Installing the Black Stone ( Prophet Muhammad History in Hindi )
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Seerat e Mustafa Qist 11
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काबे की चौथी तामीर
जब आप ﷺ की उम्र 35 साल हुई, मक्का में जबरदस्त बाढ़ आई। क़ुरैश ने बाढ़ से बचने के लिए एक बाँध बनाया था। यह बाढ़ इतनी ज़बरदस्त थी कि बाँध तोड़कर काबे में घुस गई। पानी के तेज़ बहाव और काबे में भर जाने के कारण उसकी दीवारों में दरारें पड़ गईं। इससे पहले, एक बार दीवारें आग लगने से कमजोर हो गई थीं।
यह घटना इस प्रकार हुई थी: एक औरत काबे को धूनी दे रही थी। उस आग की एक चिंगारी उड़कर काबे के पर्दों तक पहुँच गई। इससे पर्दों में आग लग गई और दीवारें भी जल गईं। इस कारण दीवारें कमजोर हो गई थीं। यही वजह थी कि बाढ़ ने इन कमजोर दीवारों में दरारें डाल दीं।
सय्यदना इब्राहीम علیہ السلام ने काबे की जो दीवारें खड़ी की थीं, वे नौ गज़ ऊँची थीं। उनमें छत नहीं थी। लोग काबे के लिए नज़राने लाते थे। ये नज़राने कपड़े और खुशबुएँ होती थीं। काबे के अंदर एक कुआँ था, जिसे काबे का ख़ज़ाना कहा जाता था। नज़राने इस कुएँ में डाल दिए जाते थे।
यह कुआँ अंदरूनी हिस्से में दाईं ओर था। एक बार एक चोर ने इस ख़ज़ाने को चुराने की कोशिश की। वह कुएँ में गिरकर मर गया। इसके बाद अल्लाह तआला ने उसकी हिफ़ाज़त के लिए एक साँप भेज दिया, जो कुएँ की मुँडेर पर बैठा रहता था और किसी को ख़ज़ाने के पास नहीं आने देता था।
अब जब काबे की दीवारों में दरारें पड़ गईं और उसे दोबारा बनाने की ज़रूरत हुई, अल्लाह तआला ने एक पक्षी भेजा, जो साँप को उठा ले गया। यह देखकर क़ुरैश के लोग बहुत खुश हुए। उन्होंने काबे की नई तामीर का फ़ैसला कर लिया और योजना बनाई कि बुनियादों को मज़बूत बनाकर दीवारों को ऊँचा किया जाएगा। दरवाज़े को भी ऊँचा कर दिया जाएगा ताकि कोई गैर व्यक्ति अंदर न जा सके।
हर क़बीला अपने हिस्से के पत्थर इकट्ठा कर रहा था। चंदे के लिए तय किया गया कि सिर्फ़ पाक कमाई इस्तेमाल की जाएगी। नापाक कमाई, जैसे वेश्यावृत्ति, सूद या ज़बरदस्ती कमाई गई दौलत को चंदे में शामिल नहीं किया जाएगा। यह फ़ैसला एक घटना के बाद किया गया।
एक क़ुरैशी सरदार अबू वहब ने जब एक पत्थर उठाया, तो वह पत्थर वापस अपनी जगह लौट गया। इस पर अबू वहब ने कहा, “काबे की बुनियाद में सिर्फ़ पाक कमाई लगाओ।” अबू वहब नबी करीम ﷺ के वालिद हज़रत अब्दुल्लाह के मामा थे।
तामीर के दौरान नबी करीम ﷺ भी पत्थर ढोने में हिस्सा ले रहे थे। जब दीवारें गिराने का काम शुरू हुआ, तो डर था कि कहीं कोई मुसीबत न आ जाए। क़ुरैश के एक सरदार वलीद बिन मुगीरा ने कहा, “अगर तुम सुधार के लिए यह काम कर रहे हो, तो अल्लाह तुम्हें बर्बाद नहीं करेगा।”
काम शुरू हुआ और दीवारें गिराकर बुनियाद तक पहुँचा गया। यह बुनियाद हज़रत इब्राहीम علیہ السلام की लगाई हुई थी। बुनियाद में हरे पत्थर थे, जो ऊँट के कूबड़ जैसे और मज़बूत थे। इन्हें तोड़ना मुश्किल था।
दीवारों के नीचे से क़ुरैश को तीन तहरीरें मिलीं।
पहली तहरीर में लिखा था:
“मैं अल्लाह हूँ, मक्का का मालिक। मैंने इसे उस दिन पैदा किया जब आसमान और ज़मीन बनाई। इसे सात फ़रिश्तों से घेरा। इसकी अज़मत तब तक रहेगी, जब तक इसके दोनों ओर के पहाड़ हैं।”
दूसरी तहरीर मक़ामे इब्राहीम के पास मिली। इसमें लिखा था:
“मक्का अल्लाह का मुक़द्दस शहर है। इसका रिज़्क़ तीन रास्तों से आता है।”
तीसरी तहरीर में लिखा था:
“जो भलाई करेगा, लोग उसकी मिसाल देंगे। और जो बुराई करेगा, वह नदामत पाएगा।”
काबे की तामीर के लिए लकड़ी की ज़रूरत थी। यह लकड़ी एक रूमी जहाज़ से हासिल की गई, जो अरब के किनारे से टकराकर टूट गया था। क़ुरैश ने लकड़ी खरीदकर छत बनाई।
हजर-ए-असवद कौन रखेगा?
