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Kafiron Ka Zulm (Prophet Muhammad History in Hindi Part 15)

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Seerat e Mustafa Qist 15
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काफ़िरों का ज़ुल्म (पैगम्बर मुहम्मद का इतिहास भाग 14)

क़त्ल की साज़िश

कुरैश यह कहकर चले गए, अबू तालिब परेशान हो गए। वे अपनी कौम के गुस्से से अच्छी तरह वाकिफ थे। दूसरी ओर वे यह पसंद नहीं कर सकते थे कि कोई भी व्यक्ति हज़रत मुहम्मद ﷺ को अपमानित करने की कोशिश करे। इसलिए उन्होंने हज़रत मुहम्मद ﷺ से कहा:

  • “भतीजे! तुम्हारी कौम के लोग मेरे पास आए थे, उन्होंने मुझसे यह-यह कहा है। इसलिए अपने ऊपर और मुझ पर रहम करो और मुझ पर ऐसा बोझ न डालो जिसे मैं उठा न सकूं।”

अबू तालिब की इस बात से हज़रत मुहम्मद ﷺ ने सोचा कि अब चाचा उनका साथ छोड़ रहे हैं, वे भी अब आपकी मदद नहीं करना चाहते, आपकी सुरक्षा से हाथ उठा रहे हैं। इसलिए आपने फरमाया:

  • “चाचा जान! अल्लाह की कसम! अगर ये लोग मेरे दाहिने हाथ पर सूरज और बाएं हाथ पर चांद रख दें और यह कहें कि मैं इस काम को छोड़ दूं, तो भी मैं हरगिज़ इसे नहीं छोड़ूंगा, यहां तक कि खुद अल्लाह तआला इसे जाहिर न कर दें।”

यह कहते हुए आपकी आवाज़ भर्रा गई, आपकी आंखों में आंसू आ गए। फिर आप उठकर जाने लगे, लेकिन उसी वक्त अबू तालिब ने आपको पुकारा:

  • “भतीजे! इधर आओ।”

आप उनकी तरफ मुड़े तो उन्होंने कहा:

  • “जाओ भतीजे! जो दिल चाहे कहो, अल्लाह की कसम मैं तुम्हें किसी हाल में नहीं छोड़ूंगा।”

जब कुरैश को अंदाज़ा हो गया कि अबू तालिब आपका साथ छोड़ने पर तैयार नहीं हैं तो वे अम्माराह बिन वलीद को साथ लेकर अबू तालिब के पास आए और बोले:

  • “अबू तालिब! यह अम्माराह बिन वलीद है, कुरैश का सबसे ज्यादा बहादुर, ताकतवर और सबसे ज्यादा सुंदर युवक है। तुम इसे लेकर अपना बेटा बना लो और इसके बदले में अपने भतीजे को हमारे हवाले कर दो, क्योंकि वह तुम्हारे और तुम्हारे बाप-दादा के धर्म के खिलाफ जा रहा है। उसने तुम्हारी कौम में फूट डाल दी है और उनकी अक्लें खराब कर दी हैं। तुम उसे हमारे हवाले कर दो ताकि हम उसे क़त्ल कर दें… इंसान के बदले में हम तुम्हें इंसान दे रहे हैं।”

कुरैश की यह बेहूदा पेशकश सुनकर अबू तालिब ने कहा

  • “अल्लाह की कसम! यह हरगिज़ नहीं हो सकता। क्या तुम यह समझते हो कि कोई ऊंटनी अपने बच्चे को छोड़कर किसी दूसरे बच्चे की ख्वाहिश कर सकती है?”

