![]()
Hazrat Yusuf Alaihissalam Story in Hindi
Table of Contents
ख़ानदान
हजरत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम के बेटे और हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के पड़पोते हैं।
उनको यह शरफ़ हासिल है कि वह ख़ुद नबी, उनके वालिद नबी, उनके दादा नबी और परदादा हज़रत इब्राहीम अबुल अंबिया (नबियों के बाप) हैं।
कुरआन में इनका जिक्र छब्बीस बार आया है और इनको यह भी फक्र हासिल है कि इनके नाम पर एक सूरः (सूरः यूसुफ़) कुरआन में मोजूद है जो सबक और नसीहत का बेनज़ीर जखीरा है, इसीलिए कुरआन मजीद में हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम के वाकिए को ‘अहसनुल कसस’ कहा गया है।
हज़रत यूसुफ़ का ख्वाब और यूसुफ़ के भाई
शुरू जिंदगी ही से हज़रत यूसुफ़ की दिमागी और फ़ितरी इस्तेदाद दूसरे भाइयों के मुकाबले में बिल्कुल जुदा और नुमायां थी। साथ ही हजरत याकूब अलैहिस्सलाम यूसुफ़ अलैहिस्सलाम की पेशानी का चमकता हुआ नूरे नुबूवत पहचानते और अल्लाह की वह्य के ज़रिए इसकी इत्तिला पा चुके थे।
इन्ही वजह से वे अपनी तमाम औलाद में हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम से बेहद मुहब्बत रखते थे और यह मुहब्बत यूसुफ़ के भाइयों से बेहद शाक़ और नाकाबिले बरदाश्त थी।
और वे हर वक्त इस फ़िक्र में लगे रहते थे कि या तो हज़रत याकूब के दिल से इस मुहब्बत को निकाल डालें और या फिर यूसफ़ ही को अपने रास्ते से हटा दें, ताकि किस्सा पाक हो जाए। इन भाइयों के हसद पर ख्यालात को जबरदस्त ठेस उस वक्त लगी, जब यूसफ़ अलैहिस्सलाम ने एक ख्वाब देखा कि ग्यारह सितारे और सूरज व चांद उनके सामने सज्दा कर रह है।
हजरत याकूब अलैहिस्सलाम ने यह ख्वाब सुना तो सख्ती के साथ उनको मना कर दिया कि अपना यह ख्वाब किसी के सामने न दोहराना, ऐसा न हो कि, सुनकर तेरे भाई बुरी तरह पेश आएं, क्योंकि शैतान इंसान के पीछे लगा है। और तेरा ख्वाब अपनी ताबीर में बहुत साफ और वाजेह है, लेकिन हसद की भड़कती हुई आग ने एक दिन यूसुफ के भाइयों को उनके खिलाफ साजिश करने मजबूर कर ही दिया।
उनमें से एक ने कहा, यूसुफ को क़त्ल न करो और अगर तुमको करना ही है तो उसको गुमनाम कुएं में डाल दो ताकि उठा ले जाए उसको कोई मुसाफिर। युसूफ 12:10
इस मशवरे के बाद सब जमा होकर हजरत याकूब की खिदमत में हाजिर हुए और कहने लगे-
(ऐ बाप!) क्या बात है कि तुमको यूसुफ के बारे में हम पर एतमाद नहीं है, हालांकि हम उसके खैरख्वाह हैं। यूसुफ 12:11
हजरत याकूब समझ गए कि उनके दिलों में खोट है।
याकूब ने कहा, मुझे इससे रंज और दुख पहुंचता है कि तुम इसको अपने साथ ले जाओ और मुझे यह डर है कि उसको भेड़िया खा जाए और तुम गाफिल रहो। यूसुफ 12:13
यूसुफ के भाई ने यह सुनकर एक जुबान होकर कहा-
अगर खा गया इसको भेड़िया, जबकि हम सब ताकतवर हैं, तो बेशक इस शक्ल में तो हमने सब कुछ गंवा दिया। यूसुफ 12:14
कनान का कुंवां
ग़रज यूसुफ अलैहिस्सलाम के भाई यूसुफ़ को सैर कराने के बहाने ले गए और मश्विरे के मुताबिक उसको एक ऐसे कुएं में डाल दिया, जिसमें पानी न था और मुद्दत से सूखा पड़ा था और वापसी में उसकी कमीज को किसी जानवर के खून में तर करके रोते हुए हजरत याकूब अलैहिस्सलाम के पास आए और कहने लगे, ‘ऐ बाप! अगरचे हम अपनी सच्चाई का कितना ही यकीन दिलाएं, मगर तुमको हरगिज़ यकीन न आएगा कि हम दौड़ में एक दूसरे से आगे निकलने में लगे हुए थे कि अचानक यूसुफ को भेड़िया उठाकर ले गया।
हजरत याक्रूब अलैहिस्सलाम ने यूसुफ़ के लिबास को देखा तो खून से लथपथ था, मगर किसी एक जगह से भी फटा हुआ न था और न दामन फटा था, फौरन हकीक़त भांप गए मगर भड़कने, तान व तकनीम करने और नफ़रत व हकारत का तरीका बजाए पैग़म्बराना इल्म व फरासत के साथ यह बता दिया कि हकीकत की कोशिश के बावजूद तुम उसे छिपा न सके।
यूसुफ अलैहिस्सलाम और गुलामी
इधर ये बातें हो रही थीं, उधर हिजाजी इस्माईलियों का एक काफिला शाम से मिस्र को जा रहा था। कुंवां देखकर उन्होंने पानी के लिए डोल डाल यूसुफ को देखकर जोश से शोर मचाया “बशारत हो एक गुलाम हाथ आया।”
ग़रज इस तरह हजरत यूसुफ को इस्माईली ताजिरों के काफिले ने अपना गुलाम बना लिया और तिजारत के माल के साथ उनको भी मिस ले गए और बाजार में रिवाज के मुताबिक़ बेचने के लिए पेश कर दिया।
उसी वक़्त शाही ख़ानदान का एक रईस और मिस्री फ़ौजों का अफसर फ़ोतीफार बाजार से गुजर रहा था। उसने उनको खरीद लिया और अपने घर लाकर बीबी से कहा –
देखो! इसको इज्जत से रखो, कुछ अजब नहीं कि यह हमको फायदा बख्शे या हम इसको अपना बेटा बना लें। यूसुफ 12:21
