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हज़रत हुज़ैफा बिन यमान की ज़िंदगी

जब आपने हुज़ूर ﷺ को देखा, तो आदब से पूछा: ” हुज़ूर में मुहाजिर हूं या अंसार ” आप ﷺ ने कहा: “चाहो मुहाजिर कहलाओ या अंसार, तुम्हें पूरा अधिकार है।” हज़रत हुज़ैफा ने कहा: “यारसूल अल्लाह! मैं अंसारी बनना पसंद करूंगा।”

चाहे आप मुहाजिर कहलाईओ, चाहे अंसार, इन दोनों में से जो निसबत पसन्द ह, उसे खुशी-खुशी चुन सकते हैं।

यह वो सुनहरे कलामात (बातें) हैं जो रसूल-ए-अकदस ﷺ ने उस वक्त कहे थे जब हुज़ैफा बिन यमान की पहली मुलाकात आप ﷺ से हुई थी। इन दो कीमती निस्बतों में से हुज़ैफा बिन यमान को एक का चुनाव करने का हुक्म दिया गया, और यह भी एक दिलचस्प दास्तान है।

hazrat huzaifa bin yaman की पैदाइश

हज़रत हुज़ैफा बिन यमान के पिता यमान मक्का के बनी अब्स कबीले में पैदा हुए। उन्होंने अपने ही कबीले के एक व्यक्ति को मार दिया, जिसके कारण उन्हें मक्का छोड़कर यसरब (मदीना) जाना पड़ा। वहां जाकर उन्हें बनी अब्दुल अशहल से गहरे संबंध बने, और उन्होंने अपने कबीले की एक महिला से शादी की, जिनसे हज़रत हुज़ैफा बिन यमान पैदा हुए।

इसके बाद कुछ रुकावटें आईं, जिससे वे मक्का में स्थायी रूप से नहीं रह सके, लेकिन वे मक्का आते-जाते रहे, जबकि स्थायी रूप से मदीना में रहने लगे।

जब इस्लाम का नूर अरब में फैलने लगा, तो अबू हज़रत हुज़ैफा उन दस भाग्यशाली लोगों में शामिल थे, जो रसूल-ए-अकदस ﷺ की सेवा में हाजिर हुए और आपके सामने इस्लाम स्वीकार करने का ऐलान किया। यह घटना हिजरत से पहले की है हज़रत हुज़ैफा बिन यमान खांदानी रूप से मक्की और जन्म से मदनी थे।

हज़रत हुज़ैफा बिन यमान एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुए। उन्होंने मुस्लिम माता-पिता के घर में परवरिश पाई और रसूलल्लाह ﷺ के दीदार का सूर्मा आंखों में लगाने से पहले ही मुसलमान बन चुके थे। बचपन से ही उनके दिल में आप ﷺ के हालात सुनने और उनके गुणों को जानने का बड़ा उत्साह था। वे हर मिलने वाले से पूछते कि रसूलुल्लाह ﷺ का क्या हाल है, आपका चेहरा कैसा है और आपके गुण क्या हैं।

hazrat huzaifa bin yaman की खुआहिश

आपका यही सपना था कि किसी तरह आप ﷺ की सेवा में पहुंचकर दीदार का शौक पूरा कर सकें। आखिरकार, आप से रहा न गया दीदार का शोक लिए हुए आप मक्का चले गए।

जब आपने हुज़ूर ﷺ को देखा, तो आदब से पूछा:

” हुज़ूर में मुहाजिर हूं या अंसार “

जब रसूलुल्लाह ﷺ हिजरत करते हुए मदीना की ओर चले, तो हज़ीफ़ा भी आपके साथ हो गए। गज़वे बद्र के अलावा सभी लड़ाइयों में आप ﷺ के साथ रहे। इस तरह आपके साथ रहे जिस तरह एक आंख दूसरी आंख के जुड़ी हुई है