उनका जवाब सुनकर मुतअम बिन अदी ने कहा

  • “अबू तालिब! तुम्हारी कौम ने तुम्हारे साथ इंसाफ का मामला किया है और जो बात तुम्हें नापसंद है, उससे छुटकारे की कोशिश की है। अब मैं नहीं समझता कि इसके बाद तुम उनकी कोई और पेशकश कबूल करोगे।”

इसके जवाब में अबू तालिब बोले:

  • “अल्लाह की कसम! उन्होंने मेरे साथ इंसाफ नहीं किया, बल्कि तुम सबने मिलकर मुझे अपमानित करने और मेरे खिलाफ साज़िश करने के लिए यह सब कुछ किया है, इसलिए अब जो तुम्हारे दिल में आए कर लो।”

बाद में यह व्यक्ति यानी अम्माराह बिन वलीद हबशा में कुफ्र की हालत में मरा। इस पर जादू कर दिया गया था। इसके बाद यह वहशतज़दा होकर जंगलों और घाटियों में मारा-मारा फिरता था। इसी तरह दूसरा व्यक्ति मुतअम बिन अदी भी कुफ्र की हालत में मरा।

अबु जहल ने क़त्ल की क़सम खाई

जब अबू तालिब ने कुरैश की यह पेशकश भी ठुकरा दी तो मामला हद से ज्यादा गंभीर हो गया। दूसरी ओर अबू तालिब ने कुरैश के खतरनाक इरादों को भांप लिया। उन्होंने बनी हाशिम और बनी अब्दुल मुत्तलिब को बुलाया और उनसे निवेदन किया कि सब मिलकर हज़रत मुहम्मद ﷺ की रक्षा करें।

उनकी बात सुनकर सिवाय अबू लहब के, सब तैयार हो गए। अबू लहब ने उनका साथ न दिया। यह बदबख्त सख्ती करने और हज़रत मुहम्मद ﷺ के खिलाफ आवाज़ उठाने से बाज न आया। इसी तरह जो लोग आप पर ईमान ले आए थे, उनकी मुखालिफत में भी अबू लहब सबसे आगे था। आपको और आपके साथियों को तकलीफें पहुंचाने में भी यह कुरैश से बढ़-चढ़कर था।

हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु एक वाकया बयान करते हैं। वे कहते हैं, एक रोज मैं मस्जिदे हराम में था कि अबू जहल वहां आया और बोला:

  • “मैं अल्लाह की कसम खाकर कहता हूं, अगर मैं मुहम्मद को सजदा करते हुए देख लूं, तो मैं उनकी गर्दन काट दूंगा।”

हज़रत अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं, यह सुनकर मैं फौरन हज़रत मुहम्मद ﷺ की तरफ गया और उन्हें बताया कि अबू जहल क्या कह रहा है।

हज़रत मुहम्मद ﷺ यह सुनकर गुस्से की हालत में बाहर निकले और तेज़-तेज़ चलते हुए मस्जिदे हराम में दाखिल हो गए, यहां तक कि चलते समय आपको दीवार से रगड़ लग गई। उस वक्त आप सूरह अल-अलक की आयतें पढ़ रहे थे

سورة العلق (1-2, 6): ٱقْرَأْ بِٱسْمِ رَبِّكَ ٱلَّذِى خَلَقَ ١ خَلَقَ ٱلْإِنسَٰنَ مِنْ عَلَقٍ ٢

अनुवाद “पढ़ो अपने रब के नाम से, जिसने पैदा किया। उसने इंसान को जमे हुए खून के लोथड़े से पैदा किया।”

आपने आगे पढ़ा:

كَلَّا إِنَّ ٱلْإِنسَٰنَ لَيَطْغَىٰ ٦
अनुवाद। “सचमुच, इंसान हद से निकल जाता है।”

आपने जब सूरह की आखिरी आयत पढ़ी तो सजदे में गिर गए। तभी किसी ने अबू जहल से कहा:

  • “अबू अल-हकम! यह मुहम्मद सजदे में पड़े हैं।”

यह सुनकर अबू जहल फौरन आपकी तरफ बढ़ा, मगर जैसे ही वह करीब पहुंचा, अचानक वापस चला आया। लोगों ने हैरान होकर पूछा:

  • “अबू अल-हकम! क्या हुआ?”
  • उसने कहा:
  • “जो मैं देख रहा हूं, क्या तुम नहीं देख रहे?”
  • लोगों ने पूछा:
  • “तुम्हें क्या नज़र आ रहा है अबू अल-हकम?”
  • अबू जहल ने कहा:
  • “मुझे अपने और उनके बीच आग की एक खाई नज़र आ रही है।”

पत्थर से सर कुचलने की कोशिश

एक दिन अबू जहल ने कहा:

  • “ऐ कुरैश के लोगो! जैसा कि तुम देख रहे हो, मुहम्मद तुम्हारे धर्म में ऐब डाल रहे हैं, तुम्हारे देवताओं को बुरा कह रहे हैं, तुम्हारी अक्लों को खराब बता रहे हैं और तुम्हारे बाप-दादाओं को गालियां दे रहे हैं। इसलिए मैं अल्लाह के सामने वचन करता हूं कि कल मैं मुहम्मद के लिए एक बड़ा पत्थर लेकर बैठूंगा और जब वे सजदे में जाएंगे, तो मैं वह पत्थर उनके सिर पर दे मारूंगा।”

अगले दिन जब अबू जहल अपना इरादा पूरा करने के लिए बढ़ा, तो अचानक कांपने लगा और पीछे हट गया। कुरैश के लोग चकित होकर पूछने लगे:

  • “क्या हुआ?”

उसने डरकर कहा:

  • “जैसे ही मैं मुहम्मद के पास पहुंचा, एक विशाल ऊंट मेरे रास्ते में आ गया। मैंने ऐसा भयानक ऊंट पहले कभी नहीं देखा। वह मेरी ओर बढ़ा जैसे मुझे खा जाएगा।”

जब यह वाकया हज़रत मुहम्मद ﷺ से बयान किया गया, तो आपने फरमाया:

  • “वह जिब्रील अलैहिस्सलाम थे। अगर वह मेरे करीब आता तो वे उसे ज़रूर पकड़ लेते।”

एक रोज़ हज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ाना काबा में नमाज़ पढ़ रहे थे कि अबू जहल आपके पास आया और बोला:
“क्या मैंने आपको इससे मना नहीं किया था? आप जानते नहीं, मैं सबसे बड़े गिरोह वाला हूँ।”
इस पर सूरह अल-अलक़ की आयत 17, 18 नाज़िल हुईं।

तर्जुमा: “सो यह अपने गिरोह के लोगों को बुला ले, अगर उसने ऐसा किया तो हम भी दोज़ख़ के प्यादों को बुला लेंगे।”

हज़रत इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:

  • “अगर अबू जहल अपने गिरोह को बुलाता तो अल्लाह तआला के अज़ाब के फ़रिश्ते उसे पकड़कर तहस-नहस कर देते।”

एक रोज़ अबू जहल हज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने आया और आपसे मुख़ातिब हुआ:
“आपको मालूम है मैं बथ्हा वालों का मुहाफ़िज़ हूँ और मैं यहाँ का शरीफ़ तरीन शख़्स हूँ।”
उस वक़्त अल्लाह तआला ने सूरह अद-दुख़ान की आयत 49 नाज़िल फ़रमाई:

तर्जुमा: “चख! तू बड़ा अज़ीज़ व मुक़र्रम है।”

आयत का यह जुमला दोज़ख़ के फ़रिश्ते अबू जहल को डालते वक़्त फटकारते हुए कहेंगे।

अबु लहब का हुज़ूर पर ज़ुल्म

अबू लहब भी हज़ूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ईज़ा रसानी में आगे-आगे था। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तबलीग़ में रुकावटें डालता था, आपको बुरा-भला कहता था। उसकी बीवी उम्मे जमील भी उसके साथ शामिल थी। वह जंगल से कांटेदार लकड़ियाँ काटकर लाती और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रास्ते में बिछाती। इस पर अल्लाह तआला ने सूरह लहब नाज़िल फ़रमाई, जिसमें अबू लहब के साथ उसकी बीवी को भी अज़ाब की ख़बर दी गई।

वह ग़ुस्से में आग-बगूला हो गई और पत्थर हाथ में लिए नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ़ बढ़ी। उस वक़्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु थे। उन्होंने अबू लहब की बीवी को आते देखा तो फ़रमाया:


“अल्लाह के रसूल! यह औरत बहुत ज़बान दराज़ है, अगर आप यहाँ ठहरे तो इसकी बदज़बानी से आपको तकलीफ़ पहुँचेगी।”

उनकी बात सुनकर हज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“अबू बक्र! फ़िक्र न करो, वह मुझे नहीं देख सकेगी।”

इतने में उम्मे जमील नज़दीक पहुँच गई। उसे वहाँ सिर्फ़ हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु नज़र आए। वह आते ही बोली:
“अबू बक्र! तुम्हारे दोस्त ने मुझे ज़लील किया है, कहाँ है तुम्हारा दोस्त जो शेर पढ़ता है?”

हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“क्या तुम्हें मेरे साथ कोई नज़र आ रहा है?”

“क्यों? क्या बात है, मुझे तो तुम्हारे साथ कोई नज़र नहीं आ रहा।”

उन्होंने पूछा:
“तुम उनके साथ क्या करना चाहती हो?”

जवाब में उसने कहा के:
“मैं यह पत्थर उसके मुँह पर मारना चाहती हूँ, उसने मेरी शान में नाज़ेबा शेर कहे हैं।”

वह सूरह लहब की आयात को शेर समझ रही थी। इस पर उन्होंने कहा:
“नहीं! अल्लाह की क़सम! वह शायर नहीं हैं। वह तो शेर कहना जानते ही नहीं, न उन्होंने तुम्हें ज़लील किया है।”

यह सुनकर वह वापस लौट गई। बाद में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा:
“ऐ अल्लाह के रसूल! वह आपको देख क्यों नहीं सकी?”

आपने इरशाद फ़रमाया:
“एक फ़रिश्ते ने मुझे अपने परों में छुपा लिया था।”

एक रिवायत के मुताबिक़ आपने यह जवाब इरशाद फ़रमाया था:
“मेरे और उसके दरमियान एक आड़ पैदा कर दी गई थी।”

अबू लहब के एक बेटे का नाम अ़तबा था और दूसरे का नाम अ़तीबा था। ऐलान-ए-नुबूवत से पहले रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी दो बेटियों हज़रत रुक़य्या और हज़रत उम्मे कुलसूम रज़ियल्लाहु अन्हुमा का निकाह अबू लहब के इन दोनों बेटों से कर दिया था। यह सिर्फ़ निकाह हुआ था, अभी रुख़सती नहीं हुई थी।

इस्लाम का आग़ाज़ हुआ और सूरह लहब नाज़िल हुई तो अबू लहब ने ग़ुस्से में आकर अपने बेटों से कहा:
“अगर तुम मुहम्मद की बेटियों को तलाक़ नहीं दोगे तो मैं तुम्हारा चेहरा नहीं देखूँगा।”

चुनांचे, उन दोनों ने उन्हें तलाक़ दे दी। (देखा जाए तो यह अल्लाह तआला की हिकमत थी कि ये पाक साहिबज़ादियाँ अ़तबा और अ़तीबा के यहाँ न जा सकीं।)

इस मौके़ पर अ़तीबा नबी अक़रम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और उसने आपकी शान में गुस्ताख़ी की। आप साहिबज़ादियों की वजह से पहले ही ग़मगीन थे, इन हालात में आपने उसके हक़ में बददुआ फ़रमाई:
“ऐ अल्लाह! इस पर अपने कुत्तों में से एक कुत्ता मुसल्लत फ़रमा दे।”

अ़तीबा यह बददुआ सुनकर वहाँ से लौट आया और अपने बाप अबू लहब को सारा हाल सुनाया। इसके बाद दोनों बाप-बेटे एक क़ाफ़िले के साथ मुल्क-ए-शाम की तरफ़ रवाना हो गए।

रास्ते में यह लोग एक जगह ठहरे, जहाँ एक राहिब की इबादतगाह थी। राहिब उनके पास आया और उन्हें बताया:
“इस इलाक़े में जंगली दरिंदे रहते हैं।”

अबू लहब यह सुनकर ख़ौफ़ज़दा हो गया और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बददुआ याद आ गई। उसने क़ाफ़िले वालों से कहा:
“मैं मुहम्मद की बददुआ से डर गया हूँ, तुम लोग मेरी मदद करो।”

इन्होंने उसके बेटे को अपने बीच में सुलाया, मगर आधी रात के क़रीब एक शेर आया और सोए हुए लोगों को सूंघते हुए अ़तीबा तक पहुँच गया। बस फिर क्या था, उसने उसे चीर-फाड़कर हलाक कर डाला।

