फिलिस्तीन उमर बिन ख़त्ताब के दौर में
फिलिस्तीन का इतिहास (किस्त 4)
यहां से शुरू होगा फिलिस्तीन का इस्लामी दोर
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फिलिस्तीन उमर बिन ख़त्ताब रदीअल्लाहु अनहु के दौर में
636ई में, हज़रत अबु उबैदा बिन जर्राह रदीअल्लाहु अनहु को सरबराह बना दिया गया। फिर इस फ़ौज के नेतृत्व के पास गए और उनसे मशवरा किया कि कहाँ जाएँ? उन्होंने कहा हज़रत उमर रदीअल्लाहु अनहु से मशवरा किया जाए, अबु अबैदा रदीअल्लाहु अनहु ने उमर रदीअल्लाहु अनहु को एक पत्र लिखा, हज़रत उमर ने जवाब दिया कि
कुदुस(फिलिस्तीन) की ओर बढ़ो।
इस फैसले पर मुस्लिम बहुत खुश हुए, क्योंकि उनकी बड़ी ख्वाहिश थी कि कुदुस को फ़तह करके मस्जिद ए अक्सा में नमाज़ अदा करें। फिर लश्कर रवाना हुआ, इसमें बड़े-बड़े सहाबा रज़ीअल्लाहु अनहुम थे जैसे खालिद बिन वलीद, यज़ीद बिन अबु सफ़ियान, शुरहबील बिन हसना रज़ीअल्लाहु अनहुम आजमाईन आदि।
उन्होंने कुदुस का घेराबंद किया, और फिर लड़ाई शुरू हुई, यह लड़ाई दस दिन तक चलती रही, रूमी डटे रहे, वह अपनी पूरी जान लगा रहे थे। यहूदियों के बरअकस (विपरीत) रोमन अपनी स्थिति पर टिके रहे और उनकी रक्षा में हिम्मत से लड़े, और यह बात उनसे इतिहासिक तौर पर साबित भी है, लेकिन फिर भी वे इस्लाम की फ़तह और ताक़त के सामने ठहर नहीं सके।
अबु उबैदा बिन जर्राह रदीअल्लाहु अनहु का कुदुस पहुँचना
ग्यारहवें दिन अबु उबैदा बिन जर्राह रदीयअल्लाहु अनहु कुदुस पहुँचे, उनके आने पर मुसलमानों ने तकबीर की आवाज़ बुलंद की, जिससे रोमनों के दिल में खौफ और डर पैदा हुआ, क्योंकि इससे पहले उन्होंने तकबीर की इतनी बुलंद आवाज़ नहीं सुनी थी, वे यह समझ रहे थे कि मुसलमानों के अमीर हज़रत उमर रदीअल्लाहु अनहु आ गए हैं।
इसलिए उन्होंने पादरियों के सरदार काहिन से पूछा, तो उसने कहा कि अगर उमर रदीअल्लाहु अनहु ख़ुद आए हैं तो तुम्हारी हार यक़ीनी है, रोमन चौंकर इसका कारण पूछा, तो काहिन ने जवाब दिया कि इसका कारण यह है कि हमें जो पूर्वाग्रहण का ज्ञान विरासत में मिला है उसमें यह बात है कि जो व्यक्ति ज़मीन की तुल और चौड़ाई का बदशाह बनेगा जिसमें फ़िलिस्तीन भी शामिल है वह गंदूमि रंग, लंबे ऊंचे क़द का होगा, अगर उमर रदीअल्लाहु अनहु आए हैं तो उसके साथ युद्ध नहीं करना चाहिए बल्कि उसके सामने अपने आप को समर्पित कर दो।
ये निशानियाँ जो काहिन ने बताईं उमर रदीअल्लाहु अनहु की निशानियाँ थीं, इसके बाद यह काहिन ख़ुद मुसलमानों के लश्कर में तहक़ीक के लिए आया, जब उसने देखा कि उमर रदीअल्लाहु अनहु मौजूद नहीं हैं तो उसने आकर रोमनों को कहा कि जंग जारी रखें क्योंकि ये उमर नहीं थे।
कुदुस (यरूशलेम) का घेराव
कुदुस का घेराबंद बहुत लंबा हो गया था, इसे फ़तह करना बहुत मुश्किल हो गया था, इस दौरान चार महीने गुज़र गए, मुसलमानों ने रोमनों के बचने के सभी रास्ते बंद किए थे, और ज़िन्दगी बरक़रार रखने के सभी उपायों पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन इस के बावजूद भी रोमन तस्लीम करने पर तैयार नहीं हो रहे थे
जब उन्हें बहुत ज़्यादा तंगी महसूस हुई तो उन्होंने अपने काहिन के ज़रिए मुसलमानों से उनके अमीर उल मुमिनीन के जिस्मानी विशेषताओं के बारे में पूछा, जिस पर मुसलमानों ने उमर रदीयअल्लाहु अनहु की शक्ल और सूरत की तफ़सील बयान की, और यह वह विशेषताएँ थीं जो ईसाइयों की किताबों में हैं।
