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Hazrat Aisha Par ilzaam | Prophet Muhammad History in Hindi Part 36

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Seerat e Mustafa Qist 36
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हज़रत आयशा पर झूठा इल्ज़ाम

हज़रत आयशा का हार गुम होना

सय्यिदा आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि कूच का ऐलान होते ही मैं क़ज़ा-ए-हाजत के लिए उठ खड़ी हुई और लश्कर से दूर जंगल की तरफ चली गई। जब मैं फ़ारिग़ हो गई तो वापस लश्करगाह की तरफ रवाना हुई। मेरे गले में एक हार था, वह कहीं टूट कर गिर गया, मुझे उसके गिरने का पता न चला। जब उसका ख़याल आया तो हार की तलाश में वापस जंगल की तरफ गई। इस तरह इस हार की तलाश में मुझे देर हो गई। लश्कर में जो लोग मेरा हुज्द (पालकी) उठाकर ऊंट पर रखा करते थे, उन्होंने ख़याल किया कि मैं हुज्द में मौजूद हूँ। उन्होंने हुज्द को उठाकर ऊंट पर रख दिया और उन्हें एहसास न हुआ कि मैं उसमें नहीं हूँ, क्योंकि मैं दुबली-पतली और कम वज़न की थी… मैं खाती भी बहुत कम थी, जिस्म पर मोटापे के आसार नहीं थे। इस तरह लश्कर रवाना हो गया। (हुज्द महमिल को कहते हैं, यह एक डोली नुमा चीज़ होती है जो ऊंट पर बैठने के लिए बनाई जाती है ताकि औरत पर्दे में रहे।)

इधर, काफ़ी तलाश के बाद मेरा हार मिल गया और मैं लश्कर की तरफ रवाना हुई। वहाँ पहुँची तो लश्कर जा चुका था, दूर-दूर तक सन्नाटा था। मैं जिस जगह ठहरी हुई थी, वहीं बैठ गई… मैंने सोचा, जब उन्हें मेरी गुमशुदगी का पता चलेगा तो सीधे यही आएँगे। बैठे-बैठे मुझे नींद आ गई। सफ़वान सलमी रज़ियल्लाहु अन्हु की ज़िम्मेदारी यह थी कि वे लश्कर के पीछे रहा करते थे ताकि किसी का कोई सामान रह जाए या गिर जाए तो उठा लिया करें। उस रोज़ भी वे लश्कर से पीछे थे। जब यह उस जगह पहुँचे जहाँ क़ाफ़िला था… तो उन्होंने मुझे दूर से देखा और ख़याल किया कि कोई आदमी सोया हुआ है। नज़दीक आए तो उन्होंने मुझे पहचान लिया। मुझे देखते ही उन्होंने “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन” पढ़ा। उनकी आवाज़ सुनकर मैं जाग गई।

आप पर इल्ज़ाम लगाना

हज़रत आयशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:
“सफ़वान सलमी हैरतज़दा थे कि यह क्या हुआ, लेकिन मुँह से उन्होंने एक लफ़्ज़ न कहा, न मैंने उनसे कोई बात की। उन्होंने अपनी ऊँटनी को मेरे क़रीब बैठा दिया और सिर्फ़ इतना कहा:
“माँ! सवार हो जाइए!”

मैंने ऊँट पर सवार होते वक़्त कहा:
“हसबियल्लाहु व नि’मल वकील”
(अल्लाह तआला की ज़ात ही मुझे काफ़ी है और वही मेरा बेहतरीन सहारा है।)

फिर मेरे सवार होने के बाद उन्होंने ऊँट को उठाया और उसकी महार पकड़ कर आगे रवाना हुए, यहाँ तक कि लश्कर में पहुँच गए। लश्कर उस वक़्त नख्ल-ए-ज़हीरा के मक़ाम पर पड़ाव डाले हुए था और वह दोपहर का वक़्त था। जब हम लश्कर में पहुँचे तो मुनाफ़िक़ों के सरदार अब्दुल्लाह बिन उबी को बहुतान लगाने का मौक़ा मिल गया। उसने कहा:
“यह औरत कौन है जिसे सफ़वान साथ लाया है?”