फ़ोतीफार ने हजरत यूसुफ़ को औलाद की तरह इज्जत व एहतराम से रखा और अपने तमाम मामले और दूसरी जिम्मेदारियां उनके सुपुर्द कर दीं। यह सब कुछ अल्लाह की मंशा के मुताबिक हो रहा था।
और इसी तरह जगह दी हमने यूसुफ को उस मुल्क में और इस वास्ते कि उसको सिखाएं बातों का नतीजा और मतलब निकालना और अल्लाह ताकतवर रहता है अपने काम में, लेकिन अक्सर आदमी ऐसे हैं जो नहीं जानते। यूसुफ 12:21
जुलेखा और हज़रत यूसुफ
कुएं में डाले जाने और गुलामी के बाद अब हज़रत यूसुफ़ की एक और आज़माइश शुरू हुई, वह यह कि हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की जवानी का आलम था। हुस्न और खूबसूरती का कोई ऐसा पहलू न था जो उनके अन्दर मौजूद ना हो। अजीजे मिस्र की बीवी दिल पर काबू न रख सकी और यूसुफ़ अलैहि सलाम पर परवानावार निसार होने लगी, मगर नुबूवत के लिए मुंतखब आदमी से भला यह कैसे मुम्किन था कि अज़ीज़ की बीवी के नापाक इरादों को पूरा करे। कुरआन में पेश आने वाले वाकिए का ज़िक इस तरह से है –
और फुसलाया यूसुफ को उस औरत ने, जिसके घर में वह रहते थे, उसके नफ़्स के मामले में और दरवाजे बन्द कर दिए और कहने लगी, आ मेरे पास आ।’ यूसुफ़ ने कहा, ‘अल्लाह की पनाह। यूसुफ़ 12:23
बहरहाल हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम दरवाजे की तरफ़ भागे तो अजीज की बीवी ने पीछा किया और दरवाज़ा किसी तरह खुल गया। सामने अजीजे मिस्र और औरत का चचेरा भाई खड़े थे। अज़ीजे मिस्र की बीवी बोली –
कहने लगी उस शख्स की सज़ा क्या है जो तेरे अहल के साथ बुराई का इरादा रखता हो, मगर यह कि कैद कर दिया जाए या दर्दनाक अजाब में मुब्तला किया जाए। यूसुफ़ ने कहा, इसी ने मुझको मेरे नफ़्स के बारे में फुसलाया था और फैसला किया औरत के ही घराने के एक बच्चे ने कि अगर यूसुफ़ का पैरहन सामने से चाक है तो औरत सच्ची है और यूसुफ़ झूठा है और अगर पीछे से चाक है तो औरत झूठी है और यूसुफ़ सच्चा है। पस जब उसकी कमीज़ को देखा गया तो पीछे से चाक था, कहा, बेशक ऐ औरत: यह तेरे मक्र व फरेब से है। बेशक तुम्हारा मक्र बहुत बड़ा है। यूसुफ़! तू इस मामले से दरगुजर कर और ऐ औरत! तू अपने गुनाह की माफ़ी मांग, तू बेशक खताकार है।’ यूसूफ 12:25-29
अज़ीजे मिस्र ने अगरचे फ़ज़ीहत और रुस्वाई से बचने के लिए इस मामले को यहीं पर ख़त्म कर दिया, मगर बात छिपी न रह सकी। कुरआन मजीद में आता है –
और (जब इस मामले का चर्चा फैला) तो शहर की कुछ औरतें कहने लगीं, देखो अजीज की बीवी अपने गुलाम पर डोरे डालने लगी उसे रिझा ले, वह उसकी चाहत में दिल हार गई हमारे ख्याल में तो बदचलनी में पड़ गई। पस जब अजीज़ की बीवी ने इन औरतों की बातों को सुना, तो उनको बुलावा भेजा और उनके लिए मस्नदें तैयार की और (दस्तूर के मुताबिक) हर एक को एक-एक छुरी पेश कर दी, फिर यूसुफ़ से कहा, सबके सामने निकल आओ। जब यूसुफ़ को इन औरतों ने देखा तो बड़ाई की कायल हो गईं, उन्होंने अपने हाथ काट लिए और (बे-अलिया पुकार उठी, यह तो इंसान नहीं, ज़रूर एक फ़रिश्ता है, बड़े रुतबेवाला फ़रिश्ता। (अज़ीज की बीवी) बोली : तुमने देखा, यह है वह आदमी जिस के बारे में तुमने मुझे ताने दिए। यूसुफ़ 12:30-38
अज़ीज़ की बीवी ने यह भी कहा कि बेशक मैंने उसका दिल अपने काम में लेना चाहा था, मगर वह बे-काबू न हुआ, मगर मैं कहे देती हूं कि अगर इसने मेरा कहा न माना तो यह होकर रहेगा कि वह कैद किया जाए और बेइज्जती में पड़े।
हज़रत यूसुफ़ ने जब यह सुना और फिर अजीजे मिस्र की बीवी के अलावा और सब औरतों के चरित्र अपने बारे में देखे तो अल्लाह के हुजर हाथ फैलाकर दुआ की और कहने लगे –
यूसुफ़ ने कहा, ऐ मेरे पालनहार! जिस बात की तरफ़ ये मुझको बुलाती है, मुझे उसके मुकाबले में कैदखाने में रहना ज़्यादा पसन्द है. और अगर तूने उनके मक्र को मुझसे न हटा दिया और मेरी मदद न की, तो मैं कहीं उनकी ओर झुक न जाऊं और नादानों में से हो जाऊं। पस उसके रब ने उसकी दुआ कुबूल की और उससे उनका मक्र हटा दिया। बेशक वह सुन वाला, जानने वाला है। यूसुफ़ 12:33-35
अब अजीजे मिस्र ने यूसुफ़ अलैहि सलाम की तमाम निशानियां देखने और समझने के बाद अपनी बीवी की फजीहत व रुसवाई होती देखकर यह तय कर ही लिया कि यूसुफ को एक मुद्दत के लिए कैदखाने में बन्द कर दिया जाए, ताकि यह मामला लोगों के दिलों से निकल जाए, ये चर्चे बन्द हो जाएं, इस तरह हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम को जेल जाना पड़ा।
यूसुफ़ अलैहि सलाम जेल में
