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Namaz Kab Farz Hui | Prophet Muhammad History in Hindi Part 28

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Seerat e Mustafa Qist 28
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मेराज का वाक्य हमने Part 27 में ज़िक्र किया है उसी का एक हिस्सा हम यहां ज़िक्र करेंगे वो है के नमाज़ कब फ़र्ज़ हुई

सफ़र ए मेराज में पचास नमाज़ें फ़र्ज़ हुईं। पचास नमाज़ें हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के मशवरे से कम कराई गईं। यहाँ तक कि इनकी तादाद पाँच कर दी गई, तहम अल्लाह तआला ने फरमाया:

“ऐ मुहम्मद! हर रोज़ ये पाँच नमाज़ें हैं। इनमें से हर एक का सवाब दस के बराबर होगा और इस तरह इन पाँच नमाज़ों का सवाब पचास नमाज़ों के बराबर मिलेगा। आपकी उम्मत में से जो शख़्स भी नेकी का इरादा करे और फिर न कर सके, तो मैं उसके हक़ में सिर्फ़ इरादा करने पर एक नेकी लिखूँगा

और अगर उसने वह नेक अमल कर भी लिया तो उसे दस नेकियों के बराबर लिखूँगा और जो शख़्स किसी बदी का इरादा करे और फिर उसको न करे तो भी उसके लिए एक नेकी लिख दूँगा और अगर उसने वह बदी कर ली तो उसके नतीजे में एक बदी लिखूँगा।”

पूछा जाएगा।

हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह तआला से हमकलामी के बाद आसमानों से वापस ज़मीन पर तशरीफ़ ले आए। जब अपने बिस्तर पर पहुँचे तो वह उसी तरह गर्म था जिस तरह छोड़कर गए थे। यानी मेराज का यह अजीब वाक़िआ और इतना तवील सफ़र सिर्फ़ एक लम्हे में पूरा हो गया, यूँ समझें कि अल्लाह तआला ने इस दौरान कायनात के वक़्त की रफ़्तार को रोक दिया जिससे यह मौजिज़ा निहायत थोड़े वक़्त में मुकम्मल हो गया।

मेराज की रात के बाद जब सुबह हुई और सूरज ढल गया तो जिब्रील अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए। उन्होंने इमामत कर के आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नमाज़ पढ़ाई ताकि आपको नमाज़ों के औक़ात और नमाज़ों की कैफ़ियत मालूम हो जाए। मेराज से पहले आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सुबह-शाम दो-दो रकअत नमाज़ अदा करते थे और रात में क़याम करते थे, लिहाज़ा आपको पाँच फ़र्ज़ नमाज़ों की कैफ़ियत उस वक़्त तक मालूम नहीं थी।

जिब्रील अलैहिस्सलाम की आमद पर हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एलान फ़रमाया कि सब लोग जमा हो जाएं… चूँकि यह पहली नमाज़ थी जिसकी कैफ़ियत ज़ाहिर की गई थी-चूँकि दोपहर को अरबी में ज़हीरा कहते हैं इसलिए यह भी हो सकता है यह नाम इस बुनियाद पर रखा गया हो, क्योंकि यह नमाज़ दोपहर को पढ़ी जाती है-इस नमाज़ में आपने चार रकअत पढ़ाई और कुरआन करीम आवाज़ से नहीं पढ़ा-

इसी तरह अस्र का वक़्त हुआ तो अस्र की नमाज़ अदा की गई-सूरज ग़ुरूब हुआ तो मगरिब की नमाज़ पढ़ी गई-यह तीन रकअत की नमाज़ थी, इसमें पहली दो रकअतों में आवाज़ से किराअत की गई-आख़िरी रकअत में किराअत बुलंद आवाज़ से नहीं की गई-इस नमाज़ में भी ज़ुहर और अस्र की तरह हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आगे थे, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनकी इमामत में नमाज़ अदा कर रहे थे और सहाबा नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इमामत में- इसका मतलब है, हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वक़्त मुक़्तदी भी थे और इमाम भी-

