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फिलिस्तीन में यहूदियों का घुसना

Penetration of the Jews into the Palestine in hindi

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फिलिस्तीन का इतिहास किस्त 15

Table of Contents

खेदिवी मोहम्मद अली पाशा का काल

फ्रांसिसियों के जाने के बाद तुर्क फिर से फिलिस्तीन लौटे और अल्बानी नस्ल के तुर्क मोहम्मद अली पाशा को मिस्र का गवर्नर नियुक्त किया और उन्हें खेदिवी का उपाधि दिया गया। खेदिवी मिस्र के उन शासकों का लक़ब होता था, जिनको तुर्क मुकर्रर करते थे, इसलिए खेदिवी का तुर्क होना ज़रूरी था। जब मिस्र पर मोहम्मद अली पाशा का कंट्रोल पूरा हो गया तो वह जानता था कि तुर्क सरकार कमजोर हो गई है, तो उसे फिलिस्तीन में अपनी सल्तनत बढ़ाने की लालच पैदा हुई, ताकि वह तुर्कों से अलग होकर अपनी सरकार बनाए, इसके लिए उसने कमजोर दलीलों का सहारा लिया, और फिलिस्तीन की ओर तत्पर हुआ।

जहां तक उस्मानियों का संबंध है, तो उन्होंने मोहम्मद अली पाशा का मुकाबला करने के लिए तुरंत एक सेना को रवाना किया और फिलिस्तीन और मिस्र में तुर्कों के बीच लड़ाई छिड़ गई, मोहम्मद अली पाशा ने उस्मानियों को हराकर फिलिस्तीन पर कब्जा करके इसे मिस्र के साथ मिलाया, और फिलिस्तीन खेदिवी मोहम्मद अली पाशा की शासन में शामिल हुआ, लेकिन उसने घोषणा की कि वह अब भी तुर्क साम्राज्य के तहत हैं, क्योंकि वह महाज आराई के खतरे से अवगत था, लेकिन यह मतेहती सिर्फ़ रस्मी थी, हाँ खुतबा खलीफा के नाम का खुतबा देते थे और तुर्क सुल्तान के लिए दुआएं मांगते थे, लेकिन मोहम्मद अली पाशा की मिस्र और फिलिस्तीन पर सरकार हकीकत में एक आज़ाद हुकूमत थी।

मोहम्मद अली पाशा के इरादे यहां तक नहीं रुके, बल्कि उन्होंने मिस्र और फिलिस्तीन के लोगों की ज़बरी भर्तियाँ कराईं, बहुत से टैक्स और फीसें आयात की, उन्होंने यहूदियों से भी मदद तलब की क्योंकि उनके पास बहुत पैसा था, और ईसाईयों से भी मदद तलब की, जिन्होंने उन्हें मदद फ़राहम की, जिसके ज़रिए से उन्हें मुस्लिम राज्य के जिस्म में घुसने का मौका भी मिला।

लेकिन जब फिलिस्तीन और मिस्र के मुसलमानों ने खेदिवी मोहम्मद अली पाशा के ज़ुल्म और सत्ता को देखा तो उसके खिलाफ एक महान क्रांति उत्पन्न की गई लेकिन वह उन्हें शिकस्त देने और उनकी क्रांति को दबाने और अपना तानाशाही बढ़ाने में कामयाब रहा। मोहम्मद अली पाशा अपना कंट्रोल बढ़ाता रहा यहां तक कि वह शाम के पास पहुंचे।

ब्रिटेन, खेदिव और यहूदी:

1219 हिजरी 1804 ईसवी में ब्रिटेन ने शाम और मिस्र में इस नई उभरती खेदिवी ताकत को महसूस किया, ब्रिटेन पहले से सल्तनत उसमानिया को खत्म करने की तय्यारियाँ कर रहा था, लेकिन वह यह नहीं चाहता था कि वह सल्तनत उसमानिया को एक नई सल्तनत उसमानिया या सल्तनत खेदिवीया के जरिए खत्म करे, चुनान्चे ब्रिटेन इस जंग में सल्तनत उसमानिया की मदद के लिए शामिल हो गया ताकि मोहम्मद अली पाशा खेदिवी के खिलाफ उनकी मदद करे , इस साल ब्रिटेन ने शाम में सैन्य हस्तक्षेप किय ताकि मिस्री हुकूमत पर दबाव डाला जा सके और इसमें अधिक विस्तार न हो सके और यह बहुत ही बनियती पर आधारित योजना थी जैसा कि ब्रिटेन की हमेशा से आदत रही है कि वह कमजोर का साथ देता है ताकि कोई एक दल ताकतवर न हो सके।

ताहम इसी दौर में ब्रिटेन में बड़े बड़े बकयात घट रहे थे जब मौशे मोंटे फियोरे नामी एक व्यक्ति नमूदार हुआ, वह इंग्लैंड की मलिका विक्टोरिया के महल में एक अधिकारी था, इस अधिकारी का एक कारीण्दा यहूदी व्यापारी था जिसका नाम रोथशील्ड था, रोथशील्ड परिवार की ब्रिटेन पर आर्थिक शासन सब को पता है, रोथशील्ड परिवार ने इस उच्च पद के अधिकारी के साथ अपनी लड़की की शादी कराई , इस शादी के जरिए ब्रिटेन में पैसे और ताकत के बीच इत्तेहाद हो गया, इस प्रकार इस अधिकारी ने सबसे पहले कोशिश की कि कैसे यहूदी को फिलिस्तीन में बसाया जा सके।

