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Jung e Bani Quraiza | Prophet Muhammad History in Hindi Part 38

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Seerat e Mustafa Qist 38
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ग़ज़वा-ए-बनी क़ुरैज़ा

जब आप ﷺ ग़ज़वा-ए-ख़ंदक से फ़ारिग़ होकर घर आए तो वह दोपहर का वक़्त था। ह़ुज़ूर अक़रम ﷺ ने ज़ुहर की नमाज़ अदा की और सय्यदा आइशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु अन्हा के हुजरे में दाख़िल हो गए। आप ﷺ अभी ग़ुस्ल फ़रमा रहे थे कि अचानक ह़ज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम सियाह रंग का रेशमी अमामा बाँधे वहाँ आ गए। ह़ज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम एक सवारी पर सवार थे। उन्होंने आते ही आप ﷺ से कहा:

“ऐ अल्लाह के रसूल! क्या आपने हथियार उतार दिए हैं?”

आप ﷺ ने फ़रमाया:
“हाँ! उतार दिए हैं।”

यह सुनकर ह़ज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा:
“लेकिन अल्लाह तआला के फ़रिश्तों ने तो अभी हथियार नहीं उतारे।”

इसके बाद ह़ज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने कहा:
“अल्लाह तआला ने आपको हुक्म दिया है कि आप इसी वक़्त बनू क़ुरैज़ा के मुक़ाबले के लिए कूच करें, मैं भी वहीं जा रहा हूँ।”

इस पर ह़ुज़ूर अक़रम ﷺ ने ऐलान कराया:
“हर इताअतगुज़ार शख़्स अस्र की नमाज़ बनू क़ुरैज़ा के मोहल्ले में पहुँचकर पढ़े।”
इस ऐलान से मुराद यह थी कि रवाना होने में देर न की जाए। आप ﷺ ने खुद भी फ़ौरन हथियार लगाए, ज़िरह-बख़्तर पहनी, अपना नेज़ा दस्त मुबारक में लिया, तलवार गले में डाली… और अपने घोड़े पर सवार हुए।

आप ﷺ के गिरद सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम भी हथियार लगाए घोड़ों पर मौजूद थे। सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम की तादाद तीन हज़ार थी, इनमें 36 घुड़सवार थे। इनमें भी तीन घोड़े आंहज़रत ﷺ के थे। इस ग़ज़वा के मौक़े पर आप ﷺ ने ह़ज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्म मक्तूम रज़ियल्लाहु अन्हु को मदीना मुनव्वरा में अपना क़ायम मक़ाम मुक़र्रर फ़रमाया।

ह़ुज़ूर अक़रम ﷺ से आगे-आगे ह़ज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु परचम लिए हुए बनू क़ुरैज़ा की तरफ़ रवाना हुए। ह़ज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु चूँकि आगे रवाना हुए थे, इसलिए पहले वहाँ पहुँचे। उन्होंने मुहाजिरीन और अंसार के एक दस्ते के साथ बनू क़ुरैज़ा के क़िले के सामने दीवार के नीचे परचम नस्ब किया। ऐसे में यहूदियों ने ह़ुज़ूर ﷺ को बुरा भला कहना शुरू कर दिया। इस पर ह़ज़रत अली और दूसरे सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को ग़ुस्सा आ गया।

नबी-ए-अकरम ﷺ वहाँ पहुँचे तो ह़ज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें यहूदियों की बदज़बानी के बारे में बताया। आप ﷺ ने उनकी पूरी आबादी को घेरे में लेने का हुक्म दे दिया। यह मुहासरा पच्चीस दिन तक जारी रहा। यहूदी इस मुहासरे से तंग आ गए और आख़िरकार आप ﷺ के सामने हाज़िर हो गए।

ह़ुज़ूर ﷺ ने उन्हें बाँधने का हुक्म फ़रमाया। उनकी मश्क़ें कस दी गईं। उनकी तादाद 600 या 750 थी। उन्हें एक तरफ़ जमा कर दिया गया। ये सब वो थे जो लड़ने वाले थे। उनके बाद यहूदी औरतों और बच्चों को हवेलियों से निकालकर एक तरफ़ जमा किया गया। इन बच्चों और औरतों की तादाद एक हज़ार थी। इन पर ह़ज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम रज़ियल्लाहु अन्हु को निगरान बनाया गया। अब ये लोग बार-बार आपके पास आकर माफ़ी माँगने लगे। इस पर आप ﷺ ने फ़रमाया:

“क्या तुम इस बात पर रज़ामंद हो कि तुम्हारे मामले का फ़ैसला तुम्हारा ही (मुंतख़ब किया हुआ) कोई आदमी कर दे?”
उन्होंने जवाब दिया: “सअद बिन मुअाज़ (रज़ियल्लाहु अन्हु) जो भी फ़ैसला कर दें, हमें मंज़ूर है।”

