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Jung E Khandaq | Prophet Muhammad History in Hindi Part 37

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Seerat e Mustafa Qist 37
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जंग-ए-खंदक

बनी नज़ीर के यहूदियों को मदीना मुनव्वरा में उनके इलाके से निकाल दिया गया था, इसी वजह से उनके बड़े-बड़े सरदार मक्का मुअज़्ज़मा गए… क़ुरैश को सारी तफ़्सील बताई और क़ुरैश को दावत दी कि वे मुसलमानों से जंग के लिए मैदान में आएं, उन्होंने क़ुरैश को ख़ूब भड़काया और कहा:
“जंग की सूरत में हम तुम्हारे साथ होंगे, यहाँ तक कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और उनके साथियों को नेस्त-ओ-नाबूद कर देंगे, मुसलमानों से दुश्मनी में हम तुम्हारे साथ हैं।”

यह सुनकर मुश्रिकीन के सरदार अबू सुफियान ने कहा:
“हमारे नज़दीक सबसे ज़्यादा महबूब और पसंदीदा शख़्स वह है, जो मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की दुश्मनी में हमारा मददगार हो, लेकिन हम इस वक़्त तक तुम पर भरोसा नहीं करेंगे जब तक कि तुम हमारे माबूदों को सज्दा न कर लो… ताकि हमारे दिल मुतमइन हो जाएं।”

यह सुनते ही यहूदियों ने बुतों को सज्दा कर डाला, अब क़ुरैश ने कहा:
“ऐ यहूदियो! तुम अहल-ए-किताब हो और तुम्हारी किताब सबसे पहली किताब है, इसलिए तुम्हारा इल्म भी सबसे ज़्यादा है, लिहाज़ा तुम बताओ… हमारा दीन बेहतर है या मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का?”

यहूदियों ने जवाब में कहा:
“तुम्हारा दीन मुहम्मद के दीन से बेहतर है और हक़ व सिद्क़ में तुम लोग उनसे कहीं ज़्यादा बढ़े हुए हो।”

यहूदियों का जवाब सुनकर क़ुरैश ख़ुश हो गए, नबी अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से जो उन्होंने जंग का मशवरा दिया था, वह भी उन्होंने क़ुबूल कर लिया… चूँकि उसी वक़्त क़ुरैश के पचास नौजवान निकले, उन्होंने खाना-ए-काबा का पर्दा पकड़ कर उसको अपने सीने से लगाकर यह हलफ़ दिया कि वक़्त पर एक-दूसरे को दग़ा नहीं देंगे, जब तक उनमें से एक शख़्स भी बाकी है, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के ख़िलाफ़ मुत्तहिद रहेंगे।

अब क़ुरैश ने जंग की तैयारी शुरू कर दी, यहूदियों ने भी और क़बीलों को साथ मिलाने की कोशिश जारी रखी, इस तरह एक बड़ा लश्कर मुसलमानों के ख़िलाफ़ तैयार हो गया।

आनहज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को काफ़िरों की तैयारियों की इत्तिला मिली तो सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) को मशवरा के लिए तलब कर लिया, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन्हें दुश्मन की जंगी तैयारियों के बारे में बताया, फिर उनसे मशवरा तलब फ़रमाया कि हम मदीना मुनव्वरा में रहकर दुश्मन का मुक़ाबला करें या बाहर निकलकर करें।

इस पर हज़रत सलमान फ़ारसी (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने मशवरा दिया:
“ऐ अल्लाह के रसूल! अपने मुल्क फ़ारस में जब हमें दुश्मन का ख़ौफ़ होता था तो शहर के गिर्द खंदक खोद लिया करते थे।”

हज़रत सलमान फ़ारसी (रज़ियल्लाहु अन्हु) का यह मशवरा सभी को पसंद आया, चूँकि मदीना मुनव्वरा के गिर्द खंदक खोदने का काम शुरू कर दिया गया, सब सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने खंदक की खुदाई में हिस्सा लिया… ख़ुद हज़रत नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भी खंदक खोदी, खंदक की खुदाई के दौरान सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) को भूख ने सताया, वह ज़माना आम तंगी-दस्ती का था।

