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Jung E Khaibar in Hindi | Prophet Muhammad History in Hindi Part 40

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Seerat e Mustafa Qist 40
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ख़ैबर की फतह

ख़ैबर एक बड़ा क़स्बा था। इसमें यहूदियों की बड़ी-बड़ी हवेलियाँ, खेत और बाग़ात थे, बहुत मालदार और बहादुर थे।

ये यहूदी मुसलमानों को बहुत सताते थे और इस्लाम के ख़िलाफ़ साज़िशें करते रहते थे। मदीना मुनव्वरा से ख़ैबर का फ़ासला 150 किलोमीटर का है।

हुदैबिया से तशरीफ़ लाने के बाद हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक माह तक या इस से कुछ कम मुद्दत तक यानी ज़िल-हिज्जा 6 हिजरी के आख़िर तक मदीना ही में रहे और इस के बाद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ैबर की तरफ़ रवाना हुए।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा में से सिर्फ उन लोगों को चलने का हुक्म फ़रमाया जो हुदैबिया में भी साथ थे। जो लोग हुदैबिया के सफ़र में नहीं गए थे, उन्होंने भी चलने का इरादा ज़ाहिर किया, लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

“मेरे साथ चलना है तो सिर्फ़ जिहाद के इरादे से चलो, माल-ए-ग़नीमत में से तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।”

मदीना मुनव्वरा से रवाना होते वक़्त रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सबाअ बिन अर्फ़त रज़ी अल्लाहु अन्हु को मदीना मुनव्वरा में अपना क़ायम मुक़ाम मुक़र्रर फ़रमाया। इस ग़ज़वे में आँहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़्वाज में से हज़रत उम्मे सलमा रज़ी अल्लाहु अन्हा भी हमराह थीं।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब ख़ैबर के सामने पहुँचे तो यह सुबह का वक़्त था। हज़रत अब्दुल्लाह बिन क़ैस रज़ी अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सवारी के पीछे-पीछे था। ऐसे में मैंने “ला हौल वला क़ूवत इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम” पढ़ा।

मेरे मुँह से यह कलिमा सुनकर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
“ऐ अब्दुल्लाह! क्या मैं तुम्हें ऐसा कलिमा न बता दूँ जो जन्नत के ख़ज़ानों में से है?”

मैंने अर्ज़ किया:
“ऐ अल्लाह के रसूल! ज़रूर बताइए।”

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
“वह यही कलिमा है जो तुमने पढ़ा है, यह जन्नत के ख़ज़ानों में से एक ख़ज़ाना है और यह कलिमा अल्लाह तआला को बहुत पसंद है।”

ख़ैबर के लोगों ने जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके लश्कर को देखा तो चीख़ते-चिल्लाते मैदानों और खुली जगहों में निकल आए और पुकार उठे।

“मुहम्मद! एक ज़बरदस्त लश्कर लेकर आ गए हैं।”

यहूदियों की तादाद वहाँ क़रीबन दस हज़ार थी, और वह यह सोच भी नहीं सकते थे कि मुसलमान उनसे मुक़ाबला करने के लिए निकल खड़े होंगे। जब मुसलमान जंग की तैयारी कर रहे थे तो उस वक़्त भी हैरान हो-हो कर कह रहे थे:

“हैरत है… कमाल है…”

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों के उन क़िलाओं में से सबसे पहले एक क़िला “नतात” की तरफ़ तवज्जोह फ़रमाई और उसका मुहासिरा कर लिया। इस मक़ाम पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक मस्जिद भी बनवाई। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जितने दिन ख़ैबर में रहे, उसी मस्जिद में नमाज़ अदा फ़रमाते रहे।

इस जंग के मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो ज़िरहें पहन रखी थीं और घोड़े पर सवार थे। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घोड़े का नाम “ज़रब” था। आपके हाथों में नेज़ा और ढाल भी थी। आपने अपने एक सहाबी को परचम दिया। वह परचम उठाए आगे बढ़े। उन्होंने ज़बरदस्त जंग की, लेकिन नाकाम लौट आए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने परचम एक दूसरे सहाबी को दिया, वह भी नाकाम लौट आए।