गज़वे उहद में भी शरीक हुए, आपके पिता भी थे और आप साबित बिन बक्श के साथ महिलाओं की सुरक्षा पर नियुक्त थे। जब मुशरिकों ने भागना शुरू किया, तो किसी ने आवाज़ दी मुसलमान पहुंच गए हैं तो एक दस्ता मुश्रिकों का वापास पलट पड़ा तो मुसलमानों के एक गिरोह से मुठभेड़ हो गई दोनों के बीच में आपके वालिद थे ये देख कर के वो बीच में फंस गए हैं हज़रत हुज़ैफा आवाज़ दी के वो मेरे वालिद हैं लेकीन इतनी लड़ाई में किस को आवाज़ जाती तो एक व्यक्ति ने गलती से एक मुसलमान ने आपके पिता को कत्ल कर दिया।

जब हज़रत हुजैफा को मालुम हुआ तो आपने बड़ी ही रहमदिली सेkकाम लिया हुज़ैफा ने कहा: “یغفر اللہ لکم” (अल्लाह तुम लोगों को माफ करे) यानी जिसने कत्ल किया था उसको माफ़ कर दिया

जब यह बात रसूलुल्लाह ﷺ को ये बात पता चली, तो आपने हज़रत हुजैफा से कहा कि मैं तुम्हारे पिता की दीयत (मुआवजा) देने का इरादा रखता हूं, लेकिन हज़रत हुज़ैफा ने कहा कि या रसूलुल्ला मेरे पिता शहीद होने की इच्छा रखते थे वो उन्हें मिल गईया इलाही गवाह रहना में ये दियत मुसलमानों के लिए छोड़ दी।

इस कार्य के परिणामस्वरूप रसूलल्लाह ﷺ के सामने हज़रत हुज़ैफा की इज़्जत और मान-सम्मान और बढ़ गया।

एक बार रसूल अल्लाह ﷺ ने हज़रत हुज़ैफा का ध्यान से निरीक्षण किया और उनके इन गुणों को पहचाना:

  • 1. बुद्धिमत्ता और सतर्कता: जो मुश्किलों को हल करने में मददगार साबित होती थी।
  • 2. तेज़ समझ: वो पहले ही चरण में मुद्दे की गहराई तक पहुँच जाते थे।
  • 3. गोपनीयता: उनके पास रहस्यों को सुरक्षित रखने की इतनी क्षमता थी कि कोई भी इसके बारे में जान नहीं पाता था।

हज़रत हुज़ैफा को रसूलल्लाह ﷺ का राज़दार बनने का विशेष दर्जा मिलना

रसूलल्लाह ﷺ की राजनीतिक शैली का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि आप अपने सहाबा की खूबियों के आधार पर उन्हें उपयुक्त कार्य सौंपते थे। यह तरीका बेहद सफल साबित हुआ।

रसूलुल्लाह ﷺ ने हज़रत हुज़ैफा के गुणों की सराहना की और उन्हें अपनी नीति के लिए महत्वपूर्ण समझा। आपके पास बुद्धिमत्ता, त्वरित समझ और गुप्त रखने की क्षमता थी।

मदीना में मुसलमानों को यहूदियों और मुनाफिकों की साजिशों का सामना करना पड़ रहा था। रसूलल्लाह ﷺ ने हज़रत हुज़ैफा को मुनाफिकों के नाम बता दिए। यह एक ऐसा गुप्त रहस्य था जिसे आपने हज़रत हुज़ैफा के अलावा किसी को नहीं बताया। और उन्हें उनकी गतिविधियों पर नजर रखने का आदेश दिया। इस दिन से हज़रत हुज़ैफा को रसूलल्लाह ﷺ का राज़दार बनने का विशेष दर्जा मिला।

रसूलल्लाह ﷺ ने हज़रत हुज़ैफा की खुदादाद छमताओं का नाजुक मौकों पर पूरा लाभ उठाया। उनकी बुद्धिमत्ता, चतुराई, तेज़ी से समझने की क्षमता और समस्या समाधान के गुणों ने कई अवसरों पर बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किए।

एक खतरनाक मिशन

गज़्वे खंदक के दौरान, मदीना में बसे मुसलमानों को अरब के मुशरिकों ने चारों ओर से घेर लिया। यह घेराबंदी काफी लंबी खींच गई, और मुसलमानों पर कठिनाइयों के पहाड़ टूट पड़े। इस मुश्किल समय में कुरैश और उनके सहयोगी भी बिल्कुल परेशां हाल नहीं थे। अचानक एक तेज़ आंधी आई, जिसने दुश्मन के तंबुओं को उखाड़ फेंका।