तौरात में है कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के इल्मी और अमली जौहर कैदखाने में भी न छिप सके और कैदखाने का दारोगा उनके हलका-ए-इरादत में दाखिल हो गया और जेल का तमाम इन्तिजाम व इन्सिराम उनके सुपुर्द कर दिया और वह कैदखाने के बिल्कुल मुख्तार हो गए।
कैदखाने में दावत व तब्लीग
एक अच्छा इत्तिफ़ाक देखिए कि हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के साथ दो नवजवान और कैदखाने में दाखिल हुए। उनमें से एक शाही साकी था और दूसरा था शाही बावर्चीखाने का दारोगा। एक दिन दोनों नवजवान हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम की खिदमत में हाज़िर हुए और उनमें से साक़ी ने कहा कि मैंने यह ख्वाब देखा है कि मैं शराब बनाने के लिए अंगूर निचोड़ रहा हूं और दूसरे ने कहा, मैंने यह देखा है कि मेरे सर पर रोटियों का ख्यान है और परिंदे उसे खा रहे हैं।
- यह सुनकर हज़रत यूसुफ़ ने फ़रमाया: बेशक अल्लाह तआला ने जो बातें मुझे तालीम फ़रमाई हैं, उनमें से एक इल्म यह भी अता फरमाया है। मैं इससे पहले कि तुम्हारा मुक़र्रर खाना तुम तक पहुंचे, तुम्हारे ख्वाबों की ताबीर बता दूंगा, मगर तुमसे एक बात कहता हूं, जरा इस पर भी गौर करो और समझो-बूझो।
ऐ मज्लिस के साथियो! (तुमने इस पर भी गौर किया कि) जुदा-जुदा माबूदों का होना बेहतर है या एक अल्लाह का जो अकेला और सब पर ग़ालिब है। तुम इसके सिवा जिन हस्तियों की बन्दगी करते हो, उनकी हकीकत इससे ज़्यादा क्या है कि सिर्फ कुछ नाम हैं जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं। हुकूमत तो अल्लाह ही के लिए है। उसका फरमान यह है कि सिर्फ़ उसकी बन्दगी करो और किसी की न करो, यही सीधा दीन है, मगर अक्सर आदमी ऐसे हैं जो नहीं जानते। यूसुफ 12:39-40
रुश्द व हिदायत के इस पैग़ाम के बाद हजरत यूसुफ़ उनके ख्वाबों की ताबीर की तरफ मुतवजह हुए और फ़रमाने लगे –
‘दोस्तो! जिसने देखा है कि वह अंगूर निचोड़ रहा है, वह फिर आजाद होकर बादशाह के साथी की ख़िदमत अंजाम देगा और जिसने रोटियों वाला ख्वाब देखा है, उसको सूली दी जाएगी और परिदै उसके सर को नोच-नोच कर खाएंगे।’
हज़रत यूसुफ़ जब ख्वाब की ताबीर से फ़ारिग हो गए तो साक्री से, यह समझकर कि वह नजात पा जाएगा, फ़रमाने लगे, ‘अपने बादशाह से मेरा जिक्र करना।’ साक्री को जब रिहा किया गया तो उसको अपनी मशगुलियतों में कुछ भी याद न रहा और कुछ साल तक और यूसुफ़ को जेल में रहना पड़ा।
अजीजे मिस्र का ख्वाब
हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम अभी जेल ही में थे कि वक़्त के अजीजे मिस्र ने एक ख्वाब देखा कि सात मोटी गाएं हैं और सात दुबली गाँये, दुबली गाएं मोटी गायों को निगल गई और सात सरसब्ज व शादाब बालियां हैं और सात सूखी बालियों ने हरी बालियों को खा लिया। बादशाह सुबह उठा और फ़ौरन दरबार के मुशीरों से अपना ख्वाब कहा।
दरबारी इस ख्वाब को सुनकर ताज्जुब में पड़ गए। इस बीच साक्री को अपना ख्वाब और हज़रत यूसुफ़ की दी हुई ताबीर का वाकिया याद आ गया। उसने बादशाह की खिदमत में अर्ज किया कि अगर कुछ मोहलत दीजिए तो मैं उसकी ताबीर ला सकता हूं। बादशाह की इजाजत से वह कैदखाना पहुंचा और हजरत यूसुफ़ को बादशाह का ख्वाब सुनाया और कहा कि आप इसको हल कीजिए।
हज़रत यूसुफ़ ने उसी वक्त ख्वाब की ताबीर दी और सही तदबीर भी बतला दी जैसा कि कुरआन में जिक्र किया गया है –
कहा, तुम खेती करोगे सात बरस जम कर, सो जो काटो उसको छोड़ दो उसकी बाली में, मगर थोड़ा-सा जो तुम खाओ, फिर आएंगे इसके बाद सात वर्ष सख्ती के खा जाएंगे जो रखा तुमने उसके वास्ते मगर थोड़ा तो रोक रखोगे बीज के वास्ते, फिर आएगा, एक वर्ष उसके पीछे उसमें वर्षा होगी लोगों पर और उसमें रस निचोड़ेंगे। यूसुफ़ 12:47-49
हज़रत युसूफ की बेगुनाही का साबित होना
साक्री ने यह सब मामला बादशाह के सामने जा सुनाया। बादशाह ने ख्वाब की ताबीर का मामला देखकर कहा कि ऐसे आदमी को मेरे पास लाओ। जब बादशाह का दूत हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के पास पहुंचा तो हजरत यूसुफ ने कैदखाने से बाहर आने से इंकार कर दिया और फरमाया कि इस तरह तो मैं जाने को तैयार नहीं हूं, तुम अपने आका के पास जाओ और उससे कहो कि वह यह जांच करे कि इन औरतों का मामला क्या था, जिन्होंने हाथ काट लिए थे? पहले यह बात साफ़ हो जाए कि उन्होंने कैसी कुछ मक्कारियां की थीं और मेरा परवरदिगार तो उनकी मक्कारियों को खूब जानता है।
ग़रज बादशाह ने जब यह सुना तो उन औरतों को बुलवाया और उनसे कहा कि साफ़-साफ़ और सही-सही बताओ कि इस मामले की सही हक़ीक़त क्या है, जबकि तुमने यूसुफ़ पर डोरे डाले थे, ताकि तुम उसको अपनी तरफ़ मायल कर लो?
