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Prophet Muhammad History in Hindi

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Seerat e Mustafa Qist 3
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हुज़ूर की आमद

हज़रत इब्न अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हु कहते हैं कि: हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व आ‍लिहि वसल्लम जब इस दुनिया में तशरीफ लाए तो आपकी आनवल नाल कटी हुई थी। {आनवल नाल को बच्चे के पैदा होने के बाद दाई काटती है।}

आप खतना किए हुए पैदा हुए। अब्दुल मुत्तलिब यह देखकर बेहद हैरान हुए और खुश भी। वे कहा करते थे, “मेरा बेटा निराली शान वाला होगा।” {अल-हिदाया}

आपकी पैदाइश से पहले मक्का के लोग सूखे और अकाल का शिकार थे। लेकिन जैसे ही आपकी दुनिया में तशरीफ लाने का वक्त करीब आया, बारिशें शुरू हो गईं, सूखा खत्म हो गया। पेड़ हरे-भरे हो गए और फलों से लद गए। ज़मीन पर हर तरफ हरियाली नज़र आने लगी।

पैदाइश के वक्त आप अपने हाथों पर झुके हुए थे, सिर आसमान की तरफ था। एक रिवायत के अल्फाज़ यह हैं कि घुटनों के बल झुके हुए थे, मतलब यह कि सजदे की हालत में थे। {तबकात}

आपकी मुट्ठी बंद थी और शहादत की उंगली उठी हुई थी, जैसा कि हम नमाज में उठाते हैं।

हुज़ूर-ए-अनवर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं:

“जब मेरी वालिदा ने मुझे जन्म दिया तो उनसे एक नूर निकला। उस नूर से शाम के महल जगमगा उठे।” {तबकात}

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वालिदा सैयदा आमिना फरमाती हैं:

“मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पैदाइश के वक्त ज़ाहिर होने वाले नूर की रौशनी में मुझे बसरी में चलने वाले ऊँटों की गर्दनें तक नज़र आईं।”

जब आप पैदा हुए तो आपने अल्लाह की तारीफ की। एक रिवायत में यह अल्फाज़ आए हैं:

“अल्लाहु अकबर कबीरन, वल-हम्दुलिल्लाहि कसीरन, वसुभानल्लाहि बुकरतन व असीला।” “अल्लाह तआला सबसे बड़ा है

……….. अल्लाह तआला की बेइंतेहा तारीफ है, और मैं सुबह और शाम अल्लाह की पाकी बयान करता हूँ।”

आपकी पैदाइश किस दिन हुई?

prophet muhammad history in hindi

इस बात पर सबका इत्तेफाक है कि वह सोमवार का दिन था। आप सुबह फज्र के वक्त दुनिया में तशरीफ लाए।

तारीख-ए-पैदाइश के सिलसिले में बहुत से क़ौल हैं। एक रिवायत के मुताबिक 12 रबीउल अव्वल को पैदा हुए। एक रिवायत 8 रबीउल अव्वल की है, एक रिवायत 2 रबीउल अव्वल की है। इस सिलसिले में और भी बहुत सी रिवायात हैं। लेकिन 12 ही मशहूर और राइज है उलमा का इसी 12 पर इत्तेफ़ाक है।

मतलब यह कि इस बारे में बिल्कुल सही बात किसी को मालूम नहीं। इस पर सबका इत्तेफाक है कि महीना रबीउल अव्वल का था और दिन सोमवार का। यह भी कहा जाता है कि आपको सोमवार के दिन ही नुबूवत मिली। सोमवार के रोज़ ही आपने मदीना मुनव्वरा की तरफ हिजरत फरमाई और सोमवार के रोज़ ही आपकी वफात हुई।

आप आमुल-फील में पैदा हुए, यानी हाथियों वाले साल में। उस साल को हाथियों वाला साल इसलिए कहा जाता है कि अबरहा ने हाथियों के साथ मक्का मुअज्ज़मा पर चढ़ाई की थी।

आपकी पैदाइश इस वाकए के कुछ ही दिन बाद हुई थी। वाकया कुछ इस तरह है कि

Abraha ka Anjaam

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अबरहा यमन का ईसाई हाकिम था। हज के दिनों में उसने देखा कि लोग बैतुल्लाह का हज करने जाते हैं। उसने अपने लोगों से पूछा:

“यह लोग कहाँ जाते हैं?”

उसे जवाब मिला: “बैतुल्लाह का हज करने के लिए मक्का जाते हैं।”

उसने पूछा: “बैतुल्लाह किस चीज़ का बना हुआ है?”

