अल्लाह के लिए रोने में खूबसूरती
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हमारे दीन में अकेले में रोने को विशेष बताया गया है, क्योंकि अकेले रहने पर दिल और भी कठोर हो जाता है।
जब कोई व्यक्ति अकेला होता है और लोगों से दूर होता है, तो पाप करने की उसकी मंशा प्रबल हो जाती है, तथा अच्छे कार्य करने के दिखावे की सम्भावना से बहुत दूर हो जाता है।
अतः यदि कोई व्यक्ति ऐसा करने का प्रयास करे और स्वयं को अल्लाह की महानता और शक्ति का अनुभव कराए, तो उसकी आँखों से आँसू बहने लगेंगे।
तो फ़िर वह इस बात का हकदार है कि मेहशर के दिन अल्लाह के अर्श की साए में रहे, जिस दिन अल्लाह की रहमत के साए के अलावा कोई साया न होगा।
यह रोना लाभदायक ज्ञान का फल है, जैसा कि अल्लाह ताअला ने इस आयत में कहा है:
وَيَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ يَبْكُونَ وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًا
अनुवाद: और वो थोड़ियों के बल गिर पड़ते हैं, और रोते जाते हैं, और यह उन्हें और अधिक विनम्र बनाता है।
فَلْیَضْحَکُوْا قَلِيْـلًا وَّ لْیَبْکُوْا کَثِيْرًا ج جَزَآئًم بِمَاکَانُوْا یَکْسِبُوْنَo
"पस उन्हें चाहिए कि थोड़ा हंसे और ज़्यादा रोएं (क्योंकि आख़िरत में उन्हें ज़्यादा रोना है), यह उस का बदला है जो वह कमाते थे।"(सूरह अल-तौबा, 9:82)
ثُمَّ قَسَتْ قُلُوْبُکُمْ مِّنْم بَعْدِ ذٰلِکَ فَهِیَ کَالْحِجَارَةِ اَوْ اَشَدُّ قَسْوَةً ط وَاِنَّ مِنَ الْحِجَارَةِ لَمَا یَتَفَجَّرُ مِنْهُ الْاَنْهٰرُ ط وَاِنَّ مِنْهَا لَمَا یَشَّقَّقُ فَیَخْرُجُ مِنْهُ الْمَآء ط وَاِنَّ مِنْهَا لَمَا یَهْبِطُ مِنْ خَشْیَةِ اللهِ ط وَمَا اللهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُوْنَo
"फिर इसके बाद भी तुम्हारे दिल सख़्त हो गए, तो वह (सख़्ती में) पत्थरों जैसे हो गए हैं या उनसे भी ज़्यादा सख़्त हो चुके हैं, इस लिए कि बेशक पत्थरों में (तो) कुछ ऐसे भी हैं जिनसे नहरें फूट निकलती हैं, और यक़ीनन उनमें से कुछ पत्थर भी हैं जो फट जाते हैं, तो उनमें से पानी उबल पड़ता है, और बेशक उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो अल्लाह के ख़ौफ़ से गिर पड़ते हैं, और अल्लाह तुम्हारे कामों से बेख़बर नहीं।"(सूरह अल-बक़राह, 2:74)
وَاِذَا سَمِعُوْا مَآ اُنْزِلَ اِلَی الرَّسُوْلِ تَرٰٓی اَعْیُنَهُمْ تَفِيْضُ مِنَ الدَّمْعِ مِمَّا عَرَفُوْا مِنَ الْحَقِّ ج یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَآ اٰمَنَّا فَاکْتُبْنَا مَعَ الشّٰهِدِيْنَo
"और (यही वजह है कि उनमें से कुछ सच्चे ईसाई) जब इस (क़ुरआन) को सुनते हैं जो रसूल (ﷺ) की तरफ़ उतारा गया है, तो आप उनकी आंखों को अश्क़-रीज़ देखते हैं, (यह आंसुओं का छलकना) उस हक़ की वजह से है जो उन्हें पहचान में आ गया है। (साथ यह) अर्ज़ करते हैं: 'ऐ हमारे रब! हम (तेरे भेजे हुए हक़ पर) ईमान ले आए हैं, सो तू हमें भी हक़ की गवाही देने वालों के साथ लिख ले।'"(सूरह अल-मायदा, 5:83)
