सबसे पुराना धर्म कौन सा है-sabse purana dharm kaun sa hai
सबसे पुराना धर्म कौन सा है
पहले ये बात समझें इस्लाम में मुहम्मदﷺ को इस्लाम का बानी नहीं बल्कि इस्लाम का आख़री नबी मानते हैं। क्योंकि इस्लामी आक़ीदे के मुताबिक़ आदम अलैहिस्सलाम(Adam) से लेकर ईसा अलैहिस्सलाम तक और फिर हज़रत मुहम्मदﷺ तक, ये सभी अंबिया अल्लाह की तरफ़ से एक ही सिलसिला और एक ही आक़ीदा और दीन की तालीम देने आए। जिसकी शुरुआत हज़रत आदम(Adam)से हुई और अंत हज़रत मुहम्मदﷺ पर हो चुकी है। हज़रत मुहम्मदﷺ को मुसलमानों अल्लाह ताअला का आख़री रसूल और नबी मानते हैं, वजहे तख़लीक़ कायनात, रहमतुल्लिल आलमीन और सारी दुनिया के लिए आख़री नबी मानते हैं। और उन पर नाज़िल किया कलाम क़ुरआन को अल्लाह का आख़री पैग़ाम मानते हैं जिसने पहले नाज़िल हुई किताबों को मन्सूख(उन पर अमल करना ख़त्म) कर दिया, अब वह नाकाबिल ए अमल दस्तावेज़ की हैसियत रखती है। अब नज़ात सिर्फ़ मुहम्मदﷺ को आख़री नबी मानने और क़ुरआन को अल्लाह का कलाम मानने पर है।
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इन्सानों की रहनुमाई के लिए अंबिया का आना
क़ुरआन ही की सूरत 35 (फ़ातिर) की आयत 24 के मुताबिक़, क़ुरआन में दर्ज 25 अंबिया और मुरसल के अलावा इस्लामी आक़ीदों के मुताबिक़ ऐसे अंबिया ए कराम भी हैं जिनका ज़िक्र क़ुरआन में नहीं आता,
कुरआन में एक आयत है لکل قوم ھاد
इस आयत से ये बात ज़ाहिर है कि हर कौम में नबी (या अंबिया) भेजे गए, इस सिलसिले में एक हदीस भी मस्नद अहमद बिन हमबल और फ़तहुल बारी में बयान की गई है जिसमें पैग़म्बरों की तादाद 124000(कम या ज्यादा) बयान होती है। ज़ाहिर है कि इन में उन मज़हबों के वो व्यक्ति भी आम तौर पर शामिल हो जाते हैं जिन्हें आज उन मज़हबों की शुरू करने वाला या उन मज़हबों का ख़ुदा माना जाता है; मिसाल के तौर पर याकूबअलैहिस्सलाम, मूसा अलैहिस्सलाम और अन्य मजहबों में माने जाने वाले मज़हबी लोग
क़ुरआन के हिसाब से ये सभी व्यक्ति ख़ुदा की तरफ़ से वही पैग़ाम अपनी अपनी उम्मत में लाए थे जो आख़री बार क़ुरआन लाया, मगर उन में तहरीफ़(बदलाव) पैदा हो गई। एक लाख चौबीस हज़ार की तादाद अटल नहीं है ये गिनती कम या ज़्यादा भी हो सकती हैं के आने वाले अम्बिय हो सकता है कम आए हों या ज़्यादा
गैर मुस्लिमों के साथ कैसा बर्ताओ करना चाहिए
बुनियादी तौर पर ग़ैर मुसलमानों के साथ मुआमले करने में। क़ुरआन दूसरे मज़हबों, जैसे यहूदियत और ईसाईयत के लिए इहतिराम फ़राहम करता है, और क़ुरआन इस बात की तस्दीक़ करता है कि वह “इस ख़ालिस इब्राहीमी मज़हब को बहाल कर रहा है जो इब्राहीम पर नाज़िल हुआ था और जिसे कुछ यहूदीयों और ईसाईयों ने मसख़(गड़बड़) किया था।”
मुसलमानों का आक़ीदा है कि ज़बूर, तौरात और इंजील आसमानी किताबें हैं जो ख़ुदा ने अपने अंबिया दाऊद, मूसा और ईसा मसीह पर नाज़िल की, लेकिन वह उनकी मौजूदा नुस्ख़ों पर यक़ीन नहीं रखते और ये समझते हैं कि उनमें तहरीफ़ की गई है। हीरा और ये कि असल किताबें वक़्त गुज़रने के साथ साथ ज़ाया(मिट) हो गईं, जैसे कि उन्हें लिखने में तखीर(देर) और उन्हें हिफ़ाज़ करने वालों की मौत, जिस की वजह से बाद में आने वाले दौर में उनमें बदलाव हो गए
