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Khalid Bin Waleed Ka Qubool E Islam | Prophet Muhammad History in Hindi Part 41
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Seerat e Mustafa Qist 41
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Table of Contents
ख़ैबर की जंग के बाद हज़रत ख़ालिद बिन वलीद, हज़रत अम्र बिन आस और हज़रत उस्मान बिन तल्हा रज़ी अल्लाहु अन्हु के ईमान लाने का वाक़िया पेश आया।
ईमान लाने का वाक्या
इस बारे में ख़ुद हज़रत ख़ालिद बिन वलीद फ़रमाते हैं:
“जब अल्लाह तआला ने मुझे इज़्ज़त और ख़ैर अता करने का इरादा फ़रमाया तो अचानक मेरे दिल में इस्लाम की तड़प पैदा फ़रमा दी और मुझे हिदायत का रास्ता नज़र आने लगा। उस वक़्त मैंने अपने दिल में सोचा कि मैं हर मौक़े पर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुक़ाबले और मुख़ालिफ़त में सामने आया और हर बार ही मुझे नाकामी का मुँह देखना पड़ा।
हमेशा ही मुझे ये एहसास हुआ कि मैं ग़लती पर हूँ, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बोलबाला हो रहा है। फिर जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उमरे के लिए मक्का में तशरीफ़ लाए तो मैं मक्का से ग़ायब हो गया ताकि आपके मक्का में दाख़िल होने का मंज़र न देख सकूँ। मेरा भाई वलीद बिन वलीद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ था। वह मुझसे बहुत पहले मुसलमान हो चुका था।
उसने मक्का पहुँच कर मुझे तलाश कराया, मगर मैं वहाँ था ही नहीं। आख़िर उसने मेरे नाम ख़त लिखा।
उस ख़त के अलफ़ाज़ ये थे…”
“मेरे लिए सबसे ज़्यादा हैरत की बात यही है कि तुम जैसा आदमी आज तक इस्लाम से दूर भागता फिर रहा है। तुम्हारी कम-अक़्ली पर तअज्जुब है। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तुम्हारे बारे में मुझ से पूछा था कि ख़ालिद कहाँ हैं? मैंने अर्ज़ किया: अल्लाह बहुत जल्द उसे आप तक लाएगा।
इस पर हज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
इस जैसा शख़्स इस्लाम से बेख़बर नहीं रह सकता। अगर वह अपनी सलाहियतों और तवानाईयों को मुसलमानों के साथ मिलकर मुशरिकों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करे तो उनके लिए ख़ैर ही ख़ैर है और हम दूसरों के मुक़ाबले में उन्हें हाथों हाथ लेंगे।
इसलिए मेरे भाई! अब भी मौक़ा है कि जो कुछ तुम खो चुके हो, उसे पा लो। तुम बड़े अच्छे-अच्छे मौक़े खो चुके हो।”
हज़रत ख़ालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब मुझे अपने भाई का ये ख़त मिला तो मुझ में जाने की उमंग पैदा हो गई। दिल इस्लाम की मोहब्बत में ग़र्क़ हो गया। साथ ही आनहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे बारे में जो कुछ फ़रमाया था, उससे मुझे बहुत ज़्यादा ख़ुशी महसूस हुई। फिर रात को मैंने एक अजीब ख़्वाब देखा।
हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने ख्वाब में देखा कि मैं एक इंतिहाई तंग और खुश्क इलाके में हूं… लेकिन फिर अचानक वहां से निकलकर एक निहायत सरसब्ज, शादाब और बहुत बड़े इलाके में पहुंच गया हूं।
इसके बाद जब हमने मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना होने का फैसला किया तो मुझे सफवान मिले।
मैंने उनसे कहा:
“सफवान! तुम देख रहे हो कि मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अरब और अजब पर छाते जा रहे हैं, इसलिए क्यों न हम भी उनके पास पहुंचकर उनकी इताअत कबूल कर लें, क्योंकि हकीकत में उनकी सरबलंदी खुद हमारी ही सरबलंदी होगी।”
इस पर सफवान ने कहा: “मेरे अलावा अगर सारी दुनिया भी उनकी इताअत कबूल कर ले, मैं फिर भी नहीं करूंगा।”
उसका जवाब सुनकर मैंने सोचा, इसका बाप और भाई जंग-ए-बदर में मारे गए हैं, लिहाज़ा इससे उम्मीद रखना फुज़ूल है।
चुनांचे, इससे मायूस होकर मैं अबू जहल के बेटे इकरिमा के पास गया और उससे भी वही बात कही जो सफवान से कही थी, मगर उसने भी वही जवाब दिया…
मैंने कहा:
“अच्छा खैर… लेकिन तुम मेरी बात को राज़ में रखना।”
जवाब में इकरिमा ने कहा: “ठीक है, मैं किसी से ज़िक्र नहीं करूंगा।”
इसके बाद मैं उस्मान बिन तल्हा से मिला, ये मेरा दोस्त था। उसके भी बाप और भाई वग़ैरा ग़ज़वा-ए-बदर में मारे जा चुके थे, लेकिन मैंने उससे दिल की बात कह दी। उसने फौरन मेरी बात मान ली।
हमने मदीना जाने का वक्त, दिन और जगह तय कर ली… हम दोनों मदीना मुनव्वरा की तरफ रवाना हुए। एक मक़ाम पर हमें अम्र बिन आस रज़ी अल्लाहु अन्हु मिले। हमें देखकर उन्होंने खुशी का इज़हार किया। हमने भी उन्हें मरहबा कहा।
इसके बाद अम्र ने पूछा:
“आप लोग कहां जा रहे हैं?”