आपके ऊपर ऊंट की ओझड़ी डालना

तकलीफ़ पहुँचाने का एक और वाकया इस तरह पेश आया कि एक रोज़ हुज़ूर मस्जिदुल हराम में नमाज़ पढ़ रहे थे। करीब ही कुछ जानवर ज़िबह किए गए थे। वो लोग अपने बुतों के नाम पर क़ुर्बानी करते थे। उन जानवरों की एक ओझड़ी अभी तक वहीं पड़ी थी। ऐसे में अबू जहल ने कहा:

“क्या कोई शख्स ऐसा है जो इस ओझड़ी को मुहम्मद के ऊपर डाल दे जब वो सजदे में जाएं?”

एक रिवायत के अनुसार किसी ने कहा:
“क्या तुम यह दृश्य नहीं देख रहे हो? तुममें से कौन वहाँ जाएगा जहाँ फलां कबीले ने जानवरों की बलि दी है? वहाँ उनका गोबर, लीद, खून और ओझड़ी पड़ी हुई है। कोई व्यक्ति वहाँ जाकर गंदगी उठा लाए और मोहम्मद के सजदे में जाने का इंतज़ार करे। फिर जैसे ही वह सजदे में जाएँ, वह व्यक्ति गंदगी उनके कंधों के बीच रख दे।”

तब मुश्रिकों में से एक व्यक्ति उठा। उसका नाम अक़बा बिन अबू मुईत था। यह अपनी क़ौम में सबसे अधिक बदबख़्त था। यह गया और ओझड़ी उठा लाया। जब नबी करीम ﷺ सजदे में गए, तो उसने ओझड़ी आप पर रख दी।

इस पर मुश्रिक ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। यहाँ तक कि वे हँसी से बेहाल हो गए और एक-दूसरे पर गिरने लगे। ऐसे में किसी ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (रज़ि०) को यह बात बता दी। वह रोती हुई हरम में आईं। नबी करीम ﷺ उसी तरह सजदे में थे और ओझड़ी आपके कंधों पर थी। सैयदा फ़ातिमा (रज़ि०) ने ओझड़ी को आप से हटाया। इसके बाद आपने सजदे से सिर उठाया और नमाज़ की हालत में खड़े हो गए।

नमाज़ से फ़ारिग़ होकर नबी करीम ﷺ ने उन लोगों के लिए बद्दुआ फ़रमाई:
“ऐ अल्लाह! तू क़ुरैश को ज़रूर सज़ा दे। ऐ अल्लाह! तू क़ुरैश को ज़रूर सज़ा दे। ऐ अल्लाह! तू क़ुरैश को ज़रूर सज़ा दे।”

क़ुरैश, जो हँसी के मारे लोट-पोट हो रहे थे, यह बद्दुआ सुनते ही उनकी हँसी काफ़ूर हो गई। इस बद्दुआ की वजह से वे दहशतज़दा हो गए। इसके बाद आपने नाम लेकर भी बद्दुआ फ़रमाई:

“ऐ अल्लाह! तू अम्र बिन हिशाम (यानी अबू जहल) को सज़ा दे। अक़बा बिन अबू मुईत और उमैया बिन खलफ़ को सज़ा दे।”

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि०) कहते हैं
“अल्लाह की क़सम! नबी करीम ﷺ ने जिन-जिन क़ुरैशियों का नाम लिया था, मैंने उन्हें ग़ज़वा-ए-बद्र में ख़ाक-ओ-ख़ून में लथपथ देखा, और फिर उनकी लाशों को एक गड्ढे में फेंक दिया गया।”

आप पर झपटना

इसी तरह का एक वाक़िआ हज़रत उस्मान ग़नी (रज़ि०) ने इस तरह बयान किया है:

“एक दिन नबी करीम ﷺ तवाफ़ फ़रमा रहे थे, उस वक़्त आपका हाथ हज़रत अबू बक्र (रज़ि०) के हाथ में था। हज्र-ए-अस्वद के पास तीन आदमी बैठे थे। जब आप हज्र-ए-अस्वद के पास से गुज़रे और उनके क़रीब पहुँचे, तो उन तीनों ने आपकी ज़ात-ए-बाबरकत पर चंद जुमले कहे। इन जुमलों को सुनकर आपको तकलीफ़ पहुँची। तकलीफ़ के आसार आपके चेहरे से ज़ाहिर हुए।

