Salahuddin ayyubi masjid aqsa history in Hindi
फिलिस्तीन का इतिहास किस्त 10
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” फिलिस्तीन का इतिहास ” की ये दसवीं किस्त है पिछली सभी किस्तें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें Click Here Sultan Salahuddin Ayyubi के इतिहास का कुछ हिस्से हमने किस्ट 9 में बयान किया था उसे पढ़ने के लिए Click Here अब आगे का इतिहास इस किस्त में बताएंगे
फिलिस्तीन के शहरों की आज़ादी
फीर सलाहुद्दीन आयूबी अस्कलान की तरफ चले और वहीं ठहरे, वहां से उन्होंने लड़ाईयां शुरू कर दीं, हित्तीन के बाद दो महीने के अंदर ईसाईयों की हारों का सिलसिला जारी रहा, जिसमें उन्होंने अक्का, नासिरा, हैफा, नाब्लस, दीनीन, बैसान, याफा, सीडा, बैरूत, रमला, बैतलहेम, खलील और आस्कलान को फतह किया। दो महीनों में अल्लाह ताला ने उनके हाथों से वह फुतुहात कीं जो कई दहाइयों में सभी मुसलमान फतह नहीं कर सकते थे। इसलिए इतिहास ने जंग-ए-हित्तीन को अपने महान प्रभाव के कारण सदैव के लिए अमर कर दिया।
यरूशलेम (कुदस) की आज़ादी और ईसाईयों पर खौफ।
लेकिन ईसाईयों ने अभी तक यरूशलेम नहीं छोड़ा था, मुसलमानों के मजबूत कंट्रोल के बावजूद यूरप से मदद पहुंच रही थी, इसलिए यरूशलेम को फतह करने के लिए बड़ी तैयारियाँ शुरू हो गईं, जिससे ईसाईयों के दिलों में खौफ और हिरास फैल गया, वे तूर और बैतुलमकदस में जमा होने लगे। यह बात तो मालूम है कि हित्तीन की जंग से मुल्क शाम में ईसाईयों का बिल्कुल ख़ात्मा नहीं हुआ था, बल्कि हित्तीन के बाद भी तकरीबन सौ साल तक फिलिस्तीन में ईसाईयों की मौजूदगी जारी रही, जैसा कि आगे आएगा, लेकिन हित्तीन की जंग ने मुसलमानों के हक में इंकलाबी मोड़ का किरदार अदा किया, वह कमजोरी और शिकस्त के स्तर से बलंद होकर ईसाईयों के मुकाबले में बराबर क़ुव्वत और ताक़त में आ गए।
यरूशलेम की तरफ़ पेश क़दमी (प्रगति)।
यरूशलेम पर ईसाईयों ने 91 हिजरी साल और 88 ईसवी साल से ज़्यादा समय तक कब्ज़ा कर रखा था, ईसाई लोगों ने यरूशलेम के एक हिस्से को चर्च, दूसरे हिस्से को घुड़सवारों की रहाइशगाह, एक हिस्से को जंगी साज़-समान की जगह से बदल दिया था, बाकी को अस्तबल बनाया था। जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया था, उन्होंने इस महान स्थान की अवमानना की थी। सलाह उद्दीन अय्यूबी ने इस पर हमला की तैयारी शुरू कर दी, ईसाई लोगों के पास दूसरी सुल्तानतें थीं जिनमें वह अब भी आबाद थे, जिनमें से तराबिलस की सल्तनत भी थी जो लीबनान के कुछ हिस्से, दक्षिणी तुर्की और उत्तरी शाम में अंताकिया के हिस्से तक फैली हुई थी।
इसलिए सलाह उद्दीन अय्यूबी ने सबसे पहला काम यह किया कि यरूशलेम की मदद के लिए उन राज्यों की ओर से आने वाले सामान का रास्ता रोकने के लिए फ़ौजें तकसीम कीं, फिर वह यरूशलेम की ओर मुड़े, जब ईसाई लोगों को यह खबर पहुँची तो उन्होंने अपने आप को मज़बूत करना शुरू किया, उन्होंने खाईं खोदीं, और दीवारें ऊंची कीं,
