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Hazrat Musa Alaihissalam and Firon History Part 1

इस Part में आप पढ़ सकोगे Hazrat Musa Alaihissalam की पैदाइश से Firon के समंदर में डूबने तक बाक़ी इंशाअल्लाह अगले Part में ज़िक्र करेंगे

Table Of Contents
  1. हज़रत मूसा की शुरूआती जिंदगी और बनी इसराईल मिस्र में
  2. "Firon" नाम है या लक़ब
  3. Firon का ख्वाब
  4. हज़रत मूसा अलैहि सलाम की पैदाइश
  5. Firon के घर में तर्बियत
  6. हज़रत मूसा का मिस्र से निकलना
  7. हज़रत मूसा की हिजरत और मदयन का इलाका
  8. मदयन का पानी
  9. शेख की बेटी से निकाह का रिश्ता
  10. मुकद्दस वादी
  11. हज़रत मूसा रसूल बनाए गए
  12. अल्लाह की निशानियां
  13. मिस्र में दाखिला
  14. Firon के दरबार में हक की दावत
  15. फिरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया)
  16. फ़िरऔन के दरबार में मुजाहरा
  17. बनी इसराईल की बेचैनी
  18. मिस्री मर्दे मोमिन
  19. फ़िरऔन का एलान
  20. मिस्रियों पर अल्लाह का कहर
  21. बनी इसराईल का मिस्र से लौटना और रवानगी
  22. फ़िरऔन का डूबना
  23. फ़िरऔन की लाश
  24. समुद्र का फटना
  25. बड़ा मोजज़ा
  26. कयामत का अजाब

हज़रत मूसा की शुरूआती जिंदगी और बनी इसराईल मिस्र में

हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम के किस्से में बनी इसराईल का जिक्र सिर्फ इसी क़दर किया गया था कि हज़रत याकूब और उनका ख़ानदान हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम से मिलने मिस्र में आए, मगर उसके सदियों बाद फिर एक बार कुरआन करीम बनी इसराईल के वाकिए तफ्सील के साथ सुनाता है जिनसे मालूम होता है कि बनी इसराईल हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम के ज़माने में मिस्र ही में बस गए थे। तौरात से और तफ़सील मालूम होती है और यह भी कि हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने फ़िरऔन से अपने बाप और ख़ानदान के लिए अर्जे जाशान (Goshen) तलब की जो फ़िरऔन ने ख़ुशी-खुशी उनके सुपुर्द कर दी।

बहरहाल इन तफ़्सीलों से यह वात साफ़ हो जाती है कि बनी इसराईल हजरत यूसुफ़ अलैहि सलाम और हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दर्मियानी सदियों में मिस्र में आबाद रहे और उनकी तायदाद लगभग छः लाख हो गई थी। (‘नेशनल ज्योग्रेफ़िक’ जनवरी 1078 ई. के मुताबिक ये छः सौ खानदान यानी पन्द्रह हजार लोगों से कुछ कम ही हो सकते हैं।)

“Firon” नाम है या लक़ब

शुरू ही में यह साफ़ कर देना ज़रूरी है कि “फ़िरऔन‘ मिस्र के बादशाहों का लकब है, किसी ख़ास हुक्मरान या बादशाह का नाम नहीं है। तारीखी एतबार से तीन हजार साल कब्ल मसीह से शुरू होकर सिकन्दर आजम के जमाने तक फ़िरऔनों के 31 खानदान मिस्र पर हुक्मरा रहे हैं। (अल्लाहु आलम) हजरत मूसा अलैहि सलाम के जमाने में मिस्र का हुक्मरां (फ़िरऔन) कौन था और उसका क्या नाम था, यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता, इसलिए यहां फ़िरऔन को उस वक़्त के मिस्र का हुक्मरां (शासक) समझा जाए।

Firon का ख्वाब

तौरात में है और तारीख के माहिर भी कहते हैं कि फ़िरऔन को बनी इसराईल के साथ इसलिए दुश्मनी हो गई थी कि उस ज़माने के काहिनों, नजूमियों और क़याफ़ागरों ने उसको बताया था कि उसकी हुकूमत का ज़वाल एक इसराईली लड़के के हाथ से होगा और कुछ तारीख़ी रिवायतों में है कि फ़िरऔन ने एक भयानक ख्वाब देखा था, जिसकी ताबीर दरबार के ज्योतिषियों और काहिनों ने वहीं दी थी, जिसका ज़िक्र गुज़र चुका है। इस पर फ़िरऔन ने एक जमाअत को इसलिए मुकर्रर किया कि वह तफ़्तीश और तलाश के साथ इसराईली लड़कों को क़त्ल कर दे और लड़कियों को छोड़ दिया करे।

हज़रत मूसा अलैहि सलाम की पैदाइश

हज़रत मूसा अलैहि सलाम का नसब (वंश) कुछ वास्तों से हज़रत याकूब अलैहि सलाम तक पहुंचता है। उनके वालिद का नाम इमरान और वालिदा का नाम यूकाबुद था। इमरान के घर में मूसा अलैहि सलाम की पैदाइश ऐसे ज़माने में हुई जबकि फ़िरऔन इसराईली लड़कों के क़त्ल का फैसला कर चुका था। क्योंकि नुजुमियों ने फ़िरौन को ये बता दिया है के जल्द ही वो बच्चा पैदा होने को है जो तेरी हुकूमत ख़त्म कर देगा और तेरी मौत उसी के ज़रिए होगी।

बहरहाल जूं-जूं करके तीन माह तक उनके पैदा होने की किसी को मुतलक खबर न होने दी। इस सख्त और नाजुक वक़्त में आख़िर अल्लाह तआला ने मदद की और मूसा अलैहि सलाम की वालिदा के दिल में यह बात डाल दी कि एक ताबूत की तरह का सन्दूक बनाओ, जिस पर राल और रोगन पालिश कर दो, ताकि पानी अन्दर असर न कर सके और उसमें उस बच्चे को हिफाजत से रख दो और फिर उस सन्दूक को नील नदी के बहाव पर छोड़ दो।

मूसा अलैहि सलाम की मां ने ऐसा ही किया और साथ ही अपनी बड़ी लड़की मूसा की बहन को लगाया कि वह इस सन्दूक के बहाव के साथ किनारे-किनारे चलकर सन्दूक को निगाह में रखे और देखे कि अल्लाह उसकी हिफाजत का वायदा किस तरह पूरा करता है, क्योंकि मूसा अलैहि सलाम की वालिदा को अल्लाह तआला ने यह बशारत पहले ही सुना दी थी कि हम इस बच्चे को तेरी ही तरफ ला कर देंगे और यह हमारा पैग़म्बर और रसूल होगा।

Firon के घर में तर्बियत

हज़रत मूसा अलैहि सलाम की बहन बराबर सन्दूक के बहाव के साथ-साथ किनारे-किनारे निगरानी करती जा रही थीं कि उन्होंने देखा सन्दूक तैरते हुए शाही महल के किनारे आ लगा और फ़िरऔन के घराने में से एक औरत ने ख़ादीमों के जरिए उसको उठवा लिया और शाही महल में ले गई। हज़रत मुसा अलैहि सलाम की हमशीरा (बहन) यह देखकर बहुत खुश हुई और हालात की सही तफ़्सील मालूम करने के लिए शाही महल की नौकरानियों में शामिल हो गई।

यहां यह बात हो रही थी, उधर हजरत मूसा अलैहि सलाम की वालिदा इन्तिजार में आंखें फैलाए हुए थीं कि लड़की (हज़रत मूसा की बहन) ने आकर पूरी दास्तान कह सुनाई और कहा कि अब तुम चलकर अपने बच्चे को सीने से लगाओ और आंखें ठंडी करो और उसका शुक्र अदा करो कि उसने अपना वायदा पूरा कर दिया। इस तरह अल्लाह तआला ने हजरत मूसा की परवरिश का पूरा इन्तिजाम कर दिया।

हज़रत मूसा का मिस्र से निकलना

हज़रत मूसा अलैहि सलाम एक अर्से तक शाही तबियत में बसर करते-करत जवानी के दौर में दाखिल हुए तो निहायत मज़बूत, कड़यल और बहादुर जवान निकले। चहरे से रौब टपकता और बातों से एक खास वकार और अजमत को शान शाहिर होती थी। उनको यह भी मालूम हो गया था कि वह इसराईली हैं और मिस्री खानदानों से इनकी कोई रिश्तेदारी नहीं है। उन्होंने यह भी देखा कि बनी इसराईल पर बड़े जुल्म हो रहे हैं और वे मिस्र में बड़ी जिल्लत और गुलामी की जिंदगी बसर कर रहे हैं। यह देखकर उनका खून खौलने लगता और मौके-मौके से इबरानियों की हिमायत व मदद में पेश हो जाते।