पकी पकाई देगें पलट गईं, दीपक बुझ गए, चेहरों पर धूल जम गई, और आंखें और नाक मिट्टी से भर गईं। एक ही क्षण में दुश्मन की शक्ति कमजोर पड़ गई और उनकी नापाक योजनाएँ धूल में मिल गईं। युद्ध के दृष्टिकोण से, ऐसे नाजुक मौकों पर वह सेना हारती है जो पहले ही कराहने लगती है, जबकि वह सेना सफल मानी जाती है जो धैर्य और सहनशीलता का प्रदर्शन करती है।

इस मौके पर रसूल अल्लाह ﷺ को हज़रत हुज़ैफा के अनुभव और कौशल की आवश्यकता थी। आपने उन्हें इस्लाम के दुश्मनों की अंदरूनी स्थिति की जानकारी लेने के लिए भेजा, ताकि वे सही हालात का जायजा लेकर आपको सूचित कर सकें।

हज़रत हुज़ैफा ने अपना भेष बदलकर, अपनी जान को जोखिम में डालते हुए दुश्मन की सफों में घुस गए और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी।

इस खतरनाक मिशन की कहानी हम आपको हज़रत हुज़ैफा की ज़बानी सुनाते हैं

हज़रत हुज़ैफा कहते हैं:

एक रात हम पंक्ति में बैठे थे, अबू सुफयान का तंबू ऊँचाई पर था, जबकि यहूदी क़बीले बनू क़ुरैज़ा के लोग निचले इलाके में थे। मुझे उनसे ज्यादा खतरा था कि कहीं वे हमारी महिलाओं और बच्चों को नुकसान न पहुँचा दें। हमने इतनी तेज़ आंधी और अंधेरी रात पहले कभी नहीं देखी। आंधी की आवाज़ बिजली की गरज की तरह थी, और रात की अंधकार इतनी घनी थी कि कोई भी अपने हाथ को भी पास से नहीं देख सकता था।

मुनाफिक़ीन रसूलल्लाह ﷺ से जंग से जाने की अनुमति मांगने लगे। उन्होंने कहा: “या रसूल अल्लाह! हमारे घर पूरी तरह खुलें हैं, कोई सुरक्षा के उपाय नहीं हैं। दुश्मन आसानी से हमारे घरों में घुसकर हमारी संपत्ति और इज़्ज़त को नुकसान पहुँचा सकते हैं।”

हालाँकि ऐसा कोई खतरा नहीं था, बल्कि वे झूठ बोल रहे थे। फिर भी, आपने ﷺ ने जिनसे भी अनुमति मांगी, उन्हें उदारता से अनुमति दे दी। मुनाफिक़ीन धीरे-धीरे निकलने लगे, यहाँ तक कि केवल तीन सौ मुसलमान बाकी रह गए।

एक रात, रसूल-ए-अक़्दस ﷺ गश्त कर रहे थे और एक-एक मुजाहिद का हाल मालूम करते हुए जब मेरे पास पहुँचे, मैंने एक छोटी सी चादर ओढ़ रखी थी। सर्दी, भूख और थकान की वजह से मैं घुटनों में सिर दिए हुए बैठा था।

आप ﷺ ने पूछा, “कौन हो?

” मैंने अर्ज़ किया, “या रसूल अल्लाह ﷺ! मैं आपका ख़ादिम हुज़ैफ़ा हूँ।”

आप ﷺ ने फ़रमाया, “हुज़ैफ़ा! तुम यहाँ कैसे बैठे हो?

