Roze ke Scientific Fayede
scientific benefits of ramadan fasting in hindi
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इस्लाम में रोजा एक महत्वपूर्ण रुक्न की हैसियत रखता है। साल भर मुसलमानों पर रमजान अल मुबारक के एक महीने के रोजे रखना ज़रूरी है। हर समझदार, बालिग, स्वस्थ, और बा शाऊर मुसलमान पुरुष और महिला पर रोज़ा फ़र्ज़ है। सुबह सादिक से लेकर सूर्यास्त तक खाने-पीने और नफ़सानी ख़्वाहिशात पर कंट्रोल रखने का नाम रोज़ा है।
रोज़ा इंसान को मुत्तकि और परहेज़गार बनाता है। रोज़ा से जफ़ा कशी, सब्र और तहमुल, और नादारों से हमदर्दी के जज़्बात पैदा होते हैं। यह महज़ एक मज़हबी फ़र्ज़ ही नहीं बल्कि यह बेशुमार जिस्मानी और रूहानी फ़वाइद भी आता करता है। रोज़े के अंदर इंसान के बदन को सेहत और तंदुरुस्ती के लिए ज़बरदस्त हिक्मत-ए-अमल और सलाहियत मौजूद है।
रोज़े के अमल में इंसान के लिए बेशुमार जिस्मानी और रूहानी फ़वाइद के बाद रोज़ा रखना ईमान और अमल का जुज़ करार दिया गया है। खुदाये पाक की यह हिक्मत-ए-अमली इंसान से मोहब्बत और उसकी हक़ानियत का मुंह बोलता सबूत है।
रोज़े की फर्ज़ीयत के बारे में अल्लाह तआला फरमाता है
يأَيُّهاَ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا کُتِبَ عَلَيْکُمُ الصِّيَامُ کَمَا کُتِبَ عَلَی الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِکُمْ لَعَلَّکُمْ تَتَّقُوْنَ (البقرة،2 :183)
तर्जुमा
“ऐ ईमान वालों! तुम पर उसी तरह रोज़े फ़र्ज़ किए गए हैं जैसे तुमसे पहले लोगों पर फ़र्ज़ किए गए थे ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ।”
وَاَنْ تَصُوْمُوْا خَیْرٌ لَّکُمْ اِنْ کُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ(البقرۃ :185)
तर्जुमा
“और तुम्हारा रोज़े रखना तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम जानते हो।” (अल-बक़रा: 185)
अहादीस नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में भी रोज़े की फ़र्ज़ीयत और फ़ज़ीलत को खूब खूब उजागर किया गया है जो अमल के लिए महमीज़ और ज़िंदगी के लिए बंदगी और बंदगी के लिए ताबंदगी का रौशन बाब है।
1. हज़रत अबुहुरैरह रदि अल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हज़रत नबी ए अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रोज़े की फ़ज़ीलत बयान करते हुए फ़रमाया:
"مَنْ صَامَ رَمَضَانَ اِ يْمَانًا وَّ اِحْتِسَابًا غُفِرَ لَه. مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِه."
