Prophet Muhammad History in Hindi Qist 6
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Seerat e Mustafa Qist 6
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हज़रत आमिना के इंतकाल के पाँच दिन बाद उम्म-ए-अैमन आपको लेकर मक्का पहुँचीं। आपको अब्दुल मुत्तलिब के हवाले किया। आपके यतीम हो जाने का उन्हें इतना सदमा था कि बेटे की वफ़ात पर भी इतना नहीं हुआ था।
अब्दुल मुत्तलिब के लिए काबा के साये में एक कालीन बिछाया जाता था। वह इस पर बैठा करते थे। उनका एहतिराम इस कदर था कि कोई और इस कालीन पर बैठता नहीं था, चनांचे उनके बेटे और कुरैश के सरदार इस कालीन के चारों तरफ बैठते थे, लेकिन रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां तशरीफ़ लाते तो सीधे इस कालीन पर जा बैठते। इस वक्त आप एक तंदरुस्त लड़के थे, आपकी उम्र नौ साल के करीब हो चली थी, आपके चाचा अब्दुल मुत्तलिब के अदब की वजह से आपको इस कालीन से हटाना चाहते तो अब्दुल मुत्तलिब कहते;
मेरे बेटे को छोड़ दो, अल्लाह की कसम! यह बहुत शान वाला है।
फिर वह आपको मोहब्बत से इस फ़र्श पर बिठाते, आपकी पीठ पर शफक़त से हाथ फेरते, आपकी बातें सुन-सुनकर हद दर्जे खुश होते रहते।
कभी वह दूसरों से कहते; मेरे बेटे को यहीं बैठने दो, उसे खुद भी एहसास है कि उसकी बड़ी शान है, और मेरी आरज़ू है यह इतना बुलंद रुतबा पाए जो किसी अरब को इससे पहले हासिल न हुआ हो और न बाद में किसी को हासिल हो सके।
एक बार उन्होंने यह अल्फ़ाज़ कहे;
“मेरे बेटे को छोड़ दो, इसके मिज़ाज में तबीअत से बुलंदी है… इसकी शान निराली होगी”।
यहाँ तक कि उम्र के आख़िरी हिस्से में हज़रत अब्दुल मुत्तलिब की आँखें जवाब दे गई थीं, आप नाबीना हो गए थे। ऐसी हालत में एक रोज़ वह उस कालीन पर बैठे थे कि आप तशरीफ़ लाए और सीधे उस कालीन पर जा पहुँचे। एक शख़्स ने आपको कालीन से खींच लिया। इस पर आप रोने लगे,
आपके रोने की आवाज़ सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बेचैन हुए और बोले:
“मेरा बेटा क्यों रो रहा है?”
“आपके कालीन पर बैठना चाहता है… हमने इसे कालीन से उतार दिया है।”
यह सुनकर अब्दुल मुत्तलिब ने कहा:
“मेरे बेटे को कालीन पर ही बैठा दो, यह अपना रुतबा पहचानता है, मेरी दुआ है कि यह उस रुतबे को पहुँचे जो इस से पहले किसी अरब को न मिला हो, और उसके बाद किसी को न मिले।”
इसके बाद फिर किसी ने आपको कालीन पर बैठने से नहीं रोका।
एक रोज़ एक कबीले के लोग हज़रत अब्दुल मुत्तलिब से मिलने के लिए आए… उनके पास उस वक़्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी तशरीफ़ फरमा थे। लोगों ने आपको देखा, यह लोग क़याफ़ा शिनास थे, आदमी का चेहरा देख कर उसके मुस्तक़बिल के बारे में अंदाज़े बयान करते थे।
उन्होंने अब्दुल मुत्तलिब से कहा:
“इस बच्चे की हिफ़ाज़त करें, इस लिए कि मक़ाम-ए-इब्राहीम पर जो हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम के क़दम का निशान है, इस बच्चे के पैरों का निशान बिल्कुल उस निशान से मिलता जुलता है, इस क़दर मशाबेहत हमने किसी और के पैरों के निशान में नहीं देखी… हमारा ख़्याल है… यह बच्चा निराली शान का मालिक होगा… इस लिए इसकी हिफ़ाज़त करें।”
चूँकि आप हज़रत इब्राहीम अलैहि सलाम की नस्ल से हैं, इस लिए उनके पैरों की मशाबेहत आप में होना कुदरती बात थी।
एक रोज़ हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ख़ाना काबा में हजर-ए-असवद के पास बैठे हुए थे। ऐसे में उनके पास नज्रान के ईसाई आ गए। उनमें एक पादरी भी था।
इस पादरी ने अब्दुल मुत्तलिब से कहा:
“हमारी किताबों में एक ऐसे नबी की अलामात हैं जो इस्माईल की औलाद में होना बाकी है, यह शहर उसकी जाए पैदाइश होगा, उसकी यह-यह निशानियाँ होंगी।”
अभी यह बात हो रही थी कि कोई शख़्स आपको लेकर वहाँ आ पहुँचा। पादरी की नज़र ज्यों ही आप पर पड़ी, वह चौंक उठा, आपकी आँखों, कमर और पैरों को देख कर वह चिल्ला उठा:
“वह नबी यही हैं, यह तुम्हारे क्या लगते हैं?”
