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Year of Sorrow in Islam | Prophet Muhammad History in Hindi Part 25
Table of Contents
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Seerat e Mustafa Qist 25
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नजराान के वफ्द का मुसलमान होना
शोबे अबी तालिब और हब्शा के वाकये के बाद नजराान का एक वफ्द आप ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। ये लोग ईसाई थे। नजराान इनकी बस्ती का नाम था। ये बस्ती यमन और मक्का के दरमियान वाके थी और मक्के से करीबन सात मंज़िल दूर थी। इस वफ्द में बीस आदमी थे। नबी करीम ﷺ के बारे में उन्हें उन मुहाजिरीन से मालूम हुआ था जो मक्का से हिजरत करके हबशा चले गए थे।
हुज़ूर ﷺ उस वक्त हरम में थे। ये लोग आपके सामने बैठ गए।
इधर कुरैश-ए-मक्का भी आस-पास बैठे थे। उन्होंने अपने कान आप ﷺ और इस वफ्द की बातचीत की तरफ़ लगा दिए।
जब नजराान के ये लोग आप ﷺ से बातें कर चुके तो आपने उन्हें इस्लाम की दावत दी। कुरआन करीम की कुछ आयतें पढ़कर सुनाईं। आयतें सुनकर उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनके दिलों ने इस कलाम की सच्चाई की गवाही दे दी। चुनांचे फ़ौरन ही आप ﷺ पर ईमान ले आए। इन लोगों ने अपनी मज़हबी किताबों में आनहज़रत ﷺ की सिफ़ात और ख़बरें पढ़ रखी थीं। इस लिए आपको देखकर पहचान गए कि आप ही नबी आख़िरुज़्ज़मां हैं।
इसके बाद ये लोग उठकर जाने लगे तो अबू जहल और चंद दूसरे क़ुरैशी सरदारों ने उन्हें रोका और कहा:
“ख़ुदा तुम्हें रुस्वा करे, तुम्हें भेजा तो इस लिए गया था कि तुम यहां इस शख्स के बारे में मालूमात हासिल करके उन्हें बताओ मगर तुम इसके पास बैठकर अपना दीन ही छोड़ बैठे… तुमसे ज़्यादा अहमक और बेअक़ल क़ाफ़िला हमने आज तक नहीं देखा।”
इस पर नजराान के लोगों ने कहा:
“तुम लोगों को हमारा सलाम है… हमसे तुम्हें क्या वास्ता, तुम अपने काम से काम रखो, हमें अपनी मर्ज़ी से काम करने दो।”
अल्लाह तआला ने सूरह अल-माइदा में इनकी तारीफ बयान फ़रमाई।
झाड़-फूंक करने वाले का मुसलमान होना
इसी तरह कबीला अज़्द के एक शख्स जिनका नाम ज़माद था, मक्का आए। ये साहब झाड़-फूंक से जिन्नात का असर ज़ाइल किया करते थे। मक्का के लोगों को उन्होंने यह कहते सुना कि “मोहम्मद पर जिन्न का असर है।”
यह सुनकर उन्होंने कहा:
“अगर मैं इस शख्स को देख लूं तो शायद अल्लाह तआला उसे मेरे हाथ से शिफ़ा अता फ़रमा दे।”
इसके बाद वो आप ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुए। उनका बयान है, मैंने आप से कहा:
“ऐ मोहम्मद! मैं झाड़-फूंक से इलाज करता हूँ, लोग कहते हैं कि आप पर जिन्नात का असर है। अगर बात यही है तो मैं आपका इलाज कर सकता हूँ।”
इनकी बात सुनकर आप ﷺ ने फ़रमाया:
“तमाम तारीफ अल्लाह ही के लिए है, हम उसी की हम्द व सना बयान करते हैं और उसी से मदद मांगते हैं। जिसे अल्लाह तआला हिदायत फ़रमाता है, उसे कोई गुमराह नहीं कर सकता और जिसे अल्लाह तआला गुमराही नसीब करता है, उसे कोई हिदायत नहीं दे सकता। मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह तआला के सिवा कोई माबूद नहीं, उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।”
उन्होंने आपकी बात सुनकर कहा:
“ये कलिमात मेरे सामने दोबारा पढ़िए।”
आप ने कलिमा शहादत तीन मर्तबा दुहराया। तब उन्होंने कहा:
“मैंने काहिनों के कलिमात सुने हैं। जादूगरों और शायरों के कलिमात भी सुने हैं। मगर आपके इन कलिमात जैसे कलिमात कभी नहीं सुने। अपना हाथ लाइए, मैं इस्लाम क़बूल करता हूँ।”
चुनांचे ज़माद (रज़ि.) ने उसी वक्त आपके हाथ पर बैअत की।
आप ﷺ ने फ़रमाया:
“अपनी क़ौम के लिए भी बैअत करते हो?”