सअद बिन मुअाज़ रज़ियल्लाहु अन्हु मुसलमान होने से पहले इन यहूदियों के दोस्त और उनके क़रीबी माने जाते थे। ह़ुज़ूर अक़रम ﷺ ने उनकी ये बात मान ली। ह़ज़रत सअद बिन मुअाज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ग़ज़वा-ए-ख़ंदक में शदीद ज़ख़्मी हो गए थे, वो उस वक़्त मस्जिद-ए-नबवी के क़रीब एक ख़ेमा में थे। अब आंहज़रत ﷺ के हुक्म पर उन्हें बनू क़ुरैज़ा की आबादी में लाया गया। उनकी हालत बहुत ख़राब थी। आख़िर वो नबी-ए-अकरम ﷺ के पास पहुँचे। उन्हें सारी बात बताई गई… इस पर ह़ज़रत सअद बिन मुअाज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:

“फ़ैसले का हक़ तो अल्लाह तआला ही का है या फिर अल्लाह के रसूल का है।”

ह़ुज़ूर अक़रम ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
“अल्लाह ही ने तुम्हें हुक्म दिया है कि यहूदियों के बारे में फ़ैसला करो।”

अब उन्होंने अपना फ़ैसला सुनाया:

“मैं ये फ़ैसला करता हूँ कि इनके मर्दों को क़त्ल कर दिया जाए, इनका माल-ओ-दौलत ग़नीमत के तौर पर ले लिया जाए और इनके बच्चों और औरतों को ग़ुलाम और लौंडियाँ बना लिया जाए।”

(ह़ज़रत सअद बिन मुअाज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने यहूदियों से अपनी साबिक़ा दोस्ती की परवाह न करते हुए इतना सख़्त फ़ैसला इस लिए सुनाया कि इन यहूदियों का ज़ुल्म-ओ-सितम और इनकी फ़ित्ना-अंगेज़ी हद से बढ़ गई थी। अगर उन्हें यूँ ही ज़िंदा छोड़ दिया जाता तो यक़ीनी तौर पर ये लोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ बदतर साज़िशें करते रहते। इनका मिज़ाज बिछू और साँप की मानिंद हो चुका था, जो कभी डसने से बाज़ नहीं आ सकता, इसलिए इनका सर कुचलना ज़रूरी था।)

उनका फ़ैसला सुनकर आंहज़रत ﷺ ने इरशाद फ़रमाया:
“तुमने अल्लाह तआला के फ़ैसले के मुताबिक़ फ़ैसला सुनाया है… इस फ़ैसले की शान बहुत ऊँची है… आज सुबह सहर के वक़्त फ़रिश्ते ने आकर मुझे इस फ़ैसले की इत्तिला दे दी थी।”

इसके बाद नबी करीम ﷺ ने हुक्म दिया कि बनू क़ुरैज़ा की हवेलियों में जो कुछ माल और हथियार वग़ैरा हैं, सब एक जगह जमा कर दिए जाएँ।

चुनांचे सब कुछ निकाल कर एक जगह ढेर कर दिया गया। इस सारे सामान में 1500 तलवारें और 300 ज़िरहें थीं। 2000 नेज़े थे। इसके अलावा बेशुमार दौलत थी। मवेशी भी बेहिसाब थे। सब चीज़ों के पाँच हिस्से किए गए, इनमें से चार हिस्से सब मुजाहिदीन में तक़सीम किए गए। यहाँ शराब के बहुत से मटके भी मिले, इनको तोड़कर शराब को बहा दिया गया। इसके बाद यहूदी क़ैदियों को क़त्ल कर दिया गया।

इसके बाद ह़ज़रत सअद बिन मुअाज़ रज़ियल्लाहु अन्हु ग़ज़वा-ए-ख़ंदक में लगने वाले ज़ख़्मों की वजह से शहीद हो गए। उनके जनाज़े में फ़रिश्तों ने भी शिरकत की। उन्हें दफ़्न किया गया तो क़ब्र से ख़ुशबू आने लगी।

ग़ज़वा-ए-बनी लहियान

ग़ज़वा-ए-बनी क़ुरैज़ा के बाद ह़ुज़ूर अकरम ﷺ ने क़बीला बनी लहियान से उनके नापाक़ अमल का इंतिक़ाम लेने का इरादा फ़रमाया। बनू लहियान ने रजीअ के मक़ाम पर ह़ुज़ूर ﷺ के सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम को शहीद कर दिया था। ये लोग ख़ुद आप ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुए थे और उन्होंने दरख़्वास्त की थी कि उनके इलाक़े में इस्लाम की तालीम देने के लिए कुछ सहाबा को भेज दिया जाए। ह़ुज़ूर अकरम ﷺ ने अपने दस सहाबा को उनके साथ रवाना फ़रमाया। मगर इन लोगों ने धोके से उन सहाबा को शहीद कर दिया।