जब वह यरूशलेम में सभी एकठे हो गए तो उनकी संख्या साठ हज़ार थी, जो यरूशलेम की दीवारों के साथ मज़बूती के साथ मौजूद थे, वह मौत को अपने लिए बैतुल मुकद्दस के हवाले करने से ज़्यादा आसान समझते थे, क्योंकि क़ुदस में उनके मुक़द्दसात थे, इस के अलावा उन साठ हज़ार फ़ौज के अलावा उनके आहल-ए-खाना, महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। बैतुल मुकद्दस में मुस्लिम क़ैदियों की भी एक बड़ी संख्या मौजूद थी, जिनकी संख्या हज़ारों में थी, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों थे।
सलाह उद्दीन अय्यूबी का क़ुद्स का मुहासीरा।
रजब के बीच में 583 हिज्री 20 सितंबर 1187 ईसवी को हित्तीन के तुरंत बाद सलाह उद्दीन अय्यूबी यरूशलेम की ओर बड़े और उसके आस-पास एक मज़बूत घेराव कर लिया, और शहर की दीवारों को मिंजनीक से मारना शुरू किया। (मिंजनीक एक ऐसा यंत्र होता है जिसमें पत्थर रखकर दीवारों की ओर फेंके जाते हैं ताकि उन्हें तोड़ दिया जाए या आग लगाने के लिए भी इस्तेमाल होता है)। इसी तरह तीरंदाज़ों ने अपने तीर उनकी दीवारों पर चलाए, ईसाई यरूशलेम की दीवारों से सर उठाने के काबिल ना रहे।
सलाह उद्दीन ने आगे बड़ने का आदेश दिया, मुस्लिम फौजें खोदी गई खाई में घुसने में कामयाब हो गईं, यहाँ तक कि वह दीवारों तक पहुँच गई जो कि बहुत नाकाबिल-ए-तस्क़ीर थीं। सलाह उद्दीन अय्यूबी की फ़ौज में एक जमात होती थी जिसे दीवारों में नकब लगाने वालों के नाम से जाना जाता था, उनका काम दीवारों में सूराख़ करना और फिर उनमें लकड़ियाँ डाल कर आग लगाना था, इस तरह दीवार कमज़ोर हो जाती थी।
ईसाईयों का खात्मा।
शहर की दीवारों को तकरीबन गिराने के बाद ईसाईयों ने महसूस किया कि वह बहुत कमजोर हो गए हैं, इसलिए उनके हौसले पस्त हो गए, उन्हें यकीन हो गया कि शहर जल्द ही या बिल्कुल ही कब्ज़ा हो जाएगा, इसलिए महिलाएं, पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग ने चर्च “कनीसा अल-क़ियामा” में पनाह ली, उन्होंने दुआ और नमाज़ का सहारा लिया, यरूशलेम में ईसाईयों के सरबराह ने सलाह उद्दीन के पास वफद भेजा और उनसे यह वादा किया कि वह शहर को इस शर्त पर दे देंगे कि वहाँ से जितने भी ईसाई हैं वह सभी अपनी संपत्ति, हथियार और जान की सुरक्षा के साथ निकल जाएँगे।
सलाह उद्दीन ने उन्हें वह दिन याद दिलाया जिस दिन वह क़ुदस में दाखिल हुए थे और उसमें मुस्लिमों को क़त्ल किया था, 91 साल पहले उन्होंने जो वहशीयाना क़त्ल आम किया था, और यह कि वह मस्जिद अल-अक्सा में मुस्लिमों को भेड़ बकरियों की तरह काट रहे थे, सलाह उद्दीन अय्यूबी ने कहा खुदा की कसम में तुम्हें इस वक़्त तक नहीं छोड़ूंगा जब तक कि मैं तुम्हें इस तरह ज़बह नहीं करूंगा जिस तरह तुम ने इस से पहले मुस्लिमों को ज़बह किया था। ईसाई बहुत घबरा गए और उन्होंने महसूस किया कि मुस्लिम अब अपने भाइयों का बदला लेने के लिए बेताब हैं, उन्होंने महसूस किया कि उनका अंजाम मौत है।
संगीन ख़तरा।
ईसाईयों ने इस मुसीबत का कोई हल नहीं निकाला सिवाय इस के कि सलाह उद्दीन के पास एक और वफद भेजा, जिसमें उन्होंने बहुत कठोर धमकी दी कि वह इस तरह यरूशलेम की जेलों में हज़ारों मुस्लिम कैदियों को क़त्ल कर देंगे, सभी मस्जिदों और पाकीजा चीज़ों को तबाह कर देंगे, गुंबद सख़रा मस्जिद अल-अक्सा को तोड़ देंगे, और पूरे यरूशलेम को जला देंगे, उन्होंने यह धमकी भी दी कि वह अंदर खुदकुशी कर लेंगे और पूरे यरूशलेम को तबाह कर देंगे।
