Prophet Muhammad History in Hindi Qist 7
मुल्क ए शाम का सफ़र
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Seerat e Mustafa Qist 7
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मुल्क ए शाम का सफ़र
हज़रत मुहम्मद साहब (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कुछ साल अपने दूसरे चाचा ज़ुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब के साथ भी रहे थे। उस समय एक बार हज़रत मुहम्मद साहब अपने इस चाचा के साथ एक काफिले में यमन की यात्रा पर गए।
रास्ते में एक घाटी से गुजरे। उस घाटी में एक बदमाश ऊंट रहता था जो आने-जाने वालों का रास्ता रोक लेता था। मगर जैसे ही उसने नबी करीम को देखा, वह तुरंत बैठ गया और अपनी छाती जमीन पर रगड़ने लगा। आपने अपने ऊंट से उतरकर उस पर सवारी कर ली, और वह ऊंट आपको घाटी के पार ले गया। फिर आपने उसे छोड़ दिया।
यह काफिला जब यात्रा से लौट रहा था तो एक ऐसी घाटी से गुजरा जो तुफानी पानी से भरी हुई थी और पानी उफान मार रहा था। यह देखकर आपने काफिले के लोगों से कहा,
“मेरे पीछे-पीछे आओ।”
फिर आप इत्मीनान से घाटी में प्रवेश कर गए और बाकी लोग भी आपके पीछे थे। अल्लाह तआला ने अपनी शक्ति से पानी को सुखा दिया और आप पूरे काफिले को लेकर सुरक्षित घाटी पार कर गए। जब काफिला मक्का पहुंचा तो लोगों ने ये आश्चर्यजनक घटनाएं सुनाईं। यह सुनकर लोग कहने लगे,
“इस लड़के की तो कुछ अलग ही शान है।”
इब्न हिशाम लिखते हैं कि बनू लहब का एक व्यक्ति बहुत बड़ा कयाफा शिनास था, यानी लोगों की शक्ल-सूरत देखकर उनके हालात और भविष्य के बारे में अंदाज़ा लगाता था। मक्का आता तो लोग अपने बच्चों को उसके पास लाते, वह उन्हें देखकर उनके बारे में बताता था। एक बार वह आया तो अबू तालिब आपको भी उसके पास ले गए और उस वक्त आप अभी नौजवान लड़के ही थे।
कयाफा शिनास ने आपको एक नजर देखा, फिर दूसरे बच्चों को देखने लगा। उसके बाद उसने कहा, “इस लड़के को मेरे पास लाओ।” अबू तालिब ने यह बात महसूस कर ली थी कि कयाफा शिनास ने उनके भतीजे को अजीब नजरों से देखा है, इसलिए वे आपको लेकर वहां से निकल आए थे। जब कयाफा शिनास को पता चला कि आप वहां मौजूद नहीं हैं तो वह चीखने लगा,
“तुम्हारा बुरा हो, उस लड़के को मेरे पास लाओ जिसे मैंने अभी देखा है। अल्लाह की कसम! वह बहुत ऊंची शान वाला है।”
अबू तालिब ने व्यापार के उद्देश्य से शाम जाने का इरादा किया। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने भी साथ जाने की इच्छा जताई। कुछ रिवायतों में आया है कि आपने खास तौर पर जाने की दरख्वास्त की। अबू तालिब ने आपकी इच्छा देखकर कहा, “अल्लाह की कसम! मैं इसे साथ जरूर ले जाऊंगा। न यह मुझसे जुदा हो सकता है, न मैं इसे अपने से जुदा कर सकता हूँ।”
एक रिवायत में इस तरह आया है कि आपने अबू तालिब की ऊँटनी की लगाम पकड़ ली और कहा,
“चाचा जान! आप मुझे किसके पास छोड़कर जा रहे हैं? मेरी ना माँ है, ना बाप।”
उस समय आपकी उम्र सिर्फ नौ साल थी। आखिरकार अबू तालिब ने आपको साथ ले जाने का फैसला किया। उन्होंने आपको अपनी ऊँटनी पर बिठाया।
रास्ते में काफिला ईसाइयों की एक इबादतगाह के पास ठहरा। वहाँ एक राहिब ने हज़रत मुहम्मद साहब को देखा और चौंक गया।
उसने अबू तालिब से पूछा, “यह लड़का आपका क्या लगता है?”
