को twenty-nine कहा जाता है मगर अरबी में ’’تسعۃ و عشرون‘‘।
अब हज़रत आइशा से मंसूब रिवायत की तरफ आएं जहाँ निकाह की उम्र 6 और रुख़सती की उम्र 9 बयान की गई है, तो चूँकि बयान शादी की उम्र का था तो इस ख्याल से कि दहाई वाला हिस्सा तो आम मालूम है, हज़रत आइशा ने
ستہ و تسعہ कहने पर इक्तिफा किया हो।
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इस तमाम बहस से ग़रज़ न तो यह है कि हुज़ूर ﷺ से निकाह के वक़्त हज़रत आइशा की उम्र नए पश्चिमी मापदंड के अनुसार साबित की जाए। और न ही यह कि 6 साल और 9 साल वाली रिवायत को किसी भी हाल में कतई तौर पर खिलाफ़-ए-वाक़िया बना कर पेश किया जाए।
यह भी हो सकता है कि इन सब अंदाज़ों में से कोई एक अंदाज़ा दुरुस्त हो, और यह भी कि हकीकत इन सब अंदाज़ों से मुख़्तलिफ़ हो। ताहम, “नया सोच” के हामी चाहे हज़रत आइशा की शादी के वक़्त उम्र को नए पश्चिमी क़ानून की कसौटी पर परखते रहें, हमें यह मालूम है कि हज़रत आइशा ज़ौजा-ए-रसूल ﷺ थीं और इस निस्बत से हमारे लिए वालिदा से भी बढ़कर कि उम्मुल मोमिनीन से बढ़कर किसी भी वालिदा का क्या मक़ाम होगा।
नए दौर के आलंबरदारों की बात हो ही रही है तो यह भी देख लेना ज़रूरी है कि पश्चिम, जहाँ यह सोच पनपी है, वहाँ तारीख़-ए-पैदाइश का अंदराज कब क़ानूनन लाज़िमी हुआ। और किस तरह तदरीजاً वक़्त के तवाज़ों के साथ शादी की उम्र तय की गई।
अगर इंग्लैंड में तारीख़-ए-पैदाइश 1836 से रिकॉर्ड की जाने लगी, और अमेरिका में 1902 में यह क़ानून बना, तो इससे पहले कितने ही होंगे जिनकी शादियों के फैसले उनकी शारीरिक संरचना और नशो-नुमा के अन्य तत्वों पर किए गए होंगे। हालांकि हमें इससे भी इख़्तिलाफ़ नहीं कि दौर-ए-हाज़िर में शादी का मामला ऐसी ज़िम्मेदारियों का मुतक़ाज़ी है कि इसके लिए ज़ेहनी और शारीरिक बलोगत की उमरे सोच समझ कर ऐसर-ए-हाज़िर के मुताबिक़ वज़ की गई हैं। मगर इन्हें माज़ी बईद के लिए कसौटी बनाना भी चंदाँ दुरुस्त नहीं।
ये था वो मतभेद जिसे हमने ज़िक्र कर दिया
चलिए यहां से शुरू करते हैं दुश्मनों द्वारा किया जाने वाला असल सवाल का रुख जिस से वो खूब बावेला मचाते हैं
हम तमाम मतभेद और इख्तिलाफ हो छोड़ देते हैं और मान लेते हैं के हज़रत आयशा की उम्र 6 बर्ष ही थी, तो ये निकाह ये शादी गलत थी, इसको सही कैसे ठहराया जा सकता है
क्या दुनिया में सिर्फ़ यही एक ऐसी शादी हुई थी उसके अलावा दुनिया में कहीं भी किसी ने ऐसा नहीं किया
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क्या किसी और धर्म में ऐसा नहीं हुआ
आगे जो तहकीकात और हक़ीकतें आपके सामने पेश की जा रही हैं, उन्हें पढ़कर आपके सारे शुब्हात दूर हो जाएंगे, इंशा अल्लाह। और आप खुद अपने दूसरे मुसलमान और ग़ैर मुसलमान भाइयों की गलतफहमी को दूर कर सकते हैं। इस वक्त मुसलमानों, खास तौर पर दुनियावी पढ़े-लिखे तबके के ईमान और अक़ायद की सलामती के लिए यह ज़रूरी है।
सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम की रिवायतों से पता चलता है कि हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का निकाह उनकी छह साल की उम्र में हुआ और रुखसती के वक्त उनकी उम्र नौ साल की थी। {रवाहु अल-बुख़ारी (3894) और मुस्लिम (1422)}। यह सारी रिवायतें सहीह हैं
इस बात को पश्चिमी मीडिया ने कई बार गलत ढंग से पेश करके लोगों के दिलों में हज़रत मुहम्मद ﷺ के बारे में गलतफहमियां पैदा करने की कोशिश की है। जिसकी वजह से कुछ लोग हैरानी और ताज्जुब से पूछते हैं, क्या मुहम्मद ﷺ ने एक बच्ची से निकाह किया था?