रहा यह सवाल कि यह नमाज़ कहाँ पढ़ी गईं तो इसका जवाब यह है कि खाना काबा में पढ़ी गईं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रुख़ बैतुल मुक़द्दस की तरफ़ था, क्योंकि उस वक़्त क़िब्ला बैतुल मुक़द्दस था- हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब तक मक्का मुअज़्ज़मा में रहे इसी की सम्त मुँह करके नमाज़ अदा करते रहे-

जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पहले दिन नमाज़ों के अव्वल वक़्त में यह नमाज़ पढ़ाई और दूसरे दिन आख़िरी वक़्त में ताकि मालूम हो जाए, नमाज़ों के औक़ात कहाँ से कहाँ तक हैं-

इस तरह यह पाँच नमाज़ें फ़र्ज़ हुईं और इनके पढ़ने का तरीक़ा भी आसमान से नाज़िल हुआ-आज कुछ लोग कहते नज़र आते हैं… नमाज़ का कोई तरीक़ा क़ुरआन से साबित नहीं…लिहाज़ा नमाज़ किसी भी तरीक़े से पढ़ी जा सकती है…हम तो बस क़ुरआन को मानते हैं…ऐसे लोग सरीह गुमराही में मुब्तिला हैं…नमाज़ का तरीक़ा भी आसमान से ही नाज़िल हुआ और हमें नमाज़ उसी तरह पढ़नी होंगी जिस तरह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम पढ़ते रहे-यह भी साबित हो गया कि फ़र्ज़ नमाज़ें पाँच हैं,

हदीस के मुनकिर पाँच नमाज़ों का इनकार करते हैं वह सिर्फ़ तीन फ़र्ज़ नमाज़ों के क़ाइल हैं- लोगों को धोका देने के लिए वह कहते हैं कि क़ुरआन मजीद में सिर्फ़ तीन नमाज़ों का ज़िक्र आया है-हालांकि अव्वल तो इनकी यह बात है ही झूठ दूसरे यह कि जब अहादीस से पाँच नमाज़ें साबित हैं तो किसी मुसलमान के लिए इनसे इनकार करने की कोई गुंजाइश नहीं रहती-

पाँच नमाज़ों की हिकमत के बारे में उलमा ने लिखा है कि इंसान के अंदर अल्लाह तआला ने पाँच हवास यानी पाँच हस्सें रखी हैं-इंसान गुनाह भी इन्हीं हस्सों के ज़रिए से करता है-(यानी आँख, कान, नाक, मुँह, अज़ा व जवारेह यानी हाथ-पैर) लिहाज़ा नमाज़ें भी पाँच मुक़र्रर की गईं ताकि इन पाँचों हवासों के ज़रिए दिन और रात में जो गुनाह इंसान से हो जाएं, वह इन पाँचों नमाज़ों के ज़रिए धुल जाएं इसके अलावा भी बेशुमार हिकमतें हैं-

यह भी याद रखें कि मेराज के वाक़िए में हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आसमानों पर जाना साबित करता है कि आसमान हक़ीक़त में मौजूद हैं-

मौजूदा तरक़्क़ी याफ़्ता साइंस का यह नज़रिया है कि आसमान का कोई वुजूद नहीं बल्कि यह कायनात एक अज़ीम ख़ला है-इंसानी निगाह जहाँ तक जाकर रुक जाती है, वहाँ इस ख़ला की मुख़्तलिफ़ रोशनियों के पीछे एक नीलगूँ हद नज़र आती है-इसी नीलगूँ हद को इंसान आसमान कहता है-

लेकिन इस्लामी तालीम ने हमें बताया है कि आसमान मौजूद हैं और आसमान इसी तरीक़ से मौजूद हैं, जो क़ुरआन और हदीस ने बताई है-

क़ुरआन मजीद की बहुत सी आयात में आसमान का ज़िक्र है, कुछ आयात में सातों आसमान का ज़िक्र है जिनसे मालूम होता है कि आसमान एक अटल हक़ीक़त है न कि नज़र का धोका-

अल्हम्दुलिल्लाह, मेराज का बयान तकमील को पहुँचा-इसके बाद सीरतुन्नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़दम ब-क़दम में हम मेराज के बाद के वाक़िआत बयान करेंगे-इंशाअल्लाह-

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