दूसरे फेरे में अबू जहल ने कहा:

“तुम हमें उन माबूदों की इबादत करने से रोकते हो, जिन्हें हमारे बाप-दादा पूजते आए हैं, लेकिन हम तुमसे सुलह नहीं कर सकते।”

इसके जवाब में नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
“मेरा भी यही हाल है।”

फिर आप आगे बढ़ गए। तीसरे फेरे में भी उन्होंने ऐसा ही कहा। फिर चौथे फेरे में ये तीनों एकदम आप की तरफ़ झपट पड़े।

हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:
अबू जहल ने एक दम आगे बढ़कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कपड़े पकड़ने की कोशिश की। मैं आगे बढ़ा और एक घूंसा उसके सीने पर मारा। इससे वह जमीन पर गिर पड़ा। दूसरी तरफ से अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उमैया बिन खलफ को धकेला, और तीसरी तरफ खुद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उक़्बा बिन अबी मुईत को धकेला। आखिर ये लोग आप के पास से हट गए। उस वक्त आप ने इरशाद फरमाया:

“अल्लाह की कसम! तुम लोग उस वक्त तक नहीं मरोगे, जब तक अल्लाह की तरफ से उसकी सजा नहीं भुगत लोगे।”

हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं:
“ये अल्फ़ाज़ सुनकर उन तीनों में से एक भी ऐसा नहीं था जो डर की वजह से कांपने न लगा हो।”

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
“तुम लोग अपने नबी के लिए बहुत बुरे साबित हुए।”

ये फरमाने के बाद आप अपने घर की तरफ लौट गए। हम आपके पीछे-पीछे चले। जब आप अपने दरवाजे पर पहुंचे तो अचानक हमारी तरफ मुड़े और फरमाया:

“तुम लोग ग़म न करो, अल्लाह तआला खुद अपने दीन को फैलाने वाला, अपने कलमे को पूरा करने वाला और अपने नबी की मदद करने वाला है। इन लोगों को अल्लाह बहुत जल्द तुम्हारे हाथों ज़बह करवाएगा।”

इसके बाद हम भी अपने-अपने घरों को चले गए। और फिर अल्लाह की कसम, ग़ज़वा-ए-बद्र के दिन अल्लाह तआला ने इन लोगों को हमारे हाथों ज़बह कराया।

कपडे से आपका गला घोंटना

एक रोज़ ऐसा हुआ कि आप ख़ाना काबा का तवाफ कर रहे थे, ऐसे में उक़्बा बिन अबी मुईत वहां आ गया। उसने अपनी चादर उतारकर आपकी गर्दन में डाल दी और इसे कसने लगा। इस तरह आपका गला घुटने लगा। अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु दौड़ कर आए और उसे कंधों से पकड़कर धकेला। साथ ही उन्होंने फरमाया:

“क्या तुम इस शख्स को कत्ल करना चाहते हो, जो ये कहता है कि मेरा रब अल्लाह है… और जो तुम्हारे रब की तरफ से खुली निशानियां लेकर आया है?”

बुखारी की एक हदीस के मुताबिक, हज़रत उरवा बिन जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि मैंने एक मर्तबा हज़रत अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा:

“मुझे बताइए! मुशरिकों की तरफ से हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ सबसे ज्यादा बदतरीन और सख्त तरीन सलूक किसने किया था?”

जवाब में हज़रत अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया:
“एक मर्तबा हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा में नमाज़ अदा फरमा रहे थे कि उक़्बा बिन अबी मुईत आया, उसने आपकी गर्दन में कपड़ा डालकर इससे पूरी ताकत से आपका गला घोंटा। इस वक्त अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे धकेल कर हटाया।”

ये कौल हज़रत अम्र बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु का है, उन्होंने यही सबसे सख्त बर्ताव देखा होगा, वरना आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ इससे कहीं ज्यादा सख्त बर्ताव किया गया।

