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Hazrat Bilal Ka Waqia (Prophet Muhammad History in Hindi Part 17
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Seerat e Mustafa Qist 17
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Table of Contents
ऐसे ही लोगों में से एक हज़रत बिलाल हब्शी रज़ियल्लाहु अन्हु भी थे। आपका पूरा नाम बिलाल बिन रबाह था। यह उमय्या बिन खलफ के ग़ुलाम थे।
हज़रत बिलाल पर ज़ुल्म
हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु मक्का में पैदा हुए थे। पहले अब्दुल्लाह बिन जुदआन तैमी के ग़ुलाम थे। अब्दुल्लाह बिन जुदआन के सौ ग़ुलाम थे, यह उनमें से एक थे। जब इस्लाम का आग़ाज़ हुआ और इसका नूर फैला तो अब्दुल्लाह बिन जुदआन ने अपने 99 ग़ुलामों को इस ख़ौफ़ से मक्का से बाहर भेज दिया कि कहीं वे मुसलमान न हो जाएँ। बस, उसने हज़रत बिलाल बिन रबाह रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने पास रख लिया। यह उसकी बकरियाँ चराया करते थे। इस्लाम की रोशनी हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु तक भी पहुँची। यह ईमान ले आए मगर उन्होंने अपने इस्लाम को छुपाए रखा।
एक रोज़ उन्होंने काबा के चारों तरफ रखे बुतों पर गंदगी डाल दी। साथ ही वे उन पर थूकते जाते थे और कहते जाते थे:
“जिसने तुम्हारी इबादत की, वह तबाह हो गया।”
यह बात क़ुरैश को मालूम हो गई। वे फ़ौरन अब्दुल्लाह बिन जुदआन के पास आए और बोले:
“तुम बेदीन हो गए हो!”
उसने हैरान होकर कहा:
“क्या मेरे बारे में भी यह बात कही जा सकती है?”
इस पर वे बोले:
“तुम्हारे ग़ुलाम बिलाल ने आज ऐसा-ऐसा किया है।”
“क्या!!!”
वह हैरतज़दा रह गया।
अब्दुल्लाह बिन जुदआन ने फ़ौरन क़ुरैश को सौ दिरहम दिए ताकि बुतों की जो तौहीन हुई है, उसके बदले उनके नाम पर कुछ जानवर ज़िब्ह कर दिए जाएँ। फिर वह हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु की तरफ़ बढ़ा। उसने उन्हें रस्सी से बाँध दिया। पूरे दिन भूखा-प्यासा रखा।
फिर तो यह उसका रोज़ का मामूल बन गया। जब दोपहर के वक़्त सूरज आग बरसाने लगता तो उन्हें घर से निकालकर तपती हुई रेत पर चित लिटा देता। उस वक़्त रेत इस क़दर गर्म होती थी कि अगर उस पर गोश्त का टुकड़ा रख दिया जाता तो वह भी भुन जाता था। वह इसी पर बस नहीं करता था, एक वज़नी पत्थर मंगवाता और उनके सीने पर रख देता ताकि वे अपनी जगह से हिल भी न सकें। फिर वह बदबख्त उनसे कहता:
“अब या तो मुहम्मद की रिसालत और पैग़म्बरी से इंकार कर और लात व उज्ज़ा की इबादत कर, वरना मैं तुझे यहाँ इसी तरह लिटाए रखूँगा, यहाँ तक कि तेरा दम निकल जाए!”
हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु उसकी बात के जवाब में फ़रमाते:
“अहद… अहद…”
यानी अल्लाह तआला एक है, उसका कोई शरीक नहीं।
जब हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु किसी तरह इस्लाम से न हटे तो तंग आकर अब्दुल्लाह बिन जुदआन ने उन्हें उमय्या बिन खलफ के हवाले कर दिया। अब यह शख़्स उन पर इससे भी ज़्यादा ज़ुल्म-ओ-सितम ढाने लगा।
एक रोज़ उन्हें इसी क़िस्म की ख़ौफ़नाक सजाएँ दी जा रही थीं कि हज़रत नबी करीम ﷺ उस तरफ़ से गुज़रे। हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु शिद्दत-ए-तकलीफ़ में “अहद अहद” पुकार रहे थे। आपने उन्हें इस हालत में देखकर फ़रमाया:
“बिलाल! तुम्हें यह अहद अहद ही निजात दिलाएगा।”
हज़रत बिलाल की आज़ादी
फिर एक रोज़ हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु उस तरफ़ से गुज़रे। उमय्या बिन खलफ ने उन्हें गर्म रेत पर लिटा रखा था। सीने पर एक भारी पत्थर रखा हुआ था। उन्होंने यह दर्दनाक मंज़र देखकर उमय्या बिन खलफ से कहा:
“क्या इस मसकीन के बारे में तुम्हें अल्लाह का ख़ौफ़ नहीं आता? आख़िर कब तक तुम इसे अज़ाब दिए जाओगे?”
उमय्या बिन खलफ ने जलकर कहा:
“तुम ही ने इसे ख़राब किया है, इसलिए तुम ही इसे निजात क्यों नहीं दिला देते?”
इसकी बात सुनकर हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु बोले:
“मेरे पास भी एक हब्शी ग़ुलाम है, वह इससे ज़्यादा ताक़तवर है और तुम्हारे ही दीन पर है। मैं इसके बदले में तुम्हें वह दे सकता हूँ।”
यह सुनकर उमय्या बोला:
“मुझे यह सौदा मंज़ूर है!”
यह सुनते ही अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपना हब्शी ग़ुलाम उसके हवाले कर दिया। उसके बदले में हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु को ले लिया और आज़ाद कर दिया। सुभानअल्लाह! क्या ख़ूब सौदा हुआ!
यहाँ यह बात जान लेनी चाहिए कि हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु का हब्शी ग़ुलाम दुनिया के लिहाज़ से बहुत क़ीमती था। यह भी कहा जाता है कि उमय्या बिन खलफ ने ग़ुलाम के साथ दस औक़िया सोना भी तलब किया था और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसका यह मुतालिबा भी मान लिया था।
चुनांचे आपने उसे एक यमनी चादर और कुछ सोना दिया था। साथ ही आपने उमय्या बिन खलफ से फ़रमाया था:
“अगर तुम मुझसे सौ औक़िया सोना भी तलब करते तो भी मैं तुम्हें दे देता!”
हज़रत बिलाल की मां और कुछ गुलामों की आज़ादी
हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के अलावा हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने और भी बहुत से ग़ुलाम मुसलमानों को ख़रीदकर आज़ाद फ़रमाया था। यह वे मुसलमान ग़ुलाम थे, जिन्हें अल्लाह का नाम लेने की वजह से ज़ुल्म का निशाना बनाया जा रहा था।
इनमें हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु की वालिदा हमामा रज़ियल्लाहु अन्हा थीं। एक आमिर बिन फ़ुहैरा रज़ियल्लाहु अन्हु थे। एक सहाबी अबू फ़क़ीहा रज़ियल्लाहु अन्हु थे, जो हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ ही मुसलमान हुए थे।
हज़रत अबू फ़क़ीहा की आज़ादी
सफ़वान बिन उमय्या रज़ियल्लाहु अन्हु भी शुरुआत में मुसलमानों के सख़्त मुख़ालिफ़ थे। वह फ़तह-ए-मक्का के बाद इस्लाम लाए थे।
एक रोज़ उन्होंने हज़रत अबू फ़क़ीहा रज़ियल्लाहु अन्हु को गर्म रेत पर लिटा रखा था। ऐसे में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु उधर से गुज़रे। उस वक़्त सफ़वान बिन उमय्या रज़ियल्लाहु अन्हु यह अल्फ़ाज़ कह रहे थे:
“इसे अभी और अज़ाब दो, यहाँ तक कि मुहम्मद (ﷺ) यहाँ आकर अपने जादू से इसे निजात दिलाएँ!”
हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसी वक़्त सफ़वान बिन उमय्या रज़ियल्लाहु अन्हु से उन्हें ख़रीदकर आज़ाद कर दिया।