अब्दुल मुत्तलिब बोले “यह मेरे बेटे हैं।”
इस पर वह पादरी बोला: “ओह! तब यह वह नहीं… इस लिए कि हमारी किताबों में लिखा है कि उसके वालिद का इंतिक़ाल उसकी पैदाइश से पहले हो जाएगा।”
यह सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बोले:
“यह दरअसल मेरा पोता है, इसके बाप का इंतिक़ाल उस वक़्त हो गया था जब यह पैदा भी नहीं हुआ था” आप अपनी मां के वतन मुबारक में थे”
इस पर पादरी बोला: “हाँ! यह बात हुई ना… आप इसकी पूरी तरह हिफ़ाज़त करें।”
अब्दुल मुत्तलिब की आप से मोहब्बत का यह आलम था कि खाना खाने बैठते तो कहते:
“मेरे बेटे को ले आओ।” आप तशरीफ़ लाते तो अब्दुल मुत्तलिब आपको अपने पास बिठाते। आपको अपने साथ खिलाते।
बहुत ज़्यादा उम्र वाले एक सहाबी हैदा बिन मुआविया रज़ि अल्लाहु अन्हु कहते हैं:
“मैं एक मर्तबा इस्लाम से पहले, जाहिलियत के ज़माने में हज के लिए मक्का मुअज़्ज़मा गया। वहाँ बैतुल्लाह का तवाफ़ कर रहा था। मैंने एक ऐसे शख़्स को देखा जो बहुत बूढ़ा और बहुत लंबा क़द का था। वह बैतुल्लाह का तवाफ़ कर रहा था और कह रहा था, ऐ मेरे परवरदिगार! मेरी सवारी को मुहम्मद की तरफ़ फेर दे और उसे मेरा दस्त-ओ-बाज़ू बना दे।”
मैंने इस बूढ़े को जब यह शेर पढ़ते सुना तो लोगों से पूछा: “यह कौन है?”
लोगों ने बताया:
“यह अब्दुल मुत्तलिब बिन हाशिम हैं। उन्होंने अपने पोते को अपने एक ऊंट की तलाश में भेजा है। वह ऊंट ग़ुम हो गया है, और वह पोता ऐसा है कि जब भी किसी ग़ुमशुदा चीज़ की तलाश में उसे भेजा जाता है तो वह चीज़ ले कर ही आता है। पोते से पहले ये अपने बेटों को इस ऊंट की तलाश में भेज चुके हैं, लेकिन वे नाकाम लौट आए हैं, अब चूंकि पोते को गए हुए देर हो गई है, इसलिए परेशान हैं, और दुआ माँग रहे हैं।”
थोड़ी ही देर गुज़री थी कि मैंने देखा कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ऊंट को लिए तशरीफ़ ला रहे हैं। अब्दुल मुत्तलिब ने आपको देख कर कहा:
“मेरे बेटे! मैं तुम्हारे लिए इस क़दर फिक्रमंद हो गया था कि शायद इसका असर कभी मेरे दिल से न जाए।”
अब्दुल मुत्तलिब की बीवी का नाम रक़ीया बिंत अबू सुफ़ियान था। वह कहती हैं:
“क़ुरैश कई सालों से सख़्त क़हरत सालि (सूखा) का शिकार थे। बारिशें बिलकुल बंद थीं। सब लोग परेशान थे, उसी ज़माने में, मैंने एक ख़्वाब देखा, कोई शख़्स ख़्वाब में कह रहा था: ‘ए क़ुरैश के लोगो! तुममें से एक नबी ज़ाहिर होने वाला है, उसकी ज़ाहिर होने का वक़्त आ चुका है। उसके ज़रिए तुम्हें ज़िंदगी मिल जाएगी, यानी खूब बारिशें होंगी, सरसबज़ी और शादाबी होगी।
तुम अपने लोगों में से एक ऐसा शख़्स तलाश करो जो लंबे क़द का हो, गोरे रंग का हो, उसकी पल्कें घनी हों, भौंहें और एब्रो जुड़े हुए हों, वह शख़्स अपनी तमाम औलाद के साथ निकले, और तुम में से हर ख़ानदान का एक शख़्स निकले, सब पाक साफ़ हों और खुशबू लगाएं। वह हिज्र असवद को बोसा दें फिर सब जिबल अबू क़ैस पर चढ़ जाएं। फिर वह शख़्स जिसकी हालत बताई गई है, आगे बढ़े और बारिश की दुआ मांगे, और तुम सब आमीन कहो तो बारिश हो जाएगी।’