इसके बाद उन्होंने मुसलमानों के साथ बातचीत की मांग कि, अबूअबैदा बिन जर्रह रदीयअल्लाहु अनहु बातचीत के लिए चले गए, रोमन काहिन ने पूछा तुम ईन मुल्कों को क्यों फ़तह कर रहे हो? जो ऐसा इरादा करे उस पर अल्लाह तआला का गुस्सा होगा और वह उसे हलाक़ करेगा।
इस पर अबूअबैदा रदीयअल्लाहु अनहु ने कहा कि यह मुल्क मुबारक सरज़मीन है, इस सरज़मीन से हमारे नबी ﷺ को मिराज़ पर ले जाया गया था, यह अम्बिया की सरज़मीन है, यहाँ अम्बिया के क़बरें हैं, हम इस सरज़मीन के अधिकारी हैं, हम यहाँ इस वक़्त तक रहेंगे जब तक अल्लाह तआला हमें इस जगह का मालिक नहीं बनाता, जैसे कि अल्लाह तआला ने हमें दूसरे मुल्कों का मालिक बनाया है।
रोमन पादरी ने कहा कि तुम हम से क्या चाहते हो?
अबूअबैदा रदीयअल्लाहु अनहु ने कहा कि तीन बातों में से एक, या इस्लाम कबूल करो, या सुलह करके जज़िया दो, या जंग करो। इस पर पादरी ने सुलह पर रज़ामंदी ज़ाहिर की, लेकिन शर्त यह लगाई कि कुदुस में मुसलमानों में से कोई इस वक़्त तक दाख़िल नहीं होगा जब तक अमीर उल मुमिनीन उमर बिन ख़त्ताब रदीयअल्लाहु अनहु कुदुस में खुद दाखिल नहीं होते।
उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु बैतुल मकदस में
ईसाई पादरियों की ख्वाहिश थी कि कुदुस की चाबियाँ ख़ुद उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु के हाथ में दी जाएं, तो अबूअबैदा बिन जर्राह रदीयअल्लाहु अनहु ने रूमियों की इस ख्वाहिश का उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु को खत लिखकर भेजा, उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु मदीना मुनव्वरा से फ़िलिस्तीन की ओर रवाना हुए, यह उनका सफ़र मिसाली था, जो आने वाले सभी बादशाहों के लिए बेहतरीन मिसाल पेश की।
उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु अपने नौकर के साथ एक ही उँट को लेकर निकले, ये दोनों उस उँट पर बारी बारी सवार होते थे, अगर उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु चाहते तो एक महान लश्कर के साथ कुदुस (यरूशलेम) जा सकते थे, जिससे लोगों पर धाक बैठ जाती। लेकिन वह सारी दुनिया के बादशाहों को बता देना चाहते थे कि वे अधीनता(आजिज़ी) स्वीकार करें और यह बताना चाहते थे कि इज़्ज़त और ताक़त अल्लाह के हाथ में है, किसी और चीज़ में नहीं।
जब उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु और उनका नौकर कुदुस पहुँचे, आख़िर में उँट पर सवार होने की बारी उनके नौकर की थी, नौकर ने उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु से कहा कि मेरी जगह आप सवार हो जाएँ, ताकि लोग आपको सवार होते देखें, लेकिन उमर रदीयअल्लाहु अनहु ने इसे मना किया, इस प्रकार कुदुस में वह प्रवेश किया गया कि नौकर सवार था और वक्त का बादशाह उस वक्त की सबसे बड़ी सल्तनत के जीतने वाले हज़रत उमर रदीयअल्लाहु अनहु पैदल थे।
मुसलमानों ने उन्हें देखा तो तकबीर और तहलील की आवाज़ बुलंद की, जिस पहाड़ पर उन्होंने तकबीर कही थी उसका नाम जबल ए मुकब्बर रख दिया।,
हज़रत अमीर उल मुमिनीन उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु लश्कर के पास पहुँचे, पता चला कि उन्होंने सादा सा वस्त्र पहना है, जो कई जगह से फटा हुआ है, ईसाई यरूशलेम की दीवारों से यह हैरतअंगेज़ नज़ारा देख रहे थे, वे ज़ुबान हाल से कह रहे थे कि यह व्यक्ति उन शक्तिशाली लश्करों का कमांडर है?!