“जिसने ईमान की नियत से रमज़ान के रोज़े रखे उसके पिछले ग़ुनाह माफ़ किए जाते हैं।” (बुखारी शरीफ़)
2. हज़रत नबी अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया:
"اَلصَّوْمُ جُنَّةٌ مِنَ النَّارِ کَجُنَّةِ أَحَدِکُمْ مِنَ الْقِتَالِ.(نسائی"
रोज़ा जहन्नम की आग से ढाल है जैसे तुम में से किसी शख्स के पास लड़ाई की ढाल हो।”
3. हज़रत अबुहुरैरह रदि अल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हज़रत नबी अक्रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
" کُلُّ عَمَلِ ابْنِ آدَمَ يُضَاعَفُ الْحَسَنَةُ بِعَشْرِ أَمْثَالِها إِلَی سَبْعِمِائَةِ ضِعْفٍ إِلَی مَا شَائَ اﷲُ، يَقُوْلُ اﷲُ تَعَالَی:إِلَّا الصَّوْمُ فَإِنَّهُ لِی، وَأَنَا أَجْزِی بِهِ.।"
“आदम के बेटे का नेक अमल दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक आगे जितना अल्लाह चाहे बढ़ाया जाता है। अल्लाह ताआला ने फ़रमाया है: “रोज़ा उस से मुस्तसनी है क्योंकि वह मेरे लिए है और मैं ही उसकी जज़ा दूँगा।” (इब्न माजाह)
रोज़े की फजीलत के कारण
पहला कारण: रोज़ा लोगों से पोशीदा होता है इसे अल्लाह के सिवा कोई नहीं जान सकता जबकि दूसरी इबादतों का यह हाल नहीं होता क्योंकि उनका हाल लोगों को मालूम हो सकता है। इस लिहाज से रोज़ा खालिस अल्लाह के लिए ही है।
दूसरा कारण: रोज़े में नफ़स कुशी, मुश्किल, और जिस्म को सब्र और बर्दाश्त की भट्टी से गुज़रना पड़ता है। इसमें भूख, प्यास और अन्य ख़्वाहिशात-ए-नफ़सानी पर सब्र करना पड़ता है जबकि दूसरी इबादतों में इस क़दर मुश्किल और नफ़स कुशी नहीं होती है।
तीसरा कारण: रोज़ा में रियाकारी का अमल दाख़िल नहीं होता जबकि दूसरी ज़ाहिरी इबादतें मिसालां नमाज़, हज़, ज़कात वगैरह में रियाकारी का शाइबा हो सकता है।
चौथा कारण: खाने पीने से इस्तग़ना अल्लाह की सिफ़ात में से है। रोज़ा दार अगर भी अल्लाह की इस सिफ़ात से मुतशब्बिह नहीं हो सकता लेकिन वह एक लिहाज से अपने अंदर यह ख़ल्क़ पैदा करके मुक़र्रब इलाही बन जाता है।
पांचवां कारण: रोज़े के थवाब का इल्म अल्लाह के सिवा किसी को नहीं जबकि बाक़ी इबादतों के थवाब को रब ताआला ने मख़्लूक पर ज़ाहिर कर दिया है।
छठा कारण: रोज़ा ऐसी इबादत है जिसे अल्लाह के सिवा कोई नहीं जान सकता हती कि फरिश्ते भी मालूम नहीं कर सकते।
सातवां कारण: रोज़ा दार अपने अंदर मलाईका की सिफ़ात पैदा करने की कोशिश करता है इस लिए वह अल्लाह को महबूब है।
रमज़ान के साइंसी फ़ायदे
रोज़ा जहाँ शर’ई इत्बार से रूहानी पाकीज़गी और ईमानी तक़्वा का ज़ामिन और अमीन है वहीं तिब्बी(medicaly) नुक़्ता-ए-नज़र से भी रोज़ा इंसानी जिस्म और सेहत के लिए एक ऐसा अमल है जिस की कोई नज़ीर नहीं। डॉक्टर्स का कहना है कि रोज़े से जिस्म में कोई नुक्सान या कमज़ोरी वाक़िय नहीं होती बल्कि रोज़े रखने से सिर्फ़ दो खानों का दरमियानी वक़्त कुछ ज़्यादा होता है और दरहक़ीक़त 24 घंटों में जिस्म को पुरी (Calories) और पानी की मात्रा मिल जाती है जितनी रोज़े के अलावा दिनों में मिलती है।
