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hazrat isa alaihis salam story in hindi Part 2

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Hazrat Isa Alaihis Salam Story in Hindi Part 2

हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम (भाग 2)

हज़रत ईसा और मोजज़े

      हज़रत ईसा (अलै.) के ज़माने में तिब्ब का इल्म (Medical Science) और भौतिक ज्ञान (Physics) की बहुत चर्चा थी और यूनान के कमाल पर बहुत ज़्यादा असर डाल रही थी और मुल्कों में सदियों से बड़े तबीब और फ़लसफ़ी अपनी हिक्मत व दानिश और तिब्ब के कमालों का मुज़ाहिरा कर रह थे मगर एक ख़ुदा की तौहीद और दीने हक की तालीम से आम व ख़ास लोग आमतौर से महरूम थे और खुद बनी इसराईल भी जो कि नबियों की नस्ल में होने पर हमेशा फख्र करते रहते थे गुमराहियों में पड़े हुए थे।

      पस इन हालात में ‘अल्लाह की सुन्नत‘ ने जब हज़रत ईसा (अलै.) को रुश्द व हिदायत के लिए चुन लिया तो एक तरफ़ उनको हुज्जत व बुरहान (इंजील) और हिक्मत से नवाज़ा तो दूसरी तरफ़ ज़माने के ख़ास हालात के मुनासिब कुछ ऐसे निशान (मोजज़े) भी अता फरमाए जो उस ज़माने के कमाल वालों और उनके पीछे चलने वालों पर इस तरह असर डालने वाले हों कि हक़ तलाश करने वाले को यह मानने में कोई शक बाकी न रहे कि बेशक ये अमल हासिल किए गए इल्मों से जुदा सिर्फ़ अल्लाह की ओर से रसूले बरहक की ताईद में ज़ाहिर हुए हैं और तास्सुब रखने वाले और सरकश के पास इसके अलावा और कोई रास्ता न रहे कि उनको ‘खुला जादू‘ कह कर अपने बुग्ज़ व हसद की आग को और बढ़ा दे।

      ईसा के उन मोजज़ों में से जिनका मुज़ाहिरा उन्होंने क़ौम के सामने किया, कुरआन ने चार मोजज़ों का खुल कर ज़िक्र किया है –

      1. वह ख़ुदा के हुक्म से मुर्दे को ज़िन्दा कर दिया करते थे।

      2. और पैदाइशी अंधे को आंख वाला और कोढ़ को चंगा कर दिया करते थे।

      3. वह मिट्टी से परिंदा बनाकर उसमें फूंक देते थे और अल्लाह के हुक्म से उसमें रूह पड़ जाती थी।

      4. वह यह भी बता दिया करते थे कि किसने क्या खाना खाया और क्या खर्च किया और क्या घर में भंडारा जमा कर रखा है।

      क़ौमो में ऐसे मसीहा मौजूद थे जिनके इलाज व मुआलजे और अपनी तदबीरों से मायूस मरीज़ शिफ़ा पाते थे, उनमें भौतिक-ज्ञान के माहिर ऐसे फ़लसफ़सी भी कम न थे जो रूह व माद्दा (आत्मा व भूत द्रव्य) की हक़ीक़तों और आसमानी और ज़मीनी चीज़ों पर बेमिसाल नज़रियों और तजुर्बो के मालिक समझे जाते थे और चीज़ों की हक़ीक़त पर उनकी गहरी नज़र महारत कमाल वालों के लिए फ़ल की चीज़ थी लेकिन अब उनके सामने ईसा (अलै.) ने सामान और वसीला अपनाए बगैर इन मामलों का मुज़ाहिरा किया तो उन पर भी हिदायत और गुमराही की कुदरती तक्सीम के मुताबिक़ यही असर पड़ा कि जिस आदमी के दिल में हक़ की तलब पाई जाती थी।

      उसने मान लिया कि बेशक इस किस्म का मुज़ाहिरा इंसानी पहुंच से बाहर और सच्चे नबी की ताईद व तस्दीक के लिए अल्लाह की तरफ़ से है और जिन दिलों में घमंड, हसद, और जलन और दुश्मनी थी, उनके तास्सुब ने वही कहने पर मजबूर किया, जो उनके पहले के नबी और रसूल कहते आए थे-

      ‘यह कुछ नहीं मगर खुला जादू है।’ (37:15) 

      चौथे मोजज़े के बारे में तफ्सीर लिखने वाले कहते हैं कि इसके मुज़ाहिरे की वजह यह पेश आई कि मुखालिफ़ जब रुश्द व हिदायत की उनकी दावत से नफ़रत करके उनको झुठलाते और उनकी पेश की हुई खुली निशानियों (मोजजों) को सेहर और जादू कहते तो साथी मज़ाक के तौर पर यह भी कह दिया करते थे कि अगर तुम अल्लाह तआला के ऐसे मक्बूल बन्दे हो तो बताओ आज हमने क्या खाया है और क्या बचा रखा है? तब ईसा (अलै.) उनके मज़ाक़ को संजीदगी में बदल देते और अल्लाह की वह्य की मदद से उनके  सवाल का जवाब दे दिया करते थे।

      मगर कुरआन क़रीम ने इस मोजज़े को जिस अन्दाज़ में बयान किया है उसको ध्यान देकर पढ़ने समझने से मालूम होता है कि इस ‘निशान‘ के मुज़ाहरे की वजह तफ्सीर लिखने वालों की बयान की हुई तौजीह से ज़्यादा बारीक़ और फैली हुई मालूम होती है और वह यह कि ईसा पैगामे हिदायत और तब्लीगे हक़ की खिदमत अंजाम देते हुए ज़्यादातर लोगों को दुनिया में फंसे हुए होने हिदायत व दौलत का लालच देने और ऐश-पसन्द जिंदगी की रग्बत से बाज़ रखने पर बयान के अलग-अलग तरीकों के ज़रिए तवज्जोह दिलाया करते थे।

      तो जिस तरह कुछ सईद रूहें इस कलिमा-ए-हक के सामने सर झुका दिया करती थी  इसके खिलाफ़ घटिया और दुष्ट इंसान उनके बेहतर वाजों से दिली नफ़रत और दूरी रखने के बावजूद मुत्तास्सिर करने वाली हस्तियों से ज़्यादा उनको यह बताती कि हम तो हर वक्त आपके इस इर्शाद को पूरा करने में लगे रहते हैं।

      इसलिए कि कुदरते हक़ ने यह फैसला किया कि इन मुनाफिकों की मुनाफिक़त के नुक्सान को ख़त्म करने के बजाए हज़रत ईसा (अलै.) को ऐसा निशान दिया जाए कि इस ज़रिए से हक व बातिल खुल कर सामने आ जाए और अल्लाह के हुकूक और इंसान के हुक़ूक़ के मारे जाने पर ज़खीरा करने का जो सामना किया जा रहा है उसका परदा चाक कर दिया जाए।

      इन चार किस्म के ख़ुदाई निशान (मोजज़ों) के अलावा खुद हज़रत ईसा (अलै.) की बगैर बाप की पैदाइश भी एक शानदार ‘ख़ुदाई निशान‘ था जिसके बारे में अभी तफ़सील से बातें बयान की गई।

      हज़रत मसीह (अलै.) के हाथ पर जो मोजज़े ज़ाहिर किए गए या उनकी पैदाइश जिस मोजज़ाना तरीके से हुई यहूदियों ने हसद की वजह से उसका इंकार किया तो किया लेकिन कुछ फितरतपरस्त इस्लाम के दावेदार हज़रात ने भी उनके इंकार के लिए राह पैदा करने की नाकाम कोशिश फ़रमाई है इनमें से कुछ लोग वे हैं जिन्होंने इस इंकार को ज़ाती फायदे के लिए नहीं बल्कि फितरतपरस्त और खुदा के इंकारी नए यूरोपीय उलेमा से मरऊब होने की वजह से यह रवैया अपनाया है ताकि उनकी मज़हबियत पर अजाइब-परस्ती का इलज़ाम न लग सके।

      इसी तरह एया-ए-मौता (मुर्दा को ज़िन्दा कर देना) के मोजज़े का भी इंकार करते हुए यह दावा किया है कि अल्लाह तआला मौत के बाद किसी को इस दुनिया में क़यामत से पहले ज़िंदगी नहीं बटेगा लेकिन इस दावे के खिलाफ कई जगहों पर ऐसा साबित किया हुआ मौजूद है कि अल्लाह ताला ने इस दुनिया में मौत देने के बाद ताज़ा जिंदगी बख्शी है। (देखिए आयतें 2:73, 259, 260)

      इन तमाम वाकियों में मुर्दा के ज़िन्दा किए जाने के खुले और साफ़ मानी साबित है (इसी तरह हज़रत मसीह (अलै.) की बिन बाप पैदाइश का भी इंकार किया गया है और कलम का गैर-ज़रूरी ज़ोर लगाया गया है। लेकिन इस मसले की मुवाफिक और मुखालिफ़ रायों से हटकर एक और जानिबदार मुसन्निफ (लेखक) जब हज़रत मसीह (अलै.) की पैदाइश के मुताल्लिक क़ुरआन की तमाम आयतों को पढ़ेगा तो उस पर यह हकीकत आसानी से वाज़ेह हो जाएगी कि कुरान हज़रत मसीह (अलै.) से मुताल्लिका यहूदियों का घटना और ईसाइयों का बढ़ना दोनों के खिलाफ अपना वह मंसबी फ़र्ज़ अदा करना चाहता है जिसके लिए कुरआन की हक की दावत सामने आई है।

