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Jewish connection to the Temple of Solomon in Hindi
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हैकल-ए-सुलेमानी दरअसल एक मस्जिद या उपासना स्थल था, जो हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हुक्म से जिन्नों से तामीर करवाया था ताकि लोग उसकी तरफ़ रुख़ करके या उसके अंदर इबादत करें।
हैकल-ए-सुलेमानी की तामीर से पहले
तामीर से पहले यहूदियों के यहां किसी भी बक़ायदा हैकल का न कोई वजूद था और न ही इसका कोई तसव्वुर। इस क़ौम की बडुओं वाली खाना-बदोश ज़िंदगी थी। इनका हैकल या मअबद एक ख़ेमे में था।
इस ख़ेमे में **ताबूत-ए-सकीना** रखा होता था, जिसकी तरफ़ यह रुख़ करके इबादत किया करते थे। रिवायत के मुताबिक़ यह ताबूत जिस लकड़ी से तैयार किया गया था, उसे “शमशाद” कहते हैं। और इसे जन्नत से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के पास भेजा गया था। यह ताबूत नस्ल दर नस्ल अंबिया से होकर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम तक पहुंचा था।
इस मुक़द्दस संदूक़ में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का असा (डंडा), मन्न-ओ-सलवा और दूसरे अंबिया की यादगार चीजें थीं। यहूदी इस ताबूत की बरकत से हर मुसीबत और परेशानी का हल निकाला करते थे। मुख़्तलिफ़ क़ौमों के साथ जंग के दौरान इस संदूक़ को लश्कर के आगे रखा करते थे और इसकी बरकत से दुश्मन पर फ़तह पाते थे।
हज़रत दाऊद और हैकल का तसव्वुर
जब हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम को बादशाहत अता हुई तो आपने अपने लिए एक बाक़ायदा महल तामीर करवाया। एक दिन आपके ज़ेहन में ख़्याल आया कि मैं तो महल में रहता हूं, जबकि मेरी क़ौम का मअबद आज भी एक ख़ेमे में रखा हुआ है।
जैसा कि बाइबिल में लिखा है:
“बादशाह ने कहा, ‘मैं तो देवदार की शानदार लकड़ी से बने हुए एक महल में रहता हूं, मगर ख़ुदावंद का ताबूत एक ख़ेमे में पड़ा हुआ है।’ (2 सैमुएल 7:2)”
इसलिए आपने हैकल की तामीर का इरादा किया। इसके लिए एक जगह का चुनाव किया गया। माहिरीन ने आपको मशविरा दिया कि इस हैकल की तामीर आपके दौर में मुमकिन नहीं है। आप इसकी ज़िम्मेदारी अपने बेटे हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को दे दें।
हज़रत सुलेमान और हैकल की तामीर
हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम (970 क़ब्ल मसीह – 930 क़ब्ल मसीह) ने अपने दौर-ए-हुकूमत के चौथे साल में इसकी तामीर का बाक़ायदा आग़ाज़ किया।
आज इसकी बनावट और मज़बूती से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यह तामीर इंसानों के बस की बात नहीं थी। इतने भारी और बड़े पत्थरों को उन जिन्नों की ताक़त से उठाया गया, जिन पर हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की हुकूमत थी।
हैकल की पहली तामीर के दौरान ही हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम का इंतिक़ाल हो गया। लेकिन जिन्नात को इसका इल्म न हो सका, और उन्होंने हैकल की तामीर मुकम्मल कर दी।
