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Preaching of Islam
(Prophet Muhammad History in Hindi Part 14)
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Seerat e Mustafa Qist 14
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इस्लाम का प्रचार (पैगम्बर मुहम्मद का इतिहास भाग 14)
Table of Contents
इस्लाम की पहली झड़प
तीन साल तक नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने गुप्त रूप से तबलीग़ की। इस दौरान जो शख़्स भी मुसलमान होता था, वह मक्का की घाटियों में छुपकर नमाज़ अदा करता था।
एक दिन हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि.) कुछ दूसरे सहाबा के साथ मक्का की एक घाटी में थे कि अचानक वहां क़ुरैश की एक जमाअत पहुंच गई। उस वक़्त सहाबा नमाज़ पढ़ रहे थे। मुशरिकों को यह देख कर बहुत ग़ुस्सा आया और वे उन पर चढ़ दौड़े, साथ ही गाली-गलौज करने लगे।
ऐसे में हज़रत सअद बिन अबी वक़्क़ास (रज़ि.) ने उनमें से एक को पकड़ लिया और उसे एक ज़र्ब लगाई जिससे उसकी खाल फट गई और ख़ून बह निकला।
यह पहला ख़ून था जो इस्लाम के नाम पर बहाया गया।
इस्लाम का पहला केंद्र
अब क़ुरैश दुश्मनी पर उतर आए। इसी वजह से नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हज़रत अरक़म (रज़ि.) के मकान पर तशरीफ़ ले आए ताकि दुश्मनों से बचाव रहे। इस तरह हज़रत अरक़म (रज़ि.) का यह मकान इस्लाम का पहला केंद्र बना।
इसे “दार-उल-अरक़म” कहा जाता है। नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दार-उल-अरक़म में तशरीफ़ लाने से पहले कई लोग इस्लाम क़बूल कर चुके थे। अब नमाज़ दार-उल-अरक़म में अदा होने लगी।
नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सहाबा-ए-किराम (रज़ि.) को वहीं नमाज़ पढ़ाते, वहीं बैठ कर इबादत करते और मुसलमानों को दीन की तालीम देते। इस तरह तीन साल गुज़र गए। फिर अल्लाह तआला ने आपको ऐलानी तबलीग़ का हुक्म दिया।
खुले आम इस्लाम की दावत
इस तरह तीन साल गुजर गए। फिर अल्लाह तआला ने आपको ऐलानिया तबलीग का हुक्म फरमाया। ऐलानिया तबलीग की इब्तिदा भी दार अरकम से हुई, पहले आप यहाँ ख़ुफ़िया तौर पर दावत देते रहे थे यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने सूरह अश-शुअरा में आपको हुक्म फरमाया।
“और आप अपने नज़दीक के अहल ख़ानदान को डराइए।”
यह हुक्म मिलते ही आप काफ़ी परेशान हुए। यहाँ तक कि आपकी फूफियों ने ख़याल किया कि आप कुछ बीमार हैं, चूँकि वह आपकी बीमार परसी के लिए आपके पास आईं। तब आपने उनसे फरमाया:
“मैं बीमार नहीं हूँ बल्कि मुझे अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है कि मैं अपने क़रीबी रिश्तेदारों को आख़िरत के अज़ाब से डराऊँ। इस लिए मैं चाहता हूँ कि तमाम बनी अब्दुल मुत्तलिब को जमा करूँ और उन्हें अल्लाह की तरफ़ आने की दावत दूँ।”
यह सुनकर आपकी फूफियों ने कहा:
“ज़रूर जमा करें मगर अबू लहब को न बुलाइएगा क्योंकि वह हरगिज़ आपकी बात नहीं मानेगा।”
अबू लहब का दूसरा नाम अब्दुल उज्ज़ा था। यह आपका चाचा था और बहुत ख़ूबसूरत था मगर बहुत संगदिल और मग़रूर था।
दूसरे दिन नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बनी अब्दुल मुत्तलिब के पास दावत भेजी। इस पर वे सब आपके यहाँ जमा हो गए। उनमें अबू लहब भी था। उसने कहा:
“यह तुम्हारे चाचा और उनकी औलादें जमा हैं, तुम जो कुछ कहना चाहते हो कहो, और अपनी बेदीनी को छोड़ दो। साथ ही तुम यह भी समझ लो कि तुम्हारी क़ौम में यानी हम में इतनी ताक़त नहीं है कि तुम्हारी ख़ातिर सारे अरबों से दुश्मनी ले सकें। लिहाज़ा अगर तुम अपने मामले पर अड़े रहे तो खुद तुम्हारे ख़ानदान वालों ही का सबसे ज़्यादा फ़र्ज़ होगा कि तुम्हें पकड़ कर क़ैद कर दें, क्योंकि क़ुरैश के तमाम ख़ानदान और क़बीले तुम पर चढ़ दौड़ेंगे। इससे तो यही बेहतर होगा कि हम ही तुम्हें क़ैद कर दें। और मेरे भतीजे, हक़ीक़त यह है कि तुमने जो चीज़ अपने रिश्तेदारों के सामने पेश की है, उससे बदतर चीज़ किसी और शख़्स ने आज तक पेश नहीं की होगी।”
आपने उसकी बात की तरफ़ कोई तवज्जो नहीं फ़रमाई और हाज़िरीन को अल्लाह का पैग़ाम सुनाया। आपने फरमाया:
“ऐ क़ुरैश! कहो अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।”
आपने उनसे यह भी फरमाया:
“ऐ क़ुरैश, अपनी जानों को जहन्नम की आग से बचाओ।”
वहाँ सिर्फ़ आपके रिश्तेदार ही जमा नहीं थे बल्कि क़ुरैश के दूसरे क़बीले भी मौजूद थे, इस लिए आपने उनके क़बीलों के नाम ले-लेकर उन्हें मुख़ातिब फ़रमाया, यानी आपने यह अल्फ़ाज़ अदा फ़रमाए:
“ऐ बनी हाशिम, अपनी जानों को जहन्नम के अज़ाब से बचाओ… ऐ बनी अब्दे शम्स, अपनी जानों को जहन्नम की आग से बचाओ… ऐ बनी अब्दे मुनाफ़, ऐ बनी ज़ोहरा, ऐ क़ाब बिन लुई, ऐ बनी मर्रा बिन क़ाब, अपनी जानों को जहन्नम की आग से बचाओ… ऐ सफ़िया, मुहम्मद की फूफी, अपने आपको जहन्नम की आग से बचाओ।”
एक रिवायत के मुताबिक आपने यह अल्फ़ाज़ भी फ़रमाए:
“ना मैं दुनिया में तुम्हें फ़ायदा पहुँचा सकता हूँ और ना आख़िरत में कोई फ़ायदा पहुँचाने का इख़्तियार रखता हूँ। सिवाय इस सूरत के कि तुम कहो ला इलाहा इल्लल्लाह। चूँकि तुम्हारी मुझसे रिश्तेदारी है, इस लिए उसके भरोसे पर कुफ़्र और शिर्क के अंधेरों में गुम ना रहना।”
इस पर अबू लहब आग-बगूला हो गया। उसने तिलमिलाकर कहा:
“तू हलाक हो जाए! क्या तूने हमें इसी लिए जमा किया था?”
