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Huzur ki Gustakhiyan | Prophet Muhammad History in Hindi Part 21
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Seerat e Mustafa Qist 21
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Table of Contents
क़बीला ज़ुबैद के आदमी की फ़रियाद
एक दिन हज़रत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने कुछ सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम के साथ मस्जिदे हराम में तशरीफ़ फरमा थे। उसी दौरान क़बीला ज़ुबैद का एक शख़्स वहां आया। उस वक़्त क़ुरैशे मक्का भी वहां मजमा लगाए बैठे थे। क़बीला ज़ुबैद का वह शख़्स उनके क़रीब गया और इधर-उधर घूमने लगा। फिर उसने कहा:
“ऐ क़ुरैश! कोई शख़्स कैसे तुम्हारे इलाक़े में दाख़िल हो सकता है और कोई व्यापारी कैसे तुम्हारी सरज़मीन पर आ सकता है जब तुम हर आने वाले पर ज़ुल्म करते हो?”
यह कहते हुए जब वह उस जगह पहुंचा जहां आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ फरमा थे, तो आपने उससे फ़रमाया:
“तुम पर किसने ज़ुल्म किया?”
उसने बताया:
“मैं अपने ऊंटों में से तीन बेहतरीन ऊंट बेचने के लिए लाया था, मगर अबू जहल ने इन तीनों ऊंटों की असली क़ीमत का सिर्फ़ एक तिहाई क़ीमत लगाई। और ऐसा उसने जानबूझकर किया, क्योंकि वह जानता है कि वह अपनी क़ौम का सरदार है। उसकी लगाई हुई क़ीमत से ज़्यादा रकम कोई नहीं लगाएगा, मतलब यह कि अब मुझे वे ऊंट इतनी कम क़ीमत पर बेचना पड़ेंगे। यह ज़ुल्म नहीं तो और क्या है? मेरा व्यापार का यह सफ़र बेकार चला जाएगा।”
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसकी पूरी बात सुनकर फ़रमाया:
“तुम्हारे ऊंट कहां हैं?”
उसने बताया:
“यही ख़ज़ूरा के मुक़ाम पर हैं।”
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उठे, अपने सहाबा को साथ लिया और ऊंटों के पास पहुंचे। आपने देखा कि ऊंट वाकई बहुत उम्दा थे। आपने उससे उनका भाव किया और आख़िरकार खुशी से सौदा तय हो गया। आपने वे ऊंट उससे ख़रीद लिए। फिर आपने उनमें से दो ऊंट, जो सबसे अच्छे थे, बेच दिए और उनकी क़ीमत बेवा औरतों में तक़सीम कर दी।
वहीं बाज़ार में अबू जहल बैठा था। उसने यह सौदा होते देखा, लेकिन एक लफ़्ज़ भी न बोल सका। आप उसके पास गए और फ़रमाया:
“ख़बरदार, अम्र (अबू जहल का असली नाम)! अगर तुमने आइंदा ऐसी हरकत की, तो मैं बहुत सख़्ती से पेश आऊंगा।”
यह सुनते ही वह डरते हुए बोला:
“मोहम्मद! मैं आइंदा ऐसा नहीं करूंगा… मैं आइंदा ऐसा नहीं करूंगा।”
इसके बाद हज़रत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां से लौट आए। रास्ते में उमय्या बिन ख़ल्फ़ अबू जहल से मिला। उसके साथ कुछ और लोग भी थे। उन्होंने अबू जहल से पूछा:
“तुम तो मोहम्मद के हाथों बहुत रुसवा होकर आ रहे हो, ऐसा मालूम होता है कि या तो तुम उनकी पैरवी करना चाहते हो या उनसे ख़ौफ़ज़दा हो गए हो?”
इस पर अबू जहल ने कहा:
“मैं हरगिज़ मोहम्मद की पैरवी नहीं कर सकता, लेकिन जो तुमने मेरी कमज़ोरी देखी है, उसकी वजह यह है कि जब मैंने मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को देखा, तो उनके दाएं-बाएं बहुत सारे आदमी नज़र आए। उनके हाथों में नेज़े और भाले थे, और वे उन्हें मेरी तरफ़ लहरा रहे थे। अगर मैं उस वक़्त उनकी बात न मानता, तो वे सब मुझ पर टूट पड़ते।”
यतीम का हक़ वापस दिलाना
अबू जहल एक यतीम का सरपरस्त बना, फिर उसका सारा माल ग़ज़ब करके उसे निकाल बाहर किया। वह यतीम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास अबू जहल के ख़िलाफ़ फ़रियाद लेकर आया। हज़रत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस यतीम को लेकर अबू जहल के पास पहुंचे और फ़रमाया:
“इस यतीम का माल वापस कर दो।”
अबू जहल ने फ़ौरन माल उस लड़के के हवाले कर दिया। मुशरिकों को जब यह बात मालूम हुई, तो वे बहुत हैरान हुए। उन्होंने अबू जहल से कहा:
“क्या बात है? तुम इतने बुज़दिल कब से हो गए कि फ़ौरन ही माल लौटा दिया?”