खुदाई के दौरान एक जगह सख्त पत्थरीली ज़मीन आ गई, सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) इस जगह खुदाई न कर सके, आखिर हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को खबर दी गई, आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कुदाल अपने हाथ में ली और उस जगह मारी, एक ही ज़रब में वह पत्थरीली ज़मीन रेत की तरह भरभरा गई।

ज़रब लगाने के दौरान रौशनी के झमाके से नज़र आए, सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) ने उनके बारे में पूछा कि ये रौशनी के झमाके कैसे थे, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया:
“पहले झमाके में अल्लाह तआला ने मुझे यमन की फ़तह की खबर दी है, दूसरे झमाके के ज़रिए अल्लाह तआला ने मुझे शाम और मग़रिब पर ग़लबा अता फ़रमाने की इत्तिला दी और तीसरे झमाके के ज़रिए अल्लाह तआला ने मुझे मशरिक़ की फ़तह दिखाई है।”

ग़रज़ जब अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और सहाबा-ए-किराम (रज़ियल्लाहु अन्हुम) खंदक की खुदाई से फ़ारिग हुए तो उस वक़्त क़ुरैश और उसके हामियों का लश्कर मदीना मुनव्वरा के बाहर पहुंच गया। इस जंग में काफ़िरों की दस हज़ार तादाद के मुक़ाबले में मुसलमान सिर्फ तीन हज़ार थे। मुश्रिकों का लश्कर मदीना मुनव्वरा के गिर्द खंदक देखकर हैरतज़दा रह गया, वे पुकार उठे:
“ख़ुदा की क़सम! ये तो बड़ी ज़बरदस्त जंगी चाल है, अरब तो इस जंगी तदबीर से वाक़िफ़ नहीं थे।”

मुश्रिकों के दस्ते बार-बार खंदक तक आते रहे और वापस जाते रहे… मुसलमान भी अचानक खंदक तक आते और काफ़िरों की तरफ़ तीर बरसाते, फिर वापस लौट जाते। काफ़िरों में से नौफल बिन अब्दुल्लाह ने अपने घोड़े पर सवार होकर खंदक को उबूर करने की कोशिश की… लेकिन उसका घोड़ा खंदक के आर-पार न पहुंच सका और सवार समेत खंदक में गिर पड़ा। नौफल की गर्दन की हड्डी टूट गई। एक रिवायत में यह भी है कि हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने खंदक में उतरकर उसे क़त्ल कर दिया था।

काफ़िरों और मुसलमानों के दरमियान बस इस क़िस्म की छेड़छाड़ होती रही… काफ़िर दरअसल खंदक की वजह से मुसलमानों पर हमला करने के क़ाबिल नहीं रहे थे।

लड़ाई से पहले औरतों और बच्चों को एक छोटे से क़िला में पहुंचा दिया गया था। यह जगह हज़रत हस्सान बिन साबित (रज़ियल्लाहु अन्हु) की थी। ख़ुद हज़रत हस्सान (रज़ियल्लाहु अन्हु) भी वहीं थे। उन औरतों में आनहज़रत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की फूफी हज़रत सफ़िया (रज़ियल्लाहु अन्हा) भी बतौर मुहाफ़िज़ थीं। एक यहूदी जासूसी के लिए उस तरफ़ निकल आया। हज़रत सफ़िया (रज़ियल्लाहु अन्हा) की नज़र उस यहूदी पर पड़ी तो उन्होंने हज़रत हस्सान (रज़ियल्लाहु अन्हु) से कहा:
“ऐ हस्सान! ये शख़्स दुश्मन को इस क़िला में औरतों और बच्चों की मौजूदगी की खबर कर देगा… और दुश्मन इस तरफ़ से हमला कर सकते हैं, लिहाज़ा तुम नीचे उतरकर इसे क़त्ल कर दो।”

इस पर हज़रत हस्सान (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने कहा:
“तुम्हें मालूम है, मैं इस काम का आदमी नहीं हूँ।”