मॉन्टे फियोरे प्रोजेक्ट

1243 हिजरी 1828 ईसवी में: इस साल मॉन्टे फियोरे प्रोजेक्ट सामने आया, जिसमें यह ब्रिटिश अधिकारी, एक तरफ ब्रिटिश राज्य और दूसरी तरफ फ्रांसीसी जम्हूरिया की मदद से, सल्तनत उसमानिया पर उसमानी फरमान जारी करने के लिए दबाव डालने में कामयाब रहा, जिस फरमान में यहूदियों को फिलिस्तीन में आबाद होने और फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए इदारे क़ायम करने की इजाज़त शामिल थी।

फिलिस्तीन में आबाद होने का यहूदी मंसूबा

1244 हिजरी 1829 ईसवी में फिर इस यहूदी मॉन्टे फियोरे ने इस साल इंग्लैंड, इटली, रोमानिया, रूस और मोरक्को के यहूदी नेताओं के साथ सहमति की कि वे फिलिस्तीन को यहूदियों का वतन बनाने के यहूदी मंसूबे के निर्माण में सहयोग करें। इस दौरान खेदिवी सल्तनत की बुनियादी दिन बदिन मजबूती हो रही थी, लेकिन अफसोस कि खेदिवी सल्तनत और मुहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब हामियों के बीच जजीरा अरब में तकरार पैदा हो गई, और फौज के जो सिपाही सिपाहसालार थे वह मुहम्मद अली पाशा के बेटे इब्राहीम पाशा थे।

खेदिवी का अपनी सल्तनत को विस्तार देना

1247 हिजरी 1831 ईसवी में इब्राहीम बिन मुहम्मद अली पाशा ने अपने वालिद की सल्तनत को विस्तार दिया और शाम, हिजाज और जजीरा नुमा के कुछ हिस्से को अपने कंट्रोल में ले लिया, इस तरह खेदिवी रियासत सल्तनत उसमानिया के एतबार से ज़्यादा फैल गई, खेदिवी सल्तनत की तरक़्क़ी के साथ यहूदियों का प्रभाव भी बढ़ने लगा, क्योंकि वे यहूदियों और उनके संपत्तियों का सहयोग प्राप्त कर रहे थे, खेदिवी सल्तनत ने शाम और फिलिस्तीन के मुसलमानों पर और टैक्स लगा कर और भरती कर के दबाव डालना शुरू किया।

यरूशलेम में खेदिवी सल्तनत के खिलाफ बगावत

साल 1250 हिजरी 1834 ईसवी में इस साल यरूशलेम के दस हज़ार लोगों ने इब्राहीम मुहम्मद अली पाशा की हुकूमत के खिलाफ बगावत कर दी जो उनके वालिद की तरफ से उन पर हकूमत कर रहे थे। यरूशलेम की खेदिवी गिरिजन ने फिलिस्तीन के लोगों को दबा दिया और ज़बरदस्त लड़ाईयाँ हुईं, इब्राहीम मुहम्मद अली पाशा ने यरूशलेम के क़िलों में अपने आप को महफ़ूज़ कर लिया।इब्राहीम पाशा के लिए घेराव बहुत मुश्किल हो गया, इस लिए उसने मिस्र में अपने वालिद से मदद तलब की,तो मुहम्मद अली पाशा ने पैदल फ़ौज की तीन बटालियन और घुड़सवार की दो बटालियन की कमान खुद करते हुए फिलिस्तीन की तरफ चले, यहूदी और ईसाईयों ने भी उनका समर्थन किया, इस तरह वह यरूशलेम के अंदर खेदिवी गिरिजन और मिस्री फौज के सहयोग से इस इनकलाब को खत्म करने में कामयाब हुए, लेकिन बिलाशुबा इस से फिलिस्तीन में खेदिवी सल्तनत को बहुत अस्थिरता का सामना करना पड़ा।

इसी ज़माने में ब्रिटेन ने सल्तनत उसमानिया को यरूशलेम में काउंसिल कार्यालय स्थापित करने की पेशकश कि और अपना राजनीतिक प्रभाव प्रयोग करते हुए खेदिवी को भी इस अनुरोध पर राज़ी करने के लिए तैयार किया, चुनांचे काउंसिल कार्यालय यरूशलेम में खोला गया, ब्रिटिश सरकार की तरफ से ब्रिटिश काउंसिल कार्यालय को जो पहला संदेश भेजा गया था वह यह था कि यरूशलेम में यहूदियों को सुरक्षा प्रदान करना है।

ब्रिटेन और फ्रांस का यहूदियों को समर्थन

1261 हिजरी 1845 ईसवी में इसके बाद ब्रिटेन ने हिम्मत की और सल्तनत उसमानिया से अलल-ऐलान मांगना शुरू किया कि वह अपना प्रभाव प्रयोग करते हुए खेदिवी सल्तनत को राज़ी करें कि वह फिलिस्तीन से दूसरे लोगों को बे दखल कर दे और उनकी जगह यहूदियों को जगह दे, लेकिन खेदिवी सल्तनत अंग्रेजों और यहूदियों की हरकतों से चौंकन्ना हो गए थे, उन्होंने फिलिस्तीन में यहूदियों के विस्तार की इजाज़त नहीं देने का अज़्म किया।