जैसा कि मशहूर वाक़िया है कि हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की रूह अल्लाह ने इबादत के दौरान ही क़ब्ज़ कर ली। लेकिन इसकी तदबीर इस तरह बनी कि आपने एक लकड़ी पर सिर और कमर रखकर इबादत में मशग़ूल होने की सूरत बना ली।
लकड़ी के सहारे से ऐसा लगता था कि आप अब भी इबादत कर रहे हैं, जबकि आपका इंतिक़ाल हो चुका था।
बहरहाल यह हैकल, मअबद या मस्जिद बहुत आलिशान और वसी-ओ-अरीज़ तामीर की गई थी।
हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम की वफात के बाद इसमें तीन हिस्से कर दिए गए थे। बाहरी हिस्से में आम लोग इबादत किया करते, इससे अगले हिस्से में उलमा, जो कि अंबिया की औलाद में से होते, उनकी इबादत की जगह थी। इससे अगले हिस्से में, जिसे बेहद मुक़द्दस समझा जाता था, उसमें ताबूत-ए-सकीना रखा गया था।
इस हिस्से में किसी को भी दाख़िल होने की इजाज़त नहीं थी, सिवाय सबसे बड़े आलिम (पेश इमाम) के।
वक़्त गुजरता रहा: इस दौरान बनी इस्राईल में पैग़ंबर मबऊस होते रहे। यह क़ौम बद से बदतर होती रही। यह किसी भी तरह अपने गुनाहों से तौबा करने या उन्हें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। यह एक तरफ़ इबादतें किया करते, दूसरी तरफ़ अल्लाह के अहकाम की सरीह ख़िलाफ़वर्ज़ी भी करते। उनकी इस दोहरी रविश से अल्लाह पाक नाराज़ हो गया।
उनके पास बड़ी तादाद में अंबिया भी भेजे गए, लेकिन यह क़ौम सुधरने को तैयार न थी। यहां तक कि उनकी शक्लें बदलकर बंदर और सुअर तक बनाई गईं, लेकिन यह गुनाहों से बाज़ न आए। तब अल्लाह ने इन पर लानत कर दी।
हैकल की तबाही
586 क़ब्ल मसीह में बख़्त नस्र ने उनके मुल्क पर हमला किया। उनका हैकल मुकम्मल तौर पर तबाह-ओ-बर्बाद कर दिया। हैकल में से ताबूत-ए-सकीना निकाला। छह लाख के क़रीब यहूदियों को क़त्ल किया। तकरीबन दो लाख यहूदियों को क़ैद किया और अपने साथ बाबुल (इराक) ले गया। शहर से बाहर यहूदी ग़ुलामों की एक बस्ती तामीर की, जिसका नाम तेल अबीब रखा।
70 साल तक हैकल सफ़हा-ए-हस्ती से मिटा रहा। दूसरी तरफ़ बख़्त नस्र ने ताबूत-ए-सकीना की शदीद बे-हरमती की और इसे कहीं फेंक दिया। कहा जाता है कि इस हरकत का अज़ाब उसे और उसके मुल्क को इस तरह मिला कि सन 539 क़ब्ल मसीह में ईरान के बादशाह सायरस ने बाबुल (इराक) पर हमला कर दिया। बाबुल के वली अहद को शिकस्त-ए-फ़ाश देकर बाबली सल्तनत का मुकम्मल ख़ातिमा कर दिया।
सायरस का इंसाफ़
सायरस एक नरम दिल और इंसाफ़पसंद हुक्मरान था। उसने तेल अबीब के तमाम क़ैदियों को आज़ाद करके उन्हें वापस यरुशलम जाने की इजाज़त दे दी। और साथ में उन्हें हैकल की नए सिरे से तामीर की भी इजाज़त दे दी। साथ ही उसकी तामीर के लिए हर तरह की मदद फ़राहम करने का वादा भी किया।
हैकल की दूसरी तामीर