उसके साथी मुनाफ़िक़ बोल उठे:
“यह आयशा हैं… सफ़वान के साथ आई हैं…”

अब ये लोग लग गए बातें करने… फिर जब लश्कर मदीना मुनव्वरा पहुँचा तो मुनाफ़िक़ अब्दुल्लाह बिन उबी दुश्मनी की बुनियाद पर और इस्लाम से अपनी नफ़रत की बुनियाद पर इस बात को शोहरत देने लगा।

इमाम बुख़ारी लिखते हैं:
“जब मुनाफ़िक़ इस वाक़िये का ज़िक्र करते तो अब्दुल्लाह बिन उबी बढ़-चढ़कर उनकी ताईद करता ताकि इस वाक़िये को ज़्यादा से ज़्यादा फैलाया जाए।”

सय्यिदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:
“मदीना मुनव्वरा आकर मैं बीमार हो गई… मैं एक माह तक बीमार रही, दूसरी तरफ मुनाफ़िक़ इस बात को फैलाते रहे, बढ़ा-चढ़ाकर बयान करते रहे। इस तरह ये बातें नबी अकरम तक और मेरे माँ-बाप तक पहुँच गईं, जबकि मुझे कुछ भी नहीं मालूम हो सका था… अलबत्ता मैं महसूस करती थी कि आंहज़रत मुझसे पहले की तरह मोहब्बत से पेश नहीं आते थे जैसा कि पहले बीमारी के दिनों में मेरा ख़याल रखते थे।”

(दरअस्ल, हुज़ूर अकरम अपने घराने पर मुनाफ़िक़ीन की इल्ज़ामतराशी से सख़्त ग़मगीन थे, इस फ़िक्र-ओ-रंज की वजह से घरवालों से अच्छी तरह घुल-मिलकर बात करने का मौक़ा भी न मिलता था।)

आप के इस अंदाज़ से मैं परेशान रहने लगी। मेरी बीमारी कम हुई तो उम्मे मिस्तह रज़ियल्लाहु अन्हा ने मुझे वह बातें बताईं जो लोगों में फैल रही थीं। उम्मे मिस्तह रज़ियल्लाहु अन्हा ने ख़ुद अपने बेटे मिस्तह को भी बुरा-भला कहा कि वह भी इस बारे में यही कुछ कहता फिरता है।

यह सुनते ही मेरा मरज़ लौट आया, मुझ पर ग़शी तारी होने लगी, बुख़ार फिर हो गया… घर आई तो बुरी तरह बेचैन थी, तमाम रात रोते गुज़री… आँसू रुकते नहीं थे, नींद आँखों से दूर थी। सुबह नबी अकरम मेरे पास तशरीफ़ लाए। आपने पूछा:
“क्या हाल है?”

तब मैंने अरज़ किया:
“क्या आप मुझे इजाज़त देंगे कि मैं अपने माँ-बाप के घर हो आऊँ?”

हुज़ूर ने मुझे इजाज़त दे दी… दरअस्ल, मैं चाहती थी कि इस ख़बर के बारे में वालिदैन से पूछूँ। जब मैं अपने माँ-बाप के घर पहुँची तो मेरी वालिदा (उम्मे रुमान रज़ियल्लाहु अन्हा) मकान के निचले हिस्से में थीं… जबकि वालिद ऊपर वाले हिस्से में क़ुरआन करीम की तिलावत कर रहे थे। वालिदा ने मुझे देखा तो पूछा:
“तुम कैसे आईं?”

मैंने उनसे पूरा क़िस्सा बयान कर दिया… और अपनी वालिदा से कहा:
“अल्लाह आपको माफ़ करे, लोग मेरे बारे में क्या-क्या कह रहे हैं, लेकिन आपने मुझे कुछ बताया ही नहीं।”

इस पर मेरी वालिदा ने कहा:
“बेटी! तुम फ़िक्र न करो! अपने आपको संभालो, दुनिया का दस्तूर यही है कि जब कोई ख़ूबसूरत औरत अपने ख़ाविंद के दिल में घर कर लेती है तो उससे जलने वाले उसकी ऐबजोई शुरू कर देते हैं।”

यह सुनकर मैंने कहा:
“अल्लाह की पनाह! लोग ऐसी बातें कर रहे हैं, क्या मेरे अब्बा जान को भी इन बातों का इल्म है?”

