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कर्बला के झूठे किस्से

कर्बला की घटना को बयान करने में सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि हजरत सैयदना इमाम हुसैन रज़ि. के काफिले के बचे हुए लोगों में से किसी ने भी अपनी पूरी जिंदगी में इस घटना की पूरी जानकारी नहीं दी। अगर उन व्यक्तियों से कुछ आंशिक जानकारी मिली भी, तो वह ऐसी नहीं थी जो सबाई योजना को पूरा करने में सहायक साबित हो। इसलिए, इस त्रासदी को असाधारण रूप से बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए झूठ और अपमान पर आधारित ऐसे-ऐसे किस्से मशहूर किए गए कि अगर सबाई मानसिकता को ध्यान में रखते हुए सरसरी निगाह से भी उनका अध्ययन किया जाए, तो यह झूठ पूरी तरह उजागर हो जाता है।

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1- मुस्लिम बिन अकील रज़ि. के बेटों की शहादत

इब्राहीम और मुहम्मद रज़ि. की कूफ़ा जाते हुए रास्ते में शहादत का वाक़या बिल्कुल मनगढ़ंत है। इतिहास की किसी भी विश्वसनीय किताब में यह वाक़या मौजूद नहीं है। इमाम मुस्लिम के बच्चों का अफ़साना सबसे पहले आसिम अल-कूफ़ी ने अपनी किताब ‘अल-फुतूह’ में लिखा, लेकिन उसने भी सिर्फ उनके क़ैद होने का ज़िक्र किया है। अलबत्ता मुल्ला हुसैन काशिफ़ी ने ‘रौज़त अल-शुहदा’ में उनकी शहादत का शोर मचाया। यही सबसे पहला स्रोत है जिसमें इब्राहीम और मुहम्मद की शहादत का ज़िक्र है। इस अफ़साने को खुद विश्वसनीय शिया लेखकों ने भी बेबुनियाद क़रार देकर रद्द कर दिया है।

मिर्ज़ा तक़ी शिया अपनी किताब ‘नासिख अल-तवारीख’ में लिखते हैं:

“मालूम हो कि मुहम्मद और इब्राहीम बिन मुस्लिम की शहादत का वाक़या पहले की किताबों में नहीं मिलता। सबसे पहले आसिम (आसिम अल-कूफ़ी) ने इस वाक़ये को बयान किया है, लेकिन उसने साफ़ लिखा है कि इमाम मुस्लिम रज़ि. के दोनों बेटे मुहम्मद और इब्राहीम करबला में थे, लेकिन दूसरे अहल-ए-बैत रज़ि. के साथ इब्न ज़ियाद के हाथों गिरफ़्तार हुए। शहादत की बात सबसे पहले मुल्ला हुसैन काशिफ़ी ने ‘रौज़त अल-शुहदा’ में लिखी। मैंने भी इसी से लेकर यह वाक़या लिखा है, लेकिन सच्ची बात यह है कि यह बिल्कुल ग़ैर-मुतबर वाक़या है।”

(मज़ीद तफ्सील के लिए ‘मिज़ान अल-कुतुब’ पृष्ठ 707 से 710 पढ़ें।)

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2- जुलजनाह घोड़े का किस्सा भी झूठा है

जब इमाम हुसैन रज़ि. के साथ सफर-ए-कर्बला में खुद घोड़ा साबित नहीं है, तो जुलजना कैसे साबित हो सकता है?

मिर्ज़ा तक़ी शिया लिखते हैं:

“यह जो लोगों ने इमाम हुसैन रज़ि. का जुलजना नामी घोड़ा मशहूर कर रखा है, मुझे तो यह नाम हदीस, तारीख, और अखबारी किताबों में कहीं भी नहीं मिला है। हकीकत तो यह है कि शिमर बिन लहिया नामी शख्स का लकब जुलजना था।”

जब इमाम हुसैन रज़ि. मदीना से रवाना हुए, तो घोड़े का कहीं भी नामो-निशान नहीं है, बल्कि आप ऊंटनी पर सवार थे और जुलजना तो शिमर नामी एक शख्स का लकब था। “फआखज़ मुहम्मद बिन अल-हनीफ़िया ज़िमाम नाक़तह” यानी इमाम हुसैन रज़ि. के भाई हजरत मुहम्मद बिन हनफिया रज़ि. ने ऊंटनी की लगाम पकड़ कर आपको रोकना चाहा। (ज़बह अज़ीम, पृष्ठ 165, डॉ. ताहिर-उल-कादरी, ब-हवाला मक़तल अबू मुख़नफ)