सुबह हुई तो रक़ीया ने अपना यह ख़्वाब क़ुरैश से बयान किया। उन्होंने इन निशानियों को तलाश किया तो सारी निशानियाँ उन्हें अब्दुल मुत्तलिब में मिल गईं,
चूंकि सब उनके पास जमा हुए। हर ख़ानदान से एक-एक शख़्स आया। उन्होंने सारे शर्तों को पूरा किया। फिर सब अबू क़ैस पहाड़ पर चढ़ गए। उनमें नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी थे। आप उस वक़्त नौ उम्र के थे। फिर अब्दुल मुत्तलिब आगे बढ़े और उन्होंने यूं दुआ की:
‘ऐ अल्लाह, ये सब तेरे ग़ुलाम हैं, तेरे ग़ुलामों की औलाद हैं, तेरी बांदियाँ हैं और तेरी बांदियों की औलाद हैं। हम पर जो बुरा वक़्त आ पड़ा है, तू देख रहा है, हम लगातार क़हरत सालि का शिकार हैं। अब ऊंट, गायें, घोड़े, खच्चर और गधे सब कुछ खत्म हो चुके हैं और जानवरों पर भी बन आई है। इसलिए हमारी यह सूखा खत्म फरमा दे, हमें ज़िंदगी और सरसबज़ी और शादाबी अता फरमा दे।’
अभी यह दुआ मांग ही रहे थे कि बारिश शुरू हो गई। वादियाँ पानी से भर गईं लेकिन इस बारिश में एक बहुत अजीब बात हुई और वह अजीब बात यह थी कि क़ुरैश को यह सीराबी जरूर हासिल हुई मगर यह बारिश क़बीला क़ैस और क़बीला मज़्दर की क़रीबी बस्तियों में बिलकुल न हुई।
अब लोग बहुत हैरान हुए कि यह क्या बात हुई। एक क़बीले के सरदारों ने इस सिलसिले में बात-चीत शुरू की। एक सरदार ने कहा:हम ज़बरदस्त क़हत और ख़ुश्क सालि का शिकार हैं जबकि क़ुरैश को अल्लाह तआला ने बारिश अता की है और यह अब्दुल मुतलिब की वजह से हुआ है इस लिए हम सब उनके पास चलते हैं, अगर वह हमारे लिए दुआ कर दें तो शायद अल्लाह हमें भी बारिश दे दे।
यह मशवरा सबको पसंद आया, चूँकि यह लोग मक्का मुअज़्ज़मा में आए और अब्दुल मुतलिब से मिले। उन्हें सलाम किया फिर उनसे कहा:हे अब्दुल मुतलिब हम कई सालों से ख़ुश्क सालि के शिकार हैं हमें आपकी बरकत के बारे में मालूम हुआ है, इस लिए मेहरबानी फरमाकर आप हमारे लिए भी दुआ करें, इस लिए कि अल्लाह ने आपकी दुआ से क़ुरैश को बारिश अता की है।
उनकी बात सुनकर अब्दुल मुतलिब ने कहा :
अच्छी बात है मैं कल मैदान अराफात में आप लोगों के लिए भी दुआ करूंगा। दूसरे दिन सुबह सवेरे अब्दुल मुतलिब मैदान अराफात की तरफ़ रवाना हुए। उनके साथ दूसरे लोगों के अलावा उनके बेटे और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) भी थे। अराफात के मैदान में अब्दुल मुतलिब के लिए एक कुरसी बिछाई गई। वह उस पर बैठ गए, नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को उन्होंने गोद में बैठा लिया, फिर उन्होंने हाथ उठाकर यों दुआ की:
ऐ अल्लाह, चमकने वाली बिजली के परवरदिगार, और कड़कने वाली गर्ज़ के मालिक, पालन करने वालों के पालन करने वाले, और मुसीबतों को आसान करने वाले। यह क़बीला क़ैस और क़बीला मज़्दर के लोग हैं, ये बहुत परेशान हैं, उनकी कमरें झुक गई हैं, ये तुझसे अपनी लाचारी और बेबसी की फरियाद करते हैं और जान और माल की बर्बादी की शिकायत करते हैं, बस ऐ अल्लाह, इनके लिए खूब बरसने वाले बादल भेज दे और आसमान से इनके लिए रहमत अता फरमा ताकि इनकी ज़मीनें हराभरा हो जाएं और इनकी तकलीफें दूर हो जाएं।
अब्दुल मुतलिब अभी यह दुआ कर ही रहे थे कि एक सियाह बादल उठकर, अब्दुल मुतलिब की तरफ़ आया और उसके बाद उसका रुख़ क़बीला क़ैस और बिनू मज़्दर की बस्तियों की तरफ़ हो गया। यह देखकर अब्दुल मुतलिब ने कहा:ऐ ग़ु्रूह क़ुरैश और मज़्दर जाओ तुम्हें सीराबी हासिल होगी।
चुंकि यह लोग जब अपनी बस्तियों में पहुंचे तो वहाँ बारिश शुरू हो चुकी थी। आप सात साल के हो चुके थे कि आपकी आँखों में दर्द होने लगा। मक्का में आपकी आँखों का इलाज कराया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब्दुल मुत्तालिब से किसी ने कहा, “आक़ाज़ के बाज़ार में एक राहिब रहता है, वह आँखों के इलाज़ में माहिर है।” अब्दुल मुत्तालिब आपको उसके पास ले गए।
उसकी पूजा स्थल का दरवाज़ा बंद था। उन्होंने आवाज़ दी। राहिब ने कोई जवाब नहीं दिया। अचानक पूजा स्थल में भयंकर ज़लज़ला आया। राहिब डर गया कि कहीं पूजा स्थल उसके ऊपर न गिर पड़े। इसलिए वह तुरंत बाहर निकल आया। फिर उसने आपको देखा तो चौंक उठा। उसने कहा, “ए अब्दुल मuttलिब! यह लड़का इस उम्मत का नबी है। अगर मैं बाहर न आता तो यह पूजा स्थल मुझ पर गिर पड़ता।
इस लड़के को जल्दी वापस ले जाओ और उसकी हिफाज़त करो। कहीं यहूदियों या ईसाइयों में से कोई उसे मार न डाले।”
फिर उसने कहा, “और रही बात उनकी आँखों की, तो उनकी आँखों का इलाज उनके पास खुद मौजूद है।”
अब्दुल मुत्तालिब यह सुनकर हैरान हुए और बोले, “उनके पास है, समझा नहीं।”
फिर राहिब ने कहा, “हाँ, उनके लार (थूक) को अपनी आँखों में लगाइए।”
अब्दुल मुत्तालिब ने वैसा ही किया, और उनकी आँखें तुरंत ठीक हो गईं।
पुरानी आसमानी किताबों में उनके बहुत से निशानियाँ लिखी हुई थीं। इसकी तफ़सील बहुत दिलचस्प है।
यमन में एक क़बीला था जिसका नाम ‘हमीर’ था। वहाँ एक शख्स था, ‘सैफ़ बिन यज़न’। वह ‘सैफ़ हमीरी’ कहलाता था। किसी वक्त उसके बाप दादा उस मुल्क पर हुकूमत करते थे, लेकिन फिर हब्शियों ने यमन पर हमला किया और उस पर क़ब्ज़ा कर लिया। वहाँ हब्शियों की हुकूमत हो गई।
सत्तर साल तक यमन हब्शियों के क़ब्ज़े में रहा। जब सैफ़ बड़ा हुआ, तो उसके अंदर अपने बाप दादा का मुल्क वापस लेने की तम्मना पैदा हुई। इसलिए उसने एक फौज तैयार की और हब्शियों पर हमला कर दिया। उन्होंने उन्हें यमन से भगा दिया। इस तरह वह अपने बाप दादा के मुल्क को वापस लाने में कामयाब हो गया और वहाँ का बादशाह बन गया।