इस पर उसने कहा:
“तुम्हें नहीं मालूम! मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के दाएं-बाएं मुझे बहुत ख़ौफ़नाक हथियार नज़र आए थे। मैं उनसे डर गया। अगर मैं इस यतीम का माल न लौटाता, तो वे उन हथियारों से मुझे मार डालते।”
अराशी का इंसाफ़
क़बीला ख़ुशअम की एक शाख़ अराशा थी। उसके एक आदमी से अबू जहल ने कुछ ऊंट ख़रीदे, लेकिन क़ीमत अदा न की। उसने क़ुरैश के लोगों से फ़रियाद की। उन लोगों ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मज़ाक़ उड़ाने का प्रोग्राम बना लिया। उन्होंने उस अराशी से कहा:
“तुम मोहम्मद के पास जाकर फ़रियाद करो।”
ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था कि उनका ख़याल था कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू जहल का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
अराशी नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास गया। आपने फ़ौरन उसे साथ लिया और अबू जहल के मकान पर पहुंच गए। दरवाज़े पर दस्तक दी। अबू जहल ने अंदर से पूछा:
“कौन है?”
आपने फ़रमाया:
“मोहम्मद!”
अबू जहल फ़ौरन बाहर निकल आया। आपका नाम सुनते ही उसका चेहरा ज़र्द पड़ चुका था। आपने उससे फ़रमाया:
“इस शख़्स का हक़ फ़ौरन अदा करो।”
उसने कहा:
“बहुत अच्छा! अभी लाया।”
उसने उसी वक़्त उसका हक़ अदा कर दिया। वह आदमी वापस उसी क़ुरैशी मजलिस में आया और उनसे बोला:
“अल्लाह तआला उन्हें (यानि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जज़ाए ख़ैर दे। अल्लाह की क़सम! उन्होंने मेरा हक़ मुझे दिलवा दिया।”
मुशरिकों की हैरानी
मुशरिकों ने भी अपना एक आदमी उनके पीछे भेजा था और उसे कहा था कि वह देखता रहे कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क्या करते हैं। जब वह वापस आया, तो उन्होंने उससे पूछा:
“हां! तुमने क्या देखा?”
उसने जवाब दिया:
“मैंने एक बहुत ही अजीब और हैरतअंगेज़ बात देखी है।”
अल्लाह की क़सम! जैसे ही मुहम्मद ने उसके दरवाज़े पर दस्तक दी, वह तुरंत बाहर निकला, उसका चेहरा ऐसा था जैसे उसमें जान ही न हो और वह ज़र्द पड़ गया था। मुहम्मद ने उससे कहा कि उसका हक़ अदा कर दे, वह बोला, बहुत अच्छा। यह कहकर वह अंदर गया और तुरंत उसका हक़ लाकर दे दिया।
कुरैश के सरदार यह सब सुनकर बहुत हैरान हुए। उन्होंने अबू जहल से कहा:
“तुम्हें शर्म नहीं आती? जो हरकत तुमने की, ऐसी तो हमने कभी नहीं देखी।”
इस पर अबू जहल ने जवाब दिया:
“तुम क्या जानो! जैसे ही मुहम्मद ने मेरे दरवाज़े पर दस्तक दी और मैंने उनकी आवाज़ सुनी, मेरा दिल ख़ौफ़ और दहशत से भर गया। फिर जब मैं बाहर आया तो मैंने देखा कि एक बहुत ही लंबा-चौड़ा ऊँट मेरे सिर पर खड़ा है। मैंने आज तक इतना बड़ा ऊँट कभी नहीं देखा था। अगर मैं उनकी बात मानने से इनकार करता तो वह ऊँट मुझे खा जाता।”
नबी करीम ﷺ का मज़ाक उड़ाने वाले लोग
कुछ मुश्रिक ऐसे भी थे जो हमेशा आप ﷺ का मज़ाक उड़ाते थे। अल्लाह तआला ने उनके बारे में इरशाद फ़रमाया:
“ये लोग जो आप पर हँसते हैं और अल्लाह के सिवा दूसरों को माबूद मानते हैं, हम आपके लिए इनसे काफ़ी हैं।” (सूरतुल-हिज्र, आयत 95)
उन मज़ाक उड़ाने वालों में अबू जहल, अबू लहब, अक़बा बिन अबी मुऐत, हुक्म बिन आस बिन उमय्या (जो हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु का चाचा था) और आस बिन वाइल शामिल थे।
अबू लहब की हरकतों में से एक यह थी कि वह नबी करीम ﷺ के दरवाज़े पर गंदगी डाल जाया करता था। एक दिन जब वह यही हरकत करके जा रहा था तो हज़रत हम्ज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने देख लिया। उन्होंने वह गंदगी उठाकर फ़ौरन अबू लहब के सिर पर डाल दी।
इसी तरह अक़बा बिन अबी मुऐत भी नबी करीम ﷺ के दरवाज़े पर गंदगी डाल जाया करता था। एक दिन उसने आपके मुबारक चेहरे की तरफ़ थूका, लेकिन वह थूक पलटकर उसी के चेहरे पर आ गिरा। जिस जगह वह थूक पड़ा, वहाँ कोढ़ जैसा निशान बन गया।
एक बार अक़बा बिन अबी मुऐत सफर से वापस आया तो उसने एक बड़ी दावत रखी और तमाम कुरैशी सरदारों को बुलाया। उसने नबी करीम ﷺ को भी बुलाया, लेकिन जब खाना परोसा गया तो आपने खाने से इनकार कर दिया और फ़रमाया:
“मैं तब तक तुम्हारा खाना नहीं खाऊँगा जब तक कि तुम यह न कहो कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं।”
क्योंकि मेहमाननवाज़ी अरब वालों की खास पहचान थी और वे मेहमान को किसी भी कीमत पर नाराज़ नहीं करते थे, इसलिए अक़बा ने कह दिया:
“मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।”
यह सुनकर नबी करीम ﷺ ने खाना खा लिया। खाने के बाद सब लोग अपने घर चले गए।
अक़बा बिन अबी मुऐत, उबी बिन ख़लफ़ का दोस्त था। जब लोगों ने उबी बिन ख़लफ़ को बताया कि अक़बा ने कलिमा पढ़ लिया है, तो वह तुरंत उसके पास आया और कहा:
“अक़बा! क्या तुम बेदीन हो गए हो?”
अक़बा ने जवाब दिया:
“ख़ुदा की क़सम! मैं बेदीन नहीं हुआ। बात बस इतनी है कि एक शरीफ़ आदमी मेरे घर आया और उसने कह दिया कि जब तक मैं तौहीद की गवाही नहीं दूँगा, वह मेरे यहाँ खाना नहीं खाएगा। मुझे यह बुरा लगा कि कोई मेरे घर आए और खाना खाए बिना चला जाए। इसलिए मैंने वे अल्फ़ाज़ कह दिए और उसने खाना खा लिया, लेकिन सच यही है कि मैंने वह कलिमा दिल से नहीं कहा था।”
यह सुनकर उबी बिन ख़लफ़ संतुष्ट नहीं हुआ और बोला:
“मैं तब तक न अपनी सूरत तुम्हें दिखाऊँगा, न तुम्हारी सूरत देखूँगा, जब तक तुम मुहम्मद का मज़ाक न उड़ाओ, उनके चेहरे पर न थूको और उनके चेहरे पर न मारो।”
यह सुनकर अक़बा ने कहा…
“यह मेरा तुमसे वादा है।”
उक़बा बिन अबी मुइत का घिनौना काम
इसके बाद जब हुज़ूर नबी करीम ﷺ इस बदबख़्त के सामने आए, तो उसने आपका मज़ाक उड़ाया और आपके मुबारक चेहरे पर थूकने की कोशिश की। लेकिन उसका थूक आपके चेहरे तक नहीं पहुँचा, बल्कि पलटकर उसी के चेहरे पर गिरा। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे आग का कोई अंगारा उसके चेहरे पर आ गिरा हो। उसके चेहरे पर जलने का निशान पड़ गया, जो मरते दम तक रहा।
इसी उक़बा बिन अबी मुइत के बारे में सूरह अल-फ़ुरक़ान की आयत 37 नाज़िल हुई:
“जिस दिन ज़ालिम अपने हाथों को काट-काट कर खाएगा और कहेगा: काश! मैं भी रसूल के साथ दीने हक़ पर चल पड़ता।”
इस आयत की तफ़्सीर में लिखा है:
“जब ज़ालिम शख़्स जहन्नम में जाएगा, तो अपनी कोहनी तक का एक हाथ दाँतों से काटेगा, फिर दूसरे हाथ को काटकर खाएगा। जब दूसरा हाथ खा चुका होगा, तो पहला फिर उग आएगा और वह उसे काटने लगेगा। इसी तरह यह सिलसिला चलता रहेगा।”
हुक्म बिन आस आस और बिन वाइल की बदबख़्ती
इसी तरह हुक्म बिन आस भी नबी करीम ﷺ का मज़ाक उड़ाया करता था। एक दिन जब आप ﷺ चल रहे थे, तो वह आपके पीछे-पीछे चल पड़ा और आपके मज़ाक के लिए मुँह और नाक से अजीब-अजीब आवाज़ें निकालने लगा।
आप ﷺ चलते-चलते उसकी तरफ़ मड़े और फ़रमाया:
“तू ऐसा ही हो जा।”
इसके बाद वह ऐसा हो गया कि उसके मुँह और नाक से वैसी ही आवाज़ें निकलती रहीं। एक महीने तक वह बेहोशी की हालत में पड़ा रहा, और मरने तक उसके मुँह और नाक से वही अजीब आवाज़ें आती रहीं।
इसी तरह आस बिन वाइल भी नबी करीम ﷺ का मज़ाक उड़ाया करता था। वह कहता था:
“मुहम्मद अपने आप को और अपने साथियों को धोखा दे रहे हैं कि वे मरने के बाद फिर से ज़िंदा किए जाएँगे! ख़ुदा की क़सम, हमारी मौत बस समय के गुज़रने और कालचक्र के कारण आती है।”
हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत जवाब
आस बिन वाइल का एक और वाक़िया यह है कि हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में लोहार का काम करते थे और तलवारें बनाते थे। उन्होंने आस बिन वाइल को कुछ तलवारें बेची थीं, जिनकी क़ीमत उसने अभी तक अदा नहीं की थी।
जब हज़रत ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी रकम लेने के लिए गए, तो आस बिन वाइल ने उनसे कहा:
“ख़ब्बाब! तुम मुहम्मद के धर्म पर चलते हो, क्या वे यह दावा नहीं करते कि जन्नत वालों को सोना, चाँदी, कीमती कपड़े, नौकर और संतान उनकी इच्छा के अनुसार मिलेंगे?”
हज़रत ख़ब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
“हाँ! यही बात है।”
इस पर आस बिन वाइल ने उनसे कहा:
“मैं तब तक तुम्हारा क़र्ज़ नहीं चुकाऊँगा जब तक कि तुम मुहम्मद के दीन का इनकार नहीं कर देते।”
हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया:
“अल्लाह की क़सम! मैं मुहम्मद ﷺ का दीन कभी नहीं छोड़ सकता।”
अस्वद बिन यग़ूथ का तकब्बुर
इसी तरह नबी करीम ﷺ का एक और मज़ाक उड़ाने वाला अस्वद बिन यग़ूथ था। यह आपका ममेरा भाई था। जब भी मुसलमानों को देखता तो अपने साथियों से कहता:
“देखो! तुम्हारे सामने ज़मीन के वे बादशाह आ रहे हैं, जो क़ैसर और किसरा की सल्तनतों के वारिस बनने वाले हैं!”
यह बात वह इसलिए कहता क्योंकि सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम में से ज़्यादातर ग़रीब और फटे-पुराने कपड़े पहने हुए होते थे, जबकि नबी करीम ﷺ पहले ही यह भविष्यवाणी कर चुके थे कि अल्लाह तआला ईरान और रोम की सल्तनतों की चाबियाँ उन्हें अता करेगा।
अस्वद नबी करीम ﷺ से यह भी कहता था:
“मुहम्मद! आज तुमने आसमानों की क्या बातें सुनीं? आज आकाश से क्या ख़बरें आई हैं?”