इस वाक़े से ह़ुज़ूर अकरम ﷺ को बेइंतिहा ग़म हुआ। इसलिए आपने इन ظालिमों को सज़ा देने का इरादा फ़रमाया और सहाबा-ए-किराम को तैयारी का हुक्म दिया। फिर आप ﷺ अपने लश्कर को लेकर रवाना हुए। ज़ाहिरी तौर पर शाम की तरफ़ कूच किया, मगर असल मक़सद बनू लहियान के ख़िलाफ़ कार्रवाई था। आपने मंज़िल को ख़ुफ़िया रखा ताकि दुश्मनों को जासूसों के ज़रिए पहले से पता न चले और मुसलमान अचानक इन ظालिमों पर हमला कर सकें।

मदीना मुनव्वरा में ह़ुज़ूर ﷺ ने अपना क़ायम मक़ाम ह़ज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्म मक्तूम रज़ियल्लाहु अन्हु को मुक़र्रर फ़रमाया। इस ग़ज़वा में आपके साथ काफ़ी तादाद में सहाबा-ए-किराम थे, जिनमें से बीस घुड़सवार थे।

पहले ह़ुज़ूर ﷺ उस मक़ाम पर पहुँचे जहाँ सहाबा-ए-किराम को शहीद किया गया था। वहाँ आपने उनके लिए मग़फ़िरत और रहमत की दुआ फ़रमाई। इधर किसी तरह बनू लहियान को मालूम हो गया कि मुसलमान उन पर हमला करने के लिए आ रहे हैं। वो डर के मारे पहाड़ों में जा छुपे। जब ह़ुज़ूर ﷺ को उनके फ़रार का पता चला तो आपने सहाबा-ए-किराम को मुख़्तलिफ़ जानिब रवाना फ़रमाया, मगर उनका कोई आदमी न मिला।

आख़िरकार ह़ुज़ूर अकरम ﷺ वापस रवाना हुए। इस ग़ज़वा को ग़ज़वा-ए-बनी लहियान कहा जाता है।

ह़ुज़ूर ﷺ की वालिदा की क़ब्र पर हाज़िरी

रास्ते में ह़ुज़ूर अकरम ﷺ अबवा के मक़ाम से गुज़रे। यहाँ आपकी वालिदा की क़ब्र थी। आपने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो अपनी वालिदा की क़ब्र नज़र आ गई। आप ﷺ ने वुज़ू किया और दो रक़अत नमाज़ अदा की। फिर ह़ुज़ूर ﷺ रोने लगे। आपको रोता देख कर सहाबा-ए-किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम भी रोने लगे।

ह़ुज़ूर ﷺ के ऊँटों की चोरी

ह़ुज़ूर ﷺ मदीना पहुँचे, अभी कुछ ही रातें गुज़री थीं कि ख़बर मिली कि अय्यीना बिन ह़िस्न ने कुछ घुड़सवारों के साथ मिलकर ह़ुज़ूर अकरम ﷺ की चरागाह पर हमला किया। इस चरागाह में ह़ुज़ूर ﷺ के बीस ऊँट थे। इन ऊँटों की हिफ़ाज़त के लिए ह़ज़रत अबू ज़र ग़िफ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे थे और उनकी बीवी भी वहाँ थीं। हमलावरों ने ह़ज़रत अबू ज़र रज़ियल्लाहु अन्हु के बेटे को क़त्ल कर दिया और ऊँटों को लूट कर ले गए।

इस वाक़े का सबसे पहले ह़ज़रत सलमा बिन अक़वा रज़ियल्लाहु अन्हु को पता चला। वो अपनी कमान उठाए सुबह-सुबह चरागाह की तरफ़ जा रहे थे। उनके साथ उनका ग़ुलाम भी था, जो उनका घोड़ा लेकर आया था और लगाम से पकड़ कर उसे हांक रहा था। रास्ते में उनकी मुलाक़ात ह़ज़रत अब्दुर्रह़मान बिन औफ़ रज़ियल्लाहु अन्हु के ग़ुलाम से हुई।

उस ग़ुलाम ने ह़ज़रत सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु को बताया:
“अय्यीना बिन ह़िस्न ने कुछ घुड़सवारों के साथ नबी अकरम ﷺ की चरागाह पर हमला किया है… और वो ह़ुज़ूर ﷺ के ऊँटों को लूटकर ले गए हैं… चरागाह के हिफ़ाज़तकार को उन्होंने क़त्ल कर दिया… और एक औरत को भी उठा कर ले गए हैं।”

ये सुनते ही ह़ज़रत सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने ग़ुलाम से कहा:
“इस घोड़े पर बैठ कर रवाना हो जाओ और नबी अकरम ﷺ को ख़बर कर दो।”

ग़ुलाम फ़ौरन रवाना हो गया। साथ ही ह़ज़रत सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु एक टीले पर चढ़कर बुलंद आवाज़ में पुकारे:
“लोगो! दौड़ो… कुछ लोग नबी अकरम ﷺ के ऊँट लेकर भाग रहे हैं!”