यह यमन अरब का इलाक़ा था। जब हब्शियों ने इस पर क़ब्ज़ा किया था तो अरबों को बहुत दुख हुआ। सत्तर साल बाद जब यमन के लोगों ने हब्शियों को बाहर निकाला, तो अरबों को बहुत खुशी हुई। उनकी खुशी का एक कारण यह भी था कि इन्हीं हब्शियों ने अब्राहा के साथ मक्का पर चढ़ाई की थी।
चारों ओर से अरबों के प्रतिनिधि सैफ़ को मुबारकबाद देने के लिए आने लगे। कुरैश का भी एक प्रतिनिधि मंडल मुबारकबाद देने के लिए गया। इस प्रतिनिधि मंडल के सरदार अब्दुल मत्तलिब थे। यह प्रतिनिधि मंडल जब यमन पहुँचा तो सैफ़ अपने महल में था। उसके सिर पर ताज था, सामने तलवार रखी थी और हमीरी सरदार उसके दाहिने-बाएँ बैठे थे। सैफ़ को कुरैश के प्रतिनिधि मंडल की आमद के बारे में बताया गया, उसे यह भी बताया गया कि यह लोग किस रुतबे के हैं।
उसने इन लोगों को आने की अनुमति दे दी। यह प्रतिनिधि मंडल दरबार में पहुँचा। अब्दुल मत्तलिब आगे बढ़कर उसके सामने जा खड़े हुए। उन्होंने बात करने की अनुमति चाही,
सैफ़ ने कहा, “अगर तुम बादशाहों के सामने बोलने के आचार-व्यवहार से वाकिफ़ हो तो हमारी तरफ से अनुमति है।”
तब अब्दुल मत्तलिब ने कहा, “ए बादशाह, हम काबा के ख़ादिम हैं, अल्लाह के घर के संरक्षक हैं, हम आपको मुबारकबाद देने आए हैं। यमन पर हब्शी हुकूमत हमारे लिए भी बोझ बन चुकी थी। आपको मुबारक हो, आपके इस काम से आपके बुज़ुर्गों को भी इज़्ज़त मिलेगी और आने वाली नस्लों को भी सम्मान मिलेगा।”
सैफ़ उनके शब्द सुनकर बहुत खुश हुआ, बे-इख़्तियार बोल पड़ा, “ए शख़्स तुम कौन हो, क्या नाम है तुम्हारा?”
उन्होंने कहा, “मेरा नाम अब्दुल मत्तलिब बिन हाशिम है।”
सैफ़ ने हाशिम का नाम सुनकर कहा, “तो तुम हमारी बहन के बेटे हो!”
अब्दुल मत्तलिब की माँ मदीना के क़बीले ख़ज़र्ज़ से थीं और ख़ज़र्ज़ का क़बीला असल में यमन का था। इसलिए सैफ़ ने हाशिम का नाम सुनकर कहा, “तो तुम हमारी बहन के बेटे हो।”
फिर उसने कहा, “हम आपको और आपके लोगों को स्वागत करते हैं, हम आपके जज़बात की क़दर करते हैं।”
इसके बाद कुरैश के प्रतिनिधि मंडल को सरकारी मेहमानख़ाने में ठहराया गया। उनकी बहुत अच्छे से मेज़बानी की गई… यहाँ तक कि एक महीना गुजर गया। एक महीने की मेज़बानी के बाद सैफ़ ने उन्हें बुलाया।
अब्दुल मत्तलिब को अपने पास बुलाकर उसने कहा
, “ए अब्दुल मत्तलिब, मैं अपने ज्ञान के छुपे हुए राज़ों में से एक राज़ तुम्हें बता रहा हूँ, तुमसे अलावा कोई और होता तो मैं कभी नहीं बताता, तुम इस राज़ को तब तक राज़ ही रखना जब तक खुद अल्लाह तआला इस राज़ को प्रकट न कर दे।
हमारे पास एक छुपी हुई किताब है, वह छुपे हुए राज़ों का एक खज़ाना है। हम दूसरों से उसे छिपा कर रखते हैं। मैंने इस किताब में एक बहुत बड़ी खबर और एक बड़े खतरे के बारे में पढ़ा है… और वह तुम्हारे बारे में है।”
अब्दुल मत्तलिब ये बातें सुनकर बहुत हैरान हुए और पकार उठे, “मैं समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?”