हज़रत अबु बक्र की हुज़ूर से मुहब्बत

फिर जब मुसलमानों की तादाद 38 हो गई तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज किया:
“ऐ अल्लाह के रसूल! मस्जिद-ए-हराम में तशरीफ ले चलिए ताकि हम वहां नमाज़ अदा कर सकें।”

इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
“अबू बक्र! अभी हमारी तादाद थोड़ी है।”

अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फिर उसी ख्वाहिश का इज़हार किया। आखिर हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने तमाम सहाबा के साथ मस्जिद-ए-हराम में पहुंच गए। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने खड़े होकर खुत्बा दिया। लोगों को कलमा पढ़ लेने की दावत दी। इस तरह हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु सबसे पहले शख्स हैं, जिन्होंने मजमे में खड़े होकर इस तरह तबलीग फरमाई।

इस खुत्बे के जवाब में मुशरिकीन-ए-मक्का हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु और दूसरे मुसलमानों पर टूट पड़े और उन्हें मारने लगे। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को तो उन्होंने सबसे ज्यादा मारा-पीटा, मारपीट की इंतेहा कर दी गई। उक़्बा ने तो उन्हें अपने जूतों से मारना शुरू कर दिया। इस जूते में दोहरा तला लगा हुआ था। उसने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के चेहरे पर इन जूतों से इतनी ज़र्बें लगाईं कि चेहरा लहूलुहान हो गया।

ऐसे में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु के कबीले बनू तमीम के लोग वहां पहुंच गए। उन्हें देखते ही मुशरिकों ने उन्हें छोड़ दिया। इन लोगों ने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु को एक कपड़े पर लिटाया और बेहोशी की हालत में घर ले आए। सबको यकीन था कि अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु आज ज़िंदा नहीं बचेंगे।

शाम के वक्त कहीं जाकर उन्हें होश आया। उन्होंने सबसे पहले ये पूछा:
“हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क्या हाल है?”

घर में मौजूद अफराद ने इस बात का कोई जवाब न दिया। आखिर उनकी वालिदा ने कहा:
“अल्लाह की कसम! हमें तुम्हारे दोस्त के बारे में कुछ मालूम नहीं।”

ये सुनकर अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया:
“अच्छा तो फिर उम्मे जमीला बिन्ते खत़्ताब के पास जाएं, उनसे हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हाल मालूम करके मुझे बताएं।”

जब उम्मे जमीला रज़ियल्लाहु अन्हा ने अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु की ये हालत देखी तो वह चीख पड़ीं और बोलीं:
“ये बदबख्त लोग ज़रूर अपने अंजाम को पहुंचेंगे।”

अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क्या हाल है?”

उम्मे जमीला ने कहा:
“हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खैरियत से हैं और दारुल अरक़म में हैं।”

अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
“अल्लाह की कसम! मैं उस वक्त तक न कुछ खाऊंगा, न पिऊंगा, जब तक कि मैं हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिल न लूं।”

इन दोनों ने कुछ देर इंतजार किया… ताकि बाहर सुकून हो जाए… आखिर यह दोनों उन्हें सहारा देकर ले चलीं और दार अरकम पहुंच गईं, ज्योंही नबी ए अकरम ﷺ ने हजरत अबू बकर रज़ि. की यह हालत देखी तो आपको बेहद सदमा हुआ। आपने आगे बढ़कर अबू बकर रज़ि. को गले से लगा लिया। उन्हें बोसा दिया। बाकी मुसलमानों ने भी उन्हें गले से लगाया और बोसा दिया। फिर हजरत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि. ने आप ﷺ से अर्ज़ किया:

“आप पर मेरे मां-बाप कुर्बान हों, ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे कुछ तो नहीं हुआ, सिवाय इसके कि मेरे चेहरे पर चोटें आई हैं। यह मेरी वालिदा मेरे साथ आई हैं, मुमकिन है अल्लाह तआला आपके तुफैल उन्हें जहन्नम की आग से बचा ले।”
नबी करीम ﷺ ने उनकी वालिदा के लिए दुआ फरमाई। फिर उन्हें इस्लाम की दावत दी। वह उसी वक्त ईमान ले आईं, जिससे अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि. और तमाम सहाबा को बेहद खुशी हुई।

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