उसे बताया गया: “पत्थरों का है।”

उसने पूछा: “उसका लिबास क्या है?”

बताया गया: “हमारे यहाँ से जो धारियों वाला कपड़ा जाता है, उससे उसकी पोशाक तैयार होती है।” अबरहा ईसाई था।

सारी बात सुनकर उसने कहा: “मसीह की कसम! मैं तुम लोगों के लिए इससे अच्छा घर बनवाऊँगा।”

इस तरह उसने लाल, सफेद, पीले और काले पत्थरों से एक घर बनवाया। सोने और चाँदी से उसे सजाया, उसमें कई दरवाजे रखवाए, उसमें सोने की पट्टियाँ जड़वाईं, उसके दरमियान जवाहरात लगवाए। इस मकान में एक बड़ा सा याकूत लगवाया, पर्दे लगवाए, वहाँ खुशबुएँ जलाने का इंतजाम किया। उसकी दीवारों पर इस कदर कस्तूरी मली जाती थी कि वह स्याह रंग की हो गईं। यहाँ तक कि जवाहरात भी नज़र नहीं आते थे।

फिर लोगों से कहा:

“अब तुम्हें बैतुल्लाह का हज करने के लिए मक्का जाने की जरूरत नहीं रही, मैंने यहीं तुम्हारे लिए बैतुल्लाह बनवा दिया है, लिहाजा अब तुम इसका तवाफ करो।”

इस तरह कुछ कबीलों ने कई साल तक उसका हज किया, उसमें एतिकाफ किया,

अरब के एक शख्स नफील खुशमी से यह बात बर्दाश्त न हो सकी। वह इस बनावटी खान-ए-काबा के खिलाफ दिल ही दिल में जलता रहा। आखिर उसने दिल में ठान ली कि वह अबरहा की इस इमारत को गंदा करके छोड़ेगा। फिर एक रात उसने चोरी-छुपे बहुत सी गंदगी उसमें डाल दी।

अबरहा को पता चला तो वह सख्त गुस्से में आ गया। कहने लगा:

“यह हरकत किसी अरब ने अपने काबा की तबाही के लिए की है। मैं इसे ढहा दूँगा, इसका एक-एक पत्थर तोड़ दूँगा।”

उसने शाम और हबशा को यह तफसीलात लिख दीं, उनसे दरख्वास्त की कि वह अपना हाथी भेज दे। उस हाथी का नाम महमूद था। यह इतना बड़ा था कि इतना बड़ा हाथी ज़मीन पर देखने में नहीं आया था। जब हाथी उसके पास पहुँच गया तो वह अपनी फौज लेकर निकला और मक्का का रुख किया। यह लश्कर जब मक्का के करीब पहुँचा तो अबरहा ने फौज को हुक्म दिया कि इन लोगों के जानवर लूट लिए जाएँ। उसके हुक्म पर फौजियों ने जानवर पकड़ लिए। उनमें अब्दुल मुत्तलिब के ऊँट भी थे।

नफील भी उस लश्कर में अबरहा के साथ मौजूद था और वह अब्दुल मुत्तलिब का दोस्त था। अब्दुल मुत्तलिब उससे मिले, ऊँटों के सिलसिले में बात की।

नफील ने अबरहा से कहा:

“कुरैश के सरदार अब्दुल मुत्तलिब मिलना चाहते हैं। यह शख्स तमाम अरब का सरदार है। इसे बहुत शरफ और बड़ाई हासिल है। लोगों में इसका बड़ा असर है। लोगों को अच्छे-अच्छे घोड़े देता है, उन्हें इनामात देता है, खाना खिलाता है।”

यह गोया अब्दुल मुत्तलिब का तारुफ था। अबरहा ने उन्हें मुलाकात के लिए बुला लिया।

अबरहा ने उनसे पूछा:

“बताइए, आप क्या चाहते हैं?”

उन्होंने जवाब दिया: “मैं चाहता हूँ कि मेरे ऊँट मुझे वापस मिल जाएँ।”

उनकी बात सुनकर अबरहा बहुत हैरान हुआ।

उसने कहा: “मुझे तो बताया गया था कि आप अरब के सरदार हैं, बड़ी इज्जत और बड़ाई के मालिक हैं। लेकिन लगता है मुझसे गलतबयानी की गई है। क्योंकि मेरा ख्याल था आप मुझसे बैतुल्लाह के बारे में बात करेंगे, जिसे मैं गिराने आया हूँ और जिससे आपकी सबकी इज्जत वाबस्ता है। लेकिन आपने तो सर से इसकी बात ही नहीं की और अपने ऊँटों का रोना लेकर बैठ गए। यह क्या बात हुई?”