ये ऐलान तीन बार दोहराने के बाद वो अकेले ही लुटेरों की तरफ़ दौड़ पड़े।

हज़रत सलमा बिन अक़वा रज़ियल्लाहु अन्हु चीते की सी तेज़ी से दौड़े, यहाँ तक कि वो हमलावरों तक पहुँच गए। जैसे ही उन्होंने हमलावरों को देखा, उन पर तीरंदाज़ी शुरू कर दी। जब भी तीर चलाते, तो पुकार कर कहते:
“ले! संभाल! मैं इब्न अक़वा हूँ, आज का दिन हलाकत और बर्बादी का दिन है।”

जब दुश्मन अपने घोड़े मोड़कर इनकी तरफ़ रुख़ करते, तो ये अपनी जगह से हटकर किसी दूसरी जगह पहुँच जाते और वहाँ से तीरंदाज़ी शुरू कर देते। वो लगातार इसी तरह करते रहे, दुश्मन के पीछे लगे रहे, दुश्मन इनके तीरों का शिकार होता चला गया।

ख़ुद हज़रत सलमा बिन अक़वा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:

“मैं दौड़कर उनमें से किसी के सिर पर पहुँच जाता, उसके पैर में तीर मारता, जिससे वो ज़ख़्मी हो जाता, लेकिन जब उनमें से कोई पीछे मुड़ता तो मैं किसी दरख़्त के पीछे छुप जाता और फिर उस जगह से तीरंदाज़ी करके हमलावर को ज़ख़्मी कर देता, या पत्थर उन पर बरसाने लगता… मेरी इस तीरंदाज़ी और पत्थरों की बारिश से वो बुरी तरह तंग आ गए, यहाँ तक कि मेरी तीरों की बारिश ने उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। ज़ख़्मी होकर भागने वालों ने तीस से ज़्यादा नेज़े और उतनी ही चादरें रास्ते में गिरा दीं ताकि उनका बोझ कम हो और वो आसानी से भाग सकें। वो जो चीज़ भी कहीं फेंकते, मैं उस पर पत्थर रख देता, ताकि बाद में उन्हें जमा कर सकूँ। ग़रज़! मैं उनके पीछे लगा रहा, यहाँ तक कि सिवाय चंद के, वो तमाम ऊँट जो रसूलुल्लाह ﷺ के थे… पीछे रह गए। दुश्मन आगे निकल गया और ख़ुद मैं भी उनके तआक़ुब में उन ऊँटों से आगे निकल आया… इस तरह मैंने हमलावरों से तमाम ऊँट छुड़ा लिए।”

आन-हज़रत ﷺ को जब सलमा बिन अक़वा रज़ियल्लाहु अन्हु की पुकार के बारे में पता चला, तो मदीना मुनव्वरा में एलान करा दिया:
“ऐ अल्लाह के सवारो! तैयार हो जाओ! और सवार होकर चलो।”

इस एलान के बाद घुड़सवारों में से जो सहाबी सबसे पहले तैयार होकर आए, वो हज़रत मुक़दाद बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु थे, जिन्हें इब्न असवद भी कहा जाता है। उनके बाद हज़रत अबाद बिन बिश्र रज़ियल्लाहु अन्हु आए, फिर हज़रत सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु आए, फिर बाक़ी घुड़सवार सहाबा हज़ूर अकरम ﷺ के पास पहुँच गए।

रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को इनका सालार मुक़र्रर फ़रमाया और हुक्म दिया:
“तुम लोग रवाना हो जाओ, मैं बाक़ी लोगों के साथ तुमसे आ मिलूँगा।”

चुनांचे ये घुड़सवार दस्ता दुश्मन की तलाश में निकला… और दुश्मन के सर पर पहुँचने में कामयाब हो गया।

सवारों में सबसे पहले जो शख़्स दुश्मन तक पहुँचे, उनका नाम मुदर बिन फ़ज़ला था, जिन्हें अख़रम असदी भी कहा जाता है। ये आगे बढ़कर दुश्मन के सामने जाकर खड़े हुए और बोले:
“ऐ मलऊन लोगो! ठहर जाओ, मुहाजिरीन और अंसार तुम्हारे मुक़ाबले पर निकल पड़े हैं!”

