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ईद गदीर की हकीकत

eid e ghadeer भी राफ़जियो का दिया हुआ नाम है और उनका अक़ीदा है कि इस दिन हुज़ूर ﷺ ने हज़रत अली को मौला फ़रमा कर पहला खलीफ़ा बनाया, और ये अक़ीदा मुस्लिमों के नज़रिए के ख़िलाफ़ है। और राफ़ज़ी लोग इसी दिन हज़रत उस्मान ए ग़नी की शहादात की ख़ुशी भी मानते हैं। क्यों कि ग़दीर ए ख़ुम का वाक़िआ और हज़रत उस्मान ए ग़नी की शहादत की तारीख़ एक ही (18 ज़िल हज) है।

अल्हमदुलिल्ला हम मुसलमान हज़रत अली को अपना मौला मानते हैं और पूरे साल मानते हैं सिर्फ़ 18 ज़िल हज के लिए ही ख़ास नहीं मानते, इसलिए हमें ज़रूरत नहीं है कि हम सहाबा के गुस्ताख़ो के तरीक़े से हज़रत अली की याद मनाएं।

ई़द ए ग़दीर की शुरूआत कैसे हुई

आज की मुरव्वजा ‘ई़दे ग़दीर’ जिसने सबसे पहले शुरू की, उसका नाम ‘अह़मद इब्ने बुवैह’ था, जो आमतौर पर हिस्ट्री में ‘मुइ़ज़्ज़ुद् दौलह’ के नाम से मशहूर है;

ये जब बग़दाद का हाकिम बना, तब इसने 352 हि. में ये सब शीओं वाली हरकतें एलानिया तौर पर शुरू कीं;

ये शख़्स शीआ़ हुकूमत ‘दौलते बुवैहिय्यह (الدَّولَةُ البُوَيهِيَّةُ)’ का बग़दाद में बनने वाला पहला हाकिम था;

इस सल्त़नत की बुनियाद 932 ई. में ‘रुक्नुद् दौलह बुवैही’ ने रखी, और ईरान पर 932 ई. से लेकर 949 ई. तक हुकूमत की, और अपनी सल्त़नत को फैलाया. फिर आख़िरकार ये सल्त़नत 1062 ई. में ख़त्म हो गयी;

इमाम अन्दलुसी (d. 741 हि.) अपनी किताब: ‘अत् तम्हीद वल् बयान फ़ी मक़्तलिश् शहीद उ़स्मान’ में लिखते हैं

“وقد اتخذت الرافضة اليوم الذي قتل فيه عثمان (رضي الله عنه) عيداً، وقالوا: ‘هو يوم عيد الغدير’.”۔“

और जिस दिन ह़ज़रत उ़स्माने ग़नी (रद़ियल्लाहु अ़न्हु) को शहीद किया गया, उस दिन को राफ़िज़िय्यों ने ‘ई़द’ बना लिया, और कहा: ‘ये ई़दे ग़दीर का दिन है

📙अत् तम्हीद वल् बयान फ़ी मक़्तलिश् शहीद उ़स्मान
[इमाम अन्दलुसी (d. 741 हि.)], पेज न. 234, फ़स़्ल न. 8, पब्लिकेशन: दारुस् सक़ाफ़ह (क़त़र), फ़र्स्ट एडीशन, 1405 हि.

इमाम ज़हबी (d. 748 हि.) अपनी किताब: ‘अल् इ़बर फ़ी ख़बरि मन ग़बर’ में लिखते हैं:

“وفيها يوم ثامن عشر ذي الحجة، عملت الرافضة عيد الغدير، غدير خم، ودقت الكوسات، وصلوا بالصحراء صلاة العيد”۔،

“और 352 हि. में 18 ज़िल्-ह़िज्जह को राफ़िज़िय्यों ने ई़दे ग़दीर (ग़दीरे ख़ुम) मनाई, ढोल बजाये और रेगिस्तान में ई़द की नमाज़ पढ़ी.”

इमाम ज़हबी ‘अल् इ़बर फ़ी ख़बरि मन ग़बर’
ग़दीर ए खुम की हकीकत अहादीस ए करीमा की रोशनी में

ग़दीर ए खुम मक्का मुकर्रमा और मदीना तैय्यबा के बीच एक जगह का नाम है, जहां अल्लाह के रसूल ﷺ ने हज्जतुल विदा के मौके पर एक खुत्बा दिया था जिसमें हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه की फज़ीलत बयान की थी।

कुछ जाहिलों ने इस खुत्बे को आधार बनाकर यह झूठ फैला दिया कि यह हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه को इमाम और पहला खलीफा नियुक्त करने का खुत्बा था, जबकि इस खुत्बे का मकसद लोगों के दिलों से हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه के बारे में नकारात्मक जज़्बात को खत्म करना और उनकी मोहब्बत और मौद्दत पैदा करना था। हम इस खुत्बे के सबब को बयान करेंगे जिसके बिना इस खुत्बे को समझना बिल्कुल भी मुमकिन नहीं है।

अगर आप किसी वाकिये में से इसके सबब को निकाल दें तो आप कभी भी उस वाकिये की हकीकत तक नहीं पहुँच पाएंगे। और जब आप वाकिये का असल सबब नक्ल नहीं करेंगे तो फिर आप इस वाकिये का गलत सबब बनाएंगे और यहीं से आप हकीकत का चेहरा माखूश करना शुरू कर देंगे और यही हमारे यहाँ के जाहिल ज़ाकिर अपनी मजलिसों में करते हैं कि उनका दावा है कि अल्लाह के रसूल ﷺ हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه को अपनी जिंदगी में खलीफा बना गए थे जबकि हज़रत अबू बक्र सिद्दीक رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने उनकी खिलाफत ग़स्ब कर ली थी।

