गजवा ए हिन्द क्या है
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पैगंबरों का मकसद सच्ची ख़बर देना है
इसलिए हर पैगंबर ने मानवता को सच्ची ख़बरों से अवगत किया है, जन्नत और दोज़ख के बारे में बताया है, जज़ा और सज़ा के ख़ुदाई निज़ाम से वाकिफ़ किया है और कुछ अनदेखी माख़लूकात जैसे फ़रिश्तों के बारे में भी अवगत किया है। सच्ची ख़बरों का एक पहलू मुस्तकबिल(future) की पेशनगोईयों से मुतल्लिक है, अल्लाह ताला की ज़ात अज़ल से अबद तक पेश आने वाले तमाम वाकियात की ख़ालिक है और पैगंबर ए कराम इस काइनात अर्ज़ी में उस के क़ासिद और सफ़ीर हैं, इसलिए अल्लाह ताला की तरफ़ से हासिल होने वाली कुछ मुस्तकबिल की कुछ मालूमात लोगों के सामने पेश करते हैं,
उन में कुछ पेशनगोईयाँ तो मोजिजा के होती हैं, जैसे हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वाले सल्लम ने बद्र जंग से पहले हर एक हमलावर मुश्रिक के बारे में बता दिया था कि जंग में कौन कहाँ क़त्ल किया जाएगा? और यह पेशनगोई बेशक पूरी हुई, और कुछ पेशनगोईयाँ तंबीह और इंज़ार के तौर पर होती हैं, जिसमें अमल की दावत भी होती है, जैसे इमाम महदी का ज़ुहूर, दजाल का ख़ुरूज, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का नुज़ूल, tailbone की हकीकत, पूरब की बजाए पश्चिम की तरफ़ सूरज का तुलु आदि।”
इसी तरह की दूसरी पेशगोईयों में यह भी है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वाले सल्लम ने दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में इस्लामी फुटुहात का इशारा भी फरमाया, जैसे रूम (उस वक्त की सबसे बडी ताक़त), कुस्तुनतुनिया, ईरान आदि का फतह करना, इसी तरह की पेशनगोईयों में एक हिन्दुस्तान की फ़तह और यहाँ इस्लाम की फैलना भी है, इस सिलसिले में कुछ रिवायतीं नकल की गई हैं,
जिनमें कुछ तो मुहद्दिसीन के नज़दीक मान्य नहीं हैं और कुछ किसी हद तक दर्जा इत्माम को पहुंचती हैं, यह वाकिया कब ज़हूर में आएगा? मुतअय्या तौर पर हदीस में यह बात नहीं बताई गई है, कुछ रीवायतों में है कि जब दजाल ज़ाहिर होगा तो बैतुलमकदिस का एक हुक्मरान हिन्दुस्तान को सेना भेजेगा,
और कुछ रिवायतों से पता चलता है कि यह जंग सहाबा के दौर में या उसके क़रीब होगी; क्योंकि हज़रत अबूहुरैराह तमन्ना करते थे कि उन्हें इसमें शहादत हासिल हो जाए, इस रिवायत को हदीस की दो मुस्तन्द किताबों में नकल किया गया है (मुसनद अहमद २/९२२, सुनन निसाई, हदीस नंबर: ३७१३, ४७१३, बाब ग़ज़वतुल हिन्द), अगरचे यह रिवायत ज़यीफ़ है; लेकिन इससे अंदाज़ा होता है कि इर्शाद नबवी के अव्वलीन मुखातिब समझते थे कि यह वाकिया करीबी समय में पेश आने वाला है।”
“इस दौर के बाद नज़दीक तरीन समय में हिंदुस्तान के शासकों से अरब शासकों का जंगी आराई का वाक़िआ पेश आया, ये वही जंग है जो मुहम्मद बिन कासिम के ज़रिए सिंध की फ़तह(जीत) की शक्ल में हमारे सामने है और इसी वजह में सिंध को ‘इस्लाम का द्वार’ कहा जाता है,
मुहम्मद बिन कासिम का तालुक ताईफ़ के क़बीले बनू सक़िफ़ से था, मुहम्मद बिन कासिम फ़ारस के उस समय के दारअलहुकूमत ‘शीराज़’ के गवर्नर बने इसकी वजह यह थी कि उसको सिर्फ़ पंद्रह साल की उम्र में कुर्दों की बग़ावत ख़त्म करने के लिए 807ई में सिपाहसालारी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने हैरान कुन कामियाबी हासिल की,
चुनांचे जब सिंध के कुछ राजाओं से जंग के लिए उन्हें सिंध की महिमा का ज़िम्मा बनाया गया, इस समय उनकी उम्र 71 साल थी, 117 से 317 तक उन्होंने अपनी महिमा जारी रखी और सिंध के अक्सर क्षेत्र यहाँ तक कि ‘मुल्तान’ (जो उस समय सिंध का हिस्सा था) तक को फ़तह कर लिया, चार साल सिंध में रहकर वहाँ की नियम और नियमितता को सही किया और इंसाफ़ पर आधारित सरकार की स्थापना की।
सिंध की महिमा क्यों शुरू हुई?