मुहम्मद बिन मुसलिमा रज़ी अल्लाहु अन्हु के भाई महमूद बिन मुसलिमा रज़ी अल्लाहु अन्हु क़िला की दीवार के नीचे तक पहुँच गए। लेकिन ऊपर से मरहब नामी यहूदी ने उनके सर पर एक पत्थर दे मारा और वह शहीद हो गए। कहा जाता है कि क़िला की दीवार के क़रीब उन्होंने बहुत सख़्त जंग की थी, जब बिल्कुल थक गए तो उस क़िला की दीवार के साए में दम लेने लगे। उसी वक़्त ऊपर से मरहब ने पत्थर गिराया था।

क़िला नतात के लोग सात दिन तक बराबर जंग करते रहे। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़ाना मुहम्मद बिन मुसलिम रज़ी अल्लाहु अन्हु को साथ लेकर जंग के लिए निकलते रहे। पड़ाव में हज़रत उस्मान रज़ी अल्लाहु अन्हु को निगरांन बनाते। शाम के वक़्त हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसी जगह वापस आ जाते। ज़ख़्मी मुसलमान भी वहीं पहुँचा दिए जाते। रात के वक़्त एक दस्ता लश्कर की निगरानी करता, बाक़ी लश्कर सो जाता। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी निगरानी करने वाले दस्ते के साथ गश्त के लिए निकलते।

जीत का झंडा हज़रत अली के हाथ में

कई रोज़ तक जब क़िला फ़तह न हुआ तो हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुहम्मद बिन मुसलिम रज़ी अल्लाहु अन्हु से फ़रमाया:

“आज मैं परचम उस शख़्स को दूँगा जो अल्लाह और उसके रसूल से मोहब्बत करता है और अल्लाह और रसूल भी उससे मोहब्बत करते हैं, और वह पीठ दिखाने वाला नहीं, अल्लाह तआला उसके हाथ पर फ़तह अता फ़रमाएंगे और इस तरह अल्लाह तआला तुम्हारे भाई के क़ातिल पर क़ाबू अता फ़रमाएगा।”

सहाबा-ए-किराम ने जब यह एलान सुना तो हर एक ने चाहा कि हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम परचम उसे दें, मगर फिर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु को तलब फ़रमाया। उन दिनों हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु की आँखों में तकलीफ़ थी। लोगों ने हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बताया कि उनकी आँखें दुख रही हैं।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि कोई उन्हें मेरे पास लाए। हज़रत सलमा बिन अक़व रज़ी अल्लाहु अन्हु गए और उन्हें ले आए।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनका सर अपनी गोद में रखा और फिर उनकी आँखों में अपना लुआब दहन डाला। लुआब का आँखों में लगना था कि वो उसी वक़्त ठीक हो गईं। यूँ महसूस होता था जैसे उनमें कोई तकलीफ़ थी ही नहीं। हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं:

“उसके बाद ज़िंदगी भर मेरी आँखों में कभी कोई तकलीफ़ नहीं हुई।”

फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने परचम हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु को मरहमत फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया:

“जाओ और पीछे मुड़कर न देखना।”

हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु परचम को लहराते हुए क़िला की तरफ़ रवाना हुए। क़िला के नीचे पहुँचकर उन्होंने झंडे को नस्प कर दिया। क़िला के ऊपर बैठे हुए एक यहूदी ने उन्हें देख कर पूछा:
“तुम कौन हो?”

जवाब में उन्होंने फ़रमाया:
“मैं अली इब्न अबी तालिब हूँ।”

इस पर यहूदी ने कहा:
“तुम लोगों ने बहुत सर उठाया है, हालाँकि हक़ वही है जो मूसा अलैहि सलाम पर नाज़िल हुआ था।”

फिर यहूदी क़िला से निकल कर उनकी तरफ़ बढ़े, उनमें सबसे आगे हर्ष था। वह मरहब का भाई था। यह शख़्स अपनी बहादुरी के सिलसिले में बहुत मशहूर था। उसने नज़दीक आते ही हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु पर हमला किया। हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उसका वार रोका और जवाबी हमला किया। दोनों के दरमियान तलवार चलती रही। आख़िर हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उसे ख़ून में नहला दिया।

उसके गिरते ही मरहब आगे आया। यह अपने भाई से ज़्यादा बहादुर और जंगजू था। आते ही उसने ज़बरदस्त हमला किया। हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु पर तलवार का वार किया। हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उसकी तलवार को अपनी ढाल पर रोका… हमला इस क़दर सख़्त था कि ढाल उनके हाथ से निकल कर दूर जा गिरी।