एक बार शहरी आबादी से एक किनारे जा रहे थे कि देखा एक मिस्री एक इसराईली को बेकार के लिए घसीट रहा है। इसराईली ने मूसा अलैहि सलाम को देखा तो लगा फ़रियाद करने और मदद चाहने। हज़रत मूसा को मिस्री की इस जाबिराना हरकत पर सख्त गुस्सा आया और उसको बाज़ रखने की कोशिश की, मगर मिस्री न माना, मूसा ने गुस्से में आकर एक तमांचा रसीद कर दिया। मिस्री इस मार को सह न सका और उसी वक्त मर गया।

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने यह देखा तो बहुत अफ़सोस किया, क्योंकि उनका इरादा बिल्कुल उसके क़त्ल का न था और नदामत व शर्मिन्दगी के साथ दिल में कहने लगे कि बेशक यह शैतान का काम है। वही इंसान को ग़लत रास्ते पर लगाता है और अल्लाह की बारगाह में अर्ज करने लगे कि यह जो कुछ हुआ, अनजाने में हुआ, मैं तुझसे माफ़ी चाहता हूं। अल्लाह ने भी उनकी ग़लती को माफ़ कर दिया और मग़फ़िरत की बशारत से नवाज़ा।

इधर शहर में मिस्री के क़त्ल की ख़बर फैल गई, मगर क़ातिल का कुछ पता न चला। आख़िर फ़िरऔन के पास मदद तलब की कि यह काम किसी इसराईली का है, इसलिए आप मदद फ़रमाएं। फ़िरऔन ने कहा कि इस तरह सारी क़ौम से बदला नहीं लिया जा सकता, तुम क़ातिल का पता लगाओ, मैं उसको ज़रूर पूरी सज्ञा दूंगा।

बुरा इत्तिफ़ाक़ कहिए या अच्छा इत्तिफ़ाक़ कि दूसरे दिन भी हज़रत मूसा अलैहि सलाम शहर के किनारे पर सैर फ़रमा रहे थे कि देखा वहीं इसराईली एक क़िब्ती से झगड़ रहा है और किब्ती गालिब है। मूसा अलैहि सलाम को देखकर कल की तरह उसने आज भी फ़रियाद की और मदद चाही।

इस वाकिए को देखकर हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने दोहरी नागवारी महसूस की, एक तरफ़ क़िब्ती का जुल्म था और दूसरी तरफ़ इसराईली का शोर और पिछले वाकीए की याद थी, इसी झुंझलाहट में एक तरफ मिस्री को बाज रखने के लिए हाथ बढ़ाया और साथ ही इसराईलीही को झिड़कते हुए फरमाया ‘इन-क समावीयुन अमीन० (तू ही बेशक, खुला हुआ गुमराह है) यानी ख्वामखाही झगड़ा मोल लेकर दाद व फ़रियाद करता रहता है।

इसराईली ने हजरत मूसा अलैहि सलाम को हाथ बढ़ाते और फिर अपने मुताबिक नागवार और कड़वे अलफाज कहते सुना तो यह समझा कि यह मुझको मारने के लिए हाथ बढ़ा रहे हैं और मुझको पकड़ में लेना चाहते हैं, इसलिए शरा भरे अन्दाज में कहने लगा –

  • जिस तरह कल तूने एक जान (क़िब्ती) को हलाक किया उसी तरह आप मुझको क़त्ल कर देना चाहता है। क़ुरान 28:19

मिस्री ने जब यह सुना तो उस वक्त फिरौनियों से जाकर सारी दास्ताँ कह सुनाई। उन्होंने फिरौन को इत्तिला दी कि मिस्री का कातिल मूसा है। फ़िरऔन ने यह सुना तो जल्लाद को हुक्म दिया कि मूसा को गिरफ्तार कर हाजिर करे। मिस्रियों के इस मज्मे में एक मुअज्जज शहरी वह भी था जो दिल व जान से हजरत मूसा से मुहब्बत रखता और इसराईली मजहब को जानता था।

यह फ़िरऔन ही के खानदान का आदमी था और दरबार में हाजिर था। उसने फ़िरऔन का यह हुक्म सुना तो फिरौनी जल्लाद से पहले ही दरबार से निकल कर दौड़ता हुआ हज़रत मूसा की खिदमत में हाजिर हुआ और उनसे सारा किस्सा बयान किया और उनको मशविरा दिया कि इस वक्त मस्लहत यही है कि खुद को मिस्रियों से नजात दिलाइए और किसी ऐसे मक़ाम पर हिजरत कर जाइए जहां उनकी पकड़ न हो सके। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने उसके मशविरे को कुबूल फ़रमाया और अर्जे मदयन की तरफ खामोशी के साथ रवाना हो गए।

हज़रत मूसा की हिजरत और मदयन का इलाका

हजरत शुऐब अलैहि सलाम के वाक़ियों में मदयन का जिक्र आ चुका है। मदयन की आबादी मिस्र से आठ मंजिल पर वाकए थी। हजरत मूसा अलैहि सलाम सलाम चूंकि फ़िरऔन के डर से भागे थे, इसलिए उनके साथ न कोई रफीक और रहनुमा था और नही रास्ते का ख़र्च और तेज भागने की वजह से नंगे पैर थे। इस परेशान हाली में मूसा अलैहि सलाम मदयन के इलाके में दाखिल हुए।

मदयन का पानी

जब मदयन की सरजमीन में कदम रखा तो देखा कि कुएं के सामने पानी के हौज (प्याऊ) पर भीड़ लगी हुई है और जानवरों को पानी पिलाया जा रहा है, मगर इस जमाअत से थोड़ी दूरी पर दो लड़कियां खड़ी हैं और अपने जानवरों को पानी पर जाने से रोक रही हैं।

बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम से यह हालत न देखी गई और आगे बढ़कर लड़कियों से मालूम किया: ‘तुम क्यों नहीं पानी पिलाती‘, पीछे किस लिए खड़ी हो? दोनों ने जवाब दिया, ‘हम मजबूर हैं, अगर जानवरों को लेकर आगे बढ़ते हैं तो ये ताकतवर जबरदस्त हम को पीछे हटा देते हैं और हमारे वालिद बहुत बूढ़े हैं। अब उनमें यह ताकत नहीं है कि उनके रोक को दूर कर सकें, पस जब ये सब पानी पिलाकर वापस हो जाएंगे, तब हम बचा हुआ पानी पिलाकर लौटेंगे, यही हमारा रोज का दस्तूर है।

हजरत मूसा अलैहि सलाम को जोश आ गया और आगे बढ़कर तमाम भीड़ को चीरते हुए कुएं पर जा पहुंचे और कुएं का बड़ा डोल उठाया और तंह खींच कर लड़कियों के मवेशियों को पानी पिला दिया। हजरत मूसा अलैहि सलाम जब भीड़ को चीरते हुए दर्राना घुसने लगे, तो अगरचे लोगों को नागवार गुजरा, लेकिन उनकी जलाली सूरत और जिस्मानी ताकत से मरऊब हो गये और डोल को तंहा खींचते ही देखकर उसी ताकत से हार मान गए जिसके बलबूते पर कमज़ोरों और नातवा को पीछे हटा दिया करते और उनकी जरूरतों को पामाल करते रहते थे।

ग़रज जब इन लड़कियों के जानवरों ने पानी पी लिया तो वे घर को वापस चली, घर पहुंची तो आदत के ख़िलाफ़ जल्द वापसी पर उनके बाप को बड़ा ताज्जुब हुआ, पूछने पर लड़कियों ने गुजरा हुआ माजरा कह सुनाया कि किस तरह उनकी एक मिस्री ने मदद की। बाप ने कहा, ‘जाओ और उसको मेरे पास लेकर आओ।’

यहां तो बाप बेटी के दर्मियान यह बात-चीत हो रही थी और उधर हजरत मूसा अलैहि सलाम पानी पिलाने के बाद करीब ही एक पेड़ के साए में बैठकर सुस्ताने लगे। मुसाफ़रत, अजनबीपन और भूख-प्यास, इस हालत में उन्होंने दुआ की –

  • परवरदिगार! इस वक्त जो भी बेहतर सामान मेरे लिए तू अपनी कुदरत से नाजिल करे, मैं उसका मुहताज हूं। 28:24

लड़की वहां पहुंची तो देखा कि कुएं के क़रीब ही हज़रत मूसा अलैहि सलाम बैठे हुए हैं। शर्म व हया के साथ नज़रें नीचे किए लड़की ने कहा, ‘आप हमारे घर चलिए, वालिद बुलाते हैं। वह आपके इस एहसान का बदला देंगे।‘