      यहूदी और ईसाई इस बारे में दो कतई मुखालिफ और आपस में टकराने वाली दिशाओं में चले गए हैं। यहूदी कहते हैं कि हज़रत मसीह (अलै.) झूठे और शोबदे (जाद) दिखाने वाले थे और ईसाई कहते हैं कि वह ख़ुदा या ख़ुदा के बेटे या तीन के तीसरे थे। इन हालात में कुरान ने उन आयतों और वहय के खिलाफ इल्म व यकीन की राह दिखाते हुए दोनों के खिलाफ यह फैसला किया कि हक का रास्ता इफ़रात व तफ़रीत के दर्मियान है और सीधे रास्ते की यही सबसे बड़ी पहचान है।

      वह कहता है कि वाजेह रहे कि हज़रत ईसा (अलै.) झूठे नहीं थे बल्कि अल्लाह के सच्चे पैगम्बर और राहे हक की सच्ची दावत देने वाले थे। उन्होंने दावते हक की तस्दीक के लिए जो कुछ अजीब बातें कर दिखाईं वे नबियों के मोज़ज़ो की लिस्ट में शामिल हैं न कि जादूगरों और तमाशा दिखाने वालों की और यह भी सही है कि उनकी पैदाइश बगैर बाप के हुई मगर इससे यह कैसे इलज़ाम आ सकता है कि वह ख़ुदा या खुदा के बेटे हो गए? क्या जो शख्स इंसानी ज़रूरतों यानी खाने-पीने का मुहताज हो वह अब्द और इंसान के अलावा खुदा या माबूद हो सकता है? नहीं, हरगिज़ नहीं।

      तो जबकि कुरआन ने यहूदियों और ईसाइयों के उन तमाम बातिल अकीदों को खुले लफ़्ज़ों में रद्द करके जो उन्होंने हज़रत मसीह (अलै.) के बारे में कायम कर लिए थे इस्लाह का अपना फ़रीज़ा अंजाम दिया। यह कैसे मुम्किन था कि अगर बिन बाप की पैदाइश का वाकिया बातिल और ग़ैरवाकई था और जो सहारा बन रहा था उलूहियते मसीह के बारे में खुलकर कुरआन रद्द न करता बल्कि इसके खिलाफ वह जगह-जगह इस वाकिए को ठीक उस तरह बयान करता जाता जैसा कि इंजील में बयान किया गया है उसका फर्ज था कि सबसे पहले उसी पर कड़ी चोट लगाता और सिर्फ इतना कह कर कि हज़रत मसीह (अलै.) का बाप फ़्ला आदमी था उस सारी इमारत को जड़ से उखाड़ फेंकता जिस पर मसीह के इलाह होने की बुनियाद रखी गई। मगर उसने यह तरीका इख़्तियार न किया बल्कि यह कहा कि यह बात किसी तरह भी मसीह के अल्लाह होने की दलील नहीं बन सकती? इसलिए कि –

      तर्जुमा– ईसा की मिसाल अल्लाह के नज़दीक जैसे मिसाल आदम की बनाया उसको सिट्टी से फिर कहा कि हो जा’ वह हो गया। (3:59)

      पस अगर बिन बाप की पैदाइश मसीह को अल्लाह का दर्जा दे सकती है तो आदम को उससे ज़्यादा अल्लाह बनाए जाने का हक हासिल है कि वह बिना मां-बाप के पैदा हुए।

      बहरहाल जिन तावील-परस्तों ने हज़रत मसीह (अलै.) की बिन बाप की पैदाइश से मुताल्लिक आयतों के जुम्लों को जुदा-जुदा करके गलत बातें पैदा की हैं वे इसलिए बातिल हैं कि जब इस वाकिए से मुताल्लिक आयतों को इकडा करके पढ़ा जाए तो एक लम्हे के लिए भी आयतों के मानी में बिन बाप पैदाइश के मानी के सिवा दूसरे किसी भी मानी की गुजाइश नहीं रहती।

      इसके अलावा जहां तक इस मसले का अक्ली पहलू है सो अक्ल भी इसके मुमकिन होने को मुहाल करार नहीं देती यहां तक कि आजकल तो यहां तक हो चुका है कि इंसानी पैदाइश आंखों देखे पैदा होने के आम तरीके के अलावा कुछ दूसरे तरीकों से भी होने लगी है और इन तरीकों को कुदरत के कानून के खिलाफ़ इसलिए कहा नहीं जा सकता कि हमने कुदरत के तमाम कानूनों का एहाता नहीं कर लिया है बल्कि इंसान जितना ही इल्म और समझ की ओर बढ़ता जाता है उसके सामने कुदरत के कानून के नये-नये गोशे खुलने लगते हैं।

      पस अगर यह सही है कि जो बात कल नामुम्किन नज़र आती थी आज यह मुम्किन कही जा रही है और जल्द या देर उसके वाके होने पर यकीन किया जा रहा है तो फिर नहीं मालूम कुदरत के इस कानून से इंकार कर देने के क्या मानी हैं? जिसका इल्म अभी तक अगरचे हमको हासिल नहीं है मगर नबियों और रसूलों जैसी कुदसी सिफ़ात हस्तियों पर इस इल्म की हक़ीक़त सुती हुई है तो क्या इल्मी दलील का यह भी कोई पहलू है कि जिस बात का हमको इल्म न हो और अक्ल उसको नामुम्किन और मुहाल न साबित करती हो उसका इंकार सिर्फ इल्म न होने की वजह से कर दिया जाए।

अब इन खुली निशानियों को कुरआन मजीद से सुनिए और नसीहत और सबक हासिल कीजिए कि इन पुराने वाकियों को याद दिलाने का कुरआन का यही बड़ा मक्सद है।

      तर्जुमा- ‘और अल्लाह सिखाता है उस (ईसा )को किताबे हिक़मत तौरात और इंजील और वह रसूल है बनी इसराईल की तरफ (वह कहता है। कि बेशक मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशान’ लेकर आया हूं। वह यह कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से परिंदे की शक्ल बनाता फिर उसमें रूह फूक देता हूं और वह अल्लाह के हुक्म से ज़िन्दा परिंदा बन जाता है और पैदाइशी अंधे को आंख वाला कर देता हूं और सफेद दाग के कोढ़ को अच्छा कर देता हूं और अल्लाह के हुक्म से मुर्दा को ज़िन्दा कर देता हूं और तुमको बता देता हूं जो तुम खाकर आते हो और जो तुम घर में ज़खीरा रख आते हो।

      सो अगर तुम हकीकी ईमान रखते हो तो बेशक इन मामलों में (मेरी सच्चाई और अल्लाह की ओर से होने के लिए) निशान है और मैं तौरत की तस्दीक करने वाला हूं जो मेरे सामने है और इसलिए भेजा गया हो ताकि कुछ चीज़ों को जो तुम पर हराम हो गई हैं, तुम्हारे लिए हलाल कर दूं तुम्हारे लिए परवर दिगार ही के पास से “निशान‘ लाया हूं पस तुम अल्लाह से डरो और (उसके दिए हुए हुक्मों में) मेरी इताअत करो बेशक अल्लाह तआला ही मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है सो उसकी इबादत करो, यही सीधा रास्ता है। (3:48-51) 

      तर्जुमा- ‘ऐ ईसा बिन मरयम! तू मेरी इस नेमत को याद कर जबकि तू मेरे हुक्म से गारे से परिंदा बना देता और फिर उसमें फूँकदेता था और वह मेरे हुक्म से.ज़िदा परिंदा बन जाता था और जब कि तू मेरे हुक्म से पैदाइशी अंधे को आंख वाला और सफेद दाग के कोढ़ को अच्छा कर देता था और जबकि तू मेरे हुक्म से मुर्दा को ज़िन्दा करके कब्र से निकालता था। (5:110) 

      तर्जुमा- फिर जब वह (ईसा) उनके पास खुले निशान लेकर आया तो उन्होंने (यानी बनी इसराईल) ने कहा, यह तो खुला जादू है। (61:6)

नबियों ने जब कभी भी क़ौमो के सामने अल्लाह की आयतों का मुज़ाहिरा किया है तो इंकार करने वालों ने हमेशा उनके मुताल्लिक एक बात कही है, ‘यह खुला हुआ जादू है’। पस क्या एक हक को तलाश करने वाला और गैर-मुतास्सिब इंसान के लिए यह जवाब इस ओर रहनुमाई नहीं करता कि नबियों के इस किस्म के मुज़ाहरे ज़रूर कुदरत के आम कानूनों से जुदा ऐसे इत्म के ज़रिए ज़ाहिर होते थे जो सिर्फ उन कुद्सी सिफ़ारत हस्तियों के लिए ही खास रहा है।

      और इनके अलावा इंसानी दुनिया उसकी हक़ीक़त के बारे में इंकार पर तुली हुई थी उसके इंकार के लिए इससे बेहतर दूसरी ताबीर नहीं थी कि वे इन मामलों को ‘जादू‘ कह दें। इसलिए इन मामलों को जादू कहना भी उनके ‘मोजज़ा‘ और ‘अल्लाह का निशान’ होने की ज़बरदस्त दलील है।

 हज़रत ईसा और उनकी तालीम

      बहरहाल हज़रत ईसा (अलै.) बनी इसराईल को हुज्जत और बुरहान और अल्लाह की आयतों के ज़रिए दीने हक़ की तालीम देते रहते और उनके भूले हुए सबक़ को याद दिला कर मुर्दा दिलों में नई ज़िंदगी बख्शते रहते थे।