मरहब उस वक़्त दो ज़िरहें पहने हुए था, दो तलवारें लगी थीं और दो अमामे भी पहन रखे थे। उसके ऊपर खुद पहन रखा था। देखने के लिए खुद में आँखों की जगह दो सुराख़ कर रखे थे। उसके हाथ में नेज़ा था, जिसमें तीन फल लगे थे। अब हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उस पर वार किया और उनकी तलवार उसे काटती चली गई। इस तरह हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उसे क़त्ल कर दिया।

मरहब के बाद उसका भाई यासिर आगे आया। वह आगे आकर ललकारा:
“कौन है जो मेरे मुक़ाबले में आएगा?”

हज़रत जुबैर बिन अव्वाम रज़ी अल्लाहु अन्हु मुसलमानों की तरफ़ से आगे आए और उसे ठिकाने लगा दिया।

ख़ैबर की जंग हो रही थी कि एक शख़्स हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। उसका नाम असवद राई था और वह यहूदी था। एक शख़्स का ग़ुलाम था। उसने कहा:
“ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे इस्लाम के बारे में बताइए।”

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुख़्तसर तौर पर इस्लाम की ख़ूबियाँ बयान फ़रमाईं और उसे इस्लाम क़ुबूल करने की दावत दी। उसने फ़ौरन कलिमा पढ़ लिया।

इसके बाद यह असवद राई रज़ी अल्लाहु अन्हु तलवार लेकर मुसलमानों के साथ क़िला की तरफ़ बढ़े और जंग करते हुए शहीद हो गए। जब उनकी लाश आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने लाई गई तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

“अल्लाह तआला ने इस ग़ुलाम को बुलंद मर्तबा अता फ़रमाया है।”
असवद रज़ी अल्लाहु अन्हु कितने ख़ुशक़िस्मत थे, न कोई नमाज़ पढ़ी, न रोज़ा रखा… न हज किया, लेकिन फिर भी जन्नत हासिल करने में कामयाब हो गए।
आख़िर यह क़िला फ़तह हो गया। इस क़िले के मुहासिरे के दौरान मुसलमानों को खाने की तंगी हो गई। लोगों ने इस तंगी के बारे में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़िक्र किया।

इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ फ़रमाई:
“ऐ अल्लाह! इन क़िलों में से अक्सर क़िलों को फ़तह कर कि उनमें रिज़्क़ और घी की बहुतायत हो।”

ख़ैबर के क़िले

इसके बाद हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हबाब बिन मुनज़िर रज़ी अल्लाहु अन्हु को परचम अता फ़रमाया और लोगों को जंग के लिए जोश दिलाया। नाअम नामी क़िले में से जो लोग यहूदियों में से जान बचाकर निकलने में कामयाब हो गए थे, वे वहाँ से सअब नामी क़िले में पहुँच गए, यह फ़तात के क़िलों में से एक था। इस क़िले का मुहासरा दो दिन तक जारी रहा। क़िले में यहूदियों के पाँच सौ जानबाज़ थे।

मुहासरे के बाद उसमें से एक जंगजू निकल कर मैदान में आया और मुक़ाबले के लिए ललकारा। इस जंगजू का नाम यूशअ था। इसके मुक़ाबले के लिए हज़रत हबाब बिन मुनज़िर रज़ी अल्लाहु अन्हु गए और उसे पहले ही वार में क़त्ल करने में कामयाब रहे। इसके बाद दूसरा यहूदी निकला, उसने भी मुक़ाबले के लिए ललकारा। उसका नाम दियाल था। इसके मुक़ाबले के लिए हज़रत अमारो बिन अक़बा ग़िफ़ारी रज़ी अल्लाहु अन्हु निकले। उन्होंने एक दम दियाल की ख़ोपड़ी पर वार कर दिया और बोले:
“ले संभाल, मैं एक ग़िफ़ारी हूँ।”
दियाल पहले ही वार में ढेर हो गया।

अब यहूदियों ने ज़बरदस्त हमला किया, इसके नतीजे में मुसलमानों को पस्पा होना पड़ा और वे इधर-उधर बिखरते चले गए। यहूदी आगे बढ़ते रहे, यहाँ तक कि वे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुँच गए। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वक़्त घोड़े से उतरकर नीचे खड़े थे। इस हालत में हज़रत हबाब बिन मुनज़िर रज़ी अल्लाहु अन्हु पूरी तरह साबित क़दम रहे और जमकर लड़ते रहे।

रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को पुकारा और जोश दिलाया तो वे पलटकर यहूदियों पर हमला-आवर हुए। उन्होंने यहूदियों पर एक भरपूर हमला किया। हज़रत हबाब बिन मुनज़िर रज़ी अल्लाहु अन्हु ने दुश्मन पर ज़बरदस्त यलग़ार की। यहूदी इस हमले की ताब न ला सके और तेज़ी से पस्पा हुए, यहाँ तक कि अपनी हवेलियों तक पहुँच गए। अंदर घुसते ही उन्होंने दरवाज़े बंद कर लिए।

अब मुसलमानों ने यलग़ार की और यहूदियों को क़त्ल करने लगे, साथ में उन्हें गिरफ़्तार करने लगे। आख़िर क़िला फ़तह हो गया। इस क़िले में मुसलमानों को बड़े पैमाने पर गेहूं, खजूरें, घी, शहद, शक्कर, जैतून का तेल और चरबी हाथ आई। यहाँ से मुसलमानों को बहुत सा जंगी सामान भी हाथ लगा। इसमें मनजनीक, ज़िरहें, तलवारें वग़ैरह शामिल थीं।

इस क़िले से जो यहूदी जान बचाकर भाग निकलने में कामयाब हुए, उन्होंने क़ल्ला नामी क़िले में पनाह ली। यह क़िला एक पहाड़ की चोटी पर था। मुसलमानों ने इसका भी मुहासरा कर लिया। अभी मुहासरे को तीन दिन गुज़रे थे कि एक यहूदी हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और बोला:
“ऐ अबुल क़ासिम! अगर आप मेरी जान बख़्श दें तो मैं आपको ऐसी अहम खबरें दूँगा कि आप इत्मीनान से क़िला फ़तह कर लेंगे। वरना अगर आप इस क़िले का एक महीने तक मुहासरा किए रहें तो भी इसको फ़तह नहीं कर सकेंगे। क्योंकि इस क़िले में ज़मीनदोज़ नहरें हैं। वे लोग रात को निकलकर नहरों में से ज़रूरत का पानी ले लेते हैं। अब अगर आप उनका पानी बंद कर दें तो ये लोग आसानी से शिकस्त मान लेंगे।”

नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसे अमान दे दी, इसके बाद उसके साथ उन नहरों पर तशरीफ ले गए और यहूदियों का पानी बंद कर दिया। अब यहूदी क़िले से बाहर निकलने पर मजबूर हो गए। ख़ूनी जंग हुई और आख़िरकार यहूदी शिकस्त खा गए। इस तरह मुसलमानों ने फ़तात के तीनों हिस्से फ़तह कर लिए।

अब वह शक के क़िलों की तरफ़ बढ़े, इसमें भी कई क़िले थे। मुसलमान सबसे पहले क़िला अबए की तरफ़ बढ़े। यहाँ ज़बरदस्त जंग हुई। सबसे पहले यहूदियों में से एक जंगजू बाहर निकला। उसका नाम ग़ज़वाल था। उसने मुसलमानों को मुक़ाबले की दावत दी। उसकी ललकार पर हज़रत हबाब बिन मुनज़िर रज़ी अल्लाहु अन्हु आगे आए। उन्होंने नज़दीक पहुँचते ही ग़ज़वाल पर हमला कर दिया। पहले ही वार में उसका दायाँ हाथ कलाई से कट गया। वह ज़ख़्मी होकर वापस भागा। हज़रत हबाब रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उसका पीछा किया और भागते-भागते दूसरा वार किया। यह वार ग़ज़वाल की एड़ी पर लगा। ज़ख़्म खाकर वह गिर पड़ा। उसी वक़्त हबाब रज़ी अल्लाहु अन्हु ने उसका काम तमाम कर दिया।

इस वक़्त एक और यहूदी मुक़ाबले के लिए निकला। उसके मुक़ाबले में एक और मुसलमान आए, लेकिन वह उसके हाथों शहीद हो गए। यहूदी अपनी जगह खड़ा रहा। इस बार उसके मुक़ाबले के लिए मुसलमानों में से हज़रत अबू दुजाना रज़ी अल्लाहु अन्हु निकले और नज़दीक पहुँचते ही उस पर हमला आवर हुए। पहले वार में उन्होंने उसका पैर काट डाला और दूसरे वार में उसका काम तमाम कर दिया।