فَلْیَضْحَکُوْا قَلِيْـلًا وَّ لْیَبْکُوْا کَثِيْرًا ج جَزَآئًم بِمَاکَانُوْا یَکْسِبُوْنَo
"पस उन्हें चाहिए कि थोड़ा हंसे और ज़्यादा रोएं (क्योंकि आख़िरत में उन्हें ज़्यादा रोना है), यह उस का बदला है जो वह कमाते थे।"(सूरह अल-तौबा, 9:82)
اِذَا تُتْلٰی عَلَيْھِمْ اٰیٰتُ الرَّحْمٰنِ خَرُّوْا سُجَّدًا وَّ بُکِیًّاo
और क्या तुम इस बयान पर ताज्जुब करते हो, और तुम हंसते हो रोते नहीं
यानि जब इंसान अल्लाह को याद करके रोता है और उसके सामने सजदे में जा कर रोता गिड़गिड़ाता है तो इस से उसका दिल नर्म हो जाता है। इस से वो रहम दिल और सखी हो जाता है।
“यह उनका शानदार वर्णन और प्रशंसा है।
ज्ञान प्राप्त करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह इस स्तर तक पहुंचना चाहे तो वह कुरान को सुने ताकि उसका दिल अल्लाह के भय और विनम्रता से भर जाए।”
मुसनद अल-दारिमी में अबू मुहम्मद अल-तैमी से वर्णित है कि उन्होंने कहा:
“जिस व्यक्ति को ज्ञान दिया जाए और वह रोए नहीं, वह ज्ञान पाने का हकदार नहीं है, क्योंकि अल्लाह ने ज्ञान रखने वालों का वर्णन किया है; फिर उन्होंने ऊपर वाली आयत पढ़ी।” [अल-जामी’ लि अहकाम इल-कुरान, 10/341]
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अहादीस शरीफ़
अल्लाह के रसूल ﷺ ने कहा:
“जो व्यक्ति अल्लाह के डर से रोता है, वह तब तक जहन्नम में नहीं जाएगा जब तक कि दूध थन में वापस न चला जाए, और अल्लाह के लिए (लड़ाई करते समय) पैदा की गई धूल और जहन्नम का धुआं कभी एक साथ नहीं रहेंगे।”
[📚तिर्मिज़ी और नसाई]
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अल्लाह के रसूल ﷺ ने यह भी कहा:
“सात लोग ऐसे हैं जिन पर अल्लाह अपना साया ये रहमत डालेगा, उस दिन जब उसके सिवा कोई साया नहीं होगा
- 1) एक न्यायप्रिय शासक।
- 2) एक युवा जो अल्लाह की इबादत करते हुए बड़ा होता है।
- 3) एक ऐसा व्यक्ति जिसका दिल मस्जिद से जुड़ा हुआ है।
- 4) दो लोग जो अल्लाह की खातिर एक दूसरे से प्यार करते हैं, उसी आधार पर मिलते और बिछड़ते हैं।
- 5) एक आदमी जिसे एक उच्च पद और बहुत सुंदर महिला द्वारा ज़िना करने के लिए बुलाया जाता है और वह कहता है, ‘मैं अल्लाह से डरता हूँ’।
- 6) एक आदमी जो दान इतनी गुप्तता से देता है कि उसका बायाँ हाथ नहीं जानता कि उसका दायाँ हाथ क्या कर रहा है। [और आखिरी वाला}
- 7) एक आदमी जो अकेले में अल्लाह को याद करता है और उसकी आँखों से आँसू बहते हैं
[📚बुखारी और मुस्लिम]
“हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ीअल्लाहु अन्हुमा) से रिवायत है कि मैंने रसूलुल्लाह (ﷺ) को यह कहते हुए सुना
‘दो आंखें आग को नहीं देखेंगी: एक आंख जो अल्लाह तआला के ख़ौफ़ से रोई और दूसरी आंख जो अल्लाह तआला की राह में पहरा देकर रात गुज़ारी।'”(तिरमिज़ी ने इस हदीस को रिवायत किया है और इसे हसन कहा है)
📚तिरमिज़ी शरीफ़
“हज़रत मुआविया बिन हैदा (रज़ीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