इसके बाद उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु कीचड़ से भरे एक किले पर पहुँचे, नौकर ने एक बार फिर कोशिश की कि उमर रदीयअल्लाहु अनहु सवार हो जाएं ताकि किचड़ से उनके कपड़े गंदे न हो जाएं, लेकिन उमर रदीयअल्लाहु अनहु ने कहा कि तुम ही सवार रहो, इस प्रकार नौकर सवार रहा और उमर रदीयअल्लाहु अनहु उँट के लगाम को पकड़ कर इसे किचड़ में खींच रहे थे, उन्होंने उँट को बांधा, लोग इस नज़ारे को अज़ीब नज़रों से देख रहे थे।
अबूअबैदा बिन जर्राह रदीयअल्लाहु अनहु से बर्दाश्त नहीं हुआ, वह जल्दी से आगे बढ़े और उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु से कहा कि अमीर उल मुमिनीन! आज का दिन आपके लिए एक महान दिन है, लेकिन आप इस हालत में आए हैं?
उमर फ़ारूक़ रदीयअल्लाहु अनहु ने उन्हें सीने पर मारा, और उन्हें मलामत करते हुए कहा कि काश कि यह बात कोई और कहता, तुम इतने बड़े होकर यह बात करते हो। ऐ अबूअबैदा! हम एक पस्त लोग थे, अल्लाह ने हमें इज्ज़त दी, हम कमज़ोर थे अल्लाह ने इस्लाम के रास्ते में हमें ताक़त दी।
पुरतैश सूट पहनकर मुजाकराती कुर्सियों पर बैठने वाले ये सीख लें, जिनके आगे और पीछे वुफूद, खुद्दाम और मुहाफिज होते हैं, इससे इब़्रत हासिल करें कि इस्लाम का फ़ख़्र और ताक़त किस बात से है!
आज हम ईसाई लोगों को देखते हैं वे इतवार को छुट्टी करते हैं, लेकिन मुसलमान जुम्मे के दिन भी छुट्टी नहीं करते इस दिन भी मुजाकरात जारी रखते हैं, यहूदी सोमवार को छुट्टी करते हैं और हमारे यहाँ सारे दिन बराबर हैं।
जब ईसाई पादरियों के बड़े पादरी ने यह नज़रा देखा तो हैरान हो गया और घबरा गया, उसकी नज़र में इस्लाम की शान बढ़ गई, उसने अपनी क़ौम से कहा कि इस दुनिया में कोई भी इन लोगों का मुकाबला नहीं कर सकता, लिहाज़ा तुम उनके आगे हथियार डाल दो निजात पा लोगे।
इसलिए मुसलमानों और ईसाईयों ने आपस में मुआहिदा लिखा, उमर रदीयअल्लाहु अनहु ने उन्हें कुदुस में हिफ़ाज़त फ़राहम की, और उनकी इबादत गाहें, कनीसाओं और मुकद्दसात की हिफ़ाज़त की ज़मानत दी, कि न उनको गिराया जाएगा और न उनको हाथ लगाया जाएगा।
कुदुस ने अपनी पूरी तारीख में इस जैसा रहमान और करीम फ़ातेह नहीं देखा था, क्यूंकि इससे पहले जिस बादशाह ने भी इसे फ़तेह किया था उसने कुदुस को पूरी तरह से तबाह किया था, और वहाँ के लोगों को क़त्ल किया था। इससे आप मुसलमानों के अख्लाक़ का अंदाज़ा लगा सकते हैं!