आइए देखते हैं कि इसकी क्या हकीकत है। इस निकाह के पीछे क्या हिकमत थी? 1400 साल पहले क्या यह आम बात थी?
इसका जवाब देने के लिए इसे तारीखी पसमंजर से देखने की ज़रूरत है…
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एक अहम बात
वक़्त के साथ-साथ इंसानों की ग़िज़ा और उनके इस्तेमाल की चीज़ों में बड़ी तब्दीलियां आई हैं और इसी तरह इंसानों के अंदर भी जिस्मानी तब्दीलियां (Anatomical and Physiological Changes) हुई हैं। 1400 साल पहले इतनी कम उम्र में शादी होना एक आम बात थी। और यह एक तारीखी हक़ीक़त है कि यूरोप, एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में 9 साल से 14 साल की लड़कियों की शादियां कर दी जाती थीं।
मिसाल के तौर पर
- सेंट अगस्टीन (Saint Augustine) ~ 350 AD ने जिस लड़की से शादी की उसकी उम्र *10 साल* थी।
- राजा रिचर्ड 2 (KING RICHARD-II) 1400 AD ने जिस लड़की से शादी की उसकी *उम्र सात साल* थी।
- हेनरी 8 (HENRY 8) ने एक *6 साल* की लड़की से शादी की थी।
यहां तक कि ईसाइयों की पढ़ी जाने वाली आज की मौजूदा बाइबल में है:
In the book of Numbers, chapter 31 and verse 17
“But Save for yourselves every GIRL who has never slept with a man”
“मगर हर वह लड़की जो बक़िरह है उसको अपने लिए महफूज़ कर लो”
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इसाई धर्म में शादी की उम्र
ईसाइयों की कैथोलिक एनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की वालिदा हज़रत मरियम का निकाह उनकी *12 साल* की उम्र में 99 बरस के जोसफ से हुआ था।
1929 से पहले तक ब्रिटेन में, चर्च ऑफ इंग्लैंड के वज़ीर *12 साल* की लड़की से शादी कर सकते थे।
1983 से पहले कैथोलिक कैनन के क़ानून ने अपने पादरियों को ऐसी लड़कियों से शादी करने की इजाज़त दी थी कि जिनकी *उम्र 12* को पहुंच चुकी हो।
बहुत सारे लोग इस बात से नाख़बर हैं कि अमेरिका के स्टेट ऑफ डेलावेयर में 1880 में लड़की की शादी की जो कम से कम उम्र थी वह *8 साल* थी और कैलिफोर्निया में *10 साल* थी।
यहां तक कि आज तक भी अमेरिका के कुछ स्टेट्स में लड़कियों की शादी की जो उम्र है, वह मैसाचुसेट्स में *12 साल* और न्यू हैम्पशायर में *13 साल* और न्यूयॉर्क में *24 साल* की उम्र है।
यहां तक तो ईसाइयत और पश्चिमी मुल्कों में लड़की की शादी की मुनासिब उम्र और वहां के मारूफ़ शख्सियतों के बारे में था, जिससे यह साफ़ साबित होता है कि तारीखी नुक्ता नज़र से इस उम्र की लड़की से निकाह करना एक आम बात थी और इसे कोई ऐब नहीं समझता था।
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हिंदू मज़हब में शादी की उम्र
अब हमारे मुल्क हिंदुस्तान के क़ानून और हिंदू मज़हब की मुक़द्दस किताबों पर नज़र डालते हैं कि इनमें लड़की की शादी की मुनासिब उम्र के बारे में क्या लिखा है?
हिंदू मज़हब की किताब मनुस्मृति में लिखा है
“लड़की बालिग होने से पहले उसकी शादी कर देनी चाहिए” (📚गौतम 18-21)
“इस डर से कि कहीं ऐयामे हैज़ ना शुरू हो जाएं, बाप को चाहिए कि अपनी लड़की की शादी उसी वक्त कर दे जब कि वह बे-लिबास घूम रही हो, क्योंकि अगर वह बुलुग़त के बाद भी घर में रहे तो उसका गुनाह बाप के सर होगा” (📚वाशिष्ठा (17:70)
(Manu ix, 88; Reference पढ़ने के लिए Click Here)
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भारत में शादी की उम्र
इसके मुत’अल्लिक कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज के जैक गुडी ने अपनी किताब *The Oriental, the Ancient and Primitive* में लिखा है कि हिंदुस्तानी घरों में लड़कियां बहुत जल्दी ही ब्याह दी जाती थीं।
स्रीनिवास उन दिनों के बारे में लिखते हैं जब कि इंडिया में बुलुग़त से पहले शादी करने का रिवाज चलता था। (1984:11)
लड़की को उसकी उम्र को पहुंचने से पहले उसकी शादी कर देनी होती थी। हिंदू लॉ के मुताबिक और मुल्क के रिवाज के मुताबिक लड़की के बाप पर यह ज़रूरी था कि वह बालिग होने से पहले उसकी शादी कर दे, गरच कि रुखसती में अक्सर ताखीर होती थी, जो तकरीबन 3 साल होती थी। (📚The Oriental, the Ancient, and the Primitive, p.208.)