      अल्लाह और अल्लाह की तौहीद पर ईमान, नबियों और रसूलों की तस्दीक़, आखिरत पर ईमान, अल्लाह के फ़रिश्तों पर ईमान, क़ज़ा व केंद्र पर ईमान, अल्लाह के रसूलों और किताबों पर ईमान, भले अख़्लाक़ के अपनाने, दुरे अमलों से बचने, अल्लाह की इबादत से चाव, दुनिया में लगे रहने से नफ़रत और अल्लाह के कुंबे (अल्लाह की मख्लूक) से मुहब्बत, यही वह तालीम और उस पर ज़ोर था जो उनकी ज़िन्दगी का मश्गला और मंसबी फ़र्ज़ बना हुआ था वे बनी इसराईल को तौरात, इंजील और हिक्मत भरी नसीहतों के ज़रिए इन मामलों की तरफ़ दावत देते मगर बदबख्त यहूदी अपनी टेढ़ी फितरत, सदियों से आ रही सरकशी और अल्लाह की तालीम से बगावत की बदौलत इम दर्जा शिद्दत पसंद बन गए थे और नबियों और रसूलों के क़त्ल ने उनके दिलों को हक व सदाक़त के कुबूल करने में इस दर्जा सख्त बना दिया था कि एक छोटी-सी जमाअत के अलावा उनकी जमाअत की भारी अक्सरीयत ने उनकी मुखालफ़त और उनके साथ हसद व बुग्ज़ को अपना शिआर और अपनी जमाअती ज़िदंगी का शिआर बना लिया।

      और इसलिए नबियों की बहतरीन सुन्नत के मुताबिक़ रुश्द व हिदायत के हलकों में दुन्यावी जाह व जलाल के लिहाज़ से कमज़ोर व नातवां और निचले पेशेवर तबके के अक्सरीयत नज़र आती थी। कमज़ोरों का यह तबका अगर इख्लास के दयानतदारी के साथ हक़ की आवाज़ को अपनाता तो बनी इसराईल का ना सरकश और मग़रूर हलका उन पर और अल्लाह के पैग़म्बर पर फब्तियां कसता, तौहीन व तज़लील का मुज़ाहिरा करता और अपनी अमली जद्दोजहद का बड़ा हिस्सा मुखालफ़त में लगाता रहता था।

      तर्जुमा- ‘और जब ईसा ज़ाहिर दलीलें लेकर आए तो कहा, बेशक तुम्हारे पास हिक्मत’ लेकर आया हूं और इसलिए आया हूं ताकि उन कुछ बातों को साफ कर दूं जिनके बारे में तुम आपस में झगड़ रहे हो पस अल्लाह से डरो और मेरी इताअत करो। बेशक अल्लाह ही मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है सो उसकी परस्तिश करो यही सीधी राह है। फिर वे आपस में गिरोहबन्दी करने लगे सो उन लोगों को दर्दनाक अज़ाब के ज़रिए हलाकत और खराबी है। (43:63-65) 

      तर्जुमा- और (वह वक़्त याद करो) जब ईसा बिन मरयम ने कहा, ऐ बनी इसराईल! बेशक मैं तुम्हारी तरफ़ अल्लाह का पैगम्बर हूं, तस्दीक करने वाला हूं तौरात की, जो मेरे सामने है और खुशखबरी देने वाला हूं एक रसूल की, जो मेरे बाद आएगा नाम उसका अहमद है। पस जब (ईसा) आया उनके यास मोजज़े लेकर तो वे (बनी इसराईल) कहले लगे, यह तो खुला जादू है। (61:6) 

      तर्जुमा- ‘फिर जब ईसा ने इन (बनी इसराईल) से कुफ़्र महसूस किया तो कहा, ‘अल्लाह की तरफ मेरा कौन मददगार है?’ 

      हवारियों ने जवाब दिया, ‘हम हैं अल्लाह के (दीन के) मददगार। हम अल्लाह पर ईमान ले आए और तुम गवाह रहना कि हम मुसलमान हैं। ऐ हमारे परवरदिमार! जो तूने उतारा है, हम उस पर ईमान ले आए और हमने रसूल की पैरवी अख्तियार कर ली पस तू हमको (दीने हक़ की) गवाही देने वालों में से लिख ले।’ (5:52-5)

हज़रत ईसा के हवारी

      मगर ईसा (अलै.) दुश्मनों और मुखालिफ़ों की शरारतों और बेहूदगियों के वावजूद अपने मंसबी फ़र्ज़ ‘दावत इलल हक़’ (हक की तरफ़ दावत देने) में हमेशा सरगर्म रहते और रात व दिन बनी इसराईल की आबादियों और बस्तियों में हक़ का पैगाम सुनाते और रोशन दलीलों और अल्लाह की वाजेह आयतों के जरिए लोगों को हक व सदाक़त कुबूल करने पर तैयार करते रहते थे।

      अल्लाह और अल्लाह के हुक्म से सरकश और बागी इंसानों की इस भीड़ में ऐसी सईद सहें भी निकल आती थीं जो ईसा (अलै.) की हक की दावत की ओर लपकतीं और सच्चाई के साथ दीने हक़ को अपनाती थीं जो हज़रत ईसा (अलै.) की सोहबत में रहकर और फ़ायदा उठा कर न सिर्फ ईमान ही ले आती थी बल्कि दीने हक़ की सरबुलंदी और कामयाबी के लिए उन्होंने जान व माल की बाज़ी लगा कर दीन की खिदमत के लिए खुद को वक्फ़ कर दिया था और अक्सर व बेशतर हज़रत मसीह (अलै.) के साथ रह कर तब्लीग़ व दावत का काम सरअंजाम देती थीं। इसी खुसूसियत की वजह से वे ‘हवारी‘ (रफ़ीक़) और अन्सारुल्लाह (अल्लाह के दीन के मददगार) के मुक़द्दस अलकाब से मुअज्जज व मुम्ताज़ की गई।

      चुनांचे इन बुजुर्ग हस्तियों ने अल्लाह के पैग़म्बर की पाक ज़िन्दगी को अपना आदर्श बनाया और सख्त-से-सख्त और नाजुक से नाजुक हालात में भी उनका साथ नहीं छोड़ा और हर तरह मददगार साबित हुई।

      तर्जुमा- और (ऐ ईसा! वह वक्त याद करो) जब कि मैंने हवारियों की ओर (तेरी मारफ़त) यह वह्य की कि मुझ पर और मेरे पैगम्बर पर ईमान लाओ तो उन्होंने जवाब दिया ‘हम इमान लाए और ऐ खुदा! तू गवाह’ रहना कि हम बिला शुबहा मुसलमान हैं।’ (5:111) 

तर्जुमा- ऐ ईमान वालो! तुम अल्लाह के (दीन के) मददगार हो जाओ जैसा कि ईसा बिन मरयम अलैहिस्सलाम ने जब हवारियों से कहा, अल्लाह के रास्ते में कौन मेरा मददगार है तो हवारियों ने जवाब दिया, ‘हम हैं अल्लाह (की राह) के मददगार।‘ पस बनी ईसराइल की एक जमाअत ईमान ले आई एक गिरोह ने कुफ़्र इख़्तियार किया सो हमने मोमिनों की उनके दुश्मनों के मुकाबले में ताईद की पस दे (मोमिन) ग़ालिब रहे। (61:14)

      पिछले पन्नों में यह वाज़ेह हो चुका है कि हज़रत ईसा (अलै.) के ये हवारी ज्यादातर गरीब और मज़दूर तबके में से थे क्योंकि नबियों (अलैहिमुस्सलाम) की दावत व तब्लीग के साथ ‘अल्लाह की सुन्नत‘ यही जारी रही है कि उनके हक की आवाज़ को लपकने और दीने हक पर जान निछावर करने का मुजाहरा करने के लिए पहले गरीब और कमज़ोर तबका ही आगे बढ़ता है।

      और नीचे के लोग ही फिदाकारी का सबूत देते हैं और वक्त के इक्तिदार में बैठी और ज़बरदस्त हस्तियां अपने गुरूर और घमंड के साथ मुकाबले के लिए सामने आती और मुखालिफ़ सरगर्मियों के साथ अल्लाह का कलिमा सरबुलन्द करने के रास्ते में भारी पत्थर बन जाती हैं लेकिन जब अल्लाह का ‘अमल के बदले’ का कानून अपना काम करता है, तो नतीजे में फलाह और कामयाबी उन कमज़ोर हक के फ़िदाकारों का हिस्सा हो जाता है और घमंड में चूर हस्तियां या हलाकत के गहरे गढ़े में जा गिरती हैं और या मकहूर व मालूब होकर झुक जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं रखतीं।

हज़रत ईसा के हवारी और  कुरआन व इंजील

      कुरआन ने हज़रत ईसा (अलै.) के हवारियों की हक़ीकत बयान की है। सूरः आले इमरान की आयतें तुम्हारे सामने हैं। हज़रत मसीह (अलै.) जब दीने हक़ की मदद के लिए पुकारते हैं तो सबसे पहले जिन्होंने ‘ननु अन्सारुल्लाह’ (हम हैं अल्लाह के मददगार) का नारा बुलन्द किया वे यही पाक हस्तियां थीं।