हज़रत उमर का ऐतिहासिक फ़ैसला
“बिस्मिल्लाहिर्रह्मानिर्रहीम।
"यह अमन नामा अल्लाह का बंदा उमर जो मुस्लिमों के अमीर है, इलिया (अल-कुदस) के लोगों को देता है। इसमें उनकी जानें, उनका माल, उनकी इबादतगाहें, उनके सलीब, उनके बीमारों, उनके स्वस्थ लोगों और उनकी बाकी परिवार के लोगों को सुरक्षा है।
न उनके गिरजा घरों पर कब्ज़ा किया जाएगा, और न ही उनको मसमार किया जाएगा। न उनकी जगह, न उनकी सलीब और न ही उनके पैसों में कोई कमी की जाएगी। न उनको मज़हब की पैरवी करने पर मजबूर किया जाएगा, न उनको सज़ा दी जाएगी।
(इलिया) कुदस में उनके साथ कोई यहूदी नहीं रहेगा, इलिया के लोग उसी तरह जजिया(टैक्स) देंगे जिस तरह अन्य शहरों के लोग देते हैं। उनकी ज़िम्मेदारी होगी कि इलिया से यूनानी और चोरों को निकालें। उन यूनानियों में से जो शहर से निकले गा, उसकी जान और माल को अमन है, ताकि वह जाए पनाह में पहुंच जाए, और जो इलिया में रहना चाहेगा उसको भी अमन है और उनको जिज़्या (टैक्स) देना होगा।
और इलिया वालों में से जो शख्स अपनी जान और माल लेकर यूनानियों के साथ चला जाना चाहेगा, उसको और उनके गिरजाओं को और सलीबों को अमन है, यहाँ तक कि वह अपनी जाए पनाह तक पहुंच जाए।
और जो कुछ इस तहरीर में है उस पर ख़ुदा का, उसके रसूल का, उसके ख़लीफ़ा का और मुस्लिमों की ज़िम्मेदारी है। बशर्ते कि यह लोग मुक़र्रर किया गया ज़िज़्या(टैक्स) अदा करते रहें। इस तहरीर पर गवाह हैं ख़ालिद बिन वलीद और अमर बिन अल-आस और अब्दुर्रहमान बिन उफ़ और मुआविया बिन अबी सुफ़ियान रदियअल्लाहु अन्हु और यह 15 हिज्री में लिखा गया है।"
इस समझौते में उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने ईसाइयों के साथ यह समझौता किया था कि वे ईलिया में किसी यहूदी को रहने नहीं देंगे, साथ ही यहूदियों के क़ुदस में प्रवेश पर भी पाबंदी लगाई गई थी। वास्तव में यहूद इस फ़तह से पहले भी उस जगह के मालिक नहीं थे।
और यहूदियों को रोकने का यह मांग खुद ईसाइयों की ओर से थी, क्योंकि उन्हें यहूदियों की ओर से बहुत तकलीफें पहुंचती थीं, उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु भी ईसाइयों के समर्थन में हुए।
इस समझौते के बाद उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु कुदस में प्रवेश हुए, उसके द्वारें खोले गए, घूम-घूमकर कनीसा अल-कियामा में पहुंचे, मुअज़्ज़िन ने अज़ान दी, रूमी पादरी ने कहा कि यहाँ नमाज़ पढ़ लें, उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने इनकार किया कि अगर मैंने यहाँ नमाज़ पढ़ ली, तो मुसलमान यह जगह तुम से क़ब्ज़ा कर लेंगे वह कहेंगे कि इसमें उमर ने नमाज़ पढ़ी है।
उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने पूरी दुनिया के लिए रवादारी और बुलंद अख़लाक की बेहतरीन मिसालें क़ायम कीं, उनकी ताक़त इतनी ज़्यादा थी कि अगर वह चाहते तो कुदस में एक पत्थर बाक़ी न रहता सब को तोड़बा कर देते, मज़ाल है कि कोई इत्तिफ़ाख़ करता या कोई उनको मलामत करता। लेकिन इस्लाम की अज़्मत उनके अंदर चमकी थी, और यह उनकी अख़लाक में झलकती थी, हालांकि वह एक सख्त जान आदमी थे, जो अपनी सख्ती और ग़ुरूर के लिए मशहूर थे।
मस्जिद अल-अक्सा की सफ़ाई।
कुदस में उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु चक्कर लगा रहे थे, मस्जिद अल-अक्सा को तलाश कर रहे थे, रूमी पादरी ने उनसे पूछा कि तुम इस जगह को ढूंढ रहे हो जिसकी ताज़ीम यहूदी करते हैं, उमर रदीअल्लाहु अन्हु ने कहा कि हां, तो रूमी पादरी ने उनको वह जगह दिखा दी, ईसाइ़ इस जगह को कुड़ा क्रिकेट के लिए इस्तेमाल करते थे, उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने अपनी आस्तीनें ऊपर कीं, और गंद उठाकर मस्जिद अल-अक्सा को साफ़ किया,
जब मुसलमानों और लश्कर के सिपाह सालारों ने यह मंज़र देखा उन्होंने भी मस्जिद अल-अक्सा की सफ़ाई शुरू की, इस अमल में बड़े बड़े सहाबा कराम ने हिस्सा लिया।
फिर उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने अपना अबा ज़ेब तन किया यानि एक ख़ास किस्म का कपड़ा पहना, और मस्जिद अल-अक्सा में नमाज़ पढ़ी। मस्जिद अल-अक्सा में नबी करीम ﷺ की नमाज़ पढ़ने के बाद यह पहली नमाज़ थी जो मस्जिद अल-अक्सा में अदा की जा रही थी, उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने दो रकात नमाज़ पढ़ी, पहली रकात में सूरह साद की तिलावत की जिसमें दाऊद अलैहिस्सलाम का ज़िक्र है, दूसरी रकात में सूरह इस्रा की तिलावत की जिसमें इस मस्जिद की ताज़ीम का ज़िक्र है।
इसके बाद पहली बाजमाअत नमाज़ के लिए बिलाल रदीअल्लाहु अन्हु ने अज़ान दी, बिलाल रदीअल्लाहु अन्हु ने नबी करीम ﷺ की वफ़ात के बाद से अज़ान देना छोड़ दिया था, सिर्फ़ जाबिया में जब मुसलमानों के लश्कर जमा हो गए थे तो उमर रदीअल्लाहु अन्हु की फ़रमाइश पर अज़ान दी थी, और यहाँ मस्जिद अल-अक्सा में भी उन्होंने अज़ान की इब्तिदा की।
मस्जिद अल-अक्सा की तामीर
इसके बाद उमर फ़ारूक़ रदीअल्लाहु अन्हु ने तुरंत मस्जिद अल-अक्सा की तामीर का हुक्म दिया, इस से पहले की सूरत तो आपके सामने थी कि वह कुड़ा क्रिकेट की जगह बन गई थी, चुनांचे मुसलमानों ने लकड़ियों से एक मस्जिद तामीर की जिसमें तीन हज़ार नमाज़ीयों की गुंजाईश थी, मुसलमान इस जगह गिरोहकी गिरोह नमाज़ अदा करने आते थे।
यह बैतुलमकदस की फ़तह की तारीख़ है, यह अज़ीम जगह जो मस्जिद अल-अक्सा की थी और ईसाइयों के हाथों गंदगी का ढेर बन चुकी थी, इस फ़तह के बाद फिर से इसका असली तशख़्स बहाल हुआ।
हज़रत अमीर मुआवियह रजीअल्लाहु अन्हु मुल्क शाम के हाकिम
