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Bait E Uqba Sania | Prophet Muhammad History in Hindi Part 29
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Seerat e Mustafa Qist 29
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Table of Contents
हज के दिनों में मक्का में दूर-दूर से लोग हज करने आते थे, यह हज इस्लामी तरीके से नहीं होता था बल्कि इसमें कुफ़्रिय और शिर्किय बातें शामिल कर ली गई थीं, उन दिनों यहाँ मेले भी लगते थे। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्लाम की दावत देने के लिए इन मेलों में भी जाते थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहाँ पहुँचकर लोगों से फ़रमाते थे।
क्या कोई व्यक्ति अपनी क़ौम की हिमायत मुझे पेश कर सकता है, क्योंकि क़ुरैश के लोग मुझे अपने रब का पैग़ाम पहुँचाने से रोक रहे हैं।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिना के मैदान में तशरीफ़ ले जाते। लोगों के ठिकाने पर जाते और उनसे फ़रमाते।
लोगो, अल्लाह तआला तुम्हें हुक्म देता है कि तुम सिर्फ़ उसी की इबादत करो और किसी को उसका शरीक न ठहराओ।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ताअक़ुब करते हुए अबू लहब भी वहाँ तक पहुँच जाता और उन लोगों से बुलंद आवाज़ में कहता।
लोगो, यह शख़्स चाहता है कि तुम अपने बाप-दादा का दीन छोड़ दो।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ‘ज़ू अल-हिजाज़’ के मेले में तशरीफ़ ले जाते और लोगों से फ़रमाते।
लोगो! ला इलाहा इल्लल्लाह कहकर भलाई को हासिल करो।
अबू लहब यहाँ भी आ जाता और आपको पत्थर मारते हुए कहता।
लोगो! इस शख़्स की बात हरगिज़ न सुनो, यह झूठा है।
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम क़बीला ‘किंदा’ और क़बीला ‘कल्ब’ के कुछ ख़ानदानों के पास गए। इन लोगों को ‘बनू अब्दुल्लाह’ कहा जाता था। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे फ़रमाया।
लोगो! ला इलाहा इल्लल्लाह पढ़ लो…. फ़लाह पा जाओगे।
उन्होंने भी इस्लाम की दावत क़ुबूल करने से इंकार कर दिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ‘बनू हनीफा’ और ‘बनू आमिर’ के लोगों के पास भी गए। उनमें से एक ने आपका पैग़ाम सुनकर कहा।
अगर हम आपकी बात मान लें, आपकी हिमायत करें और आपकी पैरवी क़ुबूल कर लें फिर अल्लाह तआला आपको आपके मुख़ालिफ़ों पर फ़तह अता फ़रमा दे तो क्या आपके बाद यह सरदारी और हुकूमत हमारे हाथों में आ जाएगी?