हज़रत हस्सान (रज़ियल्लाहु अन्हु) दरअसल शायर थे और जंग के तरीक़ों से वाक़िफ़ नहीं थे… फिर उनकी उम्र भी बहुत ज़्यादा थी, बूढ़े और कमज़ोर थे, इसलिए उन्होंने ऐसी बात कही थी। हज़रत सफ़िया (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने जब देखा कि हस्सान (रज़ियल्लाहु अन्हु) ये काम नहीं करेंगे तो उन्होंने एक मोटा सा डंडा उठा लिया और नीचे उतर आईं। ख़ामोशी से उसके पीछे गईं और अचानक उस पर हमला कर दिया… उन्होंने डंडे के कई वार उस पर किए, यहाँ तक कि वह ख़त्म हो गया। फिर तलवार से उसका सर काटकर उन यहूदियों की तरफ़ उछाल दिया जो उसके पीछे आ रहे थे। वे सब ख़ौफ़ज़दा होकर भाग निकले।

ग़ज़वा-ए-खंदक के वाक़ियात

इधर मुश्रिकों में से चंद लोग आगे बढ़े। उन्होंने खंदक उबूर करने के लिए अपने घोड़ों को दूर ले जाकर ख़ूब दौड़ाया और जिस जगह खंदक की चौड़ाई कम थी, उस जगह से लंबी छलांग लगाकर आख़िर खंदक पार करने में कामयाब हो गए। इन लोगों में अम्र बिन अब्द वद भी था… वह अरब का मशहूर पहलवान था, उसके बारे में मशहूर था कि वह बहुत बहादुर है और अकेला एक हज़ार आदमियों के लिए काफ़ी है। खंदक उबूर करते ही वह ललकारा:
“कौन है जो मेरे मुक़ाबले में आता है?”

उसकी ललकार सुनकर हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) आ गए। उन्होंने नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से अर्ज़ किया:
“अल्लाह के रसूल! इसके मुक़ाबले पर मैं जाऊँ।”

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फ़रमाया:
“बैठ जाओ… यह अम्र बिन अब्द वद है।”

इधर अम्र ने फिर आवाज़ दी। हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) फिर उठ खड़े हुए। आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन्हें फिर बिठा दिया… उसने तीसरी बार फिर मुक़ाबले के लिए आवाज़ लगाई। आख़िर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) को इजाज़त दे दी। हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) यह शेर पढ़ते हुए मैदान में आए:

“जल्दी न कर, तेरी ललकार को क़बूल करने वाला तेरे सामने आ गया है। जो तुझसे किसी तरह आज़िज़ और कमज़ोर नहीं है।”

एक रिवायत में है कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) को अपनी तलवार “ज़ुल्फ़िक़ार” अता फ़रमाई, अपना अमामा उनके सर पर रखा और अल्लाह से उनकी कामयाबी के लिए दुआ की।

हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने मुक़ाबले से पहले उसे इस्लाम की दावत दी और बोले:
“मैं तुम्हें अल्लाह और उसके रसूल की तरफ़ बुलाता हूँ और इस्लाम की दावत देता हूँ।”

उसने इनकार किया और कहा:
“भतीजे! मैं तुम्हें क़त्ल करना नहीं चाहता… वापस लौट जाओ।”

जवाब में हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने फ़रमाया:
“लेकिन मैं तो तुम्हें क़त्ल करना चाहता हूँ।”

यह सुनकर अम्र बिन अब्द वद को ग़ुस्सा आ गया। वह उस वक़्त पूरी तरह लोहे में ग़र्क था, चेहरा भी ख़ुद में छिपा हुआ था। वह घोड़े से कूद पड़ा और तलवार खींचकर उनकी तरफ़ बढ़ा। उसकी तलवार से बचने के लिए हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने फ़ौरन ढाल आगे कर दी। अम्र की तलवार ढाल पर पड़ी, ढाल फट गई और तलवार हज़रत अली (रज़ियल्लाहु अन्हु) की पेशानी तक पहुंच गई, जिससे उनकी पेशानी ज़ख़्मी हो गई।