फिर सब लोग चले गए।
इसके बाद कुछ दिन तक आप ﷺ ख़ामोश रहे। फिर आपके पास जिब्रील अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए। उन्होंने आपको अल्लाह की जानिब से अल्लाह तआला के पैग़ाम को हर तरफ़ फैला देने का हुक्म सुनाया।
आप ﷺ ने दोबारा लोगों को जमा फ़रमाया। उनके सामने यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया:
“अल्लाह की कसम! जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, मैं खास तौर पर तुम्हारी तरफ़ और आम तौर पर सारे इंसानों की तरफ़ अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा गया हूं। अल्लाह की कसम! तुम जिस तरह जागते हो, उसी तरह एक दिन हिसाब-किताब के लिए दोबारा जगाए जाओगे। फिर तुम जो कुछ कर रहे हो, उसका हिसाब तुमसे लिया जाएगा। अच्छाइयों और नेक आमाल के बदले में तुम्हें अच्छा बदला मिलेगा और बुराई का बदला बुरा मिलेगा। वहां बेशक हमेशा-हमेशा के लिए जन्नत है या हमेशा-हमेशा के लिए जहन्नम है। अल्लाह की कसम! ऐ बनी अब्दुल मुत्तलिब! मेरे इल्म में ऐसा कोई नौजवान नहीं जो अपनी क़ौम के लिए इससे बेहतर और आला कोई चीज़ लेकर आया हो। मैं तुम्हारे वास्ते दुनिया और आख़िरत की भलाई लेकर आया हूं।”
आप ﷺ के इस ख़ुत्बे को सुनकर अबू लहब ने सख्त लहजे में कहा:
“ऐ बनी अब्दुल मुत्तलिब! अल्लाह की कसम! यह एक फ़ित्ना है। इससे पहले कि कोई दूसरा इस पर हाथ डाले, बेहतर यह है कि तुम ही इस पर क़ाबू पा लो। यह मामला ऐसा है कि अगर तुम इसकी बात सुनकर मुसलमान हो जाते हो, तो यह तुम्हारे लिए ज़िल्लत और रुसवाई की बात होगी – अगर तुम इसे दूसरे दुश्मनों से बचाने की कोशिश करोगे तो तुम खुद क़त्ल हो जाओगे -“
इसके जवाब में उसकी बहन यानी नबी अकरम ﷺ की फूफी सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा:
“भाई! क्या अपने भतीजे को इस तरह रुसवा करना तुम्हारे लिए मुनासिब है? और फिर अल्लाह की कसम! बड़े-बड़े आलिम यह ख़बर देते आ रहे हैं कि अब्दुल मुत्तलिब के ख़ानदान में से एक नबी ज़ाहिर होने वाले हैं, लिहाज़ा मैं तो कहती हूं, यही वो नबी हैं।”
अबू लहब को यह सुनकर गुस्सा आया, वह बोला:
“अल्लाह की कसम! यह बिल्कुल बकवास और घरों में बैठने वाली औरतों की बातें हैं। जब क़ुरैश के ख़ानदान हम पर चढ़ाई करने आएंगे और सारे अरब उनका साथ देंगे तो उनके मुक़ाबले में हमारी क्या चलेगी? ख़ुदा की कसम! उनके लिए हम एक नरम निवाले की हैसियत होंगे।”
इस पर अबू तालिब बोल उठे:
“अल्लाह की कसम! जब तक हमारी जान में जान है, हम इनकी हिफ़ाज़त करेंगे।”
अब नबी करीम ﷺ सफा पहाड़ी पर चढ़ गए और तमाम क़ुरैश को इस्लाम की दावत दी। सब से फ़रमाया:
“ऐ क़ुरैश! अगर मैं तुमसे यह कहूं कि इस पहाड़ के पीछे से एक लश्कर आ रहा है और वह तुम पर हमला करना चाहता है, तो क्या तुम मुझे झूठा ख़याल करोगे?”
सब ने एक ज़बान होकर कहा:
“नहीं! इस लिए कि हमने आपको आज तक झूठ बोलते हुए नहीं सुना।”
अब आपने फ़रमाया:
“ऐ गिरोह-ए-क़ुरैश! अपनी जानों को जहन्नम से बचाओ, इस लिए कि मैं अल्लाह तआला के हां तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगा। मैं तुम्हें उस जबरदस्त अज़ाब से साफ़ डरा रहा हूं जो तुम्हारे सामने है। मैं तुम लोगों को दो कलमे कहने की दावत देता हूं, जो ज़बान से कहने में बहुत हल्के हैं, लेकिन तराजू में बेहद वजन वाले हैं। एक इस बात की गवाही कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं, दूसरे यह कि मैं अल्लाह का रसूल हूं। अब तुम में से कौन है जो मेरी इस बात को क़ुबूल करता है?”