हज़रत मूसा अलैहि सलाम यह सुनकर उठ खड़े हुए और लड़की की रहनुमाई में चल पड़े और लड़कियों के बाप की खिदमत में हाजिर होकर मुलाकात का शरफ़ हासिल किया। उन बुजुर्ग ने पहले तो खाना खिलाया और उनके हालात सुने। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने ठीक ठीक अपनी पैदाइश और फ़िरऔन के बनी इसराईल पर मज़ालिम से शुरू करके आखिर तक सारी दास्तान कह सुनाई।

बुजुर्ग ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को तसल्ली दी और फरमाया कि अल्लाह का शुक्र अदा करो कि अब तुमको जालिमों के पंजे से निजात मिल गई। अब कोई डरने की बात नहीं है। कुरआन करीम ने उन बुजुर्ग को शेखे कबीर कहा है।

शेख की बेटी से निकाह का रिश्ता

ऊपर की बातों के दौरान उस लड़की ने, जो हजरत मूसा अलैहि सलाम को बुलाने गई थी, अपने बाप से कहा –

  • ऐ बाप! आप उस मेहमान को अपने मवेशियों के चराने और पानी मुहैया करने के लिए अज्र पर रख लीजिए। अज्र पर किसी बेहतर आदमी को रखा जाए, जो मजबूत भी हो और अमानतदार भी। अल कसस 28:26

बुजुर्ग बाप ने बेटी की इन बातों को सुना तो बहुत मसरूर हुए और हजरत मूसा अलैहि सलाम से कहा कि अगर तुम आठ साल तक मेरे पास रहो और मेरी बकरियां चराओ तो मैं अपनी इस बेटी को तुमसे शादी करने को तैयार हूं और अगर तुम इस मुद्दत को दो साल बढ़ाकर दस साल कर दो तो और भी बेहतर है।

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने इस शर्त को मंजूर कर लिया और फरमाया कि यह मेरी ख़ुशी पर छोड़ दीजिए कि मैं इन दोनों महतों में से जिसको चाहूं पूरा कर दूं। आपकी तरफ़ से मुझ पर इस बारे में कोई जब्र न होगा। दोनों तरफ़ की इस आपसी रजामंदी के बाद बुजुर्ग मेज़बान ने मूसा अलैहि सलाम से उस बेटी की शादी कर दी।

नोट– हजरत मूसा अलैहि सलाम के ससुर जिनको कुरआने मजीद ने ‘शेख कबीर’ कहा है, वह हजरत शुऐब न थे, जबकि बाज़ तारीखी रिवायतों से ये मशहूर कौल है के वह बुजुर्ग हज़रत शुएब अलैहि सलाम ही थे, देखे तफ़्सीर इब्ने कसीर। अल्लाहु आलम।

मुकद्दस वादी

शादी के बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम अपने ससुर के यहां मुक़र्रर की हुई मुद्दत पूरै करने, यानी बकरियां चराने के लिए ठहरे रहे। तफसीर लिखने वाले मुस्तनब रिवायतों के पेशेनजर फ़रमाते हैं कि मूसा अलैहि सलाम ने पूरी मुद्दत यानी दस साल के मुद्दत पूरी की। कुरआन मजीद ने यह नहीं बताया कि मुद्दत पूरी होने के किस कदर बाद तक मूसा अलैहि सलाम अपने ससुर के पास ठहरे रहे। बहरहाल हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने मदयन में एक मुहलत तक कियाम किया और इस पूरी मुद्दत में आप ससुर के मवेशियों की देख-भाल करते रहे।

इस बीच एक बार हज़रत मूसा अलैहि सलाम अपने घर वालों समेत बकरि चराते-चराते मदयन से बहुत दूर निकल गए। जानवरों के चरने-चराने का काम करने वाले कबीलों के लिए यह बात ताज्जुब की न थी, मगर रात ठंडी थी।

इसलिए सर्दी आग की खोज के लिए मजबूर कर रही थी, सामने सीना (पहाड़) का सिलसिला नजर आ रहा था, यह सीना का पूर्वी कोना था और मदयन एक दिन के फ़ासले पर लाल सागर की दो शाखाओं के दर्मियान मिस्र जाते हुए वाके था। हजरत मूसा अलैहि सलाम ने सामने की घाटी (ऐमन की घाटी) में निगाह दौड़ाई तो एक शोला चमकता हुआ नजर पड़ा। बीवी से कहा कि तुम यही ठहरो मैं आग ले आऊ, तापने का भी इन्तिजाम हो जाएगा और अगर वहां को रहबर मिल गया तो भटकी हुई राह का भी पता लग जाएगा।

  • फिर मूसा अलैहि सलाम ने अपनी बीवी से कहा, तुम यहां ठहरो, मैंने आग देखी है, शायद उसमें से कोई चिंगारी तुम्हारे लिए ला सकू या वहां अलाव पर किसी रहबर को पा सकूँ। ताहा 20:10

हज़रत मूसा रसूल बनाए गए

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने देखा कि अजब आग है, पेड़ पर रोशनी नज़र आती है, मगर न पेड़ को जलाती है, न गुल ही होती है। यह सोचते हुए आगे बढ़े, ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते जाते थे, आग और दूर होती जाती थी। यह देखकर मूसा अलैहि सलाम को डर-सा पैदा हुआ और उन्होंने इरादा किया कि वापस हो जाएं। ज्यों ही वह पलटने लगे, आग क़रीब आ गई और करीब हुए तो सुना कि यह आवाज़ आ रही है

  • – ऐसा मूसा! मैं हूं अल्लाह, परवरदिगार दुनियाओं का। क़सस 28:30

पस जब मूसा अलैहि सलाम उस (आग) के करीब आए तो पुकारे गए,

  • ऐ मूसा! मैं हूं तेरा परवरदिगार पस अपनी जूती उतार दे, तू तुवा की मुक़द्दस वादी में खड़ा है और देख! मैंने तुझको अपनी रिसालत के लिए चुन लिया है, पस जो कुछ वह्य की जाती है, उसे कान लगाकर सुन। ताहा 20:11-18

हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब अल्लाह की उस आवाज़ को सुना और उनको यह मालूम हुआ कि आज उनके नसीब में वह दौलत आ गई है जो इंसानी शराफत की इम्तियाजी शान और अल्लाह की मुहब्बत का आखिरी निशान है, तो फुले न समाए। आखिर फिर उसी तरफ़ से शुरूआत हुई और पूछा गया

-मूसा! तेरे दाहिने हाथ मैं यह क्या है? ताहा 20:11

हालाँकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त बेहतर इल्म रखने वाला है।

मूसा अलैहि सलाम ने जवाब दिया –

  • यह मेरी लाठी है। इस पर (बकरियां चराते वक्त) सहारा लिया करता हूँ और अपनी बकरियों के लिए पत्ते झाड़ लेता हूं। ताहा 20:18

अल्लाह की निशानियां

अब अल्लाह तआला ने इर्शाद फरमाया

  • -मूसा! अपनी इस लाठी को जमीन पर डाल दो। ताहा 20:19-20
  • और मूसा अलैहि सलाम ने इस इर्शाद की तामील की-मूसा अलैहि सलाम ने लाठी को ज़मीन पर डाल दिया, पस यकायक वह अजगर बनकर दौड़ने लगा। ताहा 20:21

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जब हैरत में डाल देने वाला यह वाकिया देखा, तो घबरा गए और बशर होने के तकाजे का असर लेकर भागने लगे। पीठ फेरते ही ये कि आवाज आई

  • –(अल्लाह तआला ने फ़रमाया) ‘मूसा! इसको पकड़ लो, खौफ़ न खाओ, हम इसको इसकी असल हालत पर लौटा देंगे। ताहा 20:21

हज़रत मूसा अलैहि सलाम की लकड़ी दो शाखा थी। अब वही दो शाखा अजगर मुंह नजर आ रहा था। सख्त परेशान थे, मगर अल्लाह की कुर्बत ने तमानियत व सुकून की हालत पैदा कर दी और उन्होंने बे-ख़ौफ़ होकर उसके मुंह पर हाथ डाल दिया। इस अमल के साथ ही फ़ौरन वह दो शाखा फिर लाठी बन गयी।