      सूरः सफ्फ़ में अल्लाह रब्बुल-आलमीन ने जब मुसलमानों को मुखातिब करके ‘कूनू अंसारल्लाह’ (हो जाओ तुम मदद देने वाले अल्लाह के) की तर्गीब दी तो “नकीर बिअय्यामिल्लाह’ (अल्लाह के वाकियों की तज़्किरा) के पेशे नज़र इन्हीं हस्तियों का ज़िक्र किया और इन्हीं की मिसाल और नज़ीर देकर हक़ की मदद के लिए उभारा और सूरः माइदा में उनके ईमान के कुबूल करने और हक़ की दावत के सामने सर झुका देने का जो नक्शा खीचा है, वह भी उनके खुलूस,हक्रनलवी और हक्र-कोशी की हमेशा ज़िन्दा रहने वाली तस्वीर है।

  •       यह सब कुछ तो उस वक्त का हाल है जब तक हज़रत ईसा (अलै.) उनके दरमियान मौजूद हैं लेकिन आपके ‘आसमान पर उठा लिए जाने के बाद भी उनकी इस्तिकामत से भरी (जमाव वाली) और पुराने दीन की फ़िदाकाराना खिदमत के बारे में सूरः सफ्फ़ की आयत ‘फ़ अय्यदनल्लज़ीन आमनू अला अदविहिम फ़ अस्वहू ज़ाहिरीन०’ (6:14) में काफी इशारा मौजूद है और शाह अब्दुल कादिर नवरल्लाहु मरकदहू ने इसी बुनियाद पर इस आयत की तफ़सीर करते हुए तारीख़ी गवाही का इस तरह ज़िक्र फ़रमाया है –

      ‘हज़रत ईसा (अलै.) के बाद उनके चारों (हवारियों) ने बड़ी मेहनतें की हैं जब उनका दीन फैला। हज़रत यसूअ (अलै.) के उन तमाम हवारियों में से जिनकी तारीफ़ में जगह-जगह बाइबिल बखान करता है  एक दो या दस पांच नहीं सबके सब निहायत बुज़दिली और गद्दारी के साथ उस वक्त हज़रत मसीह (अलै.) से अलग हो गए जब दीने हक की मदद और हिमायत के लिए सबसेज़्यादा उनको ज़रूरत थी और जबकि अल्लाह के पैगम्बर (अलैहिस्सलाम) दुश्मनों के नरगे में फंसे हुए थे।

  •       मगर इंजील की इस गवाही के खिलाफ सूरः आले इमरान में कुरआन मजीद ने यह गवाही दी है कि उस नाजुक वक्त में जब हज़रत ईसा (अलै.) ने अपने हवारियों को दीने हक की मदद और यारी के लिए पुकारा तो सबने पूरे अज्म, हौसला और फिदा हो जाने वाले जज़्बे के साथ यह जवाब दिया, ‘नहनु अन्सारुल्लाह (3:52) फिर हज़रत मसीह (अलै.) के सामने दीन पर अपने जमे रहने और अपने खुलूस भरे ईमान के बारे में गवाही देकर मदद का पूरा-पूरा यकीन दिलाया और फिर सूरः सफ़्फ़ में कुरआन मजीद ने यह भी जाहिर किया कि इन हवारियों ने हज़रत ईसा से जो कुछ कहा था, उनकी मौजूदगी में और उनके बाद भी, सच्ची वफ़ादारी के साथ उसे निबाहा और इसमें शक नहीं वे सच्चे मोमिन साबित हुए और इसलिए अल्लाह ने भी उनकी मदद फ़रमाई और उनको हक के दुश्मनों के मुकाबले में कामयाब किया।

      इंजील और कुरआन के इस मवाज़ने को देख कर एक इंसाफ़ पसन्द यह कहे बगैर नहीं रह सकता कि इस मामले में ‘हक‘ कुरआन के साथ है और ईसाई उलेमा ने इंजील में घट-बढ़ करके इस किस्म के गढ़े हुए वाकियों का इज़ाफ़ा इसलिए किया है ताकि सदियों बाद के ख़ुद के गढ़े हुए ‘मसीह (अलै.)’ के सलीब (फांसी) का अक़ीदा से मुताल्लिक़ दास्तान सही तर्तीब कायम हो सके कि जब हज़रत मसीह (अलै.) को सलीब पर लटकाया गया तो उन्होंने कहते-कहते जान दे दी, ऐली! ऐली! लिमा सबकतनी’ (ऐ ख़ुदा तूने मुझे क्यों अकेला तंहा छोड़ दिया। और किसी एक आदमी ने भी मसीह (अलै.) का साथ न दिया। बहरहाल हवारियों से मुताल्लिक बाइबिल की ये घट-बढ़ बाली गढ़ी हुई दास्तान से ज़्यादा कोई हैसियत नहीं रखतीं।

माइदा का उतरना

      कुरआन मजीद ने माइदा के उतरने के वाक़िए को मोजज़े भरे बयान के तरीके के साथ ज़िक्र किया है –

      तर्जुमा- ‘और (देखो) जब ऐसा हुआ था कि हवारियों ने कहा था, ऐ ईसा बिन मरयम! क्या तुम्हारा परवरदिगार ऐसा कर सकता है कि आसमान से हम पर एक ख्वान उतार दे? (यानी हमारे खाने के लिए आसमान से ग़ैबी सामान कर दे।) हज़रत ईसा (अलै.) ने कहा, खुदा से डरो (और ऐसी फ़रमाइशें न करो) अगर तुम ईमान रखते हो।’

      उन्होंने कहा, (मक़सद इससे अल्लाह की क़ुदरत का इम्तिहान नहीं है बल्कि) हम चाहते हैं कि (हमें खाना मिले तो) उसमें से खाएं और हमारे दिल आराम पाए और हम जान लें कि तूने हमें सच बताया था और इस पर हम गवाह हो जाएं। 

      इस पर ईसा बिन मरयम (अलै.) ने दुआ की, ऐ अल्लाह ! ऐ हमारे परवरदिगार! हम पर आसमान से एक ख्वान भेज दे कि उसका आना हमारे लिए और हमारे अगलों-पिछलों के लिए ईद क़रार पाए और तेरी तरफ़ से (फज़ल व करम) एक निशानी हो, हमें रोज़ी दे, तू सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है।’

      अल्लाह ने फ़रमाया, में तुम्हारे लिए ख्वान भेजूंगा, लेकिन जो शख्स इसके बाद भी (हक़ के रास्ते से) इंकार करेगा तो मैं उसे (अमल के बदले में) अज़ाब दूंगा, ऐसा अज़ाब कि तमाम दुनिया में किसी आदमी को भी वैसा अज़ाब नहीं दिया जाएगा। (5:112-115)

यह माइदा नाज़िल हुआ या नहीं, क़ुरआन ने इसके बारे में कोई तफ़सील बयान नहीं की और न किसी हदीस में इसका कोई तज़्किरा पाया जाता है, अलबत्ता सहाबा और ताबिईन की रिवायतों में इसका तफ़सील से ज़िक्र किया गया है।

      मुजाहिद और हसन बसरी (अलै.) फरमाते हैं कि माइदा नाज़िल नहीं हुआ, इसलिए कि अल्लाह तआला ने उसके नाज़िल होने को जिस शर्त से जोड़ दिया, तलब करने वालों ने यह महसूस करते हुए कि इंसान कमज़ोरियों का मज्मूआ है, कहीं ऐसा न हो कि किसी लग्ज़िश या मामूली खिलाफ़वर्ज़ी की बदौलत उस दर्दनाक अज़ाब के हक़दार ठहरें, अपने सवाल को वापस ले लिया। इसके अलावा अगर माइदे का नुज़ूल हुआ होता, तो वह ऐसा अल्लाह का निशान (मोजज़ा) था कि ईसाई उन पर जितना भी फ्रख करते, वह कम था और उनके यहां इसकी जितनी भी शोहरत होती, वह बेजा नहीं होती, फिर भी उनके यहां माइदा के इस नुज़ूल का कोई तज़्किरा नहीं पाया जाता।

      और हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (अलै.) और हज़रत अम्मार बिन यासिर (अलै.) से नक़ल किया गया है कि यह वाकिया पेश आया और माइदे का नुज़ूल हुआ। ज़्यादातर लोगों का रुझान इसी तरफ़ है। अलबत्ता इसके नाज़िल होने की तफ़सील में अलग-अलग क़ौल पाए जाते है।

      इस मसले में शाह अब्दुल क़ादिर (नव्वरल्लाहु मरक़दहू) मुजाहिद और हसन बसरी के हमनवा मालूम होते हैं और माइदा के नाज़िल होने के मुताल्लिक़ इन दोनों जमाअतों से अलग एक और लतीफ़ बात इर्शाद फ़रमाते हैं। मूज़िहुल क़ुरआन में है –

  •       (हल यस्ततीऊ 5:112) (हो सके), यह मानी कि हमारे वास्ते तुम्हारी दुआ से इतना आदत के खिलाफ़ करे या न करे, फ़रमाया कि ‘इत्तकुल्लाह’ (डरो अल्लाह से) यानी बन्दे को चाहिए कि अल्लाह को न आज़माए कि मेरा कहा मानता है या नहीं, अगरचे खुदावन्द (आक़ा व मालिक) बहुतेरी मेहरबानी करे ‘व नकूनु अलैहा मिनश्शाहिदीन’ (5:113) यानी बरकत उम्मीद पर मांगते है और (ताकि) मोजज़ा हमेशा मशहूर रहे, आज़माने को नहीं कहते हैं। वह ख्वान उतरा इकशंबा (इतवार) को, वह नसारा (ईसाई) की ईद है। जैसे हमारे लिए जुमा का दिन। कुछ कहते हैं, वह ख़्वान उतरा चालीस दिन फिर कुछ ने नाशुक्री की यानी हुक्म हुआ था कि फ़कीरों और मरीजों को खिला दें, न कि महजूज़ (तवंगर) और चंगे को, फिर करीब अस्सी आदमी सुअर और बन्दर हो गए। (मगर) यह अज़ाब पहले यहूदियों में हुआ था, पीछे किसी को नहीं हुआ।

