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हज्जाज बिन यूसुफ की दर्दनाक मौत

हज्जाज बिन यूसुफ ताहज्जुद की एक रकअत में 10 पारों की तिलावत करता था, जमात के साथ नमाज पढ़ाता था और शराब व ज़िना से दूर भागता था। लेकिन वह अत्यंत ज़ालिम था। जब उसकी मौत आई, तो वह बहुत ही दर्दनाक थी।

हजरत सईद बिन जुबैर, जो कि एक ताबेई बुजुर्ग थे, एक दिन मिंबर पर बैठे हुए यह कहने लगे,

“हज्जाज एक ज़ालिम व्यक्ति है।”

जब हज्जाज को यह पता चला कि सईद उसके बारे में ऐसा कह रहे हैं, तो उसने उन्हें अपने दरबार में बुलाया

और पूछा, “क्या तुमने मेरे बारे में ऐसा कहा है?”

हज़रत सईद ने जवाब दिया, “हां, बिल्कुल! तू एक ज़ालिम व्यक्ति है।”

यह सुनकर हज्जाज का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और उसने सईद को मारने का हुक्म दे दिया। जब हज़रत सईद को दरबार से बाहर ले जाया जा रहा था, तो वह मुस्कुरा दिए।

हज्जाज को यह नागवार गुजरा और उसने पूछा, “क्यों मुस्कुरा रहे हो?”

सईद ने जवाब दिया, “तेरी बेवकूफी पर और इस बात पर कि अल्लाह तुझे डील दे रहा है।”

हज्जाज ने हुक्म दिया कि उन्हें उसके सामने ही ज़बह किया जाए। जब गला काटने के लिए खंजर रखा गया, तो हज़रत सईद ने अपना रुख काबा की तरफ कर लिया और कहा,

“ऐ अल्लाह! मेरा चेहरा तेरी तरफ है और मैं तेरी रज़ा पर राज़ी हूं। यह हज्जाज न तो मौत का मालिक है, न जिंदगी का।”

जब हज्जाज ने यह सुना, तो उसने कहा, “इसका रुख काबा से हटा दो।”

हज़रत सईद ने कहा, “ऐ अल्लाह! रुख जिधर भी हो, तू हर जगह मौजूद है।”

उन्होंने आखिरी दुआ की, “या अल्लाह! मेरा कत्ल इसका आखिरी जुल्म हो। मेरे बाद इसे किसी पर भी मुसल्लत मत करना।”

सईद के इन शब्दों के बाद उन्हें कत्ल कर दिया गया। उनका इतना खून निकला कि दरबार लहूलुहान हो गया।

एक समझदार व्यक्ति ने कहा, “इतना खून तब निकलता है जब कोई खुशी-खुशी अल्लाह की रज़ा पर राज़ी हो जाता है।”

हज्जाज बिन यूसुफ की हुकूमत और उसके ज़ुल्म

हज्जाज बिन यूसुफ को अब्दुल मलिक ने मक्का, मदीना, ताइफ और यमन का गवर्नर बनाया था। बाद में उसे इराक भेज दिया गया, जहां वह कूफा में दाखिल हुआ। उसने बीस साल तक हुकूमत की और कई फतहें हासिल कीं।

हज्जाज ने कुरान पर एअराब (निशानात) लगवाए और उसे बड़ी फसाहत और बलाग़त हासिल थी। वह कुरान का हाफिज था और शराब व बदकारी से दूर रहता था। लेकिन उसकी एक बड़ी बुराई, उसका जुल्म, उसकी सारी अच्छाइयों पर भारी पड़ा।

हज्जाज ने अपनी जिंदगी में एक लाख बीस हजार इंसानों को कत्ल किया। उसकी जेलों में एक समय में अस्सी हजार कैदी बंद रहते थे, जिनमें तीस हजार औरतें थीं। उसका आखिरी जुल्म था हजरत सईद बिन जुबैर का कत्ल।

हज्जाज की दर्दनाक मौत

हज़रत सईद को मारने के बाद हज्जाज पर खौफ और वहशत सवार हो गई। उसे हर रात सईद बिन जुबैर सपने में आते और कहते, “ऐ दुश्मन-ए-खुदा! तूने मुझे क्यों मारा? मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था?”

हज्जाज को “ज़महरीरी” नामक बीमारी हो गई, जिसमें अंदर से ठंड उठती और पूरा शरीर कांपता। आग की अंगीठियां पास रखी जाती थीं, लेकिन उसे राहत नहीं मिलती थी। उसके शरीर के अंदर एक अजीब किस्म का कैंसर हो गया था।

एक हकीम ने उसके गले में गोश्त का टुकड़ा डाला और उसे धागे से खींचा। उसमें कीड़े लगे हुए थे, और इतनी बदबू आई कि लोग भाग गए। हकीम ने कहा, “तेरी बीमारी जमीनी नहीं, आसमानी है।”

आखिरकार, वह हजरत हसन बसरी के पास गया और उनसे दुआ की दरख्वास्त की। हसन बसरी ने कहा,

“मैंने तुझे रोका था कि नेक बंदों पर जुल्म मत कर, लेकिन तू नहीं रुका।”

सईद बिन जुबैर की मौत के चालीस दिन बाद हज्जाज की मौत हो गई। मरने से पहले उसने वसीयत की, “मुझे रात में दफनाना और सुबह मेरी कब्र का निशान मिटा देना। लोग मुझे मरने के बाद भी नहीं छोड़ेंगे।”

अगले दिन उसका पेट फट गया, और उसकी मौत हो गई।

अल्लाह ज़ालिमों को ढील जरूर देता है, लेकिन जब हिसाब लेता है, तो उसके अंजाम से सबको इबरत मिलती है।

अल्लाह हम सबको ज़ालिमों के जुल्म से बचाए। आमीन।

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