  • अब मूसा अलैहि सलाम को दोबारा पुकारा गया और हुक्म हुआ कि अपने हाथ गरेबान के अन्दर ले जाकर बग़ल से मस कीजिए और फिर देखिए, वह मरज से पाक बे-दाग़ चमकता हुआ निकलेगा।
  • और मिला दे अपने हाथ को अपनी बाल के साथ, निकल आएगा वह रोशन, बगैर किसी मरज के (यानी बर्स से पाक) यह दुसरी निशानी है। ताहा 20-22
  • मूसा! यह हमारी ओर से तुम्हारी नुबूवत व रिसालत के दो बड़े निशान हैं। ये सच्चाई के तुम्हारे पैग़ाम और हक़ की दलीलों की जबरदस्त ताईद करेंगे, पस जिस तरह हमने तुमको नुबूबत व रिसालत से नवाजा, उसी तरह तुमको ये दो अजीमुश्शान निशान (मोजजे) भी अता किए। ताकि हम तुझको अपनी बड़ी निशानियों का मुशाहदा करा दें। ताहा 20-25
  • पस तेरे परवरदिगार की ओर से फिरऔन और उसकी जमानत के मुकाबले में तेरे लिए ये दो बुरहान’ हैं। बेशक वह फ़िरऔन और उसकी जमाअत नाफरमान कौम हैं। ताहा 20-32

अब जाओ फ़िरऔन और उसकी कौम को हिदायत की राह दिखाओ। उन्होंने बहुत सकरशी और नाफरमानी अख्तियार कर रखी है और अपने गुरुर व तकब्बुर और बेइंतिहा जुल्म के साथ उन्होंने बनी इसराईल को गुलाम बना रखा है। सो उनको गुलामी से नजात दिलाओ।’

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने जनाबे बारी तआला में अर्ज किया,

  • परवदिगार! मेरे हाथ से एक मिस्री क़त्ल हो गया था, इसलिए यह ख़ौफ़ है कि कहीं वे मुझको क़त्ल न कर दें। मुझे यह भी ख्याल है कि वे मुझे बहुत जोर से झुठलाएंगे और मुझे झूठा कहेंगे, यह ऊंचा मंसब जब तूने दिया है तो मेरे सीने को फ़रानी और नूर से भर दे और इस अहम खिदमत को मेरे लिए आसान बना दे और जुबान में पड़ी हुई गिरह को खोल दे, ताकि लोगों को मेरी बात समझने में आसानी हो। चूंकि मेरी बातों में रवानी नहीं है और मेरे मुकाबले में मेरा भाई हारून मुझसे ज़्यादा निखरी जुबान में बातें करता है, इसलिए उसको भी अपनी इस नेमत (नबूवत) से नवाज़ कर मेरे कामों में शरीक बना दे।’ ताहा 20:25-35

अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम को इत्मीनान दिलाया कि तुम हमारा पैगाम लेकर जरूर जाओ और उनको हक का रास्ता दिखाओ, वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। हमारी मदद तुम्हारे साथ है और जो निशान हमने तुमको दिए हैं, वे तुम्हारी कामियाबी की वजह होंगे और नतीजे के तौर पर तुम्हीं ग़ालिब रहोगे। हम तुम्हारी दरख्वास्त मंजूर करते हैं और तुम्हारे भाई हारून को भी तुम्हारा शरीकेकार बनाते हैं।

देखो, तुम दोनों फ़िरऔन और उसकी क़ौम को जब हमारे सही रास्ते की ओर बुलाओ, तो उस पैग़ामे हक्क में नर्मी और मिठास के साथ पेश आना, क्या अजब है कि वे नसीहत कुबूल कर लें और ख़ुदा का ख़ौफ़ करते हुए जुल्म से बाज़ आ जाएं।

मिस्र में दाखिला

जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम नुबूवत के मंसब से सरफ़राज़ होकर कलामे रब्बानी से फैजयाब बनकर और दावत और हक़ की तब्लीग़ में कामयाबी व कामरानी की खुशखबरी पा कर मुक़द्दस वादी से उतरे, तो अपनी बीवी के पास पहुंचे जो वादी के सामने जंगल में उनके इंतजार में रास्ता देख रही थीं। उनको लिया और यहीं से हुक्मे इलाही की तामील के लिए मिस्र रवाना हो गए। मंजिलें तै करते हुए जब मिस्र पहुंचे तो रात हो गई थी। ख़ामोशी के साथ मिस्र में दाखिल होकर अपने मकान पहुंचे, अन्दर दाखिल हुए और मां के सामने एक मुसाफ़िर की हैसियत में जाहिर हुए। यह बनी इसराईल में मेहमानवाज घर था।

हजरत मूसा अलैहि सलाम की खूब ख़ातिर मदारत की गई। इसी बीच उनके बड़े भाई हजरत हारून आ पहुंचे। यहां पहुंचने से पहले ही हारून को अल्लाह की तरफ़ से रिसालत का मंसब दिया जा चुका था, इसलिए उनको वह्य के ज़रिए हजरत मूसा अलैहि सलाम का सारा किस्सा बता दिया गया था। वह भाई से आकर लिपट गए और फिर उनके घर वालों को घर के अन्दर ले गए और मां को सारा हाल सुनाया। तब सब ख़ानदान के लोग आपस में गले मिले और बिछड़े हुए भाई एक दूसरे की बीती जिंदगी के हालात से वाकिफ हुए और मां की दोनों आंखों ने ठंडक हासिल की।

Firon के दरबार में हक की दावत

बहरहाल हजरत मूसा अलैहि सलाम व हजरत हारून अलैहि सलाम के दर्मियान जब मुलाकात और बात-चीत का सिलसिला खत्म हुआ, तो अब दोनों ने तै किया कि अल्लाह का हुक्म पहुंचाने के लिए फ़िरऔन के पास चलना और उसको अल्लाह का पैगाम सुनाना चाहिए। इस ग़रज़ से दोनों भाई यानी अल्लाह के सच्चे पैग़म्बर व नबी फ़िरऔन के दरबार में पहुंचे और बगैर कोई डर और ख़तरा महसूस किए दाखिल हो गए।

जब फ़िरऔन के करीब पहुंचे तो हज़रत मूसा व हारून अलैहि सलाम ने अपने आने की वजह बयान की और बात-चीत शुरू हुई।

  • ‘और मूसा ने कहा, ऐ फिरऔन! मैं जहानों के परवरदिगार का भेजा हुआ रसूल हूं। मेरे लिए किसी तरह जेबा नहीं कि अल्लाह पर हक और सच के अलावा कुछ और कहूं, बेशक मैं तुम्हारे लिए, तुम्हारे परवरदिगार के पास से दलील और निशानी लाया हूं पस तू मेरे साथ बनी इसराईल को भेज।’ अल आराफ 7:104-105

Firon ने जवाब में कहा –

  • क्या हमने तुझको अपने यहां लड़का-सा नहीं पाला और तू हमारे यहां एक मुद्दत तक नहीं रहा और तूने उस जमाने में जो कुछ काम किया वह तुझे खुद भी मालूम है और तू नाशुक्रगुजार है। 26:19

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-

  • मैंने वह काम (मिस्री का क़त्ल) जरूर किया और मैं चूक जाने वालों में से हूं, फिर यहां से तुम्हारे खौफ से भाग गया, फिर मेरे रब ने मुझको सही फ़ैसले की समझ दी और मुझको अपने पैगम्बरों में से बना लिया (ये उसकी हिक्मत की करिश्मासाजियां है) और मेरी (परवरिश) का यह एहसान जिसको तू मुझ पर जता रहा है, क्या ऐसा एहसान है कि तू बनी इसराईल को गुलाम बनाए रखे? 26:20-22
  • फ़िरऔन बोला – बोला फ़िरऔन क्या मानी हैं परवरदिगारे आलम के?’ 26:23

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया – ‘रब्बुल आलमीन’ वह हस्ती है, जिसके रब होने के असर से तेरा और तेरे बाप का वजूद भी खाली नहीं है, यानी जिस वक्त तू वजूद में न आया था, तो तुझको पैदा किया और तेरी तरबियत की और इसी तरह वह तुझसे पहले तेरे बाप-दादा को आलमे वजूद में लाया और उनको अपने रब होने से नवाज़ा।’

फ़िरऔन ने जब इस खामोश कर देने वाली और जबरदस्त दलील को सुना और कोई जबाव न बन पड़ा तो दरबारियों से कहने लगा, मुझे ऐसा मालूम होता है कि यह जो खुद को तुम्हारा पैगम्बर और रसूल कहता है, मजनूं और पागल है।

हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने जब यह देखा कि उससे अब कोई जवाब नहीं बन पड़ता तो सोचा यह बेहतर है कि ज्यादा दिलनशीं अन्दाजे बयान में अल्लाह के रब होने को वाजेह किया जाए, इसलिए फ़रमाया

‘यह जो पूरब और पच्छिम और उसके बीच सारी कायनात नज़र आती है उसका रब होना उसकी कुदरत में है, उसी को मैं ‘रब्बुल आलमीन’ कहता हूं। तुम अगर जरा मी अक्ल से काम लो तो इस हकीकत को आसानी से पा सकते हो।’