कूफ़ा जाते हुए रास्ते में जब फ़रज़्दक नामी शायर से मुलाक़ात हुई, तो आप ऊंटनी पर ही सवार थे। इमाम हुसैन ने कूफ़ा जाते हुए रास्ते में कुछ पल फ़रज़्दक से मुलाक़ात की और कूफ़ियों का हाल पूछा और फिर अपनी ऊंटनी को चलाते हुए अस्सलामु अलैक कह कर आगे बढ़ गए।तारीख-ए-तबरी (पृष्ठ 218, खंड 6)

इमाम हुसैन रज़ि. जब कर्बला पहुंचे, तब भी ऊंटनी पर ही सवार थे। उन्होंने फरमाया, “यह कर्बला है, जो दुखों की जगह है। यह हमारी ऊंटनियों के बैठने की जगह है, और यह हमारे कजावे रखने की जगह है और यह हमारे मर्दों की शहादत गाह है।” (कश्फ़-उल-गुम्मा, पृष्ठ 347)

दौरान-ए-जंग इमाम हुसैन रज़ि. ने जो खुत्बा दियाउस वक्त भी आप ऊंटनी पर सवार थे।

तर्जुमा: जब इमाम हुसैन रज़ि. आखिर में तन्हा रह गए, तो ऊंटनी पर सवार होकर लोगों की तरफ मुतवज्जह हुए और बुलंद आवाज़ से लोगों को खुत्बा दिया जिसे सब लोग सुन रहे थे। (अल-कामिल, इब्न अल-असीर अल-जज़री, पृष्ठ 61, खंड 4)

जब इमाम हुसैन रज़ि. मदीना से चले, तो मस्नात नामी ऊंटनी पर सवार थे। रास्ते में फरज़्दक से मिले, तो भी ऊंटनी पर सवार थे और कर्बला पहुंचे, तो भी ऊंटनी पर सवार थे। और आखिर में खुत्बा दिया, तो भी ऊंटनी पर सवार थे। तो फिर जाने बाद में जुलजना नामी घोड़ा कहां से आ गया?

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3- कर्बला में पानी की स्थिति

कर्बला में अहल-ए-बैत रज़ि. प्यासे थे और पानी पीने के लिए तरस रहे थे। हालांकि, हाफ़िज़ इब्न कसीर ने साफ़ लिखा है कि कर्बला में इस कदर पानी मौजूद था कि इमाम हुसैन और उनके साथी रज़ि. ने दसवीं मुहर्रम को फजर की नमाज़ के बाद उस पानी से गुस्ल किया:

तर्जुमा: इमाम हुसैन रज़ि. उस खेमे की ओर गए, फिर आपने वहां गुसल किया और बहुत सारी मुश्क की खुशबू लगाई, और उसके बाद बहुत से अमीर आए जिन्होंने आपकी तरह किया यानी नहाए और खुशबू लगाई। (अल-बिदायह वल-निहायह, पृष्ठ 164, खंड 8)

मुल्ला बाक़िर मजलिसी और आसिम अल-कूफ़ी की रिपोर्ट

मुल्ला बाक़िर मजलिसी शिया ने ‘मजमा’ अल-बहार’ में और आसिम अल-कूफ़ी ने ‘अल-फुतूह’ में दसवीं मुहर्रम की सुबह तक ठीक मात्रा में पानी का ज़िक्र किया है:

तर्जुमा: फिर इमाम रज़ि. ने अपने साथियों से कहा, उठो, पानी पी लो, शायद यह तुम्हारे लिए इस दुनिया में पीने की आखिरी चीज हो, और वज़ू करो, नहाओ और अपने कपड़े धो लो ताकि वे तुम्हारे कफन बन सकें। इसके बाद इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ जमात के साथ फजर की नमाज़ अदा की। (बहार-उल-अनवार, पृष्ठ 217, खंड 44)

