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kya hum universe se bahar nikal sakte hain

अल्लाह तआला सूरह रहमान की आयत 33 में फरमाता है,

“ऐ जिन्न और इंसानों के समूह, अगर तुम ज़मीन और आसमान की सीमाओं से बाहर निकल सकते हो तो , निकल जाओ, तुम हरगिज़ नहीं निकल सकते। इसके लिए तुम्हें बढ़ा ज़ोर चाहिए/जहां भी जाओगे उसी को सल्तनत पाओगे।”

हम जिस आकाशगंगा (Galaxy) में क़ैद हैं, उसे “Milky way” कहा जाता है, और इसके चार ‘आर्म’ (Arms) या ‘सर्पिल भुजाएँ’ हैं। नेशनल साइंस फाउंडेशन के मुताबिक़ मिल्की वे आकाशगंगा में चार सर्पिल बाज़ू हैं, जिनमें से दो सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं: एक को ‘Perseus’ कहा जाता है और दूसरे को ‘Scutum-Centaurus’ कहते हैं।

मिल्की वे के जिस बाज़ू में हमारा सोलर सिस्टम (सौर मंडल) मौजूद है, उसे खगोलविज्ञान (Astronomy) की ज़बान में ‘Sagittarius’ कहते हैं। इसे हम बिना टेलीस्कोप के भी देख सकते हैं, क्योंकि यह मिल्की वे आकाशगंगा का सबसे करीबी बाज़ू है, जिसमें हमारी पृथ्वी भी मोजूद है। इसे हम यहां से भी देख सकते हैं, और यह चित्र न्यूजीलैंड के “फॉक्स ग्लेशियर” से लिया गया है। मिल्की वे के चौथे बाज़ू का नाम ‘लोकल आर्म’ है। हमारी तकनीक (टेक्नोलॉजी) फिलहाल इस कैदखाने से बाहर नहीं जा सकती, लेकिन हम गाया डेटा का उपयोग करके यह जान सकते हैं कि हम ब्रह्मांड में किस जगह पर क़ैद हैं।

क्या भविष्य में हम इस ‘कैदखाने’ से बाहर निकल सकेंगे?

क्या आने वाले समय में तकनीक इस काबिल हो जाएगी कि हम अन्य आकाशगंगाओं तक पहुँच सकें, या हम उन्हें सिर्फ़ दूर से ही देखते रहेंगे?

अगर आपकी उम्र 60 साल है और आप इस कैदखाने से बाहर निकलने की सोच रहे हैं, तो ऐसा सोचने की भी ज़रूरत नहीं, क्योंकि यह मुमकिन नहीं है। अगर आपकी उम्र 60 हज़ार या 60 लाख साल हो जाए, तब भी यह मुमकिन नहीं है। फ़िलहाल अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के पास जो सबसे तेज़ स्पेसक्राफ्ट है, वह भी इस कैदखाने से बाहर नहीं जा सकता।

अगर हम ज़मीन के बिल्कुल ऊपर की दिशा में यात्रा करें, तो इस कैदखाने से बाहर निकलने के लिए हमें 500 प्रकाश वर्ष की दूरी तय करनी होगी। तभी जाकर हम इस कैदखाने से बाहर निकल सकते हैं। 500 प्रकाश वर्ष का मतलब 50,00,00,00,00,00,000 किलोमीटर का फासला तय करना होगा। लेकिन यह दूरी हम या हमारी तकनीक तय नहीं कर सकते।

kya hum universe se bahar nikal sakte hain

हम जानते हैं कि पृथ्वी से बाहर निकलने के लिए हमें 11.2 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति चाहिए। यानी अगर हम किसी वस्तु को एक सेकंड में 11 किलोमीटर ऊपर फेंक दें, तो वह पृथ्वी पर कभी नहीं गिरेगी, क्योंकि यही गति हमें पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकाल सकती है। यह गति हम शायद प्राप्त कर भी लें, लेकिन इसके बाद सूरज हमें अपनी ओर खींच लेगा, क्योंकि सूरज की भी एक ‘एस्केप वेलोसिटी’ होती है। सूरज से बचने के लिए 42.1 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति पकड़नी होगी, यानी पृथ्वी से बाहर निकलने के बाद आप सूरज से नहीं बच पाएँगे क्योंकि वह आपको सौरमंडल से बाहर नहीं जाने देगा।

लेकिन मान लें कि आपने धरती से बाहर निकलने के बाद 42 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति पकड़ ली और आप सौरमंडल से बाहर निकल गए। इसके बाद मिल्की वे आकाशगंगा से कैसे निकलेंगे? क्योंकि मिल्की वे आकाशगंगा की भी एक एस्केप वेलोसिटी है। मिल्की वे से बाहर निकलने के लिए आपको 550 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति पकड़नी होगी। तभी आप इस कैदखाने से बाहर निकल सकते हैं। लेकिन यह गति पकड़ना मुमकिन नहीं है। कम से कम इस शरीर के साथ यह गति कभी भी नहीं पकड़ी जा सकती।”

ब्रह्मांड (Universe) और हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) कितनी विशाल और सीमाबद्ध है। इस कैदखाने से निकलने के लिए जितनी बड़ी तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति की ज़रूरत होगी, वह फिलहाल नामुमकिन है। हमें पता है कि हम अपनी पृथ्वी और सौरमंडल से कैसे बाहर निकल सकते हैं, लेकिन आकाशगंगा की सीमाओं को पार करने के लिए जो गति और ऊर्जा चाहिए, वह अभी की टेक्नोलॉजी से संभव नहीं है।


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