उसकी बात सुनकर अब्दुल मुत्तलिब बोले: “आप मेरे ऊँट मुझे वापस दे दें। बैतुल्लाह के साथ जो चाहें करें, क्योंकि इस घर का एक परवरदिगार है। वह खुद ही इसकी हिफाजत करेगा। मुझे इसके लिए फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं।”

उनकी बात सुनकर अबरहा ने हुक्म दिया: “इनके ऊँट वापस दे दिए जाएँ।”

जब उन्हें उनके ऊँट वापस मिल गए तो उन्होंने उनके खुरों पर चमड़ा चढ़ा दिया, उन पर निशान लगा दिए, उन्हें कुर्बानी के लिए वक्फ करके हरम में छोड़ दिया ताकि फिर कोई उन्हें पकड़ ले तो हरम का परवरदिगार उस पर गुस्से में आए।

फिर अब्दुल मुत्तलिब हिरा पहाड़ पर चढ़ गए। उनके साथ उनके कुछ दोस्त थे। उन्होंने अल्लाह से दुआ की:

“ऐ अल्लाह! इंसान अपने सामान की हिफाजत करता है, तू अपने सामान की हिफाजत कर।”

उधर से अबरहा अपना लश्कर लेकर आगे बढ़ा। वह खुद हाथी पर सवार लश्कर के दरमियान मौजूद था। ऐसे में उसके हाथी ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। वह जमीन पर बैठ गया। हाथीबानों ने उसे उठाने की कोशिश की, लेकिन वह न उठा। उन्होंने उसके सिर पर चोटें कीं। अंकुस चुभोए, मगर वह खड़ा न हुआ। कुछ सोचकर उन्होंने उसका रुख यमन की तरफ किया तो वह तुरंत उस तरफ चलने लगा। उसका रुख फिर मक्का की तरफ किया गया तो वह फिर रुक गया। हाथीबानों ने यह तजुर्बा बार-बार किया।

आखिर अबरहा ने हुक्म दिया, हाथी को शराब पिलाई जाए ताकि नशे में उसे होश न रहे और हम उसे मक्का की तरफ आगे बढ़ा सकें। चुनांचे उसे शराब पिलाई गई, लेकिन उस पर इसका भी असर न हुआ।हाथी ने शराब पीने के बावजूद मक्का की तरफ बढ़ने से पूरी तरह इनकार कर दिया। अबरहा और उसकी फौज हैरान और परेशान थे।

तभी अचानक उन्होंने आसमान की तरफ देखा, जहाँ उन्होंने छोटे-छोटे काले पक्षियों का एक बड़ा झुंड देखा। इन पक्षियों को *अबाबील* कहा जाता है। हर पक्षी अपनी चोंच और पंजों में छोटे-छोटे पत्थर लिए हुए था। ये पत्थर मामूली दिखते थे, लेकिन जब किसी फौजी पर गिरते, तो उसे चीरकर आर-पार हो जाते।

prophet muhammad history in hindi

दूसरी ओर अब्दुल मुत्तलिब मक्का में दाख़िल हुए। हरम में पहुंचे और काबा के दरवाज़े की ज़ंजीर पकड़कर अब्रहा और उसकी फौज के खिलाफ फतह की दुआ मांगी।

उनकी दुआ के शब्द ये थे:

“ऐ अल्लाह! यह बंदा अपने काफ़िले और अपनी जमात की हिफाज़त कर रहा है, तू अपने घर यानी बैतुल्लाह की हिफाज़त फ़रमा। अब्रहा की फौज फतह हासिल न कर सके। उनकी ताकत तेरी ताकत के आगे कुछ भी नहीं, आज सलीब कामयाब न हो।”

सलीब का शब्द इसलिए कहा कि अब्रहा ईसाई था और सलीब को ईसाई अपने निशान के तौर पर साथ लेकर चलते हैं।

फिर उन्होंने अपनी कौम को साथ लिया और हिरा पहाड़ पर चढ़ गए, क्योंकि उन्हें लगा, वे अब्रहा का मुकाबला नहीं कर सकेंगे।