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4- कर्बला की घटना विरोधाभास

यदि कर्बला की घटना के बारे में केवल कुछ किताबों का अध्ययन किया जाए, तो विभिन्न लेखकों द्वारा वर्णित घटनाओं में इतना भिन्नता और विरोधाभास दिखाई देता है कि पाठक चकित रह जाता है। आधुनिक युग के लेखकों की पुस्तकों और पत्रिकाओं की बात छोड़ दें, ऐतिहासिक दृष्टि से मान्य किताबों में भी इस घटना के बारे में इतना भिन्न वर्णन मिलता है कि एक किताब की कहानी दूसरी किताब से भिन्न हो जाती है, और ये किताबें स्वयं भी इस घटना के बारे में शुरुआत से अंत तक किसी बात पर सहमत नहीं होतीं।

एक रावी कर्बला के मैदान को एक सूखा और वीरान रेगिस्तान बताता है, जबकि दूसरा इसे बांस और नारियल के घने जंगल के रूप में प्रस्तुत करता है। कभी इमाम हुसैन रज़ि. के हत्यारों को शहीदों की लाशों का कुचलना और उनकी अत्यंत अपमानजनक स्थिति में दिखाया जाता है, यहाँ तक कि शहीदों की लाशों पर घोड़े दौड़ाए जाते हैं, और कभी इन हत्यारों को अपने अपराध पर शर्मिंदा और मातम करते हुए दिखाया जाता है।

इन मनगढ़ंत कथाओं में एक दृश्य ऐसा भी है जिसमें इमाम हुसैन रज़ि. के परिवार के बच्चे कर्बला की झुलसाने वाली गर्मी में पानी के बिना तड़पते हुए नजर आते हैं, जबकि दूसरे बयान में लोग इस पानी का उपयोग न केवल स्नान के लिए करते हैं, बल्कि अपने शरीर को मुश्क की खुशबू से महकाते हैं। आज जिस समाज ने हजरत अली असगर रज़ि. की प्यास के बहाने दुआ और मन्नतें मांगी हैं, उसने यह भी महसूस नहीं किया कि इस तरह इमाम हुसैन रज़ि. की शख्सियत को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। एक ओर तो हजरत अली असगर रज़ि. की प्यास का शोर मचाया जाता है, और दूसरी ओर पानी का इस कदर उपयोग किया जाता है कि न केवल एक व्यक्ति, बल्कि कई लोग पानी से स्नान करते हैं।

अब आइए देखते हैं कि हजरत हुर बिन यजीद रज़ि. के बारे में क्या बयान किया गया है:

अनुवाद: हे कूफा के लोगों, तुमने हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु को अपने पास बुलाया, और जब वे तुम्हारे पास आ गए, तो तुमने उन्हें और माए-फुरात (फुरात नदी) के बीच में बाधा डाल दी, जिस पानी में से कुत्ते और सूअर भी पीते हैं। तुमने उन्हें प्यास से तड़पा दिया।
(अल-बदाया वल-नहाया, जिल्द 8, पृष्ठ 166)

इस रिवायत से यह बात साबित होती है कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु पर फुरात का पानी बंद कर दिया गया था। इसके साथ ही यह भी पता चलता है कि पानी की बंदिश का यह ظालिमाना कदम उठाने वाले कूफी थे, जिन्होंने पहले तो हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु को खत लिखकर बुलाया और बाद में उन्हें बेगुनाह शहीद कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि कूफी कौन थे? और कैसे उन्होंने हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु को बुलाने के बाद उनके कत्ल में शामिल हो गए? यह एक स्वतंत्र बहस है। उपरोक्त रिवायत से यह पता चलता है कि कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु के परिवार पर पानी बंद कर दिया गया था और उनके पास प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं था। इसके विपरीत, तस्वीर के दूसरे रुख में हमें क्या दिखाया जाता है,

इसके विपरीत, दूसरे पक्ष की तस्वीर क्या दिखायी जाती है, उदाहरण के लिए:

अनुवाद: फिर इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु खेमे की तरफ आए जो लगाया गया था, फिर आपने वहाँ गुस्ल किया और बहुत सी मस्क की खुशबू लगाई और उनके बाद बहुत से उमरा’ अंदर आए जिन्होंने आप की तरह ही किया (यानी गुस्ल किया और खुशबू लगाई)।
(अल-बदाया वल-नहाया, जिल्द 8, पृष्ठ 164, चिश्ती)