अमरु के वार से हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की पेशानी से ख़ून बह निकला, मगर उन्होंने फ़ौरन जवाबी हमला किया। अमरु बिन अब्द-ए-वद की गर्दन के निचले हिस्से पर उनकी तलवार लगी, तलवार हंसली की हड्डी को काटती चली गई, वह खाक और ख़ून में लोटता नज़र आया। मुसलमानों ने “अल्लाहु अकबर” का नारा लगाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह नारा सुना तो जान लिया कि हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अमरु को क़त्ल कर दिया है। उसके गिरते ही जो लोग उसके साथ आए थे, वापस भाग खड़े हुए। हज़रत जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनका पीछा किया और भागते हुए एक काफ़िर पर तलवार का वार किया, वह दो टुकड़े हो गया। हज़रत जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु की तलवार उसके सिर से होती हुई कुल्हे तक पहुंच गई। इस पर कुछ मुसलमानों ने हज़रत जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा:

“ऐ अबू अब्दुल्लाह! हमने तुम्हारी तलवार जैसी काट किसी की नहीं देखी… अल्लाह की क़सम! यह तलवार का नहीं, बल्कि तलवार चलाने वाले का कमाल है।”

पूरा दिन जंग होती रही, खंदक के हर हिस्से पर लड़ाई जारी रही। इस वजह से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और कोई भी मुसलमान ज़ुहर से लेकर इशा तक कोई नमाज़ अदा न कर सके। इस हालत की वजह से मुसलमान बार-बार कहते रहे:

“हम नमाज़ नहीं पढ़ सके।”

यह सुनकर हुज़ूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते:
“न ही मैं पढ़ सका।”

आख़िरकार जब जंग रुकी तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को अज़ान देने का हुक्म दिया। उन्होंने ज़ुहर की तकबीर कही और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ अदा कराई। इसके तुरंत बाद हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने अस्र की तकबीर पढ़ी और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अस्र की नमाज़ अदा कराई। इसी तरह मगरिब और इशा की नमाज़ें भी क़ज़ा होकर जमात के साथ पढ़ी गईं।

खंदक की लड़ाई लगातार जारी रही। एक दिन ख़ालिद बिन वलीद ने मुश्रिकों के एक दस्ते के साथ हमला किया, लेकिन उस तरफ़ हज़रत उसैद बिन हुदैर रज़ियल्लाहु अन्हु 200 सवारों के साथ मौजूद थे। जैसे ही हज़रत ख़ालिद बिन वलीद अपने दस्ते के साथ खंदक पार करने लगे, ये उनके सामने आ गए। इस तरह हज़रत ख़ालिद बिन वलीद नाकाम लौट गए।

हालात बिगड़ते जा रहे थे और सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम परेशान हो गए। आख़िरकार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह तआला से दुआ फरमाई। इसके जवाब में हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम आए और खुशखबरी दी कि अल्लाह तआला दुश्मनों पर एक तेज़ आंधी भेजेगा और उसके साथ अपने फ़रिश्तों का लश्कर भी नाज़िल करेगा।

रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा-ए-किराम को यह खबर दे दी। सब ने अल्लाह का शुक्र अदा किया।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की यह दुआ बुधवार के दिन ज़ुहर और अस्र के दरमियान क़बूल हुई। आख़िरकार एक तेज़ आंधी और तूफ़ान ने मुश्रिकों को घेर लिया। इन दिनों वैसे भी मौसम सर्द था और ऊपर से इस सर्द तूफ़ान ने उन्हें जकड़ लिया। मुश्रिकों के ख़ेमे उड़ गए, बर्तन इधर-उधर हो गए, हवा के तेज़ थपेड़ों ने हर चीज़ को अस्त-व्यस्त कर दिया। लोग सामान के ऊपर और सामान लोगों के ऊपर गिर रहा था। फिर तेज़ हवा से इतनी रेत उड़ी कि न जाने कितने लोग रेत में दफ़्न हो गए। रेत की वजह से आग बुझ गई, चूल्हे ठंडे हो गए। आग बुझने से अंधेरे ने जैसे उन्हें निगल लिया।