और फिर अल्लाह तआला ने परिंदों के झुंड के झुंड भेज दिए। ये परिंदे चिड़िया से कुछ बड़े थे। इनमें से हर परिंदे की चोंच में पत्थर के तीन-तीन टुकड़े थे। ये पत्थर परिंदों ने अब्रहा की फौज पर गिराने शुरू कर दिए। जैसे ही ये पत्थर उन पर गिरे, उनके टुकड़े-टुकड़े हो गए, बिल्कुल वैसे ही जैसे आज किसी जगह ऊपर से बम गिराया जाए तो जिस्मों के टुकड़े उड़ जाते हैं।

अब्रहा का हाथी महमूद हालांकि इन कंकरियों से महफूज़ रहा। बाकी सब हाथी तहस-नहस हो गए। ये हाथी 13 की तादाद में थे। सब के सब खाए हुए भूसे के मानिंद हो गए, जैसा कि सूरह फ़ील में आता है।

अब्रहा और उसके कुछ साथी तबाही का ये मंजर देखकर बुरी तरह भागे। लेकिन परिंदों ने उन्हें भी न छोड़ा। अब्रहा के बारे में तबकात में लिखा है कि उसके जिस्म का एक-एक अंग अलग होकर गिरता चला गया। यानी वह भाग रहा था और उसके जिस्म का एक-एक हिस्सा अलग होकर गिर रहा था।

दूसरी ओर अब्दुल मुत्तलिब इस इंतजार में थे कि कब हमला होता है, लेकिन हमलावर जब मक्का में दाख़िल न हुए तो वे हालात जानने के लिए नीचे उतरे। मक्का से बाहर निकले, तब उन्होंने देखा कि सारा लश्कर तबाह हो चुका है। खूब माल-ए-ग़नीमत उनके हाथ लगा। बेशुमार सामान हाथ आया, माल में सोना-चांदी भी बहुतायत में था।

लश्कर में से कुछ लोग ऐसे भी थे जो वापस नहीं भागे थे। ये मक्का में रह गए थे, इनमें अब्रहा के हाथी का महावत भी था, जो महमूद को आगे लाने में नाकाम रहा था।

हमारे नबी, हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस वाक़े के कुछ दिन बाद पैदा हुए। आप जिस मकान में पैदा हुए, वह सफ़ा पहाड़ी के करीब था। हज़रत काब अहबार रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि मैंने तौरात में पढ़ा था कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश मक्का में होगी। ये काब पहले यहूदी थे, इसलिए तौरात पढ़ा करते थे।

हुज़ूर के बारे में कुछ प्यारी बातें

दुनिया में आते ही हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोए। हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु की वालिदा कहती हैं कि जब हज़रत आमिना के यहां विलादत हुई तो मैं वहां मौजूद थी। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे हाथों में आए। यह शायद दाई थीं। उनका नाम शिफ़ा था। वे कहती हैं: जब आप मेरे हाथों में आए तो रोए।

आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब को आपकी पैदाइश की इत्तिला दी गई। वे उस वक्त काबा का तवाफ कर रहे थे। इत्तिला मिलने पर घर आए। बच्चे को गोद में लिया। उस वक्त आपकी वालिदा ने उनसे कहा:

“यह बच्चा अजीब है, सजदे की हालत में पैदा हुआ है, यानी पैदा होते ही इसने पहले सजदा किया, फिर सजदे से सिर उठाकर उंगली आसमान की ओर उठाई।”

अब्दुल मुत्तलिब ने आपको देखा। इसके बाद आपको काबा में ले आए। आपको गोद में लिए रहे और तवाफ करते रहे। फिर वापस लाकर हज़रत आमिना को दिया। आपको अरब की रस्म के मुताबिक एक बर्तन से ढांका गया, लेकिन वह बर्तन टूटकर आपके ऊपर से हट गया। उस वक्त आप अपना अंगूठा चूसते नजर आए।

इस मौके पर शैतान बुरी तरह चीखा। तफसीर इब्न मखलद में है कि शैतान सिर्फ चार बार चीखा, पहली बार उस वक्त जब अल्लाह तआला ने उसे मलऊन ठहराया, दूसरी बार उस वक्त जब उसे ज़मीन पर उतारा गया, तीसरी बार उस वक्त चीखा जब हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश हुई और चौथी बार उस वक्त जब नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सूरह फ़ातिहा नाज़िल हुई।

इस मौके पर हज़रत हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:

“मैं आठ साल का था, जो कुछ देखता और सुनता था, उसे समझता था। एक सुबह मैंने यसरिब यानी मदीना मुनव्वरा में एक यहूदी को देखा, वह एक ऊंचे टीले पर चढ़कर चिल्ला रहा था। लोग उस यहूदी के इर्द-गिर्द जमा हो गए और बोले:

“क्या बात है, क्यों चिल्ला रहे हो?”