अबू तालिब ने जवाब दिया, “यह मेरा बेटा है।”
इस पर राहिब ने कहा, “यह आपका बेटा नहीं हो सकता।”
यह सुनकर अबू तालिब हैरान हुए और पूछा, “क्यों? यह मेरा बेटा क्यों नहीं हो सकता?”
राहिब ने कहा, “यह मुमकिन ही नहीं कि इस लड़के का बाप ज़िंदा हो। यह नबी है।” ।
राहिब का मतलब था कि इस लड़के में आने वाले नबी की सभी निशानियाँ हैं, और उनमें से एक यह है कि उनके जन्म से पहले ही उनके पिता का इंतकाल हो चुका होगा।
अबू तालिब ने फिर पूछा, “नबी क्या होता है?”
राहिब ने जवाब दिया, “नबी वह होता है जिसे आसमान से खबरें मिलती हैं और वह जमीन वालों को इसकी जानकारी देता है। तुम इस लड़के की यहूदियों से हिफाज़त करना।”
इसके बाद अबू तालिब वहां से आगे बढ़े। रास्ते में एक और राहिब से उनकी मुलाकात हुई। इस राहिब ने भी हुज़ूर को देखा और यही सवाल किया,
“यह लड़का आपका क्या लगता है?”
अबू तालिब ने फिर वही जवाब दिया, “यह मेरा बेटा है।”
इस पर राहिब ने कहा, “यह तुम्हारा बेटा नहीं हो सकता, इसके पिता का इंतकाल हो चुका होगा।”
कुछ समय बाद यह काफिला बसरा पहुंचा। वहाँ बहीरा नाम का एक प्रसिद्ध राहिब था, जिसका असली नाम जॉर्जियस था। वह अपनी खानकाह में रहता था और बड़ा विद्वान मानना जाता था। यह खानकाह हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के समय से चली आ रही थी और हमेशा विद्वानों की सेवा में रहती थी। इस समय, बहीरा सबसे बड़ा विद्वान था
क़ुरैश के लोग अक्सर बहीरा की खानकाह के पास से गुज़रते, लेकिन बहीरा ने पहले कभी उनसे कोई बात नहीं की थी। मगर इस बार जब उसने काफिले में हज़रत मुहम्मद साहब को देखा, तो उसने पूरे काफिले के लिए खाने का इंतजाम करवाया। बहीरा ने यह भी देखा कि हज़रत मुहम्मद साहब पर एक बादल साया किए हुए है। जब काफिला एक पेड़ के नीचे आकर ठहरा तो उसने बादल को देखा कि वह अब उस पेड़ पर साया कर रहा था। उस पेड़ की शाखें उस दिशा में झुक गई थीं जहां हज़रत मुहम्मद साहब बैठे थे।
बहीरा ने यह अजीब नज़ारा देखा और काफिले के लोगों को संदेश भिजवाया,
“ऐ क़ुरैशी लोगों! मैंने आप सबके लिए खाना तैयार करवाया है, मेरी इच्छा है कि आप सभी—बच्चे, बुजुर्ग, और गुलाम सब भोजन करने आएं।”
यह संदेश सुनकर काफिले के एक व्यक्ति ने कहा,
“ऐ बहीरा…आज तो आपने नया काम किया है। हम अक्सर इस रास्ते से गुजरते हैं, पर आपने कभी हमें आमंत्रित नहीं किया, फिर आज ऐसा क्यों?”
बहीरा ने जवाब दिया, “आप सही कह रहे हैं, लेकिन इस बार आप सब मेरे मेहमान हैं और मेहमान का स्वागत करना अच्छी बात है।”
इस तरह सभी लोग बहीरा के पास पहुँच गए, लेकिन नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को खेमे में ही छोड़ दिया गया था।