अख़रम असदी रज़ियल्लाहु अन्हु सबसे पहले दुश्मन के क़रीब पहुँच गए और उनकी तरफ़ बढ़ने लगे। तभी हज़रत सलमा बिन अक़वा रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने मोर्चे से निकलकर उनके घोड़े की लगाम पकड़ ली और बोले:
“ऐ अख़रम! अभी दुश्मन पर हमला न करें! रसूलुल्लाह ﷺ और उनके असहाब को आने दें।”

ये सुनकर अख़रम असदी रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“सलमा! अगर तुम अल्लाह तआला और क़यामत के दिन पर ईमान रखते हो और ये जानते हो कि जन्नत भी बरहक़ है और दोज़ख़ भी बरहक़ है, तो मेरे और शहादत के दरमियान से हट जाओ!”

उनके ये अल्फ़ाज़ सुनकर सलमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उनकी लगाम छोड़ दी। वो फ़ौरन आगे बढ़े… उन्होंने वार करके एक दुश्मन के घोड़े को ज़ख़्मी कर दिया। उसी वक़्त एक और दुश्मन ने अख़रम असदी रज़ियल्लाहु अन्हु पर नेज़ा मार दिया… और वो शहीद हो गए…

इसी दौरान हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु वहाँ पहुँच गए। एक दुश्मन ने उनके घोड़े पर वार किया, जिससे उनका घोड़ा ज़ख़्मी हो गया। हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़ौरन उस पर वार करके उसे क़त्ल कर दिया।

इसी वक़्त एक घुड़सवार उनके मुक़ाबले पर आया। उसका नाम मुसअदा फरारी था। आते ही कहने लगा:
“तुम मुझसे किस तरह मुक़ाबला करना पसंद करोगे… तलवारबाज़ी, नेज़ा बाज़ी या फिर कुश्ती?”

हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“जो तुम पसंद करो।”

इस पर उसने कुश्ती लड़ना पसंद किया। वो घोड़े से उतर आया और अपनी तलवार दरख़्त से लटका दी। हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु भी घोड़े से उतर आए और उन्होंने भी अपनी तलवार दरख़्त से लटका दी। अब दोनों के बीच कुश्ती शुरू हुई… आख़िर अल्लाह तआला ने हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु को फ़तेहयाब फ़रमाया। उन्होंने दरख़्त से लटकी तलवार खींच ली और उसे क़त्ल कर दिया। फिर उन्होंने मुसअदा के भतीजे पर हमला किया, वो ख़ौफ़ज़दा होकर बाक़ी ऊँटों को छोड़कर भाग गया।

हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु ऊँटों को लेकर लौटे तो रसूलुल्लाह ﷺ तशरीफ़ लाते नज़र आए। रसूलुल्लाह ﷺ ने ऊँटों को साथ में देखकर फ़रमाया:
“अबू क़तादा! तुम्हारा चेहरा रोशन हो!”
इस पर उन्होंने कहा:
“ऐ अल्लाह के रसूल! आपका भी चेहरा रोशन रहे!”

इसके बाद आप ﷺ ने उनसे फ़रमाया:
“अल्लाह तुम्हारे अंदर, तुम्हारी औलाद में और तुम्हारी औलाद की औलाद में बरकत अता फ़रमाए!”

ऐसे में आप ﷺ की नज़र उनकी पेशानी पर पड़ी… वहाँ एक ज़ख़्म था और तीर का फल ज़ख़्म में ही रह गया था। रसूलुल्लाह ﷺ ने तीर का वो हिस्सा आहिस्ता से निकाल दिया, फिर उनके ज़ख़्म पर अपना लुआबे दहन लगाया और अपनी हथेली ज़ख़्म पर रख दी।

हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:
“क़सम है उस ज़ात की जिसने आपको नबूवत से सरफ़राज़ फ़रमाया, आप ﷺ ने जैसे ही ज़ख़्म पर हाथ रखा, तकलीफ़ बिलकुल ग़ायब हो गई!”

इसके बाद रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत अबू क़तादा रज़ियल्लाहु अन्हु को मुसअदा का घोड़ा और उसके हथियार अता फ़रमाए और उन्हें दुआ दी।

हज़रत अबू क़तादा और हज़रत सलमा बिन अक़वा रज़ियल्लाहु अन्हुमा के बारे में रसूलुल्लाह ﷺ ने इस मौक़े पर फ़रमाया:
“हमारे सवारों में सबसे बेहतरीन सवार अबू क़तादा हैं और हमारे पैदल मुजाहिदीन में सबसे बेहतरीन सलमा हैं!”