चुनांचे, हैकल की दूसरी तामीर 537 क़ब्ल मसीह में शुरू हुई। लेकिन तामीर का काम अंजाम देने वालों को अपने हमवतन दुश्मनों की इतनी ज़्यादा मुख़ालिफ़त का सामना करना पड़ा कि तामीराती काम जल्द ही अमली तौर पर बंद हो गया।
दारा (डेरियस) का दौर
डेरियस-ए-अव्वल के दौर-ए-हुकूमत तक यह काम मुदाख़लत ही का शिकार रहा। उसकी हुकूमत के दूसरे साल में हज़रत ज़करिया अलैहिस्सलाम ने वहां के गवर्नर ज़रूबाबिल और सरदार काहिन योशुआ (योशुआ) की हौसला-अफ़ज़ाई की कि वह हैकल की तामीर-ए-सानी की दोबारा कोशिश करें।
तामीर मुकम्मल
उन्होंने मुसबित रद्द-ए-अमल का इज़हार किया। और पूरी क़ौम की पुरजोर ताईद और ईरानी हुक्काम और बादशाह की इजाज़त से हैकल-ए-सानी अपनी इज़ाफ़ी तामीरात समेत साढ़े चार साल के अरसे में 520-515 क़ब्ल मसीह मुकम्मल हुआ।
ताबूत-ए-सकीना का ग़ायब होना
लेकिन इस बार इसमें ताबूत-ए-सकीना नहीं मिल सका। इसके बारे में आज तक मालूम नहीं हो सका कि बख़्त नस्र ने इसका क्या किया।
कुछ लोगों का कहना है कि इस मुकद्दस संदूक़ की मज़ीद तौहीन से बचाने के लिए इसे अल्लाह के हुक्म से किसी महफूज़ मकाम पर मोज़ज़ाना तौर पर छिपा दिया गया, जिसका किसी इंसान को इल्म नहीं।
लेकिन यहूदी इसकी तलाश में पूरे कुर्रा-ए-अर्ज़ (पूरी ज़मीन) को खोद डालना चाहते हैं।
हैकल कितनी बार तामीर हुआ?
एक दिलचस्प बात यह है कि आम तौर पर तारीख़दान हैकल की दो दफ़ा तामीर और दो दफ़ा तबाही का ज़िक्र करते हैं। लेकिन तारीख़ के मुताले से यह मालूम होता है कि हैकल तीन बार तामीर किया गया।
बादशाह हीरोडेस, जो कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश से चंद साल पहले का बादशाह था, उसने जब इसकी बेहतर तरीके से तामीर की नीयत की, तो यहूदियों के दिल में ख़ौफ पैदा हुआ कि अगर इसे नए सिरे से तामीर के लिए गिराया गया, तो दुबारा तामीर नहीं होगा।
हीरोडेस ने उन्हें यह कहकर बहलाया कि वह सिर्फ़ इसकी मरम्मत कराना चाहता है, इसे गिराना नहीं। चुनांचे, सन 19 क़ब्ल मसीह में उसने हैकल के एक तरफ़ के हिस्से को गिराकर उसे तब्दीली के साथ और कुछ वसीअ करके तामीर करवाया। यह तरीका कामयाब रहा।
तबाही
कुछ अरसे बाद हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का ज़ुहूर हुआ। अल्लाह के इस रसूल पर यहूदियों ने एक बार फिर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़े। चूंकि वह अपने मसीहा का इंतज़ार कर रहे थे, जो दुबारा आकर उन्हें पहली जैसी शान-ओ-शौकत अता करता। और फिर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को सूली पर चढ़ाने का वाक़िया पेश आया। आपके सूली दिए जाने के 70 साल बाद, एक बार फिर यहूदियों पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ।
टाइटस का ज़ुल्म
इस बार इस अज़ाब का नाम टाइटस था। यह रोमी जनरल, बाबुल के बादशाह बख़्त नस्र से भी ज़्यादा ज़ालिम साबित हुआ। उसने एक दिन में लाखों यहूदियों को कत्ल कर दिया। उसने हीरोडेस के बनाए हुए अज़ीम-ओ-शान हैकल की ईंट से ईंट बजा दी। और यहूदियों को हमेशा के लिए यरुशलम से निकाल बाहर किया। यहूदी पूरी दुनिया में बिखर कर और रुसवा होकर रह गए।
