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Sabse Pehle Iman Lane wale
Prophet Muhammad History in Hindi Qist 13
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Seerat e Mustafa Qist 13
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Table of Contents
सबसे पहले ईमान लाने वाले लोग
- सबसे पहले हज़रत सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ईमान लेकर आईं ,
- उनके बाद सबसे पहले ईमान लाने वाले शख़्स हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु थे। वह आपके क़रीबी दोस्त थे। उन्होंने आपकी ज़ुबान से नबूवत का ज़िक्र सुनते ही तुरंत तस्दीक़ की और ईमान ले आए।
- बच्चों में सबसे पहले ईमान लाने वाले हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु थे।
हज़रत अबु बक्र का कुबूले इस्लाम
मर्दों में सबसे पहले सैय्यदना अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए। आप नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पहले ही दोस्त थे। हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अक्सर उनके घर आते और उनसे बातें किया करते थे।
एक दिन हज़रत हकीम बिन हिज़ाम रज़ियल्लाहु अन्हु के पास बैठे थे कि उनकी एक बांदी वहां आई और कहने लगी:
“आज आपकी फूफी ख़दीजा ने यह दावा किया है कि उनके शौहर अल्लाह तआला की तरफ से भेजे हुए पैग़म्बर हैं जैसा कि मूसा अलैहि सलाम थे।”
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने ज्योंही हज़रत हकीम रज़ियल्लाहु अन्हु की बांदी की यह बात सुनी, चुपके से वहां से उठे और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आ गए और आप से इस बारे में पूछा।
इस पर आपने हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को वही आने का पूरा वाक़या सुनाया और बताया कि आपको तब्लीग़ का हुक्म दिया गया है।
यह सुनते ही हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया: “मेरे मां-बाप आप पर कुर्बान, आप बिल्कुल सच कहते हैं, वाक़ई अल्लाह के रसूल हैं।”
आपके इस तरह फौरन तस्दीक़ करने की बिना पर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपको **सिद्दीक़** का लक़ब अता फ़रमाया।
इस बारे में दूसरी रिवायत यह है कि **सिद्दीक़** का लक़ब आपने उन्हें उस वक्त दिया था जब आप मीराज के सफ़र से वापस तशरीफ लाए थे। मक्का के मुश्रिकीन ने आपको झुठलाया था। उस वक्त हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस वाक़ए को सुनते ही फौरन आपकी तस्दीक़ की थी और आपने उन्हें **सिद्दीक़** का लक़ब अता फ़रमाया था।
ग़रज़ अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपकी नबूवत की तस्दीक़ फौरन कर दी।
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अब्दुल्लाह रखा, क्योंकि इससे पहले उनका नाम अब्दुलकाबा था।
इस लिहाज़ से अबूबक्र सिद्दीक़ वो पहले आदमी हैं जिनका नाम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तबदील किया।
हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु वैसे भी बहुत ख़ूबसूरत थे, इस मुनासिबत से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका लक़ब अतीक़ रखा।
**अतीक़** का मतलब है ख़ूबसूरत, और इसका एक मतलब आज़ाद भी है।
यह लक़ब देने की एक वजह यह भी बयान की जाती है कि उनकी तरफ़ देखकर फ़रमाया था:
“यह जहन्नम की आग से आज़ाद हैं।”
ग़रज़ इस्लाम में यह पहला लक़ब है जो किसी को मिला। कुरैश में हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु का मर्तबा बहुत बुलंद था। आप बहुत ख़ुशअख़लाक़ थे। कुरैश के सरदारों में से एक थे। शरीफ़, सख़ी और दौलतमंद थे। रुपया-पैसा बहुत फराख़दिल से ख़र्च करते थे। उनकी क़ौम के लोग उन्हें बहुत चाहते थे। लोग उनकी मजलिस में बैठना बहुत पसंद करते थे।
अपने ज़माने में हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ख़्वाब की ताबीर बताने में बहुत माहिर और मशहूर थे।
चुनांचे अल्लामा इब्न सीरीन रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं:
“नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु इस उम्मत में सबसे बेहतरीन ताबीर बताने वाले आलिम हैं।”
अल्लामा इब्न सीरीन रहमतुल्लाह अलैहि ख़्वाबों की ताबीर बताने में बहुत माहिर थे और इस सिलसिले में उनकी किताबें मौजूद हैं।
इस किताब में ख़्वाबों की हैरतअंगेज़ ताबीरें दर्ज हैं। उनकी बताई हुई ताबीरें बिल्कुल दुरुस्त साबित होती रहीं।
मतलब यह है कि इस मैदान के माहिर इस बारे में हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद सबसे बेहतर ताबीर बताने वाले फ़रमा रहे हैं।
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु नसबनामा बयान करने में भी बहुत माहिर थे बल्कि कहा जाता है कि इस इल्म के सबसे बड़े आलिम थे।
हज़रत जुबैर बिन मुत्अम भी इस इल्म के माहिर थे।
वो फ़रमाते हैं: “मैंने नसबनामों का फ़न और इल्म और ख़ास तौर पर कुरैश के नसबनामों का इल्म हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से ही हासिल किया है, क्योंकि वो कुरैश के नसबनामों के सबसे बड़े आलिम थे।”
कुरैश के लोगों को कोई मुश्किल पेश आती तो हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु से राब्ता करते थे। हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाया करते थे:
“मैंने जिसे भी इस्लाम की दावत दी, उसने कुछ न कुछ सोच-विचार और किसी क़दर वक़्फे के बाद इस्लाम क़बूल किया, सिवाए अबूबक्र के। वो बिना हिचकिचाहट के फौरन मुसलमान हो गए।
अबूबक्र सबसे बेहतर राय देने वाले हैं। मेरे पास जिब्राईल अलैहि सलाम आए और उन्होंने कहा कि अल्लाह तआला आपको हुक्म देता है कि अपने मामलों में अबूबक्र से मशविरा किया करें।”
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु वज़ीर के दर्जे में थे।
आप हर मामले में उनसे मशविरा लिया करते थे।
एक हदीस में आता है, नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं: “अल्लाह तआला ने मेरी मदद के लिए चार वज़ीर मुक़र्रर फ़रमाए हैं, उनमें से दो आसमान वालों में से हैं यानी जिब्राईल और मीकाईल (अलैहिमा सलाम) और दो ज़मीन वालों में से एक अबूबक्र और दूसरे उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा)।”
इस्लाम लाने से पहले हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक ख़्वाब देखा था। ख़्वाब में आपने देखा कि चाँद मक्का में उतर आया है और उसका एक-एक हिस्सा मक्का के हर घर में दाखिल हो गया है। और फिर सारा का सारा अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु की गोद में आ गया। आपने यह ख़्वाब एक ईसाई आलिम को सुनाया।
उसने इस ख़्वाब की यह ताबीर बयान की कि: “तुम अपने पैग़ंबर की पैरवी करोगे जिसका दुनिया इंतज़ार कर रही है और जिसके ज़हूर का वक़्त क़रीब आ गया है और यह कि पैरोकारों में से सबसे ज़्यादा ख़ुशक़िस्मत इंसान होगे।”
एक रिवायत के मुताबिक़ आलिम ने कहा था: “अगर तुम अपना ख़्वाब बयान करने में सच्चे हो तो बहुत जल्द तुम्हारे गाँव में से एक नबी ज़ाहिर होंगे। तुम इस नबी की ज़िंदगी में उनके वज़ीर बनोगे और उनकी वफ़ात के बाद उनके ख़लीफ़ा होओगे।”
कुछ अर्सा बाद हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन जाने का इत्तेफ़ाक़ हुआ। यमन में यह एक बूढ़े आलिम के घर ठहरे। उसने आसमानी किताबें पढ़ रखी थीं।
अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को देखकर उसने कहा:
