Women’s Rights in Islam in hindi
इस्लाम में महिलाओं के अधिकार
इस्लाम में स्त्री पुरुष की गुलाम नहीं है स्त्री को पुरुष की कनीज (दासी) नहीं माना गया है, जैसा कि कुछ अन्य धर्मों में होता है। बल्कि, वह पुरुष की साथी, सहचरी, और उसकी सच्ची मित्र है।
Table of Contents
महिलाओं के अधिकार कुरआन में
विवाह में महिलाओं के आर्थिक अधिकार
وَ اٰتُوا النِّسَآءَ صَدُقٰتِہِنَّ نِحۡلَۃً ؕ فَاِنۡ طِبۡنَ لَکُمۡ عَنۡ شَیۡءٍ مِّنۡہُ نَفۡسًا فَکُلُوۡہُ ہَنِیۡٓئًا مَّرِیۡٓئًا ﴿۴﴾
जिन महिलाओं से तुम विवाह करते हो, उन्हें उनका उचित मेहर ख़ुशी से दो। लेकिन अगर वे स्वेच्छा से उसमें से कुछ छोड़ दें, तो तुम उसे स्वच्छ विवेक के साथ स्वतंत्र रूप से भोग सकते हो। (4:4)
महिलाओं की सामाजिक आज़ादी
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا لَا یَحِلُّ لَکُمۡ اَنۡ تَرِثُوا النِّسَآءَ کَرۡہًا ؕ وَ لَا تَعۡضُلُوۡہُنَّ لِتَذۡہَبُوۡا بِبَعۡضِ مَاۤ اٰتَیۡتُمُوۡہُنَّ اِلَّاۤ اَنۡ یَّاۡتِیۡنَ بِفَاحِشَۃٍ مُّبَیِّنَۃٍ ۚ وَ عَاشِرُوۡہُنَّ بِالۡمَعۡرُوۡفِ ۚ فَاِنۡ کَرِہۡتُمُوۡہُنَّ فَعَسٰۤی اَنۡ تَکۡرَہُوۡا شَیۡئًا وَّ یَجۡعَلَ اللّٰہُ فِیۡہِ خَیۡرًا کَثِیۡرًا ﴿۱۹﴾
ऐ ईमान वालों! यह तुम्हारे लिए जायज़ नहीं है कि तुम महिलाओं को उनकी इच्छा के ख़िलाफ़ उनके वारिस बन जाओ, और उनसे दुर्व्यवहार करो ताकि वे तलाक के बदले में मेहर में से कुछ वापस ले सकें – सिवाय इसके कि वे व्यभिचार की दोषी पाई जाएँ। उनके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करो… (4:19)
महिलाओं की स्वच्छता
وَ یَسۡئَلُوۡنَکَ عَنِ الۡمَحِیۡضِ ؕ قُلۡ ہُوَ اَذًی ۙ فَاعۡتَزِلُوا النِّسَآءَ فِی الۡمَحِیۡضِ ۙ وَ لَا تَقۡرَبُوۡہُنَّ حَتّٰی یَطۡہُرۡنَ ۚ فَاِذَا تَطَہَّرۡنَ فَاۡتُوۡہُنَّ مِنۡ حَیۡثُ اَمَرَکُمُ اللّٰہُ ؕ اِنَّ اللّٰہَ یُحِبُّ التَّوَّابِیۡنَ وَ یُحِبُّ الۡمُتَطَہِّرِیۡنَ ﴿۲۲۲﴾
वे तुमसे ‘ऐ पैगम्बर’ मासिक धर्म के बारे में पूछते हैं। कह दो, “उसके नुकसान से बचो! इसलिए उनसे दूर रहो, और अपनी पत्नियों के साथ उनके मासिक धर्म के दौरान संभोग न करो जब तक कि वे पवित्र न हो जाएं। जब वे खुद को पवित्र कर लें, तो तुम अल्लाह द्वारा निर्दिष्ट तरीके से उनके पास जा सकते हो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों को प्यार करता है जो हमेशा तौबा करके उसकी ओर मुड़ते हैं और जो खुद को पवित्र करते हैं।” (2:222)
सामाजिक भूमिकाएँ