उसी दौरान, यहूदी यूरप में सरकारी पदों को प्राप्त करने के लिए अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिसके बाद यहूदी फ्रांस में खुले आम इसराईली यूनियन इसोसिएशन स्थापित करने में कामयाब हो गए, जिससे यहूदियों का वैश्विक संगठन स्थापित हो गया। दो साल बाद जर्मन यहूदी मूसा हेस जो तारीख में बहुत मशहूर हैं ने अपनी किताब “रोम और यरूशलेम” प्रकाशित की और उसमें उन्होंने यहूदी जात परस्ती का प्रचार किया, इस समय तक यहूदी धर्म केवल एक मज़हब था, लेकिन अब इसे यहूदी कोम रूप में माना जाने लगा।

सुल्तान अब्दुलहमीद का शासनकाल
सुल्तान का यहूदियों से मुकाबला

1291 हिजरी 1874 ईसवी में फ्रांस में यहूदी समुदाय का प्रभाव बढ़ रहा था, जो दूसरे देशों तक फैल गया। 1876 ईसवी में फ्रांस की क्रांति में यहूदियों को मिले हक़ इसके बाद यूरोप के अधिकांश हिस्सों में उन्हें पूर्ण राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो गए। इस साल सुल्तान अब्दुलहमीद दोअम ने उसमानी साम्राज्य की हुकूमत संभाली, और वह फिलिस्तीन तक अपना प्रभाव बढ़ाने में सफल हुए, खेदिवी हुकूमत पस्पा होती हुई मिस्र की ओर वापस चली गई। उनके शासनकाल में मिस्र में राज्यव्यवस्था को संगठित किया गया, उसमानी संविधान को लागू किया गया, पार्लियामेंट स्थापित किया गया, और शूरा काउंसिल बनाई गई, उन्होंने सरकार में अरबों को भी शामिल किया, हालांकि सरकार का नियंत्रण तुर्कों के हाथों में रहा। पहली उसमानी पार्लियामेंट 1867 ईसवी में आयोजित हुई, जिसमें पहली बार अरबों ने पूरी तरह से भाग लिया, उसमें पहली बार दो नायबों ने यरूशलेम से भी भाग लिया, जिन्हें तुर्क पार्लियामेंट में चुना गया था जो उसमानी साम्राज्य पर शासन करता था।

रूस में यहूदियों की दुश्मनी का उदय

1293 हिजरी 1876 ईसवी में यहूदी समुदाय की संख्या बढ़ कर 14,000 यहूदियों तक पहुँच गई और दो साल बाद, अर्थात 1878 ईसवी में वे “फतह-तक्वा” (इस्राइल) में अपनी पहली कॉलोनी की स्थापना करने में सफल हो गए, लेकिन उसमानी सुल्तान ने अपनी हुकूमत क़ायम करने के बाद यहूदियों की हरकतों पर कड़ी नजर रखी।

दुनिया के एक और हिस्से, खासकर रूस में, जहां कैसर ए रूस अलेक्जेंडर 2 का शासन था, वहाँ बहुत ही खतरनाक साज़िशें हुईं, जिसकी वजह यह थी कि रूस के यहूदी एम्पिरर अलेक्सांडर द्वितीय को क़त्ल करने की साज़िशें कर रहे थे, लेकिन वह उस हत्या से बच निकले, और इसके परिणामस्वरूप यहूदियों के खिलाफ जबरदस्त और सख़्त बदले की शुरआत हुई, उन पर सख़्त का दबाव डाला गया कि वे रूस से निकलने पर मजबूर हो जाएं, और एक आंदोलन शुरू हुआ जिसका नाम “सामियत दुश्मनी” था, यानि सामि जाति के किसी भी व्यक्ति से दुश्मनी, यहूदी भी सामि जाति के थे और अरब भी सामि जाति के थे, लेकिन यहूदी सामि जाति के नाम से रूस में अधिक प्रसिद्ध थे और यहीं से “सामियत दुश्मनी” की आंदोलन शुरू हुई और इसे प्रसिद्धि मिली।

रूस में यहूदियों की संख्या बहुत अधिक थी जिसका अनुमान लाखों में था लेकिन इससे भी अधिक संख्या यूरोप में थी, जिसकी वजह से उन यहूदियों के लिए पनाह की जगह का एक बड़ा मुद्दा उत्पन्न हुआ जिसके नतीजे में सैहूनी की पुनर्स्थापना की आंदोलन की शुरुआत हुई। इसकी कोशिशों में से एक यूरोपीय देशों, विशेष रूप से फ्रांस और ब्रिटेन के लिए यह था कि वे उस्मानि साम्राज्य की कृपा और दया को प्राप्त करें, जो की रूसी राज्य से जुड़ा था, ताकि यहूदियों को उस्मानी साम्राज्य में हिज्रत करने की अनुमति दी जा सके। इस नरमी और इस्लामी रवैये के तहत, सुल्तान अब्दुलहमीद ने यहूदियों को उस्मानी साम्राज्य में रहने की अनुमति दी, सिवाय फिलिस्तीन के, जिसमें उन्हें पहले रहने की अनुमति थी, लेकिन सुल्तान अब्दुलहमीद द्वितीय ने अब उन्हें फिलिस्तीन में रहने की अनुमति नहीं दी।