जब तामीर का काम हजर-ए-असवद तक पहुँचा, तो हर क़बीला इसे रखने का शरफ चाहता था। इस पर झगड़ा इतना बढ़ा कि तलवारें खिंच गईं।
आखिर वह सब बैतुल्लाह में जमा हुए। उन लोगों में अबू उमैया बिन मुगीरा था। उसका नाम हुदैफा था। कुरैश के पूरे कबीले में यह सबसे ज़्यादा उम्र वाला था। यह उम्मुल मोमिनीन सैयदा उम्मे सलमा रज़ि. का पिता था। कुरैश के सबसे शरीफ़ लोगों में से एक था। मुसाफिरों को सफर का सामान और खाना वगैरह देने के सिलसिले में बहुत मशहूर था। जब कभी सफर करता, तो अपने साथियों के खाने-पीने का सामान खुद करता।
उस समय इस गंभीर झगड़े को खत्म करने के लिए उसने एक हल पेश किया। उसने सब से कहा:
“ऐ कुरैश के लोगो, अपना झगड़ा खत्म करने के लिए तुम ऐसा करो कि हरम के ‘सफा’ नामी दरवाजे से जो शख्स सबसे पहले दाखिल हो, उससे फैसला करा लो। वह तुम्हारे दरमियान जो भी फैसला करे, सब उसे मान लें।”
यह सुझाव सबने मान लिया। आज इस दरवाजे को ‘बाब-उस-सलाम’ कहा जाता है। यह दरवाजा रुक्न-ए-यमानी और रुक्न-ए-असवद के दरमियान वाले हिस्से के सामने है।
अल्लाह की कुदरत कि इस दरवाजे से सबसे पहले हज़रत नबी ﷺ तशरीफ लाए। कुरैश ने जैसे ही आपको देखा, पुकार उठे:
“यह तो अमीन हैं, यह तो मुहम्मद हैं, हम इन पर राज़ी हैं।”
और उनके ऐसा कहने की वजह यह थी कि कुरैश अपने आपसी झगड़ों के फैसले आप ही से कराया करते थे। आप किसी की बेवजह हिमायत नहीं करते थे, न ही बिना कारण किसी की मुखालफत करते थे।
फिर उन लोगों ने अपने झगड़े की तफसील आपको सुनाई। सारी तफसील सुनकर आपने फरमाया:
“एक चादर ले आओ।”
वे लोग चादर ले आए। आपने उस चादर को बिछाया और अपने मुबारक हाथों से हजर-ए-असवद को उठाकर उस चादर पर रख दिया। इसके बाद आपने इरशाद फरमाया:
“हर कबीले के लोग इस चादर का एक-एक किनारा पकड़ लें, फिर सब मिलकर इसे उठाएं।”
उन्होंने ऐसा ही किया। चादर को उठाए हुए वे उस मकाम तक आ गए जहां हजर-ए-असवद को रखना था। इसके बाद नबी-ए-अकरम ﷺ ने हजर-ए-असवद को उठाकर उसकी जगह पर रखना चाहा। लेकिन ऐन उसी वक्त एक नज्दी व्यक्ति आगे बढ़ा और तेज़ आवाज में बोला:
“बड़ी ताज्जुब की बात है कि आप लोगों ने एक कम उम्र नौजवान को अपना रहनुमा बना लिया है। उसकी इज़्जत-अफज़ाई में लग गए हो। याद रखो, यह शख्स सबको गिरोहों में तक्सीम कर देगा, तुम लोगों को टुकड़े-टुकड़े कर देगा।”
करीब था कि लोगों में उसकी बातों से एक बार फिर झगड़ा हो जाए। लेकिन फिर खुद ही उन्होंने महसूस कर लिया कि हज़रत ﷺ ने जो फैसला किया है, वह लड़ाने वाला नहीं, लड़ाई खत्म करने वाला है।
चुनांचे हजर-ए-असवद को नबी-ए-करीम ﷺ ने अपने मुबारक हाथों से उसकी जगह पर रख दिया। इतिहासकारों ने लिखा है, यह नज्दी व्यक्ति दरअसल इब्लीस था जो इस मौके पर इंसानी शक्ल में आया था।
जब काबे की तामीर मुकम्मल हो गई, तो कुरैश ने अपने बुतों को फिर से उसमें सजा दिया। काबे की यह तामीर जो कुरैश ने की, चौथी तामीर थी।
सबसे पहले काबे को फरिश्तों ने बनाया था। फरिश्तों ने अल्लाह तआला के हुक्म की तामील की और बैतुल्लाह की तामीर की। इसके बाद आदम अलैहिस्सलाम ने बैतुल्लाह की तामीर की। फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम के साथ मिलकर बैतुल्लाह की तामीर की।
इस तरह से कुरैश के हाथों यह चौथी बार तामीर हुई थी।