” मैंने अर्ज़ किया, “भूख और सर्दी ने निढाल कर रखा है।”

आपने राज़दाना अंदाज़ में फ़रमाया,

“देखो, दुश्मन इस वक़्त नाज़ुक तरीन हालात से दो-चार है।”

“तुम ऐसा करो कि चुपके से दुश्मन के लश्कर में शामिल हो जाओ और सही सूरत-ए-हाल का जायज़ा लेकर मुझे इत्तिला दो कि अब उनके इरादे क्या हैं।

” आपका हुक्म सुनकर मैं जल्दी से उठ खड़ा हुआ, लेकिन मेरे दिल पर दुश्मन का ख़ौफ़ तारी था और पूरा जिस्म सर्दी से काँप रहा था। मेरी हालत देखकर आपने मेरे हक़ में दुआ फ़रमाई।

जब मैं इस मिशन के लिए रवाना हुआ, तो आप ﷺ ने मुझे नसीहत की, “तुमने सिर्फ दुश्मन की अंदरूनी हालत का पता लगाना है, इसके अलावा कोई कदम नहीं उठाना।”

यह नसीहत सुनकर, मैं रात की अंधेरे में छुपता हुआ दुश्मन की सफों में घुस गया। मैंने किसी को महसूस भी नहीं होने दिया और इस तरह उनके बीच शामिल हो गया जैसे मैं उन्हीं का एक हिस्सा हूँ। थोड़ी देर बाद, अबू सुफ़ियान ने अपने लश्कर से खिताब करते हुए कहा:

“ऐ क़ुरैश के परिवार! आज मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ, लेकिन मुझे डर है कि यह बात कहीं मुहम्मद ﷺ तक न पहुँच जाए। हर शख्स देख ले कि उसके दाएँ-बाएँ कौन बैठा है।” यह सुनते ही मैंने तुरंत अपने पास बैठे शख्स का हाथ पकड़कर पूछा, “तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है?” उसने अपना नाम बताया और मैंने उसे मौका ही नहीं दिया कि वह मुझसे मेरा नाम पूछ सके। इस तरह मैं अपनी योजना में सफल रहा।

अबू सुफ़ियान ने अपना खिताब जारी रखते हुए कहा:

“ऐ क़ुरैश के परिवार! यहाँ अब और ठहरने का कोई फायदा नहीं है। तूफान ने हमारे जानवरों को मार डाला है, बनू क़ुरैज़ा हमसे अलग हो गए हैं, और तेज़ आँधी ने हमारे ख़ेमे उखाड़ दिए हैं। मेरी राय है कि अब यहाँ से कूच कर चलो, मैं खुद जा रहा हूँ।” इतना कहकर वह ऊँट पर सवार हुआ, उसे एड़ लगाई और रवाना हो गया।

हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ी अल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि उस रात अबू सुफ़ियान मेरी पकड़ में था। अगर रसूल-ए-अक़्दस ﷺ की नसीहत न होती तो मैं उसे क़त्ल कर देता। फिर मैं चुपके से खिसक गया और सीधा रसूल अल्लाह ﷺ के पास पहुँच गया। मैंने देखा कि आप ﷺ छोटी सी चादर ओढ़े नमाज़ पढ़ रहे थे।

नमाज़ से फ़ारिग होकर आप ﷺ ने मुझे अपने पास बैठा लिया। कड़ाके की सर्दी थी, आपने अपनी चादर का एक कोना मुझ पर डाल दिया। मैंने दुश्मन के पीछे हटने की पूरी बात आपको सुनाई। यह सुनकर आप ﷺ बहुत खुश हुए और अल्लाह की तारीफ करने लगे।

हज़रत हुज़ैफ़ा बिन यमान रज़ी अल्लाहु अन्हु अपनी पूरी ज़िंदगी में मुनाफिक़ों के राज़ और उनके भेदों से वाकिफ़ रहे। खलीफाओं ने हमेशा मुनाफिक़ों के मामलों में हज़रत हुज़ैफ़ा से सलाह ली। हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ी अल्लाहु अन्हु का यह मामूल था कि जब कोई मुसलमान इंतक़ाल कर जाता, तो वह जनाज़ा पढ़ाने से पहले पूछते:

“क्या हुज़ैफ़ा इस जनाज़े में मौजूद हैं?”

अगर लोग कहते कि वह मौजूद हैं, तो आप जनाज़ा पढ़ाते और अगर कहते कि वह मौजूद नहीं हैं, तो आप उस शख्स के बारे में शक करते और जनाज़ा पढ़ाने से रुक जाते।

“क्या मेरे किसी सरकारी नुमाइंदे में कोई मुनाफ़िक़ है?”