वह एक जुबान होकर बोलीं –
बोली: माशाअल्लाह! हमने इसमें बुराई की कोई बात नहीं पाई। यूसुफ 12:51
मज्मा में अजीज की बीवी भी थी और अब वह इश्क व मुहब्बत की मट्टी में ख़ाम न थी, कुन्दन थी और जिल्लत व रुस्वाई के डर से आगे निकल चुकी थी। उसने जब यह देखा कि यूसुफ़ अलैहि सलाम की ख्वाहिश है कि हक़ीकते हाल सामने आ जाए तो बे-अख्तियार बोल उठी –
जो हक़ीक़त थी, वह अब जाहिर हो गई, हा.. वह मैं ही थी, जिसने यूसुफ़ पर डोरे डाले कि अपना दिल हार बैठे। बेशक वह (अपने बयान में) बिल्कुल सच्चा है। यूसुफ 12:51
इस तरह अब वह वक्त आ गया कि तोहमत लगाने वालों की जुबान से ही साफ़ हो जाए, चुनांचे वाजेह और जाहिर हो गया यानी शाही दरबार में मुजिरमों ने जुर्म का एतराफ़ करके यह बता दिया कि यूसुफ़ अलैहि सलाम का दामन हर किस्म की आलूदगियों से पाक है।
अजीजे मिस्र के ख्वाब ताबीर
अजीजे मिस्र पर जब हकीकत वाजेह हो गई तो उसके दिल में हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की अजमत व जलालत का सिक्का बैठ गया, वह कहने लगा:
उसको (जल्द) मेरे पास लाओ कि मैं उसको खास अपने कामों के लिए मुकर्रर करूं। यूसुफ 12:51
अजीजे मिस्र के इस हुक्म की तामील में हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम बादशाह के दरबार में तशरीफ़ लाए, तो अजीजे मिस्र ने कहा –
बेशक आज के दिन तू हमारी निगाहों में बड़े इक्तिदार का और अमानतदार है। यूसुफ़ 12:54
और उनसे मालूम किया कि मेरे ख्वाब में अकाल का ज़िक्र है, उसके बाद में मुझको क्या-क्या उपाय करने चाहिए। हजरत यूसुफ़ ने जवाब दिया –
अपने राज्य के ख़ज़ानों पर आप मुझे मुख्तार (अख्तियार वाला) कर दीजिए, मैं हिफाजत कर सकता हूं और मैं इस काम का जानने वाला है। यूसुफ़ 12:55
चुनांचे बादशाह ने ऐसा ही किया और हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम को अपने पूरे राज्य का मुकम्मल ज़िम्मेदार बना दिया और शाही ख़जाने की कुजियां उनके हवाले करके मुख़्तारे आम कर दिया। इसीलिए अल्लाह तआला ने अज़ीज के कारोबार का मुख्तार बनाकर यूसुफ़ अलैहि सलाम के लिए यह फ़रमाया था कि हमने उसको ‘तम्कीन फ़िल अर्जि‘ (ज़मीन का पूरा मालिक के मुख्तार) अता कर दी।
सूरः यूसुफ़ में ‘तम्कीन फ़िल अर्जि’ की खुशखबरी दो बार सुनाई गई है। ग़रज़ हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने मिस्र राज्य के मुख्तारे कुल होने के बाद ख्वाब से मुताल्लिक वे तमाम तदबीरें शुरू कर दी जो चौदह साल के अन्दर फायदेमंद हो सकें और अवाम अकाल के दिनों में भी भूख और परेशानहाली से बची रह सके।
अकाल और हज़रत याकूब का ख़ानदान
गरज जब अकाल का ज़माना शुरू हुआ तो मिस्र और उसके आस-पास के इलाके में सनत अकाल पड़ा और कनआन में हजरत याकूब अलैहि सलाम ने साहबजादों से कहा कि मिस्र में अजीजे मिस्र ने एलान किया है कि उसके पास ग़ल्ला हिफ़ाजत से रखा हुआ है, तुम सब जाओ और ग़ल्ला खरीद कर लाओ। चुनांचे बाप के हुक्म के मुताबिक यह कनानी क़ाफ़िला मिस्र के अजीज से ग़ल्ला लेने के लिए मिस्र रवाना हुआ।
और यूसुफ़ के भाई (गल्ला ख़रीदने मिस) आए। वे जब यूसुफ के पास पहुंचे तो उसने फ़ौरन उनको पहचान लिया और वे यूसुफ़ को न पहचान सके। यूसुफ़ 12:58
तौरात का बयान है कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों पर जासूसी का इलज़ाम लगाया गया और इस तरह उनको यूसुफ़ अलैहि सलाम के सामने हाज़िर होकर आमने-सामने बात करने का मौक़ा मिला और उन्होंने अपने बाप (हजरत याकूब अलैहि सलाम, सगे भाई बिन यमीन) और घर के हालात को खूब कुरेद-कुरेद कर पूछा और –
और जब यूसुफ़ ने उनका सामान मुहैया कर दिया तो कहा, अब आना तो अपने सौतेले भाई बिन यमीन को भी साथ लाना। तुमने अच्छी तरह देख लिया है कि मैं तुम्हें (गल्ला) पूरी तौल देता हूं और बाहर से आने वालों के लिए बेहतर मेहमान नवाज हूं, लेकिन अगर तुम उसे मेरे पास न लाए तो फिर याद रखो, न तुम्हारे लिए मेरे पास खरीद व फरोख्त होगी, न तुम मेरे पास जगह पाओगे।‘ यूसुफ़ 12:59-60