‘तीन किस्म की आंखें जहन्नम की आग नहीं देखेंगी। एक वह आंख जिसने अल्लाह की राह में पहरा दिया, दूसरी वह आंख जो अल्लाह के ख़ौफ़ से रोई और तीसरी वह जो अल्लाह तआला की हराम की हुई चीज़ों से बाज़ रही।'”
📚तिबरानी
“हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने इरशाद फ़रमाया:
‘जिस मुसलमान की आंख से मक्खी के सिर के बराबर अल्लाह तआला के ख़ौफ़ की वजह से आंसू बहकर उसके चेहरे पर आ गिरें, तो अल्लाह तआला उस पर दोज़ख को हराम कर देगा।'”
📚इब्ने माजा
“हज़रत अबू हुरैरा (रज़ीअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है
कि जब यह आयत: ‘क्या तुम इस बयान पर ताज्जुब करते हो? और तुम हंसते हो और रोते नहीं हो?’ (सूरह अल-नज्म, 53:59-60) नाज़िल हुई, तो अस्हाब-ए-सुफ़्फ़ा रोने लगे यहां तक कि उनके आंसू उनके गालों पर बहने लगे। जब रसूलुल्लाह (ﷺ) ने उनका हनीन (रोने की आवाज़) सुना, तो आप भी उनके साथ रोने लगे। फिर हम भी आपके साथ रोने लगे। रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: ‘दोज़ख की आग उस पर हराम है जिसने अल्लाह के ख़ौफ़ से आंसू बहाए।'”(तबरानी और बैहाक़ी ने रिवायत की है)
📚बेहिकी
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साहाबा-ए-किराम का अल्लाह के ख़ौफ़ से रोना
- हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ीअल्लाहु अन्हु):रिवायत में आता है कि हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ (रज़ीअल्लाहु अन्हु) का हाल यह था कि जब वह क़ुरआन की तिलावत के लिए खड़े होते, तो रोने लगते।
- हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ीअल्लाहु अन्हु):हज़रत अब्दुल्लाह बिन शदीद (रज़ीअल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि मैं ने हज़रत उमर (रज़ीअल्लाहु अन्हु) को मिम्बर पर खुतबा देते हुए सुना। जब वह सूरह यूसुफ़ की तिलावत करने लगे और इस आयत: “मैं अपनी परेशानी और हज़न की शिकायत अल्लाह के सामने करता हूँ।”(सूरह यूसुफ़, 12:86) तक पहुंचे, तो इस कदर रोने लगे कि हिचकियां बंध गईं।”
- हज़रत उस्मान (रज़ीअल्लाहु अन्हु):रिवायत है कि जब हज़रत उस्मान (रज़ीअल्लाहु अन्हु) कब्र के पास खड़े होते, तो रोने लगते और यहां तक कि उनकी दाढ़ी मुबारक भीग जाती। उनसे पूछा गया: “आप जन्नत और जहन्नम के ज़िक्र पर नहीं रोते, लेकिन इस कब्र पर आप इस कदर रोते हैं?” उन्होंने फ़रमाया: “कब्र आख़िरत की मंज़िलों में से पहली मंज़िल है। अगर इंसान यहां से निजात पा गया, तो उसके बाद के मरहले आसान हो जाते हैं और अगर यहां मुसीबत में पड़ गया, तो आगे का सफर और भी मुश्किल हो जाता है।”_(इब्न माजा ने इसे रिवायत किया है)
- हज़रत अली (रज़ीअल्लाहु अन्हु):जब वह नमाज़ के लिए खड़े होते, तो उनके जिस्म के हर हिस्से से ख़ौफ़-ए-इलाही की अलामतें नुमाया हो जातीं। उनके चेहरे का रंग बदल जाता और उनके जिस्म पर लरज़ा तारी हो जाता। उनसे पूछा गया: “क्या आपको किसी चीज़ का डर है?” उन्होंने फ़रमाया: “जिस अमानत को अल्लाह तआला ने आसमानों, ज़मीन और पहाड़ों के सामने पेश किया, लेकिन वह डर गए और उसे उठाने से इनकार कर दिया, लेकिन इंसान ने उसे उठाया।”(इहयाउल-उलूम)
