![]()
Hazrat Hamza ka Iman Lana (Prophet Muhammad History in Hindi Part 16)
┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈
Seerat e Mustafa Qist 16
┈┉┅❀🍃🌸🍃❀┅┉┈
क़ुफ़्फ़ार का यह ज़ुल्म व सितम जारी रहा। ऐसे में एक दिन हज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सफ़ा की पहाड़ी के पास मौजूद थे। अबू जहल आपके पास से गुज़रा। उसने आपको देख लिया और गालियाँ देने लगा, यहाँ तक कि उसने आपके सिर पर मिट्टी भी फेंक दी। अब्दुल्लाह बिन जुदान की बांदी ने यह मंजर देखा। फिर अबू जहल वहाँ से चलकर हरम में दाखिल हुआ। वहाँ मुशरिकीन जमा थे। वह उनके सामने अपना “कारनामा” बयान करने लगा।
इसी वक्त आपके चाचा हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु हरम में दाखिल हुए। वह अब तक मुसलमान नहीं हुए थे। तलवार उनकी कमर से लटक रही थी। वह उस वक्त शिकार से वापस आए थे। उनकी आदत थी कि जब शिकार से लौटते तो पहले हरम जाकर तवाफ़ करते थे, फिर घर जाते थे।
हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु हरम में दाखिल होने से पहले अब्दुल्लाह बिन जुदान की बांदी के पास से गुज़रे। उसने सारा मंजर खामोशी से देखा और सुना था। उसने हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु से कहा:
“ऐ हमज़ा! कुछ खबर भी है? अभी-अभी यहाँ अबू हकम बिन हिशाम (अबू जहल) ने तुम्हारे भतीजे के साथ क्या सुलूक किया है? वह यहाँ बैठे थे, अबू जहल ने उन्हें देख लिया, उन्हें तकलीफ़ें दीं, गालियाँ दीं और बहुत बुरी तरह पेश आया। तुम्हारे भतीजे ने जवाब में उसे कुछ भी न कहा।”
सारी बात सुनकर हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा
“तुम जो कुछ बयान कर रही हो, क्या यह तुमने अपनी आँखों से देखा है?”
उसने फौरन कहा:
“हाँ! मैंने खुद देखा है।”
यह सुनते ही हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु जोश में आ गए। चेहरा गुस्से से तमतमा उठा। फौरन हरम में दाखिल हुए। वहाँ अबू जहल मौजूद था। वह क़ुरैशियों के दरमियान बैठा था। यह सीधे उसके पास पहुँचे। हाथ में कमान थी, बस वही खींचकर उसके सिर पर दे मारी। अबू जहल का सिर फट गया। हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उससे कहा
“तू मोहम्मद को गालियाँ देता है? सुन ले! मैं भी उसका दीन इख़्तियार करता हूँ। जो कुछ वह कहता है, वही मैं भी कहता हूँ। अब अगर तुझमें हिम्मत है तो मुझे जवाब दे।”
अबू जहल मिन्नतें करता हुआ बोला
“वह हमें बेअक़्ल बताता है, हमारे माबूदों को बुरा कहता है, हमारे बाप-दादा के रास्ते के खिलाफ़ चलता है।”
यह सुनकर हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु बोले
“और खुद तुमसे ज़्यादा बेअक़्ल और बेवक़ूफ़ कौन होगा, जो अल्लाह को छोड़कर पत्थर के टुकड़ों को पूजते हो? मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मोहम्मद अल्लाह के रसूल हैं।”
उनके यह अल्फ़ाज़ सुनकर अबू जहल के खानदान के कुछ लोग यकदम हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ बढ़े और उन्होंने कहा
“अब तुम्हारे बारे में भी हमें यकीन हो गया है कि तुम भी बेदीन हो गए हो।”
जवाब में हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया
“आओ… कौन है जो मुझे इससे रोकने वाला है? मुझ पर हकीकत रोशन हो गई है। मैं गवाही देता हूँ कि वह अल्लाह के रसूल हैं। जो कुछ वह कहते हैं, वह हक़ और सच्चाई है। अल्लाह की क़सम! मैं उन्हें नहीं छोड़ूँगा। अगर तुम सच्चे हो तो मुझे रोककर दिखाओ।”
यह सुनकर अबू जहल ने अपने लोगों से कहा
“अबू अमारा (यानी हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु) को छोड़ दो, मैंने वाकई उनके भतीजे के साथ अभी कुछ बुरा सुलूक किया था।”
वह लोग हट गए। हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु घर पहुँचे। घर आकर उन्होंने उलझन महसूस की कि यह मैं क़ुरैश के सामने क्या कह आया हूँ? मैं तो क़ुरैश का सरदार हूँ।
लेकिन फिर उनका ज़मीर उन्हें मलामत करने लगा। आख़िर शदीद उलझन के आलम में उन्होंने दुआ की
“ऐ अल्लाह! अगर यह सच्चा रास्ता है तो मेरे दिल में यह बात डाल दे और अगर ऐसा नहीं है तो फिर मुझे इस मुश्किल से निकाल दे, जिसमें मैं घिर गया हूँ।”
वह रात उन्होंने इसी उलझन में गुज़ारी। आख़िर सुबह हुई तो हज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुँचे। आपसे अर्ज़ किया
“भतीजे! मैं ऐसे मामले में उलझ गया हूँ कि मुझे इससे निकलने का कोई रास्ता सुझाई नहीं देता और एक ऐसी सूरत-ए-हाल में रहना, जिसके बारे में मैं नहीं जानता कि यह सच्चाई है या नहीं, बहुत सख्त मामला है।”
इस पर आंहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ़ मुतवज्जे हुए। आपने उन्हें अल्लाह के अज़ाब से डराया, सवाब की खुशखबरी सुनाई। आपके वाज़ व नसीहत का यह असर हुआ कि अल्लाह तआला ने उन्हें ईमान का नूर अता फरमा दिया। वह बोल उठे:
“ऐ भतीजे! मैं गवाही देता हूँ कि तुम अल्लाह के रसूल हो। बस अब तुम अपने दीन को खुलकर पेश करो।”
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं, इसी वाक़िये पर क़ुरआन पाक की यह आयत नाज़िल हुई
“ऐसा शख्स जो कि पहले मुर्दा था, फिर हमने उसे ज़िंदा कर दिया और हमने उसे एक ऐसा नूर दे दिया कि वह उसे लिए हुए चलता-फिरता है।” (सूरह अल-अनआम)
हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु के ईमान लाने पर हज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत ज़्यादा खुशी हुई। इसकी एक वजह तो यह थी कि हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु आपके सगे चाचा थे। दूसरी वजह यह थी कि वह क़ुरैश में सबसे ज़्यादा मोअज़्ज़ज़ फ़र्द थे। इसके साथ ही वह क़ुरैश के सबसे ज़्यादा बहादुर, ताक़तवर और खुद्दार इंसान थे।
और इसी बुनियाद पर जब क़ुरैश ने देखा कि अब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मजीद क़ूवत हासिल हो गई है, तो उन्होंने आपको तकलीफ़ें पहुँचाने का सिलसिला बंद कर दिया।
लेकिन अपने तमाम जुल्म व सितम अब वह कमज़ोर मुसलमानों पर ढाने लगे। जिस कबीले का भी कोई शख्स मुसलमान हो जाता, वे उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जाते, उसे क़ैद कर देते, भूखा-प्यासा रखते, तपती रेत पर लिटाते, यहाँ तक कि उसका यह हाल हो जाता कि सीधे बैठने के क़ाबिल भी न रहता। इस ज़ुल्म और ज़्यादती पर सबसे ज़्यादा अबू जहल लोगों को उकसाता था।