  • एक बार फिर हजरत मूसा ने फ़िरऔन को यद दिलाया कि जो रास्ता तूने अख्तियार किया है, यह सही नहीं है, बल्कि रब्बुल आलमीन ही वह जात है, जो परश्तिश के लायक है और उसके मुकाबले में किसी इंसान का रब होने का दावा करना खुला हुआ शिर्क है। ऐ फ़िरऔन! तू इससे बाज़ आ क्योंकि उस हस्ती ने जिसको मैं रब्बुल-आलमीन कह रहा हूं, हम पर यह वह्य उतारी है कि जो आदमी हक़ के इस कौल की ख़िलाफ़वर्जी करेगा। झल्लाएगा और उससे मुंह मोड़ेगा, वह अल्लाह के अजाब का हकदार ठहरेगा। जो कोई सरताबी करे तो हम पर वह्य उतर चुकी कि उसके लिए अज़ाब का पयाम है। तहा 20:48

फ़िरऔन ने फिर वही सवाल दोहराया- अगर ऐसा ही है तो बतलाओ तुम्हारा परवरदिगार कौन है। ताहा 20:49

  • मूसा ने कहा – हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज को उसका वजूद बख्शा और उस पर (जिंदगी व अमल की) राह खोल दी। ताहा 20:50
फिर उनका क्या हाल होता है जो पिछले जमानों में गुजर चुके। ताहा 20:51
  • मूसा ने कहा- इस बात का इल्म मेरे परवरदिगार के पास में है, मेरा परवरदिगार ऐसा नहीं कि खोया जाए या भूल में पड़ जाए, वह परवरदिगार जिसने तुम्हारे लिए जमीन बिछौने की तरह बिछा दी, चलने-फिरने के लिए उसमें राहें निकाल दी, आसमान से पानी बरसाया, उसकी सिंचाई से हर तरह की वनस्पति के जोड़े पैदा कर दिए, खुzद भी खाओ और मवेशी भी चराओ, इस बात में अक्ल वालों के लिए कैसी खुली निशानियां हैं? उसने इस जमीन से तुम्हें पैदा किया, उसी में लौटना है और फिर उसी से दूसरी बार उठाएं जाओगे। ताहा 20:52-55

फिरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया)

अलग-अलग मज्लिसो में बात-चीत का यह सिलसिला जारी रहा और फिरऔन ने बहस के सिलसिले को ख़त्म करने के लिए दूसरे तरीके अखियार किए। आखिरकार उसने अपनी कौम को मुखातब करते हुए कहा-

  • और फ़िरऔन ने कहा, ऐ जमाअत! मैं तुम्हारे लिए अपने सिवा कोई खुदा नहीं जानता। कसस 28:38

और फिर (अपने वजीर मुशीर को) हुक्म दिया-

  • ऐ हामान! मेरे लिए एक बुलन्द इमारत तैयार कर, ताकि मैं आसमानों की बुलन्दियों और उनके जरियों तक दस्तरस हासिल कर सकूँ और इस तरह मूसा के खुदा का हाल मालूम कर सकूँ और मैं तो उसको झूठा समझता हूं। 40: 36-37

हामान हामान के बारे में कुरआन ने साफ़ नहीं किया कि यह शख्सियत का नाम है या ओहदे और मंसब का और न उसने इस पर रोशनी डाली कि हामान ने इमारत तैयार कराई या नहीं। तौरात भी इस बारे में ख़ामोश है।

फ़िरऔन के दरबार में मुजाहरा

गरज फ़िरऔन का ख़दशा बढ़ता ही रहा और नौबत यहां तक पहुंची कि-

  • फ़िरऔन ने कहा, अगर तूने मेरे सिवा किसी को माबूद बनाया तो मैं तुझे जरूर कत्ल कर दूंगा। 26:29
  • मूसा ने कहा – अगरचे मैं तेरे पास जाहिर निशान लाया हूं, तब भी?’26:30
  • फ़िरऔन ने कहा – अगर तू सच्चा है, तो वह निशान दिखा।’ 26:31

हज़रत मूसा अलैहि सलाम आगे बढ़े और भरे दरबार में फ़िरऔन के सामने अपनी लाठी को जमीन पर डाला। उसी वक्त उसने अजगर की शक्ल अख्तियार कर ली और यह हकीकत थी, नज़र का घोखा न था और फिर हजरत मुसा अलैहि सलाम ने अपने हाथ को गरेबान के अन्दर ले जाकर बाहर निकाला तो वह एक रोशन सितारे की तरह चमकता हुआ नज़र आ रहा था। यह दूसरी निशानी और दूसरा मोजजा था।

फ़िरऔन के दरबारियों ने जब इस तरह एक इसराईली के हाथों अपनी कौम और अपने बादशाह की हार को देखा, तो तिलमिला उठे और कहने लगे, बेशक यह बहुत बड़ा माहिर जादूगर है और उसने यह सब ढोंग इसलिए रचाया है कि तुम पर ग़ालिब आकर तुमको तुम्हारी सरज़मीन (मिस्र) से बाहर निकाल दे, इसलिए अब हमको सोचना है कि उसके बारे में क्या होना चाहिए।

आखिर फ़िरऔन और फ़िरऔनियों के आपसी मशवरे से यह तै पाया कि फ़िलहाल तो इसको और हारून को मोहलत दो और इस मुद्दत में पूरे राज्य से माहिर जादूगरों को राजधानी में जमा करो और फिर मूसा का मुकाबला कराओ, यह हार खा जाएगा और इसके तमाम इरादे ख़ाक में मिल जाएंगे।

तब फ़िरऔन ने हज़रत मूसा अलैहि सलाम से कहा, मुसा! हम समझ गए कि तू इस हीले से हमको मिस्र की धरती से बेदखल करना चाहता है, इसलिए तेरा इलाज अब इसके सिवा कुछ नहीं कि बड़े-बड़े माहिर जादूगरों को जमा करके तुझको हार दिला दी जाए। अब तेरे और हमारे दर्मियान मुकाबले के दिन का समझौता होना चाहिए और फिर न हम उससे टालेंगे और न तुम वादाखिलाफ़ी करना।

हजरत मूसा अलैहि सलाम ने फ़रमाया कि इस काम के लिए सबसे बेहतर वक़्त ‘यौमुजीना’ (जश्न का दिन) है, उस दिन सूरज बुलन्द होने पर हम सबको मौजूद होना चाहिए।

नोट: मिस्रियों की ईद का दिन जो ‘वफ़ाउन्नैल’ के नाम से मशहूर है, क्योंकि उनके यहां तमाम ईदों में सबसे बड़ी ईद का दिन यही था।

गरज हजरत मूसा अलैहि सलाम और फ़िरऔन के दर्मियान ‘यौमुजीना’ ते पाया और फ़िरऔन ने उसी वक्त अपने जिम्मेदारों और दरबारियों के नाम हुक्म जारी कर दिए कि पूरे राज्य में जो भी मशहूर और माहिर जादूगर हों, उनको जल्द-से-जल्द राजधानी रवाना कर दो।

जादूगरों की हार और फ़िरऔन का रद्देअमल (प्रतिक्रिया)

बहरहाल जश्न का दिन आ पहुंचा, जश्न के मैदान में तमाम शाहाना कर व फ़र के साथ फ़िरऔन तख्तनशी है और दरबारी भी दर्जे के एतबार से क़रीने से बैठे हैं और लाखों इंसान हक व बातिल के मारके का नज़ारा करने को जमा हैं। एक तरफ मिस्र के मशहूर जादूगरों का गिरोह अपने साज व सामान से लेस खड़ा है और दूसरी तरफ़ अल्लाह के रसूल, हक के पैगम्बर, सच्चाई और रास्ती के पेकर हज़रत मूसा व हारून खड़े हैं। ऐसी हालत में –

  • जादूगर फ़िरऔन के पास आए और कहने लगे, क्या अगर हम मूसा पर ग़ालिब आ जाएं, तो हमारे लिए इनाम व इकराम है? फ़िरऔन ने कहा, हां, ज़रूर और यही नहीं बल्कि तुम शाही दरबार के मुकर्रब बनोगे। 7:113-114

जादूगरों ने जब इस तरफ़ से इत्मीनान कर लिया तो हज़रत मूसा अलैहि सलाम की तरफ़ मुतवज्जह हुए और हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने कहा-

  • अफ़सोस तुम पर देखो, अल्लाह पर झूठी तोहमत न लगाओ, ऐसा न हो कि वह कोई अज़ाब भेजकर तुम्हारी जड़ उखाड़ दे। जिस किसी ने झूठ बात बनाई, वह नामुराद हुआ। 20:60