“मेरा ख़याल है, तुम हरम के रहने वाले हो और मेरा ख़याल है, तुम क़ुरैशी हो और तैमिय ख़ानदान से हो।”
अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब में फ़रमाया: “हाँ! तुमने बिल्कुल ठीक कहा।”
अब उसने कहा: “मैं तुमसे एक बात और कहता हूँ… तुम ज़रा अपना पेट पर से कपड़ा हटाकर दिखाओ।”
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ उसकी बात सुनकर हैरान हुए और बोले: **”ऐसा मैं उस वक़्त तक नहीं करूँगा, जब तक कि तुम इसकी वजह नहीं बता दोगे।”
इस पर उसने कहा:
“मैं अपने मज़बूत इल्म की बुनियाद पर कहता हूँ कि हरम के इलाक़े में एक नबी का ज़हूर होने वाला है। उनकी मदद करने वाला एक नौजवान होगा और एक पुख़्ता उम्र वाला होगा। जहाँ तक नौजवान का ताल्लुक़ है, वो मुश्किलात में कूद जाने वाला होगा। जहाँ तक पुख़्ता उम्र के आदमी का ताल्लुक़ है, वो सफ़ेद रंग का और कमज़ोर जिस्म वाला होगा। उसके पेट पर एक बालदार निशान होगा। हरम का रहने वाला, तैमिय ख़ानदान का होगा। अब यह ज़रूरी नहीं कि तुम मुझे अपना पेट दिखाओ, क्योंकि बाक़ी सब अलामतें तुम में मौजूद हैं।”
इसकी इस बात पर हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने पेट पर से कपड़ा हटा दिया। वहाँ उनकी नाफ़ के ऊपर स्याह और सफ़ेद बालों वाला निशान मौजूद था।
तब वह पुकार उठा: “परवरदिगार-ए-काबा की क़सम! तुम वही हो।”
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं: “जब मैं यमन में अपनी ख़रीदारी और तिजारती काम कर चुका तो रुख़्सत होने के वक़्त उसके पास आया। उस वक़्त उसने मुझसे कहा: “मेरी तरफ़ से चंद अशआर सुन लो जो मैंने उस नबी की शान में कहे हैं।”
इस पर मैंने कहा: “अच्छी बात है सुनाओ।”
तब उसने मुझे अशआर सुनाए।
इसके बाद जब मैं मक्का मुअज़्ज़मा पहुँचा तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी नबूवत का ऐलान कर चुके थे। फ़ौरन ही मेरे पास क़ुरैश के बड़े-बड़े सरदार आए। उनमें ज़्यादा अहम उक़्बा बिन अबी मोईत, शीबा, अबू जहल और अबुलबख़्तरी थे।
इन लोगों ने मुझसे कहा: “ऐ अबूबक्र! अबू तालिब के यतीम ने दावा किया है कि वो नबी हैं। अगर आपका इंतज़ार न होता तो हम उस वक़्त तक सब्र न करते। अब जब कि आप आ गए हैं, उनसे निपटना आप ही का काम है।”
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं: “मैंने अच्छे अंदाज़ से उन लोगों को टाल दिया और ख़ुद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर पहुँचा। दरवाज़े पर दस्तक दी। आप बाहर तशरीफ़ लाए। मुझे देखकर आपने फ़रमाया:
“ऐ अबूबक्र! मैं तुम्हारी और तमाम इंसानों की तरफ़ अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा गया हूँ। इसलिए अल्लाह तआला पर ईमान ले आओ।”
आपकी बात सुनकर मैंने कहा: “आपके पास इस बात का सबूत है?”
आपने मेरी बात सुनकर इरशाद फ़रमाया: “उस बूढ़े के वो अशआर जो उसने आपको सुनाए थे।”
यह सुनकर मैं हैरान रह गया और बोला: “मेरे दोस्त! आपको इनके बारे में किसने बताया?”
आपने इरशाद फ़रमाया: “उस अज़ीम फ़रिश्ते ने जो मुझसे पहले भी तमाम नबियों के पास आता रहा है।”
हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया: “अपना हाथ लाइए! मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि आप अल्लाह के रसूल हैं।”
आप मेरे ईमान लाने पर बहुत ख़ुश हुए। मुझे सीने से लगाया। फिर कलिमा पढ़कर मैं आपके पास से वापस आ गया।
मुसलमान होने के बाद हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने जो सबसे पहला काम किया, वह था इस्लाम की तबलीग़। उन्होंने अपने जानने वालों को इस्लाम का पैग़ाम दिया। उन्हें अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ बुलाया।
हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास का ईमान लाना
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास रज़ियल्लाहु अन्हु को भी इस्लाम की दावत दी। उन्होंने कोई हिचकिचाहट ज़ाहिर नहीं की और फ़ौरन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास चले आए। आपसे आपके पैग़ाम के बारे में पूछा। आपने उन्हें बताया तो वह उसी वक़्त मुसलमान हो गए। उस वक़्त उनकी उम्र 19 साल थी।
यह बनी ज़हरा के क़बीले से थे। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वालिदा हज़रत आमिना भी इसी क़बीले से थीं।
इसी लिए हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास रज़ियल्लाहु अन्हु को नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मामा कहा जाता था।
आपने हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास रज़ियल्लाहु अन्हु के लिए फ़रमाया: “यह मेरे मामा हैं। है कोई जिसके ऐसे मामा हों?”
हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास रज़ियल्लाहु अन्हु जब मुसलमान हुए और उनकी वालिदा को उनके इस्लाम लाने का पता चला, तो उन्हें यह बात बहुत नागवार गुज़री। इधर हज़रत सअद अपनी वालिदा के बहुत फ़रमाबरदार थे।
वालिदा ने उनसे कहा: “क्या तुम यह नहीं समझते कि अल्लाह ने तुम्हें अपने बड़ों की खिदमत और माँ-बाप के साथ अच्छा सुलूक करने का हुक्म दिया है?”
हज़रत सअद ने जवाब दिया: “हाँ, बिल्कुल ऐसा ही है।
“यह जवाब सुनकर वालिदा ने कहा: “बस तो अल्लाह की क़सम! मैं इस वक़्त तक खाना नहीं खाऊँगी जब तक कि तुम मोहम्मद के लाए हुए दीन को नहीं छोड़ देते और असाफ़ व नायला बुतों को जाकर नहीं छूते।”
हज़रत सअद बिन अबी वक़्कास रज़ियल्लाहु अन्हु की वालिदा ने खाना-पीना छोड़ दिया और अपनी बात पर क़ायम रहीं।
हज़रत सअद ने अपनी वालिदा से कहा:”अम्मा जान! अल्लाह की क़सम, अगर तुम्हारे पास एक हज़ार जिंदगियाँ हों और तुम उन्हें एक-एक करके खो देती हो, तब भी मैं मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन को नहीं छोड़ूंगा। अब यह तुम्हारी मरज़ी है कि तुम खाना खाओ या ना खाओ।”
जब उनकी वालिदा ने उनके इस इरादे और मज़बूती को देखा, तो उन्होंने मजबूर होकर खाना शुरू किया। लेकिन इसके बाद उन्होंने एक नई चाल चली। वह दरवाज़े पर आकर जोर-जोर से चिल्लाने लगीं:
“क्या मेरे लिए कोई ऐसा मददगार नहीं है, जो सअद के मामले में मेरी मदद करे ताकि मैं इसे घर में क़ैद कर दूं और यह मर जाए या अपने नए दीन को छोड़ दे?”
हज़रत सअद फरमाते हैं: “जब मैंने यह सुना, तो अपनी वालिदा से कहा: ‘मैं अब आपके घर का रुख़ भी नहीं करूंगा।’ इसके बाद मैं कुछ दिनों तक घर नहीं गया। मेरी वालिदा ने तंग आकर मुझे बुलवाया और कहा: ‘तुम घर आ जाओ, दूसरों के मेहमान बनकर हमें शर्मिंदा मत करो।’
चुनांचे हज़रत सअद रज़ियल्लाहु अन्हु घर लौट आए। अब घरवालों ने प्यार और मोहब्बत से उन्हें समझाना शुरू किया और उनके भाई आमिर की मिसाल देकर कहने लगे: ‘देखो, आमिर कितना अच्छा है। उसने अपने बाप-दादा का दीन नहीं छोड़ा।’लेकिन थोड़े ही समय बाद उनके भाई आमिर भी मुसलमान हो गए।
अब उनकी वालिदा का गुस्सा और बढ़ गया।
माँ ने दोनों भाइयों को बहुत तकलीफ़ें पहुँचाईं। आखिर आमिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) तंग आकर हबशा की ओर हिजरत कर गए। आमिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के हबशा हिजरत कर जाने से पहले, एक दिन हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ियल्लाहु अन्हु) घर आए, तो देखा कि माँ और आमिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) के चारों तरफ़ बहुत से लोग इकट्ठा हैं।
मैंने पूछा: “लोग क्यों इकट्ठा हैं?”