हमने साफ कह दिया: “इस्लाम कबूल करने जा रहे हैं।”
अम्र बिन आस रज़ी अल्लाहु अन्हु फौरन बोले:
“मैं भी तो इसी लिए जा रहा हूं।”
इस पर तीनों खुश हुए… और मदीना मुनव्वरा की तरफ चले। आख़िर हरा के मक़ाम पर पहुंचकर हम अपनी सवारीयों से उतरे। उधर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को हमारी आमद की इत्तिला हो गई। आपने अपने सहाबा से इरशाद फरमाया:
“मक्का ने अपने जिगर के टुकड़े तुम्हारे सामने ला डाले हैं।”
इसके बाद हम अपने बेहतरीन लिबास में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की खिदमत में हाज़िर होने के लिए चले। उसी वक्त मेरे भाई वलीद हम तक पहुंच गए और बोले:
“जल्दी करो, अल्लाह के रसूल तुम्हारी आमद पर बहुत खुश हैं और तुम लोगों का इंतज़ार फरमा रहे हैं।”
चुनांचे अब हम तेजी से आगे रवाना हुए, यहां तक कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने पहुंच गए।
हमने आपको सलाम किया। आपने गरमजोशी से सलाम का जवाब दिया। इसके बाद मैंने कहा:
“मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और ये कि आप अल्लाह के रसूल हैं।”
इस पर हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“तमाम तारीफें उसी अल्लाह के लिए हैं, जिसने तुम्हें हिदायत अता फरमाई… मैं जानता था कि तुम अक्लमंद हो, इसलिए मेरी आरज़ू थी और मुझे उम्मीद थी कि तुम खैर की तरफ जरूर झुकोगे।”
इसके बाद मैंने अर्ज किया:
“अल्लाह के रसूल! अल्लाह तआला से दुआ फरमाएं कि वो मेरी उन गलतियों को माफ फरमा दें जो मैंने आपके मुकाबले में आकर की हैं।”
हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया:
“इस्लाम कबूल करना साबिक़ा तमाम गलतियों और गुनाहों को मिटा देता है।”
इसी तरह अम्र बिन आस और उस्मान बिन तल्हा रज़ी अल्लाहु अन्हुमा आगे आए और उन्होंने भी इस्लाम कबूल किया।
यहां यह बात ज़हन में रहे कि अम्र बिन आस रज़ी अल्लाहु अन्हु ने दरअसल इस से पहले शाह-ए-हब्शा नजाशी के हाथ पर इस्लाम कबूल कर लिया था। इस तरह एक ताबेई के हाथ पर एक सहाबी ने इस्लाम कबूल किया, क्योंकि नजाशी सहाबी नहीं हैं… उन्होंने हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को नहीं देखा था, लेकिन ताबेई वो इस लिए हैं कि उन्होंने सहाबा किराम को देखा था।
हज़रत खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाहु अन्हु के मुसलमान होने के बाद हुजूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें हमेशा घुड़सवार दस्ते का अमीर बनाए रखा।
यह थी तफसील उन तीन हज़रात के ईमान लाने की… हज़रत अम्र बिन आस रज़ी अल्लाहु अन्हु भी बेहतरीन जंगी सलाहियतों के मालिक थे… वो खुद फरमाते हैं कि अल्लाह की कसम! हमारे मुसलमान होने के बाद अल्लाह के रसूल ने जंगी मुआमलात में मेरे और खालिद बिन वलीद रज़ी अल्लाहु अन्हु के बराबर किसी को नहीं समझा, फिर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ी अल्लाहु अन्हु की खिलाफत के दौरान भी हमारा यही दर्जा रहा।
हुज़ूर का पहला उमरा
सुलह-ए-हुदैबिया में तै पाया था कि मुसलमान इस साल तो उमरा किए बिना लौट जाएंगे, अलबत्ता उन्हें आइंदा साल उमरा करने की इजाजत होगी। इस मुआहिदे की रौशनी में आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उमर-ए-कज़ा की नीयत करके मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए। इस मौके पर आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ दो हजार सहाबा थे। रवाना होते वक्त हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एलान फरमाया था कि जो लोग सुलह-ए-हुदैबिया के मौके पर मौजूद थे, उन सब का साथ चलना जरूरी है।
चुनांचे वो सभी सहाबा साथ रवाना हुए। इनके अलावा कुछ वो थे जो हुदैबिया में शरीक नहीं थे। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ कुर्बानी के जानवर भी थे। इस सफर में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एहतियात के तौर पर हथियार भी साथ लिए थे… मुसलमानों में से एक सौ आदमी घुड़सवार थे। उनके अमीर मुहम्मद बिन मुस्लिमा रज़ी अल्लाहु अन्हु थे।
हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मस्जिद-ए-नबवी के दरवाजे पर एहराम बांध लिया था। क़ुरैश के कुछ लोगों ने जब सहाबा-ए-किराम रज़ी अल्लाहु अन्हुम के साथ हथियार देखे तो वो बौखला कर मक्का मुअज्जमा पहुंचे और क़ुरैश को बताया कि मुसलमान हथियार ले आए हैं… और उनके साथ तो घुड़सवार दस्ता भी है।
क़ुरैश ये सुनकर बदहवास हुए और कहने लगे:
“हमने तो कोई ऐसी हरकत नहीं की जो इस मुआहिदे के खिलाफ हो, बल्कि हम मुआहिदे के पाबंद हैं। जब तक सुलहनामे की मुद्दत बाकी है, हम उसकी पाबंदी करेंगे, फिर आखिर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम किस बुनियाद पर हमसे जंग करने आए हैं?”
