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Roza Rakhne Ki Dua

Hindi Mein

'व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमज़ान

Arabic Mein

وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ.
roza rakhne ki dua

रोज़े के ताल्लुक़ से कुछ अहम बातें

इस्लाम में रोज़ा (सौम/ صوم) एक महत्वपूर्ण इबादत है, जो इंसान को अल्लाह के करीब लाने और रूह को पाक करने का ज़रिया बनती है। यह सिर्फ भूखा-प्यासा रहने का नाम नहीं, बल्कि एक मुकम्मल रूहानी अख़लाक़ी बेहतरी का ज़रिया है। रोज़ा इंसान के अंदर बरदाश्त, तक़वा (परहेज़गारी), सब्र और अल्लाह के हुक्मों की पूरी फरमाबरदारी का जज़्बा पैदा करता है।

रोज़े का हुक्म और इसकी अहमियत

रोज़े की फर्ज़ियत कुरआन और हदीस से साबित है। अल्लाह फरमाता है:

“ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़ा फर्ज़ किया गया है, जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर फर्ज़ किया गया था, ताकि तुम परहेज़गार बनो।”
(सूरह अल-बक़रा: 183)

इस आयत से यह साफ़ होता है कि रोज़े का मकसद सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं, बल्कि इंसान के अंदर तक़वा और खुदा-तरसी का ख़ुसूसियत को त्यार करना है। रोज़ा हमें हमारे नफ्स पर काबू पाना सिखाता है और यह एहसास दिलाता है कि इंसान सिर्फ अल्लाह की आज़माइश से गुजर रहा है।

रोज़े की रूहानी और जिस्मानी फ़ज़ीलतें

रोज़ा रखने से इंसान के अंदर कई पॉजिटिव बदलाव आते हैं। यह न केवल रूह को पाक करता है बल्कि जिस्मानी सेहत के भी लाभकारी होता है।

1. तक़वा और सब्र का इज़ाफ़ा

रोज़ा रखने से इंसान को यह अहसास होता है कि अल्लाह उसे देख रहा है। यह अहसास उसे हर तरह की बुराइयों से दूर रखता है। साथ ही, जब कोई इंसान पूरे दिन भूख और प्यास सहन करता है, तो उसके अंदर सब्र और नरमी बढ़ती है।

2. नफ्स पर कंट्रोल और इच्छाओं पर काबू

रोज़ा रखने से इंसान अपनी इच्छाओं को काबू करना सीखता है। आम दिनों में जब खाने-पीने की कोई मनाही नहीं होती, तब इंसान अपने नफ्स की हर इच्छा को पूरा करता है। मगर जब वह रोज़ा रखता है, तो वह अपने नफ्स को अल्लाह की रज़ा के लिए काबू करता है।

3. तौबा और मग़फिरत का जरिया

रोज़ा इंसान के गुनाहों को माफ करवाने का जरिया बनता है। हदीस में आता है:

“जो व्यक्ति ईमान और सवाब की नीयत से रमज़ान के रोज़े रखे, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।” (सहीह बुख़ारी: 38, सहीह मुस्लिम: 760)

4. हमदर्दी और दूसरों का दर्द महसूस करना

जब इंसान खुद भूख और प्यास सहन करता है, तो वह उन गरीबों और जरूरतमंदों की तकलीफ को बेहतर तरीके से समझ सकता है, जो हर रोज़ भूखे सोते हैं। इससे समाज में भाईचारे और परोपकार की भावना बढ़ती है।

5. जिस्मानी सेहत के लिए फायदेमंद

आजकल साइंस भी इस बात को मानती है कि उपवास (फास्टिंग) शरीर के लिए लाभकारी है। रोज़ा शरीर को डिटॉक्स करता है, पाचन तंत्र को आराम देता है और मोटापा कम करने में मदद करता है।

रोज़े की नेकी और जज़ा

रोज़े की फज़ीलत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्लाह ने इसे दूसरी इबादतों से अलग रखा है। एक हदीस में कुदसी में अल्लाह फरमाता है:

“रोज़ा मेरे लिए है और मैं ही इसका बदला दूँगा।” (सहीह बुख़ारी: 1904, सहीह मुस्लिम: 1151)

इसके अलावा, हदीस में यह भी आता है कि रोज़ेदार के लिए जन्नत में “रय्यान” नाम का एक खास दरवाजा होगा, जिससे सिर्फ रोज़ेदार ही दाखिल होंगे। (सहीह बुख़ारी: 1896, सहीह मुस्लिम: 1152)

रोज़े की अहम आदाब और एहतियातें

रोज़े को मुकम्मल और ज्यादा फलदायी बनाने के लिए कुछ आदाब का ख्याल रखना जरूरी है:

  1. सहरी करना: सहरी करना सुन्नत है और इसमें बरकत होती है।
  2. इफ्तार में जल्दबाजी करना: सूरज डूबते ही इफ्तार करना सुन्नत है।
  3. झूठ, ग़ीबत और बुरी बातों से बचना: सिर्फ खाने-पीने से परहेज़ करना रोज़ा नहीं, बल्कि हर तरह की बुराइयों से बचना भी जरूरी है।
  4. नमाज़ और कुरआन की तिलावत का एहतमाम करना: रोज़े के साथ इबादत का ज्यादा से ज्यादा एहतमाम करना चाहिए।
  5. गरीबों की मदद करना: रमज़ान में सदक़ा-ख़ैरात का सवाब बढ़ जाता है, इसलिए जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।

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