18 हिजरी मुवाफक 639 ईसवी को फिलिस्तीन में ताऊन अम्वास फैल गया, यह सबसे बड़ी वबा थी जो पूरे मुल्क में फैल गई, जिसकी वजह से 18 हजार लोग मर गए थे, जिसमें मुसलमानों की भी बड़ी संख्या थी। इस मौके पर अबूबैदा बिन अल्जराह रजी अल्लाहु अन्हु ने एक नौजवान को अपनी तरफ से मुल्क शाम का हाकिम मुक़र्र कर दिया, इस नौजवान का शुमार अरब के होशियारतरीन लोगों में होता था, यह मुवावियह बिन अबी सुफियान रजी अल्लाहु अन्हु थे। यह मुल्क शाम के पहले हाकिम थे। इस समय मुल्क शाम में फिलिस्तीन, जॉर्डन, लेबनान और सोरिया सब शुमार होते थे।
हज़रत मुआविया की हुकुमत की मुद्दत
हज़रत मुआवियह रजी अल्लाहु अन्हु मुल्क शाम पर बीस साल हाकिम रहे, इसके बाद वो तमाम मुसलमानों के ख़लीफ़ा भी मुक़र्र हुए, ख़लीफ़ा बन जाने के बाद मज़ीद बीस साल तक मुल्क शाम के हाकिम रहे, इस तरह कुल चालीस साल उन्होंने मुल्क शाम पर हुकूमत की, इस तवील अरसे में उनकी हुकूमत में कोई एक भी फ़ित्ना बर्पा नहीं हुआ, जबके आस पास के मुल्कों में कई साज़िशों और फितनों ने सर उठाया, यहाँ तक के मदीना मुनव्वरा भी फ़ित्नों से महफ़ूज़ नहीं हुआ।
किसी ने मुवावियह रजी अल्लाहु अन्हु से उसकी वजह पूछी तो उन्होंने अपना मशहूर तारीख़ी मक़ाला कहा कि मेरे और मेरे रिआया के दरमियान एक बाल का ताल्लुक है जब वो बाल खिंचते हैं तो मैं उसे ढीला करता हूँ और जब वो ढीला करते हैं तो मैं खिंचता हूँ, इस तरह बाल नहीं टूटता। मुवावियह रदीअल्लाहु अन्हु की यह सियासत बाद में “शीअराह मुआवियह” के नाम से मशहूर हुई। यानी कभी सख़्ती और कभी नर्मी की हुकूमत।
मिस्र की फ़तह और क़ुदुस की ख़ुशहाली
20 हिजरी (641ई )को अमर बिन आस रजी अल्लाहु अन्हु फिलिस्तीन से चले गए और मिस्र मुन्तकिल हुए, उन्होंने मिस्र को फ़तेह किया, जिसकी वजह से मिस्रयों की एक बड़ी संख्या इस्लाम में दाख़िल हुई, जैसा कि मुल्क शाम के फ़तेह होने के बाद हुआ था, बहुत ज़्यादा लोग इस्लाम में दाख़िल हुए थे।
इस तरह इस्लामी फ़तूहात का सिलसिला चलता रहा, और मुसलमान ख़ुशहाल होते गए। मुल्क शाम दिन बदिन आबादी, तहज़ीब व कला, फ़नूंन व अदब और तराजिम में तरक्की करता रहा, यहाँ तक कि यह पूरी दुनिया के आलमी इल्मी मराकिज में शुमार होने लगा।
कई सहाबा किराम क़ुदुस आए, बाज तो यहाँ आकर यहाँ से इहराम बांध कर हज के लिए जाते थे, जैसा कि अब्दुल्लाह बिन उमर रजी अल्लाहु अन्हु के बारे में आता है, वो बय्त उल-मुक़द्दस आकर यहाँ से हज का इहराम बांध कर मक्का मुक़रमा जाते थे।
लिहाज़ा ख़ुदुस बहुत बुलंदी पर पहुंच गया था, यहाँ तहज़ीब अपने उरुज़ पर थी, यह तनवीर वतरक्की, तक़ाफ़ुल वस्तकुल्त का शहर शुमार होता था, जबकि इस के मुक़ाबला में यहूदियों ने क़ुदुस में तहज़ीब वस्तकुल्त का कोई तनवीरी काम नहीं किया था, मुसलमानों ने ना सिर्फ़ तहज़ीब वतरक्की का काम किया, बल्कि इस का ख़्याल भी रखा।
यहाँ तक फिलिस्तीन की तारीख का सहाबा तक का दौर पूरा हुआ, आगे हम अब्बासी दौर में फिलिस्तीन की तारीख ज़िक्र करेंगे। إن شاء الله تعالی