      और कुछ कहते हैं (माइदा) न उतरा, डरावा सुन कर मांगने वाले डर गए न मांगा, लेकिन पैग़म्बर की दुआ बेकार नहीं जाती और इस कलाम (क़ुरआन) में नकल बे-हिक्मत नहीं, शायद इस दुआ का यह असर है। हज़रत ईसा (अलै.) की उम्मत (नसारा-ईसाई) में माल के पहलू से आसूदगी हमेशा रही और जो कोई उनमें नाशुक्री करे, तो शायद आखिरत में सबसे ज़्यादा अज़ाब पावे। इसमें मुसलमान को इबरत है कि अपनी मुद्दआ खिलाफे आदत के रास्ते से न चाहे, फिर उसकी शुक्रगुज़ारी बहुत मुश्किल है। ज़ाहिरी असबाब पर क़नाअत करे, तो बेहतर है। इस किस्से से भी साबित हुआ कि अल्लाह तआला के आगे हिमायत नहीं पेश की जाती।

      इस सिलसिले में हज़रत अम्मार बिन यासिर (अलै.) ने बाज़ नसीहत से मुताल्लिक़ बहुत खूब बात इर्शाद फ़रमाई है –

      हज़रत ईसा (अलै.) से उनकी क़ौम ने माइदा के नाज़िल होने की दरख्वास्त की तो अल्लाह की जानिब से जवाब मिला, “तुम्हारी दरख्वास्त इस शर्त के साथ मंज़ूर की जाती है कि न उसमें खियानत करना, न उसको छुपाए रखना और न उसको ज़खीरा करना, वरना यह बन्द कर दिया जाएगा और तुमको ऐसा सबक़ भरा अज़ाब दूंगा जो किसी को न दिया जाएगा।

  •       ‘ऐ अरब के लोगो! तुम अपनी हालत पर गौर करो कि तुम ऊंटों और बकरियों की दुम पकड़ कर जंगलों में चराते फिरते थे, फिर अल्लाह तआला ने अपनी रहमत से तुम्हारे दर्मियान ही से एक बर्गज़ीदा रसूल भेजा, जिसके हसब व नसब को तुम अच्छी तरह जानते हो। उसने तुम को यह खबर दी कि तुम बहुत जल्द अज्म पर गालिब आ जाओगे और उस पर छा जाओगे और उसने तुमको सख्ती के साथ मना फ़रमाया कि माल व दौलत की फ़रावानी देख कर हरगिज़ तुम चांदी और सोने के ख़ज़ाने न जमा करना, मगर ख़ुदा की क़सम! कि ज़्यादा दिन व रात न गुज़रेंगे कि तुम जरूर सोने-चांदी के खज़ाने जमा करोगे और इस तरह खुदा-ए-बरतर के दर्दनाक अज़ाब के हक़दार बनोगे। [तफ़सीर इने कसीर, माग 2. सूरः माइदा]

ज़िन्दा आसमान पर उठा लिया जाना

      हज़रत ईसा (अलै.) ने न शादी की और न रहने सहने के लिए घर बनाया। वह शहर-शहर और गांव-गांव अल्लाह का पैगाम सुनाते और दीने हक़ की दावत व तब्लीग का फ़र्ज़ अंजाम देते और जहां भी रात आ पहुंचती, वहीं राहत के किसी सर व सामान के बगैर रात गुज़ार देते थे। चूंकि उनकी ज़ाते अक़दस से मख्लूके ख़ुदा जिस्मानी व रूहानी दोनों तरह की शिफ़ा और तस्कीन पाती थी, इसलिए जिस तरफ भी उनका गुज़र हो जाता, इंसानों की भीड़ अच्छी अक़ीदत के साथ जमा हो जाती और वालिहाना मुहब्बत के साथ उन पर निसार हो जाने को तैयार रहती थी। 

      यहूदियों ने इस बढ़ती हुई मक़बूलियत को इंतहाई हसद और सख्त ख़तरे की निगाह से देखा और जब उनके बिगड़े हुए दिन किसी तरह उसको सह न सके, बल्कि यहूदी बनी इसराईल तो अपनी मज़हबी किताबों की पेशीनगोइयों के मुताबिक़ दो शख्सियतों “मसीह हिदायत‘ और ‘मसीह ज़लालत‘ के इंतिज़ार में थे लेकिन बदकिस्मती कि जब ‘मसीह हिदायत‘ ज़ाहिर हुए तो उन्होंने उसको ‘मसीह जलालत‘ समझा और उनके सरदारों फ़कीहों, फरीसियों (Pharisees) और सदूकियों (Sadducee) (यहूदियों के दो फिरके) ने ज़ाते अक़दस के खिलाफ़ साज़िश शुरू की और से यह पाया कि इस हस्ती के खिलाफ़ कामियाबी हासिल करने के अलावा इसकी कोई शक्ल नज़र नहीं आती कि वक़्त के बादशाह को भड़का कर उसको दीवार पर चढ़ा दिया जाए।

      पिछली कुछ सदियों से यहूदियों के बयान न करने के क़ाबिल हालात की वजह से उस ज़माने में यहूदिया के बादशाह हीरोवेस की हुकूमत अपने बाप-दादा के इलाकों में से मुश्किल से चौथाई पर क़ायम थी और वह भी नाम के लिए और असल हुकूमत व इक्तिदार, वक्त के बुतपरस्त शहंशाह कैसरे रूम को हासिल था और उसकी मातहती में प्लातीस यहूदिया के इलाक़े का गवर्नर या बादशाह था।

      यहूदी अगरचे इस बुतपरस्त बादशाह के इक्तिदार को अपनी बदबख्ती समझकर उससे नफरत करते थे, मगर हज़रत मसीह (अलै.) के खिलाफ़ दिलों की भड़की हसद की आग ने और सदियों की गुलामी से पैदा हुई पस्त ज़हनियत ने ऐसा अंधा कर दिया कि अंजाम और नतीजे की फ़िक्र से बेपरवाह हो कर प्लातीस के दरबार में जा पहुंचे और अर्ज़ किया ‘आली जाह‘ यह आदमी न सिर्फ हमारे लिए, बल्कि हुकूमत के लिए खतरा बनता जा रहा है, अगर फ़ौरन ही इसकी जड़ न काट दी गई तो न हमारा दीन ही सही हालत में बाक़ी रह सकेगा और डर है कि कहीं आपके हाथ से हुकूमत का इक्तिदार भी न चला जाए।

      इसलिए कि इस आदमी ने अजीब व गरीब शोबदे (करतब) दिखा कर दुनिया को अपना चाहने वाला बना लिया है और हर वक्त इस घात में लगा है कि आप लोगों की इस ताक़त के बल पर कैसर और आप को हरा कर खुद बनीइसराईल का बादशाह बन जाए। इस आदमी ने लोगों को सिर्फ दुनिया को रास्ते से ही गुमराह नहीं किया, बल्कि इसने हमारे दीन तक को भी बदल डाला और लोगों को बद-दीन बनाने में लगा हुआ है। पस इस फितने की रोक-थाम बहुत ज़रूरी है ताकि बढ़ता हुआ यह फितना शुरू ही में कुचल डाला जाए।

      गरज़ काफ़ी बात-चीत और सोच-विचार के बाद पिलातीस ने उनको इजाज़त दे दी कि वे हज़रत मसीह (अलै.) को गिरफ्तार कर लें और शाही दरबार में मुजरिम की हैसियत से पेश करें। बनी इसराईल के सरदार, फ़क़ीह और काहिन यह फ़रमान हासिल करके बेहद खुश हुए और पूरे घमंड में आकर एक दूसरे को मुबारकबाद देने लगे कि आखिर हमारी साज़िश कामयाब हुई और हमारी तदबीर का तीर ठीक निशाने पर बैठ गया और कहने लगे कि अब ज़रूरत इस बात की है कि खास मौके के इंतिज़ार में रहा जाए और किसी अकेलेपन या तन्हाई के मौक़े पर इस तरह उसको गिरफ्तार किया जाए कि जनता में बेचैनी न पैदा न होने पाए। [इंजिल यूहन्ना, अध्याय ।।, आयत 49-51 व इंजील मरक़स अध्याय 26, आयत 2-1]

      दूसरी तरफ हज़रत ईसा (अलै.) और उनके हवारियों की बात-चीत को सूरः आले इमरान और सूरः सफ्फ के हवाले से नक़ल किया जा चुका है कि हज़रत ईसा (अलै.) जब यहूदियों की कुफ़्र और इंकार और दुश्मनी भरी चालों को महसूस किया तो एक जगह अपने हवारियों को जमा किया और उनसे फ़रमाया कि इसराईल के सरदारों और काहिनों की मुखालिफाना सरगर्मियां तुमसे छिपी नहीं हैं। अब वक्त की नज़ाकत और कड़ी आज़माइश व इम्तिहान की घड़ी का करीब होना तकाज़ा करता है कि मैं तुमसे सवाल करूं कि तुममें कौन लोग हैं जो कुफ़्र के इंकार के सैलाब के सामने सीना तान कर खड़े हों और अल्लाह के दीन के मददगार बनें।