और यह बात सब जानते हैं कि ऐसी कमसिनी की शादियों का इंडिया में आज भी रिवाज है।
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The Encyclopedia of Religion and Ethics में लिखा है कि, जिसकी बेटी इस हालत में बालिग होती थी कि वह गैर शादीशुदा हो तो उसके (हिंदू) बाप को गुनाहगार समझा जाता था। अगर ऐसा होता तो वह लड़की खुद ब खुद “शूद्र” (नीची जाति) के दर्जे में चली जाती थी। और ऐसी लड़की से शादी करना शोहर के लिए बाइस-ए-रसवाई हुआ करता था।
*मनु* की *स्मृति* ने मर्द और औरत के लिए शादी की जो उमरें तय की हैं, वह इस तरह हैं कि लड़का 30 साल का और लड़की 12 साल की या लड़का 24 साल का और लड़की 8 साल की। मगर आगे चलकर *भ्रस्पति* और *महाभारत* की तालीम के मुताबिक ऐसे मौकों पर (हिंदू) लड़कियों की जो शादी की उम्र बताई गई है, वह 10 साल और 7 साल है। जबकि इसके बाद के *श्लोकों* में शादी की कम से कम उम्र 4 से 6 साल और ज़्यादा से ज़्यादा 8 साल बताई गई है। और इस बात के बेशुमार शवाहिद हैं कि यह बातें सिर्फ़ तहरीर में नहीं थीं (यानि इन पर अमल किया जाता था)।
Reference (Encyclopedia of Religion and Ethics, p.450)
तो हिंदू मज़हब के मानने वालों की अपनी किताबों के मुताबिक भी इस उम्र में शादी करना कोई ऐब की बात नहीं है। जो लोग इस पर ऐतराज़ करते हैं, या तो वह जहालत की बुनियाद पर करते हैं या सियासी मक़सद की खातिर… उन्हें चाहिए कि पहले तारीख का और अपनी मज़हबी किताबों का मुताआ’ला करें…
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1400 साल पहले मुल्क-ए-अरब में
1400 साल पहले मुल्क-ए-अरब में भी इस उम्र में लड़की की शादी को म’यूब नहीं समझा जाता था…
हज़रत मुहम्मद ﷺ के ज़माने में जिन लोगों ने आपके पैग़ाम को झुटलाया था, उन्होंने हर तरीके से आपको बदनाम करने और आपको नीचा दिखाने की कोशिश की। वह हर उस मौके की ताक में रहते थे जिससे वह आपकी शख्सियत पर वार कर सकें ज़बानी तौर पर भी और जिस्मानी तौर पर भी।
आप ﷺ पर जो ज़बानी हमले करते थे उनमें कभी आपको जादूगर कहते थे, कभी आपको झूठा कहते, तो कभी आपको मजनून कहते थे। मगर कभी भी उन लोगों के दिलों में यह ख्याल भी नहीं आया कि हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से आपके निकाह को लेकर ऐतराज़ करें या ताना दें। ऐसा क्यों…? क्योंकि उस वक्त उनके समाज में यह आम बात थी और उनके नज़दीक वह कोई ऐसा ऐब की बात नहीं थी कि जिसको बुनियाद बनाकर वह आपको ताना देते…
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क्या आप जानते हैं…?
क्या आप जानते हैं कि हज़रत मुहम्मद ﷺ की हयात-ए-तैय्यबा के पहले 54 साल तक सिर्फ एक ही ज़ौजा-ए-मुहतरमा थीं, वह आम-ए-मु’मिनीन हज़रत ख़दीजा-ए-कुब्रा रज़ियल्लाहु अन्हा थीं।
क्या आप जानते हैं कि वह एक बेवा औरत थीं जिनसे हज़रत मुहम्मद ﷺ ने पहला निकाह किया था…???
और क्या आप जानते हैं कि वह आप ﷺ से उम्र में पंद्रह साल बड़ी थीं…???
हज़रत मुहम्मद ﷺ ने अपनी जवानी के दिन सिर्फ़ एक बीवी हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ गुज़ारे, जो आप से 15 साल बड़ी थीं। और आपने ﷺ उनकी वफ़ात तक भी उनसे त’अल्लुक रखा और यहां तक कि उनकी वफ़ात के बाद भी उनके दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ हुस्न-ए-सुलूक और त’अल्लुक को बरक़रार रखा…
واللہ اعلم باالصواب