लोगों ने बताया:
“यह देखो, तुम्हारी माँ ने तुम्हारे भाई को पकड़ रखा है और अल्लाह से यह अहद (वचन) कर रही है कि जब तक आमिर बेदीन (धर्म त्याग) नहीं करेगा, तब तक न तो खजूर के साए में बैठेगी, न खाना खाएगी और न पानी पिएगी।”
हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास ने यह सुनकर कहा:
“अल्लाह की क़सम माँ! जब तक तुम जहन्नम का ईंधन न बन जाओ, तब तक न तो खजूर के साए में बैठो और न ही कुछ खाओ-पियो।”
ग़रज़ (अर्थात्) उन्होंने माँ की कोई परवाह न की और दीन (इस्लाम) पर क़ायम रहे।
हज़रत अली का ईमान लाना
एक दिन वह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए। उस वक़्त आप सैय्यदा ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ घर में नमाज़ पढ़ रहे थे।
उन्होंने ये नई बात देखी और पूछा: ”यह आप क्या कर रहे हैं?”
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: ”यह वह दीन है जिसे अल्लाह तआला ने अपने लिए पसंद किया है। इसके लिए उसने अपने पैग़ंबर भेजे हैं। मैं तुम्हें भी अल्लाह की तरफ़ बुलाता हूँ और लात व उज़्ज़ा (मूर्तियों) की इबादत से रोकता हूँ।”
हज़रत अली ने यह सुनकर अर्ज़ किया: ”यह एक नई बात है। इसके बारे में मैंने आज तक कुछ नहीं सुना। मैं अभी इस पर कुछ नहीं कह सकता। मैं अपने वालिद से मशविरा कर लूं।”
उनका जवाब सुनकर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: ”अली! अगर तुम मुसलमान नहीं होते, तो भी इस बात को छुपाए रखना।”
उन्होंने वादा किया और इसका ज़िक्र किसी से नहीं किया। रातभर सोचते रहे। आख़िरकार अल्लाह ने उन्हें हिदायत दी। सुबह-सवेरे वह आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुए और मुसलमान हो गए। उलमा लिखते हैं कि उस वक़्त हज़रत अली की उम्र तक़रीबन आठ साल थी। उन्होंने इससे पहले कभी बुतों की इबादत नहीं की थी। वह बचपन से ही नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ रहते थे।
लेकिन ऐहतियात के बावजूद हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के वालिद को उनके इस्लाम कबूल करने का इल्म हो गया। तो उन्होंने हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से इसके बारे में पूछा।
अपने वालिद का सवाल सुनकर हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया:
“अब्बा जान! मैं अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान ला चुका हूँ और जो कुछ अल्लाह के रसूल लेकर आए हैं, उसकी तस्दीक कर चुका हूँ। लिहाज़ा, उनके दीन में दाखिल हो गया हूँ और उनकी पैरवी इख्तियार कर ली है।”
यह सुनकर अबू तालिब ने कहा:
“जहाँ तक उनकी बात है (यानी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की), तो वह तुम्हें भलाई के सिवा किसी और रास्ते पर नहीं ले जाएँगे। लिहाज़ा, उनका साथ मत छोड़ना।”
अबू तालिब अक्सर यह कहा करते थे:
“मैं जानता हूँ, मेरा भतीजा जो कहता है, वह हक है। अगर मुझे यह डर न होता कि कुरैश की औरतें मुझे शर्मिंदा करेंगी, तो मैं ज़रूर उनकी पैरवी कबूल कर लेता।”
अफीफ किंदी रज़ियल्लाहु अन्हु, जो एक व्यापारी थे, उनका बयान है:
“इस्लाम क़बूल करने से बहुत पहले मैं एक बार हज के लिए गया। व्यापार के कुछ सामान खरीदने के लिए मैं अब्बास इब्न अब्दुल मुत्तलिब के पास गया। वह मेरे दोस्त थे और यमन से अक्सर इत्र खरीदकर लाते थे। फिर हज के मौसम में मक्का में बेचते थे। मैं उनके साथ मिना में बैठा था कि एक नौजवान आया। उसने डूबते सूरज की तरफ़ ग़ौर से देखा।
जब उसने देख लिया कि सूरज डूब चुका है, तो उसने बड़े एहतेमाम से वज़ू किया और नमाज़ पढ़ने लगा, यानी काबा की तरफ़ रुख़ करके। फिर एक लड़का आया, जो बालिग होने के करीब था। उसने वज़ू किया और उस नौजवान के बराबर खड़े होकर नमाज़ पढ़ने लगा। फिर एक औरत खेमे से निकली और उनके पीछे नमाज़ की नीयत से खड़ी हो गई।
उसके बाद उस नौजवान ने रुकू किया, तो उस लड़के और औरत ने भी रुकू किया। नौजवान सजदे में गया, तो वह दोनों भी सजदे में चले गए। यह मंजर देखकर मैंने अब्बास इब्न अब्दुल मुत्तलिब से पूछा:
“अब्बास! यह क्या हो रहा है?”
