Prophet Muhammad History in Hindi Qist 5
हुज़ूर हज़रत हलीमा सादिया ؓ की गोद में
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Seerat e Mustafa Qist 5
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हज़रत हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु अन्हा अपनी बस्ती से रवाना हुईं। उनके साथ उनका दूध पीता बच्चा और पति भी थे। हज़रत हलीमा सअदिया रज़ियल्लाहु अन्हा दूसरी औरतों के बाद मक्का पहुँचीं। उनका खच्चर बहुत कमजोर और मरियल था। उनके साथ उनकी कमजोर और बूढ़ी ऊँटनी थी। वह बहुत धीरे चलती थी। उनकी वजह से हलीमा रज़ियल्लाहु अन्हा काफिले से बहुत पीछे रह जाती थीं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। वे सबसे आखिर में मक्का में दाखिल हुईं
उस ज़माने में अरब का दस्तूर यह था कि जब उनके यहाँ कोई बच्चा होता तो वे देहात से आने वाली दाइयों के हवाले कर देते थे ताकि देहात में बच्चे की नशो-नुमा बेहतर हो और वह ख़ालिस अरबी ज़बान सीख सके।
दाइयों का क़ाफ़िला मक्का में दाख़िल हुआ। उन्होंने उन घरों की तलाश शुरू की जिनमें बच्चे पैदा हुए थे। इस तरह बहुत सी दाइयाँ जनाब अब्दुल मुत्तलिब के घर भी आईं। नबी करीम ﷺ को देखा लेकिन जब उन्हें मालूम हुआ कि यह बच्चा तो यतीम पैदा हुआ है तो इस ख़याल से छोड़कर आगे बढ़ गईं कि यतीम बच्चे के घराने से उन्हें क्या मिलेगा। इस तरह दाइयाँ आती रहीं, जाती रहीं… किसी ने आपको दूध पिलाना मंज़ूर न किया और करतीं भी कैसे? यह सआदत तो हज़रत हलीमाؓ के हिस्से में आना थी।
जब हलीमाؓ मक्का पहुँचीं तो उन्हें मालूम हुआ, सब औरतों को कोई न कोई बच्चा मिल गया है और अब सिर्फ़ वे बिना बच्चे के रह गई हैं और अब कोई बच्चा बाकी नहीं बचा, हाँ एक यतीम बच्चा ज़रूर बाकी है जिसे दूसरी औरतें छोड़ गई हैं।
हलीमा सादियाؓ ने अपने शौहर अब्दुल्लाह इब्न हारिस से कहा:
“ख़ुदा की क़सम! मुझे यह बात बहुत नागवार गुज़र रही है कि मैं बच्चे के बिना जाऊँ, दूसरी सब औरतें बच्चे लेकर जाएँ, ये मुझे ताने देंगे, इस लिए क्यों न हम इसी यतीम बच्चे को ले लें।”
अब्दुल्लाह बिन हारिस बोले:
“कोई हर्ज नहीं! हो सकता है, अल्लाह इसी बच्चे के ज़रिए हमें ख़ैर व बरकत अता फरमा दे।”
चुनांचे हज़रत हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा अब्दुल मुत्तलिब के घर गईं। जनाब अब्दुल मुत्तलिब और हज़रत आमिना ने उन्हें खुशआमदीद कहा। फिर आमिना उन्हें बच्चे के पास ले आईं। आप उस वक्त एक ऊनी चादर में लिपटे हुए थे। वह चादर सफ़ेद रंग की थी। आपके नीचे एक हरे रंग का रेशमी कपड़ा था। आप सीधे लेटे हुए थे, आपके सांस की आवाज़ के साथ मस्क की सी ख़ुशबू निकल कर फैल रही थी।
हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा आपके हुस्न व जमाल को देख कर हैरतज़दा रह गईं। आप उस वक्त सो रहे थे, उन्होंने जगाना मुनासिब न समझा। लेकिन जैसे ही उन्होंने प्यार से अपना हाथ आपके सीने पर रखा, आप मुस्कुरा दिए और आँखें खोल कर उनकी तरफ देखने लगे।