ईसाईयों के साथ शांति।
सलाह उद्दीन इस धमकी के सामने सोच में पड़ गए, उन्होंने अपने सीनियर रहनुमाओं को एकट्ठा किया और उनसे इस ख़तरनाक मामले के बारे में मशवरा किया, रहनुमाओं ने इस धमकी को संजीदगी से लेने पर इत्तफ़ाक़ किया, क्योंकि इस धमकी पर ईसाईयों का कोई नुक़सान नहीं था, वह तो हर हाल में मर चुके थे, इस तरह सुलह पर इत्तफ़ाक़ हुआ, और यरूशलेम को हवाले करने के लिए मुज़ाक़रात (बातचीत) शुरू हो गई,
इस शर्त पर कि ईसाई बिना हथियार उठाए हुए यरूशलेम छोड़ देंगे, लेकिन उन्हें अपनी सामग्री और माल ले जाने की इजाज़त है, सिवाय इस के कि हर एक निकलने से पहले एक सोने का दीनार अदा करे, वरना वह मुस्लिमों के पास कैदी होगा। यह मुआहिदा हुआ, और ईसाई यरूशलेम हवाले करने लगे, ईसाई शहर से निकलने लगे और हर एक, एक दीनार अदा करने लगा, कुछ बुजुर्ग आदमी और महिलाएँ सलाह उद्दीन के पास आए और कहा कि हमारे पास दीनार नहीं कि तुम्हें अदा करें, सलाह उद्दीन ने उनसे कहा कि तुम्हें इजाज़त है बाहिफ़ाज़त निकल जाओ।
Sultan Salahuddin Ayyubi की महान रहमदिली
ये अखलाक इन्सानियत को पता नहीं थे, ये अखलाक केवल अंबिया, रसूलों और सहाबा कराम ने अपनाई थी। सलाह उद्दीन ने अपनी महान और शानदार रहदिली से लोगों के जज्बातों में फिर से इसकी याद ताज़ा कर दी। सलाह उद्दीन अय्यूबी ने जैसे लोगों को माफ़ किया, उससे आप मुसलमानों की क़ुद्दुस की फ़तह और सलीबियों के क़ब्ज़े का मुआजना कर सकते हैं! सलाह उद्दीन अय्यूबी के भाई आदिल आए और उसने कहा कि मुझे एक हज़ार कैदियों को दें जो टेक्स नहीं दे सकते हैं, मैं उनके बदले दूंगा, उन्होंने एक हज़ार कैदियों को ले कर उन्हें रिहा कर दिया,
इसी तरह अन्य मुसलमान हाकिम आते रहे और एक बड़ी संख्या को ले कर छोड़ाते रहे , इसके बावजूद एक बड़ी संख्या बाकी रह गई जिनके बदले माल देने वाला कोई नहीं था, क्योंकि इसका पहले ज़िक्र किया गया कि ईसाई की संख्या साठ हज़ार थी, इसलिए ग़रीब ईसाईयों ने ग़ुलामी और क़ैद से निजात के लिए मालदार ईसाईयों से एक सोने का दीनार मांगा ताकि वे ग़ुलामी और क़ैद से निजात हासिल करें, लेकिन मालदार ईसाईयों ने अपने धर्म के ग़रीब लोगों की मदद करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण बाकी क़ैद में रह गए।
कुछ महिलाएँ सलाह उद्दीन के पास शिकायत लेकर आईं कि उनके पति हित्तीन में मारे गए हैं और उनके पास अदा करने के लिए पैसे नहीं हैं, इस पर सलाह उद्दीन ने ऐसी महिलाओं को इजाज़त दी कि जिस महिला का पति क़त्ल हुआ है और उसका सरपरस्त नहीं है वह जा सकती है। इसी तरह सलाह उद्दीन ने कुछ महिलाओं को अपने पैसे देकर उन्हें छोड़ाने में मदद की, यहाँ तक कि अर्नात की पत्नी जिसे सलाह उद्दीन ने अपने हाथ से क़त्ल किया था, सलाह उद्दीन के पास आई कि उसके बेटे को छोड़ दिया जाए क्योंकि उन्हें डर था कि मुस्लिम उसे क़त्ल कर देंगे अगर उन्हें पता चल जाए कि यह अर्नात का बेटा है, सलाह उद्दीन ने कहा कि मैंने उसे अमन दिया है, और फिर उसे छोड़ दिया।