उन्होंने बताया: “यह मेरे भाई अब्दुल्लाह के बेटे का धर्म है। मुहम्मद ﷺ का दावा है कि अल्लाह तआला ने उन्हें पैग़ंबर बनाकर भेजा है। यह लड़का मेरा भतीजा अली इब्न अबी तालिब है और यह औरत मुहम्मद ﷺ की पत्नी खदीजा हैं।”
यह अफीफ किंदी रज़ियल्लाहु अन्हु जब मुसलमान हुए तो कहा करते थे: “काश! उस वक़्त में ईमान ले आता तो मैं इनमें चौथा आदमी मैं होता।”
इस वाक़ये के वक़्त ग़ालिबन हज़रत ज़ैद बिन हारिसा और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु वहां मौजूद नहीं थे, हालांकि उस वक़्त तक दोनों मुसलमान हो चुके थे।
हज़रत ज़ैद बिन हारिसा का ईमान लाना
हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ग़ुलामों में सबसे पहले ईमान लाए थे। यह हुज़ूर अक़रम ﷺ के आज़ाद किए हुए ग़ुलाम थे। पहले यह हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के ग़ुलाम थे। शादी के बाद उन्होंने ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को आप ﷺ की ख़िदमत में दे दिया था।
यह ग़ुलाम कैसे बने, यह भी सुन लें। जाहिलियत के ज़माने में इनकी वालिदा इन्हें लेकर अपने मां-बाप के पास जा रही थीं कि क़ाफ़िले को लूट लिया गया। डाकू इनके बेटे ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को भी ले गए। फिर इन्हें उकाज़ के मेले में बेचने के लिए लाया गया। उधर सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हकीम बिन हिसाम रज़ियल्लाहु अन्हु को मेले में भेजा।
वह एक ग़ुलाम ख़रीदना चाहती थीं। आप हकीम बिन हिसाम रज़ियल्लाहु अन्हु की फूफी थीं। हकीम बिन हिसाम रज़ियल्लाहु अन्हु मेले में आए तो वहां उन्होंने ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु को बिकते देखा। उस वक़्त उनकी उम्र आठ साल थी।
हकीम बिन हिसाम रज़ियल्लाहु अन्हु को यह अच्छे लगे। उन्होंने सैयदा खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा के लिए इन्हें ख़रीद लिया। हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा को भी यह पसंद आए और उन्होंने इन्हें अपनी ग़ुलामी में ले लिया। फिर नबी करीम ﷺ को तोहफ़ा कर दिया। इस तरह हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु आप ﷺ के ग़ुलाम बने।
फिर जब आपने इस्लाम की दावत दी तो फ़ौरन आप पर ईमान ले आए। बाद में हुज़ूर ﷺ ने उन्हें आज़ाद कर दिया था, मगर यह उम्रभर हुज़ूर ﷺ की ख़िदमत में रहे।
इनके वालिद एक मुद्दत से इनकी तलाश में थे। किसी ने उन्हें बताया कि ज़ैद मक्का में देखे गए हैं।
इनके वालिद और चाचा इन्हें लेने फ़ौरन मक्का मुअज़्ज़मा की तरफ़ चल पड़े। मक्का पहुंचकर यह आप ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुए और आपको बताया कि ज़ैद उनके बेटे हैं।
सारी बात सुनकर आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: “तुम ज़ैद से पूछ लो, अगर यह तुम्हारे साथ जाना चाहें तो मुझे कोई एतराज़ नहीं और यहां मेरे पास रहना चाहें तो उनकी मर्ज़ी।”
हज़रत ज़ैद से पूछा गया तो इन्होंने हुज़ूर के साथ रहना पसंद किया
इस पर पिता ने कहा: “तेरा बुरा हो ज़ैद… तू आज़ादी के मुकाबले गुलामी को पसंद कर रहा है।”
जवाब में हज़रत ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: “हाँ! उनके मुकाबले में मैं किसी और को हरगिज़ नहीं चुन सकता।”
आप (नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु की यह बात सुनी तो फौरन हजर-ए-असवद के पास गए और ऐलान फरमाया: “आज से ज़ैद मेरा बेटा है।”
उनके पिता और चाचा मायूस हो गए। हालांकि, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें इजाज़त दे दी कि वे जब चाहें ज़ैद से मिलने आ सकते हैं। चुनांचे, वे मिलने के लिए आते रहे।
तो ये थे हज़रत ज़ैद बिन हारिसा रज़ियल्लाहु अन्हु, जो ग़ुलामों में सबसे पहले ईमान लाए। हज़रत ज़ैद वह अकेले सहाबी हैं जिनका कुरान करीम में नाम लेकर ज़िक्र किया गया है।
हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान का ईमान लाना
चुनांचे उनकी तबलीग़ के नतीजे में हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए।
हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के मुसलमान होने की ख़बर उनके चाचा हकम को हुई तो उसने उन्हें पकड़ लिया और कहा:
“तू अपने बाप-दादा का दीन छोड़कर मुहम्मद का दीन क़बूल करता है? अल्लाह की क़सम! मैं तुझे इस वक़्त तक नहीं छोड़ूँगा जब तक कि तू इस दीन को नहीं छोड़ देगा।”
इस पर हज़रत उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:”अल्लाह की क़सम! मैं इस दीन को कभी नहीं छोड़ूँगा।”
उनके चाचा ने जब उनकी पुख़्तगी और साबित-क़दमी देखी तो उन्हें धुएँ में खड़ा करके तकलीफ़ पहुँचाई। हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु साबित-क़दम रहे।
हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु की फ़ज़ीलत में एक हदीस में आया है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: “जन्नत में हर नबी का एक रफ़ीक़ यानी साथी होता है और मेरे साथी वहाँ उस्मान बिन अफ़्फ़ान होंगे।”
हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस्लाम की तबलीग़ जारी रखी। आपकी कोशिशों से हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद हज़रत ज़ुबैर बिन अल-अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु भी मुसलमान हो गए। उस वक़्त उनकी उम्र आठ साल थी।
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ का ईमान लाना
इसी तरह हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु भी हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की कोशिशों से मुसलमान हुए।
जाहिलियत के ज़माने में हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ का नाम अब्दुलकअबा था। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका नाम अब्दुर्रहमान रखा।
यह अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं:
“उमय्याह बिन ख़लफ़ मेरा दोस्त था। एक दिन उसने मुझसे कहा, ‘तुमने उस नाम को छोड़ दिया जो तुम्हारे बाप ने रखा था।’
मैंने जवाब दिया, ‘हाँ, मैंने छोड़ दिया।’
यह सुनकर वह बोला, ‘मैं रहमान को नहीं जानता, इसलिए मैं तुम्हारा नाम अब्दुल-इलाह रखता हूँ।’
चुनांचे उस दिन से मुश्रिक मुझे अब्दुल-इलाह कहकर पुकारने लगे।
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु अपने इस्लाम लाने का वाक़िया इस तरह बयान करते हैं
मैं अक्सर यमन जाया करता था। जब भी वहाँ जाता, असकलान बिन अवाक़िफ़ हमीरी के मकान पर ठहरा करता था।
वह मुझसे अक्सर पूछा करता था, ‘क्या वह शख़्स तुम लोगों में ज़ाहिर हो गया है, जिसकी चर्चा और शोहरत है?
क्या तुम्हारे दीन के मामले में किसी ने मुख़ालफ़त का ऐलान किया है?’
मैं हमेशा यही कहता था कि नहीं, ऐसा कोई शख़्स ज़ाहिर नहीं हुआ। यहाँ तक कि वह साल आ गया, जिसमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़हूर हुआ। मैं उस साल यमन गया तो उसी के यहाँ ठहरा। उसने फिर वही सवाल किया।
तब मैंने उसे बताया, ‘हाँ, उनका ज़हूर हो गया है और उनकी मुख़ालफ़त भी हो रही है।’”
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु के बारे में नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “तुम ज़मीन वालों में भी अमानतदार हो और आसमान वालों में भी।”
हज़रत तल्हा का ईमान लाना
इसी तरह हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ की कोशिशों से हज़रत तल्हा तैमि भी इस्लाम ले आए। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में लाए और वे आपके हाथों मुसलमान हुए। इसके बाद हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ और हज़रत तल्हा ने अपने इस्लाम लाने की खुलकर घोषणा कर दी।
उनकी इस घोषणा को सुनकर नौफ़ल बिन अदवीया ने उन्हें पकड़ लिया। इस शख़्स को क़ुरैश का शेर कहा जाता था। उसने दोनों को एक ही रस्सी से बाँध दिया। उसकी इस हरकत पर उनके क़बीले बनू तैम ने भी उन्हें नहीं बचाया। अब चूँकि नौफ़ल ने दोनों को एक ही रस्सी से बाँधा था और दोनों के शरीर आपस में पूरी तरह से मिले हुए थे, इसलिए उन्हें “क़रीनैन” कहा जाने लगा, यानी “मिले हुए”।
नौफ़ल बिन अदवीया के ज़ुल्म की वजह से रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दुआ किया करते थे:
“ऐ अल्लाह! हमें इब्ने अदवीया के शर (बुराई) से बचा।”
हज़रत तल्हा अपने इस्लाम क़ुबूल करने का कारण इस तरह बयान करते हैं:
“एक बार मैं बसरा के बाज़ार में गया। वहाँ मैंने एक राहिब (संत) को देखा, जो अपनी ख़ानक़ाह (मठ) में खड़ा था और लोगों से कह रहा था: “इस बार हज से आने वालों से पूछो, क्या उनमें कोई हरम (मक्का) का रहने वाला भी है?”
“मैंने आगे बढ़कर कहा: ‘मैं हूँ हरम का रहने वाला।'”
“मेरा यह जवाब सुनकर उसने कहा: ‘क्या अहमद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का ज़ुहूर (आगमन) हो गया है?’
“मैंने पूछा: ‘अहमद कौन?’
“तब उस राहिब ने कहा: ‘अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब… यह उनका महीना है, वे इसी महीने में ज़ाहिर होंगे। वे आख़िरी नबी हैं। उनके ज़ाहिर होने की जगह हरम (मक्का) है और उनकी हिजरत (प्रवास) की जगह वह इलाक़ा है, जहाँ बाग़-बग़ीचे और हरे-भरे स्थान हैं। इसलिए तुम्हारे लिए ज़रूरी है कि तुम इस नबी की ओर बढ़ने में पहल करो।'”
“उस राहिब की कही हुई बात मेरे दिल में बैठ गई। मैं तेज़ी से वहाँ से वापस मक्का रवाना हुआ। वहाँ पहुँचकर मैंने लोगों से पूछा: ‘क्या कोई नया वाक़िआ (घटना) पेश आया है?'”