“सुनो, अब्दुल मत्तलिब, जब तहामा की वादी यानी मक्का में ऐसा बच्चा पैदा हो, जिसके दोनों कंधों के बीच बालों का गुच्छा (यानि महर-ए-नुबुवत) हो, तो उसे इमामत और सरदारी हासिल होगी और इसकी वजह से तुम्हें क़यामत तक के लिए इज़्ज़त मिलेगी, सम्मान मिलेगा।”
अब्दुल मत्तलिब ने यह सुनकर कहा, “ए बादशाह, अल्लाह करे आपको भी ऐसी खुशबख़्ती मिले, आपकी हैबत मुझे रोक रही है, वरना मैं आपसे पूछता कि इस बच्चे का ज़माना कब होगा?”
बादशाह ने जवाब में कहा। “यह उसी का ज़माना है, वह उसी ज़माने में पैदा होगा या पैदा हो चुका है, उसका नाम मुहम्मद होगा, उसकी माँ का इंतकाल हो जाएगा, उसके दादा और चाचा उसकी परवरिश करेंगे। हम भी उसकी अरज़ू रखते रहे कि वह बच्चा हमारे यहाँ पैदा हो, अल्लाह तआला उसे खुले आम जाहिर करेगा और उसके लिए हम में से (यानि मदीने के क़बीले ख़ज़र्ज़ में) इस नबी के मददगार बनाएगा
(हम में से उसने इस लिए कहा क्योंकि ख़ज़र्ज़ असल में यमन के लोग थे)।
उनके ज़रिए इस नबी के ख़ानदान और क़बीले वालों को इज़्ज़त हासिल होगी और उनके ज़रिए उसके दुश्मनों को ज़िल्लत मिलेगी और उनके ज़रिए वह तमाम लोगों से मुकाबला करेगा और उनके ज़रिए ज़मीन के अहम इलाक़े फतह हो जाएंगे। वह नबी रहमान की इबादत करेगा, शैतान को धमकाएगा। आग के पूजारीयों को ठंडा करेगा (यानि आग के पूजारियों को मिटाएगा), बुतों को तोड़ डालेगा, उसकी हर बात आख़िरी फ़रमान होगी, उसके हुक्म इंसाफ़ वाले होंगे, वह नेक कामों का हुक्म देगा, खुद भी उन पर अमल करेगा, बुराईयों से रोकेगा, उन्हें मिटा डालेगा।”
अब्दुल मत्तलिब ने सैफ़ बिन यज़न को दुआ दी। फिर कहा, “कुछ और तफसील बयान करें।”
“बात ढकी-छुपी है और अलामतें छिपी हैं, मगर ऐ अब्दुल मत्तलिब इसमें शक नहीं कि तुम उसके दादा हो।”
अब्दुल मत्तलिब यह सुनकर फौरन सजदे में गिर गए और फिर सैफ़ ने उनसे कहा, “अपना सिर उठाओ, अपनी पेशानी ऊँची करो, और मुझे बताओ, जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, क्या तुमने इनमें से कोई अलामत अपने यहाँ देखी है?”