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अगर कर्बला के वाकये के बारे में गढ़ी गई अन्य कहानियों को ध्यान में रखा जाए, तो इन दोनों रिवायतों में से किसी एक के भी सच्चे होने का दावा नहीं किया जा सकता। लेकिन इस दूसरी रिवायत की मौजूदगी में पानी की बंदिश और काफिला-ए-इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु की प्यास के किस्से कम से कम शक के घेरे में जरूर आ जाते हैं। यह तो एक छोटी सी मिसाल है, वरना सानिहा-ए-कर्बला के बारे में तारीखी किताबों में इस तरह की मुतज़ाद रिवायतें आम पाई जाती हैं।

5- कर्बला के मैदान की हालत

मशहूर है कि कर्बला बेजान और सूखा मैदान था, यह गलत है। हकीकत यह है कि कर्बला में नरकुल और बांस का जंगल था, यह रेगिस्तान नहीं था। यह मैदान दरिया-ए-फुरात या उससे निकलने वाली नहर के किनारे था। तबरी की रिवायत में है कि असहाब-ए-इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु को तजुर्बा हुआ था कि ज़रा सा खोदने पर पानी निकल आया। यह गलत फैलाई गई कि कर्बला रेतीला इलाका था।

इब्न ज़ियाद ने कहा कि मुझे खबर मिली है कि इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु और उनके औलाद व असहाब रज़ी अल्लाहु अन्हुम ने पानी पीने के लिए कुएं खोद रखे हैं और मैदान में मुख्तलिफ जगहों पर अपने झंडे गाड़ रखे हैं। खबरदार, जब तुम्हें मेरा यह खत मिल जाए, तो उन्हें और कुएं खोदने से रोक दो और उन्हें इतना तंग करो कि वे फुरात का एक कतरा भी न पी सकें।(अल-फुतूह, पृष्ठ 91, जिल्द 5, चिश्ती)

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6- हज़रत अली असगर की प्यास

छह माह के हजरत अली असगर रज़ी अल्लाहु अन्हु और उनकी प्यास की अफसाने वाली कहानी भी गलत है। हकीकत यह है कि जनाब अली असगर रज़ी अल्लाहु अन्हु शहीद-ए-कर्बला में शामिल हैं। लेकिन यार, मुबालगा करने की भी कोई हद होती है।

आम तौर पर वाइज़िन कहते हैं कि शहज़ादा अली असगर रज़ी अल्लाहु अन्हु को इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु ने यजीदियों के सामने ले जाकर पानी माँगा। यह पानी माँगने का भी फर्जी किस्सा “खाक-ए-कर्बला” जैसी किताबों में बिना हवाले के दर्ज है और बिला तहक़ीक और ग़ौर-ओ-ख़ौज़ के अवाम-ओ-नास में बयान किया जाता है। जबकि यह वाक़या इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु की शान-ए-अज़ीमत के बिल्कुल खिलाफ है और उनके शायान-ए-शान कतई नहीं है।

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7- हज़रत बीवी सुगरा और आपका घोड़ा

कमसिन हजरत बीबी सुगरा को इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु मदीना में छोड़कर कूफा रवाना हुए और कमसिन सुगरा रज़ी अल्लाहु अन्हा का घोड़े के पैर से चिपटना, आने-जाने वालों को अन्दोहनाक पेगामात देना, ये सब अफसाने हैं। हालाँकि हजरत बीबी फातिमा (यानी सुगरा) रज़ी अल्लाहु अन्हा मैदान-ए-कर्बला में इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु के साथ थीं और दीगर मस्तूरात मुतह्हारात रज़ी अल्लाहु अन्हुन के साथ क़ैद हुईं।

अल-कामिल में इब्न अल-असीर लिखते हैं:

“फिर इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु के खानदान की औरतें अंदर लाई गईं और इमाम हुसैन का सर-ए-मुबारक उनके सामने रखा गया, तो सैयदा फातिमा (सुगरा) और सैयदा सकीना रज़ी अल्लाहु अन्हुमा आगे बढ़ने लगीं ताकि सर-ए-मुबारक को देख सकें।”(अल-कामिल लि इब्न अल-असीर, पृष्ठ 85, जिल्द 4)

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8- कर्बला में हज़रत क़ासिम की शादी

