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Yahudiyon Ke Sawalaat | Prophet Muhammad History in Hindi Part 32

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Seerat e Mustafa Qist 32
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यहूदियों के सवालात

आनहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़हूर से पहले मदीना मुनव्वरा के यहूदी कबीला-ए-औस और कबीला-ए-ख़जरज के लोगों से यह कहा करते थे:

“बहुत जल्द एक नबी ज़ाहिर होंगे, उनकी ऐसी-ऐसी सिफ़ात होंगी (यानी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की निशानियां बताया करते थे), हम उनके साथ मिलकर तुम लोगों को साबिक़ा क़ौमों की तरह तहस-नहस कर देंगे। जिस तरह क़ौम-ए-आद और क़ौम-ए-समूद को तबाह किया गया, हम भी तुम लोगों को उसी तरह तबाह कर देंगे।”

जब नबी पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का ज़हूर मुबारक हो गया तो यही यहूद हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ख़िलाफ़ हो गए और साज़िशें करने लगे।
जब औस और ख़जरज के लोग इस्लाम के दामन में आ गए तो बाअज़ सहाबा ने इन यहूदियों से कहा:

“ऐ यहूदियो! तुम तो हमसे कहा करते थे कि एक नबी ज़ाहिर होने वाले हैं, उनकी ऐसी-ऐसी सिफ़ात होंगी, हम उन पर ईमान लाकर तुम लोगों को तबाह व बर्बाद कर देंगे। लेकिन अब जबकि उनका ज़हूर हो गया है तो तुम उन पर ईमान क्यों नहीं लाते? तुम तो हमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का हुलिया तक बताया करते थे।”

सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम अजमईन ने जब यह बात कही तो यहूदियों में सलाम बिन मशकम भी था। यह कबीला बनी नज़ीर के बड़े आदमियों में से था। उसने उनकी यह बात सुनकर कहा:
“इनमें वो निशानियां नहीं हैं जो हम तुमसे बयान करते थे।”

इस पर अल्लाह तआला ने सूरह बक़रा की आयत नंबर 89 नाज़िल फ़रमाई:

तरजुमा:
“और जब इन्हें किताब पहुँची (यानी क़ुरआन) जो अल्लाह तआला की तरफ़ से है और उसकी भी तस्दीक़ करने वाली है जो पहले से इनके पास है यानी तौरात, हालाँकि इससे पहले ये खुद (इस नबी के वसीले से) काफ़िरों के ख़िलाफ़ अल्लाह से मदद तलब करते थे, फिर वो चीज़ आ पहुँची जिसको ये खुद जानते-पहचानते थे (यानी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की नबूवत), तो इसका साफ़ इंकार कर बैठे। बस अल्लाह की मार हो ऐसे काफ़िरों पर।”

इस बारे में एक रिवायत में है कि एक रात हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यहूदियों के एक बड़े सरदार मालिक बिन सैफ से फ़रमाया:…
यहूदियों के सवालात

“मैं तुम्हें उस ज़ात की क़सम देकर पूछता हूँ जिसने मूसा अलैहिस्सलाम पर तौरात नाज़िल फ़रमाई, क्या तौरात में यह बात मौजूद है कि अल्लाह तआला मोटे-ताज़े ‘हबर’ यानी यहूदी राहिब से नफ़रत करता है? क्योंकि तुम भी ऐसे ही मोटे-ताज़े हो, तुम वह माल खा-खा कर मोटे हुए जो तुम्हें यहूदी ला-ला कर देते हैं।”

यह बात सुनकर मालिक बिन सैफ बिगड़ गया और बोल उठा:
“अल्लाह तआला ने किसी भी इंसान पर कोई चीज़ नहीं उतारी।”

गोया इस तरह उसने खुद हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल होने वाली किताब तौरात का भी इंकार कर दिया… और ऐसा सिर्फ झुंझलाहट की वजह से कहा। दूसरे यहूदी इस पर बिगड़े। उन्होंने उससे कहा:
“यह हमने तुम्हारे बारे में क्या सुना है?”

जवाब में उसने कहा:
“मोहम्मद ने मुझे ग़ुस्सा दिलाया था… बस मैंने ग़ुस्से में यह बात कह दी।”

यहूदियों ने उसकी इस बात को माफ़ न किया और उसे सरदारी से हटा दिया। उसकी जगह क़ाब बिन अशरफ़ को अपना सरदार मुक़र्रर किया।

अब यहूदियों ने हुज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को तंग करना शुरू कर दिया। ऐसे सवालात पूछने की कोशिश करने लगे जिनके जवाबात उनके ख़याल में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम न दे सकेंगे। मसलन, एक रोज़ उन्होंने पूछा:
“ऐ मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम), आप हमें बताइए, रूह क्या चीज़ है?”

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस सवाल के बारे में वही का इंतज़ार फ़रमाया। जब वही नाज़िल हुई तो आपने इरशाद फ़रमाया:
“रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है।”

यानी आपने क़ुरआन करीम की यह आयत पढ़ी:

“और यह लोग आप से रूह के मुताल्लिक़ पूछते हैं, आप फ़रमा दीजिए कि रूह मेरे रब के हुक्म से बनी है।”
(सूरह बनी इस्राईल, आयत 85)

फिर उन्होंने क़यामत के बारे में पूछा कि वह कब आएगी। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जवाब में इरशाद फ़रमाया:
“इसका इल्म मेरे रब ही के पास है… इसके वक़्त को अल्लाह के सिवा कोई और ज़ाहिर नहीं करेगा।”
(सूरह अल-आराफ़)

इसी तरह दो यहूदी आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए और पूछा:
“आप बताइए! अल्लाह तआला ने मूसा अलैहिस्सलाम की क़ौम को किन बातों की ताकीद फ़रमाई थी?”