यानी उन्होंने यह शर्त रखी कि आपके बाद हुकूमत उनकी होगी। जवाब में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया।
सरदारी और हुकूमत अल्लाह के हाथ में है, वह जिसे चाहता है सौंप देता है।
इसके बाद उस शख़्स ने कहा।
तो क्या हम आपकी हिमायत में अरबों से लड़ें, अरबों के नेज़ों से अपने सीने छलनी करा लें और फिर जब आप कामयाब हो जाएँ तो सरदारी और हुकूमत दूसरों को मिले? नहीं, हमें आपकी ऐसी हुकूमत और सरदारी की कोई ज़रूरत नहीं।
इस तरह उन लोगों ने भी साफ़ इनकार कर दिया। बनू आमिर के यह लोग फिर अपने वतन लौट गए। वहाँ उनका एक बहुत बूढ़ा शख़्स था। बूढ़ा होने की वजह से वह इस क़दर कमज़ोर हो चुका था कि उनके साथ हज के लिए नहीं जा सका था। जब उसने उन लोगों से हज और मेले के हालात पूछे तो उन्होंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दावत का भी ज़िक्र किया और अपना जवाब भी उसे बताया।
बूढ़ा शख़्स यह सुनते ही सर पकड़कर बैठ गया और अफ़सोस भरे लहजे में बोला।
ऐ बनू आमिर! तुमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई…. क्या तुम्हारी इस ग़लती का कोई इलाज हो सकता है? क़सम है उस ज़ात की जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है, इस्माईल अलैहिस्सलाम की क़ौम में से जो शख़्स नबूवत का दावा कर रहा है, झूठा नहीं हो सकता। वह बिल्कुल सच्चा है, यह और बात है कि उसकी सच्चाई तुम्हारी अक़्ल में न आ सके।
इसी तरह नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बनू अब्स, बनू सलीम, बनू ग़स्सान, बनू महारिब, बनू फ़ज़ारह, बनू नज़र, बनू मर्राह और बनू उज़रह समेत कई क़बीलों से भी मुलाक़ात की, इन सब ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को और भी बुरे जवाब दिए, वे कहते।
आपका घराना और आपका ख़ानदान आपको ज़्यादा चाहता है, इसी लिए उन्होंने आपकी पैरवी नहीं की।
अरब क़बीलों में सबसे ज़्यादा तकलीफ़ यमामा के बनू हनीफ़ा से पहुँची। मुसैलिमा कज़्ज़ाब भी इसी बदबख़्त क़ौम का था जिसने नबूवत का दावा किया था। इसी तरह बनू स़कीफ़ के क़बीले ने भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत बुरा जवाब दिया।
बैत ए उक़बा सानिया
इन तमाम तर नाकामियों के बाद आख़िरकार अल्लाह तआला ने अपने दीन को फैलाने, अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इकराम करने और अपना वादा पूरा करने का इरादा फ़रमाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज के दिनों में घर से निकले। वह रजब का महीना था। अरब हज से पहले मुख़्तलिफ़ रस्मों और मेलों में शरीक होने के लिए मक्का पहुँचा करते थे। चुनांचे उस साल भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुख़्तलिफ़ क़बीलों से मिलने के लिए निकले थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल उक़बा के मुक़ाम पर पहुँचे।
उक़बा एक घाटी का नाम है। जिस जगह शैतानों को कंकरियाँ मारी जाती हैं। यह घाटी अदी मुक़ाम पर है। मक्का से मिना की तरफ़ जाएँ तो यह मुक़ाम बाईं तरफ़ आता है। अब इस जगह एक मस्जिद है।
