How To Advise Your Freinds The Islamic Way
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सलाह देने की अहमियत
हजरत उमर इब्न अल-खत्ताब (रज़ि.) ने फरमाया:
“उस क़ौम में कोई भलाई नहीं जो नसीहत न करें, और उस क़ौम में भी कोई भलाई नहीं जो नसीहत को पसंद न करें।” [रिसालत अल-मुस्तरशिदीन: 71]
1) उन्हें कुरान की संगति में रखें।
इमाम शाफ़ई (रह.) ने कहा: “यदि आप अपने दिल की, अपने बेटे की, अपने भाई की या किसी भी व्यक्ति की इस्लाह चाहते हैं, तो उसे कुरान के बाग में और कुरान की संगति में रखिए। क्योंकि अल्लाह उसे सुधार देगा, चाहे वह चाहे या न चाहे, अपने हुक्म से।” [हिलयतुल औलिया: 9/123]
2) जो सिखाएं उस पर पहले खुद अमल करें।
जो आप दूसरों से चाहते हैं, उसे पहले खुद अपनाएं।
आपके अच्छे कर्म उनके दिलों को बदल सकते हैं। आपके अमल को देखकर वे अपने गुनाहों पर शर्मिंदा हो सकते हैं, और शायद अल्लाह उनके दिल को भलाई की ओर मोड़ दे।
“जो बिना अमल के बुलावा देता है, उसकी मिसाल उस तीरंदाज की तरह है जो बिना रस्सी के तीर चलाता है।” [मुसन्नफ इब्न अबी शैबा: 7/39]
3) उनके लिए दुआ करें।
दुआ सबसे बेहतर उपाय है। लोगों के दिल अल्लाह के काबू में हैं। जैसे अल्लाह ने नबी ﷺ से कुरान में फरमाया:
اِنَّكَ لَا تَهْدِیْ مَنْ اَحْبَبْتَ وَ لٰـكِنَّ اللّٰهَ یَهْدِیْ مَنْ یَّشَآءُۚ-وَ هُوَ اَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِیْنَ(56)
“बेशक तुम जिसे चाहो उसे हिदायत नहीं दे सकते, लेकिन अल्लाह जिसे चाहता है हिदायत दे देता है और वो हिदायद वालों को खूब जानता है”
4) सब्र और अच्छे अख़लाक।
नबी ﷺ की सीरत का अध्ययन करने पर यह साफ़ दिखाई देता है कि आप ﷺ के अख़लाक और सब्र कितने खूबसूरत थे, खासकर इस्लाम का पैगाम पहुंचाने में।
सर्री अल-सकती (रह.) ने कहा: “सबसे ज्यादा सब्र करने वाले वो हैं जो हक़ पर सब्र करते हैं।” [अश-शुअब: 12/352]
5) अनुशासन और बहिष्कार।
अगर वो खुल्लमखुल्ला गुनाह करें, तो आपका काम है उन्हें अच्छाई की तरफ बुलाना। हिदायत देना अल्लाह के हाथ में है। अगर वो ज़िद्दी और घमंडी हैं, तो ऐसे दोस्तों को अपनी जिंदगी से दूर कर दीजिए।
ये आपका दिल बचाएगा और उन्हें अपनी गलती का एहसास हो सकता है।
किसी का ये सुनना: “तुम मेरे लिए सही नहीं हो क्योंकि तुम मुझे अल्लाह से दूर ले जाते हो,” किसी भी ईमान वाले के दिल को हिला देगा।
और अल्लाह बेहतर जानता है।