कर्बला के मैदान में इमाम क़ासिम रज़ी अल्लाहु अन्हु की शादी का किस्सा भी गलत है। यह गढ़ा हुआ तोमार भी मोलाना हुसैन काशफी ने सबसे पहले रौज़त-उश-शोहदा में बयान किया है और खुद शिया अकाबिर ने भी इस वाकये को गलत करार देकर रद्द कर दिया है।

मुल्ला हुसैन वाइज़ काशफी सुन्नी नहीं हैं और उनकी किताब “रौज़त-उश-शोहदा” झूठे किस्से कहानियों पर आधारित है। इमाम मुस्लिम बिन अकील के बच्चों का वाक़या, हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक और इमाम ज़ैनुल आबिदीन रज़ी अल्लाहु अन्हुम का किस्सा वगैरह सब झूठ है। लेकिन फिर भी कुछ लोग इन वाक़यात को मानना चाहते हैं, तो उन्हें चाहिए कि साथ ही साथ इस किस्से को भी मानें, जिसे मैं यहां नक़ल कर रहा हूँ:

मुल्ला हुसैन वाइज़ काशफी लिखते हैं कि हज़रत कासिम ने इमाम हसन का वसीयतनामा इमाम हुसैन को दिया। इमाम हुसैन उसे देखकर रोने लगे, फिर फ़रमाया कि “ए कासिम, यह तेरे लिए तेरे अब्बा जान की वसीयत है और मैं इसे पूरा करना चाहता हूँ।” इमाम हुसैन खेमे के अंदर गए और अपने भाइयों हज़रत अब्बास और हज़रत औन को बुलाकर जनाब कासिम की वालिदा से फ़रमाया कि वे कासिम को नए कपड़े पहनाएं और अपनी बहन हज़रत ज़ैनब को फ़रमाया कि मेरे भाई हसन के कपड़ों का संदूक लाओ।

संदूक पेश किया गया, तो आपने उसे खोला और उसमें से इमाम हसन की ज़िरह निकाली और अपना एक क़ीमती लिबास निकालकर इमाम कासिम को पहनाया और खूबसूरत दस्तार निकालकर अपने हाथ से उनके सर पर बांधी और अपनी साहिबजादी का हाथ पकड़कर फ़रमाया कि “ए कासिम, यह तेरे बाप की अमानत है, जिसने तेरे लिए वसीयत की है।” इमाम हुसैन ने अपनी साहिबजादी का निकाह हज़रत कासिम से कर दिया। (रज़ी अल्लाहु अन्हुम)

इस किताब का तर्जुमा करने वाले साइम चिश्ती साहब ने इस रिवायत के बारे में लिखा है कि अगर यह निकाह हुआ था, तो इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु ने अपने भाई की वसीयत पर अमल किया होगा, वर्ना इन हालात में निकाह वगैरह का मामला इंतिहाई नामुनासिब और ग़ैर मौज़ूं है।(रौज़त-उश-शोहदा, तर्जुमा उर्दू, जिल्द 2, पृष्ठ 297, चिश्ती)

इसी किस्से के बारे में इमाम अहल-ए-सुन्नत, आला हज़रत रहमतुल्लाहि अलैह से सवाल किया गया कि हज़रत कासिम रज़ी अल्लाहु अन्हु की शादी का मैदान-ए-कर्बला में होना, जिस बुनियाद पर मेहंदी निकाली जाती है, अहल-ए-सुन्नत के नज़दीक साबित है या नहीं?इमाम अहल-ए-सुन्नत रहमतुल्लाहि अलैह ने फ़रमाया कि न यह शादी साबित है, न यह मेहंदी, सिवाय एक तख़लीक़ी बात के कुछ भी नहीं है (यानी यह बनाई हुई बातें हैं)।(फतावा रज़विया, जिल्द 24, पृष्ठ 502)

शेख-उल-हदीस हज़रत अल्लामा मोहम्मद अली नक़्शबंदी रहमतुल्लाहि अलैह लिखते हैं कि यह तमाम बातें मनगढ़ंत और अहल-ए-बैत रज़ी अल्लाहु अन्हुम पर बहुतान अज़ीम हैं। इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु की दो साहिबजादियां थीं और वाक़िया-ए-कर्बला से पहले दोनों की शादी हो चुकी थी। (मिज़ान-उल-कुतुब, पृष्ठ 246)

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9- कर्बला में कितने यज़ीदी मारे गए