उन्होंने जवाब दिया:
“हाँ! उन्हें भी मालूम है।”

अब तो मारे रंज के मेरा बुरा हाल हो गया, मैं रोने लगी, मेरे रोने की आवाज़ वालिद के कानों तक पहुँची तो वे फ़ौरन नीचे उतर आए मेरे वालिद हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने मेरी वालिदा से पूछा:
“इसे क्या हुआ?”

मेरी वालिदा ने जवाब दिया:
“इसके बारे में जो बातें फैलाई जा रही हैं, वह इसके कानों तक पहुँच चुकी हैं।”

अब तो मेरी वालिदा भी रोने लगीं, मेरे वालिद भी रोने लगे, और मैं भी रोती रही। हमारे साथ घर के दूसरे लोग भी रो रहे थे। इसी दौरान एक अंसारी औरत मुझसे मिलने आई। मैंने उसे अंदर बुला लिया। हमें रोता देखकर वह भी रोने लगी। यहाँ तक कि हमारे घर में जो बिल्ली थी, वह भी रो रही थी।

इसी हालत में अचानक रसूल अल्लाह तशरीफ़ ले आए। आपने सलाम किया और बैठ गए। जब से ये बातें शुरू हुई थीं, आप मेरे पास बैठा नहीं करते थे, लेकिन इस बार आप मेरे पास बैठ गए। इन बातों को एक महीना हो चुका था और इस दौरान आप पर कोई वह़ी (ईश्वरीय निर्देश) नाज़िल नहीं हुई थी।

आप ने बैठने के बाद कलिमा-ए-शहादत पढ़ा और फिर फ़रमाया:
“आयशा! मुझ तक तुम्हारे बारे में ऐसी बातें पहुँची हैं। अगर तुम इन इल्ज़ामों से पाक हो तो अल्लाह तआला खुद तुम्हारी बरीअत (निर्दोषता) बयान कर देगा। और अगर तुम किसी गुनाह में लिप्त हो गई हो तो अल्लाह से इस्तिग़फ़ार (माफ़ी) माँग लो और तौबा कर लो, क्योंकि जब कोई बंदा अपने गुनाह का इक़रार कर लेता है और अल्लाह से तौबा करता है तो अल्लाह तआला उसकी तौबा क़बूल कर लेता है।”

यह सुनकर मैंने अपने वालिद और वालिदा से कहा:
“जो कुछ रसूल अल्लाह ने फ़रमाया है, उसका जवाब दीजिए।”

लेकिन मेरे वालिद हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
“मैं नहीं जानता कि अल्लाह के रसूल से क्या कहूँ।”

मेरी वालिदा ने भी यही कहा कि वह नहीं जानतीं कि क्या जवाब दें।

फिर मैंने कहा:
“आप सबने ये बातें सुनी हैं, अब अगर मैं कहती हूँ कि मैं इन इल्ज़ामों से पाक हूँ, और मेरा अल्लाह जानता है कि मैं पाक हूँ, तो क्या इस पर यक़ीन कर लिया जाएगा? और अगर मैं इसे मान लूँ, जबकि मैं निर्दोष हूँ, तो क्या लोग मुझे छोड़ देंगे? इसलिए मैं सिर्फ़ सब्र करूँगी। मैं अपने रंज और ग़म की शिकायत अपने अल्लाह से करती हूँ।”

पाक दामिनी की आसमानी गवाही

इसके बाद मैं उठी और बिस्तर पर लेट गई। उस समय मैं सोच भी नहीं सकती थी कि अल्लाह तआला मेरे मामले में कुरआन की आयतें नाज़िल करेगा, जिन्हें हमेशा पढ़ा जाता रहेगा। मेरा तो बस यह ख़याल था कि अल्लाह तआला अपने रसूल को कोई सपना दिखा देगा और मुझे इस इल्ज़ाम से बरी कर देगा।