कम-ओ-बेश अठारह-उन्नीस सौ साल तक भटकने के बाद, ब्रिटेन ने जब फिलिस्तीन पर कब्जा किया, तो साथ ही एक नाजायज़ बच्चा इज़राइल को फिलिस्तीन में जन्म दे दिया। और यूं, सदियों से धक्के खाने वाली क़ौम को एक बार फिर इस मुल्क इज़राइल में इकट्ठा होकर रहने की इजाज़त मिल गई।
यहूदियों की गंदी फितरत
लेकिन यह क़ौम अपनी हज़ारों साल पुरानी गंदी फितरत से बाज़ न आई। यह ब्रिटेन के जन्म दिए हुए इज़राइल तक महदूद न रहे। एक बार फिर हमसाया मुल्कों के लिए अपनी फितरत से मजबूर होकर मुसीबत बनने लगे। 1967 की जंग: 5 जून 1967 को इसने सीरिया की गोलन की पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। 1968 में जॉर्डन के पश्चिमी किनारे पर काबिज़ हो गए। इसी साल मिस्र के इलाके पर भी कंट्रोल कर लिया।
यहूदियों की साजिशें
आज इस क़ौम की शरारतें देखकर अंदाज़ा होता है कि यह आज से दो-तीन हजार साल पहले भी किस क़दर साज़िशी रहे होंगे। जिसकी वजह से अल्लाह ने इन पर लानत कर दी थी।
मुसलमानों की कमजोरी
मुसलमान मुल्कों की बेज़मीरी और बुज़दिली की वजह से अब इसने पूरी दुनिया के मुसलमान मुल्कों में आग लगा रखी है। अब इनका अगला मिशनजल्द-से-जल्द इसी हैकल की तामीर है। हैकल का मकसद और इस हैकल में तख़्त-ए-दाऊद और ताबूत-ए-सकीना को दुबारा रखना है, ताकि एक बार फिर यह अपने मसाया (यहूदी ज़ुबान का लफ्ज़) मसीहा के आने पर पूरी दुनिया पर अपनी हुकूमत क़ायम कर सकें। यह काम यह बहुत तेज़ी से कर रहे हैं।
हैकल और जंग
इस हैकल की तामीर के नतीजे में यह पूरी दुनिया जंग की आग में लिपट जाएगी। अमेरिका के प्रेज़िडेंट डोनाल्ड ट्रंप का इज़राइल के दार-उल-ख़लाफ़ा की तब्दीली का ऐलान भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है।
लेकिन मुसलमान क़ौमों को कोई परवाह नहीं। आप अंदाज़ा कीजिए, यहूदियों को जिस बस्तीतेल अबीब में बख़्त नस्र ने क़ैदी बनाकर रखा था, वह उसे आज तक नहीं भूले। उन्होंने इज़राइल बनाने के बाद अपने एक शहर का नाम तेल अबीब रख लिया।
जबकि हम मुसलमान इस मस्जिद-अक्सा को भी भूल चुके हैं, जहां हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिआराज़ का सफ़र शुरू किया था।
यहूदी आज तक बार-बार गिराए गए हैकल को नहीं भूले। यहां तक कि इसमें रखे ताबूत-ए-सकीना की तलाश में पूरी दुनिया को खोद देना चाहते हैं। जबकि हम को यह भी याद नहीं कि इराक में कितने अंबिया-ओलिया के मज़ारातपिछले कुछ अरसे में बम लगाकर शहीद कर दिए गए हैं।
यह काम उस तंज़ीम दाइश ने किया है, जिसके ताने-बाने इज़राइल से मिलते हैं। जिनके लीडर अबू बकर बग़दादी का बयान था कि
“खुदा हमें इज़राइल के खिलाफ जिहाद का हुक्म नहीं देता।”
इस तंज़ीम की सारी तवज्जोह सिर्फ़ मुसलमानों को मारने में ही लगी रही। अब तक है। कभी मक्का और मदीना पर हमला करने की धमकियां देते हैं। और कभी इंतिशार फैलाने के लिए मुसलमान मुल्कों में बम धमाके करते हैं।