फिर किसी यहूदी ने मैदान में आकर मुसलमानों को न ललकारा। इस पर मुसलमानों ने नारा-ए-तकबीर बुलंद किया और क़िले पर हमला कर दिया। मुसलमान क़िले के अंदर घुस गए। उनमें सबसे आगे अबू दुजाना रज़ी अल्लाहु अन्हु थे। इस क़िले से भी मुसलमानों को बहुत माल हाथ लगा। मवेशी और खाने-पीने का सामान भी मिला।

क़िले में जो लोग थे, वे वहाँ से भाग खड़े हुए और उन्होंने शक के दूसरे क़िले में पनाह ली। उसका नाम क़िला बरी था। शक के दो ही क़िले थे: एक अबए और दूसरा बरी। क़िला बरी में यहूदियों ने बहुत ज़बरदस्त हिफ़ाज़ती इंतज़ाम कर रखे थे। इन लोगों ने मुसलमानों पर बहुत सख़्त तीरअंदाज़ी की, पत्थर भी बरसाए। कुछ तीर तो उस जगह आकर गिरे जहाँ आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ फरमा थे।

इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक मुठ्ठी कंकरियाँ उठाईं और उसे क़िले की तरफ़ फेंक दिया। उनके फेंकने से यह क़िला लरज़ उठा। यहूदी भाग निकले। यहाँ से भी मुसलमानों को माल-ए-ग़नीमत हाथ आया। यहूदियों के बर्तन भी हाथ लगे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनके बारे में इरशाद फ़रमाया कि इन्हें धोकर इस्तेमाल में लाओ।

इस तरह फ़तात और शक के पाँच क़िलों पर मुसलमानों का क़ब्ज़ा हो गया। इन जगहों से भागने वाले यहूदियों ने कतीबा के क़िलों में पनाह ली। कतीबा के भी तीन क़िले थे: ग़ौस, वतीअ और सलालिम। इन तमाम क़िलों में ग़ौस का क़िला सबसे बड़ा और मज़बूत था। मुसलमान बीस दिन तक इसका मुहासरा किए रहे। आख़िर हज़रत अली रज़ी अल्लाहु अन्हु के हाथ पर अल्लाह तआला ने इस क़िले को भी फ़तह करा दिया।

इसी क़िले से हज़रत सफ़िया बिन्त हुय्य बिन अख़तब गिरफ़्तार हुईं। बाद में अल्लाह तआला ने यह इज़्ज़त अता फ़रमाई कि मुसलमान हो गईं और हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़्वाज-ए-मुतहरात में शामिल हुईं।

कमूस की फ़तह के बाद मुसलमानों ने क़िला वतीअ और क़िला सलालिम का मुहासरा कर लिया। दोनों का मुहासरा चौदह दिन तक रहा मगर दोनों में से कोई शख़्स बाहर न निकला। चौदह दिन बाद उन्होंने सुलह की दरख़्वास्त की। इस शर्त पर सुलह हो गई कि ये यहूदी अपने बीवी-बच्चों को लेकर वहाँ से निकल जाएंगे और बदन के कपड़ों के अलावा कोई चीज़ नहीं ले जाएंगे।

इस तरह ये दोनों क़िले बग़ैर ख़ूनरेज़ी के फ़तह हुए। मुसलमानों के हाथ एक बड़ा ख़ज़ाना भी लगा। ख़ैबर ही में आपकी ख़िदमत में अशअरी और दोस क़बीले के लोग हाज़िर हुए। अशअरी लोगों में हज़रत अबू मूसा अशअरी भी थे और दोसियों में हज़रत अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहु अन्हु थे। इन हज़रात को भी माल-ए-ग़नीमत दिया गया।

ख़ैबर की फ़तह के मौक़े पर हबशा से हज़रत जाफ़र बिन अबी तालिब रज़ी अल्लाहु अन्हु वहाँ पहुँचे। उन्होंने मक्का से हबशा की तरफ़ हिजरत की थी। ये उस मौक़े पर वहाँ लौटे थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन्हें देखकर बहुत खुश हुए। खड़े होकर उनका इस्तक़बाल किया। उनकी पेशानी पर बोसा दिया।