यह अल्लाह का अज़ाब था जो फ़रिश्तों ने उन पर नाज़िल किया। वे बिखर गए और अफ़रातफ़री मच गई। अल्लाह तआला क़ुरआन में इरशाद फरमाता है:

“फिर हमने उन पर एक आंधी और ऐसी फ़ौज भेजी जिसे तुम नहीं देख सकते थे और अल्लाह तआला तुम्हारे आमाल को देख रहा था।” (सूरतुल अहज़ाब)

जहां तक फ़रिश्तों का ताल्लुक़ है, तो असल बात यह है कि उन्होंने ख़ुद जंग में शिरकत नहीं की, बल्कि अपनी मौजूदगी से मुश्रिकों के दिलों में खौफ़ और रौब पैदा कर दिया। उस रात जो हवा चली, उसे “बाद-ए-सबा” कहा जाता है, यानी वह हवा जो सर्द रातों में चलती है।

चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:
“बाद-ए-सबा से मेरी मदद की गई और ज़र्द हवा के ज़रिए इस क़ौम को तबाह कर दिया गया।”

ज़र्द हवा ने मुश्रिकों की आंखों में गर्दो-गुबार भर दिया और उनकी आंखें बंद हो गईं। यह तूफ़ान बहुत देर तक और लगातार जारी रहा। साथ ही, नबी अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह भी खबर मिली कि मुश्रिकों में फूट पड़ चुकी है।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐलान किया कि कौन है जो हमें दुश्मनों की खबर लाकर दे? इस पर हज़रत जुबैर रज़ियल्लाहु अन्हु खड़े हुए और अर्ज़ किया:
“अल्लाह के रसूल! मैं जाऊँगा।”

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सवाल तीन बार दोहराया और तीनों बार हज़रत जुबैर ही उठे। आखिरकार आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
“हर नबी के हवारी यानी मददगार होते हैं, और मेरे हवारी जुबैर हैं।”

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत हुज़ैफ़ा बिन यमान रज़ियल्लाहु अन्हु को इस काम के लिए रवाना किया। वह थकावट की वजह से जाने के क़ाबिल नहीं थे, लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके लिए दुआ फरमाई:

“जाओ, अल्लाह तआला तुम्हारे आगे से, पीछे से, दाएं से और बाएं से तुम्हारी हिफ़ाज़त फरमाए और तुम ख़ैरियत से लौटकर हमारे पास आओ।”

हज़रत हुज़ैफ़ा वहां से चलकर दुश्मनों के ठिकाने पर पहुंचे। वहां उन्होंने अबू सुफ़यान को कहते सुना:
“ऐ गिरोह-ए-कुरैश! हर शख्स अपने हमनशीन से होशियार रहे और जासूसों से पूरी तरह खबरदार रहे।”

फिर अबू सुफ़यान ने कहा:
“ऐ क़ुरैश! हम बहुत बुरे हालात का शिकार हो गए हैं। हमारे जानवर हलाक हो गए हैं, बनू क़ुरैज़ा के यहूदियों ने हमें धोखा दिया है और उनकी तरफ़ से नाखुशगवार बातें सुनने में आई हैं। ऊपर से इस तूफ़ानी हवा ने जो तबाही मचाई है, वह तुम देख ही रहे हो। इसलिए वापस चलो, मैं भी वापस जा रहा हूँ।”

हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ियल्लाहु अन्हु यह खबर लेकर आए तो नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़ पढ़ रहे थे। जब आप नमाज़ से फ़ारिग हुए तो उन्होंने दुश्मनों का हाल सुनाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हंस पड़े, यहाँ तक कि रात की तारिकी में आपके मुबारक दांत नज़र आने लगे। जब काफ़िरों का लश्कर मदीनतुल-मुनव्वरा से बदहवास होकर भागा, तब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“अब यह आइंदा हम पर हमला नहीं करेंगे, बल्कि हम उन पर हमला करेंगे।”