फिर यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाई जब हज़रत यूसुफ़ से रुख्सत होने आए, तो उन्होंने अपने नौकरों को हुक्म दिया कि ख़ामोशी के साथ उनके कजावों में उनकी वह पूंजी भी रख दो जो उन्होंने ग़ल्ले की कीमत के नाम से दी है, ताकि जब घर जाकर उसको देखें, तो अजब नहीं कि फिर दोबारा आएं। जब यह क़ाफ़िला कनआन वापस पहुंचा
तो उन्होंने अपने तमाम हालात अपने बाप याकूब अलैहि सलाम को सुनाए और उनसे कहा कि मिस्र के वली (ज़िम्मेदार मालिक) ने साफ़-साफ़ हमसे कह दिया है कि उस वक्त तक यहां न आना और न ग़ल्ले की खरीद का ध्यान करना, जब तक कि अपने सौतेले भाई बिन यमीन को साथ न लाओ, इसलिए अब आपको चाहिए कि उनको हमारे साथ कर दें, हम उसके हर तरह के निगहबान और हिफाजत करने वाले हैं। इस मौके पर हजरत याकूब अलैहि सलाम ने कहा –
कहा, क्या मैं तुम पर (बिन यमीन) के बारे में ऐसा ही एतमाद करू जैसा कि इससे पहले उसके भाई (यूसुफ़) के बारे में कर चुका हूं, सो अल्लाह ही बेहतरीन हिफाजत करने वाला है और वह ही सबसे बढ़कर रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:64
इस बात-चीत से फ़ारिग होने के बाद अब उन्होंने अपना सामान खोलना शुरू किया, तो देखा, उनकी पूंजी उन्हीं को वापस कर दी गई है। यह वे कहने लगे, ऐ बाप! इससे ज़्यादा और क्या हमको चाहिए? इजाजत दें कि हम दोबारा उसके पास जाएं और घर वालों के लिए रसद: और बिन यमीन को भी हमारे साथ भेज दे, हम उसकी पूरी हिफाजत करेंगे।
हज़रत याकूब ने फरमाया कि मैं ‘बिन यमीन’ को हरगिज़ तुम्हारे साथ नहीं भेजूंगा, जब तक तुम अल्लाह के नाम पर मुझसे अहद न करो। अहद व पैमान के बाद यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों का काफ़िला दोबारा मिस्र को रवाना हुआ और इस बार बिन यमीन भी साथ था। हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने उनको रुखसत करते वक्त नसीहतें फरमाई –
फिर जब ये मिस्र में उसी तरह दाखिल हुए जिस तरह उनके बाप ने उनको हुक्म दिया, तो यह (एहतियात) उनको अल्लाह की मशीयत के मुकाबले में कुछ काम न आई, मगर यह एक ख्याल था याकूब के जी में जो उसने पूरा कर लिया और बेशक वह इल्म वाला था और हमने ही उसको यह इल्म सिखाया था, लेकिन अक्सर लोग नहीं समझते। यूसुफ 12:68
इस बीच यह सूरत पेश आई कि जब यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाई कनआन से रवाना हुए, तो रास्ते में बिन यमीन को तंग करना शुरू कर दिया। कभी उसको बाप की मुहब्बत का ताना देते और कभी इस बात पर हसद करते कि अज़ीजे मिस्र ने ख़ास तौर पर उसको क्यों बुलाया है और जब ये लोग मंज़िले मक्सूद पर पहुंचे तो –
और जब ये सब यूसुफ के पास पहुंचे तो उसने अपने भाई (बिन यमीन) को अपने पास बिठा लिया और उससे (धीरे से) कहा, मैं तेरा भाई (यूसुफ) हूं पस जो बदसुलूकी ये तेरे साथ करते आए हैं, तू उस पर गमगीन न हो। यूसुफ़ 12:69
कनानी काफिला कुछ दिनों के क्रियाम के बाद जब रुखसत होने लगा तो यूसुफ अलैहि सलाम ने हुक्म दिया कि उनके ऊंटों को इस कदर लाद दो, जितना ये ले जा सकें। हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की यह ख्वाहिश थी कि किसी तरह अपने प्यारे भाई ‘बिन यमीन’ को अपने पास रोक लें, लेकिन मिस्र की हुकूमत के कानून के मुताबिक किसी गैर-मिस्री को बगैर किसी माकूल वजह के रोक लेना सख्त मना था और हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम उस वक़्त हकीक़त खोलना नहीं चाहते थे, इसलिए जब क़ाफ़िला रवाना होने लगा तो किसी को इत्तिला किए बगैर शाही पैमाने को बिन यमीन की खुरजी में रख दिया, (ताकि भाई के पास एक निशानी रहे।)
कनान के इस क़ाफ़िले ने अभी थोड़ा ही फ़ासला तै किया होगा कि यूसुफ़ अलैहि सलाम के कारिंदों ने शाही बरतनों की देख-भाल की, तो उसमें प्याला न मिला, समझे कि शाही महल में कन्आनियों के सिवा दूसरा कोई नहीं आया, इसलिए उन्होंने ही चोरी की है, फ़ौरन दौड़े और चिल्लाए।
