Importance of Syria in the light of Hadiths
मुल्क ए शाम (Syria) से संबंधित एक-एक करके हदीसें पूरी हो रही हैं। कहा जाता है कि जब फितने फैलेंगे तो शाम में अमन होगा। शाम को आख़िरी ज़माने में मुसलमानों का हेडक्वार्टर कहा गया। इस ब्लॉग में हदीसों की रोशनी में शाम की अहमियत और फज़ीलत से संबंधित पूरी जानकारी है, जिससे आपको मौजूदा स्थिति (December 2024) को समझने में आसानी होगी।
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क़यामत से पहले एक ज़माना ऐसा भी आएगा कि दुनिया में कुफ़्र फैल जाएगा, ज़मीन ज़ुल्म और सरकशी से भर जाएगी, इस्लाम हरमैन शरीफैन की तरफ़ सिमट जाएगा, औलिया व अब्दाल वहां हिजरत कर जाएंगे। फिर सैय्यदुना फ़ातिमा-अज़-ज़हरा रज़ियल्लाहु अन्हा की औलाद से एक शख्स पैदा होगा जो ज़मीन को अदल व इंसाफ़ से भर देगा। यही तमाम रुए ज़मीन पर हुकूमत करने वाले पाँचवें बादशाह होंगे जिन्हें हज़रत इमाम मेहदी कहा जाता है।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: दुनिया खत्म न होगी हत्ता कि अरब का बादशाह एक शख्स बनेगा। जो मुझसे या मेरे घर वालों से होगा। उसका नाम मेरे नाम के मुताबिक़ और उसके बाप का नाम मेरे वालिद के नाम के मुताबिक़ होगा। वह ज़मीन को अद्ल व इंसाफ़ से भर देगा जैसे वह ज़ुल्म व ज्यादतियों से भरी हुई थी।
हज़रत सैयदुना इमाम मेहदी रज़ियल्लाहु अन्हु का नाम मोहम्मद और आपके वालिद का नाम अब्दुल्लाह होगा जैसा कि हदीस पाक में इशारा है। इस हदीस पाक से यह बात भी वाज़ेह तौर पर मालूम हुई कि हज़रत इमाम मेहदी अभी पैदा नहीं हुए बल्कि पैदा होंगे
इमाम मेहदी वालिद की तरफ़ से हसनी सैयद होंगे, वालिदा की तरफ़ से हुसैनी। आपके असल (यानी माँ, दादी, नानी वग़ैरह ऊपर तक) में कोई
वालिदा हज़रत अब्बास की औलाद से होंगी। लिहाज़ा आप हसनी भी होंगे, हुसैनी भी और अब्बासी भी।
इसमें उन लोगों का रद्द है जो कहते हैं कि मोहम्मद इब्न-ए-हसन अस्करी “इमाम मेहदी” हैं और वह ग़ार में छुपे हुए हैं, क्योंकि वह हुसैनी सैयद हैं, हसनी नहीं।
हज़रत इमाम मेहदी का हुलिया मुबारक
हज़रत इमाम मेहदी रज़ियल्लाहु अन्हु अख़लाक़, आदाब और आदतों में हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह होंगे, मगर शक्ल व सूरत में पूरे मुशाबेह (समान) न होंगे। हालांकि, कुछ बातों में नबी-ए-पाक के हमशकल होंगे।
जैसा कि हदीस पाक में है: रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “मेहदी मुझसे हैं, चौड़ी पेशानी वाले, ऊँची नाक वाले। वह सात साल तक सल्तनत फरमाएंगे।”
माह-ए-रमज़ान में अबदाल काबा शरीफ के तवाफ़ में मशगूल होंगे। वहाँ औलिया हज़रत महदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को पहचान कर उनसे बैअत (वफ़ादारी) की दरख़्वास्त करेंगे। आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु इनकार फरमाएँगे। ग़ैब से निदा (आवाज़) आएगी:
“ھٰذَا خَلِیْفَۃُ اللہِ الْمَھْدِیْ فَاسْمَعُوْا لَہٗ وَاَطِیْعُوْہ”
(यह अल्लाह के खलीफा महदी हैं, इनका हुक्म सुनो और इताअत करो)।
लोग आपके दस्त-ए-मुबारक (मुबारक हाथ) पर बैअत करेंगे। वहाँ से मुसलमानों को साथ लेकर आप शाम तशरीफ़ ले जाएंगे।
आपका ज़माना बड़ी खैर और बरकत का होगा। ज़मीन अद्ल-ओ-इंसाफ़ से भर जाएगी।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:
“इमाम महदी तशरीफ़ लाएंगे और उनके सर पर इमामा होगा। एक मुनादी यह आवाज़ बुलंद करते हुए आएगा कि यह महदी हैं जो अल्लाह के खलीफा हैं, लिहाज़ा तुम उनकी इत्तिबा (अनुसरण) और पैरवी करो।”