वह और उसके साथी जब भी नबी करीम ﷺ और सहाबा किराम को देखते, तो सीटी बजाते और आँखें मटकाते।
नज़र बिन हारिस की शरारतें
इसी तरह का एक और आदमी नज़र बिन हारिस था। वह भी नबी करीम ﷺ का मज़ाक उड़ाने वालों में शामिल था।
इनमें से अधिकतर लोग हिजरत से पहले ही अलग-अलग तरह की मुसीबतों और आफ़तों में फँसकर हलाक हो गए।
ख़ालिद बिन वलीद का पिता – वलीद बिन मुगीरा
इन मज़ाक उड़ाने वालों में हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु के पिता वलीद बिन मुगीरा भी था। वह अबू जहल का चाचा था और क़ुरैश के सबसे अमीर लोगों में गिना जाता था। हज के दिनों में वह तमाम हाजियों को खाना खिलाता था और किसी को अपना चूल्हा जलाने नहीं देता था। लोग उसकी खूब तारीफ़ करते, उसके कसीदे पढ़ते और उसकी दौलत के चर्चे होते। उसके बहुत से बाग़ात थे, जिनमें से एक ऐसा था, जिसमें साल भर फल लगा रहता था।
लेकिन उसने नबी करीम ﷺ को इतनी तकलीफ़ें दीं कि आपने उसके लिए बद्दुआ कर दी। इसके बाद उसकी पूरी दौलत ख़त्म हो गई, उसके बाग़ात उजड़ गए, और हज के दिनों में कोई उसका नाम तक नहीं लेता था।
जब्राईल अमीन अलैहिस्सलाम का बदला
एक दिन जब्राईल अलैहिस्सलाम नबी करीम ﷺ के पास तशरीफ़ लाए, उस वक्त आप ﷺ बैतुल्लाह का तवाफ़ कर रहे थे। जब्राईल अलैहिस्सलाम ने आकर अर्ज़ किया:
“मुझे हुक्म दिया गया है कि मैं आपको इन मज़ाक उड़ाने वालों से निजात दिलाऊँ।”
इसी दौरान वलीद बिन मुगीरा उधर से गुज़रा। जब्राईल अलैहिस्सलाम ने पूछा:
“आप इसे कैसा आदमी समझते हैं?”
नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया:
“अल्लाह तआला का बुरा बंदा है।”
यह सुनकर जब्राईल अलैहिस्सलाम ने वलीद की पिंडली की तरफ़ इशारा किया और कहा:
“मैंने इसे इसके अंजाम तक पहुँचा दिया।”
इसके बाद आस बिन वाइल सामने से गुज़रा। जब्राईल अलैहिस्सलाम ने पूछा:
“इसे आप कैसा आदमी पाते हैं?”
आप ﷺ ने फ़रमाया:
“यह भी बुरा इंसान है।”
जब्राईल अलैहिस्सलाम ने उसके पाँव की तरफ़ इशारा किया और कहा:
“मैंने इसे इसके अंजाम तक पहुँचा दिया।”
इसके बाद अस्वद गुज़रा। उसके बारे में भी आपने यही फ़रमाया कि यह बुरा इंसान है। जब्राईल अलैहिस्सलाम ने उसकी आँख की तरफ़ इशारा किया और कहा:
“मैंने इसे इसके अंजाम तक पहुँचा दिया।”
इसके बाद हारिस बिन अइतला गुज़रा। जब्राईल अलैहिस्सलाम ने उसके पेट की तरफ़ इशारा करके कहा:
“मैंने इसे इसके अंजाम तक पहुँचा दिया।”
अल्लाह की सज़ा
इसके बाद अस्वद बिन यग़ूथ जब अपने घर से निकला, तो उसे लू के थपेड़ों ने झुलसा दिया। उसका चेहरा जलकर काला पड़ गया। जब वह अपने घर वापस पहुँचा, तो उसके घरवालों ने उसे पहचाना ही नहीं और उसे घर से बाहर निकाल दिया। वह तेज़ प्यास से तड़पने लगा और लगातार पानी पीता रहा, यहाँ तक कि उसका पेट फट गया और उसकी मौत हो गई।
हारिस बिन अइतला ने एक दिन एक नमकीन मछली खाई। इसके बाद उसे इतनी तेज़ प्यास लगी कि वह लगातार पानी पीता रहा, यहाँ तक कि उसका भी पेट फट गया और उसकी मौत हो गई।
वलीद बिन मुगीरा एक दिन एक आदमी के पास से गुज़रा, जो तीर बना रहा था। अचानक एक तीर उसके कपड़ों में उलझ गया। वलीद ने तकब्बुर की वजह से झुककर तीर निकालने की कोशिश नहीं की और आगे बढ़ने लगा, तो वह तीर उसकी पिंडली में चुभ गया। इस चोट से ज़हर फैल गया और उसकी मौत हो गई।
आस बिन वाइल के पाँव में एक काँटा चुभ गया। इसके कारण उसका पैर इतना सूज गया कि वह चक्की के पाट की तरह चपटा हो गया और इसी हालत में उसकी मौत हो गई।
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत के मुताबिक़, ये तमाम लोग एक ही रात में हलाक हो गए थे।
हिजरत का हुक्म
नबी करीम ﷺ ने महसूस किया कि क़ुरैश मुसलमानों को हद से ज़्यादा तकलीफ़ पहुँचा रहे हैं, और मुसलमान अभी इतने ताक़तवर नहीं हैं कि इन ज़ुल्मों का जवाब दे सकें। इसलिए आपने सहाबा से फ़रमाया:
“तुम लोग ज़मीन पर अलग-अलग फैल जाओ, अल्लाह तआला फिर तुम्हें एक जगह इकट्ठा कर देगा।”
सहाबा किराम रज़ियल्लाहु अन्हुम ने पूछा:
“या रसूलुल्लाह! हम कहाँ जाएँ?”