इस पर अब्दुल मत्तलिब ने कहा, “हां, मेरा एक बेटा था, मैं उसे बहुत चाहता था, मैंने एक शरीफ लड़की आमिना बिन्त वहब अब्द मुनाफ से उसकी शादी कर दी, वह मेरी क़ौम के अत्यंत इज़्ज़तदार ख़ानदान से थी, उससे मेरे बेटे के यहाँ एक लड़का पैदा हुआ, मैंने उसका नाम मुहम्मद रखा, उस बच्चे का बाप और माँ दोनों फ़ौत हो चुके हैं। अब मैं और उसका चाचा अबू तालिब उसकी देखभाल करते हैं।”
अब सैफ़ ने उनसे कहा, “मैंने तुम्हें जो कुछ बताया है, वह वाक़िया उसी तरह है। अब तुम अपने पोते की हिफ़ाज़त करो, उसे यहूदियों से बचाए रखो, क्योंकि वे उसके दुश्मन हैं, यह और बात है कि अल्लाह तआला हरगिज़ इन लोगों को उस पर क़ाबू नहीं पाने देगा और मैंने जो कुछ आपको बताया है, उसका अपने क़बीले वालों से ज़िक्र न करना, मुझे डर है कि इन बातों की वजह से इन लोगों में हसद और जलन न पैदा हो जाए।
ये लोग सोच सकते हैं, यह इज़्ज़त और बुलंदी आखिर इन्हें क्यों मिलने वाली है, ये लोग उनके रास्ते में रुकावटें खड़ी करेंगे, अगर ये लोग इस वक़्त तक ज़िंदा न रहे तो उनकी औलादें ये काम करेंगी, अगर मुझे यह मालूम न होता कि इस नबी के ज़ुहूर से पहले ही मौत मुझे आ लेगी तो मैं अपने ऊंटों और क़ाफ़िले के साथ रवाना होता और उनकी सल्तनत के मरकज़ यसरब पहुँचता,
क्योंकि मैं इस किताब में यह बात पाता हूँ कि शहर यसरब उनकी सल्तनत का मरकज़ होगा, उनकी ताक़त का सरचश्मा होगा, उनकी मदद और नसरत का ठिकाना होगा और उनकी फ़ौत की जगह होगी और उन्हें दफ़न भी यहीं किया जाएगा और हमारी किताब पिछली उलूम से भरी पड़ी है।
मुझे पता है अगर मैं उसी वक़्त उनकी अज़मत का ऐलान करूँ तो खुद उनके लिए और मेरे लिए ख़तरे पैदा हो जाएं। यह डर न होता तो मैं उसी वक़्त उनके बारे में यह तमाम बातें सबको बता देता। अरबों के सामने उनकी सरबलंदी और ऊँचे रुतबे की दास्तानें सुना देता, लेकिन मैंने यह राज़ तुम्हें बताया है… तुम्हारे साथियों में से भी किसी को नहीं बताया।”
इसके बाद उसने अब्दुल मत्तलिब के साथियों को बुलाया, उनमें से हर एक को दस हबशी गुलाम, दस हबशी बांदियां और धारदार यमनी चादरें, बड़ी मात्रा में सोना चांदी, सौ सौ ऊंट और अंबर के भरे डिब्बे दिए।
फिर अब्दुल मत्तलिब को इससे दस गुना ज्यादा दिया और बोला: “साल गुजरने पर मेरे पास उनकी खबर लेकर आना और उनके हालात बताना।”साल गुजरने से पहले ही इस बादशाह का इंतकाल हो गया।
अब्दुल मत्तलिब अक्सर इस बादशाह का जिक्र किया करते थे, और जब आपकी उम्र आठ साल की हुई, तो अब्दुल मत्तलिब का इंतकाल हो गया। इस तरह एक अज़ीम सरपरस्त का साथ छूट गया। उस वक्त अब्दुल मत्तलिब की उम्र 95 साल थी।
इतिहास की कुछ किताबों में उनकी उम्र इससे भी ज्यादा लिखी है। जिस वक्त अब्दुल मत्तलिब का इंतकाल हुआ, आप उनकी चारपाई के पास मौजूद थे और आप रोने लगे। अब्दुल मत्तलिब को अजुन के स्थान पर उनके दादा क़ुसै के पास दफन किया गया। मरने से पहले उन्होंने नबी करीम को अपने बेटे अबू तालिब के हवाले कर दिया।।
उन्हें भी आपसे बेहिसाब मोहब्बत हो गई। उनके भाई अब्बास और ज़ुबैर भी आपका बहुत ख्याल रखते थे। फिर ज़ुबैर भी इंतकाल कर गए, तो आपकी निगरानी अब आपके चचा अबू तालिब ही करते रहे। उन्हें भी नबी करीम से बहुत मोहब्बत थी। जब उन्होंने आपकी बरकतें और करामतें देखीं, तो उनकी मोहब्बत और भी बढ़ गई। ये माली तौर पर कमजोर थे। दो वक्त पूरे घराने को पेट भर कर खाना नहीं मिल पाता था,