अमेरिका का मंजरनामा पर उदय

इस मौके पर पहली बार विश्व राजनीतिक मंजरनामे पर अमेरिकी राज्य का उदय हुआ, अमेरिकी राजदूत ने सुल्तान अब्दुलहमीद के इस निर्णय में हस्तक्षेप किया और फिलिस्तीन में यहूदियों को निवास से रोकने की निंदा की, इस समय तक अमेरिका केवल एक अलग राज्य था जिसके पास न तो कोई सैन्य शक्ति थी और न ही कोई उनकी राजनीतिक गतिविधियाँ थीं,

लेकिन अमेरिका ने अपने पहले मंजरनामे में यहूदियों के हित के लिए हस्तक्षेप किया, लेकिन सुल्तान अब्दुलहमीद ने अमेरिकी राजदूत की अनुरोध का जवाब अपने मशहूर कथन से दिया:

“जब तक खिलाफत उस्मानिया मौजूद है मैं यहूदियों को फिलिस्तीन में आबाद नहीं होने दूँगा”।

Sultan Abdul Hameed

यहूदियों को फिलिस्तीन में आबाद होने से रोकना

साल 1298 हिजरी 1881 ईसवी: उत्थमानी साम्राज्य के निर्णय की आधार पर यहूदियों ने उस्मानी साम्राज्य की ज़मीनों की तरफ चलना शुरू किया लेकिन 1881 से लेकर 1914 तक रूस में यहूदियों का मुद्दा पैदा होने तक उन्हें फिलिस्तीन में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। इस अवधि में रूस और यूरोप से आने वाले लगभग 50 लाख यहूदियों ने हिज्रत की और ये लोग उस्मानी हुकूमत में आबाद हुए, खासकर तुर्की में, इनमें से कुछ उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका में हिज्रत कर गए, और सिर्फ एक लाख 55 हज़ार यहूदी फिलिस्तीन में प्रवेश कर गए, जो हिज्रत करने वाले कुल यहूदियों के दो प्रतिशत थे,

इसके अनुसार यहूदियों को फिलिस्तीन में आबाद होने से रोकने में सुल्तान अब्दुलहमीद की नीति को सफल माना जाता है, लेकिन उसने अगले साल यहूदियों को फिलिस्तीन में मुकद्दस मकामात की सिर्फ़ ज़ियारत करने की अनुमति भी दी, कुछ यूरोपीय देशों में यहूदियों पर ज़ुल्म और उनका एक समूह उत्तरी फिलिस्तीन में हिज्रत करके अपनी पहली कॉलोनी स्थापित करने में सफल हुआ, ये सब कुछ खामोशी और चुपचाप हो रहा था।

सैहूनी आंदोलन की तरक्की

1299 हिजरी 1882 ई. में ब्रिटेन मिस्र की ओर बढ़ा, जिसकी सुरक्षा खेदीवी सल्तनत कर रही थी। वह अगर्चे आज़ाद हुकूमत थी, लेकिन बजाहिर ओटोमन सल्तनत के अधीन था, और अंग्रेज़ मिस्र पर कब्ज़ा करने में कामयाब हो गए। इस अवधि के दौरान, फ्रेंच यहूदी लाखपति एडमंड जेम्स डी रॉथशील्ड ने फिलिस्तीन में यहूदी आबादी के लिए आर्थिक सहायता के लिए एक आंदोलन की नींव रखी।

इसी साल 1299 हिजरी 1882 ई. में लियोन पेंस्कर नामक एक यहूदी ने “व्यक्तिगत स्वतंत्रता” के नाम से एक पुस्तक प्रकाशित की जिसमें उन्होंने यहूदियों पर दबाव डाला कि वे जिन देशों में रहते हैं वहां इंतिशार के ख्याल को इनकार कर दें, उन्होंने अपनी पुस्तक में कहा कि यहूदियों के लिए असली स्वतंत्रता यहूदियों के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना में होगी जो यहूदियों के लिए एक राज्य और देश हो, इससे एक यहूदी राज्य की स्थापना का विचार सामने आया। इस प्रकार फिलिस्तीन में प्रवेश करने वाले यहूदी आंदोलन की संख्या में वृद्धि हुई और कुछ कॉलोनियां वुजूद में आईं लेकिन वे नज़रों से दूर थीं, फिलिस्तीन के लोगों ने इस यहूदी आंदोलन को ध्यान में रख लिया था, जिससे फिलिस्तीन के अंदर से इसके खिलाफ विरोधी आंदोलन शुरू हो गया।

सुल्तान अब्दुल हमीद का फिलिस्तीन का सीधा इंतज़ाम करना

1303 हिजरी 1886 ई. में इसके परिणामस्वरूप फिलिस्तीनी किसानों और यहूदी आबादी विक्रेताओं के बीच पहला सशस्त्र संघर्ष हुआ और कुछ अरब अखबार ने फिलिस्तीन में यहूदियों के खतरे के बारे में चेतावनियाँ जारी कीं और उनके फिलिस्तीन में बसने के इरादे के खतरे पर दबाव डाला, सुल्तान अब्दुल हमीद ने इस खतरे को महसूस किया, लेकिन ओटोमन सरकार में फिलिस्तीन मिस्र देश शाम का हिस्सा था और इसे संजाक कहा जाता था, इसलिए सुल्तान ने एक फरमान जारी किया, और संजाक यानी फिलिस्तीन को शाम से अलग कर दिया,