कर्बला की बहुत सी झूटी कहानियों में से एक और अतिशयोक्ति भरी कहानी यह बयान की जाती है कि हजरत इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु ने दुश्मन फौज के हजारों बल्कि लाखों अफराद को अपने हाथ से कत्ल किया और यही दावा उनके कुछ रफक़ा के मुताल्लिक भी किया गया है कि उनमें से कुछ ने सैंकड़ों दुश्मनों को कत्ल किया और कश्तों के पुश्ते लगा दिए। इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु के मुताल्लिक तो कुछ रिवायतों में यह तादाद दो हजार और कुछ शिया रिवायतों में तीन लाख तक भी आई है।

इन रिवायतों के अतिशयोक्ति का अंदाज़ा इस से लगाया जा सकता है कि अगर हर आदमी के साथ मुकाबला करने और उसे पछाड़ कर कत्ल करने के लिए अगर एक मिनट भी दरकार हो, तो दो हजार अफराद को कत्ल करने के लिए दो हजार मिनट तो चाहिए होंगे। यह लगभग तैंतीस घंटे बनते हैं। जबकि अबू मिख्नफ की रिवायतों से मालूम होता है कि सानिहा-ए-कर्बला महज एक आध पहर में होकर खत्म हो गया था। खुद शिया मुहक़्क़िन में से शहर बिन आशूब ने यजीदी मक़तूलीन की कुल तादाद चार सौ छत्तीस बताई है।(अल-मनाक़िब, लि इब्न शह्र आशूब, पृष्ठ 99, जिल्द 4)

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इन वाक़यात के अलावा मस्तूरात-ए-मुतह्हारात रज़ी अल्लाहु अन्हुन के बेजा बेपर्दा होने की होलनाक कहानियाँ, खेमे जलाए जाने का ज़िक्र, इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु के ज़ख्मों का ज़िक्र, शोहदा की तादाद का बेहतर (72) होना भी ग़ैर तहक़ीकी है। तहक़ीक के मुताबिक, यह तादाद एक सौ उन्तालीस तक है और कुछ ने ज़्यादा भी बताई।

कर्बला की घटनाओं से संबंधित कई झूठी कहानियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कुछ का यहां उल्लेख किया गया है। इनमें शहीदों की लाशों को रौंदा जाना, उनके शरीर का विकृति किया जाना जैसी घटनाएं शामिल हैं, जो वास्तविकता पर आधारित नहीं हैं।

इसके अलावा, इमाम हुसैन रज़ी अल्लाहु अन्हु का एक नाम शब्बीर (जो ज़ुबैर के वजन पर है) भी है, और उनकी एक बेटी का नाम सैयदा सकीना (जो सुईबा के वजन पर है) है। इन नामों के साथ कर्बला और अन्य अवसरों पर कई झूठी और अविश्वसनीय कहानियाँ जोड़ दी गई हैं। सैयदना अली असग़र का असली नाम अब्दुल्लाह बिन हुसैन है रज़ी अल्लाहु अन्हुम।

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Hijrat e Habsha | Prophet Muhammad History in Hindi Part 24 ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈Seerat e Mustafa Qist 24 ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈ यह हबशा की तरफ दूसरी हिजरत थी। पहली हिजरत का ज़िक्र Part 21 में किया गया है इस हिजरत में अड़तीस मर्दों और बारह औरतों ने हिस्सा लिया। इन लोगों में हज़रत जाफर बिन अबू तालिब (रज़ि.) और … Read more
Boycott of Muslims | Prophet Muhammad History in Hindi Part 23

boycott of muslims | prophet muhammad history in hindi part 23

जब मुसलमान खुलकर सब कुछ करने लगे जैसे काबे का तवाफ नमाज़ और दिन की तबलीग तो तमाम क़ुरैश ने मिलकर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल करने का फैसला किया। Boycott of Muslims | Prophet Muhammad History in Hindi Part 23
hazrat umar ka iman lana | prophet muhammad history in hindi part 22

hazrat umar ka iman lana | prophet muhammad history in hindi part 22

ज़ुल्म की वजह से मुसलमानों ने हिजरत करना शुरू कर दी थी ज़ुल्म करने में बाक़ी लोगों के साथ साथ Hazrat Umar भी आगे आगे थे
Huzur ki Gustakhiyan | Prophet Muhammad History in Hindi Part 21