फिर रसूलुल्लाह ﷺ मदीना मुनव्वरा की तरफ़ रवाना हुए।

कुछ दिन बाद रसूलुल्लाह ﷺ ने एक ख़्वाब देखा—ये कि आप ﷺ अपने सहाबा किराम के साथ अमन की हालत में मक्का में दाख़िल हो रहे हैं। फिर उमरा के बाद आप ﷺ और सहाबा ने बाल मुंडवाए हैं और कुछ ने बाल कतरवाए हैं, और ये कि आप ﷺ बैतुल्लाह में दाख़िल हुए हैं। फिर आपने ﷺ बैतुल्लाह की चाबी ली और अरफ़ात में क़याम करने वालों के साथ क़याम फ़रमाया। इसी तरह, आप ﷺ और सहाबा ने बैतुल्लाह का तवाफ़ किया।

रसूलुल्लाह ﷺ ने अपना ये ख़्वाब सहाबा किराम को सुनाया। सब इस बशारत से बहुत ख़ुश हुए। फिर आप ﷺ ने सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम से इरशाद फ़रमाया:
“मेरा इरादा उमरा का है।”

ये सुनने के बाद सबने सफ़र की तैयारियाँ शुरू कर दीं। आख़िर एक रोज़ रसूलुल्लाह ﷺ उमरा के लिए मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए। उमरा का ऐलान आप ﷺ ने पहले ही करा दिया था, ताकि लोग इस क़ाफ़िले को हाजियों का क़ाफ़िला ही समझें और मक्का के लोग व आस-पास के लोग जंग के लिए न उठ खड़े हों। मुशरिकों और दूसरे दुश्मनों को पहले ही मालूम हो जाए कि आप ﷺ उमरा की नीयत से आ रहे हैं… और कोई और नीयत नहीं है।

रसूलुल्लाह ﷺ ने ज़ुल-हुलैफ़ा के मक़ाम पर एहराम बाँधा। पहले मस्जिद में दो रकअत नमाज़ अदा की… फिर मस्जिद से ही ऊँटनी पर सवार हुए… अक्सर सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने यहीं से एहराम बाँधा। रसूलुल्लाह ﷺ इस सफ़र पर ज़ी-क़ादा के महीने में रवाना हुए थे।

क़ाफ़िले के साथ क़ुर्बानी के जानवर भी थे। ज़ुल-हुलैफ़ा के मक़ाम पर आप ﷺ ने ज़ुहर की नमाज़ अदा फ़रमाई। जानवरों पर झोलें डाली गईं, ताकि पहचान हो जाए कि ये क़ुर्बानी के हैं। उनके कूहानों पर निशान लगाया गया—ये निशान ज़ख़्म लगाकर डाला जाता है। इस सफ़र में आप ﷺ के साथ 1,400 सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम थे।

चूँकि रसूलुल्लाह ﷺ उमरा की नीयत से रवाना हुए थे, इसलिए आप ﷺ और सहाबा के पास सिर्फ़ तलवारें थीं, और कोई हथियार नहीं था।

हज़ूर के कुछ मोजज़ात

सफ़र के दौरान एक मक़ाम पर पानी ख़त्म हो गया… सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम रसूलुल्लाह ﷺ के पास आए। उस वक़्त आप ﷺ के सामने पानी का एक बर्तन था, जिससे आप ﷺ वुज़ू फ़रमा रहे थे। आप ﷺ ने उनसे पूछा:
“क्या बात है?”
सहाबा ने बताया:
“आपके पास इस बर्तन में जो पानी है, उसके अलावा पूरे लश्कर में किसी के पास और पानी नहीं है।”

ये सुनकर आप ﷺ ने पानी के बर्तन में अपना मुबारक हाथ रख दिया। ज्यूँ ही आपने हाथ मुबारक पानी में रखा, आपकी उंगलियों से पानी इस तरह निकलने लगा जैसे बर्तन में चश्में फूट पड़े हों। एक सहाबी बयान करते हैं:
“मैंने रसूलुल्लाह ﷺ की उंगलियों से पानी के फ़व्वारे निकलते देखे!”

हज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम के लिए एक पत्थर से पानी का चश्मा फूट पड़ा था, लेकिन यहाँ नबी करीम ﷺ की उंगलियों से पानी जारी हो गया था। उलमा किराम फ़रमाते हैं कि ये वाक़िआ हज़रत मूसा अ़लैहिस्सलाम वाले वाक़िए से कहीं ज़्यादा हैरतअंगेज़ है… क्योंकि चश्में पहाड़ों और चट्टानों से ही निकलते हैं, इसलिए पत्थर से पानी जारी होना इतनी अजीब बात नहीं, जितनी कि रसूलुल्लाह ﷺ की मुबारक उंगलियों से पानी जारी होना अजीब है।

हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:
“ज्यूँ ही ये पानी का चश्मा फूटा, हम सब पीने लगे… हमने पिया भी, वुज़ू भी किया और अपने बर्तन भी भरे… अगर हम उस वक़्त एक लाख भी होते, तो भी पानी हमारे लिए काफ़ी हो जाता, जबकि उस वक़्त हमारी तादाद चौदह सौ थी!”