      हज़रत ईसा (अलै.) का यह इर्शाद मुबारक सुनकर सब ने बड़े जोश व ख़रोश और सच्चे ईमान के साथ जवाब दिया, हम हैं अल्लाह के मददगार, एक अल्लाह के परस्तार, आप गवाह रहें कि हम मुस्लिम वफ़ा शिआर हैं और  अल्लाह के दरबार में हम अपनी इस इताअत कशी और फ़रमांबरदारी पर जमे रहने के लिए यों दुआ के लिए हाथ उठाए हैं, ऐ परवरदिगार! हम तेरी उतारी हई किताब पर ईमान ले आए और सच्चे दिल से तेरे पैगम्बर की पैरवी करने वाले हैं। ऐ अल्लाह! तू हमको सच्चाई और हक़ के फ़िदाकरों की फेहरिस्त में लिख ले।

      हज़रत ईसा (अलै.) और उनके दावत व तबलीग के फ़रीज़े के ख़िलाफ़ बनी इसराईल के यहूदियों में मुखालिफ़ सरगर्मियों के मुताल्लिक़ हालात का यह हिस्सा तो ज़्यादातर ऐसा है कि क़ुरआन व इंजील के दर्मियान उसूली तौर पर कोई इख्तिलाफ़ नहीं, लेकिन इसके बाद के बयान के पूरे हिस्से में दोनों की क़तई तौर पर अलग-अलग राहें हैं और उनके बीच इस हद तक टकराव है कि किसी तरह भी एक दूसरे के क़रीब नहीं लाया जा सकता। अलबत्ता इस जगह पहुंच कर दोनों यानी यहूदियों और ईसाइयों का आपसी मेल हो जाता है और दोनों के बयान वाक़िये से मुताल्लिकक़ एक ही अक़ीदा पेश करते है। फ़र्क है तो यह कि यहूदी इस वाक़िये को अपना कारनामा और अपने लिए फ़ख्र की चीज़ समझते हैं और ईसाई इससे बनी इसराईल के यहूदियों की एक लानत के क़ाबिल जद्दोजेहद यक़ीन करते हैं।

      यहूदी और ईसाई दोनों का मिला-जुला बयान है कि यहूदी सरदारों और काहिनों को यह पता चला कि इस वक्त यसू लोगों की भीड़ से अलग अपने शागिर्दों के साथ एक बन्द मकान में मौजूद हैं। यह मौका बेहतरीन है उसको हाथ से जाने न दीजिए। तुरन्त ही ये लोग मौके पर पहुंच गए और चारों तरफ से यसू का घेराव करके यसू को गिरफ्तार कर लिया और तौहीन व तज़लील करते हुए प्लातीस के दरबार में ले गए ताकि वह उनको सूली पर लटकाए और अगरचे प्लातीस ने यसू को बेकसूर समझकर छोड़ देना चाहा।

      मगर बनी इसराईत के जोश दिलाने पर मजबूर होकर सिपाहियों के हवाले कर दिया। सिपाहियों ने उनको कांटों का ताज पहनाया, मुंह पर थूक, कोड़े लगाए और हर तरह की तौहीन व तज़लील करने के बाद मुजरिमों की तरह सूली पर लटका दिया और दोनों हाथों में मीखें ठोंक दी। सीने को बरछी की अनी से छेद दिया और इस बेबसी की हालत में उन्होंने यह कहते हुए जान दे दी, ‘ऐली, ऐली लिपा सबकतनी (ऐ मेरे ख़ुदा! ऐ मेरे खुदा! तूने मुझ को क्यों छोड़ दिया?)

      तफ़सील में थोड़े बहुत फर्क के साथ यही फ़र्ज़ की हुई दास्तान बाकी तीनों इंजीलों में भी ज़िक्र की गई है। चारों इंजीलों की इस मुत्तफ़का मगर फ़र्जी दास्तान के पढ़ने के बाद तबियत पर कुदरती असर यह पड़ता है कि हज़रत मसीह (अलै.) की मौत इंतिहाई बेकसी और बेबसी की हालत में दर्दनाक तरीके से हुई, अगरचे अल्लाह के पाक और मुक़द्दस बन्दों के लिए यह को ताज्जुब की बात न थी  बल्कि अल्लाह के दरबार में पहुंच रखने वालों के लिए इस किस्म की कड़ी आज़माइशों का मुज़ाहिरा अक्सर होता रहा है।

      लेकिन इस वाक़िये का यह पहलू उसके फ़र्ज़ किए हुए और गढ़े हुए होने पर खुले दिल की तरह गवाह है कि हज़रत यसू (अलै.) ने एक अज्म वाले पैग़म्बर बल्कि भले इंसान की तरह इस वाक़िये को सब्र और अल्लाह की रज़ा के साथ अंगेज़ ना किया बल्कि एक इंतिहाई मायूस इंसान की तरह शिकवा करते-करते जान दी। ऐली-ऐली सिमा सबकतनी कहते हुए जान दे देना मायूसी और शिकवे  की वह सूरतेहाल है जो किसी भी तरह हज़रत मसीह (अलै.) के शायाने शान नहीं कही जा सकती।

      फिर इस वाक़िये का यह पहलू भी कम हैरत में डालने वाला नहीं है कि इंजील के क़ौल के मुताबिक यसूअ मसीह (अलै.) ने इस हादसे से पहले तीन बार अल्लाह तआला से दरख्वास्त की, ‘ऐ मेरे बाप! अगर हो सके तो यह (मौत का) प्याला मुझ से टल जाए।’ और जब यह दरख्वास्त किसी तरह कुबूल न हुई तो मायूस होकर यह कहना पड़ा, ‘अगर यह मेरे पिए बगैर नहीं टल सकती तो तेरी मर्ज़ी पूरी हो।’

      हैरत में डालने वाली तो यह बात है कि जब अकीदा ‘कफ्फारा‘ के मताबिक हज़रत मसीह (अलै.) का यह मामला अल्लाह और उसके बेटे (अल अयाजु बिल्लाह) के दर्मियान ते शुदा था तो फिर इस दरख्वास्त का क्या मतलब और अगर बशरी तक़ाज़े के तौर पर था तो अल्लाह की मर्जी मालूम हो जाने और इस पर क्रनाअत कर लेने के बाद फिर यह बेसब्र और मायूस इंसानों की तरह जान देने की क्या वजह?

      यहूदियों की गढ़ी हुई इस दास्तान को चूंकि ईसाइयों ने कुबूल कर लिया तो यहूदी फ़ख्र व गुरूर करते हुए इस पर बहुत खुश हैं और कहते हैं कि मसीह नासरी अगर ‘मसीह मौऊद‘ होता हो अल्लाह तआला इस बेबसी और बेकसी के साथ उसको हमारे हाथ में न देता कि वह मरते वक्त तक अल्लाह से शिकवा करता रहा कि उसको बचाए मगर अल्लाह ने उसकी कोई मदद न की हलांकि हमारे बाप-दादा उस वक़्त भी काफ़ी भड़काते रहे कि अगर तू हकीकत में अल्लाह का बेटा और मसीह मौजूद है तो क्यों तुझ को अल्लाह ने हमारे हाथों इस ज़िल्लत से न बचा लिया। 

      वाकिया यह है कि ईसाइयों के पास जबकि इस चुभते हुए इलज़ाम का कोई जवाब न था और वाकिए की इन तफसीली बातों को मान लेने के बाद ‘कफ्फारा अक़ीदे‘ की कोई कीमत बाक़ी नहीं रह जाती थी तब उन्होंने वाक्रिए की इन तफ़्सीलों के बाद एक पारा बयान का और इज़ाफ़ा किया।

      यूहन्ना की इंजील में है –

      ‘लेकिन जब उन्होंने यसूअ के पास आकर कर देखा कि वह मर चुका है तो उसकी टांगें न तोड़ दीं मगर उनमें से एक सिपाही ने भाले से उसकी पसली छेदी और फौरी तौर पर उससे खून और पानी बह निकला।’

      इन बातों के बाद अरमलीता के रहने वाले यूसुफ़ ने जो यसूअ का शार्गिद था यहूदियों के डर से ख़ुफ़िया तौर पर प्लातीस से इजाज़त चाही कि यसू की लाश ले जाए। प्लातीस ने इजाज़त दे दी पस वह आकर उसकी लाश ले गया और नेकदेमस भी आया जो पहले यसू के पास रात को गया था और पचास सेर के करीब मरावर रऊद मिला हुआ लाया। पस उन्होंने यसू की लाश को लेकर उसे सूती कपड़े में खुश्बूदार चीज़ों के साथ कफ़नाया जिस तरह कि यहूदियों में कफ़न-दफ़न करने का दस्तूर है और जिस जगह उसे सलीब दी गई वहां एक बाग था और उस बाग में एक नई कब्र थी जिसमें अभी कोई रखा न गया था पस उन्होंने यहूदियों की तैयारी के दिन की वजह से यसू को वहीं रख दिया।

      हफ़्ते के पहले दिन मरयम मगदलेनी ऐसे तड़के कि अभी अंधेरा ही था कब्र पर आई और पत्थर को क़ब्र से हटा हुआ देखा पस वह शमऊन पितरस और उसके दूसरे शार्गिद के पास जिसे यसूअ अज़ीज़ रखता था दौड़ी हुई गई और उनसे कहा कि ख़ुदाबन्द को कब्र से निकाल ले गए और हमें मालूम नहीं कि उसे कहां रख दिया …. लेकिन मरयम बाहर क़ब्र के पास खड़ी रोती रही और जब रोते-रोते क़ब्र की तरफ़ झुक के अन्दर नज़र की तो दो फ़रिश्तों को सफ़ेद पोशाक पहने हुए एक को सरहाने और दूसरे को पांयती बैठे देखा यहां यसूअ की लाश पड़ी थी। उन्होंने उससे कहा, ऐ औरत! तू क्यों रोती है?