वहाँ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुलाक़ात मदीना के क़बीले ख़ज़रज की एक जमाअत से हुई। औस और ख़ज़रज मदीना मुनव्वरा के मशहूर क़बीले थे। ये इस्लाम से पहले एक-दूसरे के जानी दुश्मन थे। यह भी दूसरे अरबों की तरह हज किया करते थे। यह हज़रात तादाद में कुल छह थे, एक रिवायत के मुताबिक़ इनकी तादाद आठ थी।
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें देखा तो उनके क़रीब तशरीफ़ ले गए। उनसे फ़रमाया।
मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।
वह बोले।
ज़रूर कहिए।
फ़रमाया।
बेहतर होगा कि हम लोग बैठ जाएँ।
फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उनके पास बैठ गए। उन लोगों ने जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरे की तरफ़ देखा तो वहाँ सच्चाई ही सच्चाई और भलाई ही भलाई नज़र आई…. ऐसे में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया।
मैं आप लोगों को अल्लाह की तरफ़ दावत देता हूँ…. मैं अल्लाह का रसूल हूँ।
यह सुनते ही उन्होंने कहा।
अल्लाह की क़सम… आपके बारे में हमें मालूम है। यहूदी एक नबी की ख़बर हमें देते रहे हैं और हमें इससे डराते रहे हैं (यानी वे कहते रहे हैं कि एक नबी ज़ाहिर होने वाले हैं)। आप ज़रूर वही हैं, कहीं ऐसा न हो कि हमसे पहले वे आपकी पैरवी इख़्तियार कर लें।
असल में बात ये थी कि जब भी यहूदियों और मदीने के लोगों में कोई लड़ाई-झगड़ा होता तो यहूदी उनसे कहा करते थे—
“बहुत जल्द एक नबी का ज़ुहूर होने वाला है, उनका ज़माना करीब आ चुका है। हम इस नबी की पैरवी करेंगे और उनके झंडे तले इस तरह तुम्हारा क़त्ले-आम करेंगे जैसे क़ौम आद और क़ौम इरम का हुआ था।”
उनका मतलब ये था कि हम तुम्हें नेस्तनाबूद कर देंगे। इसी बुनियाद पर मदीने के लोगों को आप ﷺ के ज़ुहूर के बारे में मालूम था… और इसी बुनियाद पर उन्होंने फ़ौरन आप ﷺ की बात मान ली, आपकी तस्दीक़ की और मुसलमान हो गए।
पै दर पै नाकामियों के बाद ये बहुत ज़बरदस्त कामयाबी थी… और फिर ये कामयाबी तारीखी एतबार से भी बहुत बड़ी साबित हुई। इस बैअत ने तारीख़ के धारे को मोड़कर रख दिया, गोया अल्लाह तआला ने उनके ज़रिए एक ज़बरदस्त ख़ैर का इरादा फ़रमाया था। इस्लाम क़बूल करते ही उन्होंने अर्ज़ किया—
“हम अपनी क़ौम औस और ख़ज़रज को इस हाल में छोड़कर आए हैं कि उनके दरमियान ज़बरदस्त जंग जारी है, इसलिए अगर अल्लाह तआला आपके ज़रिए इन सबको एक कर दे तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।”
औस और ख़ज़रज दो सगे भाइयों की औलाद थे। फिर उनमें दुश्मनी हो गई। लड़ाइयों ने इस क़दर तूल खींचा कि 120 साल तक वो नसल दर नसल लड़ते रहे, क़त्ल पर क़त्ल होते रहे…
इस वक़्त उन्होंने अपनी दुश्मनी की तरफ इशारा किया था, लिहाज़ा उन्होंने कहा—
“हम औस और अपने कबीले के दूसरे लोगों को भी इस्लाम की दावत देंगे। हो सकता है अल्लाह तआला आपके नाम पर उन्हें एक कर दे। अगर आपकी वजह से वो एक हो गए, उनका कलमा एक हो गया तो फिर आपसे ज़्यादा क़ाबिले इज़्ज़त और अज़ीज़ कौन होगा।”
हज़रत मुहम्मद ﷺ ने उनकी बात को पसंद फ़रमाया। फिर ये हज़रात हज के बाद मदीना मुनव्वरा पहुँचे।
अगले साल कबीला ख़ज़रज के 10 और कबीला औस के 2 आदमी मक्का आए। इनमें से 5 वो थे जो पिछले साल अक़बा में आप ﷺ से मिलकर गए थे। इन लोगों से भी आप ﷺ ने बैअत ली। आप ﷺ ने उनके सामने सूरह अन-निसा की आयात तिलावत फ़रमाईं।