यहूदी ने जवाब दिया: “अहमद का सितारा निकल आया है और वे आज रात पैदा हो गए हैं।”

हज़रत हस्सान बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु बाद में 60 साल की उम्र में मुसलमान हुए थे। 120 साल की उम्र में उन्होंने वफ़ात पाई। यानी ईमान की हालत में 60 साल जिए। बहुत अच्छे शायर थे। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अपने अशआर में तारीफ किया करते थे और दुश्मनों की बुराई अशआर में बयान करते थे। ग़ज़वात के मौके पर अशआर के जरिए मुसलमानों को जोश दिलाते थे। इसी बुनियाद पर उन्हें शायर-ए-रसूल का ख़िताब मिला था।

हज़रत काब अहबार रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने तौरात में पढ़ा है कि अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश के वक्त की खबर दे दी थी और हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने अपनी कौम बनी इस्राईल को इसकी इत्तिला दे दी थी।

इस सिलसिले में उन्होंने कहा था:

“तुम्हारे नजदीक जो मशहूर चमकदार सितारा है, जब वह हरकत में आएगा, तो वही वक्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइश का होगा।”

यह खबर बनी इस्राईल के उलमा एक-दूसरे को देते चले आए थे और इस तरह बनी इस्राईल को भी हज़रत की पैदाइश का वक्त यानी उसकी अलामत मालूम थी।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि एक यहूदी आलिम मक्का में रहता था, जब वह रात आई जिसमें हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैदा हुए तो वह क़ुरैश की एक मजलिस में बैठा था,

उसने कहा:”क्या तुम्हारे यहां आज कोई बच्चा पैदा हुआ है?

“लोगों ने कहा: “हमें तो मालूम नहीं।”

इस पर उस यहूदी ने कहा: “मैं जो कुछ कहता हूं, उसे अच्छी तरह सुन लो, आज इस उम्मत का आखिरी नबी पैदा हो गया है और क़ुरैश के लोगों! वह तुम में से है, यानी वह क़ुरैशी है। उसके कंधे के पास एक अलामत है (यानी मुहर-ए-नुबुव्वत) इसमें बहुत ज्यादा बाल हैं। यानी घने बाल हैं और यह नबूवत का निशान है। नबूवत की दलील है। उस बच्चे की एक अलामत यह है कि वह दो रात तक दूध नहीं पिएगा। इन बातों का ज़िक्र उसकी नबूवत की अलामतों के तौर पर पुरानी किताबों में मौजूद है।”

अल्लामा इब्न हजर ने लिखा है कि यह बात सही है, आपने दो दिन तक दूध नहीं पिया था।

यहूदी आलिम ने जब यह बातें बताईं तो लोग वहां से उठ गए। उन्हें यहूदी की बातें सुनकर बहुत हैरत हुई थी। जब वे लोग अपने घरों में पहुंचे तो उनमें से हर एक ने उसकी बातें अपने घर के अफराद को बताईं। औरतों को चूंकि हज़रत आमिना के यहां बेटा पैदा होने की खबर हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने अपने मर्दों को बताया:

“ज़रा चलकर मुझे वह बच्चा दिखाओ।”

लोग उसे साथ लिए हज़रत आमिना के घर के बाहर आए। उनसे बच्चा दिखाने की दरख्वास्त की। आपने बच्चे को कपड़े से निकालकर उन्हें दे दिया। लोगों ने आपके कंधे पर से कपड़ा हटाया। यहूदी की नजर जैसे ही मुहर-ए-नुबुव्वत पर पड़ी, वह फौरन बेहोश होकर गिर पड़ा। उसे होश आया तो लोगों ने उससे पूछा:

“तुम्हें क्या हो गया था?”

जवाब में उसने कहा:

“मैं इस ग़म से बेहोश हुआ था कि मेरी कौम में से नबूवत खत्म हो गई………. और ऐ क़ुरैशियो! अल्लाह की कसम! यह बच्चा तुम पर जबरदस्त ग़ालिब आएगा और इसकी शोहरत मशरिक से मगरिब तक फैल जाएगी।”


Prophet Muhammad History in Hindi Qist 6

Prophet Muhammad History in Hindi Qist 6

हज़रत आमिना के इंतकाल के पाँच दिन बाद उम्म-ए-अैमन आपको लेकर मक्का पहुँचीं। आपको अब्दुल…
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