जादूगरों ने कहा-

  • ऐ मूसा! या तो तुम अपनी लाठी फेंको या फिर हम फेंके। मूसा ने कहा, तुम ही पहले फेंको। फिर जब जादूगरों ने जादू की बनाई हुई लाठियां और रस्सियां फेंकी, तो लोगों की निगाहें जादू से मार दी और अपने करतबों से उनमें दहशत फैला दी और बहुत बड़ा जादू बना लाए। आराफ 7:115-116
  • और उस वक्त हमने मूसा पर वह्य की कि तुम भी अपनी लाठी डाल दो। ज्यों ही उसने लाठी फेंकी तो अचानक क्या हुआ कि जो कुछ झूठी नुमाइश जादूगरों की थी, सब उसने निगल कर नाबूद कर दी, पस हक कायम हो गया और वे जो अमल कर रहे थे, बातिल होकर रह गया। पस इस मौके वे मतलूब हो गए। आराफ 7:117-118

जादूगरों ने जब मूसा के असा का यह करिश्मा देखा तो-

  • सब जादूगर सज्दे में गिर पड़े, कहने लगे, हम तो जहानों के परवरदिगार पर ईमान ले आए, जो मूसा व हारून का परवरदिगार है। आराफ 7:120-122

इस हालत को देखकर फिरऔन ने कहा-

  • तुम बगैर मेरे हुक्म के मूसा पर ईमान लाए, जरूर यह तुम्हारा सरदार है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है, अच्छा देखो, मैं क्या करता हूं। मैं तुम्हारे हाथ-पांव उलटे-सीधे कटवा दूंगा और खजूर के तनों पर सूली दूंगा। ताहा 20:71

मगर सच्चा ईमान जब किसी को नसीब हो जाता है भले ही वह एक लम्हें ही का क्यों न हो’ वह ऐसी बेपनाह रूहानी कूवत पैदा कर देता है कि कायनात की कोई जबर्दस्त से जबर्दस्त ताक़त भी उसको मरऊब नहीं कर सकती।

इसीलिए जादूगरों को फ़िरऔन की जाबिराना धमकियां मरऊब न कर सकी और उन्होंने कहा-

  • हम यह कभी नहीं कर सकते कि सच्चाई की जो रोशन दलीलें हमारे सामने आ गई हैं और जिस अल्लाह ने हमें पैदा किया है, उससे मुंह मोड़ कर तेरा हुक्म मान लें, तू जो फैसला करना चाहता है, कर गुज़र, तू ज्यादा से ज्यादा जो कुछ कर सकता है वह यही है कि दुनिया की इस जिंदगी का फैसला कर दे। हम तो अपने परवरदिगार पर ईमान ला चुके कि वह हमारी ख़ताये बख्श दे, खास तौर से जादूगरी की ख़ता कि जिस पर तूने हमें मजबूर किया था। हमारे लिए अल्लाह ही बेहतर है और यही बाकी रहने वाला है। ताहा 20:72-73
  • ग़रज़ हक व बातिल की इस कशमकश में फ़िरऔन और उसके दरबारियों को जबरदस्त हार का मुंह देखना पड़ा और वे खुलेआम ज़लील व रुसवा हुए और हजरत मूसा अलैहि सलाम पर अल्लाह का वायदा पूरा हुआ और कामियाबी का सेहरा उन्हीं के सर रहा और जादूगरों के अलावा एक छोटी सी जमाअत इसराईली नौजवानों में से भी मुसलमान हो गई।फिर मूसा पर कोई ईमान नहीं लाया मगर सिर्फ एक गिरोह जो उसकी कौम के नौजवानों का गिरोह था, वह भी फ़िरऔन और उसके सरदारों से डरता हुआ कि कहीं किसी मुसीबत में न डाल दे। यूनुस 10:83

हज़रत मूसा की इस महदूद कामियाबी से मुतास्सिर होकर-

  • फ़िरऔन की क़ौम में से एक जमाअत ने फ़िरऔन से कहा, क्या तू मूसा और उसकी कौम को यों ही छोड़ देगा कि वह ज़मीन (मिस्र) में फ़साद करते फिरें और तुझको और तेरे देवताओं को ठुकरा दें। फ़िरऔन ने कहा हम उनके लड़कों को क़त्ल कर देंगे और उनकी लड़कियों को (बांदिया बनाने के लिए) जिंदा रखेंगे।’ आराफ़ 7:127

यह फ़िरऔन का दूसरा एलान था जो बनी इसराईल के बच्चों के क़त्ल से मुताल्लिक़ किया गया।

बनी इसराईल की बेचैनी

हज़रत मूसा अलैहि सलाम को जब फ़िरऔन और उसके दरबारियों की बात-चीत का हाल मालूम हुआ, तो उन्होंने बनी इसराईल को जमा करके सब्र और अल्लाह पर भरोसा करने की तलकीन की, बनी इसराईल ने सुनकर जवाब दिया कि मूसा, हम पहले ही से मुसीबतों में गिरफ्तार थे, अब तेरे आने पर कुछ उम्मीद बंधी थी, मगर तेरे आने के बाद भी वही मुसीबत बाकी रही, यह तो सख्त आफ़त का सामना है।

हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने तसल्ली दी कि अल्लाह का वायदा सच्चा है, घबराओ नहीं, तुम्ही कामयाब रहोगे और तुम्हारे दुश्मन को हलाकत का मुंह देखना पड़ेगा। जमीन का मालिक फ़िरऔन या उसकी कौम नहीं है, बल्कि रब्बुल आलमीन है जो मुख्तारे मुतलक़ है, पस वह. अपने बन्दों में से जिसको चाहे उसका मालिक बना दे और अंजामेकार यह इनाम मुत्तक्रियों ही का हिस्सा है।

इसके बाद हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने मुसलमानों से कहा कि फ़िरऔन के जूल्मों का सिलसिला अभी ख़त्म नहीं हुआ और वह बनी इसराईल मामिनों को आजादी के साथ मिस्र से चले जाने पर राजी नहीं है। और फिर अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ की, ऐ अल्लाह! फिरओनियों को जो तूने दौलत व सरवत अता फ़रमाई है; उस पर शुक्र करने के बजाए वे तेरे बन्दों पर जब्र और जुल्म व सितम करने पर आमादा हो गए हैं।

और हक के तेरे रास्ते को न ये ख़ुद कुबूल करते हैं और न किसी को कुबूल करने देते हैं, बल्कि जब्र व तशद्दुद से काम लेकर उनके आड़े आते हैं, इसलिए अब तू उनके जुल्मों का मज़ा उनको चखा और उनकी दौलत सरबत को तबाह व हलाक कर दे, जिस पर उन्हें घमंड है और जिस तर ईमान की सच्चाई को ठुकराते हैं, तू भी उनको ईमान की दौलत के बजाए ऐसा दर्दनाक अज़ाब दे कि उनकी दास्तान दूसरों के लिए इबरत बन जाए।

फ़िरऔन की जवाबी कार्रवाई

फ़िरऔन ने अपने सरदारों से अगरचे इत्मीनान का इजहार कर दिया लेकिन हज़रत मूसा अलैहि सलाम के रूहानी ग़लबे का ख्याल उसको अन्दर ही अन्दर घुल डालता था और बनी इसराइल के लड़कों के क़त्ल के हुक्म से भी उनके कल्ब को सुकून नसीब न था, आखिरकार उसने कहा

  • – मुझे मूसा को क़त्ल ही कर लेने दो और उसको चाहिए अपने रब को पुकारे। 40:26

हज़रत मूसा को जब यह मालूम हुआ तो उन्होंने कहा-

  • मैं अपने और तुम्हारे रब की पनाह चाहता हूँ, हर उस घमंडी से जो हिसाब के दिन पर ईमान नहीं लाता। 40:27

मिस्री मर्दे मोमिन

फिरऔन और उसके सरदार जब उस बात-चीत में लगे हुए थे, तो उस मज्लिस में एक मिस्री ‘मर्दै मोमिन’ भी था, जिसने अभी तक अपने इस्लाम’ को छिपा रखा था।

उसने जब यह सुना तो अपनी कौम के उन लोगों के मुकाबले में हज़रत मूसा अलैहि सलाम की ओर से बचाव करने की कोशिश शुरू की, और उनको समझाया कि तुम एक ऐसे आदमी को क़त्ल करने चले हो जो सच्ची बात कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है और जो तुम्हारे सामने अपनी सच्चाई पर बेहतरीन दलील और निशनियां लाया है।

मान लीजिए अगर वह झूठा है तो उसके झूठ से तुमको कुछ नुक्सान नहीं पहुंच रहा है और वह सच्चा है तो फिर उसकी उन धमकियों से डरो जो वह तुमको अल्लाह की ओर से सुनाता है।