बैअत के बाद जब ये लोग वापस मदीना मुनव्वरा जाने लगे तो आप ﷺ ने उनके साथ हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम मक्तूम ؓ को भेजा। आप ﷺ ने हज़रत अबू मुसअब ؓ बिन उमैर को भी उनके साथ भेजा ताकि वो नए मुसलमानों को दीन सिखाएँ, क़ुरआन की तालीम दें। उन्हें “कारी” कहा जाता था। ये मुसलमानों में सबसे पहले आदमी थे जिन्हें क़ारी कहा गया।
हज़रत मुसअब बिन उमैर ؓ ने वहाँ के मुसलमानों को नमाज़ पढ़ाना शुरू किया। सबसे पहला जुमा भी उन्होंने ही पढ़ाया। जुमा की नमाज़ अगरचे मक्का में फ़र्ज़ हो चुकी थी, लेकिन वहाँ मुश्रिकों की वजह से मुसलमान जुमा की नमाज़ अदा नहीं कर सके। सबसे पहला जुमा पढ़ने वालों की तादाद 40 थी।
हज़रत मुसअब बिन उमैर ؓ ने मदीना मुनव्वरा में दीन की तबलीग़ शुरू की तो हज़रत सअद बिन मुआज़ और उनके चचा ज़ाद भाई हज़रत उसैद बिन हुज़ैर ؓ उनके हाथ पर मुसलमान हो गए। उनके इस्लाम लाने के बाद मदीना में इस्लाम और तेज़ी से फैलने लगा।
इसके बाद हज़रत मुसअब बिन उमैर ؓ हज के दिनों में वापस मक्का पहुँचे। मदीना मुनव्वरा में इस्लाम की कामयाबियों की ख़बर सुनकर आप ﷺ बहुत खुश हुए। मदीना मुनव्वरा में जो लोग इस्लाम ला चुके थे, उनमें से जो हज के लिए आए थे, उन्होंने फ़ारिग़ होने के बाद मिना में रात के वक़्त आप ﷺ से मुलाक़ात की। जगह और वक़्त पहले ही तय कर लिया गया था।
इन लोगों के साथ चूँकि मदीना से मुश्रिक लोग भी आए हुए थे और उनसे इस मुलाक़ात को पोशीदा रखना था, इसलिए ये मुलाक़ात रात के वक़्त हुई। ये हज़रात कुल 73 मर्द और 2 औरतें थीं। मुलाक़ात की जगह उक़बा की घाटी थी। वहाँ एक-एक, दो-दो करके जमा हो गए। इस मजमअ में 11 आदमी कबीला औस के थे।
फिर आप ﷺ तशरीफ़ लाए। आप ﷺ के चचा हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब ؓ भी साथ थे। उनके अलावा आप ﷺ के साथ कोई नहीं था। हज़रत अब्बास ؓ भी उस वक़्त तक मुसलमान नहीं हुए थे। उस वक़्त आप ﷺ गोया अपने चचा के साथ आए थे ताकि इस मामले को खुद देखें। एक रिवायत के मुताबिक़ इस मौक़े पर हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ ؓ और हज़रत अली ؓ भी साथ आए थे।
सबसे पहले हज़रत अब्बास ؓ ने उनके सामने तक़रीर की। उन्होंने कहा—
“तुम लोग जो अहद-व-पैमान इन (रसूल अल्लाह ﷺ) से करो, उसे हर हाल में पूरा करना। अगर पूरा न कर सको तो बेहतर है कि कोई अहद-व-पैमान न करो।”
इस पर इन हज़रात ने वफ़ादारी निभाने के वादे किए। तब नबी अक़रम ﷺ ने उनसे इरशाद फ़रमाया—
“तुम एक अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ… अपनी ज़ात की हद तक ये कहता हूँ कि मेरी हिमायत करो और मेरी हिफ़ाज़त करो।”
इस मौक़े पर एक अंसारी बोले—
“अगर हम ऐसा करें तो हमें क्या मिलेगा?”
आप ﷺ ने इरशाद फ़रमाया—
“इसके बदले तुम्हें जन्नत मिलेगी।”
अब वो सब बोल उठे—
“ये नफ़े का सौदा है, हम इसे ख़त्म नहीं करेंगे।”
अब इन सब ने नबी ﷺ से बैअत की, हज़रत बराअ बिन मअरूर ؓ ने कहा—
“हम हर हाल में आपका साथ देंगे, आपकी हिफ़ाज़त करेंगे।”
इस बैअत को बैअत-ए-उक़बा सानिया कहा जाता है। ये बहुत अहम थी। इस बैअत के होने पर शैतान ने बहुत वावैला किया, चीखा और चिल्लाया क्योंकि ये इस्लाम की तरक़्क़ी की बुनियाद थी।