“लोगों ने बताया: ‘हाँ! मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह (अमीन) ने लोगों को अल्लाह की तरफ़ बुलाना शुरू कर दिया है और अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने उनकी पैरवी क़ुबूल कर ली है।'”
“यह सुनते ही मैं घर से निकला और अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पास पहुँचा। मैंने उन्हें राहिब की सारी बात सुना दी। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने यह बात रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को बताई। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) यह सुनकर बहुत खुश हुए। उसी समय मैंने इस्लाम क़ुबूल कर लिया।”
यह हज़रत तल्हा “अशरा मुबश्शरा” में से हैं। यानी उन दस सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) में से हैं, जिन्हें रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दुनिया में ही जन्नत की खुशखबरी दे दी थी।
इसी तरह हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) की कोशिशों से जिन सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने इस्लाम क़ुबूल किया, उनमें से पाँच “अशरा मुबश्शरा” में शामिल हैं:
- हज़रत ज़ुबैर (रज़ियल्लाहु अन्हु)
- हज़रत उस्मान (रज़ियल्लाहु अन्हु)
- हज़रत तल्हा (रज़ियल्लाहु अन्हु)
- हज़रत अब्दुर्रहमान (रज़ियल्लाहु अन्हु)
- हज़रत अबू उबैदा बिन जऱ्रह (कुछ विद्वानों ने इन्हें भी शामिल किया है)।
इनमें से हज़रत अबू बक्र, हज़रत उस्मान, हज़रत अब्दुर्रहमान और हज़रत तल्हा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) कपड़े के व्यापारी थे। हज़रत ज़ुबैर (रज़ियल्लाहु अन्हु) जानवरों का ज़बीहा (कुर्बानी) करते थे और हज़रत सअद (रज़ियल्लाहु अन्हु) तीर बनाने का काम करते थे।
इसके बाद हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) इस्लाम लाए।
अब्दुल्लाह बिन मसऊद का ईमान लाना
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद अपने इस्लाम लाने का वाक़िआ इस तरह बयान करते हैं:
“मैं एक दिन अक़बा बिन अबी मुईत के ख़ानदान की बकरियाँ चरा रहा था। उसी वक़्त रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) वहाँ आए। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) भी आपके साथ थे। आपने मुझसे पूछा:
‘क्या तुम्हारे पास दूध है?’
“मैंने कहा: ‘जी हाँ! लेकिन मैं तो अमीन (रखवाला) हूँ।’ (यानी यह दूध तो अमानत है, मालिक की इजाज़त के बिना नहीं दिया जा सकता।)”
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
‘क्या तुम्हारे पास कोई ऐसी बकरी है, जिसने अभी तक बच्चा न जना हो?’
“मैंने कहा: ‘जी हाँ, एक बकरी है।”
“मैं उस बकरी को आपके क़रीब ले आया। उसके अभी थन पूरी तरह नहीं निकले थे। आपने उसके थनों पर हाथ फेरा। उसी वक़्त उसके थन दूध से भर गए!”
यह वाक़िआ दूसरी रिवायत में इस तरह बयान हुआ है:
“उस बकरी के थन सूख चुके थे। आपने उन पर हाथ फेरा तो वे दूध से भर गए!”
“हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) यह देखकर हैरान रह गए। वे रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को एक साफ़ पत्थर के पास ले आए। वहाँ बैठकर आपने बकरी का दूध दुहा। आपने पहले हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) को पिलाया, फिर मुझे पिलाया और आखिर में ख़ुद पिया। फिर आपने बकरी के थन से फ़रमाया:
‘सिमट जा!’
“चुनांचे वह थन फिर उसी तरह हो गए जैसे पहले थे!”
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं:
“जब मैंने रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का यह मोज़िज़ा (चमत्कार) देखा तो मैंने अर्ज़ किया:
‘ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे इसकी हक़ीक़त बताइए।'”
“आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सुनकर मेरे सर पर हाथ फेरा और फ़रमाया:
‘अल्लाह तुम पर रहमत करे! तुम तो जानकार बनोगे!’
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद की विशेषताएँ
- प्रसिद्धि:
वे अपने पिता के बजाय, अपनी माँ की तरफ़ से अधिक मशहूर थे। उनकी माँ का नाम “उम्मे अब्द” था। - कद-काठी:
उनका क़द छोटा और शरीर बहुत दुबला-पतला था। एक बार सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम उनके पतले पैरों को देखकर हँसने लगे तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु अपने दर्जे (मर्तबे) के एतबार से तराज़ू में सबसे भारी होंगे!”
- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत:
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) को रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से बहुत क़रीबी रिश्ता हासिल था। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उनकी बहुत इज़्ज़त किया करते थे।
- वे आपके घर में आते-जाते थे।
- जब आप कहीं जाते, तो वे आपके आगे-आगे या साथ-साथ चलते।
- जब आप ग़ुस्ल करते, तो वे पर्दे के लिए चादर तान कर खड़े रहते।
- जब आप सोते, तो वे समय पर आपको जगाते।
- जब आप बैठते, तो वे आपके जूते अपने हाथ में ले लेते।
इन्हीं खूबियों की वजह से कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के बीच यह मशहूर हो गया था कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के घराने वालों में से हैं।
- रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की गवाही:
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“मेरी उम्मत के लिए वही चीज़ पसंद है जो इब्ने उम्मे अब्द (अब्दुल्लाह बिन मसऊद) को पसंद हो, और जिस चीज़ को उन्होंने नापसंद किया, मैंने भी उसे नापसंद किया।”
यह इस बात की दलील है कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेहद क़रीबी और भरोसेमंद थे।
- जन्नत की बशारत:
आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियल्लाहु अन्हु) को जन्नत की खुशखबरी दी थी। - उनका नज़रिया:
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते थे:
“दुनिया तमाम की तमाम ग़मों की पोंजी (समूह) है। अगर इसमें कोई ख़ुशी है, तो वह सिर्फ़ एक वक़्ती फ़ायदा है।”
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए।
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी का इस्लाम क़ुबूल करना
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी (रज़ियल्लाहु अन्हु) भी उन सहाबा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) में से हैं जिन्होंने इस्लाम के शुरुआती दौर में ही इसे क़ुबूल किया। उनका इस्लाम लाने का वाक़िआ बहुत दिलचस्प और हिम्मत से भरा हुआ है।
हजरत अबूजर ग़िफ़ारी ؓ अपने इस्लाम लाने का वाक़िया बयान करते हुए फ़रमाते हैं :
“आँहज़रत ﷺ पर वही आने से भी तीन साल पहले से मैं अल्लाह ताआला के लिए नमाज़ पढ़ा करता था और जिस तरफ़ अल्लाह ताआला मेरा रुख़ कर देते, मैं उसी तरफ़ चल पड़ता था – उसी ज़माने में हमें मालूम हुआ कि मक्का मोअज़्ज़मा में एक शख़्स ज़ाहिर हुआ है, उसका दावा है कि वह नबी है – यह सुन कर मैंने अपने भाई अनिस से कहा :
“तुम उस शख़्स के पास जाओ, उससे बात-चीत करो और आकर मुझे इस बात-चीत के बारे में बताओ” –
चुनांचे अनिस ने नबी करीम ﷺ से मुलाक़ात की, जब वह वापस आए तो मैंने उनसे आप ﷺ के बारे में पूछा –
उन्होंने बताया :
“अल्लाह की क़सम ! मैं एक ऐसे शख़्स के पास से आ रहा हूँ जो अच्छाइयों का हुक्म देता है और बुराइयों से रोकता है और एक रिवायत में है कि मैंने तुम्हें उसी शख़्स के दीन पर पाया है – उसका दावा है कि उसे अल्लाह ने रसूल बना कर भेजा है – मैंने इस शख़्स को देखा कि वह नेकी और बुलंद अख़लाक़ की तालीम देता है -“
मैंने पूछा :
“लोग उसके बारे में क्या कहते हैं?”