ग़दीर ए खुम के खुत्बे के बारे में रिवायतें जो (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम, इब्न इशहाक, इब्न हिशाम) आदि में नक्ल हुई हैं, के मुताबिक अल्लाह के रसूल ﷺ ने हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه को यमन में माल को तक्सिम करने और उसमें से खुमुस वसूल करके लाने के लिए सहाबा की एक जमाअत पर अमीर बनाकर भेजा था। वापसी में कुछ वाकियात ऐसे हुए कि लोग हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه से बददिल और मुतनफ्फिर हो गए और उन्होंने अल्लाह के रसूल ﷺ से हज़रत अली की शिकायत की। जब आपने ﷺ लोगों के दिलों में हज़रत अली के लिए रंजिश देखी तो ग़दीर ए खुम पर खुत्बा दिया।

सहीह बुखारी की रिवायत के मुताबिक कुछ सहाबा को यह ऐतराज़ था कि यमन से जो माल मिला था उसमें खुमुस में से हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने अपने लिए सबसे बेहतरीन चीज़ रख ली थी। हज़रत बुरैदा رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने वापसी पर आप ﷺ से इसकी शिकायत की तो आपने पूछा: ऐ बुरैदा رضـــي الله تعـــالى عنــــه, क्या आप अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه से रंजिश रखते हैं? उन्होंने कहा: हां। तो आपने ﷺ फरमाया कि ऐसा न करें कि अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه के लिए खुमुस में इससे भी ज्यादा हिस्सा है जो उन्होंने रख लिया है।

सीरत इब्न इशहाक के मुताबिक यमन से वापसी पर हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने एक शख्स को काफिले का अमीर बनाया और खुद मक्का की तरफ जल्दी की ताकि आप ﷺ के साथ हज्जतुल विदा में शरीक हो सकें। अब जिस शख्स को हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने अमीर बनाया था उन्होंने सबको सदके के माल में से कीमती चादरें पहनने का हुक्म दिया ताकि मक्का में दाखिल होते वक्त मुसलमान उनका इस्तिकबाल करें और खुश हों। इधर हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه हज से फारिग होते ही काफिले की तरफ निकले ताकि मक्का में उनके साथ दाखिल हों लेकिन जब उन्होंने चादरें पहने देखी तो डांटा जिससे बहुत से लोग नाराज हो गए।

दलाइलुन्नुबुव्वाह की रिवायत के मुताबिक यमन से वापसी पर लोगों ने हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه से कहा कि हमारे ऊंट थक गए हैं लिहाज़ा हमें सदके के ऊंटों पर सवारी की इजाजत दें। हज़रत अली رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने सख्ती से इंकार कर दिया। इससे लोगों को रंजिश पैदा हुई और हज़रत अबू सईद खदरी رضـــي الله تعـــالى عنــــه ने वापसी पर आप ﷺ से शिकायत की तो आपने उनकी बात दरमियान में काटते हुए कहा कि ठहर जाएं, हज़रत अली की सख्ती और डांट-डपट अल्लाह की राह में थी। अबू सईद खदरी رضـــي الله تعـــالى عنــــه कहते हैं कि इसके बाद मैंने उनसे कभी रंजिश महसूस नहीं की।

इस किस्म के वाकियात में जब अल्लाह के रसूल ﷺ ने कुछ सहाबा के दिलों में हज़रत अली के बारे में रंजिश महसूस की तो वापसी पर ग़दीर ए खुम पर खुत्बा दिया और अहले बैत से मोहब्बत रखने का हुक्म दिया जिसे कुछ जाहिलों ने उनकी इमामत और खिलाफत का हुक्म समझ लिया और शेखैन को गासिब करार देकर अपनी आखरत खराब करने लगे।

गदीर के खुतबे का खुलासा

इस खुत्बे में जो बातें नक्ल हुईं, उनका खुलासा यह है कि आपने ﷺ फरमाया कि जिसका मैं मौला हूँ अली उसका मौला है। यानी मैं जिसका महबूब हूँ अली उसका महबूब है। जो मुझसे मोहब्बत का दावा रखता है वो अली से भी मोहब्बत रखे। जो मुझे महबूब रखता है वो अली को भी महबूब बना ले। और दूसरा यह फरमाया कि देखो, मैं अपने अहल ए बैत के बारे में तुम्हें अल्लाह से डराता हूँ यानी उनसे ज्यादती न करना, उनसे दुश्मनी और अदावत न रखना।

अहल ए बैत से दुश्मनी और अदावत रखना और उनसे ज़ुल्म और ज्यादती करना यह ईमान के खिलाफ है। अल्लाह समझ अता फरमाए और हमें अहल ए सुन्नत ओ जमात के तरीक़े यानी मस्लक ए आला हज़रत पर कायम रखे। आमीन या रब्बुल आलमीन।

हवाला- सहीह बुखारी- सहीह मुस्लिम- इब्न ए माजा- तारीख इब्न ए हिशाम- सीरत ए इब्न ए इशहाक- दलाइलुन्नुबुव्वाह


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