आपके ख़ामोश होने पर उनमें से कोई न बोला, तो आपने अपनी बात फिर दोहराई। फिर आपने तीसरी बार अपनी बात दोहराई, मगर इस बार भी सब ख़ामोश खड़े रहे। इतना हुआ कि सब ने आपकी बात ख़ामोशी से सुन ली और वापस चले गए।
एक दिन क़ुरैश के लोग मस्जिदे हराम में जमा थे, बुतों को सजदा कर रहे थे। आपने यह मंजर देखा तो फ़रमाया:
“ऐ गिरोह-ए-क़ुरैश! अल्लाह की कसम! तुम अपने बाप इब्राहीम अलैहिस्सलाम के रास्ते से हट गए हो।”
आपकी बात के जवाब में क़ुरैश बोले:
“हम अल्लाह तआला की मुहब्बत ही में बुतों को पूजते हैं, ताकि इस तरह हम अल्लाह तआला के क़रीब हो सकें।”
इस मौक़े पर अल्लाह तआला ने उनकी बात के जवाब में वही नाज़िल फ़रमाई:
“आप फ़रमा दीजिए! अगर तुम अल्लाह तआला से मुहब्बत रखते हो, तो मेरी पैरवी करो, अल्लाह तआला तुमसे मुहब्बत करने लगेंगे और तुम्हारे सब गुनाहों को माफ़ कर देंगे।” (सूरह आले इमरान: आयत 31)
क़ुरैश को यह बात बहुत नागवार गुज़री। उन्होंने अबू तालिब से शिकायत की:
“अबू तालिब! तुम्हारे भतीजे ने हमारे माबूदों को बुरा कहा है, हमारे दीन में ऐब निकाले हैं, हमें बेअक़ल ठहराया है, उसने हमारे बाप-दादाओं तक को गुमराह कहा है। इस लिए या तो हमारी तरफ़ से आप निपटिए या हमारे और इसके दरमियान से हट जाइए, क्योंकि खुद आप भी उसी दीन पर चलते हैं जो हमारा है और इसके दीन के आप भी खिलाफ़ हैं।”
अबू तालिब ने उन्हें नरम अल्फ़ाज़ में यह जवाब देकर वापस भेज दिया कि
“अच्छा! मैं इन्हें समझाऊंगा।”
इधर अल्लाह तआला ने हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम को आपकी खिदमत में भेजा। हज़रत जिब्रील निहायत हसीन शक्ल-सूरत में बेहतरीन खुशबू लगाए ज़ाहिर हुए और बोले:
“ऐ मुहम्मद! अल्लाह तआला आपको सलाम फ़रमाते हैं और फ़रमाते हैं कि आप तमाम जिन्नों और इंसानों की तरफ़ से अल्लाह तआला के रसूल हैं, इस लिए उन्हें कलिमा ला इलाहा इलल्लाह की तरफ़ बुलाइए।”
यह हुक्म मिलते ही आपने क़ुरैश को ब्राह-ए-रास्त तबलीग़ शुरू कर दी।
और हालत उस वक्त यह थी कि काफिरों के पास पूरी ताकत थी और वे आपकी पैरवी करने के लिए हरगिज़ तैयार नहीं थे, कुफ्र और शिर्क उनके दिलों में बसा हुआ था – बुतों की मोहब्बत उनके अंदर सरायत कर चुकी थी – उनके दिल इस शिर्क और गुमराही के सिवा कोई चीज़ भी कबूल करने पर आमादा नहीं थे – शिर्क की यह बीमारी लोगों में पूरी तरह समा चुकी थी –
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तबलीग का यह सिलसिला जब बहुत बढ़ गया तो क़ुरैश के दरमियान हर वक्त आप ही का ज़िक्र होने लगा – वे लोग एक-दूसरे से बढ़-चढ़ कर आप से दुश्मनी पर उतर आए – आपके क़त्ल के मंसूबे बनाने लगे – यहां तक सोचने लगे कि आपका मुआशरती बायकॉट कर दिया जाए, लेकिन ये लोग पहले एक बार फिर अबू तालिब के पास गए और उनसे बोले:
“अबू तालिब! हमारे दरमियान आप बड़े क़ाबिल, इज़्ज़तदार और बुलंद मरतबा आदमी हैं, हम ने आप से दरख़्वास्त की थी कि आप अपने भतीजे को रोकिए, मगर आपने कुछ नहीं किया, हम लोग यह बात बर्दाश्त नहीं कर सकते कि हमारे मअबूदों को और बाप-दादाओं को बुरा कहा जाए – हमें बेअक़ल कहा जाए – आप उन्हें समझा लें वरना हम आप से और उनसे उस वक्त तक मुक़ाबला करेंगे जब तक कि दोनों फ़रीक़ों में से एक ख़त्म न हो जाए –