जवाब में आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

“यह कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक न ठहराओ, बदकारी न करो, और हक़ के सिवा (यानी शरीअत के क़वानीन के सिवा) किसी ऐसे शख़्स की जान न लो जिसको अल्लाह तआला ने तुम पर हराम किया है। चोरी मत करो, सिहर और जादू-टोना करके किसी को नुक़सान न पहुँचाओ, किसी बादशाह और हाकिम के पास किसी की चुग़ली न करो, सूद का माल न खाओ, घरों में बैठने वाली (पाक दामन) औरतों पर बहुतान न बांधो। और ऐ यहूदियो! तुम पर ख़ास तौर पर यह बात लाज़िम है कि हफ़्ते के दिन किसी पर ज़्यादती न करो, क्योंकि यह यहूदियों का मुबारक दिन है।”

यह नौ हिदायतें सुनकर दोनों यहूदी बोले:
“हम गवाही देते हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नबी हैं।”

इस पर आपने इरशाद फ़रमाया:
“तो फिर तुम मुसलमान क्यों नहीं हो जाते?”

उन्होंने जवाब दिया:
“हमें डर है, अगर हम मुसलमान हो गए तो यहूदी हमें क़त्ल कर डालेंगे।”

दो यहूदी आलिम मुल्क शाम में रहते थे। उन्हें अभी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ज़हूर की ख़बर नहीं हुई थी। दोनों एक मर्तबा मदीना मुनव्वरा आए। मदीना मुनव्वरा को देखकर एक-दूसरे से कहने लगे:
“यह शहर उस नबी के शहर से कितना मिलता-जुलता है जो आख़िरी ज़माने में ज़ाहिर होने वाले हैं।”

इसके कुछ देर बाद उन्हें पता चला कि आनहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का ज़हूर हो चुका है और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का मुअज़्ज़मा से हिजरत करके इस शहर, मदीना मुनव्वरा, में आ चुके हैं।

यह ख़बर मिलने पर दोनों आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए। उन्होंने कहा:
“हम आप से एक सवाल पूछना चाहते हैं, अगर आपने जवाब दे दिया तो हम आप पर ईमान ले आएँगे।”

आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
“पूछो! क्या पूछना चाहते हो?”

उन्होंने कहा:
“हमें अल्लाह की किताब में सबसे बड़ी गवाही और शहादत के मुताल्लिक़ बताइए।”

उनके सवाल पर सूरह आले इमरान की आयत 19 नाज़िल हुई। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वह उनके सामने तिलावत फ़रमाई:

“अल्लाह ने इसकी गवाही दी है कि सिवाय उसकी ज़ात के कोई माबूद होने के लायक़ नहीं और फ़रिश्तों ने भी और अहल-ए-इल्म ने भी गवाही दी है और वह इस शान के मालिक हैं कि इत्तिदाल के साथ इंतिज़ाम को क़ायम रखने वाले हैं। उनके सिवा कोई माबूद होने के लायक़ नहीं, वह ज़बरदस्त हैं, हिकमत वाले हैं। बेशक दीन-ए-हक़ और मक़बूल, अल्लाह तआला के नज़दीक सिर्फ़ इस्लाम है।”

यह आयत सुनकर दोनों यहूदी इस्लाम ले आए।

इसी तरह यहूदियों के एक और बहुत बड़े आलिम थे। उनका नाम हुसैन बिन सलाम था। यह हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की औलाद में से थे। इनका ताल्लुक़ कबीला बनी क़ैनुक़ा से था। जिस रोज़ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हिजरत करके हज़रत अबू अय्यूब अंसारी रज़ियल्लाहु अन्हु के घर में रहाइश पज़ीर हुए, यह उसी रोज़ आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए।

जैसे ही उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का चेहरा-ए-मुबारक देखा, फ़ौरन समझ गए कि यह चेहरा किसी झूठे का नहीं हो सकता। फिर जब उन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कलाम सुना तो फ़ौरन पुकार उठे:
“मैं गवाही देता हूँ कि आप सच्चे हैं और सच्चाई लेकर आए हैं।”

फिर इनका इस्लामी नाम अबदुल्लाह बिन सलाम रखा गया। इस्लाम क़ुबूल करने के बाद यह अपने घर गए। अपने इस्लाम लाने की तफ़सील घर वालों को सुनाई तो वे भी इस्लाम ले आए।

कुछ यहूदियों ने आप ﷺ से सवाल किया:
“आप यह बताइए, उस वक्त लोग कहाँ होंगे जब क़यामत के दिन ज़मीन और आसमान की शक्लें बदल दी जाएँगी?”

इस पर आप हज़रत ﷺ ने जवाब दिया:
“उस वक्त लोग पुल सिरात के क़रीब अंधेरे में होंगे।”

इसी तरह, एक बार यहूदियों ने हुज़ूर ﷺ से बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की कड़क के बारे में पूछा।

जवाब में आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
“यह उस फ़रिश्ते की आवाज़ है जो बादलों का निगरान है। उसके हाथ में आग का एक कोड़ा है, जिससे वह बादलों को हांकता हुआ उस तरफ़ ले जाता है जहाँ अल्लाह तआला का हुक्म होता है।”

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