Prophet Muhammad ﷺ History in Hindi Qist 8
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Seerat e Mustafa Qist 8
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आपको क़ाफ़िले के साथ इसलिए नहीं ले जाया गया था क्योंकि आप कम उम्र थे। आप वहीं पेड़ के नीचे बैठ गए। उधर बहीरा ने लोगों को देखा और उनमें से किसी में उसे वह गुण नजर नहीं आया जो आखिरी नबी के बारे में उसे मालूम था, न उनमें से किसी पर वह बादल दिखाई दिया। बल्कि उसने अजीब बात देखी कि वह बादल वहीं पड़ाव की जगह पर ही रह गया था। इसका साफ मतलब यह था कि बादल वहीं है, जहाँ अल्लाह के रसूल हैं।
तब उसने कहा: “ऐ क़ुरैश के लोगों! मेरी दावत से आप में से कोई भी पीछे नहीं रहना चाहिए।”
इस पर क़ुरैश ने कहा: “ऐ बहीरा! जिन लोगों को आपकी इस दावत में लाना ज़रूरी था, उनमें से तो कोई रह नहीं गया… हाँ एक लड़का रह गया है जो सबसे कम उम्र का है।”
बहीरा बोला: “तो कृपया उसे भी बुला लें, यह कितनी बुरी बात है कि आप सब आएँ और आप में से एक रह जाए और मैंने उसे आप लोगों के साथ देखा था।”
तब एक आदमी गया और आपको साथ लेकर बहीरा की तरफ रवाना हुआ। उस समय वह बादल आपके साथ-साथ चला और पूरे रास्ते उसने आप पर साया किये रखा। बहीरा ने यह दृश्य साफ देखा, वह अब आपको और अधिक ध्यान से देख रहा था और आपके शरीर मुबारक में वह निशानियां तलाश कर रहा था जो उसकी किताबों में दर्ज थीं।
जब लोग खाना खा चुके और इधर-उधर हो गए, तब बहीरा आपके पास आया और बोला:
“मैं लात और उज़्ज़ा के नाम पर आपसे कुछ बातें पूछना चाहता हूँ, जो मैं पूछूँ, आप मुझे बताएं।”
इसकी बात सुनकर आपने फरमाया:
“लात और उज़्ज़ा (बुतों के नाम) के नाम पर मुझसे कुछ न पूछो! अल्लाह की कसम! मुझे सबसे ज्यादा नफरत इन्हीं से है।”
अब बहीरा बोला: “अच्छा तो फिर अल्लाह के नाम पर बताएं जो मैं पूछना चाहता हूँ।”
तो आपने फरमाया: “पूछो! क्या पूछना है।”
उसने बहुत से सवाल किये। आपकी आदतों के बारे में पूछा, इसके बाद उसने आपकी पीठ पर से कपड़ा हटा कर मोहर-ए-नुबूवत को देखा। वह बिल्कुल वैसी ही थी जैसा कि उसने अपनी किताबों में पढ़ा था। उसने तुरंत मोहर-ए-नुबूवत की जगह को बोसा दिया। क़ुरैश के लोग यह सब देख रहे थे और हैरान हो रहे थे।
आखिर लोग कहे बिना न रह सके:
“यह राहिब मुहम्मद (ﷺ) में बहुत दिलचस्पी ले रहा है… शायद इसके नजदीक उनका दर्जा बहुत ऊँचा है।”
उधर नबी करीम ﷺ से बातचीत करने के बाद बहीरा अबू तालिब की तरफ आया और बोला:
“यह लड़का तुम्हारा क्या लगता है?”
अबू तालिब ने कहा: “यह मेरा बेटा है।”
इस पर बहीरा ने कहा:
“नहीं! यह तुम्हारा बेटा नहीं हो सकता, यह नहीं हो सकता कि इसका बाप ज़िंदा हो।”
अबू तालिब को यह सुनकर हैरत हुई, फिर उन्होंने कहा:
“दरअसल यह मेरे भाई का बेटा है।”
“इनका बाप कहाँ है?”
“वह फौत हो चुका है, उसका इन्तेकाल उस समय हो गया था जब यह अभी पैदा नहीं हुए थे। बल्कि अपनी मां के शिकम में थे
यह सुनकर बहीरा बोल उठा: “हाँ! यह बात सही है और इनकी वालिदा का क्या हुआ?”