इस मौक़े पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
“अल्लाह की क़सम! मुझे नहीं पता, मुझे ख़ैबर की फ़तह की ज़्यादा ख़ुशी है या जाफ़र के आने पर ज़्यादा ख़ुशी है।”

हुज़ूर को बाग ए फ़िदक मिलना

ख़ैबर की फ़तह के बाद वहाँ की एक बस्ती फदक के लोग हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए। जो लोग हाज़िर हुए, उनके सरदार का नाम नून बिन योशा था। उसने हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया:
“हम इस बात पर सुलह करने के लिए तैयार हैं कि हमारी जान बख़्शी कर दी जाए और हम लोग अपना माल और सामान लेकर फदक से जला वतन हो जाएँ।”
आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी ये बात मंज़ूर फरमा ली। इस सिलसिले में एक रिवायत ये है कि यहूदियों ने फदक का निस्फ़ (आधा हिस्सा) देने की बात की थी और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे मंज़ूर फरमाया था।

यहाँ एक बात की वज़ाहत करना बेहतर होगा, फदक की ये बस्ती चूँकि जंग के बग़ैर हासिल हो गई थी, इस लिए ये माल-ए-फै था। यानी दुश्मन से जंग किए बिना हासिल किया जाने वाला माल, जिसके खर्च का मुसलमानों के हुक्मरान को इख्तियार होता है। चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसकी आमदनी में से अपने घर वालों पर भी खर्च किया करते थे। बनी हाशिम के छोटे बच्चों की परवरिश भी इसकी आमदनी से फरमाते थे। बनी हाशिम की बीवाओं की शादियाँ करते थे।

जिस ज़माने में रसूल करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ख़ैबर पहुँचे थे, उस वक़्त खजूरें अभी पकी नहीं थीं। चुनांचे कच्ची खजूरों को खाने से अक्सर सहाबा बुख़ार में मुब्तला हो गए। उन्होंने अपनी परेशानी हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान की। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे फरमाया:
“घड़ों में पानी भर लो और ठंडा कर लो, फज्र के वक़्त अल्लाह का नाम पढ़कर इस पानी को अपने ऊपर डालो।”
सहाबा ने इस हिदायत पर अमल किया तो उनका बुख़ार जाता रहा।

ख़ैबर की जंग में सलमा बिन अक़ुआ रज़ी अल्लाहु अन्हु ज़ख़्मी हो गए तो हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए। हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन मरतबा उनके ज़ख़्मों पर दम किया, उन्हें उसी वक़्त आराम आ गया।

एक वाक़िया

इस ग़ज़वे में एक वाक़िया ये पेश आया कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ज़ा-ए-हाजत के लिए जाना था। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ी अल्लाहु अन्हु से फरमाया कि देखो, कोई ओट की जगह नज़र आ रही है या नहीं। अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ी अल्लाहु अन्हु ने चारों तरफ़ देखा, कोई ओट की जगह नज़र न आई। अलबत्ता उन्हें एक अकेला दरख़्त नज़र आया। उन्होंने बताया कि सिर्फ़ दरख़्त नज़र आ रहा है।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:
“इधर-उधर देखो, कोई और ओट की चीज़ नज़र आती है।”
अब उन्होंने फिर इधर-उधर देखा तो एक और दरख़्त काफ़ी दूर नज़र आया। उन्होंने उस दूसरे दरख़्त के बारे में आप को बताया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:
“इन दोनों दरख़्तों से कहो, अल्लाह के रसूल तुम्हें हुक्म देते हैं कि दोनों एक जगह जमा हो जाओ… यानी आपस में मिल जाओ।”

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ी अल्लाहु अन्हु ने इन दोनों दरख़्तों को मुख़ातिब करके ये बात कह दी। फौरन दोनों दरख़्त हरकत में आए और एक-दूसरे से मिल गए। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनका पर्दा बना लिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फ़ारिग़ होने के बाद दोनों दरख़्त अपनी जगह पर लौट गए।