इस तरह यह ओटोमन तुर्क सरकार की सीधी निगरानी में आ गया, जिसे इस समय अलबाबा अलउला (तूफ़ टावर) कहा जाता था, सुल्तान अब्दुल हमीद ने फिलिस्तीन का प्रशासन खुद करना शुरू किया, सुल्तान को मालूम था कि अगर इसकी कड़ी निगरानी की जाती तो यह बस्ती नहीं बढ़ती।

इसके बाद सुल्तान अब्दुल हमीद ने यहूदियों पर दबाव डालना शुरू किया कि वे फिलिस्तीन छोड़ने पर मजबूर हो जाएं, लेकिन कुछ यूरोपी देशों ने उन पर दबाव डाला कि वे उन्हें फिलिस्तीन में बसने की इजाज़त दें, लेकिन कॉलोनियों का गठन किए बिना व्यक्तिगत रूप से।

यहूदियों की रोक-थाम:

1305 हिजरी 1888 ई. में उन हालातों में सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय रहमतुल्लाह अलैहि ने इस साल ओटोमन कानून जारी किया जिसमें बड़े पैमाने पर यहूदियों की ओटोमन भूमि पर हिज्रत पर पाबंदी लगाई गई और ज़ाइरीन को फिलिस्तीन में तीन महीने से अधिक रहने से रोक दिया गया, यहां तक कि व्यक्तिगत रूप से भी।

यहूदियों को ज़मीन की बिक्री से रोकना

1308 हिजरी 1891 ई. में:”सुल्तान अब्दुल हमीद की इस सफल नीति और फिलिस्तीन में मामले के मजबूत होने के बाद, उन्होंने मिस्र में खेदीवी अब्बास हेल्मी को फिलिस्तीन में समुद्री मामलों की देखभाल के लिए नियुक्त किया क्योंकि सुल्तान की अन्य महत्वपूर्ण मामलों में मसरूफियत थी। दूसरी ओर, यूरोप में इस निर्णय पर तेज़ विरोध मिला, जिसके कारण जर्मन यहूदी बर्न मॉर्स डी हर्श ने “कोलोनिज़ेशन लीग” की स्थापना की और फिलिस्तीन में यहूदियों की प्रवास शुरू करने का ऐलान किया, जर्मन यहूदी ने खेदीवी की समुद्री की निगरानी में कमजोरी का फायदा उठाया, और वह फिलिस्तीन की ओर प्रवास करने लगे और वहां यहूदी बस्तियाँ बनाने लगे।

सुल्तान अब्दुल हमीद वापस आने के बाद जब उन्होंने यहूदियों की नई प्रवास और गति देखी तो उन्होंने फिर से फिलिस्तीन और उसके समुद्री क्षेत्र की निगरानी खुद करने का निर्णय लिया, उन्होंने तुर्की से एक ओटोमन सेना भेजी ताकि जर्मन यहूदियों को फिलिस्तीन के समुद्री क्षेत्र से बाहर निकाला जा सके। सन 1892 ई. में एक फरमान जारी किया गया जिसमें यहूदियों को भूमि की बिक्री पर पाबंदी लगाई गई, चाहे वे फिलिस्तीनी हों या ना हों, लेकिन यूरोपीय देशों ने सुल्तान पर तेज़ दबाव डाला कि यहूदियों को ज़मीनें खरीदने की इजाज़त दी जाए, शर्त थी कि वे कोलोनियों में एकत्रित न हों, लेकिन सुल्तान अब्दुल हमीद ने इस दबाव के सामने झुकने का कोई सोचा-समझा नहीं किया और न ही अपनी प्रतिबद्धता बदली, क्योंकि वह फिलिस्तीन को आबाद करने और इस पर कंट्रोल करने के यहूदियों के गुप्त इरादों को जानते थे।”

हरज़ल और सैहूनी आंदोलन

1314 हिजरी1896 ईसवी में हरजल की किताब “द ज्यूइश स्टेट” (यहूदी राज्य)1896 तक यहूदियों को फिलिस्तीन में रहने से रोकने की यह स्थिति बनी रही, जब हंगेरी नस्ल के यहूदी थेओडोर हरजल का नाम राजनीतिक मन्त्रिमंडल पर प्रकट हुआ, उन्होंने फिलिस्तीन में जीयूश कालोनाइजेशन लीग की स्थापना का एलान किया और अपनी किताब “द ज्यूइश स्टेट” जारी की, जिसमें उन्होंने फिलिस्तीन में एक राज्य की स्थापना का मांग कि, अगर यहूदियों को फिलिस्तीन पर शासन करने से असमर्थ रहे तो नया यहूदी राज्य अर्जेंटीना में होगा।

यहां एक बहुत महत्वपूर्ण बात ध्यान देने योग्य है, वह यह है कि किताब “द ज्यूइश स्टेट” ने फिलिस्तीन के अलावा एक यहूदी राज्य का विकल्प दिया है जो कि अर्जेंटीना है, और यह दो महत्वपूर्ण बातों की ओर संकेत करता है