फ़िरऔन ने मर्दै मोमिन की बात काटते हुए कहा कि मैं तुमको वही मश्विरा दे रहा हूं, जिसको अपने ख्याल में दुरुस्त समझता हूं और तुम्हारी भलाई की बात कह रहा हूं।

मर्दे मोमिन ने आखिरी नसीहत के तौर पर कहा:

ऐ मेरी क़ौम! मुझे यह डर है कि हमारा हाल कहीं उन पिछली क़ौमों जैसा न हो जाए जो नूह, आद और समूद की कौमों के नाम से मशहूर हैं या उनके बाद कौमें आई। अल्लाह अपने बन्दों पर कभी जुल्म नहीं करता, बल्कि उन क़ौमों की हलाकत खुद अपने इसी किस्म के आमाल की बदौलत पेश आई थी जो आज तुम मूसा के खिलाफ सोच रहे हो तो तुम आज दुनिया में ‘बड़े’ होने की सोच में पड़े हो और मैं तुम्हारे लिए उस दिन से डर रहा हूं जब क़ियामत का दिन होगा और सब एक दूसरे को पुकारेंगे, मगर उस वक़्त तुम्हें कोई अल्लाह के अजाब से बचाने वाला न होगा।

ऐ कौम के सरदारो! तुम्हारा हाल तो यह है कि इस सरज़मीन में जब हज़रत यूसुफ़ अलैहि सलाम ने अल्लाह का पैग़ाम सुनाया था तब भी तुम यानी तुम्हारे बाप-दादा इसी शक और तशद्दुद में पड़े रहे और इन पर ईमान न लाए और जब इनकी वफ़ात हो गई, तो कहने लगे कि अब अल्लाह अपना कोई रसूल न भेजेगा। अब यही मामला तुम मूसा अलैहि सलाम के साथ कर रहे हो। खुदा के लिए समझो और सीधी राह अपनाओ।

जब फ़िरऔन और उसके सरदारों ने उस मर्दे मोमिन की ये बातें सुनी तो उनका रुख मूसा अलैहि सलाम से हटकर उसकी तरफ़ हो गया और फ़िरऔनियों ने चाहा कि पहले उसकी ही खबर लें और उसको क़त्ल कर दें, मगर अल्लाह तआला ने इस नापाक इरादे में उनको कामयाब न होने दिया।

फ़िरऔन का एलान

ग़रज जब फ़िरऔन और उसके सरदारों को मूसा अलैहि सलाम को हराने में नाकामी हुई तो फ़िरऔन ने अपनी कौम में एलान किया-

  • ऐ कौम! क्या मैं मिस्र के ताज व तख़्त का मालिक नहीं हूँ। मेरी हुक़ूमत के क़दमों के नीचे ये नहरें बह रही हैं? क्या तुम (मेरे इस जलाल को) नहीं देखते? (अब बताओ) क्या मैं बुलंद व बाला हूं या जिसको न इज्जत नसीब और जो बात भी साफ न कर सकता हो? (अगरचे अपने खुदा के यहां इज़्ज़त वाला है) तो क्यों उस पर (आसमान से) सोने के कंगन नहीं गिरते या फ़रिश्ते ही उसके सामने पर बांध कर खड़े नहीं होते। (अज-जुखरुफ 43:51-53)

मिस्रियों पर अल्लाह का कहर

गरज हज़रत मूसा अलैहि सलाम की रुश्द व हिदायत का फ़िरऔन और उसके सरदारों पर मुतलक असर नहीं हुआ और कुछ को छोड़कर आम मिस्रीयों ने भी उन्हीं की पैरवी की और सिर्फ यही नहीं, बल्कि फ़िरऔन के हुक्म से बनी इसराईल की नरीना औलाद यानी लड़के क़त्ल किए जाने लगे। मूसा अलैहि सलाम की तौहीन व तज्लील होने लगी और फ़िरऔन ने अपने रब और माबूद होने की जोर-शोर से तब्लीग़ शुरू कर दी। तब हज़रत मूसा अलैहि सलाम पर वह्य आई कि ‘फिरौन को इत्तेला कर दो कि अगर तुम्हारा यही तौर-तरीक़ा रहा, तो बहुत जल्द तूम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल होने वाला है।’

चुनांचे उन्होंने जब इस पर भी ध्यान न दिया तो अब एक के बाद एक अल्लाह के अज़ाब आने लगे। यह देखकर फ़िरऔन और उसकी क़ौम ने यह तरीका अख्तियार किया कि जब अल्लाह का अज़ाब किसी एक शक्ल जाहिर होता, तो फ़िरऔन और फ़िरऔन की क़ौम हज़रत मूसा से वायदा करने लगती, अच्छा हम ईमान ले आएंगे, तू अपने खुदा से यह दुआ कर कि यह अजाब जाता रहे और जब वह अजाब जाता रहता, तो फिर सरकशी और नाफरमानी पर उतर आते, फिर अजाब जब दूसरी शक्ल में आता तो कहते कि अच्छा हम बनी इसराईल को आजाद करके तेरे साथ रवाना कर देंगे।

दुआ कर कि यह अजाब ख़त्म हो जाए और जब हज़रत मूसा अलैहि सलाम की दुआ से उनको फिर मोहलत मिल जाती और अजाब खत्म हो जाता, तो फिर उसी तरह मुखालफ़त पर उतर आते और इस तरह अल्लाह की ओर से अलग-अलग किस्म के निशान जाहिर हुए और फ़िरऔन और फ़िरऔन की कौम को बार-बार मोहलत दी जाती रही। कुरआन उन सात अज़ाब की निशानियों का इस तरह जिक्र करता है-

  • और हमने पकड़ लिया फ़िरऔन वालों को अकालों में और मेवों के नुकसान में ताकि वे नसीहत मानें। फिर हमने भेजा उन पर तूफ़ान और टिडडी चीचड़ी और मेंढक और खून, बहुत-सी निशानियां अलग-अलग दीं। अल आराफ़ 7:130-133

इन आयतों में बयान की गई निशानियों में जूं और मेंढक के बारे में तफ़्सीर लिखने वालों ने लिखा है कि इन चीजों की यह हालत थी कि बनी इसराईल के खाने-पीने, पहनने और बरतने की कोई चीज़ ऐसी न थी, जिनमें ये नज़र न आते हों और खून के बारे में लिखा है कि नील नदी का पानी लहू के रंग का हो गया था और उसके मजे ने उसका पीना मुश्किल कर दिया था और पानी में मछलियां तक मर गई थीं।

नोट: ‘कुम्मल‘ डिक्शनरी के एतबार से बहुत मानी रखने वाला लफ़्ज़ है। इन तमाम मानी की जांच-पड़ताल इस तरह हो सकती है कि अल्लाह ने फ़िरऔनियों पर यह अजाब नाज़िल फ़रमाया कि इंसानों पर जुएं मुसल्लत कर दी, खाने-पीने की चीजों में छोटी मक्खियों को फैला दिया। इन जानवरों में हलाक करने वाला कीड़ा पैदा कर दिया, अनाज और ग़ल्ले में सुरसुरी पैदा कर दी। इन सब हलाक करने वाले कीड़ों को कुरआन ने एक लफ़्ज़ कुम्मल से ताबीर किया है।

बनी इसराईल का मिस्र से लौटना और रवानगी

जब मामला इस हद तक पहुंच गया कि अजाब की बातें भी फिरऔन और फ़िरऔन की क़ौम पर असर न डाल सकी, तो अल्लाह ने हजरत मुसा अलैहि सलाम को हुक्म दिया कि अब वक्त आ गया है कि तुम बनी इसराईल को मिस्र से निकाल कर बाप-दादा की सरजमीन की तरफ़ ले जाओ। इसलिए हज़रत मूसा और हारून बनी इसराईल को लेकर रातों रात लाल सागर के रास्ते पर हो लिए और रवाना होने से पहले मिस्री औरतों के जेवरात और कीमती चीजें जो एक त्यौहार में उधार लिए थे, वह भी वापस न कर सके कि कहीं मिस्रियों पर असल हाल न खुल जाए।

फ़िरऔन का डूबना

हज़रत मूसा अलैहि सलाम ने उनको तसल्ली दी और फ़रमाया: ‘डरो नहीं, अल्लाह का वायदा सच्चा है, वह तुमको नजात देगा और तुम ही कामयाब होंगे और फिर अल्लाह की बारगाह में हाथ फैलाकर दुआ करने लगे। अल्लाह की वस्य ने मूसा को हुक्म दिया कि अपनी लाठी को पानी पर मारो ताकि पानी फटकर बीच में रास्ता निकल आए। चुनांचे मूसा ने ऐसा ही किया, जब उन्होंने समुद्र पर अपना आसा (लाठी) मारा तो पानी फटकर दोनों तरफ़ दो पहाड़ों की तरह खड़ा हो गया और बीच में रास्ता निकल आया और हजरत मूसा अलैहि सलाम के हुक्म से तमाम बनी इसराईल उसमें उतर गए और सूखी जमीन की तरह उससे पार हो गए।