اَلرِّجَالُ قَوّٰمُوۡنَ عَلَی النِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ اللّٰہُ بَعۡضَہُمۡ عَلٰی بَعۡضٍ وَّ بِمَاۤ اَنۡفَقُوۡا مِنۡ اَمۡوَالِہِمۡ ؕ فَالصّٰلِحٰتُ قٰنِتٰتٌ حٰفِظٰتٌ لِّلۡغَیۡبِ بِمَا حَفِظَ اللّٰہُ ؕ وَ الّٰتِیۡ تَخَافُوۡنَ نُشُوۡزَہُنَّ فَعِظُوۡہُنَّ وَ اہۡجُرُوۡہُنَّ فِی الۡمَضَاجِعِ وَ اضۡرِبُوۡہُنَّ ۚ فَاِنۡ اَطَعۡنَکُمۡ فَلَا تَبۡغُوۡا عَلَیۡہِنَّ سَبِیۡلًا ؕ اِنَّ اللّٰہَ کَانَ عَلِیًّا کَبِیۡرًا ﴿۳۴﴾
पुरुष महिलाओं की देखभाल करते हैं, क्योंकि पुरुषों को अल्लाह ने महिलाओं की देखभाल करने का काम दिया है और उन्हें आर्थिक रूप से सहायता करने का काम सौंपा है। और नेक औरतें पूरी तरह से आज्ञाकारी होती हैं और जब अकेली होती हैं, तो अल्लाह ने उन्हें जो कुछ सौंपा है, उसकी रक्षा करती हैं… (4:34)
पोशाक की शालीनता
یٰۤاَیُّہَا النَّبِیُّ قُلۡ لِّاَزۡوَاجِکَ وَ بَنٰتِکَ وَ نِسَآءِ الۡمُؤۡمِنِیۡنَ یُدۡنِیۡنَ عَلَیۡہِنَّ مِنۡ جَلَابِیۡبِہِنَّ ؕ ذٰلِکَ اَدۡنٰۤی اَنۡ یُّعۡرَفۡنَ فَلَا یُؤۡذَیۡنَ ؕ وَ کَانَ اللّٰہُ غَفُوۡرًا رَّحِیۡمًا ﴿۵۹﴾
ऐ पैगम्बर! अपनी पत्नियों, बेटियों और ईमान वाली औरतों से कहो कि वे अपने बदन पर लबादा डाल लें। इस तरह यह ज़्यादा संभावना है कि उन्हें ‘नेक’ माना जाएगा और उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा..(33:59)
महिलाओं की प्रतिष्ठा की रक्षा
وَ الَّذِیۡنَ یَرۡمُوۡنَ الۡمُحۡصَنٰتِ ثُمَّ لَمۡ یَاۡتُوۡا بِاَرۡبَعَۃِ شُہَدَآءَ فَاجۡلِدُوۡہُمۡ ثَمٰنِیۡنَ جَلۡدَۃً وَّ لَا تَقۡبَلُوۡا لَہُمۡ شَہَادَۃً اَبَدًا ۚ وَ اُولٰٓئِکَ ہُمُ الۡفٰسِقُوۡنَ ۙ﴿۴﴾
जो लोग पवित्र महिलाओं पर ‘व्यभिचार’ का आरोप लगाते हैं और चार गवाह पेश करने में विफल रहते हैं, उन्हें ‘प्रत्येक’ को अस्सी कोड़े मारो। और उनसे कभी कोई गवाही स्वीकार न करें – क्योंकि वे वास्तव में विद्रोही हैं- (24:4)
पति पत्नी
وَ مِنۡ اٰیٰتِہٖۤ اَنۡ خَلَقَ لَکُمۡ مِّنۡ اَنۡفُسِکُمۡ اَزۡوَاجًا لِّتَسۡکُنُوۡۤا اِلَیۡہَا وَ جَعَلَ بَیۡنَکُمۡ مَّوَدَّۃً وَّ رَحۡمَۃً ؕ اِنَّ فِیۡ ذٰلِکَ لَاٰیٰتٍ لِّقَوۡمٍ یَّتَفَکَّرُوۡنَ ﴿۲۱﴾कुरआन में अल्लाह तआला ने शादी की हिकमत और मंशा को बयान करते हुए फ़रमाया:
“और उसकी निशानियों में से एक यह है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही नस्ल से जोड़े बनाए, ताकि तुम उनसे सुकून पाओ, और तुम्हारे बीच मोहब्बत और रहमत पैदा की। इसमें उन लोगों के लिए निशानियां हैं जो सोच-विचार करते हैं।” (सूरह रूम: 21)इस आयत में तीन अहम बातें बताई गई हैं
- पति को बताया गया कि उनकी पत्नी उनकी ही तरह इंसान हैं, उनके जैसा ही जज़्बा और एहसास रखती हैं।