फिर पुकारा पुकारने वाले ने, ऐ काफ़िले वालो! तुम तो अलबत्ता चोर हो। वे कहने लगे उनकी ओर मुंह करके तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई? वे कारिन्दे बोले, हम नहीं पाते बादशाह (यूसुफ़) का पैमाना (कटोरा) और जो कोई उसको लाए उसको मिले एक ऊंट का बोझ (ग़ल्ला) और मैं हूं उसका जामिन। वे बोले, ख़ुदा की कसम! तुमको मालूम है कि हम शरारत करने को नहीं आए मिस्र के मुल्क में और न हम कभी चोर थे। वे (कारिंदे) बोले, फिर क्या सज़ा है उसकी अगर तुम निकले झूठे। कहने लगे, उसकी सज़ा यह है कि जिनके सामानों में हाथ आए, वही उसके बदले में जाए। हम यही सजा देते हैं जालिमों को। यूसुफ़ 12:71-75
इस मरहले के बाद यह मामला अज़ीजे मिस्र के सामने पेश हुआ और उनकी तलाशी ली गई तो बिन यमीन के कजाये में वह प्याला मौजूद था।
फिर यूसुफ़ ने उनकी खुर्जियां देखनी शुरू की। आखिर में वह बरतन निकाला अपने भाई की खुरजी से। यूसुफ़ 12:76
इसके बाद अल्लाह तआला फ़रमाता है –
यों खुफ़िया तदबीर कर दी हमने यूसुफ़ के लिए। वह हरगिज़ न ले सकता या अपने भाई यमीन को उस बादशाह (मिस्र) के तरीके के मुताबिक, मगर यह कि अल्लाह तआला ही चाहे। यूसुफ़ 12:76
इस तरह ‘बिन यमीन’ को मिस्र में रोक लिया गया और यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों ने जब यह रंग देखा तो बाप का अहद व पैमान याद आ गया और खुशामद भरे अर्ज-मारून करके अजीज़े मिस्र को बिन-यमीन की वापसी की तर्गीब दिलाई। यह तरीक़ा भी कामियाब न हो सका तो आपस में मश्विरे से पाया कि वालिद बुजुर्गवार को सही सूरत बतला दी जाए और कहा कि वे इस वाकिये की तस्दीक दूसरे क़ाफ़िले वालों से भी कर लें। इस मशविरे के मुताबिक यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाई कनआन वापस आए और हज़रत याकूब अलैहि सलाम से बिना घटाए-बढ़ाए सारा वाकिया कह सुनाया।
हज़रत याकूब यूसुफ़ के मामले में उनकी सदाक़त का तजुर्बा कर चुके थे, इसलिए फ़रमाया ‘तुम्हारे जी ने एक बात बना ली है, वाकिया यों नहीं है, बिन यमीन और चोरी? यह नहीं हो सकता, खैर अब सब्र के सिवा कोई चारा नहीं, ऐसा सब्र कि बेहतर से बेहतर हो। अल्लाह तआला के लिए नामुम्किन तो नहीं कि एक दिन हम लोगों को फिर जमा कर दे और एक साथ इन दोनों को मुझसे मिला दे। बेशक वह दाना है और हिक्मत वाला है और उनकी ओर से रुख कर लिया और फ़रमाने लगे- ‘आह! यूसुफ की जुदाई का ग़म!‘
हज़रत याकूब अलैहि सलाम की आंखें ग़म की ज़्यादती की वजह से रोते-रोते सफेद पड़ गई थीं और सीना ग़म की जलन से जल रहा था, मगर सब्र के साथ अल्लाह पर तवक्कुल किए बैठे थे।
बेटे यह हाल देखकर कहने लगे –
‘खुदा की कसम! तुम हमेशा इसी तरह यूसुफ़ की याद में घुलते रहोगे या इसी ग़म में जान दे दोगे!‘
हज़रत याकूब ने यह सुनकर फ़रमाया –
‘मैं कुछ तुम्हारा शिकवा तो नहीं। करता और न तुमको सताता हूं।‘बल्कि मैं तो अपनी हाजत और ग़म अल्लाह को बारगाह में अर्ज करता हूँ। में अल्लाह की ओर से वह बात जानता हूं, जो तुम नही जानते। यूसुफ 12:86
हज़रत युसूफ का भाइयों को हकीकत बताना
बहरहाल हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने अपने बेटों से फ़रमाया :
‘देखो, एक बार फिर मिस्र जाओ और यूसफ़ और उसके भाई की तलाश करो और अल्लाह की रहमत से नाउम्मीद और मायूस न हो, इसलिए कि अल्लाह की रहमत से ना उम्मीदी काफिरों का शेवा है।’
यूसुफ के भाइयों ने तीसरी बार फिर मिस्र का इरादा किया और शाही दरबार में पहुंच कर अपनी परेशानी बयान की और खुसूसी लुक व करम की दरख्वास्त भी की। हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने परेशानी का हल सुना तो दिल भर आया और आपसे जब्त न हो सका कि खुद को छिपाएं और राज़ जाहिर न होने दें। आख़िर फरमाने लगे-क्यों जी,
तुम जानते हो कि तुमने यूसफ और उसके भाई के साथ क्या मामला किया, जबकि तुम जिहालत में डूबे हुए थे? यूसुफ़ 12:89
भाइयों ने यह उम्मीद के ख़िलाफ़ सुनकर कहा –
क्या तूम वाकई यूसुफ़ ही हो? यूसुफ 12:98
हजरत यूसुफ ने जवाब दिया-हां, मैं यूसुफ हूं और यह (बिनयमीन) मेरा मांजाया भाई है।
अल्लाह ने हम पर एहसान किया और जो आदमी भी बुराइयों से बचे और (मुसीबतों में) साबित कदम रहे, तो अल्लाह नेक लोगों का अज्र बर्बाद नहीं करता। यूसुफ 12:98
यूसुफ़ के भाई यह सुनकर कहने लगे –