कुछ तारीख़ लिखने वालों ने इस बारे में सलाह उद्दीन अय्यूबी पर आरोप भी लगाया है कि जिन लोगों को उसने रिहा किया था वह जंगजू थे और वह बाद में जंग के लिए फिर से जमा हो गए थे, सलाह उद्दीन को चाहिए था कि उन्हें क़त्ल किया जाता या उन्हें क़ैद में रखा जाता, लेकिन सलाह उद्दीन अय्यूबी के इमान अखलाक बुलंद थे।
यरूशलेम में तकबीर के साथ प्रवेश:
इस प्रकार मुस्लिम सत्ताईसवीं रजब मेराज की रात 583हिजरी 2 अक्टूबर 1187ईसवी को बैतुल मकदस में प्रवेश किया, यानी सलीबियों के क़ब्ज़े के बाद हिजरी के हिसाब से 91 साल बाद और ईसवी के हिसाब से 88 साल बाद मुस्लिमों ने दोबारा बैतुल मकदस में प्रवेश किया, मुअज्जिन ने मस्जिद अक्सा में पहली आज़ान दी, यह आज़ान एक लंबे समय के बाद दी गई थी, बैतुल मकदस के आसपास महान ख़ुशी के साथ ताकबीर और तहलील के शब्द गूँजते रहे, मुस्लिम कुब्बातुस सखरा और मस्जिद अक्सा की ओर दौड़े और उसके ऊपर चढ़ने की कोशिश करते रहे क्योंकि सलीबियों ने उस पर सलीब नसब किया था, जब क्रूस गिर गई तो मुस्लिमों ने अल्लाहु अकबर कहा, जो ईसाई उस दृश्य को देख रहे थे वे अपनी आँखों से अपनी जिल्लत का दृश्य देख रहे थे।
इसके बाद सलाह उद्दीन अय्यूबी ने जल्दी से क़ुब्बतुस सख़रा की संशोधन और मस्जिद अक्सा की विस्तार का आदेश दिया, वास्तुकारों ने तत्काल उन यादगार नक़्शों की मरम्मत का काम शुरू कर दिया, मस्जिद को सोने के काम से सजाया, इसके बाद उन्होंने मस्जिद अक्सा पर निम्नलिखित लेखन किया:
“बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहीम, इस मिहराब-ए-मुकद्दस और मस्जिद अक्सा की तामीर-नो के काम का आदेश दिया अल्लाह तआला के बंदे और दोस्त यूसुफ़ बिन अय्यूब अबुल मुज़फ़र ने”। (अबुल मुजफ्फर सलाह उद्दीन अय्यूबी अलमलिक अलनासिर आपकी कुन्नियत थी )।
मस्जिद अक्सा में नूर उद्दीन ज़ंगी का मंबर:
इसके बाद सलाह उद्दीन अय्यूबी ने आदेश दिया कि नूर उद्दीन ज़ंगी ने जो लकड़ी का अज़ीमुशशान मिंबर बनाया था उसे लाकर मस्जिद अक्सा में रखा जाए, इस मिंबर की उम्र बीस साल थी, नूर उद्दीन ज़ंगी अपनी उम्र में मस्जिद अक्सा को फ़तह करने से क़ासिर रहे थे, उनका इंतकाल हो गया था, वह मिंबर लाया गया और उसे मस्जिद में रखा गया, ताकि उनके बाद आने वाले हर एक के लिए यह सबक और नसीहत हो, यह ख़ास तौर पर हमारे लिए इब्रत है कि हमें उस समय तक स्थिर रहना चाहिए जब तक फ़िलिस्तीन और पूरी अरब सरज़मीन आज़ाद नहीं हो जाती।
मिम्बर 1969ईसवी तक मस्जिद अक्सा में मौजूद रहा, फिर जब माइक रोहान यहूदी ने मस्जिद अक्सा को जलाया था, उसमें नूर उद्दीन ज़ंगी का मंबर भी जल गया था, और उसमें कुछ भी बाक़ी नहीं रहा था, सिर्फ़ चंद छोटे छोटे टुकड़े बाक़ी रह गए थे, जो मस्जिद अक्सा के म्यूज़म में मौजूद हैं, इस मंबर को कला का एक विलक्षण नमूना समझा जाता है, उसकी तस्वीरें आज तक महफ़ूज़ हैं, जो अपनी कलात्मक बारिकियों और क़सीर तादाद में इस्लामी सजावटों की वजह से मुमताज़ था।
Salahuddin Ayyubi की धार्मिक रवादारी:
इसके बाद कुछ मुस्लिम आए और सलाह उद्दीन अय्यूबी से माँग किया कि ईसाईयों ने मस्जिद अक्सा के साथ जो सलूक किया था उसके बदले में वह चर्च केनिसा अलक़ियामा को तोड़ दें, सलाह उद्दीन ने इसकी बुराई करते हुए कहा हज़रत उमर रदीअल्लाहु अनहू ने उन चर्चों को बरक़रार रखा था तो मैं कैसे उन्हें तोड़ सकता हूँ?