अल्लाह ने लोगों को सीधा रास्ता दिखाने के के लिए आपने अम्बिया और रसूल भेजे जो हर दौर में आते रहे फीर उनके मानने वालों ने उनके बताए रास्ते को भुला दिया और उन अल्लाह के अंबिया को या रसूलों को ही अपना खुदा या खुदा का बेटा बगैरह बना लिया या उनकी मूर्तियां बना कर उनको पूजने लगे। अगरचे ये आज अलग मज़हब बन गए हैं लेकीन इनकी असल इस्लाम ही है। आजभी तमाम मजाहिब की असल किताबों को पढ़ो तो ये पता लगेगा के उसमें वही सब बातें हैं जिनकी दावत इस्लाम देता है। इस्लाम तमाम अंबिया को मानता है लेकिन यहूदो नसारा या दुसरे मज़हब वालों ने इस्लाम को नहीं माना इसी लिए वो अपने उन अंबिया के रास्ते से हट गए जिनको वो मानते हैं जैसे लोगों ने आपने रसूलों की मूर्तियां बनाईं इस लिए के उनको याद किया जाए लेकीन जब वक्त बदला और धीरे धीरे लोगों ने उनको पूजना शुरु किया और उनको अपना खुदा बना लिया और तरह तरह के बातें इनके लिए गढ़ लीं
बिला शुभा सबसे पहले इंसान हज़रत आदम अलैहिस्सलाम हैं। वह पहले पैग़म्बर और मुसलमान हैं। उन से ही नस्ल इंसानी का आग़ाज़ हुआ। वह जन्नत से कोह सिरांदीप श्री लंका में उतारे गए। श्री लंका पहले भारत का एक हिस्सा था।केरला में एक पहाड़ी पर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के क़दम का निशान बताया जाता है। इस से यह सबूत भी मिलता है कि मौजूदा भारत में भी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम तश्रीफ़ लाए थे।
बेशक, धर्म इस्लाम ही सबसे प्राचीन धर्म है क्योंकि हज़रत आदम (अलैहिस्सलाम) से ही इस्लाम का अस्तित्व है और जो उसूल व अकाइद हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को दिए गए वही हमारे अन्य नबियों और रसूलों को भी दिए गए।
उसके बाद थोड़ा बहुत किसी न किसी किताब में बदलाव होता रहा, जैसे: मूसा अलैहिस्सलाम की शरीयत में शिर्क की सज़ा स्वयं को क़त्ल करने की थी और इस्लाम में तौबा है। मूसा अलैहिस्सलाम शरीयत में जकात 25% थी जबकि इस्लाम में 2.5% है।
और क़ुरान में सभी नबियों और रसूलों और उनके अनुयायियों को मुसलमान कहा गया है। स्पष्ट है कि इस्लाम का एक सामान्य अर्थ और एक विशेष अर्थ है। तो तमाम अंबिया मुसलमान हैं और इस्लाम हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से मोजूद है
इस्लाम शब्द के शब्दार्थ की किताबों में तीन अर्थ हैं:
1: आज्ञा और अनुसरण
2: शांति और सुरक्षा प्राप्त करना।
3: एक परमेश्वर की पूजा करना।
कुरान में जगह जगह नबीयों को मुसलमान कहा गया है, यानि सभी एक खुदा की इबादत करते थे। सभी नबियों और रसूलों का धर्म, इस्लाम था!
इस तरह से, बिना किसी संदेह के, अल्लाह तबारक ताअला ने इस्लाम को सबसे पसंदीदा धर्म बताया है, और इस इस्लाम से मुराद नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का धर्म नहीं है, बल्कि सभी नबियों का जो धर्म था वही मुराद है।
तमाम धर्मों की किताबें इस बात की दलील हैं अगर इस्लाम केवल मुहम्मदी धर्म में होता, तो,दूसरे नबियों को मुसलमान नहीं कहा जाता,
1. हज़रत नूह(Noha) अलैहिस्सलाम के बारे में है के वो मुस्लिम हैं (स. युनुस, आयत.72)
2. हज़रत इब्राहीम और इस्माईल अलैहिस्सलाम ने खुद मुस्लिम बनने और अपनी औलाद से ईमान लाने की दुआ की,(स: बकरा, आयत: 27,28)
3. हज़रत इब्राहीम को परवरदिगार का हुक्म हुआ कि “मुसलमान बनो”: (स: बकरा, आयत: 132)
4. हज़रत इब्राहीम और याकूब अलैहिस्सलाम ने अपनी औलाद को यह वसीयत दी: “जब मौत पाओ, तो मुसलमान बनकर” (स: बकरा, आयत: 133)
5. यहूदियों का दावा मसीहियत को नकार दिया और गया कहा गया कि “तुमने मुसलमान रहने का वादा किया था”:युहूदी ये दावा करते थे के याकूब अलैहिस्सलाम ने उनको यहूदी रहने की वसीयत की थी ( : बकरा, आयत: 133) जबकि हकीवत में उनको अखरी नबी मुहम्मदﷺ के बारे में निशानियां बताई थीं
6. हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने मुसलमान होकर मौत की दुआ की: (स: यूसुफ, आयत: 101)
7. हज़रत मूसा कलीमुल्लाह अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम को मुसलमान होने की दावत दी(स: यूनुस, आयत: 84)
8. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम और उनके घरवालों को मुसलमान कहा गया: (अल-जारियात, आयत: 35,36)
9. हज़रत ईसा रुहुल्लाह अलैहिस्सलाम के हवारीयों ने कहा: “हम मुसलमान हैं”:(स: माइदा, आयत: 111)
10. पूर्व अम्बिया और रसूल भी मुस्लिम थे।(सूरह माइदाह, आयत 44)
11. हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने मलका बिल्किस को मुस्लिम होकर हाजिर होने का हुक्म दिया। (सूरह नम्ल, आयत 31)
12. मलका सबा हज़रत बिल्कीस मुसलमान हुईं (सूरह नम्ल, आयत 44)
13. फिरऔन के जादूगरों ने कहा: “हम मुस्लिम हो गए हैं।” (सूरह आराफ, आयत 126)
14. मौत को सामने देख फिरऔन ने भी मजबूरन कहा: “मैं मुस्लिम होता हूँ”। (सुरह यूनुस, आयत 90)
15. हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुयायी भी मुस्लिम हैं। (सूरह बकरा, आयत 36)
16. ख़ुदा ने अपने बंदों को कुरान में और पहले नाज़िल कि गईं किताबों में मुस्लिम रखा है। (सूरह हज्ज, आयत 78)
कुरआन सभी ऐसी मज़हबी और आराम्भिक सिद्धांतों का प्रमाण है जो पूर्व में उतरी हुई सभी किताबों में हैं। (मदारिक अल-तंजील, जिल्द: ताहा, सफ़ह: 150/ मजलिस बरकात)
हिंदू धर्म कितना पुराना है/ सनातन धर्म कितना पुराना है
पिछे सभी धर्मों का जिक्र हुआ ख़ास कर यहुदी और ईसाई का क्यूंकि ये दोनों धर्म इस्लामी चैन का ही हिस्सा हैं के वो भी नबी, ख़ुदा, किताब को मानते हैं और इस्लाम भी ये बातें मानता है
अब यहां थोड़ी सी बात हिंदू धर्म की करेंगे क्यूंकि मज़हबी मान्यता के हिसाब से हिंदू भी काफ़ी पुराना है
हिन्दू धर्म का असली नाम सनातन धर्म है। इसे हिन्दू मत भी कहते हैं। आर्य समाज भी इसकी एक शाखा है, हिन्दू मत या सनातन धर्म का अस्तित्व 2000 ईसा पूर्व से है। वास्तव में हिन्दू धर्म का इतिहास उसकी वेदों से पता चलता है, हिन्दू धर्म के तीन वेद हैं: ऋग्वेद, सामवेद, और यजुर्वेद। और वेदों की रचना 2000 ईसा पूर्व में हुई।
जबकि इस्लाम आदम अलैहिस्सलाम के ज़माने से है तो सबसे पुराना धर्म इस्लाम है न कि हिन्दूत्व।
बुतपरस्ती कैसे शुरु हुई
कुरान के पढ़ने से भी स्पष्ट होता है कि बुतपरस्ती हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के ज़माने में होती थी, एक रिवायत के अनुसार हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के पाँच बेटे थे, जब उनका निधन हुआ तो लोग उनकी पूजा करने लगे। और इस तरह बुतपरस्ती शुरु हो गई
और ये बात भी किताबों में मिलती है के हज़रत आदम (Adam)अलैहिस्सलाम के 5 बेटे थे जो लोगों में काफ़ी लोकप्रिय थे तो जब एक बेटे की मौत हुई तो लोगों ने उनकी मूरत बना ली इस लिए के उनको याद करते रहें इसी तरह पाचों बेटों की मौत हो गई और पांचों की मूरत बना लीं फीर धीरे धीरे लोग उनकी पूजा करने लगे और ऐसे ही समय बीता और लोगों ने इनको खुदा बना लिया
अब ये बात तो साफ़ हो गई के हर कौम के लिए उनको रहनुमाई करने वाले आए और वो सब अल्लाह के मैसेंजर थे जो लोगों को उनके creator की तरफ बुलाते रहे और लोगों ने आगे चल कर उन्ही रसूलों के नाम पर अपने धर्म बना लिए
واللہ اعلم باالصواب
Note: गलतियां करना या हो जाना इंसान को आदत में है अगर हमसे भी इसमें कुछ गलती हो गई हो तो हमको ज़रूर बताएं Comment करके या e-mail करके