ख़ुदा की कसम, इसमें शक नहीं कि अल्लाह तआला ने तुझको हम पर बरतरी व बुलन्दी बख्शी और बेशक हम पूरी तरह कुसूरवार थे। यूसुफ़ 12:91
हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम ने अपने सौतले भाइयों की खस्ताहाली और पशेमानी को देखा तो पैगम्बराना रहमत और दरगुज़र के साथ फ़ौरन फ़रमाया-
आज के दिन मेरी ओर से तुम पर कोई फटकार नहीं। अल्लाह तुम्हारा कुसूर बख्शे और वह तमाम रहम करने वालों से बढ़कर रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:92
हज़रत यूसुफ ने यह भी फ़रमाया-
अब तुम कनान वापस जाओ और मेरी पैरहन लेते जाओ, यह वालिद की आंखों पर डाल देना, इन्शाअल्लाह यूसुफ की खुश्बू उनकी आँखों को रोशन कर देगी और तमाम खानदान को मिस्र ले आओ। यूसुफ 12:93
इधर यूसुफ़ अलैहि सलाम के भाइयों का काफिला कनआन को यूसुफ़ का पैरहन लेकर चला, तो उधर हजरत याकूब को वह्य इलाही ने यूसुफ़ की खुश्बू से महका दिया।
फ़रमाने लगे, ऐ याकूब के खानदान! अगर तुम यह न समझो कि बुढ़ापे में उसकी अक्ल मारी गई है, तो मैं यक़ीन के साथ कहता हूं कि मुझको युसूफ की महक आ रही है।
वे सब कहने लगे, ‘खुदा की कसम! आप तो अपने पुराने खत में पड़े हो, यानी इस कदर मुद्दत गुजर जाने के बाद भी, जबकि उस का नाम व निशान भी बाक़ी नहीं रहा, तुम्हें यूसुफ़ ही की रट लगी हुई है।’
कनआन का क़ाफ़िला वापस पहुंचा, तो वही हुआ जिसकी ओर हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने इशारा किया था-
फिर जब बशारत देने वाला आ पहुंचा, तो उसने यूसफ़, के परहन को याकूब के चेहरे पर डाल दिया, पस उसकी आंखें रोशन हो गयी, याकूब अलैहि सलाम ने कहा, क्या मैं तुमसे न कहता था कि मैं अल्लाह की ओर से वो बात जानता हूं, जो तुम नहीं जानते। यूसुफ 12:96
यूसुफ के भाइयों के लिए यह वक्त बहुत कठिन था, शर्म व नदामत हूवे हुए, सर झुकाये हुए बोले, ऐ बाप! आप अल्लाह की जनाब में हमारे गुनाहों की मगफिरत के लिए दुआ फरमाइए, बेशक हम ख़ताकार और कुसूरवार हैं।
हज़रत याकूब अलैहि सलाम ने फ़रमाया-
बहुत जल्द मैं अपने रब से तुम्हारी मगफिरत की दुआ करूँगा बेशक वह बड़ा बख्शने वाला, रहम करने वाला है। यूसुफ़ 12:98
हज़रत याकूब का ख़ानदान मिस्र में
ग़रज़ हज़रत याकूब अलैहि सलाम अपने सब खानदान को लेकर मिस्र रवाना हो गए। तौरात के मुताबिक मित्र आने वाले सत्तर लोग थे। जब हज़रत युसूफ अलैहि सलाम को इतिला हुई कि उनके वालिद ख़ानदान समेत शहर के करीब पहुंच गए तो वह फौरन इस्तेकबाल के लिए बाहर निकले। हजरत याकूब अलैहि सलाम ने एक लम्बी मुद्दत के बाद बेटे को देखा तो सीने से चिमट लिया। हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने वालिद से अर्ज किया कि अब आप इज्जत व एहतराम और अम्न व हिफाजत के साथ शहर में तशरीफ़ ले चलें।
हजरत यूसुफ अलैहि सलाम ने वालिद माजिद और तमाम ख़ानदान को शाही सवारियों में बिठा कर शहर और शाही महल में उतारा। इसके बाद एक दरबार सजाया गया। हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम के वालिद को शाही तख़्त पर जगह दी गई। इसके बाद खुद हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम शाही तख्त पर बैठे। उस वक्त दरबारी हुकूमत के दस्तूर के मुताबिक तख्त के सामने ताजीम के लिए सज्दे में गिर पड़े। (ताज़ीम का यह तरीका शायद पिछले नबियों की उम्मत में जायज रहा हो।
लेकिन नबी अकरम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस किस्म की ताजीम को अपनी उम्मत के लिए हराम करार दिया है और उसको जाते इलाही ही के लिए महसूस बनाया है) यूसुफ़ अलैहि सलाम के तमाम ख़ानदान वालों ने भी यही अमल किया। यह देखकर हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम को अपने बचपन का जमाना याद आ गया और अपने वालिद से कहने लगे
– और यूसुफ़ ने कहा, ऐ बाप! यह है तासीर उस ख्वाब की जो मुद्दत हुई, मैंने देखा था, मेरे परवरदिगार ने उसे सच्चा साबित कर दिया। यूसुफ 12:100
ऊपर के वाक्रियात के अच्छे खात्मे से मुतास्सिर होकर यूसुफ़ अलैहि सलाम बे-अख्तियार हो गए और अल्लाह की जनाब में इस तरह दुआ की –