Huzur ki Gustakhiyan | Prophet Muhammad History in Hindi Part 21

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Mushrikon ke Sawalat | Prophet Muhammad History in Hindi Part 20

Mushrikon ke Sawalat | Prophet Muhammad History in Hindi Part 20

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chand ke do tukde kisne kiye the

chand ke do tukde kisne kiye the | Prophet Muhammad History in Hindi Part 19

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Chand ki Tarikh Today

chand ki tarikh today | hijri date today

Chand Ki Tarikh Today | Hijri Date Today
Sahaba Par Zulm o Sitam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 18)

Sahaba Par Zulm o Sitam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 18)

Sahaba Par Zulm o Sitam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 18) ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈Seerat e Mustafa Qist 18 ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈ अब्दुल्लाह बिन मसऊद पर ज़ुल्म एक दिन सहाबा-ए-कराम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गिर्द जमा थे। ऐसे में किसी ने कहा:“अल्लाह की कसम! क़ुरैश ने आज तक नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अलावा किसी और … Read more
Hazrat Bilal Ka Waqia (Prophet Muhammad History in Hindi Part 17

Hazrat Bilal Ka Waqia (Prophet Muhammad History in Hindi Part 17

Hazrat Bilal Ka Waqia (Prophet Muhammad History in Hindi Part 17
Hazrat Hamza ka Iman Lana (Prophet Muhammad History in Hindi Part 16)

Hazrat Hamza ka Iman Lana (Prophet Muhammad History in Hindi Part 16)

Hazrat Hamza ka Iman Lana (Prophet Muhammad History in Hindi Part 16) ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈Seerat e Mustafa Qist 16 ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈ क़ुफ़्फ़ार का यह ज़ुल्म व सितम जारी रहा। ऐसे में एक दिन हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफ़ा की पहाड़ी के पास मौजूद थे। अबू जहल आपके पास से गुज़रा। उसने आपको देख लिया और गालियाँ देने लगा, … Read more
Kafiron Ka Zulm (Prophet Muhammad History in Hindi Part 15)

Kafiron Ka Zulm (Prophet Muhammad History in Hindi Part 15)

Kafiron Ka Zulm (Prophet Muhammad History in Hindi Part 15) ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈Seerat e Mustafa Qist 15 ┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈ काफ़िरों का ज़ुल्म (पैगम्बर मुहम्मद का इतिहास भाग 14) क़त्ल की साज़िश कुरैश यह कहकर चले गए, अबू तालिब परेशान हो गए। वे अपनी कौम के गुस्से से अच्छी तरह वाकिफ थे। दूसरी ओर वे यह पसंद नहीं कर … Read more
Ramadan 2025

ramadan 2026

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Preaching of Islam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 14)

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Preaching of Islam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 14) इस्लाम का प्रचार (पैगम्बर मुहम्मद का इतिहास भाग 14)
Hazrat Isa Alaihis Salam Story in Hindi Part 3

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Hazrat Isa Alaihis Salam Story in Hindi Part 2

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Hazrat Isa Alaihis Salam Story in Hindi Part 1

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Ashab e Feel ka Waqia in Hindi

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ashab e ukhdood in quran || people of tubba

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A place of qaum e saba

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qaum e saba ka waqia सबा और सैले इरम
Yajuj Majuj || Yajooj Majooj in Hindi

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Hazrat Luqman in Hindi

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Ashab e Kahf Name and History

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Hazrat Uzair Alaihissalam and Hazrat Zulkifl Alaihissalam Hindi

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hazrat yunus alaihis salam

hazrat yunus alaihis salam Hindi

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hazrat ayyub alaihissalam hindi

hazrat ayyub alaihissalam hindi

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Hazrat Suleman Alaihissalam History in Hindi

Hazrat Suleman Alaihissalam History in Hindi

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hazrat dawood alaihis salam history

hazrat dawood alaihis salam history

यही नवजवान आगे चलकर अल्लाह के बरगज़ीदा और पैग़म्बर बने और बनी इसराईल की रुश्द व हिदायत के लिए रसूल और उनके इज्तिमाई नज़्म व ज़ब्त के लिए ख़लीफ़ा मुक्रर्रर हुए। तालूत की मौजूदगी में ही या उनकी मौत के बाद हुकूमत की बागडोर हज़रत दाऊद (अलै.) के हाथ में आ गई। hazrat dawood alaihis salam history

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