हज़रत हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं:
“मैंने देखा, आपकी आँखों से एक नूर निकला जो आसमान तक पहुँच गया, मैंने आपको गोद में उठा कर आपकी दोनों आँखों के दरमियानी जगह पर प्यार किया।
फिर मैंने आपकी वालिदा और अब्दुल मुत्तलिब से इजाज़त चाही, बच्चे के लिए क़ाफ़ले में आई। मैंने आपको दूध पिलाने के लिए गोद में लिटाया तो आप दाईं तरफ से दूध पीने लगे, पहले मैंने बाईं तरफ से दूध पिलाना चाहा, लेकिन आपने इस तरफ से दूध न पिया, दाईं तरफ से आप फ़ौरन दूध पीने लगे। बाद में भी आपकी यही आदत रही, आप सिर्फ़ दाईं तरफ से दूध पीते रहे, बाईं तरफ से मेरा बच्चा दूध पीता रहा।
फिर क़ाफ़िला रवाना हुआ। हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं:
“मैं अपने खच्चर पर सवार हुई। आपको साथ ले लिया। अब जो हमारा खच्चर चला तो इस क़दर तेज़ चला कि उसने पूरे क़ाफ़ले की सवारीयों को पीछे छोड़ दिया। पहले वह मरियल होने की बिना पर सबसे पीछे रहता था।
मेरी ख्वातीन साथी हैरानी से मुख़ातिब हुईं:
“ऐ हलीमा! ये आज क्या हो रहा है, तुम्हारा खच्चर इस क़दर तेज़ कैसे चल रहा है, क्या ये वही खच्चर है, जिस पर तुम आई थीं और जिसके लिए एक-एक कदम उठाना मुश्किल था?”
जवाब में मैंने उनसे कहा: “बेशक! ये वही खच्चर है, अल्लाह की कसम! इसका मामला अजीब है।”
फिर ये लोग बनू सअद की बस्ती पहुँच गए, उन दिनों ये इलाक़ा ख़ुश्क और क़हत-ज़दा था। हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं:
“उस शाम जब हमारी बकरियाँ चर कर वापस आईं तो उनके थन दूध से भरे थे जब कि इससे पहले ऐसा नहीं था, उनमें से दूध बहुत कम और बहुत मुश्किल से निकलता था। हमने उस दिन अपनी बकरियों का दूध दुहा तो हमारे सारे बर्तन भर गए और हमने जान लिया कि ये सारी बरकत इस बच्चे की वजह से है। आसपास की औरतों में भी ये बात फैल गई, उनकी बकरियाँ बदस्तूर बहुत कम दूध दे रही थीं।
ग़रज़ हमारे घर में हर तरफ, हर चीज़ में बरकत नज़र आने लगी। दूसरे लोग तअज्जुब में रहे। इस तरह दो महीने गुज़र गए। दो महीने ही में आप चलने फिरने लगे। आप आठ महीने के हुए तो बातें करने लगे और आपकी बातें समझ में आती थीं। नौ महीने की उम्र में तो आप बहुत साफ़ गुफ्तगू करने लगे।
इस दौरान आप की बहुत सी बरकतें देखने में आईं। हलीमा सादिया फ़रमाती हैं:
“जब मैं आप को अपने घर ले आई तो बुनू सआद का कोई घराना ऐसा न था जिससे मस्क की ख़ुशबू न आती हो। इस तरह सब लोग आप से मोहब्बत करने लगे। जब हमने आप का दूध छुड़ाया तो आपकी ज़बान-ए-मुबारक से ये अल्फाज़ निकले:
अल्लाहु अकबर कबीरन, वल-हम्दुलिल्लाहि कसीरन, व-सुब्हानल्लाहि बुक़रतन व-असीला।
यानी, अल्लाह तआला बहुत बड़ा है, अल्लाह तआला के लिए बे-हद तारीफ़ है, और उसके लिए सुबह-शाम पाकी है।
फिर जब आप ﷺ दो साल के हो गए तो हम आपको लेकर आपकी वालिदा के पास आए। इस उम्र को पहुँचने के बाद बच्चों को माँ-बाप के हवाले कर दिया जाता था। इधर हम आपकी बरकतें देख चुके थे और हमारी आरज़ू थी कि अभी आप कुछ और मुद्दत हमारे पास रहें। चुनांचे हमने इस बारे में आपकी वालिदा से बात की और उनसे यूं कहा:
“आप हमें इजाज़त दीजिए कि हम बच्चे को एक साल और अपने पास रखें। मैं डरती हूँ, कहीं इस पर मक्का की बीमारियों और आब-ओ-हवा का असर न हो जाए।”
जब हमने उनसे बार-बार कहा तो हज़रत आमिना मान गईं और हम आपको फिर अपने घर ले आए। जब आप कुछ बड़े हो गए तो बाहर निकल कर बच्चों को देखते थे। वे आप को खेलते नज़र आते, लेकिन आप उनके करीब न जाते।
एक रोज़ आपने मुझसे पूछा:
“अम्मी जान, क्या बात है कि दिन में मेरे भाई-बहन नज़र नहीं आते?”
आप अपने दूध-शरीक भाई अब्दुल्लाह और बहनों अनैसा और शैमा के बारे में पूछ रहे थे। हलीमा रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं कि मैंने आपको बताया, वे सुबह सवेरे बकरियाँ चराने जाते हैं और शाम के बाद घर आते हैं।
ये जान कर आपने फ़रमाया: “तब मुझे भी उनके साथ भेज दिया करें।”
इसके बाद आप अपने भाई-बहनों के साथ जाने लगे। आप खुश-खुश जाते और वापस आते। ऐसे में एक दिन मेरे बच्चे खौफ़ज़दा अंदाज़ में दौड़ते हुए आए और घबरा कर बोले:
“अम्मी जान! जल्दी चलिए… वरना भाई मुहम्मद ﷺ ख़त्म हो जाएँगे।”
ये सुनकर हमारे तो होश उड़ गए। हम दौड़ कर वहाँ पहुँचे और देखा कि आप खड़े हुए थे, रंग उड़ा हुआ था, चेहरे पर ज़र्दी छाई हुई थी। और ये इस वजह से नहीं था कि आपके सीने को चाक किए जाने से कोई तकलीफ़ हुई थी, बल्कि उन फ़रिश्तों को देख कर आपकी ये हालत हुई थी।
हलीमा सादिया रज़ियल्लाहु अन्हा फ़रमाती हैं, हमने आप से पूछा:
“क्या हुआ था?”
आपने बताया:
“मेरे पास दो आदमी आए थे, जो सफ़ेद कपड़े पहने हुए थे। (वो दोनों हज़रत जिब्रईल और हज़रत मीकाईल अ.स. थे)। उन दोनों में से एक ने कहा:
“क्या ये वही हैं?”
दूसरे ने जवाब दिया:
“हाँ, ये वही हैं।”
फिर वो दोनों मेरे करीब आए, मुझे पकड़ा और लिटा दिया। उसके बाद उन्होंने मेरा पेट चाक किया और उसमें से कोई चीज़ तलाश करने लगे। आख़िर उन्हें वो चीज़ मिल गई और उन्होंने उसे बाहर निकाल कर फेंक दिया। मैं नहीं जानता, वो क्या चीज़ थी।”
यह चीज़ के बारे में दूसरी रिवायतों में यह बात मिलती है कि वह काले रंग का एक दाना सा था – यह इंसान के जिस्म में शैतान का घर होता है और शैतान इंसान के बदन में यहीं से असर डालता है –
हलिमा सादिया फरमाती हैं, फिर हम आपको घर ले आए – इस वक्त वह मेरे शोहर अब्दुल्ला बिन हारिस ने मुझसे कहा:
“हलिमा! मुझे डर है, कहीं इस बच्चे को कोई नुकसान न पहुँच जाए, इसलिए इसे इसके घर वालों के पास पहुँचा दो -“
मैंने कहा, ठीक है, फिर हम आपको लेकर मक्का की तरफ रवाना हुए –
जब मैं मक्का के ऊपरी इलाके में पहुँची तो आप अचानक गायब हो गए – मैं हवास बख्त हो गई।
हलिमा सादिया फरमाती हैं: “मैं परेशानी की हालत में मक्का पहुँची, आपके दादा अब्दुल्मुत्तलिब के पास पहुँचते ही मैंने कहा:
“मैं आज रात मुहम्मद को लेकर आ रही थी, जब मैं ऊपरी इलाके में पहुँची तो वह अचानक कहीं ग़ायब हो गए। अब ख़ुदा की क़सम, मैं नहीं जानती, वह कहाँ हैं?”