अनिस ने बताया :
“लोग उसके बारे में कहते हैं कि यह काहिन और जादूगर है मगर अल्लाह की क़सम वह शख़्स सच्चा है और वह लोग झूठे हैं।”
यह तमाम बातें सुन कर मैंने कहा :
“बस काफ़ी है, मैं खुद जाकर उनसे मिलता हूँ।”
अनिस ने फ़ौरन कहा :
“ज़रूर जाकर मिलो, मगर मक्का वालों से बच कर रहना।”
चुनांचे मैंने अपने मोज़े पहने, लाठी हाथ में ली और रवाना हो गया, जब मैं मक्का पहुँचा तो मैंने लोगों के सामने ऐसा ज़ाहिर किया, जैसे मैं इस शख़्स को जानता ही नहीं और उसके बारे में पूछना भी पसंद नहीं करता –
मैं एक माह तक मस्जिद हराम में ठहरा रहा, मेरे पास सिवाए ज़मज़म के खाने को कुछ नहीं था – इसके बावजूद मैं ज़मज़म की बरकत से मोटा हो गया – मेरे पेट की सिलवटें खत्म हो गईं – मुझे भूख का बिल्कुल एहसास नहीं होता था –
एक रात जब हरम में कोई तवाफ़ करने वाला नहीं था, अल्लाह के रसूल एक साथी (अबू बक्र रज़ी अल्लाह अन्हु) के साथ वहाँ आए और बैतुल्लाह का तवाफ़ करने लगे – इसके बाद आप ने और आपके साथी ने नमाज़ पढ़ी – जब आप नमाज़ से फ़ारिग हो गए तो मैं आपके नज़दीक चला गया और बोला :
“अस्सलामु अलैक या रसूल अल्लाह, मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह ताआला के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और यह कि मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं -“
मैंने महसूस किया, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे पर ख़ुशी के आसार नमूदार हो गए –
फिर आप ने मुझसे पूछा :
“तुम कौन हो -“
मैंने जवाब में कहा :
’’जी मैं ग़िफ़ार क़बीले का हूँ‘‘
आप ने पूछा :
’’यहाँ कब से आए हुए हो?‘‘
मैंने अर्ज़ किया :
तीस दिन और तीस रातों से यहाँ हूँ‘‘।
आप ने पूछा :
“तुम्हें खाना कौन खिलाता है?‘‘
मैंने अर्ज़ की :
“मेरे पास सिवाए ज़मज़म के कोई खाना नहीं, इस को पी-पी कर मैं मोटा हो गया हूँ, यहाँ तक कि मेरे पेट की सिलवटें तक खत्म हो गई हैं और मुझे भूख का बिल्कुल एहसास नहीं होता‘‘।
आप ने फ़रमाया :
“मुबारक हो, यह ज़मज़म बेहतरीन खाना और हर बीमारी की दवा है‘‘।
ज़मज़म के बारे में अहादीस में आता है, अगर तुम आबे ज़मज़म को इस नीयत से पियो कि अल्लाह ताआला तुम्हें इसके ज़रिए बीमारियों से शिफ़ा अता फ़रमाए तो अल्लाह ताआला शिफ़ा अता फ़रमाता है और अगर इस नीयत से पिया जाए कि इसके ज़रिए पेट भर जाए और भूख न रहे तो आदमी शिकम सीर हो जाता है और अगर इस नीयत से पिया जाए कि प्यास का असर बाकी न रहे तो प्यास खत्म हो जाती है।
इसके ज़रिए अल्लाह ताआला ने इस्माईल अलैहिस्सलाम को सैराब किया था। एक हदीस में आता है कि जी भर कर ज़मज़म का पानी पीना अपने आपको निफ़ाक़ से दूर करना है। और एक हदीस में है कि हम में और मुनाफ़िक़ों में यह फ़र्क़ है कि वह लोग ज़मज़म से सैराबी हासिल नहीं करते।
हाँ तो बात हो रही थी हजरत अबू ज़र ग़िफ़ारी ؓ की… कहा जाता है, अबू ज़र ग़िफ़ारी इस्लाम में पहले आदमी हैं जिन्होंने आप ﷺ को इस्लामी सलाम के अल्फ़ाज़ के मुताबिक़ सलाम किया। उनसे पहले किसी ने आप ﷺ को इन अल्फ़ाज़ में सलाम नहीं किया था।
अब अबू ज़रؓ ने आप ﷺ से इस बात पर बैअत की कि अल्लाह ताआला के मामले में वह किसी मलामत करने वाले की मलामत से नहीं घबराएँगे और यह कि हमेशा हक़ और सच्ची बात कहेंगे चाहे हक़ सुनने वाले के लिए कितना ही कड़वा क्यों न हो।
यह हजरत अबू ज़रؓ हजरत अबू बक्र सिद्दीक ؓ की वफ़ात के बाद मुल्के शाम के इलाके में हिजरत कर गए थे। फिर हजरत उस्मान ؓ की खिलाफ़त में उन्हें शाम से वापस बुला लिया गया और फिर यह रबज़ा के मक़ाम पर आ कर रहने लगे थे। रबज़ा के मक़ाम पर ही इनकी वफ़ात हुई थी।
उनके ईमान लाने के बारे में एक रिवायत यह है कि जब यह मक्का मोअज़्ज़मा आए तो इनकी मुलाक़ात हजरत अलीؓ से हुई थी और हजरत अलीؓ ने ही इनको आप ﷺ से मिलवाया था।
अबू ज़र ؓ कहते हैं :
बैअत करने के बाद नबी करीम ﷺ उन्हें साथ ले गए। एक जगह हजरत अबू बक्र सिद्दीक ؓ ने एक दरवाज़ा खोला, हम अंदर दाख़िल हुए, अबू बक्र सिद्दीकؓ ने हमें अंगूर पेश किए। इस तरह यह पहला खाना था जो मैंने मक्का में आने के बाद खाया।‘‘
इसके बाद नबी ﷺ ने उनसे फ़रमाया:
“ऐ अबू ज़रؓ इस मामले को अभी छुपाए रखना, अब तो तुम अपनी क़ौम में वापस जाओ और उन्हें बताओ ताकि वह लोग मेरे पास आ सकें, फिर जब तुम्हें मालूम हो कि हमने खुद अपने मामले का खुल्लम-खुल्ला एलान कर दिया है तो उस वक्त तुम हमारे पास आ जाना।‘‘
आपﷺ की बात सुन कर हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारीؓ बोले:
’’कसम है उस ज़ात की जिसने आपको सच्चाई देकर भेजा, मैं इन लोगों के दरमियान खड़े होकर पुकार-पुकार कर ऐलान करूँगा।‘‘
हज़रत अबू ज़रؓ कहते हैं, ’’मैं ईमान लाने वाले देहाती लोगों में से पाँचवां आदमी था।‘‘ ग़रज़ जिस वक़्त क़ुरैश के लोग हरम में जमा हुए, उन्होंने बुलंद आवाज़ में चिल्ला कर कहा:
“मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मोहम्मद अल्लाह तआला के रसूल हैं।”
बुलंद आवाज़ में यह ऐलान सुनकर क़ुरैशियों ने कहा:
“इस बद्दीन को पकड़ लो।”
उन्होंने हज़रत अबू ज़रؓ को पकड़ लिया और बेइंतेहा मारा। एक रिवायत में अल्फ़ाज़ ये हैं कि वे लोग उन पर चढ़ दौड़े और पूरी ताकत से उन्हें मारने लगे, यहाँ तक कि वे बेहोश होकर गिर पड़े।
इस वक़्त हज़रत अब्बासؓ दरमियान में आ गए। वे उन पर झुक गए और क़ुरैशियों से कहा:
“तुम्हारा बुरा हो! क्या तुम्हें मालूम नहीं कि यह शख़्स क़बीला ग़िफ़ार से है? उनका इलाक़ा तुम्हारी तिजारत का रास्ता है।”
उनके कहने का मतलब यह था कि क़बीला ग़िफ़ार के लोग तुम्हारा रास्ता बंद कर देंगे। इस पर उन लोगों ने उन्हें छोड़ दिया।
हज़रत अबू ज़रؓ फ़रमाते हैं, इसके बाद मैं ज़मज़म के कुएँ के पास आया और अपने बदन से खून धोया। अगले दिन मैंने फिर ऐलान किया:
“मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं और मोहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल हैं।”
उन्होंने फिर मुझे मारा। इस रोज़ भी हज़रत अब्बासؓ ही ने मुझे उनसे छुड़ाया। फिर मैं वहाँ से वापस हुआ और अपने भाई अनिस के पास आया।