हम सब इसी हालत में थे कि अचानक अल्लाह के रसूल पर वह़ी (ईश्वरीय संदेश) के आसार महसूस हुए।

जब नबी-ए-करीम ﷺ पर वह़ी (ईश्वरीय संदेश) नाज़िल होती थी, तो आपके मुबारक चेहरे पर तकलीफ़ के आसार ज़ाहिर होते थे। यह बात महसूस करते ही हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने आपको कपड़ा ओढ़ा दिया और आपके सिर के नीचे एक तकिया रख दिया।

सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं:
“जब मैंने आप ﷺ पर वह़ी के आसार देखे तो मुझे कोई घबराहट महसूस नहीं हुई, क्योंकि मैं बेगुनाह थी। लेकिन मेरे वालिदैन पर बेपनाह ख़ौफ़ तारी था।”

आख़िरकार जब आप ﷺ से वह़ी के आसार खत्म हुए, तो उस समय आप ﷺ हंस रहे थे और आपकी पेशानी पर पसीने के क़तरें चमक रहे थे। दो क़तरें मोतियों की तरह नज़र आ रहे थे। उस वक़्त आप ﷺ ने जो पहला जुमला फ़रमाया, वह यह था:
“आयशा! अल्लाह तआला ने तुम्हें बरी कर दिया है।”

अल्लाह तआला ने इस मौक़े पर सूरह-ए-नूर की आयतें नाज़िल फ़रमाई थीं:

(अनुवाद)
“जिन लोगों ने यह तूफ़ान (यानि इल्ज़ाम) खड़ा किया, ऐ मुसलमानों! वे तुम में से एक छोटा सा गुट है। तुम इसे बुरा मत समझो, बल्कि यह अंजाम के ऐतबार से तुम्हारे हक़ में बेहतर ही बेहतर है। उनमें से हर शख़्स को उतना ही गुनाह हुआ, जितना उसने कहा, और जिसने इस तूफ़ान में सबसे ज़्यादा हिस्सा लिया (अब्दुल्लाह बिन उबी), उसे सबसे सख़्त सज़ा मिलेगी। जब तुम लोगों ने यह बात सुनी थी, तो मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों ने अपने आपस वालों के साथ नेक गुमान क्यों न किया और ज़ुबान से यह क्यों न कहा कि यह सरासर झूठ है?

यह इल्ज़ाम लगाने वाले अपने दावे पर चार गवाह क्यों न लाए? सो, क़ायदे के मुताबिक़ यह लोग चार गवाह नहीं लाए, तो अल्लाह के नज़दीक़ यह झूठे हैं। और अगर तुम पर दुनिया और आख़िरत में अल्लाह का फ़ज़ल न होता, तो जिस काम में तुम पड़ चुके थे, उसमें तुम पर सख़्त अज़ाब वाक़े होता। जब कि तुम इस झूठ को अपनी ज़ुबानों से बयान कर रहे थे और अपने मुंह से ऐसी बात कह रहे थे, जिसकी तुम्हें कोई दलील से ख़बर नहीं थी, और तुम इसे हल्की बात समझ रहे थे, जबकि अल्लाह के नज़दीक़ यह बहुत बड़ी बात थी। और जब तुमने इसे सुना, तो यह क्यों न कहा कि हमें ज़ेबा नहीं कि ऐसी बात अपने मुंह से निकालें। मआज़अल्लाह! यह तो बहुत बड़ा बहुतान (झूठा इल्ज़ाम) है।