मुसलमानों का क़ाफ़िला अस्फ़ान के मक़ाम पर पहुँचा तो रसूलुल्लाह ﷺ के पास हज़रत बिशर बिन सुर्फ़ियान अ़तकी रज़ियल्लाहु अन्हु आए। आप ﷺ ने पहले ही उन्हें जासूस बनाकर मक्का की तरफ़ रवाना कर दिया था, क्योंकि आपकी नीयत अगरचे सिर्फ़ उमरा की थी, लेकिन क़ुरैश के बारे में मालूमात रखना ज़रूरी था।

हज़रत बिशर रज़ियल्लाहु अन्हु ने आकर बताया:
“ऐ अल्लाह के रसूल! क़ुरैश को इत्तिला मिल चुकी है कि आप मदीना मुनव्वरा से रवाना हो चुके हैं। देहातों में जो उनके इताअतगुज़ार लोग हैं, क़ुरैश ने उनसे भी मदद तलब की है। बनी सक़ीफ़ भी उनकी मदद करने पर आमादा हैं… और उनके साथ औरतें और बच्चे भी हैं। वो लोग मक्के से निकलकर ‘ज़ी-तुवै’ के मक़ाम तक आ गए हैं। उन्होंने आपस में अहद किया है कि वो आपको मक्के में दाख़िल नहीं होने देंगे।”

“दूसरी बात ये कि ख़ालिद बिन वलीद (जो उस वक़्त तक मुसलमान नहीं हुए थे) घुड़सवार दस्ते के साथ ‘क़ुराअ-ए-ग़मीम’ के मक़ाम तक आ चुके हैं। उनके दस्ते में दो सौ सवार हैं और वो आपके ख़िलाफ़ सफ़बंदी कर चुके हैं।”

ये इत्तिलाआत मिलने पर रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत अब्बाद बिन बिशर रज़ियल्लाहु अन्हु को हुक्म फ़रमाया कि वो मुसलमान घुड़सवारों के साथ आगे बढ़ें। ये आगे बढ़े और हज़रत ख़ालिद बिन वलीद के दस्ते के सामने पहुँच गए। उन्होंने भी सफ़बंदी कर ली।

नमाज़ का वक़्त हुआ तो रसूलुल्लाह ﷺ ने नमाज़ शुरू की। जब मुसलमान नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो कुछ मुशरिकों ने कहा:
“हमने एक अच्छा मौक़ा गँवा दिया! हम उस वक़्त इन पर हमला कर सकते थे, जब ये नमाज़ पढ़ रहे थे। हम उस वक़्त इन्हें आसानी से ख़त्म कर सकते थे!”

एक और मुशरिक ने कहा:
“कोई बात नहीं! एक और नमाज़ का वक़्त आ रहा है और नमाज़ इन लोगों को अपनी जान से भी ज़्यादा अज़ीज़ है। ज़ाहिर है, ये नमाज़ पढ़े बिना तो रहेंगे नहीं… सो हम उस वक़्त इन पर हमला करेंगे!”

नमाज़-ए-अस्र का वक़्त हुआ तो अल्लाह तआला ने हज़रत जिबरील अ़लैहिस्सलाम को रसूलुल्लाह ﷺ के पास भेज दिया। वो सलातुल-ख़ौफ़ की आयत लेकर आए थे, जिसमें अल्लाह तआला ने फ़रमाया:

“और जब आप उनके दरमियान हों और आप उन्हें नमाज़ पढ़ाना चाहें, तो यूँ करना चाहिए कि लश्कर का एक गिरोह तो आपके साथ खड़ा हो जाए और वो लोग हथियार ले लें। फिर जब ये लोग सज्दा कर चुके तो ये आपके पीछे आ जाएं और दूसरा गिरोह, जिसने नमाज़ नहीं पढ़ी, आगे आकर नमाज़ पढ़ ले और ये अपने बचाव का सामान—हथियार वग़ैरह—ले लें।” (सूरह अन-निसा)

चुनांचे इसी तरीक़े से नमाज़ अदा की गई। ये नमाज़-ए-ख़ौफ़ थी, यानी जब दुश्मन से मुक़ाबला हो तो आधा लश्कर पीछे हटकर दो रकअत अदा कर ले और वापस अपनी जगह पर आ जाए, फिर बाक़ी जो लोग रह गए हैं, अब वो जाकर दो रकअत अदा करें। इस नमाज़ की अदायगी का तफ़्सीली तरीक़ा फिक़्ह की किताबों में देखा जा सकता है।

जब मुसलमानों ने अस्र की नमाज़ इस तरीक़े से अदा की तो मुशरिक बोल उठे:
“अफ़सोस! हमने उनके ख़िलाफ़ जो सोचा था, उस पर अमल न कर सके!”

