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Eid Ki Namaz Ka Tarika

ईद की नमाज़ का तरीका

ईद की नमाज़ इस्लाम में एक विशेष इबादत है, जिसे हर मुसलमान को अदा करना चाहिए। यह साल में दो बार—ईद उल-फितर और ईद उल-अज़हा के अवसर पर अदा की जाती है। इस नमाज़ का तरीका आम फ़र्ज़ या नफ़्ल नमाज़ से कुछ अलग होता है, क्योंकि इसमें अतिरिक्त तकबीरों (अल्लाहु अकबर कहने) का इज़ाफ़ा किया गया है। नीचे ईद की नमाज़ पढ़ने का सही तरीका विस्तार से बताया जा रहा है।


ईद की नमाज़ की शर्तें और तैयारी

  1. ग़ुस्ल और पाक-साफ़ कपड़े पहनना – ईद की नमाज़ से पहले नहाना (ग़ुस्ल करना) सुन्नत है। इसके अलावा, अच्छे और साफ़-सुथरे कपड़े पहनना भी पसंदीदा अमल है।
  2. सही नियत करना – ईद की नमाज़ पढ़ने से पहले यह नियत होनी चाहिए कि यह ईद उल-फितर या ईद उल-अज़हा की नमाज़ है और इसे अल्लाह के लिए अदा किया जा रहा है।
  3. मस्जिद या ईदगाह जाना – सुन्नत है कि ईद की नमाज़ मस्जिद के बजाय खुले मैदान (ईदगाह) में अदा की जाए।
  4. ईद की नमाज़ का समय – यह नमाज़ सूरज के पूरी तरह निकलने के बाद और ज़वाल से पहले अदा की जाती है।

ईद की नमाज़ का तरीका

1. नीयत

नमाज़ की शुरुआत नियत से की जाती है। नियत दिल से करनी होती है, ज़ुबान से बोलना ज़रूरी नहीं है। लेकिन चाहें तो यूं कह सकते हैं:

“नियत की मैने दो रकअत नमाज़ ईद उल फ़ितर ज़ाइद छः तकबीरों के साथ अल्लाह तआला के लिए पीछे इस इमाम के”

(अगर ईद उल अज़हा की नमाज़ पढ़ रहे हो तो ईद उल फ़ितर की जगह ईद उल अज़हा का नाम लें)

2. तकबीरे तह्रीमा पहली रकअत

  • इमाम “अल्लाहु अकबर” कहकर नमाज़ शुरू करेगा और मुअत्तदी (जो पीछे नमाज़ पढ़ रहा है) भी “अल्लाहु अकबर” कहकर हाथ बांध लेगा।
  • फिर इमाम और मुकत्तदी तीन अतिरिक्त तकबीरें कहेंगे। पहले दो तकबीरों में हाथ उठाकर छोड़ देना चाहिए और तीसरी तकबीर में हाथ बांध लेना चाहिए।
  • इसके बाद इमाम सुरह फ़ातिहा और कोई दूसरी सुरह पढ़ेगा और फिर रुकू-सजदा करके पहली रकात पूरी करेगा।

3. दूसरी रकअत

  • जब दूसरी रकात शुरू होगी तो इमाम पहले सुरह फ़ातिहा और कोई दूसरी सुरह पढ़ेगा।
  • इसके बाद रुकू में जाने से पहले फिर से तीन तकबीरें कहनी होंगी। इन तकबीरों में हाथ उठाकर छोड़ देना है।
  • चौथी तकबीर के साथ रुकू में चले जाना है और फिर सामान्य तरीके से नमाज़ पूरी करनी है।

4. खुतबा (ख़ुत्बा सुनना)

  • नमाज़ के बाद इमाम दो ख़ुत्बे देगा।
  • पहला खुत्बा अल्लाह की तारीफ और तकबीरों के साथ शुरू होगा।
  • दूसरे खुत्बे में अमल और नसीहत की बातें बताई जाएंगी।
  • खुत्बा सुनना वाजिब है, इसलिए बिना सुने उठकर नहीं जाना चाहिए।

ईद की नमाज़ से जुड़ी कुछ अहम बातें
  1. तकबीरें – ईद की नमाज़ में कुल 6 अतिरिक्त तकबीरें होती हैं (तीन पहली रकात में और तीन दूसरी रकात में)।
  2. अज़ान और इक़ामत नहीं होती – ईद की नमाज़ में न तो अज़ान दी जाती है और न ही इक़ामत।
  3. सदक़ा-ए-फितर (ईद उल-फितर पर) – यह ज़रूरी है कि ईद की नमाज़ से पहले गरीबों को सदक़ा-ए-फितर अदा कर दिया जाए।
  4. खुशबू लगाना और मीठा खाना – ईद के दिन खुशबू लगाना और ईद उल-फितर पर नमाज़ से पहले मीठा खाना (खजूर वगैरह) सुन्नत है।

ईद की नमाज़ एक खास इबादत है, जो भाईचारे, खुशी और अल्लाह की नेमतों का इज़हार करने का एक ज़रिया है। इसे पूरे आदब और सही तरीके से अदा करना चाहिए, ताकि अल्लाह की रहमत और बरकतें हासिल हो सकें।

ईद की नमाज़ का इतिहास

ईद की नमाज़ इस्लाम में एक विशेष इबादत है, जो पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के ज़माने से चली आ रही है। इसे मुसलमान साल में दो बार—ईद उल-फ़ित्र और ईद उल-अज़हा—के मौके पर अदा करते हैं। इसका उद्देश्य अल्लाह का शुक्र अदा करना और इस्लामी भाईचारे को मज़बूत करना है।

ईद की नमाज़ की शुरुआत

इस्लामी इतिहास के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने 2 हिजरी (624 ईस्वी) में पहली बार ईद की नमाज़ पढ़ी। इसी साल रोज़े (सौम) और ज़कात का हुक्म आया था, और पहली बार मुसलमानों ने रमज़ान के रोज़ों के बाद ईद मनाई।

ख़लीफ़ाओं और इस्लामी शासकों के दौर में

  • खुलफ़ा-ए-राशिदीन के शासनकाल में यह परंपरा उसी तरह जारी रही, जैसा कि पैगंबर (ﷺ) ने सिखाया था।
  • उम्मयद, अब्बासी और उस्मानी खलीफ़ाओं के दौर में ईद की नमाज़ बड़े पैमाने पर पढ़ी जाने लगी, जिसमें शासक और जनता दोनों शामिल होते थे।
  • भारत में मुग़ल साम्राज्य के दौरान जामा मस्जिद और अन्य बड़ी मस्जिदों में सामूहिक रूप से ईद की नमाज़ अदा की जाती थी।

वर्तमान समय में

आज भी ईद की नमाज़ दुनियाभर में पढ़ी जाती है। हालाँकि, बढ़ती जनसंख्या और सुरक्षा कारणों से कई जगहों पर इसे मस्जिदों में भी अदा किया जाता है।

ईद की नमाज़ इस्लाम की एक अहम इबादत है, जो सामूहिकता, खुशी और शुक्राने का प्रतीक है। यह परंपरा पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) के समय से चली आ रही है और आज भी उसी भावना से निभाई जाती है।

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