- उनकी रचना का उद्देश्य यह है कि वे पति के लिए सुकून और राहत का ज़रिया बनें।
- पति-पत्नी के रिश्ते की बुनियाद मोहब्बत और आपसी हमदर्दी होनी चाहिए।
महिलाओं के अधिकार अहादीस में
माँ की सेवा का महत्वह
عن أبی ھریرۃ رضي اللّٰہ تعالیٰ عنہ قال: قال رجل: یا رسول اللّٰہ من أحق الناس بحسن الصحبۃ؟ قال: أمک۔ ثم أمک۔ ثم أمک ثم أبوک۔ ثم ادناک ادناک (مسلم)
ज़रत अबू हुरैरा (रजि.) से रिवायत है कि एक व्यक्ति ने नबी ए करीम (ﷺ) से पूछा, “या रसूल अल्लाह, मेरे अच्छे सुलूक का सबसे ज़्यादा हक़दार कौन है?” आप (ﷺ) ने फ़रमाया: “तुम्हारी माँ।” यह जवाब आपने तीन बार दिया। इसके बाद कहा, “फिर तुम्हारे पिता, और फिर तुम्हारे करीबी रिश्तेदार।” (मुस्लिम)
लड़कियों की परवरिश और देखभाल
فَلَہُ الْجَنَّةُ مَنْ عَالَ ثَلاثَ بَنَاتٍ فَأدَّبَہُنَّ۔(ابو داؤد)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: “जिसके पास तीन बेटियां या तीन बहनें हों, या दो बेटियां या दो बहनें हों, और वह उनकी अच्छी तरह परवरिश करे, उनके साथ अच्छा सुलूक करे, और उनके अधिकारों को अल्लाह से डरते हुए पूरा करे, तो वह जन्नत में दाखिल होगा।” (सहीह इब्न हिब्बान, हदीस नंबर: 446)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: “जिसके घर औलाद पैदा हो, उसे चाहिए कि उसका अच्छा नाम रखे, उसकी अच्छी तरबियत करे, और जब वह शादी की उम्र को पहुंचे तो उसका निकाह कराए। अगर उसने ऐसा न किया और वह गुनाह में पड़ गई, तो इसका गुनाह पिता पर होगा।” (शुअबुल ईमान, हदीस नंबर: 8299)
शादी में अनुमति का अधिकार
ایُنْکَحُ الْاَیْمُ حَتّٰی تُسْتَأمَرُ وَلاَ تُنْکَحُ الْبِکْرُ حتی تُسْتأذن۔(مشکوٰة، باب عشرة النساء)
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: “किसी विधवा स्त्री का निकाह तब तक न किया जाए जब तक उससे सलाह न ली जाए, और कुंवारी लड़की का निकाह उसकी अनुमति के बिना न किया जाए।” (मिश्कात)
बेटियों की परवरिश पर जन्नत का वादा हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रजि.) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: “जिसके घर बेटी पैदा हो, और वह उसे ज़िंदा दफन न करे, उसे अपमानित न समझे और बेटे को उस पर प्राथमिकता न दे, तो अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल करेगा।” (अबू दाऊद)
तीन बेटियों की परवरिश की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया: “जिसने तीन बेटियों की परवरिश की, उन्हें तालीम-ओ-तरबियत दी, उनकी शादी की और उनके साथ अच्छा सुलूक किया, उसके लिए जन्नत है।” (अबू दाऊद)