इमाम महदी अलैहिर-रिज़वान के ज़हूर से पहले हर तरफ़ ज़ुल्म और सितम छाया होगा, ज़लज़लों की क़त्सरत होगी और मुल्क-ए-अरब और शाम में एक शख्स पैदा होगा, जिसका तज़किरा किताबों में “सफ़ियानी” के नाम से मौजूद है, जो सादात को क़त्ल करेगा। शाम और अरब पर उसकी हुकूमत क़ायम होगी। इसी दौरान शाह-ए-रूम की ईसाईयों की एक जमात से जंग होगी और दूसरे फ़िरक़े से सुलह होगी।
शाह-ए-रूम मुल्क-ए-शाम में पहुँच जाएगा और ईसाईयों के दूसरे फ़िरके की मदद से इस्लामी फ़ौज एक ख़ूनी जंग के बाद फ़रीक़-ए-मुक़ाबिल पर फतह पाएगी। दुश्मन की शिकस्त के बाद फ़ौज में ख़ान-ए-जंग शुरू हो जाएगी। ईसाई मुल्क-ए-शाम पर क़ब्ज़ा कर लेंगे और आपस में इन दोनों ईसाई क़ौमों की सुलह हो जाएगी। बाक़ी मुसलमान मदीना-मुनव्वरा चले आएँगे।
उस वक़्त मुसलमान इस फ़िक्र में होंगे कि इमाम महदी को तलाश करना चाहिए ताकि उनके ज़रिए ये मुसीबतें दूर हों, और दुश्मन के पंजे से निजात मिले। हज़रत इमाम महदी उस वक़्त मक्का-मुकर्रमा की तरफ़ चलेंगे। उस ज़माने के औलिया-ए-कराम और अबदाल-ए-इज़्ज़ाम आपको तलाश करेंगे।
ज़हूर-ए-इमाम महदी के बारे में एक रिवायत शरह के साथ मलहूज़ फरमाइए:
एक ख़लीफा की वफ़ात के वक्त इख़तिलाफ़ होगा (इसका नाम मालूम नहीं, मगर यह आख़िरी ख़लीफा होगा, जिसके बाद इमाम महदी ख़लीफा होंगे। मिम्बरों में इख़तिलाफ़ होगा कि किसे ख़लीफा चुनें)। तो अहले मदीना में से एक शख्स मक्का मुअज़्ज़मा की तरफ़ तीज़ी से तशरीफ़ ले जाएंगे (इस ख़ौफ से कि कहीं उन्हें ख़लीफा न चुन लिया जाए)।
अहले मक्का में से कुछ लोग उनके पास आएंगे (वह लोग मक्का-मुक़र्रमा के किसी घर में छुपे होंगे, मगर मक्का वाले उनके दरवाज़े पर पहुँचकर उनसे गुज़ारिश करेंगे और) उन्हें बाहर लाएँगे (और उन्हें अपना ख़लीफा मानकर उनके हाथ मुबारक पर बैअत करेंगे)। हालाँकि वह शख्स इसे नापसंद करते होंगे। ये लोग उनसे मक़ाम-ए-इब्राहीम और हजरे अस्वद के बीच बैअत करेंगे।
इस वक़्त शाम का बादशाह काफ़िर होगा, जब उसे इनकी ख़िलाफ़त का पता लगेगा तो वह इनसे जंग करने के लिए) उनकी तरफ़ शाम से एक लश्कर भेजेगा (जिसका नाम लश्कर-ए-सफ़ियानी होगा)। उस लश्कर को मक्का और मदीना के बीच एक मैदान में धँसा दिया जाएगा (इस लश्कर में सिर्फ़ एक शख्स बचेगा, जो इनकी हलाकत की खबर लोगों तक पहुँचाएगा)।
जब हज़रत इमाम महदी की यह करामत लोगों में मशहूर होगी तो उनके पास शाम के अबदाल और इराक वालों की जमातें आएँगी तो वे उन्हें बैअत कर लेंगे। फिर क़रीश का एक शख्स निकलेगा, जिसके मामा बनी कल्ब से होंगे (यह ख़बीस इंसान अपने मामाओं की मदद से) हज़रत इमाम महदी के मुक़ाबले में एक लश्कर भेजेगा। इमाम महदी का लश्कर उस पर ग़ालिब आएगा।
दूसरी रिवायत में है: वह शख्स नु्कसान में होगा जो बनी कल्ब से हासिल किए गए माल-ए-ग़नीमत में शरीक न हो। ख़लीफा महदी अच्छा माल तक़सीम करेंगे और लोगों को उनके नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर चलाएंगे, और इस्लाम पूरी तरह से ज़मीन में मुस्तहकम हो जाएगा।
कितने साल हुकूमत फरमाएंगे?
हज़रत इमाम महदी रज़ियल्लाहु अन्हु सात या नौ साल तक हुकूमत फरमाएंगे, जैसा कि हज़रत सैयदना अबू सईद ख़ुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत की गई हदीस में है: “यमलिकु सब’अन औ तिस’अन” यानी वह सात या नौ साल तक हुकूमत फरमाएंगे।