लेकिन जब नबी करी उनके साथ खाना खाते तो थोड़ा खाना भी सबके लिए काफी हो जाता। सबके पेट भर जाते। इसी लिए जब दोपहर या रात के खाने का वक्त होता, तो और सब दास्तरख़ान पर बैठते, तो अबू तालिब उनसे कहते:
“अभी खाना शुरू न करो, मेरा बेटा आ जाए फिर शुरू करना।”
फिर आप तशरीफ़ ले आते और उनके साथ बैठ जाते। आपकी बरकत इस तरह नज़र आती कि सब के सैर होने के बाद भी खाना बच जाता। अगर दूध होता तो पहले नबी करीम को पीने के लिए दिया जाता, फिर अबू तालिब के बेटे पीते, यहाँ तक कि एक ही प्याले से सब दूध पी लेते, खूब सैर हो जाते और दूध फिर भी बच जाता।
अबू तालिब के लिए एक तकिया रखा रहता था, वो उससे टेक लगा कर बैठते थे, जब नबी करीम तशरीफ़ लाते तो आकर सीधे उस तकिए के साथ बैठ जाते, यह देख कर अबू तालिब कहते:
“मेरे बेटे को अपने ऊंचे मुक़ाम का एहसास है।”
एक बार मक्का में अकाल पड़ गया, बारिश बिलकुल नहीं हो रही थी। लोग एक दूसरे से कहते थे, “लात और उज़ा से बारिश की दुआ करो,”
कुछ लोग कहते थे, “तीसरे बड़े बुत मनात पर भरोसा करो,”
इसी दौरान एक बूढ़े ने कहा: “तुम हक़ और सच्चाई से भाग रहे हो, तुममें इब्राहीम अलेहिस्सलाम और इस्माईल अलेहिस्सलाम की निशानी मौजूद है, तुम उसे छोड़ कर गलत रास्ते पर क्यों जा रहे हो?
“इस पर लोगों ने उससे पूछा: “क्या आप की मुराद अबू तालिब से है?”
उसने जवाब दिया: “हाँ, मैं यही कहना चाहता हूँ।”
अब सभी लोग अबू तालिब के घर की तरफ चल पड़े। वहाँ पहुँच कर उन्होंने दरवाज़े पर दस्तक दी, तो एक खूबसूरत आदमी बाहर आया।
सभी लोग उसकी तरफ बढ़े और बोले: “ऐ अबू तालिब, वादी में अकाल पड़ गया है, बच्चे भूख से मर रहे हैं, इसलिए आओ और हमारे लिए बारिश की दुआ करो।”
जिस वक्त अबू तालिब बाहर आए, उनके साथ नबी करीम भी थे, आप ऐसे लग रहे थे जैसे अंधेरे में सूरज निकल आया हो, अबू तालिब के साथ और भी बच्चे थे, लेकिन उन्होंने आपका ही हाथ पकड़ रखा था।
इसके बाद अबू तालिब ने आपकी उंगली पकड़ कर काबे का तवाफ किया। यह तवाफ कर रहे थे और दूसरे लोग आसमान की तरफ नजर उठाकर देख रहे थे, जहाँ बादल का एक टुकड़ा भी नहीं था, लेकिन फिर अचानक हर तरफ से बादल घेरकर आने लगे, इतनी ज़ोरदार बारिश हुई कि शहर और जंगल दोनों तर हो गए।
अबू तालिब एक बार ज़ी हिज्जा के मेले में गए, यह जगह अराफात से लगभग 8 किलोमीटर दूर है। उनके साथ नबी करीम भी थे, इस दौरान अबू तालिब को प्यास लगी।
उन्होंने आपसे कहा: “भतीजे, मुझे प्यास लगी है।”
यह बात उन्होंने इसलिए नहीं कही थी कि आपके पास पानी था, बल्कि अपनी बेचैनी जाहिर करने के लिए कही थी।
चचा की बात सुनकर आप तुरंत सवारी से उतर आए और बोले: “चचा जान, आपको प्यास लगी है?”
उन्होंने कहा: “हाँ भतीजे, प्यास लगी है।”
यह सुनते ही आपने एक पत्थर पर अपना पैर मारा।
जैसे ही आपने पत्थर पर पैर मारा, उसके नीचे से साफ और शानदार पानी फूट पड़ा
उन्होंने ऐसा पानी पहले कभी नहीं पिया था। खूब सैर हो कर पिया।
फिर उन्होंने पूछा: “भतीजे! क्या आप सैर हो चुके हैं?”
नबी करीम ने फरमाया: “हां!” आपने उसी जगह अपनी एड़ी फिर मारी और वह जगह फिर से इतनी सूखी हो गई जैसे पहले थी।