यह मजाहिब के बारे में रवादारी का उदय था, और दीन इस्लाम की अज़मत का इस्तेहकाम था, वे चर्च को मुहंदम नहीं करना चाहते थे क्योंकि उमर रदीअल्लाहु अन्हु ने उन्हें महफूज़ कर रखा था। इस तरह मुसलमानों ने दूसरे मजाहिब के साथ बल्कि पूरी इंसानियत के साथ एकत्र ज़िंदगी गुज़ारने में तरक्की की नमूने पेश किए थे।
तमाम इस्लामी मुल्कों में ख़ुशी की लहर
यह ख़बरें तमाम मुस्लिममुल्कों में फैल गईं, जिससे ख़ुशी की लहर दौड़ गई, यरूशलम और मस्जिद अल-अक्सा की दोबारा हासिल पर तमाम इस्लामी मामलिक में तकरीबात और ख़ुशियां मनाई गईं, जबकि लोगों की मस्जिद अक्सा की फतह के बारे में उम्मीदें ख़त्म हो चुकी थीं, एक महीना तक क़ुदुस की फ़तेह की मुबारक बादी का सिलसिला जारी रहा, यरूशलम की आज़ादी मुसलमानों के लिए अज़ीमतरीन वाक़ियात में से एक थी क्योंकि कई दहाइयों के बाद मुसलमानों में फ़ख़्र और ख़ुशी लौट आई थी।
इबरत व नसीहत
आज के दिन हम कल के उन घटनाओं से फायदा उठा सकते हैं, आज के मुस्लिम फिर से क़ुदस और फ़िलिस्तीन की आज़ादी के बारे में अपनी उम्मीद खो रहे हैं, जिस तरह कि सलाह उद्दीन अय्यूबी से पहले के लोग थे। लेकिन सलाह उद्दीन उन लोगों में से नहीं थे जो कमज़ोर मुज़ाकरात को स्वीकार करते, या कुदस के किसी हिस्से के लेने पर इकतीफा करते, बल्कि उन्होंने सब्र किया और जिद्दोजहद जारी रखी यहाँ तक कि अल्लाह ताला ने उन्हें फ़तह और नुसरत से नवाज़ा।
यरूशलम पर ईसाईत के कब्जे की मुद्दत एक सदी से अधिक थी लेकिन फिर भी सलाह उद्दीन अय्यूबी और उनके सिपाहियों ने इसे दोबारा हासिल करने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी, इसी तरह आज उम्मत को क़ुदस की वापसी की उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। इसमें कितना भी समय क्यों न लगे, अज़म और इरादे को इस्लामी ज़मीन के हर इंच को मुस्लिमों के हाथ में वापस लौटाना चाहिए जैसा कि पहले था।
मस्जिद अल अक्सा में पहला ख़ुत्बा
इस के बाद ख़तीब सलाह उद्दीन अय्यूबी के पास दौड़े चले गए, उनमें से हर एक को उम्मीद थी कि वह क़ुदस की आज़ादी के बाद ख़ुत्बा देने वाला पहला व्यक्ति होगा, यह जुम्मा 4 शबान 583 हिजरी का दिन था। सलाह उद्दीन अय्यूबी ने आदरणीय, प्रमुख खतीब इमाम मुह्यीउद्दीन बिन ज़कीउद्दीन का चयन किया, उन्होंने बहुत शानदार लम्बा ख़ुत्बा दिया,
लगतार जीतों का जारी रहना
सलाह उद्दीन अय्यूबी ने इस के बाद तुरंत कार्रवाई शुरू की, और अक्का को फ़तेह करने के लिए अपनी सेनाएँ भेजीं, उन्होंने ईसाई सल्तनत तराबुलस पर हमला करके इसे फ़तेह करने में कामयाबी हासिल की, क़ुदस के फ़तह के बाद ईसाईयों का ख़ात्मा हो गया, यूरप और ईसाई इस से हिल गए, पोप ने मुस्लिमों से यरूशलम को वापस लेने के लिए तीसरी क्रुसेडर(सलीबी) जंग की माँग शुरू की, लेकिन सलाह उद्दीन अय्यूबी ने जीतों का सिलसिला जारी रखा।
बैतूल मुकद्दस की फतह के बाद सलाह उद्दीन अय्यूबी ने और कई किले और शहरों को जीतने का कार्य जारी रखा, उन्होंने लाजकिया को जीत लिया, और कर्क के किले को तोड़ने में भी कामयाब हो गए, जिसने मुसलमानों को बेबस कर दिया था।
Sultan Salahuddin Ayyubi का बाक़ी इतिहास “फिलिस्तीन का इतिहास” की अगली किस्त में