अब्दुल्मुत्तलिब यह सुनकर फ़ौरन क़ाबा के पास खड़े हो गए, उन्होंने आपके मिल जाने के लिए दुआ की। फिर आपकी तलाश में रवाना हुए। उनके साथ वर्का बिन नूफल भी थे। घऱज दोनों तलाश करते करते तहमाम की वादी में पहुँचें। एक दरख़्त के नीचे उन्हें एक लड़का खड़ा नज़र आया। इस दरख़्त की शाखें बहुत घनी थीं। अब्दुल्मुत्तलिब ने पूछा:
“लड़के, तुम कौन हो?”
हुज़ूर चूँकि इस वक्त तक क़द निकाल चुके थे, इसलिए अब्दुल्ला मत्तब पहचान न सके। आपका क़द तेजी से बढ़ रहा था।
जवाब में आपने फरमाया:
“मैं मुहम्मद बिन अब्दुल्ला बिन अब्दुल्ला मत्तब हूँ।”
यह सुनकर अब्दुल्ला मत्तब बोले: “तुम पर मेरी जान क़ुर्बान, मैं ही तुम्हारा दादा अब्दुल्ला मत्तब हूँ।”
फिर उन्होंने आपको उठाकर सीने से लगा लिया और रोने लगे, आपको घोड़े पर अपने आगे बैठाया और मक्का की तरफ चले। घर आकर उन्होंने बकरियाँ और गायें ज़ब़ह कीं और मक्के वालों की दावत की।
आपके मिल जाने के बाद हलीमा सादिया हज़रत आमना के पास आ गईं तो उन्होंने पूछा: “हलीमा! अब आप बच्चे को क्यों ले आईं, आपकी तो ख्वाहिश थी कि यह अभी आपके पास और रहें?”
उन्होंने जवाब दिया: “यह अब बड़े हो गए हैं और ख़ुदा की क़सम, मैं अपनी जिम्मेदारी पूरी कर चुकी हूँ, मैं डर महसूस करती रहती हूँ, कहीं उन्हें कोई हादसा न पेश आ जाए, इसलिए उन्हें आप के सुपुर्द करती हूँ।”
हज़रत आमना को यह जवाब सुनकर हैरानी हुई। बोलीं: “मुझे सच सच बताओ मामला क्या है?”
तब उन्होंने सारा हाल कह सुनाया। हलीमा सादिया ने दरअसल कई अजीबो-ग़रीब वाक़ात देखे थे। इन वाक़ात की वजह से वह बहुत परेशान हो गई थीं, फिर सीने का मबारक चाक किए जाने वाला वाक़िया पेश आ गया तो वह आपको फ़ौरन वापस करने पर मजबूर हो गईं। वह कुछ वाक़ात हलीमा इस तरह बयान करती हैं:
’’एक बार यहूदियों का एक जमात मेरे पास से गुज़री। ये लोग आसमानी किताब तोरात को मानने का दावा करते थे, मैंने उनसे कहा, क्या आप लोग मेरे इस बेटे के बारे में कुछ बता सकते हैं?‘‘
साथ ही मैंने हुज़ूर अक़रम ﷺ की पैदाइश के बारे में उन्हें तफसीलें सुनाईं।
यहूदी तफसीलें सुनकर आपस में कहने लगे:
’’इस बच्चे को क़तल कर देना चाहिए।‘‘
यह कहकर उन्होंने पूछा क्या यह बच्चा यतीम है?
