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Sahaba Par Zulm o Sitam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 18)

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Sahaba Par Zulm o Sitam (Prophet Muhammad History in Hindi Part 18)

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Seerat e Mustafa Qist 18
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अब्दुल्लाह बिन मसऊद पर ज़ुल्म

एक दिन सहाबा-ए-कराम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गिर्द जमा थे। ऐसे में किसी ने कहा:
“अल्लाह की कसम! क़ुरैश ने आज तक नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अलावा किसी और की ज़ुबान से बुलंद आवाज़ में क़ुरआन नहीं सुना। इसलिए तुम में से कौन है जो उनके सामने बुलंद आवाज़ में क़ुरआन पढ़े?”

यह सुनकर हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु बोल उठे:
“मैं उनके सामने बुलंद आवाज़ से क़ुरआन पढ़ूंगा।”

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु की बात सुनकर सहाबा ने कहा:
“हमें क़ुरैश की तरफ़ से आपके बारे में ख़तरा है, हम तो ऐसा आदमी चाहते हैं जिसका ख़ानदान क़ुरैश से हो ताकि उसकी हिफ़ाज़त कर सके।”

इस पर हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
“तुम मेरी परवाह न करो, अल्लाह तआला ख़ुद मेरी हिफ़ाज़त फ़रमाएंगे।”

दोपहर के बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु बैतुल्लाह पहुँचे। आप मक़ामे इब्राहीम के पास खड़े हो गए। उस वक़्त क़ुरैश अपने-अपने घरों में थे। अब उन्होंने बुलंद आवाज़ से क़ुरआन पढ़ना शुरू किया।

क़ुरैश ने यह आवाज़ सुनी तो कहने लगे,
“इस ग़ुलामज़ाद को क्या हुआ?”
कोई और बोला:
“मुहम्मद जो कलाम लेकर आए हैं, यह वही पढ़ रहा है।”

यह सुनते ही मुश्रिकीन उनकी तरफ़ दौड़ पड़े और मारने-पीटने लगे। हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु चोटें खाते जाते और क़ुरआन पढ़ते जाते। यहाँ तक कि उन्होंने सूरह का ज़्यादा तर हिस्सा तिलावत कर डाला। फिर वहाँ से अपने साथियों के पास आ गए। उनका चेहरा उस वक़्त तक लहूलुहान हो चुका था।

उनकी यह हालत देखकर मुसलमान बोले:
“हमें तुम्हारी तरफ़ से इसी बात का ख़तरा था।”

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
“अल्लाह की कसम! अल्लाह के दुश्मनों को मैंने अपने लिए आज से ज़्यादा हल्का और कमज़ोर कभी नहीं पाया। अगर तुम लोग कहो तो कल फिर उनके सामने जाकर क़ुरआन पढ़ सकता हूँ।”

इस पर मुसलमान बोले:
“नहीं, वह लोग जिस चीज़ को नापसंद करते हैं, आप उन्हें वह काफ़ी सुना आए हैं।”

हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत पर ज़ुल्म

ईमान लाने वाले जिन लोगों पर ज़ुल्म ढाए गए, उनमें से एक हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु भी हैं। काफ़िरों ने उन्हें इस्लाम से फेरने की कोशिशें कीं मगर वह साबित क़दम रहे। उन्हें जाहिलियत के ज़माने में गिरफ़्तार किया गया था, फिर उन्हें एक औरत उम्मे अन्नार ने ख़रीद लिया। वह एक लोहार थे, नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी दिलजोई फ़रमाते थे और उनके पास तशरीफ़ ले जाया करते थे।

जब वह मुसलमान हो गए और उम्मे अन्नार को यह बात मालूम हुई तो उसने उन्हें बहुत ख़ौफ़नाक सजाएँ दीं। वह लोहे का कड़ा आग में गरम करती, उसे लाल कर देती और फिर हज़रत ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु के सर पर रख देती।

आख़िर हज़रत ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अपनी मुसीबत का ज़िक्र किया तो आपने उनके लिए दुआ फ़रमाई।

नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ के फ़ौरन बाद उस औरत के सर में सख़्त दर्द शुरू हो गया और वह कुत्तों की तरह भौंकने लगी। आख़िर किसी ने उसे इलाज बताया कि वह लोहे को तपा कर अपने सर पर रखवाए। उसने यह काम हज़रत ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़िम्मे लगाया। अब आप वह हलक़ा ख़ूब गरम कर के उसके सर पर रखते।

हज़रत ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि एक रोज़ मैं हज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में गया और यह वह ज़माना था जब हम पर ख़ूब ज़ुल्म किया जाता था। मैंने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया:
“ऐ अल्लाह के रसूल, क्या आप हमारे लिए दुआ नहीं फ़रमाते?”