ऐ परवदिगार! तूने मुझे हुकूमत अता फरमाई और बातों का मतलब और नतीजा निकालना तालीम फ़रमाया। ऐ आसमान व जमीन के बनाने वाले! तू ही मेरा कारसाज है, दुनिया में भी और आख़िरत में भी। तो यह भी कीजियो कि दुनिया से जाऊं तो तेरी फ़रमांबरदारी की हालत में जाऊं और उन लोगों में दाखिल हो जाऊं जो तेरे नेक बन्दे हैं। यूसुफ 12:101
तौरात के मुताबिक इस वाकिए के बाद हजरत यूसुफ़ का तमाम ख़ानदान मिस्र ही में आबाद हो गया।
Hazrat Yusuf की वफ़ात
तारीखी हवालो से कहा जाता है की, हज़रत यूसुफ अलैहि सलाम ने अपनी जिंदगी के लम्बे अर्से को मिस्र ही में गुजारा और जब उनकी उम्र 110 साल की हुई तो उनकी वफ़ात हो गई तो हुनूत (मम्मी) करके ताबूत में महफूज रख दिया और उनकी वसीयत के मुताबिक जब मूसा के जमाने में बनी-इसराईल मिस्र से निकले तो उस ताबूत को भी साथ ले गए और अपने बाप-दादा की सरज़मीन ही में ले जाकर सुपुर्दे खाक कर दिया। बताया गया है कि इनकी क़ब्र नाबलस के आस-पास है, यह कनआन का इलाका है जिस पर अब इसराईल का कब्जा है। (अल्लाहु आलम)
अहम अख़्लाक़ी बातें
- 1. अगर किसी आदमी का निजी मिजाज उम्दा हो और उसका माहौल भी पाक, मुक़द्दस, और लतीफ़ हो, तो उस आदमी की जिंदगी असलाके करीमाना में नुमायां और अच्छी सिफ़तों में मुम्ताज़ होगी और वह हर किस्म के शरफ व मज्द का हामिल होगा।
- 2. अगर किसी आदमी में अल्लाह पर ईमान मजबूत और साफ़-सुथरा हो और उस पर यकीन पक्का और मजबूत हो तो फिर इस राह की तमाम परेशानियां और मुश्किलें उस पर आसान बल्कि आसानतर हो जाती हैं और हक़ देख-समझ लेने के बाद तमाम ख़तरे और मुसीबतें बेकार हो कर रह जाती हैं।
- 3. इब्तिला और आजमाइश मुसीबत व हलाकत की शक्ल में हो या दोलत व सरवत और नफ़्सानी अस्वाब की सूरत में, हर हालत में इंसान को अल्लाह की जानिब ही रुजू करना चाहिए और उसी से इल्तिजा करनी चाहिए कि वह हक़ मामले पर साबित कदम रखे।
- 4. जब अल्लाह तआला की मुहब्बत दिल की गहराइयों में उतर जाता है, तो फिर इंसान की जिंदगी का तमामतर मक्सद वही बन जाता है और उसके दीन की दावत व तब्लीग का जस्बा हर वक्त रग-रग में दौड़ता रहता है।
- 5. दयानत और अमानत एक ऐसी नेमत है कि उसको इंसान को दीनी दुनियावी सआदतों की कुंजी कहना चाहिए।खुदएतमादी इंसान की बुलन्द सिफ़तों से एक बड़ी सिफत है।
- 6. अल्लाह ने जिस शख्स को यह दौलत दी है, वहीं दुनिया की मुसीबतों और दुखो से गुजर कर दुनिया और दीन दोनों की बुलन्दियों को हासिल कर सकता है।
- 7. सब्र एक शानदार ‘खुल्क’ है और बहुत-सी बुराइयों के लिए सबर और ढाल का काम देता है। कुरआन करीम में सबसे ज़्यादा जगहों पर उसकी फजीलत का एलान किया गया है और अल्लाह तआला ने ऊंचे रुत्बे और बुलंद दर्जे का मदार इसी फजीलत पर रखा है।
- 8. तक्लीफ़ पहुंचाने वाले भाइयों की नदामत के वक्त सब्र का अख्तियार करना यानी दिल की युस्अत का सबूत है।
- 9. बेहतरीन अख़्लाक में शुक्र भी सबसे बेहतर अख़्लाक़ है, इसलिए यह अल्लाह के अख़्लाक में सबसे बुलन्द है।
- 10. हसद (जलन) और बुग्ज़ (द्वेष) का अंजाम हसद करने वाले और बुग्ज़ रखने वाले के हक़ ही में नुक्सानदेह होता है और अगरचे कभी जिससे हसद और बुग्ज़ किया गया है, उसको भी दुनिया का नुक्सान पहुंच जाना मुम्किन है, लेकिन हसद करने वाला किसी हाल में भी फलाह नहीं पाता और वह दुनिया और आख़िरत में घाटा उठाने वाला जैसा हो जाता है, अलावा इसके कि तौबा कर ले और हसद वाली जिंदगी को छोड़ दे।
- 11. सदाकत, दयानत, अमानत, सब्र और शुक्र जैसी ऊंची सिफ़तों वाली जिंदगी ही हकीक़ी और कामयाब जिंदगी है और अगर इंसान में ये सिफ़तें नहीं पाई जातीं, तो फिर वह इंसान नहीं, बल्कि हैवान है, बल्कि उससे भी बुरा ।
हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम की पूरी जिंदगी ऊपर लिखे अखलाकी मसलों पर गवाह है और इस दुआ के लिए दावत दे रही है –
ऐ आसमानों और जमीन के पैदा करने वाले! तू ही दुनिया और आखिरत में मेरा मददगार है, तू मुझे अपनी इताअत पर मौत दीजियो और नेक लोगों के साथ शामिल कीजियो। यूसुफ़ 12:101