“इनका अभी थोड़े अरसे ही पहले इन्तेकाल हुआ है।”
यह सुनते ही बहीरा ने कहा:
“बिल्कुल ठीक कहा… अब तुम यूं करो कि अपने भतीजे को वापस वतन ले जाओ, यहूदियों से इनकी पूरी तरह हिफाजत करो, अगर उन्होंने इन्हें देख लिया और उनमें वह निशानियाँ देख लीं जो मैंने देखी हैं तो वे इन्हें क़त्ल करने की कोशिश करेंगे। तुम्हारा यह भतीजा नबी है, इसकी बहुत शान है, इनकी शान के बारे में हम अपनी किताबों में भी लिखा हुआ पाते हैं और हमने अपने बाप-दादाओं से भी बहुत कुछ सुन रखा है। मैंने यह नसीहत करके अपना फर्ज पूरा कर दिया है और इन्हें वापस ले जाना तुम्हारी जिम्मेदारी है।”
अबू तालिब बहीरा की बातें सुनकर डर गए। आपको लेकर मक्का वापस आ गए। इस वाकये के वक्त आपकी उम्र नौ साल थी।
इस उम्र के लड़के आम तौर पर खेल-कूद में जरूर हिस्सा लेते हैं, इन खेलों में खराब और गंदे खेल भी होते हैं, अल्लाह तआला ने आपको इस सिलसिले में भी बिल्कुल महफूज़ रखा। जाहिलियत के जमाने में अरब जिन बुराइयों में जकड़े हुए थे, उन बुराइयों से भी अल्लाह तआला ने आपकी हिफाजत फरमाई।
एक वाकया आपने खुद बयान फरमाया:
“एक क़ुरैशी लड़का मक्का के ऊपरी हिस्से में अपनी बकरियाँ लिए, मेरे साथ था। मैंने उससे कहा: ‘तुम जरा मेरी बकरियों का ध्यान रखो ताकि मैं किस्सा-गोई की महफिल में शरीक हो सकूं, वहाँ सब लड़के जाते हैं।’ उस लड़के ने कहा: अच्छा। इसके बाद मैं रवाना हुआ। मैं मक्का के एक मकान में दाखिल हुआ तो मुझे गाने और बाजे की आवाज सुनाई दी। मैंने लोगों से पूछा, यह क्या हो रहा है। मुझे बताया गया कि एक क़ुरैशी की फलां शख्स की बेटी से शादी हो रही है। मैंने उस तरफ ध्यान दिया ही था कि मेरी आँखें नींद से झुकने लगीं, यहाँ तक कि मैं सो गया। फिर मेरी आँख उस वक्त खुली जब धूप मुझ पर पड़ी।”
आप वापस उस लड़के के पास पहुंचे। तो उसने पूछा: “तुमने वहाँ जाकर क्या किया?”
मैंने उसे वाकया सुना दिया। दूसरी रात फिर ऐसा ही हुआ।
मतलब यह कि क़ुरैश की लहव (ग़लत) महफिलों से अल्लाह तआला ने आपको महफूज़ रखा।
क़ुरैश के एक बुत का नाम बुवाना था। क़ुरैश हर साल उसके पास हाजिरी दिया करते थे। उसकी बेहद इज्जत करते थे। उसके पास कुर्बानी का जानवर ज़बह करते, सर मुँडाते, सारा दिन उसके पास एतकाफ करते। अबू तालिब भी अपनी कौम के साथ उस बुत के पास हाजिरी देते, इस मौके को क़ुरैश ईद की तरह मनाते थे।
अबू तालिब ने नबी करीम ﷺ से कहा:
“भतीजे! आप भी हमारे साथ ईद में शरीक हों।”
आपने इनकार फरमा दिया। अबू तालिब हर साल आपको शरीक होने के लिए कहते रहे, लेकिन आप हर बार इनकार ही करते रहे। आखिर एक बार अबू तालिब को गुस्सा आ गया। आपकी फूफियों को भी आप पर बे-तहाशा गुस्सा आया, वे आपसे बोल उठीं:
“तुम हमारे माबूदों से इस तरह बचते हो और परहेज करते हो, हमें डर है कि तुम्हें कोई नुकसान न पहुंचे।”
उन्होंने यह भी कहा: “मुहम्मद! आखिर तुम ईद में क्यों शरीक नहीं होते?”