आखिर क़ुरैश ने मकरज़ बिन हफ्स को क़ुरैश की एक जमात के साथ रवाना किया। उन्होंने आप से मुलाकात की और कहा: “आप हथियार बंद होकर हरम में दाखिल होना चाहते हैं, जबकि मुआहिदा ये नहीं हुआ था।”
इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“हम हथियार लेकर हरम में दाखिल नहीं होंगे, मुआहिदे के तहत सिर्फ मियानों में रखी हुई तलवारें हमारे साथ होंगी… बाकी हथियार हम बाहर छोड़कर जाएंगे।”
मकरज़ ने आपकी बात सुनकर इत्मिनान का इजहार किया और क़ुरैश को जाकर इत्मिनान दिलाया।
जब हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मक्का मुअज्जमा में दाखिले का वक्त आया तो क़ुरैश के बड़े-बड़े सरदार मक्का मुअज्जमा से निकलकर कहीं चले गए। इन लोगों को हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बुग़्ज़ था, दुश्मनी थी, वो मक्का मुअज्जमा में हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, इसलिए निकल गए। आखिर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और सहाबा-ए-किराम रज़ी अल्लाहु अन्हुम मक्का मुअज्जमा में दाखिल हुए।
हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस वक्त अपनी ऊंटनी क़सवा पर सवार थे। सहाबा-ए-किराम आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दाएं-बाएं तलवारें लिए चल रहे थे और सब “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” पढ़ रहे थे। रवाना होने से पहले बाकी हथियार आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक जगह महफूज़ करा दिए थे। वो जगह हरम से करीब ही थी। मुसलमानों की एक जमात को उन हथियारों की निगरानी के लिए मुकर्रर किया गया था।
मक्का के मुशरिकों ने मुसलमानों को बहुत मुद्दत बाद देखा था… वो उन्हें कमजोर-कमजोर से लगे तो आपस में कहने लगे:
“यसरिब के बुखार ने मुहाजिरीन को कमजोर कर दिया है।”
ये बात आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तक पहुंची तो हुक्म फरमाया:
“अल्लाह तआला उस शख्स पर रहमत फरमाएगा जो इन मुशरिकों को अपनी जिस्मानी ताकत दिखाएगा।”
इस बुनियाद पर आपने सहाबा-ए-किराम रज़ी अल्लाहु अन्हुम को हुक्म दिया कि तवाफ के पहले तीन चक्करों में रमल करें यानी अकड़-अकड़ कर और सीना तान कर चलें और मुशरिकीन को दिखा दें कि हम पूरी तरह ताकतवर हैं।
इस वक्त आंहजरत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी चादर इस तरह अपने ऊपर डाल रखी थी कि दायां कंधा खुला था और उसका पल्लू बाएं कंधे पर था। चुनांचे तमाम सहाबा-ए-किराम रज़ी अल्लाहु अन्हुम ने भी ऐसे ही कर लिया। इस तरह चादर लेने को इज़तिबा कहते हैं… और अकड़ कर चलने को रमल कहते हैं… ये इस्लाम में पहला इज़तिबा और पहला रमल था… अब हज करने वालों हों या उमरा करने वाले, उन्हें ये दोनों काम करने होते हैं।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुआहिदे के मुताबिक तीन दिन तक मक्का मुअज्जमा में ठहरे। तीन दिन पूरे होने पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का मुअज्जमा से बाहर निकल आए। इस दौरान आपने हज़रत मैमूना बिंत-ए-हारिस रज़ी अल्लाहु अन्हा से निकाह फरमाया। उनका पहला नाम बरा था। हुजूर अक़्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नाम बदलकर मैमूना रखा।