मेरे अल्फ़ाज़ सुनते ही आप सीधा होकर बैठ गए। आपका चेहरा मुबारक सुर्ख़ हो गया। फिर आपने फ़रमाया:
“तुम से पहली उम्मत के लोगों को अपने दीन के लिए कहीं ज़्यादा अज़ाब बर्दाश्त करने पड़े। उनके जिस्मों पर लोहे की कंघियाँ की जाती थीं, जिससे उनकी खाल और हड्डियाँ अलग हो जाती थीं, मगर ये तकलीफ़ें भी उन्हें उनके दीन से न हटा सकीं। उनके सरों पर आरी चला चला कर उनके जिस्म दो कर दिए गए, मगर वह अपना दीन छोड़ने पर तैयार फिर भी न हुए।

इस दीन-ए-इस्लाम को अल्लाह तआला इस तरह फैला देगा कि सनआ से हज़रमौत जाने वाले सवार को सिवाय अल्लाह तआला के किसी का ख़ौफ़ नहीं होगा। यहाँ तक कि चरवाहे को अपनी बकरियों के बारे में भेड़ियों का डर नहीं होगा।”

हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:
“एक दिन मेरे लिए आग दहकाई गई, फिर वह आग मेरी कमर पर रख दी गई और फिर उसे उस वक़्त तक नहीं हटाया गया जब तक कि वह आग मेरी कमर की चर्बी से बुझ न गई।”

हज़रत अम्मार बिन यासिर पर ज़ुल्म

हज़रत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु भी ऐसे ही लोगों में से थे, जिन पर उनके धर्म से हटाने के लिए मुशरिकों ने तरह-तरह के जुल्म किए। उन्हें आग से जलाकर अज़ीयत दी गई, मगर वह अपने दीन पर क़ायम रहे।

अल्लामा इब्न जौज़ी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं:
एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उधर से गुजर रहे थे, जब हज़रत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु को आग से जलाकर तकलीफ़ दी जा रही थी। उनकी कमर पर जलने की वजह से कोढ़ जैसे सफ़ेद दाग़ पड़ गए थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके सिर पर हाथ फेरा और फरमाया:

“ऐ आग, ठंडी और सलामती वाली बन जा, जैसा कि तू इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिए हो गई थी।”
इस दुआ के बाद उन्हें आग की तकलीफ़ महसूस नहीं होती थी।

हज़रत उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि हज़रत अम्मार बिन यासिर, उनके वालिद यासिर, उनके भाई अब्दुल्लाह और उनकी वालिदा सुमैय्या रज़ियल्लाहु अन्हुम, इन सभी को अल्लाह का नाम लेने की वजह से सख़्त से सख़्त अज़ीयतें दी गईं।

इस्लाम की पहली शहीदा

एक रोज़ जब उन्हें तकलीफ़ दी जा रही थी, तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उधर से गुज़रे। आपने उनकी तकलीफों को देखकर फ़रमाया:
“ऐ अल्लाह, आले-यासिर की मग़फ़िरत फ़रमा।”

इस्लाम की राह में सिर्फ़ मर्द सहाबा ने ही तकलीफ़ें नहीं उठाईं, बल्कि औरतों ने भी बहुत तकलीफ़ें उठाईं। हज़रत सुमैया रज़ियल्लाहु अन्हा, जो हज़रत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु की मां थीं, इस्लाम की पहली शहीदा बनीं।