उनकी बातों से तंग आकर आप उनके पास से उठ कर कहीं दूर चले गए।
इस बारे में आप फरमाते हैं: “मैं जब भी बुवाना या किसी और बुत के नजदीक हुआ, मेरे सामने एक सफेद रंग का बहुत कद-आवर आदमी जाहिर हुआ,
उसने हर बार मुझसे यही कहा: ‘मुहम्मद! पीछे हटो! इसको छूना नहीं।'”
ख़ाने काबा में तांबे के दो बुत थे। उनके नाम असाफ और नाइला थे। तवाफ़ करते समय मुश्रिक लोग बरकत हासिल करने के लिए उन्हें छुआ करते थे। हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ि अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक बार आप ﷺ बैतुल्लाह का तवाफ़ कर रहे थे, मैं भी आपके साथ था। जब मैं तवाफ़ के दौरान उन बुतों के पास से गुज़रा तो मैंने भी उन्हें छुआ। नबी पाक ﷺ ने फौरन फ़रमाया: इन्हें हाथ मत लगाओ।
इसके बाद हम तवाफ़ करते रहे। मैंने सोचा, एक बार फिर बुतों को छूने की कोशिश करूँगा ताकि पता तो चले, उन्हें छूने से क्या होता है और आपने मुझे क्यों रोका है। लिहाज़ा मैंने उन्हें फिर छू लिया।
तब आपने सख्त लहजे में फ़रमाया: क्या मैंने तुम्हें उन्हें छूने से मना नहीं किया था?
और मैं कसम खाकर कहता हूँ, नबी पाक ﷺ ने कभी भी किसी बुत को नहीं छुआ, यहाँ तक कि अल्लाह ने आपको नबूवत अता फरमा दी और आप पर वह़ी नाज़िल होने लगी। इसी तरह अल्लाह तआला हराम चीज़ों से भी आपकी हिफाज़त फरमाता था।
मुश्रिक बुतों के नाम पर जानवर क़ुर्बान करते थे, फिर यह गोश्त तक़सीम कर दिया जाता था या पका कर खिलाया जाता था, लेकिन आपने कभी भी ऐसा गोश्त नहीं खाया। खुद आपने एक बार इरशाद फरमाया: मैंने कभी कोई ऐसी चीज़ नहीं चखी जो बुतों के नाम पर ज़बह की गई हो, यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने मुझे नबूवत अता कर दी।
इसी तरह आपसे पूछा गया: “क्या आपने बचपन में कभी बुत-परस्ती की?”
आपने इरशाद फरमाया: “नहीं।”
आपसे फिर पूछा गया: “आपने कभी शराब पी?” जवाब में इरशाद फरमाया: “नहीं!
हालाँकि उस वक्त मुझे मालूम नहीं था कि किताब अल्लाह क्या है और ईमान (की तफ़सील) क्या है।”
बचपन में आपने बकरियाँ भी चराईं। आप मक्का के लोगों की बकरियाँ चराया करते थे। मुआवजे के तौर पर आपको एक सिक्का दिया जाता था। आप फरमाते हैं:
“अल्लाह तआला ने जितने नबी भेजे, उन सब ने बकरियाँ चराने का काम किया। मैं मक्का वालों की बकरियाँ किरारीत (सिक्का) के बदले चराया करता था।”
मक्का वालों की बकरियों के साथ आप अपने घर वालों और रिश्तेदारों की बकरियाँ भी चराया करते थे।
पैग़म्बरों ने बकरियाँ क्यों चराईं,
इसकी वज़ाहत यूं बयान की जाती है: इस काम में अल्लाह तआला की ज़बरदस्त हिकमत है, बकरी कमज़ोर जानवर है, लिहाज़ा जो शख्स बकरियाँ चराता है, उसमें कुदरती तौर पर नरमी, मोहब्बत और इनकसारी का जज़्बा पैदा हो जाता है।
हर काम और पेशे की कुछ ख़ुसूसियात होती हैं, मिसाल के तौर पर कसाई के दिल में सख़्ती होती है, लोहार जफाकश होता है, माली नाज़ुक तबीयत होता है, अब जो शख्स बकरियाँ चराता रहा, जब वह मख़लूक की तरबियत का काम शुरू करेगा तो उसकी तबीयत में से गर्मी और सख़्ती निकल चुकी होती है। मख़लूक की तरबियत के लिए वह बहुत नरम मिज़ाज हो चुका होता है और तबलीग के काम में नरम मिजाज़ी की बहुत ज़रूरत होती है।