खंदक की लड़ाई के कुछ ख़ास वाक़ियात

जब खंदक खोदी जा रही थी, तो इस दौरान एक सहाबी हज़रत बशीर बिन सअद रज़ियल्लाहु अन्हु की बेटी एक प्याले में कुछ खजूरें लेकर आईं। ये खजूरें वह अपने वालिद और मामू के लिए लाई थी। हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नज़र उन खजूरों पर पड़ी तो आपने फ़रमाया:
“खजूरें इधर लाओ।”

इस लड़की ने खजूरों का बर्तन आपके हाथों में उलट दिया। खजूरें इतनी नहीं थीं कि दोनों हाथ भर जाते। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह देखकर एक कपड़ा मंगवाया, उसे फैलाकर बिछाया, फिर पास खड़े एक सहाबी से फ़रमाया:
“लोगों को आवाज़ दो… दौड़कर आएं।”

चुनांचे सब जल्दी आ गए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने हाथों से खजूरें उस कपड़े पर गिराने लगे। लोग उसे उठा-उठाकर खाने लगे। खजूरें शुरू करने से पहले सब लोग भूखे थे। भूख की हालत में सबने वह खजूरें खाईं और उनके पेट भर गए… और आपके हाथों से खजूरें अब भी गिर रही थीं।

ऐसा ही एक वाक़िया हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ पेश आया। जब उन्हें मालूम हुआ कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को शदीद भूख लगी है, तो वे अपने घर गए। उनके घर में बकरी का एक छोटा सा बच्चा और कुछ गेंहू था। उन्होंने अपनी बीवी से कहा:
“नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भूख लगी है, इसलिए यह बकरी ज़बह कर लो और इसका गोश्त पकाकर सालन बना लो। गेंहू को पीसकर रोटियां तैयार कर लो। मैं अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बुलाकर लाता हूँ।”

हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु कुछ देर बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और आहिस्ता से कहा कि आपके लिए घर में खाना तैयार किया है। यह सुनकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक सहाबी से फ़रमाया:
“ऐलान कर दो… जाबिर के घर सबकी दावत है।”

चुनांचे एलान कर दिया गया कि सब लोग जाबिर के घर पहुंच जाएं। यह सुनकर हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु परेशान हो गए कि थोड़ा सा खाना इतने लोगों को कैसे पूरा होगा। उन्होंने परेशानी में “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन” पढ़ा और घर लौट गए।

जब खाना हाज़िर किया गया, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“अल्लाह बरकत दे।”

फिर आपने बिस्मिल्लाह पढ़ी। सबने खाना शुरू किया। बारी-बारी लोग आते रहे, खाते रहे और तृप्त होकर उठते रहे। उनकी जगह दूसरे लोग आते रहे… यहाँ तक कि सब लोगों ने ख़ूब पेट भरकर खाना खा लिया। उस वक़्त मुसलमानों की तादाद एक हज़ार थी। हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:
“अल्लाह की क़सम! जब सब लोग खाना खाकर चले गए, तो हमने देखा… घर में अब भी उतना ही खाना मौजूद था जितना हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने रखा गया था।”

जंग ए बनी कुरैज़ा की तैयारी

जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ग़ज़वा-ए-खंदक से फ़ारिग होकर घर लौटे, तो वह दोपहर का वक़्त था। आपने ज़ुहर की नमाज़ अदा की और सैय्यदा आयशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा के हुजरे में दाख़िल हो गए।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अभी ग़ुस्ल फ़रमा रहे थे कि अचानक हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम काले रेशमी अमामा बांधे हुए वहाँ आ गए। वे एक ख़च्चर पर सवार थे। उन्होंने आते ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा:
“ऐ अल्लाह के रसूल! क्या आपने हथियार उतार दिए हैं?”

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“हाँ, उतार दिए हैं।”

यह सुनकर हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
“लेकिन अल्लाह तआला के फ़रिश्तों ने अभी हथियार नहीं उतारे।”

(यानी नई जंग की तरफ़ इशारा था जिसका ज़िक्र अगले भाग में होगा)

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