उनकी वालिदा सुमैय्या रज़ियल्लाहु अन्हा को अबू जहल के चाचा हुज़ैफा बिन मुघीरा ने अबू जहल के हवाले कर दिया। यह उसकी बांदी थीं। अबू जहल ने उन्हें पेट में नेज़ा मारा, जिससे वह शहीद हो गईं। इस तरह इस्लाम में सबसे पहली शहीद होने का शर्फ़ उन्हें हासिल हुआ। आख़िर इन्हीं मज़ालिम की वजह से हज़रत अम्मार रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु भी शहीद हो गए।

हज़रत ज़ुनैरा पर ज़ुल्म

इसी तरह ज़ुनैरा रज़ियल्लाहु अन्हा* नामी एक औरत को मुसलमान होने की बुनियाद पर इस क़दर ख़ौफ़नाक सजाएँ दी गईं कि वह बेचारी अंधी हो गईं। एक रोज़ अबू जहल ने उनसे कहा:
“जो कुछ तुम पर बीत रही है, यह सब लात व उज्ज़ा कर रहे हैं।”

यह सुनते ही ज़ुनैरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:
“हरगिज़ नहीं, अल्लाह की क़सम, लात व उज्ज़ा न कोई नफ़ा पहुँचा सकते हैं, न कोई नुक़सान… यह जो कुछ हो रहा है, आसमान वाले की मर्ज़ी से हो रहा है। मेरे परवरदिगार को यह भी क़ुदरत है कि वह मुझे मेरी आँखों की रोशनी लौटा दे।”

दूसरे दिन वह सुबह उठीं तो उनकी आँखों की रोशनी अल्लाह तआला ने लौटा दी थी।

इस बात का जब काफ़िरों को पता चला तो वे बोल उठे:
“यह मुहम्मद की जादूगरी है।”

हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें भी ख़रीद कर आज़ाद कर दिया।

आपने ज़नीरा रज़ियल्लाहु अन्हा की बेटी को भी ख़रीद कर आज़ाद किया। इसी तरह नहदिया नाम की एक बांदी थीं। उनकी एक बेटी भी थीं। दोनों वलीद बिन मुग़ीरा की बांदियाँ थीं। उन्हें भी हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने आज़ाद कर दिया।

आमिर बिन फ़ुहैरा की बहन और उनकी वालिदा भी ईमान ले आई थीं। ये हज़रत उमर के मुसलमान होने से पहले उनकी बांदियाँ थीं। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें भी ख़रीद कर आज़ाद कर दिया।

हज़रत सुहैब रूमी पर ज़ुल्म

हज़रत सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु एक रूमी (बाइज़ेंटाइन) गुलाम थे जो बाद में मुसलमान हो गए। जब वे मक्का से हिजरत करने लगे तो काफ़िरों ने उन्हें रोक लिया और कहा:
“अगर तुम जाना चाहते हो तो वह सारा माल-दौलत छोड़ दो जो तुमने मक्का में कमाया है!”

हज़रत सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
“अगर माल-दौलत ही चाहिए तो ले लो, मगर मुझे अल्लाह के रसूल के पास जाने दो!”

काफ़िरों ने उनका सारा माल छीन लिया, मगर उन्हें जाने दिया। जब वे मदीना पहुंचे और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिले तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
“सुहैब! तुम्हारा सौदा कामयाब रहा!”

सहाबा का सब्र

इन तमाम मुसीबतों के बावजूद सहाबा-ए-किराम इस्लाम पर डटे रहे। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन्हें तसल्ली देते और सब्र की तलकीन फ़रमाते। आपने एक बार फ़रमाया:
“अल्लाह की क़सम! अल्लाह इस दीन को पूरी दुनिया में फैला देगा और एक दिन आएगा जब एक अकेली औरत सनआ (यमन) से हज़रमौत (अरब) तक सफर करेगी और उसे सिवाय अल्लाह के किसी का डर न होगा।”

यह वह दौर था जब मुसलमान कमज़ोर थे, मगर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह पर पूरा भरोसा था कि इस्लाम पूरी दुनिया में फैलेगा।

आज हम देख सकते हैं कि इस्लाम दुनिया के हर कोने में पहुंच चुका है। यह उन्हीं सहाबा-ए-किराम की कुर्बानियों का नतीजा है जिन्होंने अल्लाह के लिए हर तकलीफ़ सह ली मगर अपने ईमान पर आँच नहीं आने दी।

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