आप ﷺ ने मुल्के-हबशा की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया:
“तुम लोग हबशा की तरफ़ चले जाओ, क्योंकि वहाँ का बादशाह नेक है, वह किसी पर ज़ुल्म नहीं होने देता। वह सच्चाई की सरज़मीन है। वहाँ तक कि अल्लाह तआला तुम्हारी इन मुसीबतों का ख़ात्मा करके तुम्हारे लिए आसानी पैदा कर देगा।”
हदीस में आता है कि जो शख़्स अपने दीन को बचाने के लिए किसी और जगह चला जाए, चाहे वह बस एक बालिश्त ही आगे बढ़े, उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है।
मुसलमानों की पहली हिजरत
इस हुक्म के बाद बहुत से मुसलमान अपने दीन को बचाने के लिए हिजरत कर गए। उनमें से कुछ लोग अपने बीवी-बच्चों के साथ गए, और कुछ अकेले।
जिन लोगों ने अपने परिवार समेत हिजरत की, उनमें हज़रत उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे। उनके साथ उनकी बीवी, यानी नबी करीम ﷺ की साहिबज़ादी हज़रत रुक़य्या रज़ियल्लाहु अन्हा भी हिजरत कर गईं।
हज़रत उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु अन्हु सबसे पहले हिजरत करने वाले इंसान थे।
इस तरह हज़रत अबू सलेमा रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी अपनी बीवी हज़रत उम्मे सलेमा रज़ियल्लाहु अन्हा के साथ हिजरत की।
हज़रत आमिर इब्न अबी रबिआह रज़ियल्लाहु अन्हु ने भी अपनी बीवी के साथ हिजरत की।
जिन सहाबियों ने अकेले हिजरत की, उनके नाम ये हैं: हज़रत अब्दुल रहमान इब्न औफ़, हज़रत उस्मान इब्न मज़’उं, हज़रत सुहल इब्न बिदा, हज़रत जुबैर इब्न अल-आवाम और हज़रत अब्दुल्लाह इब्न मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हुम।
जब काफ़िरों को उनकी हिजरत का पता चला तो वे उनका पीछा करने के लिए दौड़े, लेकिन तब तक ये लोग समुद्री जहाज़ों पर सवार हो चुके थे। वे जहाज़ व्यापारियों के थे, इस तरह ये लोग हबशा पहुँचने में कामयाब हो गए। कुछ समय बाद इन लोगों ने एक गलत ख़बर सुनी, वह यह थी कि तमाम क़ुरैश मक्का मुसलमान हो गए हैं। इस सूचना के बाद हबशा के कई मुहाजिर मक्का के लिए रवाना हो गए।
पास पहुँचने पर पता चला कि यह ख़बर गलत थी। अब उन्होंने हबशा जाना उचित नहीं समझा और किसी न किसी के पास पनाह लेकर मक्का में दाखिल हो गए। पनाह प्राप्त करने वाले इन मुहाजिरों ने जब अपने मुसलमान बहनों पर वही जुल्मो-सितम देखा, बल्कि पहले से ज्यादा, तो उन्हें यह गवारा नहीं हुआ कि हम पनाह की वजह से इस जुल्म से महफ़ूज़ रहें।
इसलिए इन्होंने अपनी पनाहें लौटा दीं और कहा कि हम अपने भाईयों के साथ इस जुल्म का सामना करेंगे।