- हज़रत इब्न अब्बास (रज़ीअल्लाहु अन्हुमा):जब उनकी आंखों में रोशनी चली गई, तो वह रोने लगे। किसी ने पूछा: “क्या आपकी आंखों की रोशनी जाने से दुख हुआ है?” उन्होंने जवाब दिया: “नहीं, अल्लाह की क़सम! जिस वक्त मेरे सिर को ढांक कर मुझसे कहा जाएगा: ‘ऐ वही इंसान जिसने अल्लाह तआला के एहकामात पर अमल नहीं किया और जिसने नबियों के तरीक़ों को फ़ॉलो नहीं किया, तू कहां जा रहा है?’ बस उस वक्त को याद कर के मैं रोता हूँ।”(इहयाउल-उलूम)
- हज़रत अबू उबैदा (रज़ीअल्लाहु अन्हु):हज़रत उमर (रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने जब उन्हें शाम में अमीर बना कर भेजा और हज़रत अबू उबैदा (रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने उन्हें यह ख़बर भेजी कि शाम में क़हत पड़ गया है, तो हज़रत उमर (रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने हज़रत अबू उबैदा (रज़ीअल्लाहु अन्हु) से फ़रमाया: “मेरे पास आओ।” हज़रत अबू उबैदा (रज़ीअल्लाहु अन्हु) मदीना आए और हज़रत उमर (रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने उन्हें गले से लगा लिया और फिर रो पड़े। हज़रत अबू उबैदा (रज़ीअल्लाहु अन्हु) ने भी रोते हुए कहा: “ऐ अमीरुल मोमिनीन! मेरे लिए अल्लाह से मग़फ़िरत की दुआ करें।”_(इहयाउल-उलूम)
- हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी (रज़ीअल्लाहु अन्हु):जब वह अल्लाह तआला की तरफ़ से अज़ाब की किसी आयत की तिलावत करते, तो रोने लगते और यही रोना उन्हें हलाक कर देता।
बुजरुगों के अकवाल खौफ ए खुदा से रोने में
- हज़रत अबू मूसा अशअरी ने कहाः ऐ लोगों! रोओ, इसलिए अगर तुम्हें रोने का मन नहीं है, तो कम से कम रोने का नाटक करो, क्योंकि नर्क के लोग खून के आंसू रोएंगे जब तक कि उनके आंसू खत्म नहीं हो जाते, वे फीर खून के आंसू रोएंगे। के उनके आंसुओ में कश्तियां चलाई जाएं तो चलने लगें।
- “हजरत हुजैफा ने कहा: एक व्यक्ति को केवल इतना ज्ञान काफ़ी है कि वह अपने दिल में अल्लाह से डरता है, और एक व्यक्ति में इतना झूठ काफ़ी है कि वह “अस्तगफिरुल्लाह” कहकर लौट आए। (यानी वह पाप करना शुरू कर देता है जिसके लिए उसने अल्लाह तआला से माफ़ी मांगी)
- हज़रत फुजैल बिन अयाज़ रहिमहुल्लाह ने कहा: उस व्यक्ति को मुबारक हो जो लोगों से डरता है और अपने मालिक से प्यार करता है और जो अपने पापों पर आँसू बहाता है।
- हज़रत जुनैद अल-बगदादी ने कहा: दिलों के अल्लामुल गुयूब (यानी जो छिपे हुए रहस्यों को जानता है) के सामने झुकना विनम्रता है।
अब जब तुम्हें इबादत के इस काम और इसके साथ मिलने वाले महान पुरस्कारों की याद दिला दी गई है, तो खुद को
एकांत में रखने के लिए समय निकालो, अल्लाह की इबादत करो, और केवल उसके लिए डर और उम्मीद से रोओ।
ऐसा करने से, तुम उन लोगों में से हो सकते हो जिन्हें अल्लाह क़यामत के दिन छाया देगा, जब बहुतों को छाया नहीं मिलेगी, और एकमात्र छाया उसके महान सिंहासन के नीचे है।