उधर रसूलुल्लाह ﷺ को इत्तिला मिली कि क़ुरैश-ए-मक्का ने आपको बैतुल्लाह की ज़ियारत से रोकने का फ़ैसला कर लिया है, तो आपने सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम से इस बारे में मशवरा किया और फ़रमाया:
“लोगो! मुझे मशवरा दो। क्या तुम ये चाहते हो कि हम बैतुल्लाह की ज़ियारत का फ़ैसला कर लें और जो भी हमें इससे रोके, उससे जंग करें?”

आप ﷺ की ये बात सुनकर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
“ऐ अल्लाह के रसूल! आप सिर्फ़ बैतुल्लाह की ज़ियारत का इरादा फ़रमाकर निकले हैं, आपका मक़सद जंग और ख़ून-रेज़ी हरगिज़ नहीं। इसलिए आप इसी इरादे के साथ आगे बढ़ते रहें। अगर कोई हमें इस ज़ियारत से रोकेगा, तो उससे जंग करेंगे!”

हज़रत मक़्दाद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
“ऐ अल्लाह के रसूल! हम आपसे वो नहीं कहेंगे जो बनी इस्राईल ने मूसा अ़लैहिस्सलाम से कहा था कि ‘तुम और तुम्हारा रब जाओ और जंग करो, हम तो यहाँ बैठे हैं।’ बल्कि हम आपसे कहते हैं कि ‘आप और आपका रब जंग करें, हम भी आपके साथ जंग करेंगे!’ और ऐ अल्लाह के रसूल! अल्लाह की क़सम! अगर आप हमें लेकर ‘बरक-ए-ग़माद’ भी जाना चाहें, तो हम आपके साथ होंगे। हम में से एक शख़्स भी पस-ओ-पेश नहीं करेगा!” (बरक-ए-ग़माद, मदीना मुनव्वरा से बहुत दूर-दराज़ के एक मक़ाम का नाम है।)

इन दोनों हज़रात की राय लेने के बाद आप ﷺ ने फ़रमाया:
“बस तो फिर अल्लाह का नाम लेकर आगे बढ़ो!”

चुनांचे मुसलमान आगे रवाना हुए, यहाँ तक कि हुदैबिया के मक़ाम पर पहुँचे। इस जगह रसूलुल्लाह ﷺ की ऊँटनी ख़ुद-ब-ख़ुद बैठ गई। लोगों ने उठाना चाहा, लेकिन वो न उठी। लोगों ने कहा:
“क़स्वा ऊँटनी ज़िद पर आ गई है!”

रसूलुल्लाह ﷺ ने ये सुनकर इरशाद फ़रमाया:
“ये ज़िद नहीं कर रही और न ही ज़िद करने की इसकी आदत है, बल्कि इसे उस ज़ात ने रोक लिया है, जिसने अबरहा के लश्कर को मक्का में दाख़िल होने से रोक दिया था!”

मतलब ये था कि क़स्वा ऊँटनी ख़ुद नहीं रुकी, अल्लाह के हुक्म से रुकी है। रसूलुल्लाह ﷺ ने इस मक़ाम पर क़ियाम करने का हुक्म दिया। इस पर सहाबा ने अर्ज़ किया:
“अल्लाह के रसूल! यहाँ पानी नहीं है?”

ये सुनकर रसूलुल्लाह ﷺ ने अपने तरकश से एक तीर निकालकर हज़रत नाजिया बिन जुंदुब रज़ियल्लाहु अन्हु को दिया, जो आपके क़ुर्बानी के जानवरों के नज़रान थे।

रसूलुल्लाह ﷺ ने हुक्म दिया कि ये तीर किसी गड्ढे में गाड़ दो। तीर एक ऐसे गड्ढे में गाड़ दिया गया जिसमें थोड़ा सा पानी मौजूद था। फ़ौरन ही उसमें से मीठे पानी का चश्मा उबलने लगा, यहाँ तक कि तमाम लोगों ने पानी पी लिया, जानवरों को भी पानी पिलाया, फिर सब जानवर उसी गड्ढे के गर्द बैठ गए।

जब तक तीर उस गड्ढे में लगा रहा, उसमें से पानी उबलता रहा…

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