फ़िरऔन ने यह देखा तो अपनी कौम से मुखातब होकर कहने लगा, यह मेरी करिश्मासाज़ी है कि बनी इसराईल को तुम जा पकड़ो, इसलिए बढ़े चलो, चुनांचे फ़िरऔन और उसकी पूरी फौज बनी इसराईल के पीछे उसी रास्ते पर चल पड़ी लेकिन अल्लाह तआला की करिश्मासाजी देखिए कि जब बनी इसराईल का हर आदमी दूसरे किनारे पर सलामती के साथ पहुंच गया, तो पानी अल्लाह के हुक्म से फिर अपनी असली हालत पर आ गया और फ़िरऔन और उसकी तमाम फ़ौज जो अभी बीच ही में थी, डूब गयी।

जब फ़िरऔन डूबने लगा और अज़ाब के फ़रिश्ते सामने नजर आने लगे, तो पुकार कर कहने लगा, ‘मैं उसी एक ख़ुदा पर जिसका कोई शरीक नहीं, ईमान लाता हूं, जिस पर बनी इसराईल ईमान लाए हैं और मैं फ़रमांबरदारों में से हूं।’ मगर यह ईमान चूकि हकीक़ी इमान न था, बल्कि पिछले फ़रेबकारियों की तरह नजात हासिल करने के लिए यह भी एक डांवाडोल बात थी, इसलिए अल्लाह की तरफ से यह जवाब मिला-

  • अब यह कह रहा है, हालांकि इससे पहले जब इकरार का वक्त था, उसमें इंकार और खिलाफ़ ही करता रहा और हकीकत में तू फ़साद पैदा करने वालों में से है। यूनुस 10:91

यानी अल्लाह को खूब मालूम है कि तू ‘मुस्लिमीन’ में से नहीं, बल्कि फसाद पैदा करने वालों में से है।

हकीकत में फ़िरऔन की यह पुकार ऐसी पुकार थी जो ईमान लाने और यक़ीन हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह के अज़ाब को देख लेने के बाद इज्तिरारी और बे-अख्तियारी की हालत में निकलती है और अज़ाब के देखने के वक्त ‘ईमान व यकीन‘ की यह सदा हज़रत मूसा अलैहि सलाम की इस दुआ का नतीजा थी, जिसका जिक्र पीछे पढ़ चुके हैं।

  • पस ये उस वक्त तक ईमान न लाएं जब तक अपनी हलाकत और अजाब को आंखों से देख न लें। अल्लाह ने कहा, बेशक तुम दोनों की दुआ कुबूल कर ली गई। यूनुस 10:88-89
  • इस मौके पर फ़िरऔन की पुकार पर अल्लाह की ओर से यह भी जवाब दिया गया-आज के दिन हम तेरे जिस्म को उन लोगों के लिए जो तेरे पीछे आने वाले हैं, नजात देंगे कि वह (इबरत का) निशान है।यूनुस 10:92

फ़िरऔन की लाश

मिस्रवाद (Egyptology) के मिस्री चिड़ियाघर में एक लाश आज तक महफूज है। ऐसा मालूम होता है कि समुद्र में डूबे रहने की वजह से उसकी नाक को मछली ने खा लिया है। कहा जाता है कि यह लाश मूसा के फ़िरऔन (Merneptah या फिर Ramesses II) की है। (अल्लाह बेहतर जाने) बहरहाल यह आम व ख़ास की तामाशागाह है।

इसके बारे में फ़्रांस के मशहूर डॉक्टर मोरिस बुकाय की दिलचस्ब दास्ताँ यहाँ तफ्सील में पढ़े जो डॉक्टर बुकाय के ईमान लाने की वजह भी बनी।

समुद्र का फटना

कुरआन मजीद में बनी इसराईल के रवाना होने, फ़िरऔन के डूबने और बनी इसराईल की नजात के वाकिए को बहुत थोड़े में बयान किया है और उसने उसके सिर्फ़ ज़रूरी हिस्सों का ही जिक्र किया है। अलबत्ता इससे मुताल्लिक, इबरत, नसीहत, बसीरत, मौअजत के मामले थोड़ा तफ़्सील के साथ जिक्र किए गए हैं।चुनांचे अल्लाह तआला फ़रमाता है –

  • और फिर देखो) हमने मूसा पर वह्य भेजी थी कि (अब) मेरे बन्दों को रातों-रात (मिस्र से) निकाल ले जा, फिर समुद्र में उनके गुजरने के लिए खुश्की का रास्ता निकाल ले, तुझे न तो पीछा करने वालों का डर होगा और न किसी तरह का खतरा, फिर (जब मूसा अपनी कौम को लेकर निकल गया तो) फ़िरऔन ने अपने लश्कर के साथ उसका पीछा किया, पस पानी का रेला (जैसा कुछ उन पर छाने वाला था) छा गया (यानी जो कुछ उन पर गुजरनी थी, गुज़र गई) और फ़िरऔन ने अपनी क़ौम पर (नजात का) रास्ता गुम कर दिया, तो उन्हें सीधा रास्ता न दिखाया। ताहा 20:77-79
  • और इस तरह (ऐ पैग़म्बर) तेरे परवरदिगार का पसन्दीदा फ़रमान बनी इसराईल के हक में पूरा हुआ कि (हिम्मत व सबात के साथ जमे रहे थे) और फ़िरऔन और उसका गिरोह (अपनी ताक़त व शौकत के लिए) जो कुछ बनाता रहा था और जो कुछ (इमारतों की) बुलन्दियां उठाई थीं, वे सब दरहम बरहम कर दी। अल-आराफ 7:137
  • और बुराई करने लगे वह और उसकी फ़ौज मुल्क में नाहक और समझे कि वे हमारी ओर फिरकर न आएंगे, फिर पकड़ा हमने उसे और उसके लश्करों को, फिर फेंक दिया हमने उनको दरिया में, सो देख ले कैसा अंजाम हुआ गुनाहगारों का। अल-कसस 28:40
  • बहुत से छोड़ गए बाग़ और चश्मे और खेतियां और घर उम्दा और आराम का सामान जिनमें बातें बनाया करते थे, यों ही हुआ और वह सब हाथ लगा दिया हमने एक दूसरी कौम के, फिर न रोया उन पर आसमान और जमीन और न मिली उनको टील। अद दुखान 44:25-29

बड़ा मोजज़ा

कुरआन ए मजीद साफ़ कहता है कि लाल सागर में फ़िरऔन के डूबने और मूसा के नजात मिलने का यह वाकिया मूसा की ताईद में एक बड़ा ही शानदार मोजज़ा था, जिसने माद्दी कहरमानियत और सामाने इस्तब्दादियत को एक लम्हे में हरा कर मजलूम क़ौम को जालिम क़ौम के पंजे से नजात दिलाई। ‘वल्लाहु अला कुल्लि शैइन कदीर’

  • और हमने मूसा और उसके तमाम साथियों को नजात दी, फिर दूसरों को (यानी उनके दुश्मनों को) डुबो दिया। बेशक इस वाकिए में (अल्लाह का जबरदस्त) निशान (मोजजा) है और उनमें अक्सर ईमान नहीं लाते और इकरार नहीं करते और बेशक तेरा रब ही (सब पर) गालिब, रहमत वाला है। अश-शुअरा 26:65-67

कयामत का अजाब

फ़िरऔन और हजरत मूसा अलैहि सलाम का यह वाक्रिया हक व बातिल के मारके में एक शानदार मारका है- एक ओर गुरूर व घमंड, जब व जुल्म, तो दूसरी ओर मज्लुमियत, ख़ुदापरस्ती और सब्र व इस्तिकामत की फ़तह व कामरानी का अजीब व ग़रीब मुरक्का।

इसलिए अल्लाह तआला ने फ़िरऔन और फ़िरऔन की क़ौम को दुनिया की हलाकत के बाद इबरत व बसीरत के लिए इस तरफ़ भी तवज्जोह दिलाई है कि इस किस्म के लोगों के लिए आख़िरत में किस कदर सख्त अजाब और फिटकार के कैसे इबतरनाक सामान मुहैया हैं-

  • और उलट पड़ा फ़िरऔन वालों पर बुरी तरह का अजाब वह आग है कि दिखला देते हैं उनको सुबह व शाम और जिस दिन कायम होगी कयामत, हुक्म होगा दाखिल करो फ़िरऔन वालों को सख्त से सख्त अजाब में। अल-मोमिन 40:45-46

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