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Kunde ki Niyaz Kyu Karte Hain

कुंडों की फातिहा हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह के इसाल-ए-सवाब के लिए की जाने वाली एक रूहानी और नेक रवायत है, जो भारत और पाकिस्तान के मुसलमानों के बीच अकीदत के साथ प्रचलित है। इस लेख में न केवल इस अमल की हकीकत और दलाइल को बयान किया जाएगा, बल्कि हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह की शख्सियत, उनकी खिदमात, और कुंडों की फातिहा से उनके ताल्लुक को भी स्पष्ट किया जाएगा।

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ की शख्सियत

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह अहल-ए-बैत के छठे इमाम और अज़ीम मुहद्दिस, मुफस्सिर, और फक़ीह थे। आपका सिलसिला-ए-नसब इस प्रकार है:

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ बिन मोहम्मद बाकिर बिन अली ज़ैन-उल-आबिदीन बिन हुसैन बिन अली रज़ियल्लाहु अन्हुम।

आपकी विलादत 15 रजब 80 हिजरी को मदीना मुनव्वरा में हुई। आपने अपनी पूरी ज़िंदगी इल्म की इशाअत, दीन-ए-इस्लाम की तबलीग, और उम्मत की इस्लाह के लिए वक़्फ़ कर दी। आपको “सादिक़” यानी “सच्चे” का लक़ब दिया गया, जो आपकी सच्चाई और अमानतदारी की अलामत है।

हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह ने मुहद्दिसीन, मुफस्सिरीन, और फक़हा की एक बड़ी जमात को तालीम दी। इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाह अलैह ने भी फरमाया:

“मैंने हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह से ज़्यादा फक़ीह किसी को नहीं देखा।”

आपने दीन-ए-इस्लाम के बातिनी पहलू को वाज़ेह किया और उम्मत को तक़वा, परहेज़गारी, और अल्लाह की मुहब्बत की तालीम दी।

आपकी ज़िंदगी अहल-ए-बैत के मिशन का तसल्सुल थी, जो दीन-ए-इस्लाम की बक़ा, मुहब्बत, और खिदमत पर मब्नी थी।

kunde ki niyaz और हज़रत इमाम जाफर सादिक़

कुंडों की फातिहा का अमल हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह के साथ इस लिए मंसूब है कि:

– यह अमल इसाल-ए-सवाब के लिए किया जाता है, और इसमें उनकी इल्मी व रूहानी खिदमात को याद करते हुए उनके दर्जात की बुलंदी की दुआ की जाती है।

– हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह की शख्सियत मुसलमानों के दिलों में मुहब्बत-ए-अहल-ए-बैत के फरोग का ज़रिया है, और यह अमल उनके इसाल-ए-सवाब के साथ इस मुहब्बत का अमली इज़हार है।

– भारत और पाकिस्तान के मुसलमान उनके मक़ाम और मरतबे को समझते हुए यह अमल अंजाम देते हैं।

कुंडों की फातिहा की हकीकत और दलाइल

क़ुरआन-ए-पाक से दलाइल

इसाल-ए-सवाब और दुआ के हक़ में क़ुरआन-ए-मजीद में कई आयतें मौजूद हैं, जिनमें मरहूमीन के लिए नेक आमाल करने की ताकीद की गई है।

  • 1. सूरह हश्र, आयत 10:
    • وَالَّذِیْنَ جَآءُوْ مِنْۢ بَعْدِهِمْ يَقُوْلُوْنَ رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا وَلِاِخْوَانِنَا الَّذِیْنَ سَبَقُوْنَا بِالْاِیْمَانِ۔
    • “और जो लोग उनके बाद आए, वे दुआ करते हैं: ऐ हमारे रब! हमें और हमारे उन भाइयों को बख़्श दे, जो हमसे पहले ईमान के साथ गुज़र चुके।”
  • यह आयत इसाल-ए-सवाब के लिए दुआ और नेक आमाल का जायज़ ठहराती है।
  • 2. सूरह कहफ, आयत 46:
    • وَالْبَاقِیٰتُ الصّٰلِحٰتُ خَیْرٌ عِنْدَ رَبِّکَ ثَوَابًا وَخَیْرٌ اَمَلًا۔
    • “और बाक़ी रहने वाले नेक आमाल तुम्हारे रब के नज़दीक सवाब के लिहाज़ से बेहतर हैं।”
  • सदक़ा, दुआ, और दीगर नेक आमाल का सवाब बाक़ी रहता है और मरहूमीन तक पहुंचता है।

अहादीस-ए-मुबारका से दलाइल

  • 1. सदक़ा बराए वालिदैन:
  • हज़रत साद बिन उबादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी करीम ﷺ से अर्ज़ किया:
    • “मेरी का इंतिकाल हो गया है, क्या मैं उनकी तरफ़ से सदक़ा कर सकता हूं?”* आप ﷺ ने फरमाया: *”हां, कर सकते हो।” (सहीह बुखारी: 2762, सहीह मुस्लिम: 1004)
  • 2. इसाल-ए-सवाब का जायज़ होना:
  • नबी करीम ﷺ ने क़ुर्बानी करते वक्त फरमाया:
    • “यह क़ुर्बानी मेरी उम्मत के ज़िंदा और फ़ौत हो चुके अफ़राद के लिए है।” (सुनन अबू दाऊद: 279)

फुक़हा की राय

  • 1. इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:
    • “इसाल-ए-सवाब का अमल अहल-ए-सुन्नत वल जमात के यहां मुस्तहब और सवाब का ज़रिया है।” (फ़तावा रज़विया)
  • 2. इमाम नववी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं:
    • “सदक़ा, दुआ, और क़ुरआन ख्वानी का सवाब मरहूमीन को पहुंचता है।” (शरह सहीह मुस्लिम)

कुंडों की फातिहा का तरीका

  • 1. हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह के इसाल-ए-सवाब की नीयत करें।
  • 2. सूरह फातिहा, सूरह इख़लास, दुरूद शरीफ़, और दीगर अज़कार पढ़ें।
  • 3. इसाल-ए-सवाब की नीयत से दुआ करें कि अल्लाह हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह के दर्जात बुलंद फरमाए और मुसलमानों को उनकी तालीमात पर अमल करने की तौफीक़ अता करे।
  • 4. कुंडों में खाना तैयार करके ग़रीबों, मिसकीनों, और अज़ीज़-ओ-अक़ारिब में तक़सीम करें।

कुंडों की फातिहा हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह की अज़ीम शख्सियत को याद करने, इसाल-ए-सवाब करने, और मुहब्बत-ए-अहल-ए-बैत के फरोग का एक ज़रिया है। और यही महीना हज़रत अमीर नुआविया का भी है तो kunde ki niyaz में उनको भी याद करें। यह अमल क़ुरआन व हदीस के मुताबिक़ जायज़ है और इसमें नीयत का इख़लास बुनियादी है। मुसलमानों को चाहिए कि वे इस अमल को शरियत की हदों में रहते हुए अंजाम दें और हज़रत इमाम जाफर सादिक़ रहमतुल्लाह अलैह की तालीमात को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाएं।

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