अनिस ने मुझसे कहा
तुम क्या कर आए हो
मैंने जवाब दिया
मुसलमान हो गया हूँ, और मैंने मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तस्दीक कर दी है।
इस पर अनिस ने कहा
मैं भी बुतों से बेज़ार हूँ और इस्लाम क़बूल कर चुका हूँ।
इसके बाद हम दोनों अपनी वालिदा के पास आए तो वह बोलीं
मुझे पिछले दीन से कोई दिलचस्पी नहीं रही, मैं भी इस्लाम क़बूल कर चुकी हूँ, अल्लाह के रसूल की तस्दीक कर चुकी हूँ।।
इसके बाद हम अपनी क़ौम ग़िफ़ार के पास आए। उनसे बात की, उनमें से आधे तो उसी वक़्त मुसलमान हो गए। बाकी लोगों ने कहा, जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाएँगे हम उस वक़्त मुसलमान होंगे। चुनांचे जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ लाए तो क़बीला ग़िफ़ार के बाकी लोग भी मुसलमान हो गए।
इन हज़रात ने जो यह कहा था कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाएँगे, हम उस वक़्त मुसलमान होंगे तो उनके यह कहने की वजह यह थी कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का में हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु से इरशाद फ़रमाया था:
“मैं नख़लिस्तान यानी खजूरों के बाग़ की सरज़मीन में जाऊँगा, जो यसरिब के सिवा कोई नहीं है, तो क्या तुम अपनी क़ौम को यह ख़बर पहुँचा दोगे – मुमकिन है, इस तरह तुम्हारे ज़रिए अल्लाह तआला उन लोगों को फ़ायदा पहुँचा दे और तुम्हें उनकी वजह से अज्र मिले।”
इसके बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास क़बीला असलम के लोग आए – उन्होंने आप से अर्ज़ किया:
“ऐ अल्लाह के रसूल! हम भी उसी बात पर मुसलमान होते हैं जिस पर हमारे भाई क़बीला ग़िफ़ार के लोग मुसलमान हुए हैं -“
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सुनकर फ़रमाया:
“अल्लाह तआला ग़िफ़ार के लोगों की मग़फिरत फ़रमाए और क़बीला असलम को अल्लाह सलामत रखे -“
यह हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु एक मरतबा हज के लिए मक्का गए – तवाफ़ के दौरान काबे के पास ठहर गए – लोग उनके चारों तरफ़ जमा हो गए – उस वक़्त उन्होंने लोगों से कहा:
“भला बताओ तो! तुम में से कोई सफ़र में जाने का इरादा करता है तो क्या वह सफ़र का सामान साथ नहीं लेता?”
लोगों ने कहा:
“बेशक! साथ लेता है -“
तब आप ने फ़रमाया:
“तो फिर याद रखो! क़यामत का सफ़र दुनिया के हर सफ़र से कहीं ज़्यादा लंबा है और जिसका तुम यहाँ इरादा करते हो, उसी लिए अपने साथ उस सफ़र का वह सामान ले लो जो तुम्हें फ़ायदा पहुँचाए -“
लोगों ने पूछा:
“हमें क्या चीज़ फ़ायदा पहुँचाएगी?”
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी बोले:
“बलंद मक़सद के लिए हज करो, क़यामत के दिन का ख़याल करके ऐसे दिनों में रोज़े रखो जो सख़्त गर्मी के दिन होंगे और क़ब्र की वहशत और अंधेरे का ख़याल करते हुए, रात की तारीकी में उठकर नमाज़ें पढ़ो -“
हज़रत ख़ालिद बिन सईद का मुसलमान होना
हज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु के बाद हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु ईमान लाए –
कहा जाता है, देहात के लोगों में से मुसलमान होने वालों में यह तीसरे या चौथे आदमी थे – एक क़ौल यह है कि पाँचवें थे – यह अपने भाइयों में सबसे पहले मुसलमान हुए –
उनके इस्लाम लाने का वाक़िया यूँ है कि उन्होंने ख़्वाब में जहन्नम को देखा – उसकी आग बहुत ख़ौफ़नाक अंदाज़ में भड़क रही थी – यह खुद जहन्नम के किनारे खड़े थे – ख़्वाब में उन्होंने देखा कि उनका बाप उन्हें जहन्नम में धकेलना चाहता है मगर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनका दामन पकड़कर उन्हें दोज़ख़ में गिरने से रोक रहे हैं – उसी वक़्त घबराहट के आलम में उनकी आँख खुल गई –
उन्होंने फ़ौरन कहा:
“मैं अल्लाह की क़सम खाकर कहता हूँ कि यह ख़्वाब सच्चा है -“
साथ ही उन्हें यक़ीन हो गया कि जहन्नम से उन्हें रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही बचा सकते हैं – फ़ौरन अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के पास आए – उन्हें अपना ख़्वाब सुनाया –
अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
“इस ख़्वाब में तुम्हारी भलाई और ख़ैर पोशीदा है, अल्लाह के रसूल मौजूद हैं, उनकी पैरवी करो -“
चुनांचे हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु फ़ौरन ही नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए,
उन्होंने आप से पूछा:
“ऐ मोहम्मद! आप किस बात की दावत देते हैं -“
आप ने इरशाद फ़रमाया:
“मैं इस बात की दावत देता हूँ कि अल्लाह एक है, उसका कोई शरीक नहीं, कोई उसके बराबर का नहीं और यह कि मोहम्मद अल्लाह के बंदे और रसूल हैं और तुम जो यह पत्थरों की इबादत करते हो, इसको छोड़ दो – यह पत्थर न सुनते हैं, न देखते हैं, न नुक़सान पहुँचा सकते हैं और न फ़ायदा पहुँचा सकते हैं -“
यह सुनते ही हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए –
उनके वालिद का नाम सईद बिन आस था। जब उसे बेटे के इस्लाम क़बूल करने का पता चला तो वह आग बबूला हो गया। उसने बेटे को कोड़े से मारना शुरू कर दिया, यहाँ तक कि कोड़ा टूट गया। फिर उसने कहा:
“तूने मोहम्मद की पैरवी की, हालाँकि तू जानता है कि वह पूरी क़ौम के ख़िलाफ़ जा रहे हैं। वह हमारी क़ौम के माबूदों को बुरा कहते हैं!”
यह सुनकर हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“अल्लाह की क़सम! जो पैग़ाम वह लाए हैं, मैंने उसे क़बूल कर लिया है!”
इस जवाब पर उनके वालिद का ग़ुस्सा और बढ़ गया और उसने कहा:
“ख़ुदा की क़सम! मैं तेरा खाना-पीना बंद कर दूँगा!”
हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया:
“अगर आप मेरा खाना-पीना बंद कर देंगे तो अल्लाह तआला मुझे रोज़ी देने वाला है!”
तंग आकर सईद ने बेटे को घर से निकाल दिया और अपने बाकी बेटों से कहा:
“अगर तुम में से किसी ने भी इससे बात की, तो मैं उसका भी यही हश्र करूँगा!”
हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु घर से निकलकर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में आ गए और उसके बाद आप ही के साथ रहने लगे। वह अपने वालिद से बिल्कुल बे-तअल्लुक़ हो गए, यहाँ तक कि जब मुसलमानों ने काफ़िरों के ज़ुल्म-सितम से तंग आकर हबशा की तरफ़ हिजरत की, तो यह हिजरत करने वालों में पहले आदमी थे।
एक बार उनके वालिद बीमार हुए। उस समय उन्होंने क़सम खाई:
“अगर ख़ुदा ने मुझे इस बीमारी से सेहत दे दी तो मैं मक्का में कभी मोहम्मद के ख़ुदा की इबादत नहीं होने दूँगा!”
जब यह बात हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु तक पहुँची, तो उन्होंने कहा:
“ऐ अल्लाह! इसे इस मरज़ से कभी नजात न देना!”
चुनांचे उनके वालिद इसी बीमारी में मर गए। हज़रत ख़ालिद बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु पहले व्यक्ति थे जिन्होंने “बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम” लिखी।
अम्र बिन सईद का ईमान लाना
उनके बाद उनके भाई अम्र बिन सईद रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए
उनके मुसलमान होने का सबब यह हुआ कि उन्होंने ख़्वाब में एक नूर (प्रकाश) देखा। वह नूर ज़मज़म के पास से निकला और उससे मदीने के बाग़ रोशन हो गए, यहाँ तक कि उन बाग़ों की ताज़ा खजूरें नज़र आने लगीं।
उन्होंने यह ख़्वाब लोगों से बयान किया, तो किसी ने कहा:
“ज़मज़म अब्दुल मुत्तलिब के ख़ानदान का कुआँ है और यह नूर भी उन्हीं में से किसी से ज़ाहिर होगा।”
जब उनके भाई हज़रत ख़ालिद रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान हो गए, तो उन्हें अपने ख़्वाब की हक़ीक़त नज़र आने लगी। चुनांचे वह भी मुसलमान हो गए।
उनके अलावा सईद की औलाद में से रियान और हुक्म भी मुसलमान हुए। हुक्म का नाम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “अब्दुल्लाह” रखा।
हज़रत सुहैब रूमी और अम्मार बिन यासिर का ईमान लाना
इसी तरह शुरुआती दिनों में मुसलमान होने वालों में हज़रत सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे। उनके वालिद ईरान के बादशाह किसरा के गवर्नर थे।
एक मरतबा क़ैसर की फ़ौजों ने उनके इलाक़े पर हमला किया। इस लड़ाई में हज़रत सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु गिरफ़्तार हो गए। उन्हें ग़ुलाम बना लिया गया। उस वक़्त वह बच्चे थे, इसलिए वह ग़ुलामी की हालत में ही रोम में पले-बढ़े और वहीं जवान हुए।
फिर अरब के कुछ लोगों ने उन्हें ख़रीद लिया और बेचने के लिए मक्का के क़रीब “उकाज़” के बाज़ार में ले आए। इस बाज़ार में एक मेला लगता था, जिसमें ग़ुलामों की ख़रीद-फ़रोख़्त होती थी। वहाँ से उन्हें एक शख़्स अब्दुल्लाह बिन जुद’आन ने ख़रीद लिया।
इस तरह वह मक्का में ग़ुलामी की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ज़ुहूर हुआ। उनके दिल में आया कि जाकर देखें और सुनें कि वह क्या दावत देते हैं।
यह सोचकर वह घर से निकले। रास्ते में उनकी मुलाक़ात हज़रत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु से हुई।
उन्होंने उनसे पूछा:
“सुहैब! कहाँ जा रहे हो?”
वह फ़ौरन बोले:
“मैं मोहम्मद के पास जा रहा हूँ ताकि उनकी बात सुनूँ और देखूँ कि वह किस चीज़ की तरफ़ दावत देते हैं।”
यह सुनकर हज़रत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“मैं भी इसी इरादे से घर से निकला हूँ।”
यह सुनकर हज़रत सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“तो फिर चलो, हम दोनों एक साथ चलते हैं।”
अब दोनों एक साथ क़दम उठाने लगे…
हज़रत सुहैब और हज़रत अम्मार (रज़ि.) दोनों आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सेवा में हाज़िर हुए। आप ने दोनों को अपने पास बिठाया। जब वे बैठ गए तो आपने उनके सामने इस्लाम पेश किया और कुरआन करीम की जो आयतें आप पर उस समय तक नाज़िल हो चुकी थीं, उन्हें पढ़कर सुनाया। दोनों ने उसी समय इस्लाम क़बूल कर लिया। उसी दिन शाम तक ये दोनों नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास रहे।
शाम को दोनों चुपके से चले आए। हज़रत अम्मार (रज़ि.) सीधे अपने घर पहुंचे तो उनके माता-पिता ने उनसे पूछा कि वे दिनभर कहां थे। उन्होंने फ़ौरन ही बता दिया कि वे मुसलमान हो चुके हैं। साथ ही उन्होंने उनके सामने भी इस्लाम पेश किया और उस दिन उन्होंने कुरआन पाक का जो हिस्सा याद किया था, वह उनके सामने तिलावत किया। उनके माता-पिता को यह कलाम बेइंतिहा पसंद आया और दोनों फ़ौरन ही बेटे के हाथ पर मुसलमान हो गए। इसी बुनियाद पर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हज़रत अम्मार बिन यासिर (रज़ि.) को “अत्तय्यिबुल मुतय्यिब” कहा करते थे, यानी पवित्र और पवित्र करने वाला।
इसी तरह हज़रत इमरान (रज़ि.) इस्लाम लाए तो कुछ समय बाद उनके पिता हज़रत हुसैन (ص से) भी मुसलमान हो गए। उनके इस्लाम लाने की तफ़सील यूं है—
हज़रत हुसैन (حصین) का ईमान लाना
एक बार क़ुरैश के लोग नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से मुलाक़ात के लिए आए। उनमें हज़रत हुसैन (ص से) भी थे। क़ुरैश के लोग तो बाहर ही रह गए, मगर हुसैन (ص से) अंदर चले गए।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें देख कर फ़रमाया, “इन बुज़ुर्ग को जगह दो।”
जब वे बैठ गए, तब हज़रत हुसैन (ص से) ने कहा,
“हमें आपके बारे में कैसी-कैसी बातें मालूम हो रही हैं! आप हमारे माबूदों को बुरा कहते हैं?”
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया,
“ऐ हुसैन! आप कितने माबूदों की पूजा करते हैं?”
हज़रत हुसैन (ص से) ने जवाब दिया, “हम सात माबूदों की इबादत करते हैं। उनमें से छह ज़मीन में हैं और एक आसमान में।”
इस पर आपने फ़रमाया, “और अगर आपको कोई नुकसान पहुंच जाए तो फिर आप किससे मदद मांगते हैं?”
हज़रत हुसैन (ص से) बोले, “इस सूरत में हम उससे दुआ मांगते हैं जो आसमान में है।”
यह जवाब सुनकर आपने फ़रमाया, “वह तो अकेले तुम्हारी दुआएं सुन कर पूरी करता है और तुम उसके साथ दूसरों को भी शरीक करते हो! ऐ हुसैन, क्या तुम अपने इस शिर्क से ख़ुश हो? इस्लाम क़बूल करो, अल्लाह तआला तुम्हें सलामती देगा।”
हज़रत हुसैन (ص से) यह सुनते ही मुसलमान हो गए। उसी वक़्त उनके बेटे हज़रत इमरान (रज़ि.) उठकर अपने पिता की तरफ़ बढ़े और उनसे लिपट गए।
इसके बाद हज़रत हुसैन (ص से) ने वापस जाने का इरादा किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा-ए-किराम (रज़ि.) से फ़रमाया,
“इन्हें इनके घर तक पहुंचा कर आओ।”
हज़रत हुसैन (ص से) जब दरवाज़े से बाहर निकले तो वहां क़ुरैश के लोग मौजूद थे।
उन्हें देखते ही बोले, “लो, यह भी बेदीन हो गया!”
इसके बाद वे सब लोग अपने घरों को लौट गए और सहाबा-ए-किराम ने हज़रत हुसैन (ص से) को उनके घर तक पहुंचाया।