हुज़ूर के कत्ल का नाकाम मन्सूबा

जब ख़ैबर फ़तह हो गया तो एक औरत मुसलमानों की तरफ़ आती नज़र आई। वह लोगों से पूछ रही थी कि अल्लाह के रसूल को बकरी के गोश्त का कौन सा हिस्सा ज़्यादा पसंद है। लोगों ने उसे बताया कि हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दस्ती का गोश्त पसंद है।
इस औरत का नाम ज़ैनब था। यह मरहब की भतीजी और सलाम बिन मशकम यहूदी की बीवी थी। यह बात मालूम करने के बाद वह वापस लौट गई। उसने एक बकरी को ज़बह किया, फिर उसे भूना और उसके दस्ती वाले हिस्से में ज़हर मिला दिया।

आनहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मग़रिब की नमाज़ पढ़ाकर वापस तशरीफ़ लाए तो उस औरत को मुन्तज़िर पाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उससे आने का सबब पूछा तो बोली:
“ऐ अबुल क़ासिम! मैं आपके लिए एक हदिया लाई हूँ।”
हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म पर उसका हदिया ले लिया गया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने रख दिया गया। उस वक़्त वहाँ बिश्र बिन बरा बिन मआरूर रज़ी अल्लाहु अन्हु भी मौजूद थे।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा से फ़रमाया:
“क़रीब आ जाओ”
फिर आपने दस्ती से खाना शुरू फ़रमाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ ही बिश्र बिन बरा ने भी दस्ती से गोश्त का लुक़मा मुँह में डाल लिया और उसे निगल गए, जबकि आनहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अभी लुक़मा सिर्फ़ मुँह में डाला था। दूसरे लोगों ने दूसरी जगहों से लुक़मा लिया…
जैसे ही हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लुक़मा मुँह में डाला, फौरन उगल दिया और फ़रमाया:
“हाथ रोक लो, ये गोश्त मुझे बता रहा है कि इसमें ज़हर है।”

उस वक़्त बिश्र बिन बरा रज़ी अल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया:
“ऐ अल्लाह के रसूल! क़सम है उस जात की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है, जो लुक़मा मैंने खाया था, उसमें मुझे कुछ महसूस हुआ था, लेकिन मैंने इसे सिर्फ़ इस लिए नहीं उगला कि आपका खाना ख़राब होगा। फिर जब आपने अपना लुक़मा उगल दिया तो मुझे अपने से ज़्यादा आपका ख़याल आया और मुझे खुशी हुई कि आपने इसे उगल दिया।”
इसके बाद उनका रंग नीला हो गया। वह एक साल तक इस ज़हर के ज़ेर-ए-असर रहे और उसके बाद फ़ौत हो गए।

हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस यहूदी औरत को बुलवाया और उससे पूछा:
“क्या तूने बकरी के गोश्त में ज़हर मिलाया था?”
उसने पूछा:
“आपको ये बात किसने बताई?”
जवाब में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
“मुझे गोश्त के उसी टुकड़े ने ये बात बताई जो मैंने मुँह में रखा था।”
उसने इकरार किया:
“हाँ! मैंने ज़हर मिलाया था।”
तब आपने उससे पूछा:
“तूने ऐसा क्यों किया?”
जवाब में उसने कहा:
“आप लोगों ने (ख़ैबर की जंग में) मेरे बाप, भाई और मेरे शौहर को क़त्ल किया और मेरी क़ौम को तबाह किया, इस लिए सोचा कि अगर आप सिर्फ़ एक बादशाह हैं तो इस ज़हर के ज़रिए हमें आपसे निजात मिल जाएगी और अगर आप नबी हैं तो आपको इस ज़हर की पहले ही ख़बर हो जाएगी।”

इसका जवाब सुनकर आपने उसे माफ़ फ़रमा दिया… क्योंकि आप अपनी ज़ात के लिए किसी से बदला नहीं लेते थे, अलबत्ता मुसलमानों को कोई नुक़सान पहुँचाता तो उससे बदला लेते थे।
जहाँ तक ताल्लुक़ है बिश्र बिन बरा रज़ी अल्लाहु अन्हु का… तो वह उस वक़्त फ़ौत नहीं हुए थे। लेकिन जब बाद में ज़हर से उनकी मौत वाक़े हो गई तो उस वक़्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस औरत ज़ैनब को बदले में क़त्ल करा दिया था।

कहा जाता है कि हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफ़ात के वक़्त इस ज़हर का असर महसूस किया था और फ़रमाया था:
“इस ज़हर के असर से मेरी रगें कट रही हैं।”

ग़रज़! ख़ैबर की जंग के बाद हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस ग़ज़वे का माल-ए-ग़नीमत तक़सीम फ़रमाया।

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