मैंने उनकी बात सुन ली थी कि वे इसके क़तल का इरादा कर रहे थे, तो मैंने जल्दी से अपने शौहर की तरफ इशारा करते हुए कहा नहीं! यह रहे इस बच्चे के बाप तब उन्होंने कहा अगर यह बच्चा यतीम होता तो हम ज़रूर इसे क़तल कर देते।
यह बात उन्होंने इस लिए कही कि उन्होंने पुरानी किताबों में पढ़ा था कि एक आख़िरी नबी आने वाले हैं, उनका दीन सारे आलम में फैल जाएगा, हर तरफ उनका बोलबाला होगा, उनकी पैदाइश और बचपन की ये ये अलामतें होंगी और ये कि वे यतीम होंगे। अब चूँकि उनसे हलिमा सादिया ने यह कह दिया कि यह बच्चा यतीम नहीं है तो उन्होंने ख़्याल कर लिया कि यह वह बच्चा नहीं है। इस तरह उन्होंने बच्चे को क़तल करने का इरादा छोड़ दिया।
इसी तरह उनके साथ यह वाक़िया पेश आया, एक बार वह आपको अक्काज़ के मेले में ले आए। जाहिलियत के दौर में यहाँ बहुत मशहूर मेला लगता था। यह मेला ताईफ और नक़ला के बीच में लगता था। अरब के लोग हज करने आते तो शवाल के महीने में इस मेले में गुज़ारते, खेलते कूदते और अपनी बढ़ाइयाँ बयान करते। हलिमा सादिया आपको लिए बाजार में घूम रही थीं कि एक काहिन की नज़र आप पर पड़ी। उसे आप में नबुवत की तमाम अलामतें नज़र आ गईं। उसने पुकार कर कहा
लोगो, इस बच्चे को मार डालो।
हलिमा इस काहिन की बात सुनकर घबराईं और जल्दी से वहाँ से सरक गईं। इस तरह अल्लाह तआला ने हुज़ूर ﷺ की हिफ़ाज़त फरमाई।
मेले में मौजूद लोगों ने काहिन की आवाज़ सुनकर इधर उधर देखा कि किस बच्चे को क़तल करने के लिए कहा गया है, मगर उन्हें वहाँ कोई बच्चा नज़र नहीं आया।
अब लोगों ने काहिन से पूछा क्या बात है, आप किस बच्चे को मार डालने के लिए कह रहे हैं?
उसने उन लोगों को बताया मैंने अभी एक लड़के को देखा है, माबूदों की क़सम वह तुम्हारे दीन के मानने वालों को ख़त्म करेगा, तुम्हारे बुतों को तोड़ेगा और वह तुम सब पर ग़ालिब आएगा।
यह सुनकर लोग आपकी तलाश में इधर उधर दौड़े लेकिन नाकाम रहे, हलिमा सादिया आपको लिए वापस आ रही थीं कि ज़ी हिज्जा से उनका गुज़ऱ हुआ। यहाँ भी मेला लगा हुआ था। इस बाजार में एक जूतूमी था। लोग उसके पास अपने बच्चों को लेकर आते थे वह बच्चों को देखकर उनकी तक़दीर के बारे में अंदाज़े लगाता था।
हलिमा सादिया इसके नज़दीक से गुज़रीं तो जूतूमी की नज़र हुज़ूर अकरम ﷺ पर पड़ी, जूतूमी को आप ﷺ की मुहर ए नबुवत नज़र आ गई, साथ ही आप ﷺ की आँखों की खास सुर्खी उसने देख ली। वह चिल्ला उठा
ऐ अरब के लोगो। इस लड़के को क़तल कर दो। यह यक़ीना तुम्हारे दीन के मानने वालों को क़तल करेगा, तुम्हारे बुतों को तोड़ेगा और तुम पर ग़ालिब आएगा।
यह कहते हुए वह आपकी तरफ झपटा लेकिन उसी वक़्त वह पागल हो गया और उसी पागलपन में मर गया।
एक और वाक़िया सीरत इब्न हिशाम में है कि हब्शा के ईसाईयों की एक जमात हुज़ूर अक़रम ﷺ के पास से गुज़री।
उस वक़्त आप ﷺ हलिमा सादिया के साथ थे और वह आपको आपकी वालिदा के हवाले करने जा रही थीं। इन ईसाईयों ने आप ﷺ की मुहर ए नबुवत को देखा और आप ﷺ की आँखों की सुर्खी को भी देखा, उन्होंने हलिमा सादिया से पूछा क्या इस बच्चे की आँखों में कोई तकलीफ है?
