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Hazrat Umar Ka Imam Lana | Prophet Muhammad History in Hindi Part 22

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Seerat e Mustafa Qist 22
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ज़ुल्म की वजह से मुसलमानों ने हिजरत करना शुरू कर दी थी ज़ुल्म करने में बाक़ी लोगों के साथ साथ Hazrat Umar भी आगे आगे थे

मुसलमानों की पहली हिजरत का ज़िक्र हमने Part 21 और दूसरी हिजरत का ज़िक्र Part 24 में ज़िक्र किया है

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम लाते हैं

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु उस समय तक इस्लाम के घोर विरोधी थे। एक दिन जब वे मक्का की एक गली से गुजर रहे थे, तो उनकी मुलाकात एक कुरैशी व्यक्ति से हुई। उनका नाम हज़रत नईम बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु था। वे अपनी क़ौम के डर से अपने इस्लाम को छुपाए हुए थे। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के हाथ में तलवार थी, जिसे देखकर हज़रत नईम रज़ियल्लाहु अन्हु परेशान हो गए और उन्होंने पूछा,
“क्या इरादा है?”

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने जवाब दिया,
“मैं मुहम्मद को क़त्ल करने जा रहा हूँ।”

यह सुनकर हज़रत नईम रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा,
“पहले अपने घर की खबर लो, तुम्हारी बहन और बहनोई मुसलमान हो चुके हैं।”

यह सुनते ही हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु गुस्से में भर गए और अपनी बहन के घर की ओर चल पड़े। उनकी बहन का नाम हज़रत फातिमा था और उनके पति हज़रत सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु थे, जो अशरा मुबश्शरा (वे दस सहाबी जिन्हें जन्नत की खुशखबरी दी गई थी) में शामिल थे। इसके अलावा, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के चचेरे भाई भी थे।

जब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु घर के दरवाजे पर पहुंचे, तो उन्होंने ज़ोर से दस्तक दी। अंदर से पूछा गया,
“कौन है?”

जवाब मिला,
“उमर।”

अंदर अचानक सन्नाटा छा गया। उस समय हज़रत खब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु उन्हें क़ुरआन पढ़ा रहे थे। उन्होंने तुरंत क़ुरआन के पन्ने छुपा दिए। हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने दरवाजा खोला, लेकिन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने गुस्से में उन्हें मार दिया, जिससे उनके शरीर से खून बहने लगा।

इस पर हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा,
“उमर, तुम कुछ भी कर लो, मैं मुसलमान हो चुकी हूँ।”

यह सुनकर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पूछा,
“तुम कौन सी किताब पढ़ रहे थे, मुझे दिखाओ।”

हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा,
“तुम नापाक हो, पहले ग़ुस्ल कर लो, फिर दिखाऊँगी।”

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने ग़ुस्ल किया और फिर क़ुरआन के पन्ने देखे। जैसे ही उन्होंने “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” पढ़ा, उन पर एक अजीब असर हुआ। आगे सूरह ताहा थी, जिसकी शुरुआती आयतें पढ़कर उनकी हालत बदल गई।
वे बोले, “मुझे रसूल अल्लाह के पास ले चलो।”

यह सुनकर हज़रत खब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु और हज़रत सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु सामने आ गए। कुछ रिवायतों में आता है कि हज़रत सईद बिन ज़ैद रज़ियल्लाहु अन्हु को भी हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने मारा था, इसलिए सिर्फ हज़रत खब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु छिपे हुए थे।

हज़रत खब्बाब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, “ऐ उमर, तुम्हें मुबारक हो! अल्लाह के रसूल ने दुआ मांगी थी कि ऐ अल्लाह, दो आदमियों में से एक के जरिए इस्लाम को इज़्ज़त अता फरमा—या तो अम्र इब्न हिशाम (अबू जहल) के जरिए या फिर उमर बिन खत्ताब के जरिए।”

एक रिवायत के अनुसार, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया था, “इन दोनों में से जो तुझे ज्यादा पसंद हो, उसके जरिए इस्लाम को इज़्ज़त अता फरमा।”

रसूलुल्लाह ने यह दुआ बुधवार के दिन मांगी थी, और गुरुवार के दिन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु इस्लाम ले आए।

फिर वे हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को लेकर दारुल अरक़म पहुंचे। दरवाजे पर दस्तक दी गई। अंदर से पूछा गया,
“कौन?”

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा, “उमर इब्न खत्ताब।”

यह सुनकर सहाबा ने रसूल अल्लाह को बताया कि उमर दरवाजे पर हैं।

आप ने फरमाया,
“दरवाजा खोल दो, अगर अल्लाह ने उसके लिए भलाई चाही है, तो वह हिदायत पा लेगा।”

दरवाजा खोला गया। हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उन्हें अंदर आने दिया। दो सहाबा ने उन्हें पकड़कर रसूलुल्लाह के सामने पेश किया।

रसूल अल्लाह ने उनका कुर्ता पकड़कर अपनी ओर खींचा और फरमाया,
“ऐ इब्न खत्ताब, अल्लाह के लिए हिदायत का रास्ता अपना लो!”

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने तुरंत कहा, “मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और आप अल्लाह के रसूल हैं!”

यह सुनकर नबी करीम और सहाबा खुशी से झूम उठे। उन्होंने इतनी ज़ोर से “अल्लाहु अकबर” कहा कि मक्का के हर कोने में यह आवाज़ गूंज उठी।

फिर नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तीन बार उनके सीने पर हाथ मारा और दुआ की, “ऐ अल्लाह, उमर के दिल से हर ग़लत चीज़ निकाल दे और उसके दिल को ईमान से भर दे।”

इसके बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु कुरैश के पास पहुंचे और कहा, “मैं इस्लाम कबूल कर चुका हूँ!”

कुरैश हैरान रह गए और कहने लगे,
“लो, उमर भी बेदीन हो गया!”

अतबा बिन रबीअ ने उन पर हमला करने की कोशिश की, लेकिन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे ज़मीन पर पटक दिया।

इसके बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने एलान किया,
“अल्लाह की कसम, आज से मुसलमान खुलकर अल्लाह की इबादत करेंगे!”

फिर नबी करीम सभी मुसलमानों के साथ दारुल अरक़म से निकले। हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु तलवार लिए सबसे आगे थे। सबने मिलकर काबा का तवाफ किया, वहाँ खुलेआम नमाज़ पढ़ी और ऊँची आवाज़ में क़ुरआन की तिलावत की। इससे पहले मुसलमान ऐसा नहीं कर सकते थे।

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