पहला यह है कि यहूदियों को पूरी तरह से यकीन नहीं था कि वे फिलिस्तीन में प्रवेश करने और बसने के लिए ओटोमन साम्राज्य और सुल्तान अब्द अल-हामिद की साबितकदमी पर काबू पा लेंगे। यह यहूदी और इस्लामी मुद्दे के संबंध में ओटोमन सुल्तान के इरादों की मजबूती, उनकी ईमानदारी और दयानतदारी को निशानदेही करता है।

दूसरी बात यह है कि फिलिस्तीन की ज़मीन यहूदियों के लिए कोईख़ास पवित्र नहीं थी, इसलिए उन्होंने इसके वैकल्पिक रूप में एक और संगठन का भी चयन किया, बल्कि उनका उद्देश्य केवल एक राज्य की स्थापना था, और इससे उनका फिलिस्तीन की ज़मीन पर अधिकार का दावा बातिल हो जाता है कि वह उसके असली निवासी हैं, वरना वह उसके अलावा अपने लिए कोई और विकल्प नहीं चुनते।

हरजल का फिलिस्तीन को ख़रीदने की पेशकश करना

अगले साल उस्मानी-यूनानी युद्ध हुआ और सल्तनत उस्मानिया दीवालिया हो गई, जब हरजल ने देखा तो वो बहुय तेज़ी से हरकत में आया और लाखों यहूदियों को यूरोप में इकट्ठा किया और व्याना में उस्मानी राजदूत के माध्यम से सल्तन अब्दुलहमीद को पेशकश की कि फिलिस्तीन में यहूदियों की हिजरत की इजाज़त देने के बदले में वह बहुत बड़ी मात्रा में यहूदी अतिया (तोहफ़े) देंगे,

सुल्तान का जवाब कड़ा और मज़बूत था, उन्होंने कहा:

“मैं फिलिस्तीन का एक इंच भी छोड़ नहीं सकता क्योंकि यह मेरा हक़ नहीं है बल्कि मेरी उम्मत की मल्कियत है, मेरी उम्मत ने इस ज़मीन के लिए जंग लड़ी और उसे अपने ख़ून से सीराब किया”।

Sultan Abdul Hameed

इस प्रतिक्रिया ने पूरी दुनिया के यहूदियों को हिला दिया और इतिहास ने उस वाक्य को अमर कर दिया जो बाद में सल्तन अब्दुलहमीद के नाम के साथ जुड़ गया, अल्लाह उन पर रहम करे।

हरजल ने महसूस किया कि सुल्तान अब्दुलहमीद की मौजूदगी में फिलिस्तीन में प्रवेश मुमकिन नहीं है इसलिए उसने स्विट्ज़रलैंड के बासल शहर में पहली सैहूनी कॉन्फ़्रेंस का इंतज़ाम किया जिसकी अध्यक्षता हरजल ख़ुद कर रहा था, इसमें उसने विश्व सैहूनी संगठन की स्थापना की, उनके फैसलों में यह भी था कि यहूदियों का सिर्फ़ फिलिस्तीन ही राष्ट्रीय वतन है नहीं कि अर्जेंटीना या किसी अन्य जगह में, उनके ख़तरनाक फैसलों में यह भी था कि अगर सुल्तान अब्दुलहमीद सायोनी (सैहूनी) मांगों को मंज़ूर नहीं करते तो यहूदी सल्तन ए उस्मानिया को तबाह करने के लिए काम करेंगे।

अलमनार अख़बार जो काहिरा से प्रकाशित होता था, जिसके मालिक लेबनानी नस्ल शेख़ मोहम्मद रशीद रज़ा थे जो मिस्र में बसे थे, इस सायोनी कॉन्फ़्रेंस के ख़तरे से सतर्क करने वाला यह पहला अख़बार था, उसने एक के बाद दूसरे लागातार ख़बरें देना शुरू किए जिनमें यहूदी आबाद कारी के ख़तरे और फिलिस्तीन में एक राज्य स्थापित करने के इनके इरादे से सतर्क किया गया था।

फिर सायोनी कॉन्फ़्रेंसों का सिलसिला जारी रहा और 1316 हिजरी 1898 ईसवी में दूसरी सायोनी कॉन्फ़्रेंस फिर स्विट्ज़रलैंड के बासल शहर में आयोजित हुई और उसमें कई फैसले सामने आए जिनमें यहूदी बैंक की स्थापना, इब्रानी भाषा सीखने की प्रोत्साहन, और हरजल की तरफ से एक मंडेट शामिल थी कि कैसे यूरोपी महाद्वीपों को फिलिस्तीन में एक राज्य स्थापित करने के लिए यहूदियों की मदद की जाए।

सुल्तान का यहूदियों और ब्रिटेन से जंग

1316 हिजरी 1898ई में सुल्तान अब्दुलहमीद को इन सभी कार्रवाइयों के बारे में अज्ञात नहीं थे, इस साल उन्होंने एक कानून पास किया जिसमें गैर-उस्मानी यहूदियों को तीस दिन से अधिक फिलिस्तीन आने से रोक दिया गया और उन्होंने इस हुक्म का पालन न करने वालों का मुल्क बदर करने को शक्ति का इस्तेमाल करने का आदेश दिया।