और जिसमें लोग रमज़ान में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आम दिनों के मुक़ाबले ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं। इस हक़ीक़त के पेश-नज़र यह भी कहा जा सकता है कि खुराक आम दिनों के मुक़ाबले जिस्म को ज़्यादा तादाद में मिलती है उसके अलावा जिस्म फ़ाज़िल(ख़राब) माद्दों को भी इस्तेमाल करके तवानाई की ज़रूरत पूरी करता है। मेडीकल साइंस की रोशनी में रोज़ा रखने से नीचे लिखे गए तिब्बी(madicaly) फ़ायदे हासिल होते हैं।
(1) रोज़े से जिस्म में मौजूद हरीले मादों की सफाई होती है।
जैसा कि हम जानते हैं कि निजामे हज़म एक दूसरे से क़रीबी तौर पर मिले हुए बहुत से हिस्सों पर मुश्तमिल होता है जैसे मुंह, जबड़े में लारवाह जीभ, गला, मकवी नाली, आंतें और जिगर आदि तमाम निजामे हज़म के हिस्से हैं। जब हम खाते हैं तो तमाम निजाम हज़म हरकत में आ जाते हैं और हर हिस्सा अपना विशेष काम करता है, गोया कि यह चौबीस घंटे अपनी ड्यूटी पर होने के अलावा जिस्मानी दबाव, जंक फ़ूड और तरह-तरह के हानिकारक मल के खाने की वजह से प्रभावित हो जाता है।
लेकिन एक महीने के रोज़ों से सारा निजामे हज़म को आराम मिलता है और इसका आश्चर्यजनक प्रभाव जिगर पर होता है जिससे इसे एक ताक़त और तवानाई मिल जाती है जैसा कि पश्चिमी ईसाई महान शोधकर्ता “ऐलन कैट” अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ”fasting as way of life،” में रोज़ों के बेशुमार फ़ायदे और फलों के बारे में लिखते हैं कि “रोज़ों से इंसान के निजाम ए हज़म और defence system को पूरा आराम मिलता है और ख़ुराक हज़म करने का काम नारमल हालत पर आ जाता है।
(फास्टिंग एज़ वे ऑफ़ लाइफ/32)। गोया कि रोज़े के दौरान जिस्म में कोई नई ख़ुराक नहीं जाती इस वजह से ज़हरीले माद्दे पैदा नहीं होते और जिगर पुराने ज़हरीले माद्दे को साफ़ करके उसमें ताजगी और ज़िंदगी देता है। साइंटिफ़िक दृष्टिकोन से विशेषज्ञों का दावा है कि इस आराम का वक्फा एक साल में एक महीने का ज़रूर होना चाहिए।
(2)। रोज़े के दौरान खून की मात्रा में कमी हो जाती है यह प्रभाव दिल को बहुत फ़ायदेमंद आराम प्रदान करता है। ज़ियादा अहम बात यह है कि खलायूं के दरमियान (Inter Celluler) की मात्रा में कमी की वजह से Cells का काम बड़े हद तक शांत हो जाता है। लार वाली झिल्ली की बालाई सतह से मुतालिक Cells जिन्हें (Epitheliead) कहते हैं जो जिस्म की रूतुबत को लगातार निकालने के ज़िम्मेदार होते हैं उन्हें भी सिर्फ़ रोज़े के ज़रिए ही आराम और शांति मिलती है।
इसी तरह से पिट्ठों पर दबाव कम हो जाता है। पिट्ठों पर यह डाइस्टालिक दबाव दिल के लिए अहम होता है। रोज़े के दौरान डाइस्टालिक प्रेशर हमेशा कम सतह पर होता है यानी इस वक़्त दिल को आराम होता है। बढ़ते हुए वज़न, उच्च रक्तचाप, या तनाव जैसे विशेष परिस्थितियों के चलते आज का इंसान को इस तरक्कीके दौर मै भी शख्त तनाव, टेंशन,या डिप्रेशन में रहता है। इन परिस्थितियों में रमज़ान के एक महीने के रोज़े ख़ासतौर पर डाइस्टालिक प्रेशर को कम करके इंसान को बहुत ज़्यादा फ़ायदे पहुंचाते हैं।