      उसने उनसे कहा, इसलिए कि मेरे ख़ुदावन्द को उठा ले गए और मालूम नहीं कि उसे कहां रखा। यह कहकर वह पीछे फिरी और यसूअ को खड़े देखा और न पहचाना कि यह यसू है। यसू ने उससे कहा, मरयम! वह फिर कर उससे इबरानी जुबान में बोली ‘रबूनी’ यानी ऐ उस्ताद! यसूअ ने उसे कहा, मुझे न छू, क्योंकि मैं अब तक बाप के पास ऊपर नहीं गया लेकिन मेरे भाइयों के पास जाकर उनसे कहो कि मैं अपने बाप और तुम्हारे बाप के और अपने ख़ुदा और तुम्हारे ख़ुदा के पास ऊपर जाता हूं। मरयम मगदलेनी ने आकर शागिर्दो को खबर दी कि मैंने ख़ुदावन्द को देखा और उसने मुझसे ये बातें कहीं।

      फिर उसी दिन, जो हफ़्ते का पहला दिन था, शाम के वक़्त जब वहां के दरवाज़े, जहां शागिर्द थे यहूदियों के डर से बन्द थे, यसूअ आ कर बीच में खड़ा हुआ और उसने कहा कि तुम्हारी सलामती हो और यह कर उसने अपने हाथ और पसली उन्हें दिखाई पस शार्गिद खुदावन्द को देखकर खुश हुए|

यसू ने फिर उनसे कहा कि तुम्हारी सलामती हो, जिस तरह बाप ने मझे भेजा है उसी तरह में भी तुझे भेजता हूं और यह कह उनको फूंका और उनसे कहा, ‘रुहुल कुद्स’, ‘लो….’ (इंजील यूहन्ना, बाब 18 आयतें 33, 34, 38 से 44 तक और याय 2, आयत 1 से 22 तक)

      हर एक आदमी मामूली ग़ौर व फ़िक्र के बाद आसानी से समझ सकता है कि बयान का यह पारा बयान के पहले हिस्से के साथ बे-रवत और कतई तौर पर बेजोड़ है बल्कि यह अन्दाज़ा लगाना ही मुश्किल हो जाता है कि ये दोनों तफसीलें एक ही शख्स से मुताल्लिक हैं क्योंकि बयान का पहला पारा एक ऐसी शख्सियत का नक्शा है जो बेबस व बेकस, मायूस और अल्लाह से शिकायत करने वाली नज़र आती है और बयान का दूसरा हिस्सा ऐसी हस्ती का रोशन चेहरा पश करती है जो खुदाई सिफ़तों से मुत्तसिफ़ ज़ाते वारी की मुक़र्रब और पेश आने वाले वाक़ियों से मुतमइन और मसरूर है बल्कि उनके वाके होने की तमन्ना करने वाली और उनको अपने फन की अदाएगी का अहम हिस्सा समझती है –

      बहरहाल, हक़ीक़त चूंकि दूसरी थी और बड़े अर्से के बाद ‘कफ्फारे के अकीदे‘ की बिदअत ने ईसाइयों को उसके खिलाफ़ इस गड़े हुए अफ़साने के लिखने पर मजबूर कर दिया इसलिए कुरआन ने हज़रत मरयम (अलै.) ओर हज़रत ईसा (अलै.) के मुताल्लिक दूसरे गोशों की तरह इस गोशे से भी जिहालत व तारीकी का परदा हटाकर हकीक़त हाल के रोशन चेहरे को जलवा-आरा करना ज़रूरी समझा और उसने अपना यह फ़जं अंजाम दिया जिसको दुनिया के मज़हबों की तारीख़ में कुरआन की दावतेतज्दीद व इस्लाह कहा जाता है। 

      उसने बताया कि जिस ज़माने में बनी इसराईल पैगम्बरे हक़ और रसूले खुदा (ईसा बिन मरयम) के ख़िलाफ़ खुफ़िया तदबीरों और साज़िशों में मसरूफ  और उन पर नाज़ां थे उसी ज़माने में खुदा-ए-बरतर के कानूने कज़ा ने यह फैसला लागू कर दिया कि कोई ताक़त और मुखालिफ़ कुव्वत ईसा बिन मरयम (अलै.) पर काबू नहीं पा सकती और हमारी मुहकम तदबीर उसके दुश्मनों के हर ‘चक्र‘ (चाल) से बचाए रखेगी और नतीजा यह निकला कि जब बनी इसराईल ने उन पर नरगा किया तो उनको ख़ुदा के पैग़म्बर पर किसी तर दस्तरस हासिल न हो सकी और उनको तमाम हिफ़ाज़त के साथ उठा लिया गया और जब बनी इसराईल मकान में घुसे तो सूरतेहाल उन पर मुश्तबह हो गई और वे ज़िल्लत व रुसवाई के साथ अपने मक्सद में नाकाम रहे और इर तरह ख़ुदा ने अपना वायदा पूरा कर दिया जो ईसा बिन मरयम (अलै.) की हिफ़ाज़त के लिए किया गया था।

      इसकी तफ्सील यह है कि जब हज़रत ईसा (अलै.) ने यह महसूस फ़रमाया कि अब बनी इसराईल के कुफ्र व इंकार की सरगर्मियां इस दर्जा बढ़ गई कि वे मेरी तौहीन, तज़लील बल्कि कल के लिए साज़िशें कर रहे हैं तो उन्होंने खासतौर से एक मकान में अपने हवारियों को जमा किया और उनके सामने सूरतेहाल का नक्शा पेश फरमा कर इर्शाद फरमाया, इम्तिहान की घड़ी सर पर है कड़ी आज़माइश का वक्त है, हक को मिटाने की साजिशें पूरे ज़ोरों पर हैं, अब मैं तुम्हारे दर्मियान ज़्यादा नहीं रहूंगा इसलिए मेरे बाद दीने हक़ पर जमाव उसके फैलाव और बढ़ोत्तरी और यारी मदद का मामला सिर्फ तुम्हारे साथ जुड़ने वाला है  इसलिए मुझे बताओ कि ख़ुदा के रास्ते में सच्चा मददगार कौन-कौन है?

      हवारियों ने यह हक कलाम सुन कर कहा, हम सभी ख़ुदा के दीन के मददगार हैं, हम सच्चे दिल से ख़ुदा पर ईमान लाए हैं और अपनी ईमानी सच्चाई का आप ही को गवाह बनाते हैं और यह कहने के बाद इंसानी कमज़ोरियों के पेशे नज़र अपने दावे पर ही बात ख़त्म नहीं कर दी बल्कि अल्लाह तआला के दरबार में हाथ उठा कर दुआ करने लगे कि जो कुछ हम कह रहे हैं, तू उस पर हमको जमा और हमको अपने दीन के मददगारों की फहरिस्त में लिख ले।

      इस तरफ़ से मुतमइन होकर अब हज़रत ईसा (अलै.) दावत व इर्शाद के अपने फ़रीज़े (कर्तव्य) के साथ-साथ इस इंतिज़ार में रहे कि देखिए दुश्मनों की सरगर्मियां क्या रुख इख़्तियार करती हैं और अल्लाह का फैसला क्या होता है ? अल्लाह ने इस सिलसिले में कुरआन के ज़रिए यहूदियों और ईसाइयों के ग़लत ज़न्न व गुमान के खिलाफ़ ‘इल्म व यकीन की रोशनी बनाते हुए यह भी बताया कि जिस वक्त दुश्मन अपनी खुफिया चालों में लगे हुए थे उसी वक़्त हमने भी अपनी कामिल कुदरत की खुफिया चाल के ज़रिए यह फैसला कर लिया कि ईसा बिन मरयम (अलै.) के बारे में हक के दुश्मनों की चाल का कोई पेच भी कामयाब नहीं होने दिया जाएगा और बेशक अल्लाह तआला की शामिल कुदरत की छिपी तदबीरों के मुकाबले में किसी को पेश नहीं किया जा सकेगा इसलिए कि उसकी तदबीर से बेहतर कोई तदबीर हो ही नहीं सकती।

      तर्जुमा- और उन्होंने (यहूदियों ने ईसा के खिलाफ ख़ुफ़िया तदबीर की और अल्लाह ने (यहूदियों की धोखेबाज़ियों के ख़िलाफ़ ख़ुफ़िया तदबीर की और अल्लाह सबसे बेहतर ख़ुफ़िया तदबीर का मालिक है। (3:54)

      अरबी डिक्शनरी में “भवर‘ के मानी खुफिया तदबीर (चाल) और धोखा करने के है और कायदा ‘मुशाकला‘ के मुताबिक जब कोई आदमी किसी के जवाब या दिफ़ा (Defence) में खुफ़िया तदबीर करता है तो वह अख़्लाक़ और मज़हब की निगाह में कितनी ही अच्छी तदबीर क्यों न हो उसको भी ‘भवर’ ही कहा जाएगा जैसा कि हर भाषा के मुहावरे में बोला जाता है ‘बुराई का बदला बुराई है।’ हालांकि हर आदमी यह यकीन रखता है कि बुराई करने वाले के जवाब मे उतने ही मुकाबले का जवाब देना अख़्लाक और मज़हब दोनों की निगाह में ‘बुराई नहीं है फिर भी दोनों को हमशक्ल दिखा दिया जाता है। इसी को ‘मुशाकला’ कहते हैं और यह अच्छे कलाम का एक हिस्सा समझा जाता है।