जैसा कि हमने उल्लेख किया, यहूदियों को अनुभूति हुई कि सल्तान अब्दुलहमीद उनके परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में एक बड़ी रोकटोक हैं, इसलिए उन्होंने लंदन में चौथी सायोनी कॉन्फ़्रेंस आयोजित की, और हरजल ने अपने उद्घाटन भाषण में घोषणा की कि महान इंग्लैंड, जिसकी भूमि सभी समुद्रों का नज़ारा करती है, वह दुनिया का वह देश है जो यहूदी आंदोलन को समझता है और सहायता का हाथ बढ़ाने वाला पहला देश है। ब्रिटेन ने यहूदियों के व्यवहार का जवाब देते हुए सुल्तान अब्दुलहमीद पर कड़ा दबाव डाला कि वह यरूशलम में यहूदियों की हिज्रत को कानून खात्म कर दें, तो सुल्तान ने एक नया कानून पास किया जिसमें पहले कानूनों को जारी रखने और यहूदियों को फिलिस्तीन में आबाद होने से रोकने का शामिल था, लेकिन उन्होंने केवल उत्तरी फिलिस्तीन में यहूदी आबादी की इजाजत दी।

हर्जल की मौत

1322 हिजरी 1904ई यहूदियों ने सल्तान के कानून का फायदा उठाते हुए उत्तरी फिलिस्तीन में आबाद होना शुरू किया, यहूदी हिज्रा की एक लहर 1903 में आई और वे फिलिस्तीन में आबाद हो गए, हर्जल की बारम्बार कोशिशें सुल्तान अब्दुलहमीद को अपने इरादे से बाज रखने की मुसलसल कोशिशें करती रहीं लेकिन हरजल 1904 में अपने उद्देश्यों में सफल से पहले ही मर गया।

नोट: हर्जल की कब्र यूरोप में थी जो बाद में फिलिस्तीन में स्थानांतरित की गई।

हायली रियासत का गठन

1323हिजरी 1905ई में दूसरी ओर उपनिवेशी शक्तियों (ब्रिटेन, फ्रांस, हॉलैंड, इटली…) ने इस साल दुनिया की उपनिवेशी शक्तियों की कॉन्फ़्रेंस आयोजित की, कॉन्फ़्रेंस ने एक फैसला जारी किया जिसे सबसे खतरनाक फैसलों में गिना जाता है, कॉन्फ़्रेंस ने पिछली राष्ट्रों की तारीख को देखा और ज़मीन पर मुस्लिमों की पिछली जीतों और उनके पूर्ण नियंत्रण को नोट किया, उन्होंने यह देखा कि मुसलमान भी कमजोर और पस्पाई हो गए हैं, इसलिए वे बियाफर राज्य (हायली राज्य) के गठन पर सहमत हो गए, जो मुस्लिम राज्य को दो हिस्सों में विभाजित करता है: एशियाई और अफ्रीकाई, उन्होंने इसके लिए बहुत प्रयास किया ताकि मिल्लत इस्लामिया में विभाजन जारी रहे और उनकी पंक्तियों में नया इत्तेहाद गठित न हो, इस वजह से हम इस 1905 के बाद आरबी क्षेत्र में नवनिवासी योजना को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।

अतातुर्क और जमीयत इत्तिहाद ओ तरक्की

हिजरी 1325 (1907 ईसवी) में: दोसरी ओर, यहूदियों ने उत्तरी फिलिस्तीन की ओर अपनी हिज्रत जारी रखी, और इस साल में पहला किबूत्स (कृषि नवनिवासी प्रणाली) स्थापित हुआ, जो काम और उत्पादन में सहयोग और सहकारिता पर आधारित कृषि समुदाय था, फिर यह एक अप्रगतिशील यहूदी प्रणाली में बदल गया जिसमें विवाह के बिना यौन संबंधों की अनुमति थी, और इसके लिए उत्तरी फिलिस्तीन में एक बड़ी कॉलोनी स्थापित की गई।

सुल्तान अब्दुलहमीद थे जो उसमानी साम्राज्य को आगे बढ़ाने के लिए अपने सभी प्रयासों में लगे थे, वे यहूदियों की स्थानांतरण और उनके लिए यूरोप के समर्थन के कारण अरब दुनिया को संभाल रहे थे और उन्हें एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए उन्होंने रेलवे प्रणाली की स्थापना की जो विभिन्न क्षेत्रों को एक साथ मिलाती थी, 1908 ईसवी में रेलवे लाइन पूरी हुई, जो मदीना से शुरू होकर फिलिस्तीन और शाम तक पहुंचती थी, इस प्रकार, वे उसमानी साम्राज्य के महत्वपूर्ण हिस्सों को जोड़ने में सफल हो गए।

यहूदि सुल्तान अब्दुलहमीद के कारनामों से तंग आ चुके थे, इसलिए उन्होंने उनके खिलाफ साज़िश करने और उन्हें समाप्त करने का फैसला किया, इस तरह यहूदी स्वयं तुर्क राज्य के अंदर ही बरकत में आए, और “यंग तुर्क एसोसिएशन” के नाम से एक संगठन बनाया, जिसकी एक उपशाखा “जमीयत इत्तिहाद और तरक्की” थी, इस अंजुमन का नेता मुस्तफा कमाल अतातुर्क भी शामिल था, जिन्हें “गाज़ी” कहा जाता था, उनका व्यक्तित्व पहली जंग-ए-अज़ीम के दौरान उजागर हुई और फिर जंग के बाद जब उन्होंने यूनान को हराया था (जैसा कि कहा जाता है), तब उन्हें प्रसिद्धि मिली थी, और जमीयत इत्तिहाद और तरक्की एक स्वतंत्र पार्टी थी।