उन्होंने जवाब में कहा: “नहीं: कोई तकलीफ नहीं! यह सुर्खी तो उनकी आँखों में कुदरती है।”
इन ईसाईयों ने कहा: “तब इस बच्चे को हमारे हवाले कर दो, हम इसे अपने मुल्क ले जाएंगे, यह बच्चा पैग़म्बर और बड़ी शान वाला है। हम इसके बारे में सब कुछ जानते हैं।”
हलिमा सादिया यह सुनते ही वहाँ से जल्दी से दूर चल गईं, यहाँ तक कि आप ﷺ को आपकी वालिदा के पास पहुँच दिया।
इन वाक़ियात में जो सबसे अहम वाक़िया है, वह सीना मबारक चाक करने वाला था। रिवायतों से यह बात साबित है कि आप ﷺ के सीने मबारक पर सिलाई के निशान मौजूद थे जैसे कि आजकल डॉक्टर हज़रत आपरेशन के बाद टाँके लगाते हैं, टाँके खोल दिए जाने के बाद भी सिलाई के निशान मौजूद रहते हैं। इस वाक़िए के बाद हलिमा सादिया और उनके खावंद ने फैसला किया कि अब बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहिए…
जब हलिमा सादिया ने आप ﷺ को हज़रत आमना के हवाले किया, इस वक़्त आप ﷺ की उम्र 4 साल थी। एक रिवायत यह मिलती है कि इस वक़्त उम्र शरीफ़ पांच साल थी, एक तीसरी रिवायत के मुताबिक़ उम्र मबारक छः साल हो चुकी थी।
जब हलिमा सादिया ने आप ﷺ को हज़रत आमना के हवाले किया, तो इसके कुछ दिनों बाद हज़रत आमना इंतकाल कर गईं, वालिदा का साया भी सर से उठ गया। हज़रत आमना की वफात मक्का और मदीना के बीच अबवा के मुकाम पर हुई। आप को यहीं दफन किया गया।
हुआ यह कि आप ﷺ की वालिदा आप ﷺ को लेकर अपने मीक़े मदीना मुनव्वरा गईं। आप ﷺ के साथ उम्मे ऐमन भी थीं। उम्मे ऐमन कहती हैं, एक दिन मदीना के दो यहूदी मेरे पास आए और बोले:
“ज़रा मुहम्मद को हमारे सामने लाओ, हम उन्हें देखना चाहते हैं वह आप ﷺ को उनके सामने ले आएं। उन्होंने अच्छी तरह देखा फिर एक ने अपने साथी से कहा:
“यह इस उम्मत का नबी है, और यह शहर उनकी हिजरत गाह है, यहाँ ज़बरदस्त जंग होगी, क़ैदी पकड़ें जाएंगे।”
आप ﷺ की वालिदा को यहूदीयों की इस बात का पता चला तो आप डर गईं और आप ﷺ को लेकर मक्का की तरफ रवाना हो गईं… मगर रास्ते ही में अबवा के मुकाम पर वफ़ात हुई।