आप ने कहा, “सिर्फ़ एक है।”

हज़रत उमर ने कहा, “मुझे बताओ वह कौन है?”

आप ने कहा, “मैं उसका नाम नहीं बताऊँगा।”

हज़रत हुज़ैफ़ा कहते हैं कि कुछ वक्त बाद हज़रत उमर ने उस नुमाइंदे को उसके ओहदे से हटा दिया। इससे पता चला कि अल्लाह ने इस मामले में हज़रत उमर की रहनुमाई की थी।

क्या आपको पता है???

शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि हज़रत हुज़ैफ़ा बिन यमान रज़ी अल्लाहु अन्हु ने ईरान के नहावंद, दीनवर, हमदान और रई जैसे महत्वपूर्ण इलाकों को फ़तह किया था। इसके अलावा, आपका दूसरा बड़ा कारनामा यह था कि जब उनके दौर में क़ुरआन के विभिन्न नुस्खे आम हो गए, तो आपने सभी मुसलमानों को क़ुरआन मजीद के एक नुस्खे पर इकट्ठा कर दिया।

आपके इंतकाल का वक्त

इन तमाम ख़ूबियों के अलावा, हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ी अल्लाहु अन्हु के दिल में अल्लाह का ख़ौफ़ और उसके अज़ाब का डर बहुत ज़्यादा पाया जाता था। जब आप मर्ज-ए-मौत में मुबतला हो गए, तो कुछ सहाबा रज़ी अल्लाहु अन्हुम आपकी तीमारदारी के लिए रात के आख़िरी हिस्से में आए।

आपने पूछा, “क्या वक्त है?

” सहाबा ने बताया, “सुबह होने वाली है।”

यह सुनकर आप फ़ौरन बोले, “मैं उस सुबह से अल्लाह की पनाह मांगता हूँ, जो जहन्नम का रास्ता दिखाने वाली है।”

यह जुमला आपने दो बार कहा,

फिर पूछा, “क्या तुमने मेरा कफ़न तैयार कर लिया है?”

सहाबा ने बताया, “हाँ!”

आपने फरमाया, “ज़्यादा क़ीमती कफ़न मत बनाना। अगर अल्लाह के यहाँ मेरे लिए भलाई का फ़ैसला हुआ, तो इस कफ़न को बेहतरीन लिबास में बदल दिया जाएगा, और अगर मामला इसके उलट हुआ, तो यह कफ़न भी सड़ जाएगा।”

इसके बाद आपकी ज़बान से यह दुआईया क़लिमात जारी हो गए:

“इलाही! तू जानता है कि मैंने अपनी ज़िन्दगी भर फ़क़ीरी को दौलत पर, आजिज़ी और इन्किसारी को बुलंदी पर और आख़िरत को दुनिया पर तर्जीह दी है।”

जब आपकी रूह जिस्मानी पिंजरे से परवाज़ कर रही थी, तो कहा:

“देखो! शौक़ और मोहब्बत से मेरा हबीब आया है। दरबार-ए-इलाही में जो शर्मिंदा हुआ, उसे कभी कामयाबी नहीं मिलेगी।”

अल्लाह तआला हज़रत हुज़ैफ़ा रज़ी अल्लाहु अन्हु पर रहम फरमाए, उनके दर्जात बुलंद करे, और उम्मत-ए-मुस्लिम को उनके नक़्श-ए-क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ दे। बेशुमार ख़ूबियों के मालिक, एक अजीब आज़ाद मर्द थे।

हज़रत हुज़ैफ़ा बिन यमान रज़ी अल्लाहु अन्हु की तफ्सीली हालात-ए-ज़िंदगी मालूम करने के लिए निम्नलिखित किताबों का मुताला कीजिए:

  • ① मिरक़ात अल-मफ़ातिह
  • ② अल-इसाबा
  • ③ असद अल-ग़ाबा
  • ④ सहीह मुस्लिम
  • ⑤ तारीख़ अल-तबरी
  • ⑥ तजार अल-उम्म
hazrat huzaifa bin yaman

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