      ग़रज़ खुफिया तदबीर दोनों तरफ़ से थी, एक तरफ बुरी, दूसरी तरफ़ बहतर तदबीर साथ ही एक तरफ़ अल्लाह की कामिल तदबीर थी जिसमें कमी और कमज़ोरी का इम्कान नहीं और दूसरी तरफ धोखे और फ़रेब की खामियां थीं जी मकड़ी के जाल की तरह बिखर कर रह गई।

      आख़िर वह वक्त आ पहुंचा कि बनी इसराईल के सरदारों, काहिनों और फ़क़ीहों ने हज़रत ईसा (अलै.) का एक बन्द मकान में घेराव कर लिया। आप और हवारी एक मकान में बन्द हैं और दुश्मन चारों तरफ से घेराव किये हुए हैं इसलिए कुदरती तौर पर अब यह सवाल पैदा हुआ कि वह क्या जिससे दुश्मन नाकाम रहे और हज़रत ईसा (अलै.) को किसी तरह की तकलीफ़ भी न पहुंचे ताकि अल्लाह कि हिफ़ाज़त का वायदा और उसकी भली तर पूरी हो तो उसके बारे में कुरआन ने बताया कि बेशक खुदा का वायदा पूरा हुआ।

      और उसकी मज़बूत तदबीर ने हज़रत ईसा (अलै.) को दुश्मनों के हाथों से हर तरह महफूज़ रखा और सूरत यह पेश आई कि उस नाजुक घड़ी में हज़रत ईसा (अलै.) को अल्लाह की वह्य ने यह खुशखबरी सुनाई, ‘ईसा खौफ न कर, तेरी मुद्दत पुरी की जाएगी (यानी तुमको दुश्मन क़त्ल नहीं कर सकेंगे और न तुम इस वक्त मौत से दो चार होगे) और होगा यह कि मैं तुझको अपनी तरफ़ (मना-ए-अला की तरफ़) उठा लूंगा और उन काफ़िरों से हर तरह तुझको पाक रखूगा, (यानी ये तुझ पर किसी किस्म का काबू न पा सकेंगे) और तेरे मानने वालों को इन काफ़िरों पर हमेशा गालिब रखूगा, (यानी बनी इसराईल के मुकाबले में क़यामत तक ईसाई और मुसलमान गालिब रहेंगे और उनको कभी इन दोनों पर हाकिमाना इक्तिदार नसीब नहीं होगा फिर अंजामे कार मेरी तरफ़ (मौत के बाद) लौट आना है। पस में इन बातों पर हक का फैसला दूंगा जिनके बारे में तुम आपस में इख्तिलाफ़ कर रहे हो।’

      तर्जुमा- ‘(वह वक्त ज़िक्र के लायक है) जब अल्लाह तआला ने ईसा से कहा, ऐ ईसा! बेशक मैं तेरी मुद्दत को पूरा करूंगा और तुझको अपनी तरफ़ उठा लेने वाला हूं और तुझको काफिरों (बनी इसराइल) से पाक रखने वाला हूं और जो तेरी पैरवी करेंगे उनको तेरे इंकार करने वालो पर कयामत तक के लिए गालिब रखने वाला हूं, फिर मेरी तरफ़ ही लौटना है, फिर मैं उन बातों का फैसला करूगा जिनके बारे में (आज) तुम झगड़ रहे हो।’ (3:55)

      तर्जुमा- (क़यामत के दिन अल्लाह तआला हज़रत ईसा को अपने एहसानों को गिनाते हुए फ़रमाएगा) और वह वक़्त याद करो जब मैंने बनी इसराईल को तुझ से रोक दिया (यानी वे किसी तरह तुझ पर काबू न पा सके) जबकि तू उनके पास मोजज़े लेकर आया और उनमें से काफ़िरों ने कह दिया –

      तर्जुमा- ‘यह तो जादू के सिवा और कुछ नहीं है।’ (5:110)

      तो अब जबकि हज़रत ईसा (अलै.) को यह इत्मीनान दिला दिया गया कि इस ज़बरदस्त घेराव के बावुजूद दुश्मन तुमको क़त्ल न कर सकेंगे और तुमको ग़ैबी हाथ मला-ए-आला की ओर उठा लेगा और इस तरह दीन के दुश्मनों के हार्थों से आप हर तरह महफूज़ कर दिए जाएंगे तो इस जगह पहुंच कर एक सवाल पैदा हुआ कि यह किस तरह हुआ और वाक्रिए ने क्या शक्ल इख़्तियार कर ली?

      क्योंकि यहूदी और ईसाई कहते हैं कि मसीह को सूली पर लटकाया और मार भी डाला। तब कुरआन ने बताया कि मसीह बिन मरयम के क़त्ल और फांसी की पूरी दास्तान बिल्कुल ग़लत और झूठ है बल्कि असल मामला यह है कि जब मसीह को ज़िन्दा ही मला-ए-आला की ओर उठा लिया गया और उसके बाद दुश्मन मकान के अन्दर घुस पड़े तो उन पर सूरते मतबह कर दी गई और वे किसी तरह न जान सके कि आखिर इस मकान में से मसीह कहाँ चला गया?

      तर्जमा- ‘और (यहूदी मलऊन क़रार दिए गए अपने इस कौल पर कि हमने मसीह ईसा बिन मरयम पैग़म्बरे खुदा को क़त्ल कर दिया। हालांकि उन्होंने न उसको क़त्ल किया और न सूली पर चढ़ाया, बल्कि ख़ुदा की ख़ुफ़िया तदबीर की बदौलत) असल मामला उन पर शक के घेरे में आ गया और जो लोग उसके क़त्ल के बारे में झगड़ रहे हैं, बेशक वे उस (ईसा) की ओर से शक में पड़े हुए हैं। उनके पास हकीकते हाल के बारे में ज़न्न (अटकल) की पैरवी के सिवा इल्म की रोशनी नहीं है। उन्होंने ईसा को यकीनन क़त्ल नहीं किया बल्कि उनको अल्लाह ने अपनी जानिब (मला-ए-आला की जानिब) उठा लिया और अल्लाह गालिब हिक्मत वाला है। (4:157-155)

      कुरआन का वह बयान है जो यहूदियों और ईसाइयों के गढ़े हुए फसाने (कहानी) के ख़िलाफ़ उसने हज़रत ईसा बिन मरयम (अलै.) के मुताल्लिक दिया है। अब दोनों बयान आपके सामने हैं और अदल व इंसाफ का तराजू आपके हाथ में पहले हज़रत मसीह (अलै.) की शख्सियत और उनकी दावत व इर्शाद के मिशन की तारीखी हकीक़तों की रोशनी में मालूम कीजिए और उसके बाद एक बार ‘फिर उन तफ्सीली वाकियों पर नज़र डालिए’ जो एक अज्म वाले पैग़म्बर, अल्लाह के दरबार का करीबी और ईसाइयों के बातिल अक़ीदे के मुताबिक ख़ुदा के बेटे को ख़ुदा के फैसले के सामने मायूस, बेचैन, बेयार व मददगार और ख़ुदा की शिकायत करने वाले ज़ाहिर करते हैं और साथ ही बयान के इस टकराव पर भी गौर फरमाइए कि एक ओर कफ्फारा अक़ीदे की बुनियाद सिर्फ इस पर कायम है कि हज़रत मसीह (अलै.) ख़ुदा का बेटा बनकर आया ही इस ग़रज़ से कि सूली पर चढ़ कर दुनिया के गुनाहों का कफ़्फ़ारा हो गए।

      और दूसरी तरफ़ फांसी और मसीह को क़त्ल की दास्तान इस बुनियाद पर खड़ी की गई है कि जब वायदा किया गया वह वक्त आ पहुंचा है तो ख़ुदा का यह फ़र्ज़ी बेटा अपनी हक़ीक़त और दुनिया में वजूद पाने को यकायक भुला करके ‘ऐली ऐली लिमा सबकतनी‘ का हसरत भरा जुम्ला जुबान से कहता है और अल्लाह की मर्ज़ी पर अपनी नाखुशी ज़ाहिर करता हुआ नज़र आता है। क्या किसी आदमी को यह सवाल करने का हक नहीं है कि अगर ईसाइयों के बयान किए गए वाकियों के दोनों हिस्से सही और दुरुस्त हैं तो इन दोनों में आपस में यह टकराव कैसा और एक दूसरे के मुताबिक़ न होने के क्या मानी?

पस अगर एक हक़ीक़त देखने वाली और दूर तक पहुंच रखने वाली निगाह इन तमाम पहलुओं को सामने रखकर और वाक़िए और हालात की इन तमाम कड़ियों को आपस में जोड़ कर इस मसले को समझे तो वह हक़ की तस्दीक को सामने रखकर बे-झिझक यह फैसला करेगा कि बाइबिल की यह दास्तान टकराव वाली और गढ़ी हुई दास्तान है और कुरआन ने इस सिलसिले में जो फैसला दिया है वही सही और सच्चा फैसला है। 

तारीख़ गवाह है कि हज़रत मसीह (अलै.) के बाद से सेंट-पाल के पहले तक ईसाई “यहूदियों‘ की इस बकवास भरी दास्तान से बिल्कुल बे-ताल्लुक थे, लकिन जब सेंट-पाल (पाला स रसूल) ने तसलीस (तीन खुदा को मानना) और कफ्फारे पर ना इंसाई धर्म की बुनियाद रखी तो कफ्फ़ारे के अक़ीदे को मज़बूत बनाने के लिए यहृदियों की इस बकवास भरी दास्तान को भी मज़हब का हिस्सा बना दिया।

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