जवाब में उन्होंने कहा:
“हाँ! मैं अपनी क़ौम की तरफ से भी बैअत करता हूँ।”
इस तरह ये साहब जो आप पर से जिन्नात का असर उतारने की नीयत से आए थे, ख़ुद मुसलमान हो गए। ऐसे और भी बहुत से वाक़यात पेश आए।
ग़मों का साल Year of Sorrow
हज़रत खदीजा का इंतिक़ाल
नबी करीम की नबूवत को दस साल का अरसा गुजर चुका तो आप की ज़ौजा मोहतरमा हज़रत खदीजा का इंतिक़ाल कर गईं। इससे चंद दिन पहले अबू तालिब भी फौत हो गए थे। हज़रत खदीजा को हजून के क़ब्रिस्तान में दफन किया गया। आप ख़ुद उनकी क़ब्र में उतरे। इंतिक़ाल के वक्त हज़रत खदीजा की उम्र 65 साल थी। उस वक्त तक नमाज़े जनाज़ा का हुक्म नहीं हुआ था।
हज़रत खदीजा आपको हर परेशानी में साथ दिया हर तरह से आपको दिलासा दिया जब बाहर लोग ज़ुल्म करते हो आपको दिलासा दिलाया करतीं और आपको तसल्ली देतीं आपका हर तरह से साथ देतीं थीं हुज़ूर अपने ग़म उनको सुनाया करते थे तो वो आपको सब्र दिलातीं और हुज़ूर आपके कंधों पर सर रख कर लोगों का ज़ुल्म सुनाया करते थे
इस साल को सीरत निगारों ने ‘आम-उल-हज़न’ यानी ग़म का साल क़रार दिया, क्योंकि हर मौके पर साथ देने वाली दो हस्तियाँ इस दुनिया से रुख़्सत हो गई थीं। आप हर वक़्त ग़मगीन रहने लगे, घर से भी कम निकलते। हज़रत खदीजा शादी के बाद पच्चीस साल तक आप के साथ रहीं। इतनी तवील मुद्दत तक आप का और उनका साथ रहा था।
हज़रत खदीजा का इंतिक़ाल रमज़ान के महीने में हुआ था। उनकी वफ़ात के चंद माह बाद आप ने हज़रत सौदा बिंत ज़मआ से शादी फ़रमाई। उनसे पहले उनकी शादी उनके चचा के बेटे हज़रत सक़रान से हुई थी। हज़रत सक़रान दूसरी हिजरत के हुक्म के वक्त उनके साथ हबशा हिजरत कर गए थे। फिर मक्का वापस आ गए थे। इसके कुछ अरसे बाद उनका इंतिक़ाल हो गया था।
जब हज़रत सौदा की इद्दत का ज़माना पूरा हो गया तो आप ने उनसे निकाह फ़रमाया।
इस निकाह से पहले हज़रत सौदा ने एक अजीब ख़्वाब देखा था। उन्होंने अपने शौहर हज़रत सक़रान से यह ख़्वाब बयान किया। ख़्वाब सुनकर हज़रत सक़रान ने कहा:
“अगर तुमने वाक़ई यह ख़्वाब देखा है तो मैं जल्द ही मर जाऊँगा, और रसूलुल्लाह तुमसे निकाह फ़रमाएँगे।”
दूसरी रात उन्होंने फिर ख़्वाब देखा कि वह लेटी हुई हैं, अचानक चाँद आसमान से टूट कर उनके पास आ गया। उन्होंने यह ख़्वाब भी अपने शौहर को सुनाया। वह यह ख़्वाब सुनकर बोले:
“अब शायद मैं बहुत जल्द फ़ौत हो जाऊँगा।”
और उसी दिन हज़रत सक़रान इंतिक़ाल कर गए।
शव्वाल के महीने में आप ने हज़रत आयशा से निकाह फ़रमाया।
अबू तालिब के इंतिक़ाल के बाद क़ुरैश के ज़ुल्म
अबू तालिब के इंतिक़ाल के बाद क़ुरैश खुलकर सामने आ गए। एक रोज़ उन्होंने आप को पकड़ लिया, हर शख़्स आपको अपनी तरफ़ खींचने लगा… और कहने लगा:
“यह तो वही है जिसने हमारे इतने सारे माबूदों को एक माबूद बना दिया।”
ऐसे में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ तड़पकर एकदम आगे आ गए। इस भीड़ में घुस गए। किसी को उन्होंने मारकर हटाया, किसी को धक्का दिया। वह उन लोगों को आप से हटाते जाते और कहते जाते थे:
“क्या तुम ऐसे शख़्स को क़त्ल करना चाहते हो जो यह कहता है, मेरा रब अल्लाह है?”
इस पर वह लोग हज़रत अबू बक्र पर टूट पड़े और उन्हें इतना मारा कि वह मरने के क़रीब हो गए। होश आया तो सबसे पहले हुज़ूर अकरम की ख़ैरियत मालूम की। पता चला कि आप सलामत हैं तो अपनी तकलीफ़ को भूल गए।
जब अबू तालिब के इंकलाब के बाद और आपकी बीवी हज़रत ख़दीजा के इंतकाल के बाद लोग आपके पर और ज़्यादा ज़ुल्म करने लगे तो आपने मक्का से ताइफ की तरफ जाने का इरादा किया
ताइफ का वाक्य Part 26 में बयान किया है