(3) फेफड़े खून साफ करते हैं, इसलिए उन पर रोजा रखने से असर पड़ता है। अगर फेफड़ों में खून जम जाए तो रोजे की वजह से बहुत जल्द यह शिकायत दूर हो जाती है क्योंकि नालियाँ साफ हो जाती हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि रोजे की हालत में फेफड़े गंदगी को बड़ी तेज़ी से निकालते हैं, जिससे खून अच्छे तरीके से साफ होने लगता है और खून की सफाई से सम्पूर्ण जिस्मानी निज़ाम में सेहत की लहर दौड़ जाती है।
(4) रोजे के दौरान जब खून में पोषाहारी पदार्थ कमतर स्तर पर होते हैं तो हड्डियों का गूदा हरकत में हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप दुबले पतले लोग रोजे रखकर आसानी से अपने अंदर अधिक खून पैदा कर सकते हैं। रोजे के दौरान जिगर को आवश्यक आराम इतना सामग्री प्रदान कर देता है जिससे बड़ी आसानी और अधिक मात्रा में खून पैदा हो सके।
(5) खून में लाल कणों की संख्या अधिक और सफेद कणों की संख्या कम होती है।विशेषज्ञों के अनुसार रोजा रखने से शरीर का तापमान गिर जाता है, लेकिन जब मूल भूख वापस आती है, तो शारीरिक स्थिति असल स्थिति की ओर माइल हो जाती है। इसी तरह जब रोजा इफ्तार के समय भोजन किया जाता है, तो शारीरिक तापमान में कुछ वृद्धि हो जाती है। रोजा रखने के बाद खून की सफाई की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। कम पानी (येमीना) की स्थिति में अक्सर देखा गया है कि खून के लाल कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। एक अध्ययन के अनुसार केवल 12 दिनों के लगातार रोजों के रखने के कारण खून की कोशिकाओं की संख्या 5 लाख से बढ़कर 36 लाख तक पहुंच गई।
(6) रोजा रखने से बुढ़ापे के प्रक्रिया में कमी और उम्र में वृद्धि। कुछ लोगों का कहना है कि रोजा रखने से सेहत कमज़ोर हो जाती है लेकिन यह सही नहीं है बल्कि इससे मानव सेहत को और शक्ति मिलती है। बल्कि, रोजा रखने से ऐसे हारमोंस पैदा होते हैं जो बुढ़ापे के खिलाफ़ मुकाबला करते हैं, इससे मानव शरीर की त्वचा मजबूत होती है और झुर्रियां कम हो जाती हैं। शरीर को खुराक से रोकने की वजह से बहुत सारे खतरनाक मर्ज़ जैसे कैंसर, दिल की बीमारियाँ, शुगर और दिमागी बीमारियों के आसार कम हो जाते हैं।
जैसा कि “world health net” के अनुसार शोध के बताए गए मामलों के साथ इसमें यह भी कहा गया है कि एक दिन छोड़कर एक दिन रोजा रखने से कैंसर की बीमारी के आसार कम हो जाते हैं। वैज्ञानिकों की आँखें आज खुली हैं लेकिन नबी ﷺ ने इस चीज़ को पहले ही बता दिया हैं कि नफली रोजे में “दाऊदी रोज़े” बेहतर होते हैं, यानी एक दिन छोड़कर दूसरे दिन रोजा रखना।” (सही बुखारी)
जो लोग जवानी में लगातार रोज़ा का रखते हैं, ये जब बुढ़ापे की तरफ पहुंचते हैं तो दिमागी बीमारियों के शिकार कम होते हैं। जैसा कि अमेरिकी डॉक्टर मार्क मेटिसन के मुताबिक “रोज़े रखने से इंसानी दिमाग Alzheimer’s, Parkinson’s और इसके अलावा अन्य दिमागी बीमारियों से महफूज रहता है।” और आगे लिखते हैं “दिमाग को सबसे ज्यादा फायदा इसमें है कि इंसान कभी कभार रोज़ा रखे।”
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