सुल्तान अब्दुलहमीद को हुकूमत से हटाना

हिज्री 1327 (1909 ईसवी) में यह संगठन तुर्क पार्लिमेंट के माध्यम से अपने आसपास उसमानी नेताओं के एक ग्रुप को जुटाने में सफल हुआ और कुछ समय बाद इसने प्रभावी तरीके से आगे बढ़कर सुल्तान अब्दुलहमीद को हटा दिया। इस साल के सातवें महीने में उसमानी साम्राज्य के मुफ्ती ने सुल्तान अब्दुलहमीद को हटाने का आदेश जारी किया, और तुर्की पर जमीयत इत्तिहाद और तरक्की की सरकार आई

इस कमेटी ने एक और सुल्तान को नियुक्त किया, उसका नाम मुहम्मद रशाद था, फिर एक और सुल्तान अब्दुलमजीद मुहम्मद वहीदउद्दीन के नाम से आया, जो सुल्तान मुहम्मद रशाद का बेटा था, लेकिन असली शासन जमीयत इत्तिहाद और तरक्की के हाथ में था और सरकार में प्रभाव और स्थापना का तीर्थ तेरह मंत्रियों में तीन यहूदी मंत्रियों के हाथ में था, जबकि अरब जो कि तुर्क राज्य की आधी आबादी थी, जिसकी नुआइंदगी एक मंत्री कर रहे थे।

अतातुर्क का दरबार पर कब्ज़ा करना

छह महीने बाद, यहूदी संगठन पर आपत्ति जताते हुए कई लोकतांत्रिक क्रांतियाँ उत्पन्न हुईं, यह क्रांतियाँ सुल्तान मुहम्मद रशाद और जमीयत इत्तिहाद और तरक्की के खिलाफ उत्पन्न हुईं, क्रांति ने पार्टी के कुछ नेताओं को मार दिया और सुल्तान अब्दुलहमीद को बहाल कर दिया, लेकिन यहूदीयों ने मुस्तफा कमाल को आदेश दिया, जो सेना का प्रबंधन चला रहा था कि वह क्रांति को दबाने के लिए आगे बढ़े, इसलिए मुस्तफा कमाल आगे बढ़ा और सेना ने खिलाफत के दरबार पर कब्ज़ा कर के सुल्तान को फिर से हटा दिया, और उसमानी साम्राज्य से बाहर जिलावतन कर दिया, इस तुर्क सेना का कमांडर अरबी था, जिसका नाम महमूद शौकत पाशा था और उसका अमलदार मुस्तफा कमाल अतातुर्क रहा था, इस प्रकार तुर्की में यहूदी सरकार स्थापित हो गई।

हुकूमती पार्टी जमीयत इत्तिहाद और तरक्की ने क़ानूनों का एक संग्रह जारी करना शुरू किया, जिसमें से पहला, बिल्कुल, यहूदियों के स्थानांतरण की अनुमति देना था। यह फैसला याफा के उत्तर में स्थित कस्बे तेल अल-रबीय’ (वर्तमान तेल अवीव) में जारी किया गया, जिसमें यहूदियों को ज़मीन खरीदने की अनुमति देना और यहूदियों को हिज्रत (प्रवास) की अनुमति देना शामिल था। अरब अख़बारों ने यहूदियों को फिलिस्तीन से कुछ प्राप्त करने के खिलाफ विरोध का ऐलान किया, लेकिन सुल्तान अब्दुलहमीद के जाने से यहूदियों के लिए देश की किस्मत से छेड़ छाड़ करने की जगह खाली हो गई। सुल्तान अब्दुलहमीद अपनी यादों में लिखते हैं कि मेरे हटाने की वजह यहूदियों पर पाबंदी लगाने पर मेरा इसरार था जबकि यहूदियों का इसरार मुकद्दस सर ज़मीन में अपने लिए देश का कायम करना था।

फ़िलिस्तीनी अख़बार

1329 हिजरी 1911ई में इस साल फ़िलिस्तीनी अख़बार प्रकाशित होना शुरू हुआ, इसने अपने लेखों में फ़िलिस्तीन में यहूदियों की मौजूदगी के ख़तरे और उनके आशावादों के बारे में लगातार चेतावनी दी, यह अख़बार ख़ास तौर पर फ़िलिस्तीन के अरबों को आगाह कर रहा था, इसी समय से इस अख़बार ने संकेत दिया था कि सायोनी फिलिस्तीन का एक के बाद एक हर गाँव पर कब्ज़ा करना चाहते हैं।

जमीयत इत्तिहाद और तरक्की ने उसमानी साम्राज्य में सरकार की बाग़दोर पर नियंत्रण और विजय जारी रखा, इसकी सरपरस्ती में यहूदियों का प्रवेश और उनकी फ़िलिस्तीन की तरफ हिज्रत और वहाँ अलग बस्तियों का गठन जारी रहा, अगरचे कुछ ने इस तहरीक का नोटिस लिया, लेकिन बहुत से लोग इससे बेख़बर थे।

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