इसे जानना भी ज़रूरी है, ताकि पता चले कि क्या यह कोई अन्यायपूर्ण घटना थी?
इतिहास से पता चलता है कि इसके कई कारण प्रस्तुत हुए, इस समय सिंध पर राजा दाहिर की सरकार थी, मकरान मुसलमानों के कब्जे में था, 307 में कुछ लोगों ने मकरान के गवर्नर सईद बिन असलम की हत्या कर दिय और राजा दाहिर की पनाह प्राप्त कर ली, -हजाज बिन यूसुफ (जो इराक के गवर्नर थे)- ने इसकी वापसी की मांग की, दाहिर ने स्पष्ट उनका इनकार कर दिया,
दूसरी तरफ़ लंका के राजा ने हजाज को कुछ महंगे तोहफ़े भेजे जो कश्ती से आ रहे थे, इस कश्ती में कुछ अरब मुस्लिम महिलाएँ भी थीं, ये किनारे के साथ आ रहे थे, देबल (जो मौजूदा कराची के पास था) में समुद्री डाकूओं ने इस काफिला को लूट लिया, यह क्षेत्र दाहिर के अधीन था, कुछ लोग बचकर हजाज के पास पहुंचे और उसने राजा दाहिर से लड़कियों की रिहाई और सामान वापस मांगा, लेकिन दाहिर ने इस पर ध्यान नहीं दिया और इस बहाने करके मदद से इनकार कर दिया कि मेरा उन पर कोई अधिकार नहीं है।
तीसरी बात यह थी कि राजा दाहर से पहले यहाँ चंदर और चच हाकिम रहे जो बौद्ध धर्म के पक्षधर थे, उसने बौद्धों पर बड़े ज़ुल्म ढाए, उसका हाल यह था कि उसके ख़ानदान के अलावा किसी को पगड़ी बाँधने की इजाज़त नहीं थी, आमआदमी को घोड़े पर सवारी करने की ममानत तकनहीं थी, आवाम उसके ज़ुल्म से आज़िज़ थी; इसलिए सिंध के मज़लूम आवाम के एक वक़्त ने भी हजाज बिन यूसुफ से राजा दाहिर की शिकायत की और सिंध पर हमला करने की दावत दी।
इसके बाद हजाज बिनयूसुफ ने सिंध पर हमला करने की इजाज़त दे दी, उसने एक फौजी लश्कर उबैदुल्लाह की कयादत में भेजा, वह शहीद हो गए, फिर तीन हज़ार पर मुश्तमिल एक दूसरा फौजी दस्ता बदील की कयादत में भेजा, उसने भी हार मिली,
अब उसकी नज़र मुहम्मद बिन कासिम पर पड़ी और इस मुहिम के लिए बारह हज़ार मुजाहिदीन जिसमें छह हज़ार शामी और छह हज़ार इराकी फौजी थे और इस लश्कर के साथ पत्थर बरसाने वाली एक मंज़नीक जिसका नाम “अरूस” था भेजा, फिर स्थानीय मज़लूम आवाम भी इसमें शामिल हो गए, यहाँ तक कि यह फौज दीबल के बंदरगाह पर पहुंची तो फौज की तादाद उन्निस हज़ार हो चुकी थी, दीबल फतह हो गया और दाहिर अपनी फौज के साथ भाग गया,
