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Boycott of Muslims | Prophet Muhammad History in Hindi Part 23
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Seerat e Mustafa Qist 23
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जब मुसलमान खुलकर सब कुछ करने लगे जैसे काबे का तवाफ नमाज़ और दिन की तबलीग तो तमाम क़ुरैश ने मिलकर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल करने का फैसला किया।
उन्होंने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़ानदान वालों से कहा:
“तुम हमसे दो गुना ख़ून बहा ले लो और इसकी इजाज़त दे दो कि क़ुरैश का कोई शख्स हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़त्ल कर दे, ताकि हमें सुकून मिल जाए और तुम्हें फ़ायदा पहुंच जाए।”
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़ानदान वालों ने इस तजवीज़ को मानने से इनकार कर दिया। इस पर क़ुरैश ने ग़ुस्से में आकर यह तय किया कि तमाम बनू हाशिम और बनू अब्दुल मुत्तलिब का मआशरती बायकॉट किया जाए और साथ ही उन्होंने तय किया कि बनू हाशिम को बाज़ारों में न आने दिया जाए ताकि वे कोई चीज़ न खरीद सकें।
उनसे शादी-ब्याह न किया जाए और न ही उनके लिए कोई सुलह क़बूल की जाए। उनके मामले में कोई नर्मी न अपनाई जाए, यानी उन पर कुछ भी गुज़रे, उनके लिए दिल में रहम का जज़्बा पैदा न होने दिया जाए और यह बायकॉट उस वक़्त तक जारी रहना चाहिए जब तक कि बनू हाशिम के लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरैश के हवाले न कर दें।
क़ुरैश ने इस मुआहिदे की बाक़ायदा तहरीर लिखी, इस पर पूरी तरह अमल कराने और इसका एहतराम कराने के लिए इसे काबा में लटका दिया।
इस मुआहिदे के बाद अबू लहब को छोड़कर तमाम बनू हाशिम और बनू अब्दुल मुत्तलिब शिअब अबी तालिब में चले गए, यह मक्का से बाहर एक घाटी थी। अबू लहब चूंकि क़ुरैश का पक्का तरफ़दार था और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बदतरीन दुश्मन भी था, इसलिए उसे घाटी में जाने पर मजबूर न किया गया। यूं भी उसने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़त्ल के मन्सूबे में क़ुरैश का साथ दिया था, उनकी मुख़ालफ़त नहीं की थी।
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शिअब अबी तालिब में महसूर हो गए, उस वक़्त आपकी उम्र मुबारक 46 साल थी। बुख़ारी में है कि इस घाटी में मुसलमानों ने बहुत मुश्किल और सख्त वक़्त गुज़ारा। क़ुरैश के बायकॉट की वजह से उन्हें खाने-पीने की कोई चीज़ नहीं मिलती थी। सब लोग भूख से बेहाल रहते थे। यहां तक कि उन्होंने घास-फूस और दरख़्तों के पत्ते खाकर यह दिन गुज़ारे।
जब भी मक्का में बाहर से कोई क़ाफ़िला आता तो ये मजबूर और बेबस हज़रात वहां पहुंच जाते ताकि उनसे खाने-पीने की चीज़ें खरीद लें, लेकिन साथ ही अबू लहब वहां पहुंच जाता और कहता:
“लोगो! मोहम्मद के साथी अगर तुमसे कुछ खरीदना चाहें तो उस चीज़ के दाम इस क़दर बढ़ा दो कि ये तुमसे कुछ खरीद न सकें। तुम लोग मेरी हैसियत और ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह जानते हो।”
चुनांचे वे ताजिर अपने माल की क़ीमत बहुत ज़्यादा बढ़ा-चढ़ाकर बताते और हज़रात नाकाम होकर घाटी में लौट आते। वहां अपने बच्चों को भूख और प्यास से बिलखता तड़पता देखते तो आंखों में आंसू आ जाते। उधर बच्चे उन्हें खाली हाथ देखकर और ज़्यादा रोने लगते। अबू लहब उन ताजिरों से सारा माल खुद खरीद लेता।
यहां यह बात ज़ेहननशीन कर लें कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके ख़ानदान के लोग क़ुरैश के इस मुआहिदे के बाद हालात का रुख़ देखते हुए खुद इस घाटी में चले आए थे। यह बात नहीं कि क़ुरैश-ए-मक्का ने उन्हें गिरफ़्तार करके वहां क़ैद कर दिया था।
इस बायकॉट के दौरान बहुत से मुसलमान हिजरत करके हबशा चले गए जिसका ज़िक्र हमने Part 24 में किया है
मक्का के मुसलमान इसी तरह घाटी शिअब अबी तालिब में मुक़ीम थे। वे इसमें तीन साल तक रहे, ये तीन साल बहुत मुसीबतों के साल थे। इसी घाटी में हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु पैदा हुए। ये हालात देखकर कुछ नरम दिल लोग भी ग़मगीन होते थे। ऐसे लोग कुछ खाना-पीना इन हज़रात तक किसी न किसी तरह पहुंचा दिया करते थे।
ऐसे में अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इतिला दी कि क़ुरैश के लिखे हुए मुआहिदे को दीमक ने चाट लिया है। मुआहिदे के अल्फ़ाज़ में सिवाय अल्लाह के नाम के और कुछ बाकी नहीं बचा। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये बात अबू तालिब को बताई। अबू तालिब फ़ौरन गए और क़ुरैश के लोगों से कहा:
“तुम्हारे अहदनामे को दीमक ने चाट लिया है और ये ख़बर मुझे मेरे भतीजे ने दी है। इस मुआहिदे पर सिर्फ़ अल्लाह का नाम बाकी रह गया है। अगर बात इसी तरह है जैसा कि मेरे भतीजे ने बताया है, तो मामला ख़त्म हो जाता है। लेकिन अगर तुम अब भी बाज़ न आए तो फिर सुन लो, अल्लाह की क़सम! जब तक हम में आख़िरी आदमी भी बाकी है, उस वक़्त तक हम मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को तुम्हारे हवाले नहीं करेंगे।”
ये सुनकर क़ुरैश ने कहा:
“हमें तुम्हारी बात मंज़ूर है… हम मुआहिदे को देख लेते हैं।”
उन्होंने मुआहिदा मंगवाया, उसको वाक़ई दीमक चाट चुकी थी। सिर्फ़ अल्लाह का नाम बाकी था। इस तरह मुशरिक इस मुआहिदे से बाज़ आ गए। ये मुआहिदा जिस शख़्स ने लिखा था, उसका हाथ सूज कर ख़राब हो गया था।
मुआहिदे का ये हाल देखने के बाद क़ुरैशी लोग शिअब अबी तालिब पहुंचे। उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके साथियों से कहा:
“आप अपने-अपने घरों में आ जाएं। वो मुआहिदा अब ख़त्म हो गया है।”
इस तरह तीन साल बाद नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आपके साथी अपने घरों को लौट आए और ज़ुल्म का ये बाब बंद हुआ।