अल्लाह तुमको नसीहत करता है कि फिर ऐसी हरकत न करना, अगर तुम ईमान वाले हो। अल्लाह तुमसे साफ़-साफ़ अहकाम बयान करता है, और अल्लाह जानने वाला, बड़ी हिकमत वाला है। जो लोग (इन आयात के नुज़ूल के बाद भी) चाहते हैं कि बेहयाई की बातें मुसलमानों में फैलाई जाएं, उनके लिए दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब है। (इस पर सज़ा का तअज्जुब मत करो), क्योंकि अल्लाह तआला जानता है और तुम नहीं जानते। और ऐ तौबा करने वालो! अगर यह बात न होती कि तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल और करम है (जिसने तुम्हें तौबा की तौफ़ीक़ दी) और यह कि अल्लाह तआला बड़ा शफ़ीक़, बड़ा रहीम है (तो तुम भी इस वईद से न बचते)।”(सूरह नूर आयत 11-20

शादी के वक़्त हज़रत आयशा की उम्र कितनी थी?

सय्यदा आयशा का ख़्वाब

सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फरमाती हैं कि इन आयात के नुज़ूल से पहले मैंने एक ख़्वाब देखा था। ख़्वाब में एक नौजवान ने मुझसे पूछा:
“क्या बात है? आप क्यों ग़मगीन रहती हैं?”

मैंने उसे बताया कि लोग जो कुछ कह रहे हैं, उसकी वजह से मैं ग़मगीन हूं। तब उस नौजवान ने कहा:
“आप इन अल्फ़ाज़ में दुआ करें।”

(अनुवाद)
“ऐ नेमतों की तकमील करने वाले, ऐ ग़मों को दूर करने वाले, ऐ परेशानियों को हल करने वाले, ऐ मुश्किलों के अंधेरे से निकालने वाले, ऐ सबसे बेहतर इंसाफ़ करने वाले और ज़ालिम से बदला लेने वाले, ऐ अव्वल और ऐ आखिर! मेरी इस परेशानी को दूर फ़रमा दे और मेरे लिए निजात की कोई राह निकाल दे।”

दुआ सुनकर मैंने कहा, “बहुत अच्छा,” इसके बाद मेरी आँख खुल गई। मैंने उन्हीं अल्फ़ाज़ में दुआ की और फिर मेरे लिए बरी होने के दरवाज़े खोल दिए गए।

इल्ज़ाम लगाने वालों में मिस्तह़ रज़ियल्लाहु अन्हु भी शामिल थे। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु उनकी ख़बरगीरी करते थे और उन्होंने ही उनकी परवरिश की थी। लेकिन इसके बावजूद वे भी इल्ज़ाम लगाने वालों में शामिल हो गए। जब अल्लाह तआला ने सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को बरी कर दिया, तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने मिस्तह़ रज़ियल्लाहु अन्हु को अपने घर से निकाल दिया और कहा:

“अल्लाह की क़सम! आइंदा मैं कभी भी तुम पर अपना माल ख़र्च नहीं करूँगा, और न ही तुम्हारे साथ कभी मोहब्बत और शफ़क़त का बर्ताव करूँगा।”

इस पर अल्लाह तआला ने सूरह-ए-नूर की यह आयत नाज़िल फ़रमाई:

(अनुवाद)
“और जो लोग तुम में (दीन की) बड़ी शख़्सियत रखते हैं और (दुनियावी) वुसअत वाले हैं, उन्हें यह क़सम नहीं खा लेनी चाहिए कि वे रिश्तेदारों, ग़रीबों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों को (माली मदद) नहीं देंगे, बल्कि उन्हें माफ़ कर देना चाहिए और दरगुज़र करना चाहिए। क्या तुम यह नहीं चाहते कि अल्लाह तआला तुम्हारे गुनाह माफ़ कर दे? बेशक अल्लाह बहुत बख़्शने वाला, निहायत रहमत वाला है।”

जब यह आयत नाज़िल हुई, तो नबी-ए-करीम ﷺ ने हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया:
“क्या तुम नहीं चाहते कि अल्लाह तुम्हारी मग़फ़िरत कर दे?”

हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया:
“अल्लाह की क़सम! मैं यक़ीनन चाहता हूँ कि मेरी मग़फ़िरत हो जाए।”

इसके बाद वे मिस्तह़ रज़ियल्लाहु अन्हु के पास गए और उनका जो वज़ीफ़ा उन्होंने बंद कर दिया था, उसे फिर से जारी कर दिया—न सिर्फ़ जारी किया, बल्कि दो गुना कर दिया और कहा:
“आइंदा मैं कभी भी मिस्तह़ का ख़र्च बंद नहीं करूँगा।”

उन्होंने अपनी क़सम का कफ़्फ़ारा भी अदा किया।

सय्यदा आयशा का हार

ग़ज़वा ए बनी मुस्तलक में सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा का हार दो मर्तबा गुम हुआ था। पहली बार जब हार ग़ुम हुआ, तो उसकी तलाश के सिलसिले में पूरा क़ाफ़िला रुका रहा। इसी दौरान सुबह की नमाज़ का वक़्त हो गया। उस वक़्त मुसलमान किसी चश्मे (पानी के स्रोत) के क़रीब नहीं थे, इसलिए पानी की तंगी थी। जब लोगों को परेशानी हुई, तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा को डाँटा। उस वक़्त नबी-ए-करीम ﷺ सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा की गोद में सर रखकर सो रहे थे।

हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
“तुमने रसूलुल्लाह ﷺ और तमाम लोगों की मंज़िल खोटी कर दी! न यहाँ किसी के पास पानी है, न ही क़रीब में कोई चश्मा!”

यह कहकर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपनी बेटी की पर हल्के से टोक़े भी मारे और साथ ही कहते जा रहे थे:
“लड़की! तू सफ़र में हमेशा परेशानी का सबब बन जाती है, लोगों के पास ज़रा सा भी पानी नहीं है!”

सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि “मैं अपने जिस्म को हिलने से रोके रही, क्योंकि नबी-ए-करीम ﷺ मेरी रान पर सर रखे सो रहे थे। जब आप ﷺ सोए होते थे, तो कोई भी आपको बेदार नहीं करता था। आप ﷺ ख़ुद ही जागते थे, क्योंकि कोई नहीं जानता था कि इस नींद में आप ﷺ के साथ क्या हो रहा होता।”

आख़िरकार जब आप ﷺ बेदार हुए, तो आपने वुज़ू के लिए पानी तलब फ़रमाया। मगर बताया गया कि पानी नहीं है। इसी वक़्त अल्लाह तआला ने तयम्मुम की आयत नाज़िल फ़रमाई।

इस पर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया:
“बेटी! जैसा कि तुम ख़ुद भी जानती हो, तुम वाक़ई मुबारक हो!”

रसूलुल्लाह ﷺ ने भी इरशाद फ़रमाया:
“आयशा! तुम्हारा हार कितना मुबारक है!”

हज़रत उसैद बिन हुज़ैर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा:
“ऐ आल-ए-अबी बक्र! यह तुम्हारी पहली बरकत नहीं है। अल्लाह तुम्हें जज़ाए ख़ैर दे। तुम्हारे साथ अगर कोई नाख़ुशगवार वाक़िआ भी पेश आता है, तो उसमें भी अल्लाह तआला मुसलमानों के लिए भलाई पैदा कर देते हैं।”

सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं:
“हार की तलाश में जब हमने उस ऊँट को उठाया, जिस पर मैं सवार थी, तो हमें उसके नीचे से हार मिल गया।”

मतलब यह कि इस वाक़िआ की वजह से मुसलमानों को तयम्मुम की सहूलत अता हुई, क्योंकि इससे पहले उन्हें तयम्मुम के बारे में कोई इल्म नहीं था।

इस वाक़िए के बाद जब आगे सफ़र हुआ, तो मुनाफ़िक़ों की साज़िश का वह वाक़िआ पेश आया, जो ऊपर बयान हो चुका है।

चाँद ग्रहण की नमाज़

इसी साल चाँद को ग्रहण लगा, तो नबी-ए-करीम ﷺ ने नमाज़-ए-ख़ुसूफ़ (चाँद ग्रहण की नमाज़) पढ़ाई। इस दौरान यहूदी ज़ोर-ज़ोर से ढोल बजा रहे थे और कह रहे थे:
“चाँद पर जादू कर दिया गया है!”

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