उसके साथ दस हज़ार सवार और तीस हज़ार पैदल सिपाही थे और उसे अपने हाथियों के दस्ते पर बहुत नाज़ था, मुहम्मद बिन कासिम ने आगे बढ़कर ब्रह्मणाबाद, फिर अरवर्ड को फतह किया, यहाँ तक कि मुल्तान जो उस समय सिंध का केंद्र था, वह भी फतह हो गया, मुहम्मद बिन कासिम ने राजा दाहिर के स्थापित किए गए ऊंच,नीच के निज़ाम को ख़त्म किया, सब के साथ इंसाफ और बराबरी का सुलूक किया, हिन्दू आबादी गाँवों और पूजारियों को अतिया(वजीफा)दिया, स्थानीय आवाम उसकी रहमदिली से बहुत प्रभावित हुई,
इतिहासकारों ने बयान किया है कि जब मुहम्मद बिन कासिम सिंध से वापस रवाना हुए तो वहाँ के गैर मुसल्मान आवाम रो रहे थे और लोगों के प्रभाव का हाल यह था कि मौजूदा “कुछ” जिसका नाम उस समय “कीरच” था में उनकी मूर्ति बनाकर लम्बे समय तक पूजा की गई।
यहां साफ़ मालूम पड़ रहा है के ये वही जंग है जिसे रसूल अल्लाह ﷺ की पेशनगोइ में “गजवा ए हिंद” कहा गया है, यहीं सिंध और हिंद की पहली फौजकशी थी, यह बात यहाँ भी उल्लेखनीय है कि इस समय जिस क्षेत्र को हम भारत कहते हैं, उस समय का हिंद का नक्शा इससे काफ़ी अलग था; बल्कि इतिहास से पता चलता है कि हज़ारों साल पहले जब आर्य इस देश में आए तो उन्होंने इस क्षेत्र का नाम “सिंध” रखा; क्योंकि वह अपनी भाषा में नदी को “सिंधु” कहते थे।
शुरूआत में वह इस देश को सिंधु कहते रहे, मगर आहिस्ता आहिस्ता वह इसे सिंध कहने लगे, इरानीयों ने अपने लहजे में सिंध को “हिंद” कर डाला और यूनानी ने “ह” को इसके क़रीबउलमुखरज हर्फ़ से बदल कर “अंद” कर दिया, रूमियों में यह शब्द “अंद” से “इंडिया” हो गया, और अंग्रेज़ी भाषा में क्योंकि “द” नहीं; इसलिए वह “इंडिया” बन गया। जो “हिंद” मौजूदा पाकिस्तान का क्षेत्र था, दरियाई सिंध के एक तरफ का क्षेत्र सिंध और दूसरी तरफ का हिंद कहलाता था;
इसलिए हदीस में जिस हिंद का ज़िक्र आया है, वह मौजूदा भारत नहीं है, जिसमें हम लोग रहते हैं, और जिसकी राजधानी दिल्ली है,
अब यहां कुछ बातें पता चलती हैं
- 1 ये जंग हो चुकी
- 2 हिन्द से मुराद दरिया ए सिंध का इलाका है इसकी भी जंग हो चुकी है
- 3 ये के ये जंग कयामत की क़रीब होगी दज्जाल के दौर में
- 4 अगर ये मन भी लिया जाए के इस से मुराद मोजूद हिंदुस्तान है तो यहां ये माना जा सकता है के आम तौर पर होने वाले झगड़े इस से मुराद हो सकते हैं जैसा कि आज कल बहुत देखने को मिल रहा है
- 5 असल हकीकत क्या है ये सिर्फ़ अल्लाह और उसका रसूल जानते हैं